Hindi Sex Kahani ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी ) - SexBaba
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Hindi Sex Kahani ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

hotaks

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ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

कुछ हो ना हो पर रिश्तों को निभाने के लिए जिन्दगी में प्यार होना ज़रूरी है। पर क्या सच में? अगर ऐसा है तो फिर आज प्यार से जोड़े गये रिश्ते क्यों टूटते हैं?क्यों अधिकतर लोग नयी उम्र में जिससे प्यार करते हैं, शादी के बाद उससे रिश्ता तोड़ लेते हैं? सच तो ये है कि हमने रिश्तों को निभाने में ज़रूरी भरोसे को खोया। प्यार करना तो हमने फिल्म देखकर सीख लिया पर प्यार के लिए ज़रूरी भरोसा करना,हम नही सीख पाए।

ये कैसी दूरियाँ एक ऐसी लड़की की कहानी है,जिसे इस दुनिया की कोई समझ नही होती है। हालात कुछ ऐसे होते हैं कि उसे अपना घर छोड़ना पड़ता है । घर छोड़ने के बाद उसकी जिंदगी में ना जाने कितने मोड़ आते है। उस इंसान ने उसे समझा जिससे उसका कोई रिश्ता नही था और उसके अपने माँ-बाप उसे नही समझ सके। किसी के भरोसे के सहारे वो सम्भल तो गयी, पर कितनी ही बार उसे अपनों और गैरों से दिए ज़ख़्मों को सहना पड़ा।

1.
बहुत देर से वो सड़क के किनारे खड़ी किसी रिक्शे का इंतज़ार कर रही थी , पर उधर से कोई भी रिक्शा नही गुज़रा। अंधेरा भी थोड़ा थोड़ा होने लगा था । उसने अब लिफ्ट माँगनी शुरू कर दी,लेकिन उसे डर भी लग रहा था। इससे पहले वो कभी भी इतनी देर तक बाहर नही रही थी और ना ही कभी उसने किसी से लिफ्ट ली थी , पर उसके पास कोई रास्ता भी नही था। तभी एक गाड़ी उसके पास आकर रुकी ,कोई 19-20 साल का लड़का था।

"आप मुझे राजापुर तक छोड़ सकते हैं ,"शीतल ने कहा।

उस लड़के ने कुछ नही कहा और बैठने का इशारा किया। शीतल को ये लड़का थोड़ा अजीब लगा। उसने जिस तरह से उससे बैठने का इशारा किया जिस तरह से वो उसे देख रहा था, ये सब उसे अजीब लग रहा था। उस लड़के के लिए जैसे शीतल कुछ थी ही नही। इतनी सुंदर लड़की को देखकर आम-तौर पर जैसा व्यवहार उसने लड़कों का देखा था वो उन सब से अलग था,वो बिल्कुल शांत और खुद में खोया हुआ था। उसने शीतल को उसकी बताई जगह पर छोड़ दिया। जैसे ही वो चलने को हुआ की शीतल बोली-"थैंक्स ,अपना नाम तो बता दो। "

"राज,"इतना कह कर वो वहाँ से चला गया।

पूरी रात वो सिर्फ उस लड़के के बारे में सोचती रही। सुबह उठी तो उसने देखा की उसकी माँ घर की सफाई कर रही थी।

"मम्मी,आज कुछ है क्या?"शीतल ने पूछा।

"नही बेटा,आज कोई आने वाला है,"उसकी माँ ने जवाब में कहा।

"कौन मम्मी ?"

उसकी माँ ने कुछ भी नही कहा। उसने फिर पूछा पर कोई जवाब नही मिलता। वो कॉलेज के लिए तैयार होने लगी।

"बेटा आज कॉलेज मत जाओ,"उसकी माँ ने कहा।

"क्यों मम्मी?"

"बस, ऐसे ही।"
 
शीतल नहीं मानती वो कॉलेज चली गयी। शीतल को बाहर घूमने का बहुत शौक था इसलिए वो हर रोज़ कॉलेज से लौटते समय अपने दोस्तों के साथ किसी पार्क या फिर रेस्टौरेंट जाती थी। उस दिन पार्क में उसे राज मिला,वो तुरंत उसके पास गयी और उससे बात करने लगी। राज को भी वो ठीक लगी इसलिए उन दोनों में जल्द ही दोस्ती हो गयी। वो अक्सर मिलने लगे थे। शीतल को राज की बातों से बहुत हिम्मत मिलती थी पर राज बात बहुत कम करता था और शीतल बहुत ज़्यादा। उनकी मुलाक़ातें ज़्यादा नही हुई थी वो सिर्फ़ 4-5 बार ही मिले थे।

उस दिन शीतल के घर उसकी बुआ शीतल के लिए शादी का रिश्ता लेकर आई थी। लड़का शीतल से 12 साल बड़ा था,वो 19 की थी और वो 31 का। शीतल का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था और इस लड़के का परिवार आर्थिक रूप से बहुत मजबूत था। शीतल को अपनी बड़ी बहन के साथ जो हुआ था वो जब भी याद आता था तो शादी के नाम से भी चिढ़ने लगती थी। वो अपनी माँ से कहती थी कि मम्मी,मुझे शादी नही करनी है और तब तक तो बिल्कुल नही जब तक कि मैं कुछ बन ना जाऊँ। शीतल की बड़ी बहन को उसके ससुराल वाले बहुत परेशन करते थे वो अक्सर दहेज की माँग करते थे और अपनी माँग पूरी ना होने पर वो उसे मारते थे,तंग आकर उसने अपने को आग लगाकर जला लिया था। उसकी मौत के बाद से शीतल के अंदर एक डर बैठ गया था। उसे लगता था की उसके साथ भी ऐसा ही किया जाएगा।

कई दिन बाद जब उसकी मुलाकात राज से हुई तो उसने राज से कहा-“राज,क्या तुम मुझसे शादी करोगे?क्या मैं तुम पर भरोसा करके अपना घर छोड़ सकती हूँ?”

“आप पागल तो नही हो,हम अभी सिर्फ़ 5-6 बार ही मिले हैं और आप शादी की बात कर रही हो। मैं आप से प्यार नही करता,और मेरे लिए आप अपना घर मत छोड़िए। मुझे आप से कोई मतलब नही है , मैं सिर्फ़ आप से ऐसे ही बोल देता हूँ , बस। आप भी अपना घर कभी भी मत छोड़िएगा बाहर की दुनिया में जीना इतना आसान नही है। आपके लिए क्या,मैं अपने माँ-बाप को दुनिया की किसी भी लड़की के नही छोड़ सकता ना ही उनके खिलाफ जा सकता हूँ,किसी के साथ बिताये 20 दिन के लिए मैं अपने माँ-बाप का दिल नही दुखा सकता हूँ। अगर आप को कोई समस्या हो तो आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं । उस समय मैं आपका साथ दूँगा,पर ऐसे-वैसे किसी भी कदम में नही दे सकता हूँ……………। ग़लत के खिलाफ खड़े होना सीखीए,ग़लत करना नही।”

शीतल बिल्कुल शांत हो गयी । उससे कुछ भी नही बोला जा रहा था। फिर भी वो बहुत हिम्मत करके बोली-“प्यार तो मैं भी तुमसे नही करती हूँ,बस ये जानना चाहती थी की कहीं तुम तो मुझसे प्यार नही करते हो। मैं बस तुम्हारी अपने प्रति सोच जानना चाहती थी और कुछ नही , इतनी पागल मैं नही हूँ की 5 मुलाकात में किसी को दिल दे बैंठू। मुझे तो डर था कहीं तुम तो मुझे लेकर कोई सपना नही देखने लगे हो।”

कुछ देर बाद दोनो वहाँ से चले जाते हैं। दो दिन बाद शीतल को देखने के लिए फिर से वो लोग आए। वो लोग शीतल को ऐसे देख रहे थे जैसे वो शादी के लिए नही बल्कि इंटरव्यू लेने आयें हों। वो लड़का मुँह में पान दबाए हुए था और शीतल को ऐसे घूर रहा था जैसे कभी कोई लड़की नही देखी हो,शीतल को बहुत गुस्सा आ रहा था,तभी उसकी माँ ने उसे चाय लाने के लिए कहा। जब वो चाय लेकर आई तो उससे उस लड़के ने अपने बगल में बैठने का इशारा किया पर शीतल वहाँ से जाने लगी।

“रुकिये , मुझे आप से कुछ बात करनी है,”उसने शीतल को रोकते हुए कहा।

शीतल रुक जाती है, तो उसने उससे अकेले में बात करने की बात कही,शीतल ना चाहते हुए भी सब के कहने पर उससे बात करने के लिए तैयार हो गयी।

“ तुम इतनी सुंदर हो,तुम्हारे पीछे लड़के तो ज़रूर पड़े होंगे,”उसने पूछा।

“हाँ,बहुत पीछे पड़े रहते थे पर मैं इन सब पर ध्यान नही देती,”शीतल ने कहा।

“तुम्हारा किसी के साथ कोई चक्कर नही है।”

“नही,प्लीज़ आप मुझसे कुछ और बात करिये………………मुझे इस तरह की कोई बात नही पसंद है।”

“किसी लड़के से कोई रिश्ता तो नही है तुम्हारा………।”

“मतलब……? मुझे कुछ समझ नही आया।”

“किसी लड़के के साथ कभी कुछ किया………………खुद समझ सकती हो।”
 
“मैंने कहा ना मैं ऐसी लड़की नही हूँ …………। अभी हमारी शादी नही हुई है जो आप मुझसे ऐसे सवाल पूछ रहे हैं,”शीतल ने कहा।

“फिर भी इतनी ज़्यादा सुंदर हो कोई तो होगा………,”उसने कहा।

“आप यहाँ से तुरन्त चले जाईए और हो सके तो पहले किसी लड़की से बात करने की तमीज़ सीख लीजिए,”शीतल ने कहा और तुरन्त अपनी माँ के पास आई,बोली-“मम्मी,इन सब को तुरन्त यहाँ से जाने को कह दो।”

और उसने उनको घर से भगा दिया। उनके जाने के बाद सब शीतल को डाँटने लगे कि उसने उन्हें इस तरह से क्यों भगा दिया अगर उसे शादी नही करनी थी तो वो बाद में भी मना कर सकती थी।

उस दिन ज़िंदगी को कुछ और ही मंजूर था,तभी तो हमेशा शीतल का पक्ष लेने वाली उसकी माँ भी उसके खिलाफ थी और शीतल भी लड़ने को तैयार थी।

“मम्मी,वो बहुत बुरा है और मुझे अभी शादी भी नही करनी है। मैं आपकी बात मान लूँगी पर मुझे कुछ वक्त चाहिए। मैं कुछ बन जाऊँ तो आप किसी से भी कर देना पर अभी नही।”

“हम और इंतज़ार नही कर सकते,तुम्हारे बाद तुम्हारी छोटी बहन भी है और हम में दहेज देने की क्षमता नही है,जो हम तुम्हारे लिए अच्छे रिश्ते ढूँढ सके और अभी जो भी रिश्ते आ रहे वो उम्र बढ़ने पर नही आएँगे,”शीतल के पापा ने कहा।

“पापा,क्या मैं किसी शराबी से शादी करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लूँ। इसी लिए आप ने मुझे इतना पढ़ाया है,”शीतल ने कहा।

शीतल की माँ कुछ कहने ही वाली थी की उसकी बुआ बोली-“शीतल तुम एक लड़की हो और तुम्हे इतना नही बोलना चाहिए,क्या हुआ अगर तुम उससे शादी कर लेती हो। तुमने अब तक बहुत पढ़ लिया अब जैसा हम कह रहे हैं तुम वैसा ही करोगी। क्या हुआ अगर वो थोड़ी शराब पीता है। ”

“बुआ आप मुझ से कुछ ना कहिए वैसे भी मेरे मम्मी-पापा को आपने ही शादी के लिए तैयार किया है,कल तक तो वो शादी की बात भी नही करते थे……। अच्छा होगा की आप अपने घर चली जाएँ,”शीतल ने कहा।

“तुम तय करोगी की कौन रहेगा और कौन नही,जाना है तो तुम इस घर को छोड़ कर चली जाओ हम सब से कह देंगे की तुम पढ़ने गयी हो। कोई बदनामी नही होगी हमारी,”शीतल की माँ ने गुस्से से कहा।

शीतल कुछ नही बोली उसकी आँखों आँसू से बहने लगे,वो कुछ समझ ही नही पा रही थी की ये सब क्या हो रहा था। उसे कोई भी नही समझ रहा था। तभी उसकी बुआ बोली-“क्या हुआ शीतल चुप क्यों हो,अब कुछ नही कहना। ”

शीतल को उनकी बात बहुत बुरी लगी,वो सीधे अपने कमरे में गयी अपनी मार्कशीट और सर्टिफिकेट्स लेकर घर से जाने लगी,उसे उम्मीद थी की कोई ना कोई उसे रोक लेगा पर किसी ने नही रोका।

“बेटी,घर चाहे जैसा भी हो पर बाहर की दुनिया से बहुत अच्छा होता है, “ उसकी माँ ने कहा।

शीतल कुछ नही बोली वो चुपचाप घर छोड़ कर चली गयी। घर तो छोड़ दिया पर अब वो जाए तो कहाँ जाए,वो कुछ भी नही समझ पा रही थी। उसने बाहर की दुनिया भी इतनी नही देखी थी, पढ़ने में तो अच्छी थी पर दुनिया की समझ अभी उसे नही थी,वो सुंदर भी बहुत ज़्यादा थी, ऐसे में उसे और भी डर लग रहा था।

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2.
वो वहीं पार्क में चली गई,जहाँ उसे कई बार राज मिला था। इस आश में की शायद राज मिल जाए और हुआ भी ऐसा ही राज वहीं था। शीतल राज के पास गयी।

“राज,मैंने अपना घर छोड़ दिया है क्या तुम मेरी कोई मदद कर सकते हो?” उसने राज से कहा।

“नहीं,मैं कोई मदद नही कर सकता हूँ,”राज ने कहा।

“क्यों?”

“मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था की मैं तुमसे प्यार नही करता फिर तुमने मेरे लिए घर क्यों छोड़ा।”

‘मैंने तुम्हारे लिए नही छोड़ा,कोई बात हो गयी थी इसलिए।”

“मेरे पास क्यों आई हो…………। और अच्छा होगा की तुम अपने घर वापस लौट जाओ,हो सकता है की कोई बड़ी बात हो पर घर से अच्छा कुछ नही होता।”

शीतल,राज के सामने रोने लगी वो रोते हुए बोली-“मैं अब घर नही जा सकती मैं तुम्हारे भरोसे हूँ प्लीज़ मेरी मदद करो। ”

शीतल ने राज को एक गहरी सोच में डुबो दिया था। वो चाहकर भी उसकी कोई मदद नही कर सकता था,उसने खुद दुनिया नही देखी थी।

“मुझे माफ़ करना मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता,मैं तुम्हे लेकर कहाँ जाऊँगा?” राज ने कहा।

“मुझे कहीं भी ले चलो,अगर कोई जगह ना हो तो मुझे ले जाकर बेच दो या फिर मेरे साथ तुम कुछ भी करो मैं कुछ नही कहूँगी,ज़िंदगी तो बर्बाद होगी ही क्यों ना तुम ही कर दो,” शीतल ने राज की ओर देखे बिना कहा।

राज कुछ नही बोला वो उसे देखता ही रह गया,एक लड़की अपने को बेचने की बात कैसे कर सकती है ? लड़किया तो इससे बेहतर मरना पसंद करती हैं और ये ऐसी बात कर रही है।

“क्या हुआ ? कुछ बोल क्यों नही रहे हो, मदद नही कर सकते हो तो कुछ ग़लत ही कर दो,कुछ तो करने की हिम्मत जुटा लो ग़लत या मदद।”

राज फिर भी कुछ नही बोला वो शीतल का चेहरा ही देखता रह गया,उसकी आँखो से आँसू बहे जा रहे थे,उसके मासूम से चेहरे को देखकर कोई भी पिघल सकता था। राज अपनी बाइक लाया और उसे बैठने का इशारा किया,शीतल बिना सोचे समझे तुरंत बैठ गयी। राज उसे अपने घर ले गया,घर पहुँच कर उसने शीतल को बाहर ही खड़े रहने को कहा और खुद अंदर चला गया। उसने अपनी माँ को सारी बात बताई और कहा कि मम्मी उसे कुछ दिन के लिए यहाँ रहने दो,एक दो दिन में वो खुद चली जाएगी।
 
उसकी माँ नही मानी बोली-“मैं किसी घर से भागी हुई लड़की को अपने घर में नही रख सकती। ”

“मम्मी,वो ऐसी लड़की नही है जैसा आप समझ रही हैं,”राज ने कहा।

“क्या तुम उससे प्यार करते हो और शादी करना चाहते हो?”उसकी माँ ने पूछा।

“नही,मैं उससे सिर्फ़ 4—5 बार ही मिला हूँ,”राज ने कहा।

“उससे कह दो की यहाँ से चली जाए,वो यहाँ नही रह सकती,”उसके पापा ने कहा।

“पर पापा वो कहाँ जाएगी,बाहर उसकी ज़िंदगी भी खराब हो सकती है,”राज ने कहा।

“कहीं भी जाए पर इस घर में उसके लिए कोई जगह नही है और तुम उसे यहाँ लेकर ही क्यों आए मुझे तो लगता है कि उसने तुम्हारे लिए ही घर छोड़ा है,” उसकी भाभी ने कहा।

“भाभी,ऐसा कुछ नही है मैं सिर्फ़ उसकी मदद करना चाहता हूँ और कुछ नही,”राज ने कहा।

“किसी की मदद करने के लिए तुम उसे घर उठा लाओगे,क्या ये घर कोई धर्मशाला है,”उसके पापा ने कहा।

“पापा बचपन से आप लोग ही दूसरों की मदद करना हमें सिखाते हैं और जब कोई किसी मदद करने की कोशिश करता है तो सबसे पहले उसके घरवाले ही उसके खिलाफ हो जाते हैं..............। मैं उसे यहाँ से जाने को नही कह सकता वो मुझ पर भरोसा करती है और मैं उसका भरोसा नही तोड़ूँगा,”राज ने कहा।

“तो फिर ठीक है तुम भी ये घर छोड़ कर चले जा,”उसके पापा ने कहा।

“मैं घर से क्यों जाऊँ ? मुझे समझ है की बिना आप लोगों के मेरी कोई पहचान नही है।”

“अगर घर में रहना है तो तुम उस लड़की को जाने को कह दो,नही तो तुम भी घर छोड़ कर चले जाओ,”उसके पापा ने कहा।

“मैं उससे जाने को नही कह सकता ना ही मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ।”

“बेटा समझने की कोशिश करो लोग क्या कहेंगे,”उसकी माँ ने कहा।

“आप मुझे समझिए मम्मी,सिर्फ़ एक दो दिन की बात है कौन सा मैं उससे शादी करने को कह रहा हूँ,”राज ने कहा।

“हमें कुछ नही समझना है तुम उसे लेकर यहाँ से चले जाओ,”उसके पापा ने कहा।

राज थोड़ी देर सोचता रहा फिर अपने कमरे में गया और अपने सर्टिफिकेट्स लेकर घर से जाने लगा उसकी माँ ने रोकना चाहा पर कुछ सोच कर वो भी कुछ नही बोली। सबको उम्मीद थी की वो एक दो दिन में वापस आ जाएगा।
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राज और शीतल पैदल ही वहाँ से चल दिए। शाम के 7 बज चुके थे,दोनो एक-दूसरे से कुछ भी नही बोल रहे थे उन दोनों के बीच खामोशी थी। शीतल को अफ़सोस था की उसकी वजह से किसी और की भी ज़िंदगी बर्बाद हो गयी। वो राज से कुछ बोलना चाहती थी पर राज को कोई बात नही करनी थी,वो चुप-चाप चला जा रहा था। उन दोनों ने रात रेलवे स्टेशन पर बिताने का फ़ैसला किया उन्हें स्टेशन पहुचते-पहुचते रात के 9 बज गये थे। दोनों बहुत ज़्यादा थक गये थे। शीतल के बालों की लटें पसीने की वजह से उसके गालों से चिपक गयीं थीं जो उसकी सुंदरता को और बढ़ा रहीं थी। इतनी अस्त-व्यस्त हालत में भी वो बहुत सुंदर लग रही थी। वहाँ पर भीड़ बहुत कम थी। दोनों एक बेंच पर बैठ गये। शीतल राज से सटकर बैठी लेकिन राज उससे थोड़ा दूर हट गया। शीतल,राज से बात करना चाहती थी लेकिन राज खामोश बैठा रहा। धीरे-धीरे भीड़ और कम होने लगी थी 5-6 लोग ही बचे थे वो भी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे। शीतल ने अपना हाथ राज के हाथ पर रख दिया,राज ने शीतल की ओर देखा और फिर अपने हाथ को हटा लिया,उसकी इस हरकत पर शीतल धीरे से मुस्कुरा दी।

“आपका कोई दोस्त नही है जिससे हमें कोई मदद मिल सके,”शीतल ने पूछा।

राज उसको कुछ देर तक देखता रहा और बिना कुछ कहे नज़रें हटा लीं। कुछ देर तक कोई कुछ नही बोला। रात के 11 बज गये थे दोनों को भूख भी लगी थी।

“मैं बाहर से कुछ खाने के लिए लेकर आता हूँ। इस प्लॅटफॉर्म पर तो कोई दुकान भी नही है,”राज ने कहा और वो वहाँ से चला गया।

शीतल वहीं बैठी रही थोड़ी देर में पूरा प्लॅटफॉर्म खाली हो गया उसे वहाँ कोई भी नही दिख रहा था।

शीतल को बहुत डर लग रहा था,उसे राज का इंतज़ार करते हुए 1 घंटे से ज़्यादा हो गया था। थोड़ी देर बाद उसे कोई आता हुआ दिखाई दिया । उसे लगा की राज है वो शीतल की ओर ही आ रहा था। तोड़ा पास आया तो शीतल को उसका चेहरा साफ दिखाई देने लगा,वो राज नही था वो शीतल के बगल आकर बैठ गया,शीतल दूसरी ओर देखने लगी।

“अकेली हो,”उस लड़के ने पूछा।

शीतल कुछ नही बोली।
वो शीतल से सटकर बैठ गया। शीतल तुरंत उठ खड़ी हुई और वहाँ से चलने लगी। उसने महसूस किया की वो भी उसके पीछे-पीछे आ रहा है,वो और तेज़ी से चलने लगी। डर के कारण उसने एक बार भी पीछे मुड़ कर नही देखा। उसे अहसास भी नही हुआ की वो स्टेशन से काफ़ी दूर आ गयी थी। जब मुङ कर पीछे देखा तो पाया की पीछे कोई नही था उसमें वापस लौटने की हिम्मत नही थी लेकिन राज के लिए वो वापस स्टेशन की ओर लौट गयी। स्टेशन पर कोई नही था वो फिर से उसी बेंच पर बैठ कर राज का इंतज़ार करने लगी। आधा घंटा हो गया लेकिन राज नही आया। शीतल उसी लड़के के बारे में सोच कर रोने लगी पर वहाँ ना कोई उसका रोने की आवाज़ सुनने वाला था ना , ही उसके आँसू पोछने वाला। थोड़ी देर में राज वापस आ गया,लेकिन उसने भी शीतल से कुछ नही कहा और खाना उसके सामने रख दिया। राज को देखकर शीतल कमजोर पड़ गयी उसका रोना और तेज हो गया,वो चाहती थी राज उसे चुप कराए उसे अपने कंधे का सहारा दे लेकिन राज ने ऐसा कुछ भी नही किया उसने तो उससे कुछ बोला ही नही। थोड़ी देर में शीतल खुद ही चुप हो गयी। उसने खाना खाया और वहीं सो गयी। सुबह जब उसकी आँख खुली तो उस स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। राज पहले से ही जाग रहा था।

“तुम हाथ-मुँह धुल लो,हमें कोर्ट चलना है,”राज ने कहा।

“कोर्ट किसलिए?”शीतल ने पूछा।

“चलो,बाद में बताएँगे,”राज ने कहा।

कोर्ट जाने के रास्ते में शीतल ने राज से कहा-“आपने मुझे बताया नही की हम कोर्ट क्यों जा रहे हैं।”

“शादी करने के लिए,”राज ने कहा।

“शादी…। ,आप मुझ से शादी करेंगे?”शीतल ने पूछा।

“हां,मैं तुम्हारे साथ इस तरह नही रह सकता,”राज ने कहा।

“पर आप तो कहते थे की आप 27-28 साल से पहले शादी नही करेंगे,”शीतल ने कहा।

“तब हालात कुछ और थे आज कुछ और,”राज ने कहा।

शीतल चुप हो गयी।

“तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं?”राज ने पूछा।

“200 रुपये हैं,और आपके पास ?”

“500,तुम्हारे पास जो हैं वो मुझे दे दो।”

“शीतल ने पूरे रुपये राज को दे दिए।”

दोनो ने कोर्ट में शादी कर ली। जो रुपये थे उन लोगो के पास , वो भी खर्च हो गये थे। दोनों अब पति-पत्नी थे। दिन के 12 बज रहे थे और दोनों ने सुबह से कुछ भी नही खाया था।

“अभी हमें रहने के लिए कोई जगह ढूढ़नी है,”शीतल ने कहा।

“तुम अपने लिए कोई काम ढूँढ लो और मैं अपने लिए कोई काम ढूढ़ने जाता हूँ,”राज ने कहा।

“मैं किसी रूम का पता करती हूँ,काम तुम ढूढों………। मुझे भूख भी लगी है,”शीतल ने कहा।

“पैसे तो हैं नही………………… ये जो तुमने कान में बाली पहनी है सोने की है?”राज ने पूछा।
 
“हाँ,”शीतल ने कहा और अपनी बाली उतार कर दे दी। कुछ देर में राज उसे बेच कर 2000 रुपये ले आया। दोनो ने किसी होटल में खाना खाया और स्टेशन पर मिलने का तय कर दोनों अलग-अलग चल दिए।

शाम को दोनों वहीं उसी स्टेशन की उसी बेंच पर फिर से मिले।

“कोई काम मिला?”शीतल ने पूछा।

“हाँ,एक शॉप पर डाटा एंट्री करने का काम मिला है 1500 महीने पर,”राज ने कहा।

“अच्छा है! मुझे एक रूम का पता चला है,मैंने अभी देखा नही है,किराया 400 है और इससे सस्ता मिलना बहुत मुश्किल है,”शीतल ने कहा।
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3.

उन्होने उस रूम को किराए पर लिया 400 रुपये एड्वान्स में दे दिए। उनके पास अब 1300 रुपये बचे थे। कमरे की हालत बहुत खराब थी,उसे देख कर शीतल को बहुत अफ़सोस हो रहा था की उसने घर क्यों छोड़ा ? उसने कभी नही सोचा था की उसे शादी के बाद इस तरह से ऐसे घर में रहना होगा। उसने तो ये भी नही सोचा था की उसे इस तरह से शादी करनी पड़ेगी।

उस घर में एक ही कमरा था और उसी से जुड़ा बाथरूम जिसका दरवाजा खराब हालत में था। ना तो पानी की कोई व्यवस्था थी ना ही बिजली की।

“आप बाजार से झाड़ू ले आओ,”शीतल ने कहा।

“और कुछ लाना है,”राज ने पूछा।

“अभी सिर्फ़ झाड़ू लाओ,बाकी बाद में,”शीतल ने कहा।

राज एक घंटे बाद झाड़ू और थोड़ा खाना ले आया। दोनो ने खाना खाया। शीतल ने पूरे कमरे को अच्छे से साफ किया। उनके पास बिछाने के लिए भी कुछ नही था इसलिए वो ऐसे ही फर्श पर बैठ गये।

“तुमने घर क्यों छोड़ा था?”राज ने पूछा ।

“मेरा इरादा घर छोड़ने का नही था , मैं तो अपनी बुआ से नाराज़ थी। मैंने सोचा था की मैं अपनी किसी दोस्त के घर रुक जाऊँगी और जब बुआ घर से चली जाएँगी तभी घर जाऊँगी, पर पता नही कैसे मैं तुम्हारे पास चली आई? लेकिन आप ने मेरे लिए घर क्यों छोड़ दिया?”शीतल ने कहा।

“क्योंकि तुम बहुत ही मासूम और पागल हो और अगर मैं तुम्हारा साथ नही देता तो तुम कुछ भी कर सकती थी,किसी के साथ कहीं भी जा सकती थी। तुम ग़लत सही कुछ नही सोचती हो। तुमने मुझे खुद को इस तरह से सौंप दिया था जैसे की तुम कोई खिलौना हो,”राज ने कहा।

“सिर्फ़ मासूम हूँ,सुंदर नही हूँ,”शीतल ने मज़ाक में पूछा।

“बहुत ज़्यादा सुंदर हो,”राज ने कहा।

“शीतल हँस दी और हँसते-हँसते उसकी आँखें नम हो गयी , वो रोने लगी।”
“मैंने तुम्हारी भी जिंदगी बर्बाद कर दी,”शीतल ने कहा।

“नही……,तुम अपने आप को दोष मत दो इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नही है। और तुम ऐसा क्यों सोचती हो की हम बर्बाद हो गये हैं। अभी पूरी जिंदगी बाकी है कुछ तो करेंगे ही,”राज ने कहा।

शीतल ने अपना सिर राज के कंधे पर रख दिया और राज के एक हाथ को कसकर पकड़ लिया। राज ने कुछ नही कहा और शीतल इसी तरह रोती रही।

“शीतल…,मैंने तुम्हारे लिए अपना घर छोड़ा है,तुम मुझसे वादा करो की तुम कभी भी मुझे छोड़ कर नही जाओगी,”राज ने कहा।

“कभी नही, मैं आपका साथ कभी नही छोड़ूँगी,” शीतल ने कहा।

रात के 1 बज गये थे कुछ देर वो इसी तरह से बातें करते रहें और फिर शीतल उठी और अपना दुपट्टा फर्श पर बिछा दिया।

“आप इस दुपट्टे पर सो जाइए,”शीतल ने कहा।

तुम उस पर सो जाओ मैं ऐसे ही ठीक हूँ। राज ने कहा और वो फर्श पर ही सो गया,शीतल कुछ देर सोचती रही फिर वो उस दुपट्टे पर सो गयी।
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सुबह शीतल की नींद जल्दी खुल गयी,राज अभी भी सो रहा थ। वो राज के सिर पर हाथ फिराने लगी जिससे राज की नींद खुल गयी।

“ये क्या कर रही हो?”राज ने पूछा।

“कुछ नही……। आपको काम पर नही जाना है,”शीतल ने कहा।

“ऐसे ही जाऊँ,यहाँ तो पानी भी नही है,”राज ने कहा।
 
“यहाँ से थोड़ी दूरी पर एक नल है आप वहाँ हाथ-मुँह धुल लो………………। आप के पास जो रुपये हैं उनसे बाल्टी,मग और कुछ समान लेते आना,”शीतल ने कहा।

“रुपये तुम रख लो और जो समान खरीदना हो तुम खरीद लेना,मुझे आने में देर हो सकती है।”

एक घंटे बाद राज कम पर चला गया और थोड़ी देर बाद शीतल ने भी अपने कपड़ों से धूल साफ की और वो भी बाहर किसी काम की तलाश में चल दी दरवाजे पे ताला भी नही लगाया,ताला था भी तो नही जो लगाती ना ही कोई समान था जो चोरी हो जाता,सिवाय झाड़ू के।

शीतल शाम 7 बजे तक घर आ गयी लेकिन राज रात 10 बजे घर आया।

“आप बहुत देर से आए और आपने दिन में कुछ खाया था या……………,” शीतल ने पूछा।

“खाया था,ये 200 रुपये रख लो,”राज उसे रुपये पकड़ाते हुए कहा।

“पर आपको तो महीने के अन्त मे पेमेंट मिलनी थी ,फिर ये कैसे…?”

“मैंने एक जगह मज़दूरी भी की थी,और तुम बताओ?”राज ने पूछा।

“मैं कुछ बर्तन,बाल्टी ,मग और मोमबत्ती ले आई हूँ। काम भी बहुत जगह मिल रहा था पर लोग अच्छे नही मिल रहे थे,सब की नज़रें बहुत खराब थीं,”शीतल ने कहा।

“तो फिर,अच्छे लोगों का मिलना भी बहुत मुश्किल है।”

“मैंने एक कॉल सेंटर में बात की है , एक-दो दिन में वो बता देंगे,”शीतल ने कहा।

“अँग्रेज़ी अच्छी है क्या?”राज ने पूछा।

“हाँ,मैं सिटी टॉपर हूँ।”

“सच में।”

“हाँ।”

“तुमने कुछ खाया आज?” राज ने पूछा।

“हाँ,थोड़ा बहुत खाया था।”

कुछ रुककर शीतल फिर बोली-“मुझे अकेले डर लगता है। तुम थोड़ा जल्दी आया करो। ”

राज ने कुछ नही कहा और चुप-चाप फर्श पर सो गया। लेकिन शीतल नही सोई उसने कॉपी और पेन उठाया (जो उसने सुबह खरीदा था)और मोमबत्ती की रोशनी में कुछ लिखने लगी। कुछ देर तक वो इसी तरह कुछ लिखती रही फिर अपने दुपट्टे को बिछाकर सो गयी।

सुबह जब राज काम पर जाने लगा तो शीतल ने उसे कुछ रुपये देते हुए कहा-“तुम अपने लिए कपड़े खरीद लेना। ”

राज ने रुपये लिए और बिना कुछ कहे चला गया। शीतल को बहुत दुख होता था जब राज उसकी बात का जवाब नही देता था पर वो राज से कुछ नही कहती थी। वो सोचती थी की मैं इतनी सुंदर हूँ लेकिन राज को तो कोई फ़र्क ही नही पड़ता राज की जगह कोई और होता तो मेरे साथ पता नही क्या करता पर राज तो मुझे सही से देखता भी नही मुझसे दूर ही रहा करता ना तो मेरी किसी बात का जवाब देता है ना ही खुद कोई बात करता है। घर में कितनी खुश थी लेकिन अब तो शायद सिर्फ़ रोना ही है।

कुछ दिन में शीतल को भी कॉल सेंटर में जॉब मिल गयी,वो दिन भर काम करते और रात को पढ़ाई उन्होने अब कभी-कभी कॉलेज भी जाना शुरू कर दिया था। राज रात को देर से आता था और शीतल 8 बजे तक आ जाती थी। उन दोनों को एक दूसरे पर विश्वास तो था पर उनके बीच दूरियाँ बहुत बढ़ गयी थीं। शीतल का कोई ऐसा दिन नही जाता था जिस दिन वो रोती ना हो वो चाहती थी की राज उसके दुख को समझे लेकिन राज के पास शीतल के लिए वक्त नही था । शीतल रोती भी बहुत ज़्यादा थी। उन्हें घर छोड़े दो महीने हो गये थे अब हालात कुछ बेहतर थे लेकिन अब भी बहुत- सी चीज़ों की कमी थी। राज सुबह 7 से रात 10 बजे तक काम करता था और शीतल सुबह 8से रात 8बजे तक। इतना काम करने के बाद भी दोनों रात-रात भर जाग कर पढ़ाई करते थे।

“तुम कल छुट्टी ले लो,”शीतल ने कहा।

“क्यों?”

“मैं सोच रही थी की कल कहीं बाहर चलते। हर रोज़ इतनी मेहनत करते-करते मैं थक गयीं हूँ बाहर चलेंगे तो शायद थोड़ा मन हल्का हो जाए,”शीतल ने कहा।
 
“मेरे पास तुम्हारे फालतू कामों के लिए वक्त नही है और तुम जानती हो कि हमें रुपयों की कितनी ज़रूरत है फिर भी तुम इस तरह की बात कर रही हो,”राज ने कहा।

“पैसा ही सब कुछ नही होता। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, मुझ पर भी ध्यान दिया करो,” शीतल ने कहा।

“तो क्या करूँ,मैं तुम से प्यार नही करता ना ही मुझे तुमसे शादी करनी थी वो हालात ऐसे हो गये थे जो मुझे तुमसे शादी करनी पड़ी। तुम्हे जो करना हो वो करो रोना है तो रोओ,हँसना है तो हँसो,मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता,”राज ने कहा और घर से बाहर चला गया।

शीतल वहीं की वहीं खड़ी रही,उसके पैर वहीं जम गये,उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे। थोड़ी देर बाद उसने खुद ही अपने आँसू पोछे और तैयार होकर कॉल सेंटर चली गयी।

शाम को शीतल तो जल्दी आ गयी पर राज रोज़ की तरह देर से ही आया। शीतल उस समय पढ़ रही थी जब राज आया।

“आज कॉल सेंटर गयी थी?”राज ने पूछा।

“हाँ।”

“आज खाना क्या बनाया है?”राज ने फिर पूछा।

“कुछ नही।”

“राज कुछ नही बोला वो खुद ही खाना बनाने लगा।”

“मुझे चार दिन बाद लखनऊ जाना है,”शीतल ने कहा।

“किसलिए?”

“मेरा ssc का इंटरव्यू है,रिटन में मैं पास हो गयी हूँ,”शीतल ने कहा।

“अकेले चली जाओगी या फिर मुझे……?”

“आप भी साथ चलना।”

कुछ देर में राज ने खाना बना लिया,उसने अपना और शीतल का खाना एक प्लेट में लिया और शीतल के पास आकर बैठ गया।

“लो खाना खाओ,”राज ने कहा।

“मुझे नही खाना।”

“क्यों?”

“भूख नही है,”शीतल ने कहा।

“सुबह का गुस्सा अभी शांत नही हुआ,”राज ने कहा।

शीतल कुछ नही बोली,किताब बंद करके रख दी और लेट गयी।

राज ने भी शीतल से कुछ नही कहा,उसने खाना खाया और वो लेट कर सो गया।
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4 दिन बाद शीतल का इंटरव्यू था इसलिए वो कॉल सेंटर की जॉब छोड़कर घर पर इंटरव्यू की तैयारी करने लगी।

शीतल इंटरव्यू में पास हो गयी और उसे गवर्नमेंट जॉब मिल गयी। शुरुआत में 7000 रुपये महीने की पेमेंट थी। शीतल को जॉब करते 1 महीने हो गये और उसे पहली पेमेंट मिल गयी।

“तुम अब जल्दी आया करो,”शीतल ने कहा।

“क्यों ?”

“मैं अकेले घर में बोर हो जाती हूँ और अब तो पैसों की भी कोई दिक्कत नही है,”शीतल ने कहा।

“कोशिश करूँगा,वैसे तुम्हारे ऑफिस में कितने लोग काम करते हैं?”राज ने पूछा।

“बहुत लोग काम करते हैं पर मेरी उम्र की लड़कियाँ दो-तीन ही हैं और सब बहुत सीनियर हैं। एक-दो बहुत गंदे हैं मुझे बहुत बुरी नज़र से देखते हैं,”शीतल ने कहा।

राज कुछ नही बोला।

“तुम इतना कम क्यों बोलते हो?”शीतल ने पूछा।

“थोड़ी बड़ी हो जाओ,तुम में बचपना बहुत है,”राज ने कहा।

शीतल हँस दी पर कुछ बोली नही। बहुत दिन बाद राज ने उससे इतनी प्यार से बोला था। उन्हे घर छोड़े 5 महीने हो गये थे लेकिन उनके बीच अब भी उतनी दूरियाँ थी जितनी की पहले।

राज घर जल्दी आने लगा,दोनों 7 बजे तक घर आ जाते थे। साथ में खाना बनाते और साथ में खाते पर एक-दूसरे से बात बहुत कम करते थे।

“कल मेरे ऑफिस की छुट्टी है,कहीं बाहर चलें,”शीतल ने कहा।

“नही मेरा मन नही है,”राज ने कहा।

शीतल का मन उदास हो गया। वो गुस्से से बोली-“तुम्हारा मन ही कब करता?”

“मुझे अभी बहस नही करनी है,”राज ने कहा।

“पर मुझे अभी बात करनी है,”शीतल ने कहा और वो रोने लगी।

राज ने कुछ नही कहा।
“माना की हमने शादी किसी मजबूरी में की लेकिन की तो,मैं तुम्हारी पत्नी हूँ तुम मुझ पर ध्यान क्यों नही देते,”शीतल ने कहा।

“मैं कोई फर्ज़ नही निभा सकता,”राज ने कहा।

“तो मुझ से शादी क्यों की?क्यों मुझे अपने साथ ले आए?छोड़ देते मुझे वहीं अकेला……………। तुम मुझ से सिर्फ़ इसलिए दूर रहते हो ताकि तुम मुझसे प्यार ना करने लगो जैसे मैं……,” शीतल बोलते –बोलते बिल्कुल चुप हो गयी।

“शीतल , तुम बच्चों की तरह ज़िद क्यों करती हो?”राज ने कहा।
 
“मैं बच्ची ही हूँ , मुझ में बड़ों जैसी अक्ल नही है। मैंने एक ग़लती की घर छोड़ने की क्या उस के लिए मैं अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दूँ?” शीतल ने रोते हुए कहा।

“बाहर घूमने से क्या जिंदगी आबाद हो जाएगी?”राज ने कहा।

“आबाद नही पर मन तो हल्का हो जाएगा………………,इतने दिन से दिल पर जो बोझ है वो तो………………।” रोने की वजह से शीतल इसके आगे नही बोल सकी।

राज शीतल के पास आया और आँसू पोछे और उसे गले से लगा कर बच्चों की तरह चुप कराने लगा। राज ने पहली बार शीतल को इस तरह से छूआ था। शीतल कुछ नही बोली और कुछ देर में वो सो गयी।

सुबह शीतल राज से कुछ नही बोली। राज ही बोला “ कहीं चलना है।”

“नही,” शीतल ने कहा।

“सर्दी बहुत पड़ रही चलो कुछ सर्दी के कपड़े ले आते हैं,” राज ने कहा।

शीतल फिर भी कुछ नही बोली।

तुम कुछ बोल क्यों नही रही,बाद में कहोगी की मैं कुछ नही बोलता, राज ने कहा।

“तुम जाओ मेरी तबियत ठीक नही है,” शीतल ने कहा।

“क्या हुआ तुम्हें…………? झूठ बोल रही हो……………गुस्सा हो मुझसे।”

“कुछ नही हल्का बुखार है। तुम जाओ और मेरे लिए भी कपड़े लेते आना। मैं गुस्सा नही हूँ,” शीतल ने कहा और हल्का सा मुस्कुरा दी।

राज चला गया,शीतल दिन भर घर पर ही रही। रात के 8 बज गये थे लेकिन राज अभी तक नही आया था। शीतल उसका इंतज़ार करते-करते सो गयी। करीब 10 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया शीतल ने दरवाजा खोला तो बाहर राज नही था कोई और था।

“ये राज का घर है,”उस आदमी ने पूछा।

“हाँ,पर आप कौन?”शीतल ने पूछा।

“राज मेरे यहाँ काम करता है। उसका एक्सिडेंट हो गया है,”उस आदमी ने कहा।

“क्या?किस हॉस्पिटल में एडमिट है वो?”शीतल ने पूछा।
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