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“खाना बनाना है,” शीतल ने कहा,उसने शायद ये बात खुद से कही थी।
“मैं बना लूँगा,” राज ने कहा।
शीतल ने एक पल के लिए अपनी पलकें उठा कर राज की ओर देखा,उसका ध्यान कहीं और था पर नज़रें शीतल के हाथ पर थी जिसे उसने अपने दूसरे हाथ से पकड़ रखा था।
रात को दोनों ने खाना खाया और फिर लेट गये।
अगले दिन सुबह 8 बजे राज काम पर चला गया,शीतल को कहीं नही जाना था वो घर पर ही थी। उसने पूरा दिन टी.वी. देखकर बिताया। रात को राज 10बजे वापस घर आया।
“शीतल,खाना क्या बनाया है?” राज ने पूछा।
“कुछ नही,” शीतल ने कहा।
“क्यों?। तबियत ठीक नही है क्या?” राज ने पूछा।
“ठीक है,” शीतल ने कहा।
“फिर क्यों?”
“मैं कोई नौकरानी नही हूँ,” शीतल ने कहा।
“पर शीतल………” राज कुछ कहने जा रहा था पर चुप हो गया,बिना कुछ कहे लेट गया।
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उनका ये रोज़ का हो गया था,राज बाहर ही खाना ख़ाता था। शीतल घर पर कभी कुछ नही बनाती थी और अगर बनाती थी तो सिर्फ़ अपने लिए जब राज घर पर नही होता था।
राज को कई बार देर हो जाती थी, जिस वजह से उस रात वो किसी होटल नही जा पाता था और बिना कुछ खाए सो जाता था पर शीतल को कभी भी अहसास नही होने देता था की वो भूखा है। शीतल को तो जैसे राज से कोई मतलब ही नही रह गया था।
एक दिन राज को सुबह जल्दी जाना था उस दिन वो किसी होटल नही जा सका और दिन भर इतना काम था की उसे वक्त नही मिला,रात को भी उसे आते-आते 12बज गये वो होटल नही जा सका उस दिन उसने कुछ भी नही खाया था।
“आज कुछ बनाया है?” राज ने शीतल से पूछा।
“नही,और मुझसे कोई उम्मीद भी नही करना । मैं और लड़कियों की तरह नही हूँ कि अपने पति के लिए सुबह शाम खाना बनाऊँ,उनकी सेवा करूँ,” शीतल ने कहा।
“मैंने ऐसा तो कभी नही कहा तुमसे की तुम मेरे लिए कुछ करो पर इतना तो उम्मीद कर सकता हूँ कि अगर सुबह से भूखा हूँ तो तुम कुछ बना दोगी। अगर मेरे पास समय होता तो मैं कभी तुमसे कुछ नही कहता,” राज ने गुस्से में कहा।
शीतल ने राज को पहली बार इतने गुस्से में देखा था। राज से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नही हुई,वो कुछ नही बोली। राज चुप-चाप लेट गया उसने जूते भी नही उतारे।
शीतल दूसरे कमरे में चली गयी कुछ देर बाद वो वापस आयी,राज सो रहा था,शीतल राज के पास आयी उसके जूते उतारने लगी। शीतल को इस तरह की चीज़े पसंद नही थी पर फिर भी…।
अगले दिन शीतल ने राज के काम पर जाने से पहले खाना बना दिया पर राज कुछ खाए बिना ही चला गया। शीतल ने खाने के लिए कहा लेकिन राज ने कोई जवाब नही दिया।
शीतल ने शाम को भी खाना बनाया पर राज होटल से खा कर आया था। राज के इस तरह के व्यवहार को शीतल के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था। वो खुद राज से नही बोलती थी लेकिन जब राज ने बोलना छोड़ दिया तो उसे बुरा लग रहा था। अब उसे राज की फ़िक्र होने लगी थी। बिन कहे ही वो राज के हर काम करने लगी लेकिन उसका कोई भी काम करना बेकार ही था क्यों कि राज अपना हर काम खुद ही करता था।
“मैं बना लूँगा,” राज ने कहा।
शीतल ने एक पल के लिए अपनी पलकें उठा कर राज की ओर देखा,उसका ध्यान कहीं और था पर नज़रें शीतल के हाथ पर थी जिसे उसने अपने दूसरे हाथ से पकड़ रखा था।
रात को दोनों ने खाना खाया और फिर लेट गये।
अगले दिन सुबह 8 बजे राज काम पर चला गया,शीतल को कहीं नही जाना था वो घर पर ही थी। उसने पूरा दिन टी.वी. देखकर बिताया। रात को राज 10बजे वापस घर आया।
“शीतल,खाना क्या बनाया है?” राज ने पूछा।
“कुछ नही,” शीतल ने कहा।
“क्यों?। तबियत ठीक नही है क्या?” राज ने पूछा।
“ठीक है,” शीतल ने कहा।
“फिर क्यों?”
“मैं कोई नौकरानी नही हूँ,” शीतल ने कहा।
“पर शीतल………” राज कुछ कहने जा रहा था पर चुप हो गया,बिना कुछ कहे लेट गया।
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उनका ये रोज़ का हो गया था,राज बाहर ही खाना ख़ाता था। शीतल घर पर कभी कुछ नही बनाती थी और अगर बनाती थी तो सिर्फ़ अपने लिए जब राज घर पर नही होता था।
राज को कई बार देर हो जाती थी, जिस वजह से उस रात वो किसी होटल नही जा पाता था और बिना कुछ खाए सो जाता था पर शीतल को कभी भी अहसास नही होने देता था की वो भूखा है। शीतल को तो जैसे राज से कोई मतलब ही नही रह गया था।
एक दिन राज को सुबह जल्दी जाना था उस दिन वो किसी होटल नही जा सका और दिन भर इतना काम था की उसे वक्त नही मिला,रात को भी उसे आते-आते 12बज गये वो होटल नही जा सका उस दिन उसने कुछ भी नही खाया था।
“आज कुछ बनाया है?” राज ने शीतल से पूछा।
“नही,और मुझसे कोई उम्मीद भी नही करना । मैं और लड़कियों की तरह नही हूँ कि अपने पति के लिए सुबह शाम खाना बनाऊँ,उनकी सेवा करूँ,” शीतल ने कहा।
“मैंने ऐसा तो कभी नही कहा तुमसे की तुम मेरे लिए कुछ करो पर इतना तो उम्मीद कर सकता हूँ कि अगर सुबह से भूखा हूँ तो तुम कुछ बना दोगी। अगर मेरे पास समय होता तो मैं कभी तुमसे कुछ नही कहता,” राज ने गुस्से में कहा।
शीतल ने राज को पहली बार इतने गुस्से में देखा था। राज से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नही हुई,वो कुछ नही बोली। राज चुप-चाप लेट गया उसने जूते भी नही उतारे।
शीतल दूसरे कमरे में चली गयी कुछ देर बाद वो वापस आयी,राज सो रहा था,शीतल राज के पास आयी उसके जूते उतारने लगी। शीतल को इस तरह की चीज़े पसंद नही थी पर फिर भी…।
अगले दिन शीतल ने राज के काम पर जाने से पहले खाना बना दिया पर राज कुछ खाए बिना ही चला गया। शीतल ने खाने के लिए कहा लेकिन राज ने कोई जवाब नही दिया।
शीतल ने शाम को भी खाना बनाया पर राज होटल से खा कर आया था। राज के इस तरह के व्यवहार को शीतल के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था। वो खुद राज से नही बोलती थी लेकिन जब राज ने बोलना छोड़ दिया तो उसे बुरा लग रहा था। अब उसे राज की फ़िक्र होने लगी थी। बिन कहे ही वो राज के हर काम करने लगी लेकिन उसका कोई भी काम करना बेकार ही था क्यों कि राज अपना हर काम खुद ही करता था।