hotaks444
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अपडेट 11
"मेरे जागने का कारण कुच्छ और है निक्की जी." रवि घंभीर स्वर में बोला - "मैं आपकी माताजी के बारे में सोच रहा था."
"ओह्ह...!" मा के बारे में सुनकर निक्की का चेहरा लटक गया - "तो फिर शायद मैं आपको डिस्टर्ब कर रही हूँ."
"नही ऐसा भी नही है." रवि झेन्प्ते हुए बोला. और निक्की की ओर देखने लगा. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो निक्की से क्या कहे. उसका इस वक़्त उसके कमरे में होने से उसे बहुत घबराहट हो रही थी. वो एक शभ्य इंसान था, उसे अपना मान सम्मान बहुत प्यारा था. वो नही चाहता था कि कोई निक्की को इस वक़्त उसके कमरे में देखे और खा-मखा उसकी इज़्ज़त की धज्जिया उड़े. पर वो सीधे मूह निक्की को जाने के लिए भी नही कह सकता था. ऐसा करना आचरण के खिलाफ था.
निक्की सर झुकाए अपनी सोचों में गुम थी. उसे भी समझ में नही आ रहा था कि वो रवि से असली बात कैसे कहे. वैसे तो वो बहुत खुले स्वाभाव की थी, किसी को कुच्छ कहने में ज़रा भी नही हिचकिचाती थी. पर यहाँ बात और थी. एक तो वो रवि की शालीनता से डर रही थी, दूसरी ये कि वो इस वक़्त अपने ही घर में थी. उसकी एक ग़लती उसे उसी के घर में अपमानित कर सकती थी.
"आपके घर में कौन कौन हैं?" निक्की को कुच्छ ना सूझा तो उसके परिवार के बारे में पुच्छ बैठी.
"मेरी मा और मैं." रवि हौले से मुस्कुराया.
"और आपकी बीवी?" निक्की अपनी नज़रें उसके चेहरे पर गढ़ाती हुई बोली.
"बीवी अभी तक आई नही. अर्थात मैने अभी तक शादी नही की"
"ह्म्म्म....तो महाशय अभी तक गर्लफ्रेंड से ही काम चला रहे हैं." निक्की छेड़खानी वाले अंदाज़ में बोली, लेकिन उसकी बातों में कामुकता का मिश्रण था.
रवि निक्की की स्पास्टवदिता से चौंक उठा. उसे अंदाज़ा नही था कि निक्की इतनी फ्रॅंक बात कर सकती है. वो झेप्ते हुए बोला - "मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है."
"क...क्या?" निक्की का मूह भाड़ सा खुला. हालाँकि ये जानकार उसके मन में हज़ारों लड्डू फूटे थे. पर चौंकने का नाटक करती हुई बोली - "मैं नही मानती. आप इतने खूबसूरत है, आपकी कोई ना कोई गेर्ल फ्रेंड तो ज़रूर होगी. हां....आप मुझे ना बताना चाहें तो बात और है."
"भला आपसे झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा?" रवि ने जवाब दिया.
"हो सकता है, आप इसी बहाने मुझसे बचना चाहते हों." निक्की असली विषय पर आती हुई बोली.
"म....मैं कुच्छ समझा नही." रवि हकलाया. - "मैं भला आप से क्योन्कर बचना चाहूँगा? और फिर...किस लिए?"
"तो आप मुझसे बचना नही चाहते?" निक्की उसकी आँखों में देखती हुई बोली -"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़े हैं? यहाँ मेरे पास आकर बैठिए."
रवि का दिमाग़ चकरा गया. उसे कुच्छ भी जवाब देते नही बना. - "निक्की जी आप क्या बोल रही हैं मेरे समझ में कुच्छ भी नही आ रहा है. आप जो भी कहना चाहती हैं साफ साफ कहिए."
"इतने भोले मत बनिये रवि जी." निक्की खड़ी होती हुई बोली - "क्या आप इतना भी नही समझ सकते कि मैं इस वक़्त यहाँ क्यों आई हूँ? लेकिन अगर आप साफ साफ ही सुनना चाहते हैं तो सुनिए." निक्की ये बोलते हुए अपने तन पे लिपटी चादर एक झटके में उतार कर फेंकी दी - "मैं आपके साथ सेक्स करना चाहती हूँ."
रवि अवाक ! वो फटी फटी आँखों से निक्की को देखता रहा. उसने सपने में भी नही सोचा था कि ये लड़की इतनी बेशर्मी के साथ उसके साथ सेक्स करने की बात कर सकती है. उसकी नज़रें उसके चेहरे से फिसल कर नीचे उतरी. उसकी नज़रें निक्की के बूब्स पर पड़ी तो उसके बदन पर चींतियाँ सी रेंग उठी. निक्की के पारदर्शी लिबास में कुच्छ भी नही छीप रहा था. उपर का सारा हिस्सा स्पस्ट दिखाई दे रहा था. उसने अंदर ब्रा भी नही पहनी थी. उसके तने हुए बूब्स और उसके उपर भूरे रंग के चुचक सॉफ दिखाई दे रहे थे. नाइटी इतनी छोटी थी कि सिर्फ़ कमर को ढँक पा रही थी, पर वो ढँकना ना ढँकना एक जैसा ही था. उसकी पैंटी नाइटी के अंदर से भी सॉफ दिखाई दे रही थी. रवि की निगाहें उसकी फूली हुई चूत पर पड़ी तो मूह से "आहह" निकलते निकलते बची. उसकी भारी भारी जांघे रवि के अंदर छुपी उसकी युवा भावनाओ को हवा दे रही थी. उसने अपने अंदर कुच्छ पिघलता सा महसूस किया. उसके कानो की धमनियों से गरम धुआ सा निकलने लगा. उसे अपने पावं की शक्ति कम होती महसूस हुई. इससे पहले कि वो चक्कर खाकर गिर पड़े. उसने अपना चेहरा घुमा लिया. और धीरे से चलते हुए अपने बिस्तर तक पहुँचा और धम्म से बैठ गया.
"क्या हुआ रवि जी? निक्की उसके पास आकर बोली.
निक्की की आवाज़ से रवि ने गर्दन उठाई, उसकी नज़रें निक्की के नज़रों से मिली. उसकी आँखें नशे की खुमारी से भरी हुई थी. निक्की उसे देखती हुई अपने एक हाथ से अपनी जाँघो को सहलाने लगी तो दूसरी हाथ को अपने बूब्स पर फिराने लगी.
रवि के माथे से पसीना छूट पड़ा. उसका लंड पाजामे के अंदर से ही फुफ्करे मारने लगा. उसने अपनी निगाहें झुका ली.
"क्या हुआ रवि? क्यों मुझसे नज़रें चुरा रहे हो? क्या मैं अच्छी नही लगती आपको? आप ध्यान से देखो रवि, मेरे अंग अंग में हुश्न भरा हुआ है. मेरे बूब्स को देखो, ये कितने कड़क हैं. इन्हे छूकर हाथ लगाकर इसकी कठोरता को महसूस करो रवि." निक्की बोली और रवि का हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रखना चाही. पर रवि ने अपना हाथ झटक लिया.
"तुम यहाँ से जाओ निक्की. तुम इस वक़्त होश में नही हो. हम सुबह बात करेंगे." रवि उसकी ओर से मूह फेर्कर बोला.
निक्की को उसकी बेरूख़ी पर तेज गुस्सा आया पर वो अपने गुस्से को पी गयी. वो आगे बढ़ी और उसके पीठ से लिपट गयी. - "रवि मुझसे मूह ना मोडो, एक लड़की अपनी लोक लाज उतार कर जब किसी मर्द के पास आती है तब वो बहुत मजबूर होकर आती है. ऐसी दशा में उस मर्द के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो उसके भावनाओ की लाज रखे. क्या तुम मेरा प्रेम परस्ताव को ठुकराकर मेरा अपमान करना चाहते हो?"
"ये प्रेम नही वासना है." रवि एक झटके से अलग होता हुआ बोला -"तुम जिसे प्रेम कह रही हो वो प्रेम नही, प्रेम और वासना में बहुत अंतर है."
निक्की का पारा चढ़ा, वो बिफर कर बोली - "क्या अंतर है?"
"प्रेम और वासना में ये अंतर है कि प्रेम त्याग चाहता है और वासना पूर्ति." रवि ने जवाब दिया. "प्रेम दो शरीरों के मिलन के बिना भी पूरा होता है, लेकिन वासना दो शरीरों के मिलन के बाद पूरी होती है. पर शायद तुम इस फ़र्क को नही समझ सकोगी. लेकिन मैं इस फ़र्क को समझता हूँ. इसलिए मैं कोई भी ऐसा काम नही करूँगा. जिससे कि बाद में मुझे खुद से शर्मसार होना पड़े."
रवि की बातें निक्की को अपने दिल में शूल की तरह चुभती महसूस हुई. रवि के बातें उसके रोम रोम को सुलगाती चली गयी. उसका ऐसा अपमान आज तक किसी ने नही किया था. अपमान तो बहुत दूर की बात है, आज तक किसी में निक्की को इनकार करने की भी हिम्मत नही हुई थी.
निक्की कुच्छ ना बोली, रवि ने उसे कुच्छ भी बोलने लायक छोड़ा ही नही था. वो बस खड़ी खड़ी कुच्छ देर रवि को जलती आँखों से घुरती रही, फिर एकदम से पलटी और दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसने ज़मीन पर पड़ी अपनी चादर भी नही उठाई. उसे ऐसी हालत में बाहर निकलते देख रवि सकपकाया. पर वो कुच्छ कहता उससे पहले ही निक्की उसके कमरे से बाहर जा चुकी थी. वो उसी हालत में बेधड़क गलियारे से गुजरती हुई अपने रूम में पहुँची. रूम में घुसते ही वो बिस्तर पर गिरी और फुट फुट कर रोने लगी. उसका रोना भी लाजिमी था. उसने अपने जीवन में कभी भी हार नही देखी थी. लेकिन आज वह हारी थी. आज वो पहली बार अपनी मर्यादा से गिरकर किसी के आगे दामन फैलाई थी. पर उसे निराशा और अपमान के सिवा कुच्छ ना मिला था. वो अपमानित हुई थी. रवि ने उसके अंदर की औरत का अपमान किया था. वासना में जलती औरत का जब कोई निरादर करता है तो वो औरत घायल शेरनी से भी अधिक ख़तरनाक हो जाती है. वो उस साँप की तरह होती है जिसकी पूंच्छ पर किसी आदमी का पावं पड़ गया हो. वो जब तक अपनी पून्छ पर पावं धरने वाले को डस नही लेती उसे सुकून नही मिलता. ऐसी औरत बदले की भावना में जितना दूसरे का नुकसान करती है उससे कहीं ज़्यादा अपना नुकसान कर लेती है.
निक्की कुच्छ देर बिस्तर पर मूह छिपाये रोती रही. फिर अपना गम हल्का करने के बाद उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने आईने में खुद को देखा. सब कुच्छ वैसा ही था. वही सुंदर शरीर, पहाड़ की तरह सर उठाए उसके उन्नत शिखर, वही समतल चिकना पेट, वही हज़ारो दिलों को पर बिजलियाँ गिराने वाली कमर, वही पैंटी में फूली हुई चूत, वही गोरी गोरी सुडोल जांघे. पर इस वक़्त उसे उसकी सुंदरता, उसके एक एक अंग सब उसे मूह चिढ़ाती नज़र आई. उसकी आँखों से फिर से शोले बुलंद होने लगे. रवि की बातें फिर से उसकी कानो में ज़हर घोलने लगी. वह मुत्ठियाँ भिचती हुई अपने आप में बड़बड़ाई - "मिस्टर रवि, अगर मैने तुम्हे अपने कदमो में नही झुकाया तो मैं ठाकुर की बेटी नही. मैं तुम्हे इतना मजबूर कर दूँगी कि तुम खुद चलकर मेरी पनाह में आओगे. ये निक्की की ज़िद है. तुम्हे झुकना ही होगा." उसके इरादे फौलाद की तरह मजबूत थे. वह घूमी और बिस्तर पर पसर गयी. और चादर ओढकर सोने का प्रयास करने लगी.
"मेरे जागने का कारण कुच्छ और है निक्की जी." रवि घंभीर स्वर में बोला - "मैं आपकी माताजी के बारे में सोच रहा था."
"ओह्ह...!" मा के बारे में सुनकर निक्की का चेहरा लटक गया - "तो फिर शायद मैं आपको डिस्टर्ब कर रही हूँ."
"नही ऐसा भी नही है." रवि झेन्प्ते हुए बोला. और निक्की की ओर देखने लगा. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो निक्की से क्या कहे. उसका इस वक़्त उसके कमरे में होने से उसे बहुत घबराहट हो रही थी. वो एक शभ्य इंसान था, उसे अपना मान सम्मान बहुत प्यारा था. वो नही चाहता था कि कोई निक्की को इस वक़्त उसके कमरे में देखे और खा-मखा उसकी इज़्ज़त की धज्जिया उड़े. पर वो सीधे मूह निक्की को जाने के लिए भी नही कह सकता था. ऐसा करना आचरण के खिलाफ था.
निक्की सर झुकाए अपनी सोचों में गुम थी. उसे भी समझ में नही आ रहा था कि वो रवि से असली बात कैसे कहे. वैसे तो वो बहुत खुले स्वाभाव की थी, किसी को कुच्छ कहने में ज़रा भी नही हिचकिचाती थी. पर यहाँ बात और थी. एक तो वो रवि की शालीनता से डर रही थी, दूसरी ये कि वो इस वक़्त अपने ही घर में थी. उसकी एक ग़लती उसे उसी के घर में अपमानित कर सकती थी.
"आपके घर में कौन कौन हैं?" निक्की को कुच्छ ना सूझा तो उसके परिवार के बारे में पुच्छ बैठी.
"मेरी मा और मैं." रवि हौले से मुस्कुराया.
"और आपकी बीवी?" निक्की अपनी नज़रें उसके चेहरे पर गढ़ाती हुई बोली.
"बीवी अभी तक आई नही. अर्थात मैने अभी तक शादी नही की"
"ह्म्म्म....तो महाशय अभी तक गर्लफ्रेंड से ही काम चला रहे हैं." निक्की छेड़खानी वाले अंदाज़ में बोली, लेकिन उसकी बातों में कामुकता का मिश्रण था.
रवि निक्की की स्पास्टवदिता से चौंक उठा. उसे अंदाज़ा नही था कि निक्की इतनी फ्रॅंक बात कर सकती है. वो झेप्ते हुए बोला - "मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है."
"क...क्या?" निक्की का मूह भाड़ सा खुला. हालाँकि ये जानकार उसके मन में हज़ारों लड्डू फूटे थे. पर चौंकने का नाटक करती हुई बोली - "मैं नही मानती. आप इतने खूबसूरत है, आपकी कोई ना कोई गेर्ल फ्रेंड तो ज़रूर होगी. हां....आप मुझे ना बताना चाहें तो बात और है."
"भला आपसे झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा?" रवि ने जवाब दिया.
"हो सकता है, आप इसी बहाने मुझसे बचना चाहते हों." निक्की असली विषय पर आती हुई बोली.
"म....मैं कुच्छ समझा नही." रवि हकलाया. - "मैं भला आप से क्योन्कर बचना चाहूँगा? और फिर...किस लिए?"
"तो आप मुझसे बचना नही चाहते?" निक्की उसकी आँखों में देखती हुई बोली -"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़े हैं? यहाँ मेरे पास आकर बैठिए."
रवि का दिमाग़ चकरा गया. उसे कुच्छ भी जवाब देते नही बना. - "निक्की जी आप क्या बोल रही हैं मेरे समझ में कुच्छ भी नही आ रहा है. आप जो भी कहना चाहती हैं साफ साफ कहिए."
"इतने भोले मत बनिये रवि जी." निक्की खड़ी होती हुई बोली - "क्या आप इतना भी नही समझ सकते कि मैं इस वक़्त यहाँ क्यों आई हूँ? लेकिन अगर आप साफ साफ ही सुनना चाहते हैं तो सुनिए." निक्की ये बोलते हुए अपने तन पे लिपटी चादर एक झटके में उतार कर फेंकी दी - "मैं आपके साथ सेक्स करना चाहती हूँ."
रवि अवाक ! वो फटी फटी आँखों से निक्की को देखता रहा. उसने सपने में भी नही सोचा था कि ये लड़की इतनी बेशर्मी के साथ उसके साथ सेक्स करने की बात कर सकती है. उसकी नज़रें उसके चेहरे से फिसल कर नीचे उतरी. उसकी नज़रें निक्की के बूब्स पर पड़ी तो उसके बदन पर चींतियाँ सी रेंग उठी. निक्की के पारदर्शी लिबास में कुच्छ भी नही छीप रहा था. उपर का सारा हिस्सा स्पस्ट दिखाई दे रहा था. उसने अंदर ब्रा भी नही पहनी थी. उसके तने हुए बूब्स और उसके उपर भूरे रंग के चुचक सॉफ दिखाई दे रहे थे. नाइटी इतनी छोटी थी कि सिर्फ़ कमर को ढँक पा रही थी, पर वो ढँकना ना ढँकना एक जैसा ही था. उसकी पैंटी नाइटी के अंदर से भी सॉफ दिखाई दे रही थी. रवि की निगाहें उसकी फूली हुई चूत पर पड़ी तो मूह से "आहह" निकलते निकलते बची. उसकी भारी भारी जांघे रवि के अंदर छुपी उसकी युवा भावनाओ को हवा दे रही थी. उसने अपने अंदर कुच्छ पिघलता सा महसूस किया. उसके कानो की धमनियों से गरम धुआ सा निकलने लगा. उसे अपने पावं की शक्ति कम होती महसूस हुई. इससे पहले कि वो चक्कर खाकर गिर पड़े. उसने अपना चेहरा घुमा लिया. और धीरे से चलते हुए अपने बिस्तर तक पहुँचा और धम्म से बैठ गया.
"क्या हुआ रवि जी? निक्की उसके पास आकर बोली.
निक्की की आवाज़ से रवि ने गर्दन उठाई, उसकी नज़रें निक्की के नज़रों से मिली. उसकी आँखें नशे की खुमारी से भरी हुई थी. निक्की उसे देखती हुई अपने एक हाथ से अपनी जाँघो को सहलाने लगी तो दूसरी हाथ को अपने बूब्स पर फिराने लगी.
रवि के माथे से पसीना छूट पड़ा. उसका लंड पाजामे के अंदर से ही फुफ्करे मारने लगा. उसने अपनी निगाहें झुका ली.
"क्या हुआ रवि? क्यों मुझसे नज़रें चुरा रहे हो? क्या मैं अच्छी नही लगती आपको? आप ध्यान से देखो रवि, मेरे अंग अंग में हुश्न भरा हुआ है. मेरे बूब्स को देखो, ये कितने कड़क हैं. इन्हे छूकर हाथ लगाकर इसकी कठोरता को महसूस करो रवि." निक्की बोली और रवि का हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रखना चाही. पर रवि ने अपना हाथ झटक लिया.
"तुम यहाँ से जाओ निक्की. तुम इस वक़्त होश में नही हो. हम सुबह बात करेंगे." रवि उसकी ओर से मूह फेर्कर बोला.
निक्की को उसकी बेरूख़ी पर तेज गुस्सा आया पर वो अपने गुस्से को पी गयी. वो आगे बढ़ी और उसके पीठ से लिपट गयी. - "रवि मुझसे मूह ना मोडो, एक लड़की अपनी लोक लाज उतार कर जब किसी मर्द के पास आती है तब वो बहुत मजबूर होकर आती है. ऐसी दशा में उस मर्द के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो उसके भावनाओ की लाज रखे. क्या तुम मेरा प्रेम परस्ताव को ठुकराकर मेरा अपमान करना चाहते हो?"
"ये प्रेम नही वासना है." रवि एक झटके से अलग होता हुआ बोला -"तुम जिसे प्रेम कह रही हो वो प्रेम नही, प्रेम और वासना में बहुत अंतर है."
निक्की का पारा चढ़ा, वो बिफर कर बोली - "क्या अंतर है?"
"प्रेम और वासना में ये अंतर है कि प्रेम त्याग चाहता है और वासना पूर्ति." रवि ने जवाब दिया. "प्रेम दो शरीरों के मिलन के बिना भी पूरा होता है, लेकिन वासना दो शरीरों के मिलन के बाद पूरी होती है. पर शायद तुम इस फ़र्क को नही समझ सकोगी. लेकिन मैं इस फ़र्क को समझता हूँ. इसलिए मैं कोई भी ऐसा काम नही करूँगा. जिससे कि बाद में मुझे खुद से शर्मसार होना पड़े."
रवि की बातें निक्की को अपने दिल में शूल की तरह चुभती महसूस हुई. रवि के बातें उसके रोम रोम को सुलगाती चली गयी. उसका ऐसा अपमान आज तक किसी ने नही किया था. अपमान तो बहुत दूर की बात है, आज तक किसी में निक्की को इनकार करने की भी हिम्मत नही हुई थी.
निक्की कुच्छ ना बोली, रवि ने उसे कुच्छ भी बोलने लायक छोड़ा ही नही था. वो बस खड़ी खड़ी कुच्छ देर रवि को जलती आँखों से घुरती रही, फिर एकदम से पलटी और दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसने ज़मीन पर पड़ी अपनी चादर भी नही उठाई. उसे ऐसी हालत में बाहर निकलते देख रवि सकपकाया. पर वो कुच्छ कहता उससे पहले ही निक्की उसके कमरे से बाहर जा चुकी थी. वो उसी हालत में बेधड़क गलियारे से गुजरती हुई अपने रूम में पहुँची. रूम में घुसते ही वो बिस्तर पर गिरी और फुट फुट कर रोने लगी. उसका रोना भी लाजिमी था. उसने अपने जीवन में कभी भी हार नही देखी थी. लेकिन आज वह हारी थी. आज वो पहली बार अपनी मर्यादा से गिरकर किसी के आगे दामन फैलाई थी. पर उसे निराशा और अपमान के सिवा कुच्छ ना मिला था. वो अपमानित हुई थी. रवि ने उसके अंदर की औरत का अपमान किया था. वासना में जलती औरत का जब कोई निरादर करता है तो वो औरत घायल शेरनी से भी अधिक ख़तरनाक हो जाती है. वो उस साँप की तरह होती है जिसकी पूंच्छ पर किसी आदमी का पावं पड़ गया हो. वो जब तक अपनी पून्छ पर पावं धरने वाले को डस नही लेती उसे सुकून नही मिलता. ऐसी औरत बदले की भावना में जितना दूसरे का नुकसान करती है उससे कहीं ज़्यादा अपना नुकसान कर लेती है.
निक्की कुच्छ देर बिस्तर पर मूह छिपाये रोती रही. फिर अपना गम हल्का करने के बाद उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने आईने में खुद को देखा. सब कुच्छ वैसा ही था. वही सुंदर शरीर, पहाड़ की तरह सर उठाए उसके उन्नत शिखर, वही समतल चिकना पेट, वही हज़ारो दिलों को पर बिजलियाँ गिराने वाली कमर, वही पैंटी में फूली हुई चूत, वही गोरी गोरी सुडोल जांघे. पर इस वक़्त उसे उसकी सुंदरता, उसके एक एक अंग सब उसे मूह चिढ़ाती नज़र आई. उसकी आँखों से फिर से शोले बुलंद होने लगे. रवि की बातें फिर से उसकी कानो में ज़हर घोलने लगी. वह मुत्ठियाँ भिचती हुई अपने आप में बड़बड़ाई - "मिस्टर रवि, अगर मैने तुम्हे अपने कदमो में नही झुकाया तो मैं ठाकुर की बेटी नही. मैं तुम्हे इतना मजबूर कर दूँगी कि तुम खुद चलकर मेरी पनाह में आओगे. ये निक्की की ज़िद है. तुम्हे झुकना ही होगा." उसके इरादे फौलाद की तरह मजबूत थे. वह घूमी और बिस्तर पर पसर गयी. और चादर ओढकर सोने का प्रयास करने लगी.