hotaks444
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --11
गतान्क से आगे........................
तभी काका उठ खड़े हुए. अब रूपाली को कल्लो की फेली हुई टाँगें और उसकी टाँगो के बीच का होल दिखाई दे रहा था जो बहुत गीला सा हो रखा था. काका उसकी टाँगो के बीच खड़े थे और रूपाली को सिर्फ़ उनके पावं दिख रहे थे.
"क्या हुआ?" कल्लो ने पुछा
"ऐसे ठीक से हो नही रहा" काका ने कहा "जगह कम है इसलिए मैं लेट नही पा रहा"
"तो फिर?" कल्लो ने पुछा
"एक काम कर" काका बोले "तू इधर दरवाज़े के साथ लेट जा. फिर मैं आराम से तेरे उपेर चढ़ सकता हूँ"
कल्लो हिली और लेटी लेटी ही सरक्ति हुई दरवाज़े के साथ हो गयी. अब रूपाली को उसका जिस्म साइड से दिखाई दे रहा था. काका ने फिर कल्लो की टाँगें पकड़कर उपेर उठाई और अपनी चीज़ पकड़कर उसकी टाँगो के बीच बैठ गये.
"आआहह" कल्लो के मुँह से आवाज़ आई
रूपाली समझ गयी के काका ने फिर से कल्लो के अंदर अपना घुसाया है. आगे या पिछे वो ये अब देख नही पा रही थी.
तभी रूपाली ने कोशिश करके अपनी नज़र कल्लो की टाँगो से हटाकर उसके चेहरे पर डाली और उसका दिल एकदम धक से रह गया. वो फ़ौरन उठ खड़ी हुई और घर की तरफ वापिस चल दी.
कल्लो सीधा दरवाज़े में बनी उस दरार की तरफ देख रही थी. रूपाली जानती थी के कल्लो समझ गयी थी के कोई वहाँ से अंदर देख रहा था. वैसे तो कल्लो को बस अंदर झाँकति एक आँख ही दिखाई दी होगी पर जाने क्यूँ रूपाली को लग रहा था के कल्लो ने उसकी चोरी पकड़ ली है, वो समझ गयी है के अंदर रूपाली ही झाँक रही थी.
उस पूरी शाम रूपाली अपने कमरे से बाहर नही निकली. खाना भी उसने जल्दी जल्दी ख़तम किया और सोने चली गयी ताकि कल्लो से सामना ना हो. चोरी असल में कल्लो और शंभू की पकड़ी गयी थी, डरना उन्हें चाहिए थे के रूपाली किसी को कह ना दे पर हो उल्टा रहा था. रूपाली को लग रहा था के उसकी चोरी पकड़ी गयी है और अगर कल्लो ने किसी से कह दिया के रूपाली देख रही थी तो जाने क्या होगा.
रात को रूपाली को पता ही नही चला के वो कब सो गयी.
सुबह दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया तो रूपाली की आँख खुली. उसने उठकर अपने कमरे का दरवाज़ा खोला तो सामने कल्लो खड़ी थी. रूपाली की साँस आधी उपेर और आधी नीचे रह गयी.
"कमरा साफ करना है बीबी जी" कल्लो बोली.
रूपाली का कमरा वो हमेशा सबसे आख़िर में सॉफ किया करती थी क्यूंकी रूपाली को देर तक सोने की आदत थी. फिर आज इतनी सुबह? रूपाली ने घड़ी पर नज़र डाली. 8 बज रहे थे.
"इतनी सुबह?" उसने कल्लो से पुछा
"हां मुझे जल्दी घर जाना है इसलिए सब काम निपटा रही हूँ" कल्लो बोली तो रूपाली ने दरवाज़े से हटकर उसको अंदर आने की जगह दे दी.
कल्लो कमरा सॉफ करने लगी और खुद रूपाली फिर बिस्तर पर लेट गयी पर आँखों में नीद कहाँ थी. कल्लो से नज़र बचाने के लिए उसने अपने चेहरे पर चादर डाल ली थी.
"बीबी जी" थोड़ी देर बाद कल्लो की आवाज़ आई
"ह्म्म्म्म" रूपाली ने चादर चेहरे से हटाए बिना ही कहा
"आप किसी से कहेंगी तो नही ना?" कल्लो धीरे से बोली
रूपाली का दिल जैसे फिर धक से रह गया.
"क्या नही कहूँगी?" वो थूक निगलते हुए बोली. चेहरे पर अब भी चादर पड़ी हुई थी.
कल्लो कुच्छ नही बोली. थोड़ी देर कमरे में खामोशी रही.
"मैं जानती हूँ के कल आप ही थी स्टोर रूम के बाहर. मैने देख लिया था. आप अकेली ही हो घर में जिसकी आँखें भूरी हैं और मैने दरार में से आपको झाँकते देख लिया था.
कमरे में कुच्छ देर तक पूरी तरफ सन्नाटा रहा.
"आप किसी से कहोगी तो नही ना?" कल्लो ने फिर पुचछा.
रूपाली जानती थी के उसकी चोरी पकड़ी गयी है. उसके दिमाग़ में जो सवाल उठ रहा था के क्या शंभू भी जानता है के रूपाली अंदर झाँक रही थी? अगर जानता है तो?
"हे भगवान" रूपाली जैसे शरम से गड़ गयी
अचानक उसको एक तरीका सूझा. कल्लो अब भी उसके कमरे की सफाई करती उसके जवाब का इंतेज़ार कर रही थी.
"कौन था तुम्हारे साथ?" उसने चादर के अंदर से पुछा. वो जानती थी के ये सवाल पुच्छ कर उसने इस बात का इक़रार कर लिया है के वही स्टोर रूम के अंदर झाँक रही थी.
"वो आप छ्चोड़िए ना मालकिन" कल्लो बोली "था कोई. उसने आपको नही देखा"
खुद कल्लो ने भी राहत की साँस ली के रूपाली को नही पता था के अंदर उसके साथ मर्द कौन था.
"अगर मैं मम्मी पापा को बता दूं तो?" रूपाली ने पुछा. चादर अब भी उसने ओढ़ रखी थी पर महसूस हो गया था के कल्लो ने उसके पावं पकड़ लिए हैं.
"ऐसा ज़ुल्म मत करना मालकिन" कल्लो की रोटी हुई आवाज़ आई सुनकर रूपाली ने अपने चेहरे से चादर हटाई और उठकर बैठ गयी "अगर किसी को पता चल गया तो मालिक मुझे नौकरी से निकाल देंगे और मेरा घरवाला तो मुझे जान से ही मार डालेगा"
रूपाली खामोशी से बैठी रही.
"आप किसी से कहेंगी तो नही ना मालकिन? कल्लो फिर बोली "आप जो कहेंगी मैं करने को तैय्यार हून. बस इसका ज़िक्र किसी से मत करना"
"ठीक है" आख़िर कार रूपाली बोली "मैं किसी से नही कहूँगी. अब कमरा साफ करके बाहर जाओ और मुझे सोने दो"
कल्लो का चेहरा खुशी से चमक उठा. वो फ़ौरन हाथ जोड़कर गर्दन हिलाती खड़ी हो गयी और अपने काम में लग गयी.
रूपाली चादर ओढकर फिर लेट गयी पर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी. डर जाता रहा. कल्लो ने जिस तरह से उसके पावं पकड़े थे, जिस तरह से वो गिड़गिदा रही थी उससे रूपाली को ये भरोसा हो गया था के उसे खुद को डरने के कोई ज़रूरत नही. बल्कि डर तो उससे दूसरे रहे थे, वो तो डरा सकती थी.
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गहरी हो गयी.
..............................................
शर्मा और ख़ान दोनो ही खाने की टेबल पर बैठे थे.
"सर एक बात कहूँ?" शर्मा बोला "बुरा तो नही मानेंगे?"
"जनता हूँ क्या कहने वेल हो" ख़ान बोला "खाना बहुत बकवास बनाता हूँ मैं"
शर्मा हस पड़ा
"आपको कैसे पता चला?
"अर्रे तुम पहले नही हो यार. बहुतो ने कहा है ये" ख़ान ने कहा. उस रात खाना उसने ही बनाया था.
ख़ान ने शर्मा को अपने घर खाना खाने के लिए बुलाया था. वो चाहता था के केस पर वो दोनो बैठकर थोड़ी देर बात करें क्यूंकी गाओं और गाओं के लोगों के बारे में एक शर्मा ही था जो अच्छी तरह से जानता था. जब सारा दिन सुकून से बात करने का मौका नही मिला तो ख़ान शर्मा को लेकर अपने घर ही आ गया.
दोनो ने खाना खाया और सिगरेट जलाकर आराम से बैठ गये.
"सर आप शादी क्यूँ नही कर लेते?" शर्मा बोला
"अर्रे मैं तो काब्से तैय्यर बैठ हूँ यार पर कोई कम्बख़्त मुझे शादी करने को राज़ी तो हो" ख़ान ने कहा
"कैसी बात करते हैं सर, आपको तो 56 मिल जाएगंगी. कहो तो मैं ही बात चलाऊं? शर्मा ने सिगरेट का कश लगाया.
"अर्रे नही यार" ख़ान ने हस्कर कहा "मुझे मेरे हाल पर ही छ्चोड़ दो तुम. ऐसे ही ठीक हूँ. वैसे तुम्हारी तो शादी हो चुकी है ना?
"2 बच्चे भी हैं सर" शर्मा ने जवाब दिया
"गुड वेरी गुड" कहते हुए ख़ान ने अपनी डाइयरी उठाई.
"बचपन से मेरी आदत रही है के जब कुच्छ मेरी समझ से बाहर होता है तो मैं उसको लिख लेता हूँ. समझ आने में काफ़ी आसानी होती है. ऐसा ही कुच्छ मैने इस केस के साथ भी किया है. फिलहाल जो मैने लिखा हूँ वो ये है" कहते हुए ख़ान ने डाइयरी खोलकर शर्मा की तरफ बढ़ा दी.
शर्मा ने डाइयरी पर नज़र डाली. सामने पेज पर कुच्छ पायंट्स लिखे हुए थे.
1. क़त्ल की रात ठाकुर ने अपने कमरे में ही डिन्नर किया था. उनको अपने कमरे के बाहर आखरी बार 8 बजे देखा गया था, ड्रॉयिंग हॉल में टीवी देखते हुए.
2. 8:15 के करीब वो अपने कमरे में चले गये थे और उसके बाद उनकी नौकरानी पायल खाना देने कमरे में गयी.
3. 8:30 के आस पास नौकरानी ठाकुर के बुलाने पर वापिस उनके कमरे में पहुँची. ठाकुर ने ज़्यादा कुच्छ नही खाया था और उसको प्लेट्स ले जाने के लिए कहा.
4. इसके बाद 9:15 के आस पास उनकी बहू रूपाली कपड़े लेने के लिए हवेली की पिछे वाले हिस्से में गयी जहाँ ठाकुर के कमरे की खिड़की खुलती थी और खिड़की से ठाकुर उसको अपने कमरे में खड़े हुए दिखाई दिए. वो अकेले थे.
5. उसके बाद तकरीबन 9.30 बजे तेज अपने बाप के कमरे में उनसे बात करने पहुँचा था. क्या बात करनी थी ये उसने नही बताया. सिर्फ़ कुच्छ बात करनी थी.
6. 9:40 के करीब सरिता देवी अपने पति के कमरे में पहुँची. उनके आने के बाद तेज वहाँ से चला गया.
7. 9:45 के करीब ठाकुर ने भूषण को बुलाकर गाड़ी निकालने को कहा. कहाँ जाना था ये नही बताया और खुद सरिता देवी भी ये नही जानती थी के उनके पति कहाँ जा रहे हैं.
8. 10:00 बजे के करीब भूषण वापिस ठाकुर के कमरे में चाबी लेने गया. ठाकुर उस वक़्त कमरे में अकेले थे और सरिता देवी बाहर कॉरिडर में बैठी थी.
9. 10:00 के करीब ही जब भूषण ठाकुर के कमरे से बाहर निकला तो पायल कमरे में गयी ये पुच्छने के लिए के ठाकुर को और कुच्छ तो नही चाहिए था. ठाकुर ने उसको मना कर दिया.
10. 10:05 के करीब जब भूषण कार पार्किंग की ओर जा रहा था तब उसने और ठकुराइन ने जै को हवेली में दाखिल होते हुए देखा.
11. 10:15 पर जब पायल किचन बंद करके अपने कमरे की ओर जा रही थी तब उसने ठाकुर के कमरे से जै को बाहर निकलते देखा. वो पूरा खून में सना हुआ था जिसके बाद उसने चीख मारी.
12. उसकी चीख की आवाज़ सुनकर जै को समझ नही आया के क्या करे. वो पायल को बताने लगा के अंदर ठाकुर साहब ज़ख़्मी हैं और इसी वक़्त पुरुषोत्तम और तेज आ गये. जब उन्होने जै को खून में सना देखा और अपने बाप को अंदर नीचे ज़मीन पर पड़ा देखा तो वो जै को मारने लगे.
13. जै भागकर किचन में घुस गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
14. 10:45 के करीब ख़ान को फोन आया था के ठाकुर का खून हो गया है जिसके बाद वो हवेली पहुँचा.
"सही है सर" शर्मा ने कहा "टाइम का अंदाज़ा तो बहुत सही लगाया है आपने. अब?"
"अब मेरे दोस्त ज़रा उन लोगों पर नज़र डालें जो उस रात हवेली में थे" कहते हुए ख़ान ने शर्मा से डाइयरी वापिस ली और पेन निकालकर लिखने लगा.
"ठाकुर की बीवी से ही शुरू करते हैं
क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
तभी काका उठ खड़े हुए. अब रूपाली को कल्लो की फेली हुई टाँगें और उसकी टाँगो के बीच का होल दिखाई दे रहा था जो बहुत गीला सा हो रखा था. काका उसकी टाँगो के बीच खड़े थे और रूपाली को सिर्फ़ उनके पावं दिख रहे थे.
"क्या हुआ?" कल्लो ने पुछा
"ऐसे ठीक से हो नही रहा" काका ने कहा "जगह कम है इसलिए मैं लेट नही पा रहा"
"तो फिर?" कल्लो ने पुछा
"एक काम कर" काका बोले "तू इधर दरवाज़े के साथ लेट जा. फिर मैं आराम से तेरे उपेर चढ़ सकता हूँ"
कल्लो हिली और लेटी लेटी ही सरक्ति हुई दरवाज़े के साथ हो गयी. अब रूपाली को उसका जिस्म साइड से दिखाई दे रहा था. काका ने फिर कल्लो की टाँगें पकड़कर उपेर उठाई और अपनी चीज़ पकड़कर उसकी टाँगो के बीच बैठ गये.
"आआहह" कल्लो के मुँह से आवाज़ आई
रूपाली समझ गयी के काका ने फिर से कल्लो के अंदर अपना घुसाया है. आगे या पिछे वो ये अब देख नही पा रही थी.
तभी रूपाली ने कोशिश करके अपनी नज़र कल्लो की टाँगो से हटाकर उसके चेहरे पर डाली और उसका दिल एकदम धक से रह गया. वो फ़ौरन उठ खड़ी हुई और घर की तरफ वापिस चल दी.
कल्लो सीधा दरवाज़े में बनी उस दरार की तरफ देख रही थी. रूपाली जानती थी के कल्लो समझ गयी थी के कोई वहाँ से अंदर देख रहा था. वैसे तो कल्लो को बस अंदर झाँकति एक आँख ही दिखाई दी होगी पर जाने क्यूँ रूपाली को लग रहा था के कल्लो ने उसकी चोरी पकड़ ली है, वो समझ गयी है के अंदर रूपाली ही झाँक रही थी.
उस पूरी शाम रूपाली अपने कमरे से बाहर नही निकली. खाना भी उसने जल्दी जल्दी ख़तम किया और सोने चली गयी ताकि कल्लो से सामना ना हो. चोरी असल में कल्लो और शंभू की पकड़ी गयी थी, डरना उन्हें चाहिए थे के रूपाली किसी को कह ना दे पर हो उल्टा रहा था. रूपाली को लग रहा था के उसकी चोरी पकड़ी गयी है और अगर कल्लो ने किसी से कह दिया के रूपाली देख रही थी तो जाने क्या होगा.
रात को रूपाली को पता ही नही चला के वो कब सो गयी.
सुबह दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया तो रूपाली की आँख खुली. उसने उठकर अपने कमरे का दरवाज़ा खोला तो सामने कल्लो खड़ी थी. रूपाली की साँस आधी उपेर और आधी नीचे रह गयी.
"कमरा साफ करना है बीबी जी" कल्लो बोली.
रूपाली का कमरा वो हमेशा सबसे आख़िर में सॉफ किया करती थी क्यूंकी रूपाली को देर तक सोने की आदत थी. फिर आज इतनी सुबह? रूपाली ने घड़ी पर नज़र डाली. 8 बज रहे थे.
"इतनी सुबह?" उसने कल्लो से पुछा
"हां मुझे जल्दी घर जाना है इसलिए सब काम निपटा रही हूँ" कल्लो बोली तो रूपाली ने दरवाज़े से हटकर उसको अंदर आने की जगह दे दी.
कल्लो कमरा सॉफ करने लगी और खुद रूपाली फिर बिस्तर पर लेट गयी पर आँखों में नीद कहाँ थी. कल्लो से नज़र बचाने के लिए उसने अपने चेहरे पर चादर डाल ली थी.
"बीबी जी" थोड़ी देर बाद कल्लो की आवाज़ आई
"ह्म्म्म्म" रूपाली ने चादर चेहरे से हटाए बिना ही कहा
"आप किसी से कहेंगी तो नही ना?" कल्लो धीरे से बोली
रूपाली का दिल जैसे फिर धक से रह गया.
"क्या नही कहूँगी?" वो थूक निगलते हुए बोली. चेहरे पर अब भी चादर पड़ी हुई थी.
कल्लो कुच्छ नही बोली. थोड़ी देर कमरे में खामोशी रही.
"मैं जानती हूँ के कल आप ही थी स्टोर रूम के बाहर. मैने देख लिया था. आप अकेली ही हो घर में जिसकी आँखें भूरी हैं और मैने दरार में से आपको झाँकते देख लिया था.
कमरे में कुच्छ देर तक पूरी तरफ सन्नाटा रहा.
"आप किसी से कहोगी तो नही ना?" कल्लो ने फिर पुचछा.
रूपाली जानती थी के उसकी चोरी पकड़ी गयी है. उसके दिमाग़ में जो सवाल उठ रहा था के क्या शंभू भी जानता है के रूपाली अंदर झाँक रही थी? अगर जानता है तो?
"हे भगवान" रूपाली जैसे शरम से गड़ गयी
अचानक उसको एक तरीका सूझा. कल्लो अब भी उसके कमरे की सफाई करती उसके जवाब का इंतेज़ार कर रही थी.
"कौन था तुम्हारे साथ?" उसने चादर के अंदर से पुछा. वो जानती थी के ये सवाल पुच्छ कर उसने इस बात का इक़रार कर लिया है के वही स्टोर रूम के अंदर झाँक रही थी.
"वो आप छ्चोड़िए ना मालकिन" कल्लो बोली "था कोई. उसने आपको नही देखा"
खुद कल्लो ने भी राहत की साँस ली के रूपाली को नही पता था के अंदर उसके साथ मर्द कौन था.
"अगर मैं मम्मी पापा को बता दूं तो?" रूपाली ने पुछा. चादर अब भी उसने ओढ़ रखी थी पर महसूस हो गया था के कल्लो ने उसके पावं पकड़ लिए हैं.
"ऐसा ज़ुल्म मत करना मालकिन" कल्लो की रोटी हुई आवाज़ आई सुनकर रूपाली ने अपने चेहरे से चादर हटाई और उठकर बैठ गयी "अगर किसी को पता चल गया तो मालिक मुझे नौकरी से निकाल देंगे और मेरा घरवाला तो मुझे जान से ही मार डालेगा"
रूपाली खामोशी से बैठी रही.
"आप किसी से कहेंगी तो नही ना मालकिन? कल्लो फिर बोली "आप जो कहेंगी मैं करने को तैय्यार हून. बस इसका ज़िक्र किसी से मत करना"
"ठीक है" आख़िर कार रूपाली बोली "मैं किसी से नही कहूँगी. अब कमरा साफ करके बाहर जाओ और मुझे सोने दो"
कल्लो का चेहरा खुशी से चमक उठा. वो फ़ौरन हाथ जोड़कर गर्दन हिलाती खड़ी हो गयी और अपने काम में लग गयी.
रूपाली चादर ओढकर फिर लेट गयी पर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी. डर जाता रहा. कल्लो ने जिस तरह से उसके पावं पकड़े थे, जिस तरह से वो गिड़गिदा रही थी उससे रूपाली को ये भरोसा हो गया था के उसे खुद को डरने के कोई ज़रूरत नही. बल्कि डर तो उससे दूसरे रहे थे, वो तो डरा सकती थी.
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गहरी हो गयी.
..............................................
शर्मा और ख़ान दोनो ही खाने की टेबल पर बैठे थे.
"सर एक बात कहूँ?" शर्मा बोला "बुरा तो नही मानेंगे?"
"जनता हूँ क्या कहने वेल हो" ख़ान बोला "खाना बहुत बकवास बनाता हूँ मैं"
शर्मा हस पड़ा
"आपको कैसे पता चला?
"अर्रे तुम पहले नही हो यार. बहुतो ने कहा है ये" ख़ान ने कहा. उस रात खाना उसने ही बनाया था.
ख़ान ने शर्मा को अपने घर खाना खाने के लिए बुलाया था. वो चाहता था के केस पर वो दोनो बैठकर थोड़ी देर बात करें क्यूंकी गाओं और गाओं के लोगों के बारे में एक शर्मा ही था जो अच्छी तरह से जानता था. जब सारा दिन सुकून से बात करने का मौका नही मिला तो ख़ान शर्मा को लेकर अपने घर ही आ गया.
दोनो ने खाना खाया और सिगरेट जलाकर आराम से बैठ गये.
"सर आप शादी क्यूँ नही कर लेते?" शर्मा बोला
"अर्रे मैं तो काब्से तैय्यर बैठ हूँ यार पर कोई कम्बख़्त मुझे शादी करने को राज़ी तो हो" ख़ान ने कहा
"कैसी बात करते हैं सर, आपको तो 56 मिल जाएगंगी. कहो तो मैं ही बात चलाऊं? शर्मा ने सिगरेट का कश लगाया.
"अर्रे नही यार" ख़ान ने हस्कर कहा "मुझे मेरे हाल पर ही छ्चोड़ दो तुम. ऐसे ही ठीक हूँ. वैसे तुम्हारी तो शादी हो चुकी है ना?
"2 बच्चे भी हैं सर" शर्मा ने जवाब दिया
"गुड वेरी गुड" कहते हुए ख़ान ने अपनी डाइयरी उठाई.
"बचपन से मेरी आदत रही है के जब कुच्छ मेरी समझ से बाहर होता है तो मैं उसको लिख लेता हूँ. समझ आने में काफ़ी आसानी होती है. ऐसा ही कुच्छ मैने इस केस के साथ भी किया है. फिलहाल जो मैने लिखा हूँ वो ये है" कहते हुए ख़ान ने डाइयरी खोलकर शर्मा की तरफ बढ़ा दी.
शर्मा ने डाइयरी पर नज़र डाली. सामने पेज पर कुच्छ पायंट्स लिखे हुए थे.
1. क़त्ल की रात ठाकुर ने अपने कमरे में ही डिन्नर किया था. उनको अपने कमरे के बाहर आखरी बार 8 बजे देखा गया था, ड्रॉयिंग हॉल में टीवी देखते हुए.
2. 8:15 के करीब वो अपने कमरे में चले गये थे और उसके बाद उनकी नौकरानी पायल खाना देने कमरे में गयी.
3. 8:30 के आस पास नौकरानी ठाकुर के बुलाने पर वापिस उनके कमरे में पहुँची. ठाकुर ने ज़्यादा कुच्छ नही खाया था और उसको प्लेट्स ले जाने के लिए कहा.
4. इसके बाद 9:15 के आस पास उनकी बहू रूपाली कपड़े लेने के लिए हवेली की पिछे वाले हिस्से में गयी जहाँ ठाकुर के कमरे की खिड़की खुलती थी और खिड़की से ठाकुर उसको अपने कमरे में खड़े हुए दिखाई दिए. वो अकेले थे.
5. उसके बाद तकरीबन 9.30 बजे तेज अपने बाप के कमरे में उनसे बात करने पहुँचा था. क्या बात करनी थी ये उसने नही बताया. सिर्फ़ कुच्छ बात करनी थी.
6. 9:40 के करीब सरिता देवी अपने पति के कमरे में पहुँची. उनके आने के बाद तेज वहाँ से चला गया.
7. 9:45 के करीब ठाकुर ने भूषण को बुलाकर गाड़ी निकालने को कहा. कहाँ जाना था ये नही बताया और खुद सरिता देवी भी ये नही जानती थी के उनके पति कहाँ जा रहे हैं.
8. 10:00 बजे के करीब भूषण वापिस ठाकुर के कमरे में चाबी लेने गया. ठाकुर उस वक़्त कमरे में अकेले थे और सरिता देवी बाहर कॉरिडर में बैठी थी.
9. 10:00 के करीब ही जब भूषण ठाकुर के कमरे से बाहर निकला तो पायल कमरे में गयी ये पुच्छने के लिए के ठाकुर को और कुच्छ तो नही चाहिए था. ठाकुर ने उसको मना कर दिया.
10. 10:05 के करीब जब भूषण कार पार्किंग की ओर जा रहा था तब उसने और ठकुराइन ने जै को हवेली में दाखिल होते हुए देखा.
11. 10:15 पर जब पायल किचन बंद करके अपने कमरे की ओर जा रही थी तब उसने ठाकुर के कमरे से जै को बाहर निकलते देखा. वो पूरा खून में सना हुआ था जिसके बाद उसने चीख मारी.
12. उसकी चीख की आवाज़ सुनकर जै को समझ नही आया के क्या करे. वो पायल को बताने लगा के अंदर ठाकुर साहब ज़ख़्मी हैं और इसी वक़्त पुरुषोत्तम और तेज आ गये. जब उन्होने जै को खून में सना देखा और अपने बाप को अंदर नीचे ज़मीन पर पड़ा देखा तो वो जै को मारने लगे.
13. जै भागकर किचन में घुस गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
14. 10:45 के करीब ख़ान को फोन आया था के ठाकुर का खून हो गया है जिसके बाद वो हवेली पहुँचा.
"सही है सर" शर्मा ने कहा "टाइम का अंदाज़ा तो बहुत सही लगाया है आपने. अब?"
"अब मेरे दोस्त ज़रा उन लोगों पर नज़र डालें जो उस रात हवेली में थे" कहते हुए ख़ान ने शर्मा से डाइयरी वापिस ली और पेन निकालकर लिखने लगा.
"ठाकुर की बीवी से ही शुरू करते हैं
क्रमशः........................................