hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
खूनी हवेली की वासना पार्ट --21
गतान्क से आगे........................
"थोड़ी देर और चूसो ना" उनको उठते देखकर ठाकुर ने कहा
"बाद में चूस दूँगी" ठकुराइन ने अपनी नाइटी उतारकर एक तरफ फेंकी और पूरी तरह नंगी होकर बिस्तर पर बैठ गयी "फिलहाल मुझे ठंडा करो"
"आज बड़ी गरम हो रखी हो" ठाकुर ने अपना लंड खुद हिलाते हुए कहा "बात क्या है?"
"कोई बात नही है" ठकुराइन ने कहा "अब जल्दी करो"
वो बिस्तर के कोने पर बैठी हुई थी और ठाकुर उनके सामने खड़े हुए थे. ठकुराइन पिछे को होती हुई बिस्तर पर लेट गयी. उनकी गांद बिस्तर के कोने पर थी और टांगे उन्होने हवा में उठा ली. चूत खुल कर पूरी तरह ठाकुर
के सामने आ गयी.
ठाकुर एक पल उन्हें देख कर मुस्कुराए और आगे बढ़कर अपना लंड चूत पर रख कर धीरे से आगे को दबाया. पूरी गीली चूत में लंड आराम से अंदर तक घुस गया.
लंड के अंदर घुसते ही ठकुराइन की चूत में लगी आग जैसे कम होने के बजाय और बढ़ गयी. उनकी चूचियो पर उनके दोनो निपल्स एकदम सख़्त हो गये, चूत इस कदर गीली हो गयी के नीचे चादर पर भी पानी नज़र आने लगा. अपने दोनो बाहें फेलाकर ठकुराइन ने ठाकुर को अपने उपेर खींच लिया. वो अब भी नीचे खड़े हुए थे और ठकुराइन की दोनो टाँगो को उपेर को पकड़ रखा था. नीचे झुकते ही उन्होने दोनो निपल्स को बार बारी चूसना शुरू कर दिया और चूत में धक्को को और तेज़ कर दिया.
उनके दोनो हाथ कभी ठकुराइन की चूचियाँ दबाते, कभी उनके टाँगो को पकड़कर फिर उपेर कर देते, कभी उनकी जाँघो को सहलाते.
उनकी इन सब हरकतों से ठकुराइन के अंदर लगी आग और बढ़ती जा रही थी. वो ठाकुर की गांद को पकड़कर अपनी ओर खींचने लगी.
"और ज़ोर से ... और ज़ोर से ...." उन्होने ठाकुर को उकसाया
ठाकुर एक बार फिर खड़े हो गये और ठकुराइन की टाँगो को पकड़ कर पूरी जान से धक्के मारने लगे. वो अपने लंड को चूत से तकरीबन पूरा ही बाहर खींच लेते और फिर एक ज़ोरदार धक्के से जड़ तक अंदर घुसा देते.
नीचे पड़ी ठकुराइन जैसे एक नशे की सी हालत में थी. ठाकुर का लंड उनकी चूत को पूरी तरह भर रहा था और ज़ोरदार धक्को से उनका पूरा जिस्म हिल रहा था. हर धक्के के साथ उनकी गांद पर ठाकुर के टटटे टकरा रहे थे.
पर ठकुराइन को फिर भी लग रहा था के उनकी आग ठंडी नही हो रही थी, कहीं कुच्छ कमी थी.
ठाकुर के धक्को में तेज़ी आ गयी थी. उन्होने अपने दोनो हाथों से ठकुराइन की दोनो चूचियो को पूरे ज़ोर से पकड़ रखा था और ठकुराइन जानती थी के अब किसी भी पल खेल ख़तम हो जाएगा.
पर ठकुराइन अब भी उसी आग में जल रही थी.
और फिर उन्होने बेकरार होकर आईने में नज़र डाली. उनके दिल में एक ख्वाहिश थी के वो वहाँ खड़ा हो, फिर से उन्हें देख रहा हो और जैसे भगवान ने उनकी सुन ली.
वो खिड़की पर च्छूपा खड़ा था और अंदर झाँक रहा था.
हवेली के बाहर अंधेरा था और उसको यूँ खड़े हुए देख पाना मुश्किल था. पहली नज़र में तो शायद पता भी ना चलता कि कोई वहाँ खड़ा अंदर देख रहा है पर ठकुराइन की नज़र तो उसी को तलाश रही थी इसलिए फ़ौरन वो नज़र आ गया.
वो उनको पूरी तरह नंगी चुदवाते हुए देख रहा था और शायद बाहर खड़ा अपना लंड हिला रहा था.
जैसे इस ख्याल ने एक कमाल सा कर दिया. जो आग ठकुराइन के अंदर लगी हुई थी वो अचानक ज्वालामुखी की तरह फॅट पड़ी. चूत से पानी बह चला और एक अजीब सा सुकून उनके दिल में उतरता चला गया.
"चोदो मुझे" अचानक ठकुराइन ने वो किया जो कभी नही किया था "ज़ोर से चोदो मुझे"
और ठीक उसी पल शीशे में एक पल के लिए ठकुराइन की नज़र उस लड़के की नज़र से मिली. दोनो ने एक दूसरे को देखा. लड़का समझ गया के वो उसको देख रही थी और वो भी ये समझ गयी के लड़का जानता है के उन्होने उसको देख लिया.
और ठकुराइन उसको देखते हुए झाड़ गयी.
"आआहह" वो चिल्ला उठी "मैं गयी. लंड पूरा अंदर घुसा दो"
ठाकुर ने एक ज़ोर से धक्का लगाया और लंड चूत में अंदर डाल कर रुक गये. उनका वीर्य ठकुराइन की चूत को धीरे धीरे भरने लगा.
दोनो की साँस भारी हो रही थी. वो लड़का खिड़की से जा चुका था.
ठाकुर ठकुराइन के उपेर लेटे हैरत से उनको देख रहे थे के आज वो ऐसा बोल कैसे पड़ी और ठकुराइन नीचे बैठी शरम से ज़मीन में गढ़ी जा रही थी.
"हे भगवान" उन्होने दिल ही दिल में सोचा "क्या कर रही हूँ मैं? वो मेरा अपना .... नही नही, ये ठीक नही है. पाप है"
उस रात ठाकुर के कुच्छ रिश्तेदार हवेली आए हुए.थे पूरा दिन घर में हसी मज़ाक का माहौल बना रहा और रात को भी सब उसी मूड में थे.
लाइट ना होने की वजह से सब लोग हवेली की छत पर बैठे हुए थे और ताश खेल रहे थे. शराब और कुच्छ खाने की चीज़ें भी वहीं लगी हुई थी.
नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर गोल घेरा बनाए हुए बैठे थे. मौसम तोड़ा ठंडा था इसलिए सबने अपनी टाँगो को कंबल के अंदर घुसाया हुआ था.
खुद ठकुराइन ने भी उस रात सबके कहने पर हल्की सी शराब पी ली थी. ताश खेलना उन्हें आता नही था इसलिए वो एक तरफ छत की दीवार से टेक लगाए बैठी थी और सबको देख रही थी. तभी वो छत पर आया.
"तू भी खेलेगा?" ठाकुर ने उससे पुछा तो उसने इनकार में गर्दन हिला दी और सीधा आकर ठकुराइन के पास बैठ गया.
ठकुराइन ने अपनी नज़र दूसरी तरफ घुमा ली. उस रात के बाद वो अब तक उससे नज़र नही मिला पाई थी.
वो सीधा आकर उनकी बगल में बैठ गया और जो कंबल ठकुराइन ने ओढ़ रखा था वही कंबल अपनी टाँगो पर डालकर दीवार से टेक लगाके बैठ गया. वो ठकुराइन के बिल्कुल नज़दीक बैठा था पर वो जानकर दूसरी तरफ देखने का नाटक कर रही थी.
अंधेरी रात थी और छत पर सिर्फ़ उस वक़्त एक लालटेन जल रही थी जिसकी रोशनी में पत्ते खेले जा रहे थे. ठकुराइन और वो लड़के दूसरो से थोड़ा हटके एक तरफ बैठे थे जिसकी वजह से वो दोनो तकरीबन अंधेरे में ही थे.
ठकुराइन अपनी सोच में ही गुम थी के उन्हें अपने पावं पर कुच्छ महसूस हुआ. उन्होने नज़र घूमकर देखा तो दिल धड़क उठा. पहले वो थोड़ा सा फासला बना कर बैठा था पर अब खिसक कर बिल्कुल ठकुराइन के करीब आ चुका था और कंबल के अंदर अपना पावं ठकुराइन के पावं पर रगड़ रहा था.
ठकुराइन ने घूर कर उसकी तरफ देखा और दूर खिसकने लगी के तभी उसने उनका हाथ पकड़ लिया और अगले पल वो किया जो ठकुराइन ने अपने सपनो में भी नही सोचा था.
उसने कंबल के अंदर अपना पाजामा खिसका कर नीचे कर रखा था और ठकुराइन का हाथ पकड़ कर सीधा अपने नंगे लंड पर रख दिया.
सरिता देवी को जैसे 1000 वॉट का झटका लगा. उन्हें समझने में एक सेकेंड नही लगा के चादर के अंदर उनके हाथ में क्या था. उन्होने अपना हाथ वापिस खींचने की कोशिश की पर लड़के ने उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और ज़बरदस्ती उनकी मुट्ठी अपने लंड पर बंद कर रखी थी.
सरिता देवी ने ताक़त लगाकर हाथ वापिस लेने की कोशिश की. लड़के ने भी पूरी ताक़त से उनका हाथ अपने लंड पर पकड़े रखा, इसी खींचा-तानी में ठाकुर की नज़र उन दोनो पर पड़ गयी.
"अर्रे दोनो माँ बेटे क्या आपस में लड़ रहे हो?" उन्होने हॅस्कर पुछा
"नही बस बात कर रहे हैं" ठकुराइन ने भी ऐसे ही ठंडी आवाज़ बनाकर कहा.
ठाकुर के देखने की वजह से ठकुराइन को अपना हाथ खींचने की कोशिश बंद करनी पड़ी. उनका हाथ ढीला पड़ते ही लड़के ने उसे अपने लंड पर उपेर नीचे करना शुरू कर दिया.
"मत कर" ठकुराइन ने कहा "कोई देख लेगा"
वो लड़का नही माना और ऐसे ही उनका हाथ अपने लंड पर उपेर नीचे करता रहा. वो अपने हाथ से ठकुराइन के हाथ को अपने लंड पर बंद करके मुट्ठी मार रहा था.
"भगवान के लिए मान जा. किसी ने देख लिया तो ग़ज़ब हो जाएगा" ठकुराइन ने फिर कोशिश की
वो फिर भी नही माना और ऐसे ही उनका हाथ अपने लंड पर उपेर नीचे करता रहा. अंधेरा होने की वजह से उनकी ये हरकत किसी को नज़र नही आ रही थी. लड़का वैसे ही ठकुराइन के हाथ को उपेर नीचे करता रहा और अपने हाथ में ठकुराइन को उसका लंड खड़ा होता महसूस होने लगा. धीरे धीरे पूरा लंड सख़्त हो गया और ठकुराइन के हाथ में कस गया.
एक पल के लिए ठकुराइन के दिमाग़ में वो नज़ारा याद आया जब वो नंगी बैठी इसी लंड को चूस रही थी.
ये ख्याल दिमाग़ में आते ही जैसे बेध्यानी में उनकी मुट्ठी लंड पर कस गयी. उनके ऐसा करते ही लड़के ने अपना हाथ उनके हाथ से हटा लिया पर ठकुराइन अब भी उसके लंड को वैसे ही हिलाती रही. उन्हें इस बात का एहसास ही नही हुआ के अब वो खुद उसका लंड हिला रही हैं, वो तो कबका अपना हाथ हटा चुका था.
धीरे धीरे उसका लंड फूलने लगा और उसकी तेज़ होती साँस से ठकुराइन को अंदाज़ा हो गया के वो छूटने वाला है.
उन्होने अपना हाथ हिलाना और तेज़ कर दिया. उनका पूरा हाथ कंबल के अंदर उसके लंड को जकड़े हुए थे और पूरी तेज़ी से उपेर नीचे जा रहा था.
और फिर अचानक उस लड़के के जिस्म ने झटका खाया और ठकुराइन के हाथ में कुच्छ गीला गीला आ गया. वो जानती थी के उस लड़के का काम हो चुका था और उनके हाथ में अब क्या था.
एक पल के लिए उन्हें वो वक़्त याद आया जब यही चीज़ उनके हाथ के बजाय उनके मुँह में थी और कुच्छ उन्होने अंजाने में निगल भी ली थी.
ठकुराइन तब तक लंड को हिलाती रही जब तक के वो बैठकर सिकुड गया और ठकुराइन के हाथ से अपने आप ही छूट गया. तब ठकुराइन को एहसास हुआ के इतनी देर से वो खुद ही लंड हिलाए जा रही थी. लड़का तो आँखें बंद किए बैठा था. उन्होने एक नज़र उसके चेहरे पर डाली. लड़के ने भी अपनी आँखें खोली और ठकुराइन से नज़र मिलाई.
वो दोनो अच्छी तरह से जानते थे के आज हर पुराना रिश्ता तोड़कर उनके बीच एक नया रिश्ता जनम ले चुका था.
ठाकुर उस दिन ठकुराइन को अपने आम का बाग दिखाने लाए थे. 2 गाड़ियाँ थी. एक में ठाकुर और ठकुराइन जिसे खुद ठाकुर चला रहे थे और दूसरी में वो लड़का और कुच्छ नौकर और 3 नौकर थे.
अगले एक घंटे तक ठाकुर ठकुराइन को बड़े शौक ने अपना नया खरीदा आम का बाग दिखाते रहे. ठकुराइन ने कई बार महसूस किया के वो लड़का सबकी नज़र बचा कर बार बार ठकुराइन की तरफ देख रहा था पर वो जब भी पलट कर उसकी तरफ देखती तो वो नज़र घुमा लेता था.
"मुझे प्यास लगी है" काफ़ी देर तक घूमने के बाद ठकुराइन ने कहा.
"पानी की बॉटल?" ठाकुर ने एक नौकर से पुछा
"वो गाड़ी में ही रखी है मालिक" नौकर ने कहा "मैं अभी ले आता हूँ"
नौकर जाने के लिए मुड़ा ही था के अचानक उस लड़के ने उसको रोक दिया.
"यहाँ नज़दीक में ही एक हॅंड-पंप लगा है. वहाँ चलते हैं" उसने कहा
"हां आप वहाँ जाकर पानी पी लीजिए. नलके का पानी अच्छा ताज़ा भी होगा" ठाकुर ने ठकुराइन से कहा
लकड़े ने ठकुराइन को साथ चलने का इशारा किया. वो एक पल के लिए सोच में पड़ गयी. उसके साथ अकेले जाने में वो झिझक रही थी पर इस वक़्त कुच्छ कर नही सकती थी. क्या कहती ठाकुर और नौकरों से के क्यूँ उसके साथ जाना नही चाहती. वो तो उनका खुद का ...क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
"थोड़ी देर और चूसो ना" उनको उठते देखकर ठाकुर ने कहा
"बाद में चूस दूँगी" ठकुराइन ने अपनी नाइटी उतारकर एक तरफ फेंकी और पूरी तरह नंगी होकर बिस्तर पर बैठ गयी "फिलहाल मुझे ठंडा करो"
"आज बड़ी गरम हो रखी हो" ठाकुर ने अपना लंड खुद हिलाते हुए कहा "बात क्या है?"
"कोई बात नही है" ठकुराइन ने कहा "अब जल्दी करो"
वो बिस्तर के कोने पर बैठी हुई थी और ठाकुर उनके सामने खड़े हुए थे. ठकुराइन पिछे को होती हुई बिस्तर पर लेट गयी. उनकी गांद बिस्तर के कोने पर थी और टांगे उन्होने हवा में उठा ली. चूत खुल कर पूरी तरह ठाकुर
के सामने आ गयी.
ठाकुर एक पल उन्हें देख कर मुस्कुराए और आगे बढ़कर अपना लंड चूत पर रख कर धीरे से आगे को दबाया. पूरी गीली चूत में लंड आराम से अंदर तक घुस गया.
लंड के अंदर घुसते ही ठकुराइन की चूत में लगी आग जैसे कम होने के बजाय और बढ़ गयी. उनकी चूचियो पर उनके दोनो निपल्स एकदम सख़्त हो गये, चूत इस कदर गीली हो गयी के नीचे चादर पर भी पानी नज़र आने लगा. अपने दोनो बाहें फेलाकर ठकुराइन ने ठाकुर को अपने उपेर खींच लिया. वो अब भी नीचे खड़े हुए थे और ठकुराइन की दोनो टाँगो को उपेर को पकड़ रखा था. नीचे झुकते ही उन्होने दोनो निपल्स को बार बारी चूसना शुरू कर दिया और चूत में धक्को को और तेज़ कर दिया.
उनके दोनो हाथ कभी ठकुराइन की चूचियाँ दबाते, कभी उनके टाँगो को पकड़कर फिर उपेर कर देते, कभी उनकी जाँघो को सहलाते.
उनकी इन सब हरकतों से ठकुराइन के अंदर लगी आग और बढ़ती जा रही थी. वो ठाकुर की गांद को पकड़कर अपनी ओर खींचने लगी.
"और ज़ोर से ... और ज़ोर से ...." उन्होने ठाकुर को उकसाया
ठाकुर एक बार फिर खड़े हो गये और ठकुराइन की टाँगो को पकड़ कर पूरी जान से धक्के मारने लगे. वो अपने लंड को चूत से तकरीबन पूरा ही बाहर खींच लेते और फिर एक ज़ोरदार धक्के से जड़ तक अंदर घुसा देते.
नीचे पड़ी ठकुराइन जैसे एक नशे की सी हालत में थी. ठाकुर का लंड उनकी चूत को पूरी तरह भर रहा था और ज़ोरदार धक्को से उनका पूरा जिस्म हिल रहा था. हर धक्के के साथ उनकी गांद पर ठाकुर के टटटे टकरा रहे थे.
पर ठकुराइन को फिर भी लग रहा था के उनकी आग ठंडी नही हो रही थी, कहीं कुच्छ कमी थी.
ठाकुर के धक्को में तेज़ी आ गयी थी. उन्होने अपने दोनो हाथों से ठकुराइन की दोनो चूचियो को पूरे ज़ोर से पकड़ रखा था और ठकुराइन जानती थी के अब किसी भी पल खेल ख़तम हो जाएगा.
पर ठकुराइन अब भी उसी आग में जल रही थी.
और फिर उन्होने बेकरार होकर आईने में नज़र डाली. उनके दिल में एक ख्वाहिश थी के वो वहाँ खड़ा हो, फिर से उन्हें देख रहा हो और जैसे भगवान ने उनकी सुन ली.
वो खिड़की पर च्छूपा खड़ा था और अंदर झाँक रहा था.
हवेली के बाहर अंधेरा था और उसको यूँ खड़े हुए देख पाना मुश्किल था. पहली नज़र में तो शायद पता भी ना चलता कि कोई वहाँ खड़ा अंदर देख रहा है पर ठकुराइन की नज़र तो उसी को तलाश रही थी इसलिए फ़ौरन वो नज़र आ गया.
वो उनको पूरी तरह नंगी चुदवाते हुए देख रहा था और शायद बाहर खड़ा अपना लंड हिला रहा था.
जैसे इस ख्याल ने एक कमाल सा कर दिया. जो आग ठकुराइन के अंदर लगी हुई थी वो अचानक ज्वालामुखी की तरह फॅट पड़ी. चूत से पानी बह चला और एक अजीब सा सुकून उनके दिल में उतरता चला गया.
"चोदो मुझे" अचानक ठकुराइन ने वो किया जो कभी नही किया था "ज़ोर से चोदो मुझे"
और ठीक उसी पल शीशे में एक पल के लिए ठकुराइन की नज़र उस लड़के की नज़र से मिली. दोनो ने एक दूसरे को देखा. लड़का समझ गया के वो उसको देख रही थी और वो भी ये समझ गयी के लड़का जानता है के उन्होने उसको देख लिया.
और ठकुराइन उसको देखते हुए झाड़ गयी.
"आआहह" वो चिल्ला उठी "मैं गयी. लंड पूरा अंदर घुसा दो"
ठाकुर ने एक ज़ोर से धक्का लगाया और लंड चूत में अंदर डाल कर रुक गये. उनका वीर्य ठकुराइन की चूत को धीरे धीरे भरने लगा.
दोनो की साँस भारी हो रही थी. वो लड़का खिड़की से जा चुका था.
ठाकुर ठकुराइन के उपेर लेटे हैरत से उनको देख रहे थे के आज वो ऐसा बोल कैसे पड़ी और ठकुराइन नीचे बैठी शरम से ज़मीन में गढ़ी जा रही थी.
"हे भगवान" उन्होने दिल ही दिल में सोचा "क्या कर रही हूँ मैं? वो मेरा अपना .... नही नही, ये ठीक नही है. पाप है"
उस रात ठाकुर के कुच्छ रिश्तेदार हवेली आए हुए.थे पूरा दिन घर में हसी मज़ाक का माहौल बना रहा और रात को भी सब उसी मूड में थे.
लाइट ना होने की वजह से सब लोग हवेली की छत पर बैठे हुए थे और ताश खेल रहे थे. शराब और कुच्छ खाने की चीज़ें भी वहीं लगी हुई थी.
नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर गोल घेरा बनाए हुए बैठे थे. मौसम तोड़ा ठंडा था इसलिए सबने अपनी टाँगो को कंबल के अंदर घुसाया हुआ था.
खुद ठकुराइन ने भी उस रात सबके कहने पर हल्की सी शराब पी ली थी. ताश खेलना उन्हें आता नही था इसलिए वो एक तरफ छत की दीवार से टेक लगाए बैठी थी और सबको देख रही थी. तभी वो छत पर आया.
"तू भी खेलेगा?" ठाकुर ने उससे पुछा तो उसने इनकार में गर्दन हिला दी और सीधा आकर ठकुराइन के पास बैठ गया.
ठकुराइन ने अपनी नज़र दूसरी तरफ घुमा ली. उस रात के बाद वो अब तक उससे नज़र नही मिला पाई थी.
वो सीधा आकर उनकी बगल में बैठ गया और जो कंबल ठकुराइन ने ओढ़ रखा था वही कंबल अपनी टाँगो पर डालकर दीवार से टेक लगाके बैठ गया. वो ठकुराइन के बिल्कुल नज़दीक बैठा था पर वो जानकर दूसरी तरफ देखने का नाटक कर रही थी.
अंधेरी रात थी और छत पर सिर्फ़ उस वक़्त एक लालटेन जल रही थी जिसकी रोशनी में पत्ते खेले जा रहे थे. ठकुराइन और वो लड़के दूसरो से थोड़ा हटके एक तरफ बैठे थे जिसकी वजह से वो दोनो तकरीबन अंधेरे में ही थे.
ठकुराइन अपनी सोच में ही गुम थी के उन्हें अपने पावं पर कुच्छ महसूस हुआ. उन्होने नज़र घूमकर देखा तो दिल धड़क उठा. पहले वो थोड़ा सा फासला बना कर बैठा था पर अब खिसक कर बिल्कुल ठकुराइन के करीब आ चुका था और कंबल के अंदर अपना पावं ठकुराइन के पावं पर रगड़ रहा था.
ठकुराइन ने घूर कर उसकी तरफ देखा और दूर खिसकने लगी के तभी उसने उनका हाथ पकड़ लिया और अगले पल वो किया जो ठकुराइन ने अपने सपनो में भी नही सोचा था.
उसने कंबल के अंदर अपना पाजामा खिसका कर नीचे कर रखा था और ठकुराइन का हाथ पकड़ कर सीधा अपने नंगे लंड पर रख दिया.
सरिता देवी को जैसे 1000 वॉट का झटका लगा. उन्हें समझने में एक सेकेंड नही लगा के चादर के अंदर उनके हाथ में क्या था. उन्होने अपना हाथ वापिस खींचने की कोशिश की पर लड़के ने उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और ज़बरदस्ती उनकी मुट्ठी अपने लंड पर बंद कर रखी थी.
सरिता देवी ने ताक़त लगाकर हाथ वापिस लेने की कोशिश की. लड़के ने भी पूरी ताक़त से उनका हाथ अपने लंड पर पकड़े रखा, इसी खींचा-तानी में ठाकुर की नज़र उन दोनो पर पड़ गयी.
"अर्रे दोनो माँ बेटे क्या आपस में लड़ रहे हो?" उन्होने हॅस्कर पुछा
"नही बस बात कर रहे हैं" ठकुराइन ने भी ऐसे ही ठंडी आवाज़ बनाकर कहा.
ठाकुर के देखने की वजह से ठकुराइन को अपना हाथ खींचने की कोशिश बंद करनी पड़ी. उनका हाथ ढीला पड़ते ही लड़के ने उसे अपने लंड पर उपेर नीचे करना शुरू कर दिया.
"मत कर" ठकुराइन ने कहा "कोई देख लेगा"
वो लड़का नही माना और ऐसे ही उनका हाथ अपने लंड पर उपेर नीचे करता रहा. वो अपने हाथ से ठकुराइन के हाथ को अपने लंड पर बंद करके मुट्ठी मार रहा था.
"भगवान के लिए मान जा. किसी ने देख लिया तो ग़ज़ब हो जाएगा" ठकुराइन ने फिर कोशिश की
वो फिर भी नही माना और ऐसे ही उनका हाथ अपने लंड पर उपेर नीचे करता रहा. अंधेरा होने की वजह से उनकी ये हरकत किसी को नज़र नही आ रही थी. लड़का वैसे ही ठकुराइन के हाथ को उपेर नीचे करता रहा और अपने हाथ में ठकुराइन को उसका लंड खड़ा होता महसूस होने लगा. धीरे धीरे पूरा लंड सख़्त हो गया और ठकुराइन के हाथ में कस गया.
एक पल के लिए ठकुराइन के दिमाग़ में वो नज़ारा याद आया जब वो नंगी बैठी इसी लंड को चूस रही थी.
ये ख्याल दिमाग़ में आते ही जैसे बेध्यानी में उनकी मुट्ठी लंड पर कस गयी. उनके ऐसा करते ही लड़के ने अपना हाथ उनके हाथ से हटा लिया पर ठकुराइन अब भी उसके लंड को वैसे ही हिलाती रही. उन्हें इस बात का एहसास ही नही हुआ के अब वो खुद उसका लंड हिला रही हैं, वो तो कबका अपना हाथ हटा चुका था.
धीरे धीरे उसका लंड फूलने लगा और उसकी तेज़ होती साँस से ठकुराइन को अंदाज़ा हो गया के वो छूटने वाला है.
उन्होने अपना हाथ हिलाना और तेज़ कर दिया. उनका पूरा हाथ कंबल के अंदर उसके लंड को जकड़े हुए थे और पूरी तेज़ी से उपेर नीचे जा रहा था.
और फिर अचानक उस लड़के के जिस्म ने झटका खाया और ठकुराइन के हाथ में कुच्छ गीला गीला आ गया. वो जानती थी के उस लड़के का काम हो चुका था और उनके हाथ में अब क्या था.
एक पल के लिए उन्हें वो वक़्त याद आया जब यही चीज़ उनके हाथ के बजाय उनके मुँह में थी और कुच्छ उन्होने अंजाने में निगल भी ली थी.
ठकुराइन तब तक लंड को हिलाती रही जब तक के वो बैठकर सिकुड गया और ठकुराइन के हाथ से अपने आप ही छूट गया. तब ठकुराइन को एहसास हुआ के इतनी देर से वो खुद ही लंड हिलाए जा रही थी. लड़का तो आँखें बंद किए बैठा था. उन्होने एक नज़र उसके चेहरे पर डाली. लड़के ने भी अपनी आँखें खोली और ठकुराइन से नज़र मिलाई.
वो दोनो अच्छी तरह से जानते थे के आज हर पुराना रिश्ता तोड़कर उनके बीच एक नया रिश्ता जनम ले चुका था.
ठाकुर उस दिन ठकुराइन को अपने आम का बाग दिखाने लाए थे. 2 गाड़ियाँ थी. एक में ठाकुर और ठकुराइन जिसे खुद ठाकुर चला रहे थे और दूसरी में वो लड़का और कुच्छ नौकर और 3 नौकर थे.
अगले एक घंटे तक ठाकुर ठकुराइन को बड़े शौक ने अपना नया खरीदा आम का बाग दिखाते रहे. ठकुराइन ने कई बार महसूस किया के वो लड़का सबकी नज़र बचा कर बार बार ठकुराइन की तरफ देख रहा था पर वो जब भी पलट कर उसकी तरफ देखती तो वो नज़र घुमा लेता था.
"मुझे प्यास लगी है" काफ़ी देर तक घूमने के बाद ठकुराइन ने कहा.
"पानी की बॉटल?" ठाकुर ने एक नौकर से पुछा
"वो गाड़ी में ही रखी है मालिक" नौकर ने कहा "मैं अभी ले आता हूँ"
नौकर जाने के लिए मुड़ा ही था के अचानक उस लड़के ने उसको रोक दिया.
"यहाँ नज़दीक में ही एक हॅंड-पंप लगा है. वहाँ चलते हैं" उसने कहा
"हां आप वहाँ जाकर पानी पी लीजिए. नलके का पानी अच्छा ताज़ा भी होगा" ठाकुर ने ठकुराइन से कहा
लकड़े ने ठकुराइन को साथ चलने का इशारा किया. वो एक पल के लिए सोच में पड़ गयी. उसके साथ अकेले जाने में वो झिझक रही थी पर इस वक़्त कुच्छ कर नही सकती थी. क्या कहती ठाकुर और नौकरों से के क्यूँ उसके साथ जाना नही चाहती. वो तो उनका खुद का ...क्रमशः........................................