hotaks444
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --31
गतान्क से आगे........................
बिंदिया को उसकी बात सुनकर हैरत हुई. उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था के उसको पूरा यकीन था के ख़ान उसे चोदना चाहता है.
"बैठ जाओ" ख़ान ने दोबारा कहा तो हैरानी में बिंदिया फिर कुर्सी पर बैठ गयी.
"अपना पल्लू ठीक करो" बिंदिया के अब तक नीचे गिरे पल्लू की तरफ देखते हुए ख़ान ने इशारा किया. बिंदिया ने पल्लू उठाकर फिर अपने कंधे पर रख लिया.
"जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुच्छ नही है" ख़ान बोला "मैं तुम पर ज़ोर इसलिए नही डाल रहा था के मैं तुम्हारे साथ सोना चाहता हूँ. मैं सिर्फ़ अपना काम कर रहा हूँ. सिर्फ़ अपनी तसल्ली कर लेना चाहता हूँ के ठाकुर साहब का खून जै ने ही किया है"
बिंदिया अब तक संभाल चुकी थी. उसने अब अपना पल्लू अच्छे से ठीक करके अपनी छातियो को पूरी तरह ढक लिया था.
"और आपको ऐसा क्यूँ लगता है के मैं कुच्छ जानती हूँ जो आपको बता नही रही" वो नज़र नीची किए बोली
"नही जानता" ख़ान ने जवाब दिया "पर एक हल्का सा शक है"
"ठीक है" बिंदिया ने उससे नज़र मिलाई "कहिए क्या जानना चाहते हैं"
ख़ान ने डाइयरी में लिखना शुरू किया.
"पहले तो तुम ये जान लो के तुम यहाँ जो कहोगी उसमें तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा. मैं ये अच्छी तरह से समझता हूँ के तुम सिर्फ़ एक नौकरानी हो और अगर ठाकुरों को पता चला के तुमने उनके खिलाफ कुच्छ कहा है तो तुम्हें मरने में घंटे से ज़्यादा नही लगेगा. इसलिए इस बात की दुहाई देने की ज़रूरत तुम्हें नही है. मैं खुद इस बात की तसल्ली देता हूँ के तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा.
"और आपको ये क्यूँ लगता है के मैं खुद भी ठाकुरों के खिलाफ जाना चाहूँगी?"
"क्यूंकी अगर तुम नही गयी तो मैं तुम्हारी इज़्ज़त पूरे गाओं में उच्छाल दूँगा" ख़ान का अब तक का नाराज़ लहज़ा सख़्त हो चला.
थोड़ी देर तक दोनो खामोश रहे.
"तो शुरू करते हैं" ख़ान ने कहा "ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"मालिक और नौकर का" बिंदिया ने जवाब दिया
ख़ान एक पल के लिए रुका और अपना सवाल फिर दोहराया.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"कहा तो" बिंदिया हैरत से बोली "मालिक और नौकर का"
फिर एक पल के लिए खामोशी.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?" ख़ान ने फिर वही बात पुछि.
"मालिक और नौकर का" इस बार बिंदिया झुंझला पड़ी
ख़ान के चेहरे के भाव ज़रा भी नही बदले.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"ठीक है ठीक है" बिंदिया बोली "सोई थी मैं उनके साथ. उनकी बीवी किसी काम की नही थी. जब उन्होने इशारा किया तो मैने पहले तो मना किया पर फिर बाद में उनके दबाव डालने पर मैने हां कर दी"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. ख़ान को जैसे अपने दोनो सवालों का जवाब मिल गया था.
अब पता था के मरने से पहले ठाकुर किसके साथ सोया था.
और अब समझ आ गया था के क्यूँ ठाकुर अपनी जायदाद का कुच्छ हिस्सा बिंदिया की बेटी के नाम कर गया था.
.........................
ठाकुर बिंदिया के साथ उसकी पुरानी झोपड़ी में दाखिल हुए. यही वो झोपड़ी थी जहाँ बिंदिया पहले अपनी पति के साथ और उसके बाद पायल और चंदू के साथ रहती थी.
जो कभी उसका घर हुआ करता था आज एक पुरानी उजाड़ पड़ी झोपड़ी थी. अंधार आकर ठाकुर ने झोपड़ी का पूरा दरवाज़ा बंद किया और बिंदिया की तरफ देखा. वो इशारा समझ गयी और अपनी सलवार उतारने लगी.
ये हर आए दिन होता था. जिस दिन ठाकुर मूड में होते, वो बिंदिया को इशारा कर देते. उसके बाद बिंदिया हवेली से कुच्छ समान खरीदने के बहाने निकलती, फिर एक सुनसान जगह से ठाकुर उसको अपनी गाड़ी में बैठाते, और फिर दोनो यहाँ आकर अपनी जिस्म की गर्मी निकलते.
दोपहर के वक़्त खेतों पर काम करने वेल सारे नौकर अपने घर खाने के लिए चले जाते थे और इसी वक़्त ठाकुर बिंदिया के साथ सबकी नज़र बचाकर उसको यहाँ ले आते.
दिन के वक़्त यहाँ किसी के देख लेने का ख़तरा हमेशा बना रहता था इसलिए दोनो उतने ही कपड़े उतारते जीतने के ज़रूरी थे. उस दिन भी बिंदिया ने अपनी सलवार उतारी और अपने साथ लाई एक चादर नीचे बिच्छा दी. ठाकुर पाजामा उतारकर चादर पर नीचे लेट गये.
बिंदिया आकर ठाकुर के बगल में बैठ गयी. अपने बाल उसने सिर के पिछे जूड़ा बनाकर बाँधे और ठाकुर के कुर्ते का पल्लू उठाकर उपेर किया.
लंड पूरी तरह खड़ा जैसे बिंदिया के सम्मान में सलामी दे रहा था.
उसने धीरे से लंड को अपने हाथ में पकड़ा और उपेर से नीचे तक सहलानी लगी. ठाकुर चुप चाप आँखें बंद किए लेटे थे. ज़्यादातर वक़्त ऐसा ही होता था के वो आराम से लेट जाते थे और सारा काम बिंदिया को करने देते थे. बिंदिया को ये पसंद भी था. वो उन औरतों में से थी जो बिस्तर पर चीज़ें मर्द के बजाय खुद अपने काबू में रखना चाहती हैं, सब खुद करना चाहती है और ठाकुर उसको इस बात का पूरा पूरा मौका देते थे.
थोड़ी देर लंड को यूँ ही सहलाने के बाद बिंदिया नीचे को झुकी, अपना मुँह खोला और लंड पूरा अपने हलक तक अंदर ले लिया.
"आआहह" ठाकुर के मुँह से आह निकली.
बिंदिया ने गीला लंड अपने मुँह से निकाला, हाथ एक बार उपेर से नीचे तक लंड पर रगड़ा और फिर अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
"जैसा तू चूस्ति है ना बिंदिया, कसम से आज तक किसी ने नही चूसा" ठाकुर ने उसके बाल पकड़ते हुए कहा.
और जो बिंदिया जो शुरू हुई तो रुकी नही. उसका सिर्फ़ लगातार उपेर नीचे होता रहा और हाथ नीचे से कभी लंड को रगड़ता तो कभी ठाकुर के टट्टों को सहलाता. कभी वो लंड को अपने हालत तक अंदर लेके चूस्ति तो कभी जीभ निकालकर चाटने लगती.
"बस बस" भारी होती साँसों के बीच ठाकुर ने कहा "आअज़ा अब"
बिंदिया ने अपने खुल चुके बालों को एक बार फिर सर के पिछे बँधा और अपनी कमीज़ का पल्लू उठाकर ठाकुर के उपेर आकर बैठ गयी. खड़ा लंड सीधा चूत पर आ लगा पर अंदर घुसने की बजाय फिसलकर साइड हो गया.
बिंदिया ने हाथ नीचे घुसाया, लंड को पकड़कर अपनी चूत पर फिर रखा और धीरे से नीचे बैठ गयी.
"आआहह बिंदिया. पक्की रांड़ है तू" ठाकुर ने कमीज़ के उपेर से ही उसकी चूचियाँ पकड़ ली.
"बोलते रहिए मालिक" बिंदिया ने कहा. जब ठाकुर उसको इस तरह बिस्तर पर गालियाँ देते तो उसे बहुत मज़ा आता था.
"रंडी है तू ... साली छिनाल ... जाने कितने लंड खा चुकी है आज तक पर चूत आज भी 16 साल की लड़की जैसी टाइट है ......."
और फिर उस झोपड़ी में गालियों और वासना का एक तूफान सा उठ गया. बिंदिया ने अपने दोनो हाथ ठाकुर के सर के पास नीचे रखे और झुक कर लंड चूत में अंदर बाहर करने लगी.
ठाकुर का एक हाथ उसकी चूचियाँ दबा रहा था जबकि दूसरा धीरे से नीचे उसकी गांद पर गया और ठाकुर की एक अंगुली उसकी गांद के अंदर घुस गयी.
बिंदिया उपेर नीचे होती रही, ठाकुर की अंगुली उसकी गांद में अंदर बाहर होती रही.
"रांड़ साली बेहेन्चोद, च्चिनाल, बस इतना ही दम है तेरी चूत में ... पूरा अंदर ले ... हां ऐसे ही ....."
अगले 15 मिनट तक ठाकुर की ऐसी आवाज़ों से झोपड़ी गूँज सी उठी
ख़ान बैठा हुआ बिंदिया की तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसने किसी बिल्ली को छीके से दूध चुराते पकड़ लिया हो.
"कबकि बात है ये?" उसने बिंदिया से पुछा
"मालिक के मरने से एक दिन पहले की" बिंदिया बोली
"क्या ये रोज़ का खेल था क्या?"
"ठाकुर साहब की मर्ज़ी पर था. कभी कभी तो कयि दिन तक रोज़ ही होता था और कभी कभी हफ़्तो कुच्छ नही" बिंदिया नज़र झुकाए बैठी थी.
"तो उनके मरने वाले दिन फिर से सोई थी तुम उनके साथ?"
बिंदिया ने इनकार में गर्दन हिलाई.
"मतलब ये आखरी बार था?"
बिंदिया ने हां में सर हिलाया.
"ह्म्म्म्मम" ख़ान ने कुच्छ परेशान सा होते हुए कहा.
"और कुच्छ जानती हो ऐसा जो मुझे बता सको?" ख़ान बोला
"कसम भगवान की साहब" बिंदिया अपने सर पर हाथ रख कर बोली "बस यही एक बात थी जो मैं आपसे छुपा रही थी और मैं क्या, कोई भी होती तो छुपाती. और कोई बात नही है"
उसके बाद ख़ान कुच्छ देर और बिंदिया से इधर उधर के सवाल पुछ्ता रहा पर कुच्छ ऐसा हाथ नही लगा जिससे मदद मिलती.
"ठीक है तुम जाओ" उसने आख़िर अपनी डाइयरी बंद करते हुए कहा
"आप किसी से ये बात कहेंगे तो नही ना?" बिंदिया ने भारी आँखों से ख़ान को देखते हुए कहा.
ख़ान ने नही में सर हिलाया.
"वादा?" बिंदिया ने पुछा
"पठान की ज़ुबान" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला.
बिंदिया उठकर खड़ी हुई. बहते हुए उसने अपना पल्लू ऐसे ही कंधे पर रखा हुआ था जो उसके उठते ही फिसल कर नीचे गिर पड़ा.
ट्रॅन्स्परेंट ब्लाउस में उसकी खड़ी चूचियाँ एक बार फिर ख़ान की नज़रों के सामने आ गयी. उसने 2 पल के लिए बिंदिया की चूचियो की तरफ घूरा और जब बिंदिया ने अपना पल्लू सीधा कर लिया तो दोनो की नज़रें मिली.
बिंदिया को देख कर जाने क्यूँ ख़ान को ऐसा लगा के वो जान भुजकर फिर उसको अपनी चूचियाँ दिखा रही थी. उसका दिल किया के उठकर बिंदिया को वहीं झुका ले पर फिर अपने उपेर काबू कर लिया.
क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
बिंदिया को उसकी बात सुनकर हैरत हुई. उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था के उसको पूरा यकीन था के ख़ान उसे चोदना चाहता है.
"बैठ जाओ" ख़ान ने दोबारा कहा तो हैरानी में बिंदिया फिर कुर्सी पर बैठ गयी.
"अपना पल्लू ठीक करो" बिंदिया के अब तक नीचे गिरे पल्लू की तरफ देखते हुए ख़ान ने इशारा किया. बिंदिया ने पल्लू उठाकर फिर अपने कंधे पर रख लिया.
"जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुच्छ नही है" ख़ान बोला "मैं तुम पर ज़ोर इसलिए नही डाल रहा था के मैं तुम्हारे साथ सोना चाहता हूँ. मैं सिर्फ़ अपना काम कर रहा हूँ. सिर्फ़ अपनी तसल्ली कर लेना चाहता हूँ के ठाकुर साहब का खून जै ने ही किया है"
बिंदिया अब तक संभाल चुकी थी. उसने अब अपना पल्लू अच्छे से ठीक करके अपनी छातियो को पूरी तरह ढक लिया था.
"और आपको ऐसा क्यूँ लगता है के मैं कुच्छ जानती हूँ जो आपको बता नही रही" वो नज़र नीची किए बोली
"नही जानता" ख़ान ने जवाब दिया "पर एक हल्का सा शक है"
"ठीक है" बिंदिया ने उससे नज़र मिलाई "कहिए क्या जानना चाहते हैं"
ख़ान ने डाइयरी में लिखना शुरू किया.
"पहले तो तुम ये जान लो के तुम यहाँ जो कहोगी उसमें तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा. मैं ये अच्छी तरह से समझता हूँ के तुम सिर्फ़ एक नौकरानी हो और अगर ठाकुरों को पता चला के तुमने उनके खिलाफ कुच्छ कहा है तो तुम्हें मरने में घंटे से ज़्यादा नही लगेगा. इसलिए इस बात की दुहाई देने की ज़रूरत तुम्हें नही है. मैं खुद इस बात की तसल्ली देता हूँ के तुम्हारा नाम कहीं नही आएगा.
"और आपको ये क्यूँ लगता है के मैं खुद भी ठाकुरों के खिलाफ जाना चाहूँगी?"
"क्यूंकी अगर तुम नही गयी तो मैं तुम्हारी इज़्ज़त पूरे गाओं में उच्छाल दूँगा" ख़ान का अब तक का नाराज़ लहज़ा सख़्त हो चला.
थोड़ी देर तक दोनो खामोश रहे.
"तो शुरू करते हैं" ख़ान ने कहा "ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"मालिक और नौकर का" बिंदिया ने जवाब दिया
ख़ान एक पल के लिए रुका और अपना सवाल फिर दोहराया.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"कहा तो" बिंदिया हैरत से बोली "मालिक और नौकर का"
फिर एक पल के लिए खामोशी.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?" ख़ान ने फिर वही बात पुछि.
"मालिक और नौकर का" इस बार बिंदिया झुंझला पड़ी
ख़ान के चेहरे के भाव ज़रा भी नही बदले.
"ठाकुर से तुम्हारा क्या रिश्ता था?"
"ठीक है ठीक है" बिंदिया बोली "सोई थी मैं उनके साथ. उनकी बीवी किसी काम की नही थी. जब उन्होने इशारा किया तो मैने पहले तो मना किया पर फिर बाद में उनके दबाव डालने पर मैने हां कर दी"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. ख़ान को जैसे अपने दोनो सवालों का जवाब मिल गया था.
अब पता था के मरने से पहले ठाकुर किसके साथ सोया था.
और अब समझ आ गया था के क्यूँ ठाकुर अपनी जायदाद का कुच्छ हिस्सा बिंदिया की बेटी के नाम कर गया था.
.........................
ठाकुर बिंदिया के साथ उसकी पुरानी झोपड़ी में दाखिल हुए. यही वो झोपड़ी थी जहाँ बिंदिया पहले अपनी पति के साथ और उसके बाद पायल और चंदू के साथ रहती थी.
जो कभी उसका घर हुआ करता था आज एक पुरानी उजाड़ पड़ी झोपड़ी थी. अंधार आकर ठाकुर ने झोपड़ी का पूरा दरवाज़ा बंद किया और बिंदिया की तरफ देखा. वो इशारा समझ गयी और अपनी सलवार उतारने लगी.
ये हर आए दिन होता था. जिस दिन ठाकुर मूड में होते, वो बिंदिया को इशारा कर देते. उसके बाद बिंदिया हवेली से कुच्छ समान खरीदने के बहाने निकलती, फिर एक सुनसान जगह से ठाकुर उसको अपनी गाड़ी में बैठाते, और फिर दोनो यहाँ आकर अपनी जिस्म की गर्मी निकलते.
दोपहर के वक़्त खेतों पर काम करने वेल सारे नौकर अपने घर खाने के लिए चले जाते थे और इसी वक़्त ठाकुर बिंदिया के साथ सबकी नज़र बचाकर उसको यहाँ ले आते.
दिन के वक़्त यहाँ किसी के देख लेने का ख़तरा हमेशा बना रहता था इसलिए दोनो उतने ही कपड़े उतारते जीतने के ज़रूरी थे. उस दिन भी बिंदिया ने अपनी सलवार उतारी और अपने साथ लाई एक चादर नीचे बिच्छा दी. ठाकुर पाजामा उतारकर चादर पर नीचे लेट गये.
बिंदिया आकर ठाकुर के बगल में बैठ गयी. अपने बाल उसने सिर के पिछे जूड़ा बनाकर बाँधे और ठाकुर के कुर्ते का पल्लू उठाकर उपेर किया.
लंड पूरी तरह खड़ा जैसे बिंदिया के सम्मान में सलामी दे रहा था.
उसने धीरे से लंड को अपने हाथ में पकड़ा और उपेर से नीचे तक सहलानी लगी. ठाकुर चुप चाप आँखें बंद किए लेटे थे. ज़्यादातर वक़्त ऐसा ही होता था के वो आराम से लेट जाते थे और सारा काम बिंदिया को करने देते थे. बिंदिया को ये पसंद भी था. वो उन औरतों में से थी जो बिस्तर पर चीज़ें मर्द के बजाय खुद अपने काबू में रखना चाहती हैं, सब खुद करना चाहती है और ठाकुर उसको इस बात का पूरा पूरा मौका देते थे.
थोड़ी देर लंड को यूँ ही सहलाने के बाद बिंदिया नीचे को झुकी, अपना मुँह खोला और लंड पूरा अपने हलक तक अंदर ले लिया.
"आआहह" ठाकुर के मुँह से आह निकली.
बिंदिया ने गीला लंड अपने मुँह से निकाला, हाथ एक बार उपेर से नीचे तक लंड पर रगड़ा और फिर अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
"जैसा तू चूस्ति है ना बिंदिया, कसम से आज तक किसी ने नही चूसा" ठाकुर ने उसके बाल पकड़ते हुए कहा.
और जो बिंदिया जो शुरू हुई तो रुकी नही. उसका सिर्फ़ लगातार उपेर नीचे होता रहा और हाथ नीचे से कभी लंड को रगड़ता तो कभी ठाकुर के टट्टों को सहलाता. कभी वो लंड को अपने हालत तक अंदर लेके चूस्ति तो कभी जीभ निकालकर चाटने लगती.
"बस बस" भारी होती साँसों के बीच ठाकुर ने कहा "आअज़ा अब"
बिंदिया ने अपने खुल चुके बालों को एक बार फिर सर के पिछे बँधा और अपनी कमीज़ का पल्लू उठाकर ठाकुर के उपेर आकर बैठ गयी. खड़ा लंड सीधा चूत पर आ लगा पर अंदर घुसने की बजाय फिसलकर साइड हो गया.
बिंदिया ने हाथ नीचे घुसाया, लंड को पकड़कर अपनी चूत पर फिर रखा और धीरे से नीचे बैठ गयी.
"आआहह बिंदिया. पक्की रांड़ है तू" ठाकुर ने कमीज़ के उपेर से ही उसकी चूचियाँ पकड़ ली.
"बोलते रहिए मालिक" बिंदिया ने कहा. जब ठाकुर उसको इस तरह बिस्तर पर गालियाँ देते तो उसे बहुत मज़ा आता था.
"रंडी है तू ... साली छिनाल ... जाने कितने लंड खा चुकी है आज तक पर चूत आज भी 16 साल की लड़की जैसी टाइट है ......."
और फिर उस झोपड़ी में गालियों और वासना का एक तूफान सा उठ गया. बिंदिया ने अपने दोनो हाथ ठाकुर के सर के पास नीचे रखे और झुक कर लंड चूत में अंदर बाहर करने लगी.
ठाकुर का एक हाथ उसकी चूचियाँ दबा रहा था जबकि दूसरा धीरे से नीचे उसकी गांद पर गया और ठाकुर की एक अंगुली उसकी गांद के अंदर घुस गयी.
बिंदिया उपेर नीचे होती रही, ठाकुर की अंगुली उसकी गांद में अंदर बाहर होती रही.
"रांड़ साली बेहेन्चोद, च्चिनाल, बस इतना ही दम है तेरी चूत में ... पूरा अंदर ले ... हां ऐसे ही ....."
अगले 15 मिनट तक ठाकुर की ऐसी आवाज़ों से झोपड़ी गूँज सी उठी
ख़ान बैठा हुआ बिंदिया की तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसने किसी बिल्ली को छीके से दूध चुराते पकड़ लिया हो.
"कबकि बात है ये?" उसने बिंदिया से पुछा
"मालिक के मरने से एक दिन पहले की" बिंदिया बोली
"क्या ये रोज़ का खेल था क्या?"
"ठाकुर साहब की मर्ज़ी पर था. कभी कभी तो कयि दिन तक रोज़ ही होता था और कभी कभी हफ़्तो कुच्छ नही" बिंदिया नज़र झुकाए बैठी थी.
"तो उनके मरने वाले दिन फिर से सोई थी तुम उनके साथ?"
बिंदिया ने इनकार में गर्दन हिलाई.
"मतलब ये आखरी बार था?"
बिंदिया ने हां में सर हिलाया.
"ह्म्म्म्मम" ख़ान ने कुच्छ परेशान सा होते हुए कहा.
"और कुच्छ जानती हो ऐसा जो मुझे बता सको?" ख़ान बोला
"कसम भगवान की साहब" बिंदिया अपने सर पर हाथ रख कर बोली "बस यही एक बात थी जो मैं आपसे छुपा रही थी और मैं क्या, कोई भी होती तो छुपाती. और कोई बात नही है"
उसके बाद ख़ान कुच्छ देर और बिंदिया से इधर उधर के सवाल पुछ्ता रहा पर कुच्छ ऐसा हाथ नही लगा जिससे मदद मिलती.
"ठीक है तुम जाओ" उसने आख़िर अपनी डाइयरी बंद करते हुए कहा
"आप किसी से ये बात कहेंगे तो नही ना?" बिंदिया ने भारी आँखों से ख़ान को देखते हुए कहा.
ख़ान ने नही में सर हिलाया.
"वादा?" बिंदिया ने पुछा
"पठान की ज़ुबान" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला.
बिंदिया उठकर खड़ी हुई. बहते हुए उसने अपना पल्लू ऐसे ही कंधे पर रखा हुआ था जो उसके उठते ही फिसल कर नीचे गिर पड़ा.
ट्रॅन्स्परेंट ब्लाउस में उसकी खड़ी चूचियाँ एक बार फिर ख़ान की नज़रों के सामने आ गयी. उसने 2 पल के लिए बिंदिया की चूचियो की तरफ घूरा और जब बिंदिया ने अपना पल्लू सीधा कर लिया तो दोनो की नज़रें मिली.
बिंदिया को देख कर जाने क्यूँ ख़ान को ऐसा लगा के वो जान भुजकर फिर उसको अपनी चूचियाँ दिखा रही थी. उसका दिल किया के उठकर बिंदिया को वहीं झुका ले पर फिर अपने उपेर काबू कर लिया.
क्रमशः........................................