hotaks444
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --43
गतान्क से आगे........................
अगली रात एक बार फिर कल्लो और रूपाली बिस्तर में पूरी तरह नंगे लिपटे पड़े थे.
"नही अंगुली मत डालना, बहुत दर्द हुआ था कल रात" रूपाली ने कल्लो का हाथ पकड़ते हुए कहा
"मज़ा नही आया था?" कल्लो शरारत से मुस्कुराते हुए बोली. रूपाली ने शर्मा कर अपनी आँखें घुमा ली.
"अब कैसी शरम मेमसाहिब" कल्लो ने उसकी एक छाती को चूमते हुए कहा "नंगी पड़ी हो मेरे साथ, शरम हया तो बहुत पिछे छूट गयी. बताओ ना, मज़ा नही आया था?"
"हां" रूपाली शरमाते हुए बोली "पर दर्द भी बहुत ज़्यादा हुआ था"
"शुरू शुरू में होता है पर फिर बाद में बिल्कुल नही होता और सिर्फ़ मज़ा आता है" कहते हुए कल्लो ने अपना हाथ छुड़ाया और एक बार फिर रूपाली की जांघों के बीच ले जाकर अपनी बीच की अंगुली धीरे से चूत के अंदर खिसका दी.
"आआईइ" रूपाली के मुँह से निकला "बस एक ही रखना, दूसरी मत डालना"
कल्लो ने खामोशी से अंगुली को चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया
"मज़ा आ रहा है?"
रूपाली ने हां में सर हिला दिया. अचानक से कल्लो ने अंगुली फिर बाहर निकाल ली.
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"कल रात से मैं ही सब कुच्छ कर रही हूँ और आप आराम से मज़े ले रही हो. अब आप उपेर आओ" कहते हुए कल्लो बिस्तर पर लेट गयी.
"पर मुझे पता नही के क्या करना है"
"मैं बताती हूँ. यहाँ आओ"
कल्लो ने रूपाली को अपनी बाहों में भर कर धीरे से उपेर खींच लिया. वो आधी बिस्तर पर और आधी कल्लो के उपेर आ गयी.
"अब जैसे मैं आपके चूस्ति हूँ, वैसे ही आप मेरे चूसो"
रूपाली ने धीरे से अपना मुँह खोला और कल्लो का एक निपल अपने मुँह में लेकर धीरे धीरे चूसने लगी. उसे खुद को हैरानी थी के वो काम जिसके करने का सोचके ही उसको उल्टी आ जाती थी, अब उसकी काम को वो आराम से कर रही थी, और मज़े भी ले रही थी"
रूपाली बारी बारी उसके दोनो निपल्स चूस रही थी और कल्लो मज़े में आहें भर रही थी. उसने एक हाथ से रूपाली का सर पकड़ कर अपनी छाती पर दबाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से से रूपाली का हाथ पकड़ कर अपनी टाँगों के बीच ले जाना शुरू कर दिया.
कुच्छ पल बाद ही रूपाली को अपने हाथ पर कुच्छ गीला गीला महसूस हुआ.
"ये क्या हुआ?" उसने कल्लो से पुछा
"अपनी पे हाथ लगाकर देखो" कल्लो बोली तो रूपाली ने हाथ उसकी चूत से हटाकर अपनी चूत पर रखा. उसकी चूत भी उतनी ही गीली थी जितनी कल्लो की.
"ये क्या है" उसने फिर पुछा
"बिस्तर पर जब औरत गरम होती है तो ऐसा हो जाता है"
"क्यूँ?"
"जोश में हो जाता है, ताकि मर्द का लंड आराम से अंदर घुस सके"
लंड शब्द सुनते ही रूपाली के गाल लाल हो गये. कल्लो ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख दिया.
"अंगुली डालो अंदर" कल्लो ने कहा. रूपाली तो जैसे इशारे का इंतेज़ार ही कर रही थी. उसने फ़ौरन एक अंगुली उसकी चूत के अंदर कर दी.
"दूसरी" कल्लो ने कहा और एक और अंगुली चूत के अंदर जा घुसी.
"तीन" कल्लो बोली तो रूपाली हैरानी से उसको देखने लगी. जहाँ 2 अंगुलियों में उसकी हालत खराब हो जाती थी वहाँ कल्लो 3 अँगुलिया अंदर घुसाने की बात कर रही थी.
कल्लो ने उसको अपनी तरफ देखते पाया तो हस्ने लगी.
"अर्रे आप कच्ची हो अभी इसलिए तकलीफ़ होती है. मैने तो घाट घाट का पानी पी रखा है. 3 क्या मैं आपका पूरा हाथ अंदर ले लूँ"
"घाट घाट का पानी मतलब?"
"मतलब लंड. पता नही कितने अंदर जाकर ख़तम हो गये" कल्लो ने रूपाली को देख कर आँख मारी
रूपाली कुच्छ कहने ही लगी थी के चुप हो गयी.
"क्या हुआ?" कल्लो बोली
"इसी को गांद मारना कहते हैं?" रूपाली ने झिझकते हुए पुच्छ लिया.
कल्लो उसकी बात पर ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"हस क्यूँ रही है?" रूपाली ने पुछा
"अरे मेरी गुड़िया रानी ये चूत है तो इसको चूत मारना कहते हैं. या चोदना कहते हैं"
"ओह" रूपाली ने समझते हुए कहा. तभी उसको कल्लो का एक हाथ अपनी कमर पर महसूस हुआ जो धीरे धीरे नीचे को फिसलता हुआ उसकी गांद पर आया.
"अगर मर्द यहाँ पिछे से घुसाए तो उसको गांद मारना कहते हैं"
रूपाली हैरत से उसको देखने लगी.
"यहाँ भी?"
"और नही तो क्या" कल्लो ने कहा
"यहाँ भी मज़ा आता है?"
"औरत औरत की बात होती है. कुच्छ को आता है और कुच्छ को बिल्कुल नही. कुच्छ औरतें एक चूत में लेकर ही काम चलाती हैं और कुच्छ तीनो जगह"
"तीनो?"
"हां. आगे, पीछे और मुँह में"
"मुँह में? यूक्ककककककक. उसमें क्या मज़ा?"
"जब लोगि तो पता चलेगा"
"छ्ह्ह्हीईइ .... कितना गंदा होगा ... मैं तो कभी ना लूं"
उसकी बात सुनकर कल्लो एक पल किए लिए खामोश हो गयी और कुच्छ सोचने लगी.
"क्या सोच रही है?"
"सोच रही हूँ के हम एक दूसरे के साथ आपस मैं हैं तो पर असली मज़ा नही आता"
"असली मज़ा?"
"हां. जो किसी मर्द के साथ में आता है. अगर यहाँ बिस्तर पर कोई एक मर्द हमारे साथ हो तो मज़ा आ जाए"
रूपाली शर्मा गयी.
"तेरा दिमाग़ खराब हो गया है? पापा को पता चला तो जान से मार देंगे"
"अर्रे पता चलेगा तब ना. आप इशारा करो. मैं कर देती हूँ इंटेज़ाम. फिर आप देख लेना के मुँह में ले पओगि या नही" कल्लो ने किसी लोमड़ी की तरह मुस्कुराते हुए कहा
"किसकी बात कर रही है?"
"शंभू"
"शंभू काका के साथ. कभी नही"
अगले एक घंटे तक कल्लो रूपाली को यही समझाती रही के शंभू काका के साथ बिस्तर पर जाने में कोई ग़लत नही है. वो घर के हैं और घर की बात घर में रह जाएगी, किसी को भी पता नही चलेगा. वो रूपाली जिसने पहले एकदम इनकार कर दिया था सोचने पर मजबूर हो गयी.
"ठीक है मैं सोचके बताऊंगी. मुझे बहुत शरम आती है"
और अगले ही दिन वो हुआ जिसने रूपाली के पावं के नीचे से ज़मीन सरका दी. वो अपने कमरे से निकल कर कुच्छ खाने को ढूँढती किचन की तरफ जा रही थी के तभी किचन से किसी के बात करने की आवाज़ आई. उसको ऐसा लगा के उसने अपना नाम सुना है और कोई उसके बारे में बात कर रहा है इसलिए वो चुप चाप बाहर खड़ी सुनने लगी.
"बस तैय्यार ही है" कल्लो कह रही थी "नयी है इसलिए थोड़ा नखरा कर रही है पर बहुत गर्मी है साली में. 2-3 दिन और उसकी चूत को गरम करूँगी तो मान जाएगी"
रूपाली समझ गयी के वो उसी के बारे में बात कर रही है.
"ठीक है" आवाज़ शंभू काका की थी "मैने कॅमरा का इंटेज़ाम कर लिया है. एक बार साली की नंगी तस्वीरें निकल जाएँ, उनके बदले में उसके बाप से इतना पैसे लूँगा के आराम से बैठ कर खाएँगे हम दोनो"
रूपाली का सर घूमने लगा. यानी कल्लो ने शंभू काका को बता रखा था के वो क्या कर रही है रूपाली के साथ. दोनो की मिली भगत थी.
"अगर उसके बाप को पता चल गया तो?" कल्लो ने डरते हुए कहा
"अर्रे पता तो चलेगा ही. हम खुद बताएँगे तभी तो वो अपनी बेटी की नंगी तस्वीरों के बदले में मुँह माँगे पैसे देगा. सारी ज़िंदगी हमने उसकी जी हुज़ूरी की है, फिर भी कुत्तों की तरह समझता है हमें. कुच्छ तो बदला हमें भी मिले. तू बस लड़की को तैय्यार कर. साले की बेटी भी चोद्के जाऊँगा और चोदने के बदले पैसे भी लेके जाऊँगा"
रूपाली का गुस्सा सर च्छुने लगा. उसका बेवकूफ़ बनाया जा रहा था. दोनो मिले हुए थे.
"मुझे चोद्के जाएगा? प्लेट में रखा हलवा हूँ मैं जो उठाया और खा लिया?" वो गुस्से में पावं पटकती अपने कमरे की तरफ वापिस चली "मेरे बाप ने पालतू कुत्तों की तरह रखा है तुम्हें तो अब देख. मैं भी उसी बाप की बेटी हूं. मैं तुम्हें कुत्तों की तरह ही मारूँगी"
क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
अगली रात एक बार फिर कल्लो और रूपाली बिस्तर में पूरी तरह नंगे लिपटे पड़े थे.
"नही अंगुली मत डालना, बहुत दर्द हुआ था कल रात" रूपाली ने कल्लो का हाथ पकड़ते हुए कहा
"मज़ा नही आया था?" कल्लो शरारत से मुस्कुराते हुए बोली. रूपाली ने शर्मा कर अपनी आँखें घुमा ली.
"अब कैसी शरम मेमसाहिब" कल्लो ने उसकी एक छाती को चूमते हुए कहा "नंगी पड़ी हो मेरे साथ, शरम हया तो बहुत पिछे छूट गयी. बताओ ना, मज़ा नही आया था?"
"हां" रूपाली शरमाते हुए बोली "पर दर्द भी बहुत ज़्यादा हुआ था"
"शुरू शुरू में होता है पर फिर बाद में बिल्कुल नही होता और सिर्फ़ मज़ा आता है" कहते हुए कल्लो ने अपना हाथ छुड़ाया और एक बार फिर रूपाली की जांघों के बीच ले जाकर अपनी बीच की अंगुली धीरे से चूत के अंदर खिसका दी.
"आआईइ" रूपाली के मुँह से निकला "बस एक ही रखना, दूसरी मत डालना"
कल्लो ने खामोशी से अंगुली को चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया
"मज़ा आ रहा है?"
रूपाली ने हां में सर हिला दिया. अचानक से कल्लो ने अंगुली फिर बाहर निकाल ली.
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"कल रात से मैं ही सब कुच्छ कर रही हूँ और आप आराम से मज़े ले रही हो. अब आप उपेर आओ" कहते हुए कल्लो बिस्तर पर लेट गयी.
"पर मुझे पता नही के क्या करना है"
"मैं बताती हूँ. यहाँ आओ"
कल्लो ने रूपाली को अपनी बाहों में भर कर धीरे से उपेर खींच लिया. वो आधी बिस्तर पर और आधी कल्लो के उपेर आ गयी.
"अब जैसे मैं आपके चूस्ति हूँ, वैसे ही आप मेरे चूसो"
रूपाली ने धीरे से अपना मुँह खोला और कल्लो का एक निपल अपने मुँह में लेकर धीरे धीरे चूसने लगी. उसे खुद को हैरानी थी के वो काम जिसके करने का सोचके ही उसको उल्टी आ जाती थी, अब उसकी काम को वो आराम से कर रही थी, और मज़े भी ले रही थी"
रूपाली बारी बारी उसके दोनो निपल्स चूस रही थी और कल्लो मज़े में आहें भर रही थी. उसने एक हाथ से रूपाली का सर पकड़ कर अपनी छाती पर दबाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से से रूपाली का हाथ पकड़ कर अपनी टाँगों के बीच ले जाना शुरू कर दिया.
कुच्छ पल बाद ही रूपाली को अपने हाथ पर कुच्छ गीला गीला महसूस हुआ.
"ये क्या हुआ?" उसने कल्लो से पुछा
"अपनी पे हाथ लगाकर देखो" कल्लो बोली तो रूपाली ने हाथ उसकी चूत से हटाकर अपनी चूत पर रखा. उसकी चूत भी उतनी ही गीली थी जितनी कल्लो की.
"ये क्या है" उसने फिर पुछा
"बिस्तर पर जब औरत गरम होती है तो ऐसा हो जाता है"
"क्यूँ?"
"जोश में हो जाता है, ताकि मर्द का लंड आराम से अंदर घुस सके"
लंड शब्द सुनते ही रूपाली के गाल लाल हो गये. कल्लो ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख दिया.
"अंगुली डालो अंदर" कल्लो ने कहा. रूपाली तो जैसे इशारे का इंतेज़ार ही कर रही थी. उसने फ़ौरन एक अंगुली उसकी चूत के अंदर कर दी.
"दूसरी" कल्लो ने कहा और एक और अंगुली चूत के अंदर जा घुसी.
"तीन" कल्लो बोली तो रूपाली हैरानी से उसको देखने लगी. जहाँ 2 अंगुलियों में उसकी हालत खराब हो जाती थी वहाँ कल्लो 3 अँगुलिया अंदर घुसाने की बात कर रही थी.
कल्लो ने उसको अपनी तरफ देखते पाया तो हस्ने लगी.
"अर्रे आप कच्ची हो अभी इसलिए तकलीफ़ होती है. मैने तो घाट घाट का पानी पी रखा है. 3 क्या मैं आपका पूरा हाथ अंदर ले लूँ"
"घाट घाट का पानी मतलब?"
"मतलब लंड. पता नही कितने अंदर जाकर ख़तम हो गये" कल्लो ने रूपाली को देख कर आँख मारी
रूपाली कुच्छ कहने ही लगी थी के चुप हो गयी.
"क्या हुआ?" कल्लो बोली
"इसी को गांद मारना कहते हैं?" रूपाली ने झिझकते हुए पुच्छ लिया.
कल्लो उसकी बात पर ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"हस क्यूँ रही है?" रूपाली ने पुछा
"अरे मेरी गुड़िया रानी ये चूत है तो इसको चूत मारना कहते हैं. या चोदना कहते हैं"
"ओह" रूपाली ने समझते हुए कहा. तभी उसको कल्लो का एक हाथ अपनी कमर पर महसूस हुआ जो धीरे धीरे नीचे को फिसलता हुआ उसकी गांद पर आया.
"अगर मर्द यहाँ पिछे से घुसाए तो उसको गांद मारना कहते हैं"
रूपाली हैरत से उसको देखने लगी.
"यहाँ भी?"
"और नही तो क्या" कल्लो ने कहा
"यहाँ भी मज़ा आता है?"
"औरत औरत की बात होती है. कुच्छ को आता है और कुच्छ को बिल्कुल नही. कुच्छ औरतें एक चूत में लेकर ही काम चलाती हैं और कुच्छ तीनो जगह"
"तीनो?"
"हां. आगे, पीछे और मुँह में"
"मुँह में? यूक्ककककककक. उसमें क्या मज़ा?"
"जब लोगि तो पता चलेगा"
"छ्ह्ह्हीईइ .... कितना गंदा होगा ... मैं तो कभी ना लूं"
उसकी बात सुनकर कल्लो एक पल किए लिए खामोश हो गयी और कुच्छ सोचने लगी.
"क्या सोच रही है?"
"सोच रही हूँ के हम एक दूसरे के साथ आपस मैं हैं तो पर असली मज़ा नही आता"
"असली मज़ा?"
"हां. जो किसी मर्द के साथ में आता है. अगर यहाँ बिस्तर पर कोई एक मर्द हमारे साथ हो तो मज़ा आ जाए"
रूपाली शर्मा गयी.
"तेरा दिमाग़ खराब हो गया है? पापा को पता चला तो जान से मार देंगे"
"अर्रे पता चलेगा तब ना. आप इशारा करो. मैं कर देती हूँ इंटेज़ाम. फिर आप देख लेना के मुँह में ले पओगि या नही" कल्लो ने किसी लोमड़ी की तरह मुस्कुराते हुए कहा
"किसकी बात कर रही है?"
"शंभू"
"शंभू काका के साथ. कभी नही"
अगले एक घंटे तक कल्लो रूपाली को यही समझाती रही के शंभू काका के साथ बिस्तर पर जाने में कोई ग़लत नही है. वो घर के हैं और घर की बात घर में रह जाएगी, किसी को भी पता नही चलेगा. वो रूपाली जिसने पहले एकदम इनकार कर दिया था सोचने पर मजबूर हो गयी.
"ठीक है मैं सोचके बताऊंगी. मुझे बहुत शरम आती है"
और अगले ही दिन वो हुआ जिसने रूपाली के पावं के नीचे से ज़मीन सरका दी. वो अपने कमरे से निकल कर कुच्छ खाने को ढूँढती किचन की तरफ जा रही थी के तभी किचन से किसी के बात करने की आवाज़ आई. उसको ऐसा लगा के उसने अपना नाम सुना है और कोई उसके बारे में बात कर रहा है इसलिए वो चुप चाप बाहर खड़ी सुनने लगी.
"बस तैय्यार ही है" कल्लो कह रही थी "नयी है इसलिए थोड़ा नखरा कर रही है पर बहुत गर्मी है साली में. 2-3 दिन और उसकी चूत को गरम करूँगी तो मान जाएगी"
रूपाली समझ गयी के वो उसी के बारे में बात कर रही है.
"ठीक है" आवाज़ शंभू काका की थी "मैने कॅमरा का इंटेज़ाम कर लिया है. एक बार साली की नंगी तस्वीरें निकल जाएँ, उनके बदले में उसके बाप से इतना पैसे लूँगा के आराम से बैठ कर खाएँगे हम दोनो"
रूपाली का सर घूमने लगा. यानी कल्लो ने शंभू काका को बता रखा था के वो क्या कर रही है रूपाली के साथ. दोनो की मिली भगत थी.
"अगर उसके बाप को पता चल गया तो?" कल्लो ने डरते हुए कहा
"अर्रे पता तो चलेगा ही. हम खुद बताएँगे तभी तो वो अपनी बेटी की नंगी तस्वीरों के बदले में मुँह माँगे पैसे देगा. सारी ज़िंदगी हमने उसकी जी हुज़ूरी की है, फिर भी कुत्तों की तरह समझता है हमें. कुच्छ तो बदला हमें भी मिले. तू बस लड़की को तैय्यार कर. साले की बेटी भी चोद्के जाऊँगा और चोदने के बदले पैसे भी लेके जाऊँगा"
रूपाली का गुस्सा सर च्छुने लगा. उसका बेवकूफ़ बनाया जा रहा था. दोनो मिले हुए थे.
"मुझे चोद्के जाएगा? प्लेट में रखा हलवा हूँ मैं जो उठाया और खा लिया?" वो गुस्से में पावं पटकती अपने कमरे की तरफ वापिस चली "मेरे बाप ने पालतू कुत्तों की तरह रखा है तुम्हें तो अब देख. मैं भी उसी बाप की बेटी हूं. मैं तुम्हें कुत्तों की तरह ही मारूँगी"
क्रमशः........................................