hotaks444
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निशा तेज़ी से सास लेने लगी। पापा के गरम लंड की गरमी, गाण्ड से लगकर सीधे चूत पर बिजली की तरह गिर रही थी। चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था। बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है।
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा। वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ। जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा।
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया। वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी। उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी।
जगदीश राय यह देख कर चौक गया। वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है।
निशा की गाण्ड पीछे करने से अब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था।
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी । और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था।
निशा पागल हुई जा रही थी। उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ। उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था। पर वह डटी रही। निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी।
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी।
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया।
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा। उसे पसीना छुटने लगा।
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है।
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया।
कंडक्टर: युनिवर्सिटि।। यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग। है और कोई यूनिवर्सिटी…।
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये। निशा फिर भी हिल नहीं रही थी।
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा।
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया।
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था। बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है।
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा। वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ। जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा।
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया। वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी। उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी।
जगदीश राय यह देख कर चौक गया। वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है।
निशा की गाण्ड पीछे करने से अब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था।
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी । और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था।
निशा पागल हुई जा रही थी। उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ। उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था। पर वह डटी रही। निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी।
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी।
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया।
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा। उसे पसीना छुटने लगा।
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है।
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया।
कंडक्टर: युनिवर्सिटि।। यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग। है और कोई यूनिवर्सिटी…।
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये। निशा फिर भी हिल नहीं रही थी।
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा।
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया।