Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ - Page 4 - SexBaba
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Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ

जगदीश राय के मन में पिछले दिनों की सीन्स फ़्लैश बैक की तरह दौड गयी।

जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…

गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।

और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।

निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…

फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोली…

पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।

और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।

थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।

निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…

जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…

निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी। 

जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।

कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।

जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया। 

तभी निशा नीचे आ गयी। 

निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…

जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।
 
निशा ने पापा की एक दूसरी शर्ट पहनी थी। जो कल वाली शर्ट से छोटी थी। शर्ट सिर्फ उसके गाण्ड तक पहुच रही थी। निशा की बड़ी गांड शर्ट के अंदर मुश्किल से समां रही थी।

निशा: क्यों… कैसी लग रही हु…।

जगदीश राय: क्या कैसी लग रही हो?

निशा: कमाल है।।आप मुझे घूर रहे है।। और मुझसे पूछ रहे है।।क्या?

जगदीश राय: वह तो…मैं कुछ और सोच रहा था…

निशा: अच्छा जी…।ठीक है।। पर बताईये तो सही… कैसी लग रही हु…

जगदीश राय: बताया तो था कल…

निशा: वह कल वाली शर्ट के लिए…आज यह दूसरी शर्ट है…यह हाफ शर्ट है…। कल वाली फुल शर्ट थी।

जगदीश राय: मुझे तो कोई फर्क नहीं नज़र आ रहा … वैसी ही लग रही हो…

जगदीश राय परिस्थिती से बचना चाहता था।

निशा: मैं आपसे बात नहीं करूंगी…जाइए…

और निशा मटकते चल दी। चलते वक़्त शर्ट निशा की गांड से उछलकर गांड के निचले हिस्से को दिखा रहा था।

फिर निशा झाड़ू ले आयी। और कहा।

निशा: पापा फैन बंद कर रही हूँ। डाइनिंग टेबल के निचे बहुत खाना गिरा पड़ा है। सशा अभी भी खाना गिरा देती है खाते वक़्त।

जगदीश राय ने जब निशा को देखा तो उसे पसीना आने लगा

अब तक जगदीश राय निशा की जाँघो पर घूर रहा था। पर अब उसने जाना की निशा शर्ट का पहला २ बटन खोल रखी है। जिसमें उसकी चूचो की गल्ला (क्लीवेज) साफ़ दिख रही थी। निशा के चुचे शर्ट के अंदर तने हुए थे। और पतली कॉटन शर्ट में से निशा की निप्पल्स का आकार साफ़ दिख रहा था।

निशा कोई अप्सरा की तरह लग रही थी। 
 
जगदीश राय को यह जानते देर नहीं लगी की निशा ने ब्रा नहीं पहनी है। निशा ने झाड़ू मारना शुरू कर दिया। जब भी निशा झुकति , जगदीश राय को निशा की आधि से ज़ादा गोरी मुलायम बड़े चूचे दिख जाती।


जगदीश राय निशा को पुरे रूम में झाड़ू लगाते हुए घूरे जा रहा था। वह निशा के चूचे और गाण्ड की एक भी खुला दृश्य खोना नहीं चाहता था।

निशा अब झाड़ू लगा कर कमरे के बीच में आ गयी। सारा कचरा हॉल के सेण्टर में इक्कत्रित किया था।

निशा ने अब अपने पापा के ऑंखों में आंखें डाल कर देखा। उसने देखा की उसके पापा उसे घूर रहे है। 

और फिर निशा झुकी। पूरी झुकी। 

थियेटर के परदे की तरह सरकती हुयी, छोटी सी शर्ट निशा की गांड को अपने पापा के सामने प्रदर्शित कर दिया।

और जगदीश राय दंग रह गया। जगदीश राय को वह दिख गया जिसे देखने के लिए उसने कल्पना भी नहीं की थी।

गाँड के सुन्हरे गालो के बीचो बीच , जाँघो से सुरक्षित , छिपी सुन्दर चूत उसके आँखों के सामने था। 

निशा ने पेंटी भी नहीं पहनी थी। 

जगदीश राय का लंड लोहे की तरह तनकर फड़फड़ा रहा था। साफ़ सुथरी चूत इतनी सुन्दर लग रही थी की जगदीश राय को उसे चूमने का दिल किया। 

निशा उस्सी पोजीशन में कम से कम 2 मिनट तक झूकी रही। और फिर मुडी।

निशा: अब पापा, मेरी यह शर्ट कैसे लग रही है।।?

जगदीश राय निशा की चूत देखकर इतना गरम हो चूका था की उनकी कान लाल हो चुके थे।

जगदीश राय अपने होश में नहीं था।

निशा: बोलो पापा…

जगदीश राय: क्या …।बेटी… हाँ…। सब ठीक है…।

निशा: हाँ हाँ …क्या ठीक है…मैं पूछ रही हो… शर्ट कैसी लग रही है आपको अभी…

जगदीश राय , होश में आते हुये, निशा की ऑंखों में घूरते हुए, तेज़ी से सासे लेते हुए, हाथो से खड़े लंड को सहलाते हुये।।

जगदीश राय: बहूत सेक्सी है… बहूत बढ़िया… सुपर्ब…।तुम अप्सरा लग रही हो बेटी…मॉडल की तरह

निशा: हम्म्म…। यह हुई न बात…

ओर निशा किचन के तरफ चल दी।

निशा किचन में आते ही , किचन के टॉप पर हाथ रखकर झूक गयी और अपने आँखें बंद कर सर झुकाये खड़ी रही। 

उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और पैर कांप रहे थे।

अपने पापा को चूत दिखाने में जो हिम्मत उसने जुटायी थी, वह सिर्फ वह ही जानती थी।
 
उसने कापते हाथों से गिलास लिया और खुद को सँभालने के लिए पानी पीए।

निशा के ऑंखों के सामने, चूत को घूरते हुई, पापा की दो आंखें झलक रही थी।

निशा(मन में): कहीं मैने कुछ ज्यादा तो नहीं कर दिया? नहीं तो, नहीं तो पापा तारीफ़ नहीं करते। और उन्हें तो मेरी चूत बहुत भा गायी, लगता तो ऐसे ही है। पर इस सब का अन्त कहाँ होगा? अगर पापा फ्रस्टेट हो गए तोह? शायद मैं बहुत ज्यादा सोच रही हूँ। जब पापा खुश है, मैं खुश हूं, तब तो सब ठीक है।

यह सब सोचकर निशा ड्राइंग हॉल में खाना परोसने चल दी। पर जगदीश राय वहां नहीं था।

निशा(मन में): अरे पापा कहाँ चले गए? खाना खाए बगैर… पापा।। पापा।। कहाँ हो।।?

निशा अपनी छोटी शर्ट उछालते हुयी, गांड दीखाते हुए , सीडियों से पापा के कमरे में जाने लगी।

पर जगदीश राय वहां नहीं था। और फिर निशा ने कॉमन बाथरूम बंद पाया।

निशा जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास आयी , उससे अंदर से गुर्राने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

निशा समझ गयी, की अंदर क्या हो रहा है। उसके चेहरे पर गर्व और मुस्कान दोनों छा गयी।

जगदीश राय बाथरूम में पूरा नंगा खड़ा तेज़ी से मुठ मार रहा था। उसका लोहे जैसे लंड को ठण्डा किये बिना उससे ड्राइंग रूम में बेठना असम्भव था।

उसके आँखों के सामने से निशा की बिना बालों वाली, साफ़ गुलाबी कलर की चूत, हट नहीं रही थी।

और वह चूत के नशे में , निशा का नाम लिए जा रहा था।

जगदीश राय (हाथ चलाते हुए):आह…आह…आह।। निशा ओह निशा…।आह…

निशा, अपना नाम अपने मूठ-मारते पापा के मुह से सुनकर गरम हो चली थी। निशा देर नहीं लगाती हुई अपनी दो ऊँगली अपने चूत के पास ले गयी।

उसकी छोटी चूत इतनी गीली थी की क्लाइटोरिस रबर के बटन की तरह फुलकर बाहर निकला हुआ था।

और बाथरूम से निकलते हुये "आह निशा" के शब्दो के ताल में वह अपने चूत को कभी सहलाती तो कभी चूत के अंदर ऊँगली डालती।

थोड़ी ही देर में जगदीश राय की आवाज़े और तेज़ हुई और जोरदार होने लगी। जगदीश राय झड़ने ही वाला था। 

निशा के हाथ भी बाथरूम के बाहर तेज़ी से चल रहे थे। चूत से बहता पानी जांघो से लगकर एक लकीर बना रहा था और बाथरूम के बाहर फर्श पर गिर रहा था।

निशा खड़ा नहीं हो पा रही थी और उसने दिवार से खुदो को सम्भाला। दो उँगलियाँ चूत में घूसाते वक़्त आवाज़ बना रही थी।

ओर तभी निशा का सारा बदन अकड गया और वह तेज़ी से झडने लगी। निशा इतनी ज़ोर से झडी की मुह से चीख़ निकली और वह वही फर्श पर गिर पडी।

निशा फर्श पर टाँगे मोड़ कर, सर झुकाये बाथरूम के बाहर बैठी थी। फ़र्श पर उसकी चूत का पानी गिरा पड़ा था। 

शायद उसने ओर्गास्म के वक़्त थोड़ा मूत भी दिया था। वह कांप रही थी। ओर्गास्म की लहर अभी पूरी तरह ठण्डा नहीं हुआ था।

और तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला। जगदीश राय निशा को बाथरूम के बाहर फर्श पर बैठे देख चौक गया।

निशा ने आँख खोले जब अपने पापा के पैरो को देखा तो वह पूर तरह शर्मा गयी। उसने सर नहीं उठाया। 

वह इतनी बेबस थी की मन ही मन वह अपने पापा के बाहों में खो जाना चाहती थी।

जगदीश राय फर्श पर पड़े पानी को देख कर समझ गया। उसे निशा की मासूम शर्माए चेहरे पर बहुत प्यार आया।
 
निशा ने धीरे से अपने सर को उठाया। जगदीश राय और निशा बिना कुछ कहे , एक दूसरे को देखते रहे।

ओर फिर जगदीश राय निशा के पास आए और अपना हाथ बढाया।

निशा अपने कापते हाथ जगदीश राय के हाथेली में रख दिया । और अपने कापते पैरो को सम्भाले उठ गयी।

फर्श पर पड़े चूत के पानी से उसका पूरा गांड और शर्ट का निचला हिस्सा भीग गया था।

जगदीश राय निशा के हुस्न को निहारता गया। और अपने पापा के चीरते नज़रो के सामने निशा पिघलती गयी।

निशा शर्मायी, बिना कुछ कहे, मुड कर अपने रूम की तरफ चल दी। 

शर्ट का दायाँ(राइट) भाग गाण्ड से ऊपर सरका हुआ था।

जगदीश राय , निशा की चूत की पानी से भीगी हुई , मटकती नंगी गाण्ड को निहारता रहा।

लंड फिर से खड़ा होने लगा था।

जगदीश राय हॉल में जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। उसे निशा के बाथरूम से पानी की आवाज़ साफ़ सुनाइ दे रही थी।

वह बीते हुए कुछ पलो को मन ही मन निहार रहा था। कैसे निशा ने उसे अपनी चूत दिखाई थी और कैसे निशा उसी के साथ बाथरूम के बाहर मुठ मार रही थी।
निशा की पानी से चमकती हुई उभरी हुई गांड को सोचकर वह फिर से पागल हो चला था। 

वह निशा का दिवाना हो चला था यह उसे पता चल गया था। 

तभी निशा के पैरो की आहट सुनाई दी।

निशा: चलो पापा खाना खा लेते है।

जगदीश राय ने निशा के चेहरे की तरफ देखा। निशा के चेहरे पर कोई शर्म या हिचकिचाहट नहीं था।

निशा के टाइट टॉप और एक बहुत ही टाइट शॉर्ट्स पहनी थी। शायद वह शॉर्ट्स सशा की थी।

शॉर्टस उसके गांड को और गोलदार बना रही थी। और शॉर्ट्स से बाहर निकलती हुई उसकी गोरी जांघे जगदीश राय को पुकार रहे थे।

जगदीश राय (लंड को हाथ से छुपाते हुए): हाँ… खा लेते है…

खाने के बीच निशा का फ़ोन बजा। 

निशा: हेलो…। अरे केतकी…।क्या हाल है…अरे नहीं…। मैं ठीक हु…।ह्म्म्म… अरे वह पापा 
बस से गिर पड़े…।। हैं…तो उन्हें काफी चोट आयी थी……

निशा: हाँ… तो बस उन्ही के देख भाल कर रही हु…।

और निशा अपने पिता के तरफ देखा और मुस्करायी। जगदीश राय भी थोड़ा मुस्कुराया…

निशा:… ओह अच्छा… उसने बर्थडे पार्टी देना है…।कितने बजे… ४ बजे… ठीक है मैं आउंगी…

और कुछ देर कॉलेज के यहाँ वहां के बात करने के बाद निशा ने फ़ोन काट दिया।

निशा: पापा, वह मेरी फ्रेंड बर्थडे पार्टी दे रही है…तो क्या मैं जाऊं…।।6 बजे तक आ जाऊँगी।

जगदीश राय: हाँ हाँ जाओ बेटी।

निशा: पर आप ठीक है…

जगदीश राइ: हाँ हाँ मैं तो एकदम ठीक हु… और वैसे भी अब खाने के बाद मैं तो लेट जाउँगा।

निशा: फिर ठीक है…

थोडे देर बाद जगदीश राय अपने रूम में जाके लेट गया। लेटे हुए निशा के साथ बीते पलो के खलायों में सैर कर रहा था।

करीब 3:30 बजे निशा ने सलवार और जीन्स पहने , अपने पापा के रूम का दरवाज़ा खोल दिया।

उसके हाथो में एक कटोरी थी।

निशा: पापा…तेल लायी हु…

जगदीश राय: ओह… तो मसाज करोगी…?

जगदीश राय निशा को सलवार/जीन्स में देखकर उदास हो गया। पिछले दिनों से निशा सिर्फ कम कपडो में ही अच्छी लग रही थी।

निशा: जी नही… मैं तो चली…। आज आपको मेरे बिना ही काम चलाना पड़ेगा…हे हे ।।। जहाँ चाहे मसाज कर सकते है…।समझे पापा…हे हे।

और निशा की कातील हसी से रूम गूंज उठा।

जगदीश राय, थोड़ा मुस्कुराया थोड़ा शर्माया…

निशा: मैं कल आपको मसाज कर दूँगी… ठीक है… चलो बॉय। लेट हो रही हु…

जगदीश राय निशा की बातो से बहूत गरम हो गया और सीधे अपने काम पर लग गया। 

शाम को 5 बजे आशा और सशा आयी। 

जगदीश राय: तुमलोग आज लेट कैसे।

आशा, आप को याद नहीं… आज थर्स डे है… मेरा बॉलीवुड डांस क्लास होता है और सशा
का जिमनास्टिक्स क्लास।

जगदीश राय: ओह अच्छा।

निशा कुछ देर बाद आयी। 

निशा: सशा और आशा आए?

जगदीश राय: हाँ… ऊपर है…

जगदीश राय मुड़कर सोफे पर जा रहा था तभी।।

निशा:पापा, क्या आपने मसज किया…

जगदीश राय: वह…।।हाँ…किया…

निशा: तेल लगाकर?

जगदीश राय (नज़रे झुकाए): हाँ… तेल लगाकर।।थोडा।।

निशा: बस थोड़ा ही… …उस दिन की तरह लुंगी तो ख़राब नहीं हुई न…क्या मैं धो दू…?

जगदीश राय (झेंपते हुए): क्या…।

निशा: लुंगी और क्या।।हेहे

जगदीश राय: नहीं …सब ठीक है …।लून्गी सब ठीक है…।।

निशा (मुस्कुराते हुए): ओके ओके…
 
कुछ 1 घंटे बाद निशा खाना परोसकर सब लोग खाने लगे। 

आशा: दीदी… आप पिछले 3 दिनों से कॉलेज नही गयी ना…कल का क्या प्लान है।।

निशा: हाँ… कलललल…।।नही जाऊँगी…। कल तो फ्राइडे है… वैसे भी लेक्चर्स कम है…

निशा खाते खाते सोच रही थी। 

निशा(मन में): कल तोह फ्राइडे है…कल के बाद मंडे से मेरी कालेज, पापा का ओफ्फिस। और यह ४ दिन की लहर थी यही ख़तम हो जाएगी…यह उमंग जो मैंने जगाया है इसे कायम रखना बहूत ज़रूरी है… पापा के लिए… और शायद अब मेरे लिए भी…

फ्राइडे सुबह निशा जल्दी उठ गयी थी। उसने फ़टाफ़ट नाश्ता वग़ैरा बनाना शुरू कर दिया।

रात को वह ठीक से सो नहीं पाई थी। अपने पापा का प्यारा चेहरा , उनका बदन और उनका कठोर मोटा लंड उसे सोने नहीं दे रही थी। पिछले ४ दिन से जो उसे आज़ादी मिली थी , आज के बाद मिलना मुश्किल होने वाला था।

निशा (मन में):मुझे तो अपने डबल-मीनिंग वाले टेढ़े बातों को भी कण्ट्रोल करना पडेगा। ओवरस्मार्ट आशा का दिमाग तेज़ी से चलता है।

करीब 9 बजे जगदीश राय उठे। आज कल जगदीश राय सुबह बेहद खुश रहते थे। सब कुछ मानो ठीक चल रहा हो।

निशा: पापा… चाय।

जगदीश राय , निशा का सुन्दर चेहरा देखकर और भी खुश हो गया। वह अपनी मम्मी की नाइटी पहनी थी। 

निशा चाय देकर, किचन के तरफ चल दी। नाइटी से साफ़ पता चल रहा था की निशा ने अंदर पेटिकोट नहीं पहना था। जगदीश राय, रोज़ की तरह निशा की गांड पर अपनी आँखे सेंकता रहा।
 
करीब 9:30 बजे, आशा और सशा आ गए और नाश्ता खाकर चल दिए।

निशा: अरे सशा, आज तुम लोग कब आओगे

सशा: दीदी, मेरी तो आज एक्स्ट्रा क्लास है स्कूल में। तो क़रीब ४ बज जाएंगे। और।।

निशा: आशा मैडम आपका क्या प्रोग्राम है…

आशा: मुझे एक सहेली के घर जाना है, कुछ नोट्स तैयार करने है…

निशा: हम्म्म…।सच बोल रही है… या…?।

आशा (झेंपते हुए): सच दीदी… झूट क्यों बोलू…।।वैसे आप क्यों पूछ रही है?…

निशा (झेंपने की बारी उसकी थी): बस यही…चलो जाओ अब तुम दोनों…।

जगदीश राय ने भी यह बात सुनी। 

जगदीश राय (मन में): कहीं निशा मसाज के लिए तो नहीं पूछ रही है… शायद उसे… 

1 घन्टे के बाद निशा बोली… 

निशा: पापा मैं ने नाश्ता टेबल पर रख दिया है… आप खा लेना…

जगदीश राय: तुम नहीं खाओगी बेटी…

निशा: नहीं पापा… मैं पहले नहाके आती हु…। इस गर्मी में रहना मुश्किल है…।

जगदीश राय टेबल पर बैठे खा रहा था। टेबल से उसे सीडियों के ऊपर का कॉरिडोर साफ़ दिख रहा था। ऊपर से पानी का आवाज़ सुनाई दे रहा था। निशा शावर में नहा रही थी शायद।

जगदीश राय मन में निशा के नंगे जिस्म पर पानी के बूंदो की कल्पना कर रहा था। उसके फुटबॉल जैसे बड़े बड़े पानी से चमकते चूचे सोचकर उसके टेबल पर बैठना मुश्किल हुए जा रहा था। 
 
करीब 20 मिनट निशा को सोचकर खाने के बाद, जगदीश राय अपने लंड को पकडते , सीडियों से कॉमन बाथरूम की तरफ चला।

जगदीश राय अब कॉरिडोर में था, जो 3 बैडरूम और 1 कॉमन बाथरूम को मिला रहा था। निशा का रूम का दरवाज़ा बंद था। वहां से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, पानी की भी नही।

जगदीश राय (मन में): शायद निशा नहा चुकी है…अब तो वह अपने पूरे जिस्म को पोंछ रही होगी… क्या मैं घूस कर देख लू…।नही यह ठीक नहीं होगा… क्या समझेगी वह मेरे बारे में…

जगदीश राय यह सोचकर कॉमन बाथरूम के तरफ बढा ही था की बाथरूम का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया। और जगदीश राय के पैरो तले ज़मीन निकल गयी…

सामने निशा खड़ी थी। पूरी नंगी। 

निशा ने कुछ भी नहीं पहना था। उसने बालो को एक ब्लू टॉवल से बांध लिया था। और बालों से पानी की छोटी बुँदे उसके नंगे बदन पर गिर रही थी।

जगदीश राय की आंखें निशा की नंगी चूचियों से हट नहीं रहा था। जगदीश राय ने अंदाज़ा भी लगाया था की निशा के चूचे इतने बड़े होंगे। 

और उन बड़े चूचों के सेण्टर पर गुलाबी कलर के परिवेश (एरोला) से घेरे गुलाबी निप्पल। आज तक जगदीश राय ने सिर्फ भूरे(ब्राउन) कलर का निप्पल्स ही देखे थे, पर अपनी बेटी के गुलाबी निप्पल्स ने उसे पागल कर दिया।
 
जगदीश राय की नज़रे चूचियों से निशा की पेट के तरफ फिसला तभी। 

निशा (शर्माते हुए): ओह पापा…सोर्री।। ओह मेरे बाथरूम के शावर में पानी का फाॅर्स नहीं है न…।इस्लिये यहाँ चलि आयी…।

निशा ने यह कहते हुए अपने दाए हाथ से अपने दोनों चूचियों को ढक लिया, जिससे वह मुलायम बड़े चूचे दबकर और गोलदार बन गये। और फिर धीरे से उसने अपनी बायीं कलाई से अपने चूत को ढक लिया। 

जगदीश राय चुप रहा और बस घूरता रहा।

जगदीश राय की ऑंखें बिना मौका गवाते हुए निशा की चूत को अच्छी तरह निहार लिया। निशा का पूरा शरीर एक अप्सरा की तरह , बाथरूम की रौशनी में चमक रहा था।

नंगी निशा सिर्फ हाथो से अपने ख़ुद को ढकते हुए धीरे से बाथरूम से बहार आयी। और धीरे धीरे , नंगे पैर और नंगे बदन से जगदीश राय के तरफ बढ़ रही थी।

निशा का हर एक कदम जगदीश राय पर भारी पड़ रहा था। निशा की साँसे भी तेज़ी से चल रही थी, जो उसकी चूचियों के उतार-चढाव से प्रकट हो रहा था।

करीडोर की चौड़ाई(विड्थ) सिर्फ 2:5 फुट का था। जब निशा पास आयी, जगदीश राय एक साइड हो गया। 
अब निशा 2:5 फुट कॉरिडोर में , पूरी नंगी जगदीश राय के सामने थी। और निशा धीरे से, जगदीश राय के आँखों में देखते हुए उनके सामने से निकल रही थी। 

उसने बहुत ही नज़ाकत से ख्याल रखा की उसकी नंगा शरीर पापा को स्पर्श न करे। 

जगदीश राय , ने अपने आप को कण्ट्रोल करने के लिए निशा के सामने आते की गहरी सास लिए आंखें बंद कर ली। और फिर एक सेकंड बाद आँख खोला तो निशा उनके सामने से निकल चुकी थी।

जगदीश राय वहीँ खड़ा निशा की नंगी पीठ और बड़ी मदहोश गांड को अपने कमरे की तरफ जाते देखा।

निशा अपने कमरे के दरवाज़े पर पहुच कर अपने पापा के तरफ देखा। जगदीश राय तेज़ सासो से बाथरूम के तरफ बढ़ रहे थे। उनकी चाल से यह महसूस किया जा सकता था की वह मदहोश है। तभी निशा ने फिर से अपनी चाल चल दी।

निशा (सॉरी फेस से मुस्कुराते हुए): पापा…। मैं अपनी हेयर-बैंड अंदर भूल आयी हु… क्या आप ला देंगे मुझे…प्लीज…

जगदीश राय बाथरूम के अंदर गया और देखा की सामने एक लाल रंग की हेयर-बैंड जैसी चीज़ पड़ी थी। पर अगर वह नहीं भी होती तो भी जगदीश राय उसे लेकर निशा के पास चला जाता।

जगदीश राय हेयर बैंड लेकर निशा को घूरते हुए निशा की तरफ बढा। निशा का सिर्फ अब साइड-व्यू ही दिखाई दे रहा था, और उस पर निशा की कमर और गांड क़यामत ढा रही थी।

जगदीश राय सूखे मुह लेकर निशा के सामने खड़ा हो गया और एक बच्चे की तरह हेयर-बैंड हाथ में लिए खड़ा था। निशा उनकी ऑंखों में देखकर मुस्कुरायी और फिर कहा।

निशा: थैंक यू पापा…यू आर वैरी स्वीट…

और फिर निशा ने अपने दोनों हाथ चूचियों से निकाल लिया और अपनी पूरी चूची अपने पापा के नज़रों के सामने पेश किया।

एक 20 साल की बेटी आज पहली बार अपने पापा के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। निशा की नंगी चूची जगदीश राय से सिर्फ 6 इंच के अंतर मे थी और जगदीश राय गुलाबी निप्पल को घूरता रहा।

ओर निशा अपने कमरे में घूस गयी और अपने पापा के चेहरे पर दरवाज़ा बंद किया।

जगदीश राय कुछ देर वहीँ निशा के दरवाज़े के बाहर खड़ा रहा। वह बौखला गया था।
 
जगदीश राय थोड़ी देर वहां खड़ा रहने के बाद , बाथरूम में घूस गया।

उसका पूरा बदन कांप रहा था। कान और गाल गरम हो चूका था।

उसने अपनी लुंगी साइड की और लंड बाहर निकाला। 

लंड लोहे की रॉड की तरह खड़ा हुआ था। लंड पर उभरे नस (वेन्स) किसी रबर वायर की तरह फूल कर साफ़ दिखाई दे रहे थे।

वह अपनी इस अवस्था को सुधारने के लिए मुठ मारना शुरू किया पर दिमाग पर हज़ारो ख्याल बम की तरह फट रहे थे।

लंड खड़ा होने के बावजूद मुठ मारा नहीं जा रहा था।

कुछ देर प्रयास करने के बाद वह खड़े लंड के साथ बाहर आ गया।

अंदर निशा का हाल भी कुछ समान था। पापा के सामने नंगी रहने में उसे बहोत मजा आया था और यह उसकी गिली चूत बता रही थी।पूरी बदन पर लहर फ़ैली हुई थी। 

निशा (मन में): मुझे देखकर पापा का लंड तो साफ़ लुंगी के बाहर निकला हुआ था। पर पता नहीं पापा ने अपने आप को कैसे रोक लिया…।और कोई होता तो अब तक मुझ पर टूट पड़ता…।पापा को अपने आप पर कितना कण्ट्रोल है…मानना पड़ेगा…।

निशा ने जल्द अपनी एक रेड कलर की सिल्क शर्ट पहन ली। और अपने आप को मिरर में देखा।

शर्ट कमर से थोड़ा निचे तक आ रही थी। सिर्फ गांड और चूत को कवर कर रही थी।निशा अपने इस पोशाक से खुश हो गई और दरवाज़ा खोले निचे हॉल/किचन के तरफ चल दी।

वही जगदीश राय सोफे पर बेठा हुआ था। और निशा के बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था।निशा को फिर से शर्ट में देखकर वह मन ही मन खुश हो गया। पर उसमे अभी भी निशा को सीधे देखने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था। निशा रेड सिल्क शर्ट में क़यामत ढा रही थी, जो उसकी गोरे जाँघ को और भी खूबसूरत बना रहा था।
 
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