Indian Sex Kahani डार्क नाइट - Page 3 - SexBaba
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Indian Sex Kahani डार्क नाइट

चैप्टर 10
प्रिया वा़ज ए हॉट गर्ल। प्रिया को देखकर किसी भी जवान लड़के के भीतर पैशन जागना ला़जमी था; अगर ऐसा न हो, तो तय था कि उसका क्यूपिड सो रहा होगा। मगर प्रिया हॉट होने के बावजूद बिंदास थी। उसमें हॉट लड़कियों वाला ऐटिटूड नहीं था। कितनी आसानी से वह कबीर के साथ डिनर पर जाने को तैयार हो गई थी; और यही बात प्रिया को और हॉट लड़कियों से अलग करती थी। हॉट लड़कियाँ; जो कामयाब और पैसे वाले लड़कों से इम्प्रेस होती हैं; जिन्हें लड़कों से ज़्यादा उनके स्टेटस और ग्लैमर से प्यार होता है। चमचमाती कारों, डि़जाइनर कपड़ों, महँगी घड़ियों और ज्वेलरी, पऱफ्यूम्स और हेयरस्टाइल पर मरने वाली लड़कियाँ, क्या कभी किसी लड़के की रूह को छू पाती होंगी? प्रिया उनसे अलग थी... बहुत अलग।
अगली सुबह कबीर, प्रिया के ख़यालों में डूबा हुआ था। जब कोई जवान लड़का किसी जवान लड़की के ख़यालों में डूबा हो, तो ख़याल नटखट से लेकर निर्लज्ज तक हो जाते हैं। कबीर के ख़याल भी प्रिया को आमंत्रित कर उसके साथ कई गुस्ताखियाँ कर रहे थे, तभी पीछे से एक आवा़ज आई,
‘‘हे डूड, व्हाट्स अप?’’ इट वा़ज समीर। समीर का बस चले तो वह कबीर के ख़यालों से भी लड़कियाँ चुरा ले जाए।
‘‘कुछ नहीं, बस किसी लड़की के ख़यालों में डूबा हूँ।’’ कबीर ने मुड़ कर जवाब दिया।
‘‘योर फेवरेट पासटाइम... हूँ।’’ समीर के लह़जे में तंज़ था, ‘‘यार अब तो ख़्वाबों-ख़यालों से बाहर निकल।’’
‘‘बाहर से चुराकर ही ख़यालों में लाया हूँ।’’ कबीर ने मुस्कुराकर समीर को आँख मारी। सामने वाले के तंज़ को मुस्कुराकर हँसी में उड़ा देना ही उसकी चोट से बचने का सबसे आसान तरीका होता है, हालाँकि समीर का इरादा कभी कबीर की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं होता था। इरादा तो वह तब करे, जब उसने ख़ुद कोई चोट महसूस की हो। समीर ने न तो कभी प्यार में कोई चोट खाई थी और न ही किसी तंज़ का उस पर कोई असर होता था।
‘‘हूँ... हू इ़ज शी?’’
‘‘प्रिया; वही जो कल तुम्हारी पार्टी में मिली थी।’’
‘‘व्हाट! वह प्रिया पुखराज?’’ समीर का मुँह जिस तरह व्हाट कहने के लिए खुला था, वैसा ही खुला रह गया।
‘‘क्यों, क्या हुआ?’’
‘‘डू यू नो, हू इस शी?’’
‘‘ए वेरी प्रिटी गर्ल।’’ कबीर के ख़यालों ने अब तक प्रिया से गुस्ताखियाँ करना बंद नहीं किया था।
‘‘वह पुखराज ज्वेलर्स के मालिक पुखराज जैन की बेटी है; अरबपति हैं वो लोग।’’
‘‘तो क्या हुआ... अरबपति लड़कियाँ प्यार नहीं करतीं?’’
‘‘प्यार? उसके पीछे ह़जारों लड़के घूमते है; एंड शी इ़ज सो हॉट... सँभलकर रहना, कहीं जल मत जाना।’’
‘‘जलने की बारी तो अब तुम्हारी है।’’
‘‘व्हाट डू यू मीन?’’
‘‘आज शाम वह मेरे साथ डिनर पर जा रही है।’’
‘‘हूँ; स्मार्ट बॉय।’’ समीर का तंज़ तारी़फ में बदल गया। कितना आसान होता है लड़कों को इम्प्रेस करना; ‘‘चल, फिर ये मेरा क्रेडिट कार्ड रख ले; किसी बड़े रेस्टोरेंट में ले जाना; किसी बाल्टी ढाबे में न पहुँच जाना।’’
‘‘नो थैंक्स; पैसे हैं मेरे पास... माँ पैसे देने में कमी नहीं करती।’’
‘‘माँ को शायद पता नहीं है कि माँ दा लाड़ला बिगड़ गया है।’’ समीर के होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।
‘‘बिगड़ के सँवर गया है।’’ कबीर ने अपने बालों में हाथ फेरते हुए समीर को फिर से आँख मारी। समीर के होंठों की मुस्कान कुछ और फैल गई।
उस शाम प्रिया भी कबीर के ख़यालों में डूबी हुई थी। आईने में ख़ुद के अक्स को निहारते हुए उसका ध्यान ख़ुद से ज्यादा कबीर पर था। क्या कबीर को यह ड्रेस पसंद आएगी? यह सवाल ही उससे चार ड्रेस बदलवा चुका था; यह पाँचवी ड्रेस थी। क्रिमसन हाईनेक स्लीवलेस पेंसिल ड्रेस विद साइड स्लिट, उसके स्लिम और गोरे बदन पर बेहद जँच रही थी। साइड स्वेप्ट बालों को उसने नीचे से कर्ली किया हुआ था। मैचिंग रेड स्वेड लेदर की टाई अप पॉइंटेड हाई हील्स पर अपने पैरों को ट्विस्ट कर उसने आईने की ओर पीठ करके गर्दन मोड़ी। क्रिमसन लेस से घिरी ओपन बैक भी का़फी आकर्षक दिख रही थी। प्रिया अब अपनी अपीयरेंस से पूरी तरह संतुष्ट थी। क्रिमसन पैशन का रंग होता है। आज वह कबीर का पूरा पैशन देखना चाहती थी।
ठीक सात बजे प्रिया के फ्लैट की डोरबेल बजी। प्रिया एक आखिरी बार आईने से पूछ लेना चाहती थी, कि वह कैसी लग रही है; मगर उस ख़याल को उसने इस ख़याल से सरका दिया कि कबीर से सुनना ही बेहतर होगा।
प्रिया ने दरवा़जा खोला। सामने कबीर खड़ा था। कबीर, बड़ी सादगी से तैयार हुआ था। खाकी स्किनी जींस, प्लेन कॉटन की मरून शर्ट, कलाई में ब्राउन लेदर स्ट्रिप से बँधी एक्युरिस्ट की सिंपल सी वाच; और तो और उसने शेव भी नहीं की थी, मगर उसके गोरे और लम्बे चेहरे पर हल्की दाढ़ी अच्छी लग रही थी, और उसके हाथों में लिली और गुलाब का गुलदस्ता था।
 
‘‘यू आर लुकिंग गॉर्जस, एंड एब्स्ल्यूटिलि स्टनिंग।’’ कबीर ने गुलदस्ता प्रिया के हाथों में देते हुए उसके बाएँ गाल को चूमा। यह प्रिया के बदन पर कबीर का पहला स्पर्श था। कबीर का किस सॉ़फ्ट और जेंटल था; उतना ही जेंटल, जितना कबीर ख़ुद था।
‘‘थैंक्स; एंड द फ्लॉवर्स आर लवली, प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया ने शर्म और ऩजाकत में लिपटी मुस्कान से कहा।
‘‘प्रिया लेट्स गो; यू नो लन्दन्स ट्रैफिक।’’
‘‘ओके, ए़ज यू विश।’’ प्रिया ने दरवा़जा बंद करते हुए कबीर का हाथ थामा। यह कबीर का दूसरा स्पर्श था। प्रिया के बदन में एक शॉकवेव सी उठी; जैसे कबीर का पैशन उसकी रगों में दौड़ उठा हो।
‘‘वेट ए मोमेंट।’’ कबीर की आँखें उसके चेहरे पर टिकीं। उन आँखों में एक मासूम बच्चे सा कौतुक था, और एक परिपक्व वयस्क की गहराई।
कबीर ने गुलदस्ते से एक गुलाब निकालकर प्रिया के बालों में लगाया; ठीक गाल के उसे हिस्से के थोड़ा ऊपर, जहाँ उसने उसे किस किया था। प्रिया ने चाहा कि कबीर उसके दूसरे गाल को भी चूम ले, मगर उस चाह की किस्मत में थोड़ा इंत़जार करना लिखा था। डार्क क्रिमसन गुलाब, प्रिया की क्रिमसन रेड ड्रेस से पूरी तरह मैच कर रहा था, और उसकी क्रिमसन लिपस्टिक से भी।
कबीर, छोटी सी ही, मगर खूबसूरत कार लेकर आया था। रेड होंडा जा़ज। प्रिया को लगा कि कबीर की जगह कोई और होता, तो कोई पॉश कार लेकर आता; अगर ख़ुद के पास न भी होती तो हायर ही कर लेता। क्या कबीर वाकई इतना सिंपल था, या फ़िर वह अपनी सादगी का प्रदर्शन कर रहा था।
‘‘प्ली़ज गेट इन।’’ पैसेंजर सीट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने प्रिया से कार के भीतर बैठने को कहा। कार के भीतर, महकती जास्मिन की मीठी खुशबू यह अहसास दे रही था, कि कार अभी-अभी वैलिट होकर आई थी; और साथ ही यह अहसास भी, कि कबीर, सादगी और बेरु़खी के बीच फर्क करना अच्छी तरह जानता था।
‘‘आपके साथ और कौन रहता है?’’ कार स्टार्ट करते हुए कबीर ने पूछा।
‘‘कबीर, ये आप वाली फॉर्मेलिटी छोड़ो, अब हम दोस्त हैं।’’ प्रिया ने पैसेंजर सीट पर ख़ुद को एडजस्ट करते हुए कहा। प्रिया ने कबीर के साथ बेतकल्लु़फ होने का इरादा का़फी पहले ही कर लिया था।
‘‘तुम्हारे साथ और कौन रहता है?’’
‘‘हूँ, ये ठीक है।’’
‘क्या?’
‘‘आप नहीं तुम।’’
‘‘तुमने जवाब नहीं दिया।’’
‘‘मैं अकेली रहती हूँ।’’
‘‘तुम्हारे पेरेंट्स?’’
‘‘पेरेंट्स मुंबई में हैं; मैं यहाँ एमबीए कर रही हूँ।’’
‘‘एमबीए करके क्या करोगी?’’
‘‘डैड का बि़जनेस ज्वाइन करूँगी; और तुम क्या कर रहे हो कबीर?’’
‘‘किंग्स कॉलेज से इंजीनियरिंग की है; फ़िलहाल कुछ नहीं कर रहा हूँ।’’ कबीर के लह़जे में एक अजीब सी बे़फिक्री थी।
‘‘जॉब ढूँढ़ रहे हो?’’
‘उँहूँ।’
‘‘तो फिर?’’
‘‘प्यार ढूँढ़ रहा हूँ।’’ कबीर ने मुस्कुराकर प्रिया की आँखों में अपनी आँखें डालीं। प्रिया को कबीर की आँखों में एक ठहरा हुआ दृश्य दिखाई दिया, जैसे कोई स्टेज पऱफॉर्मर किसी एक जगह आकर थम गया हो... किसी एक स्पॉटलाइट पर।
‘मिला?’ प्रिया की आँखें चमक उठीं।
‘‘कुछ मिला तो है, जो बेहद खूबसूरत है।’’
‘‘प्यार जितना?’’
‘‘पता नहीं प्यार खूबसूरत होता है, या जो खूबसूरत है उससे प्यार होता है; मगर प्यार में इंसान ख़ुद बहुत खूबसूरत हो जाता है।’’ कबीर की आँखों की स्पॉटलाइट थिरक उठी, और साथ ही उसमें ठहरा हुआ पऱफॉर्मर भी। प्रिया के गाल ब्लश करके क्रिमसन हो गए।
कबीर को फाइन डाइनिंग का शौक हमेशा ही रहा है। खाना जितना ल़जी़ज हो, उतनी ही ल़ज़्जत से परोसा भी गया हो, तो स्वाद दुगुना हो जाता है; और फिर एम्बिएंस, माहौल... दैट इ़ज द रियल ऐपटाइ़जर। और फिर उस खूबसूरत माहौल को किसी रूहानी मह़िफल में तब्दील कर रहा था प्रिया का साथ।
 
‘‘नाइस रेस्टोरेंट... द एम्बिएंस इ़ज प्रिटी गुड।’’ रेस्टोरेंट की डिम लाइट में प्रिया का चेहरा किसी फ्लूरोसेंट लैंप सा चमक रहा था।
‘‘आई लव दिस रेस्टोरेंट; मेरे लिए यह रेस्टोरेंट बहुत लकी है।’’ कबीर ने प्रिया के चमकते चेहरे पर अपनी ऩजरें टिकाईं।
‘‘लकी? किस तरह?’’
‘‘मेरे पहले प्यार की कहानी इसी रेस्टोरेंट से शुरू हुई है।’’
‘‘पहले प्यार की कहानी? कब?’’ प्रिया के चेहरे पर अचरज और उलझन की लकीरें सा़फ खिंच आर्इं।
‘‘आज, अभी।’’ कबीर के होठों की शरारत उन्हें ट्विस्ट कर थोड़ा सा कर्ली कर गई।
‘‘कबीर, तुम कभी सीरियस भी होते हो?’’ प्रिया खिलखिला उठी।
‘‘आई एम सीरियस प्रिया।’’
‘‘सीरियस? अबाउट व्हाट?’’
‘‘अवर रिलेशनशिप।’’
‘‘रिलेशनशिप? हम कल ही मिले हैं, और आज रिलेशनशिप?’’
‘‘तो क्या तुम यहाँ मेरे साथ टाइम पास करने आई हो?’’
‘‘हाँ, तुम्हारे साथ टाइम पास करना अच्छा लगता है।’’ प्रिया ने हँसते हुए कबीर का हाथ थामा। प्रिया न जाने कितनी बार कबीर का हाथ थाम चुकी थी, मगर उसे हर बार वही ‘पहली बार’ वाली फीलिंग आती थी।
‘‘खैर ये बताओ ड्रिंक क्या लोगी? अब ये मत कहना, लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज।’’
‘‘बिल्कुल, लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज।’’ प्रिया ने शरारत से ‘प्ली़ज’ पर ज़ोर दिया।
‘‘व्हाट? मैंने सोचा कि हम कोई कॉकटेल या शैम्पेन लेंगे?’’
‘‘शैम्पेन, हम मेरे फ्लैट पर पियेंगे।’’
‘‘तुम्हारे फ्लैट पर?’’
‘‘हाँ, डिनर करके हम मेरे फ्लैट पर जा रहे हैं।’’
‘‘तो फिर हम यहाँ क्या कर रहे हैं?’’
‘‘यहाँ हम टाइम पास कर रहे हैं।’’
‘‘और तुम्हारे फ्लैट में क्या करेंगे?’’ कबीर की आँखें किसी रोमांचक आमन्त्रण की सम्भावना से चमक उठीं।
‘‘शैम्पेन पियेंगे।’’
‘‘बस, शैम्पेन पियेंगे?’’
‘‘बिलीव मी, ऐसी शैम्पेन तुमने पहले कभी नहीं पी होगी।’’
‘‘कौन सा ब्रांड है?’’
‘‘मेरा वह मतलब नहीं है।’’
‘‘तो फिर क्या मतलब है तुम्हारा?’’
‘‘मेरा मतलब है कि तुम शैम्पेन फ्लूट से नहीं पियोगे।’’ प्रिया की आँखों का आमन्त्रण थोड़ा नटखट हो उठा।
‘‘तो क्या बोतल से पीनी पड़ेगी?’’
‘‘उँहूँ।’’
‘‘समझ गया; तुम मुझे अपनी आँखों से पिलाओगी।’’ कबीर ने प्रिया की आँखों में गहराई तक झाँका।
‘‘आँखों में शैम्पेन गई तो आँखें खराब हो जाएँगी।’’ प्रिया के होठों से उछलकर हँसी उसके नटखट आमन्त्रण में एक नई शरारत भर गई।
‘‘तो फिर किससे पिलाओगी यार? चुल्लू से?’’ कबीर से अब और सब्र न हो रहा था।
‘‘आई हैव ए फ्लैट टमी एंड ए डीप बेली बटन।’’
‘व्हाट?’ प्रिया के आँखों की शरारत, किसी डोर सी उछलकर कबीर के ख़यालों में उसका बेली बटन टाँक गई, और उससे शैम्पेन के मस्ती भरे घूँट भरने के ख्याल ने उसे ऐसे नशे में डुबा दिया, कि कुछ देर के लिए वह अपने होश खो बैठा।
‘‘अब बेवकूफों की तरह ताकना बंद करो, और जल्दी से खाना ऑर्डर करो, मुझे बहुत ज़ोरों से भूख लगी है।’’ प्रिया की आँखों से उतरकर शरारत उसके होठों की शर्मीली मुस्कान में घुल गई।
 
चैप्टर 11
कबीर और हिकमा के किस्से के खत्म होने के बाद, कुछ दिन कबीर अवसाद में रहा, मगर वह उम्र अवसाद में जीने की नहीं थी; वह उम्र तो खेलने, खाने और मस्ती करने की उम्र थी; वह उम्र सीखने और बड़े होने की उम्र थी। सीखने और बड़े होने की उम्र में होने का अर्थ यह नहीं होता कि आप कुछ जानते ही नहीं हैं, या आपमें कोई परिपक्वता नहीं है; उसका अर्थ यही होता है कि जो आप जानते हैं वह पर्याप्त नहीं है; आपको अभी और सीखना और जानना है, और इसी सीखने और जानने में आप यह भी सीखते हैं कि आप कितना भी जान लें, वह कभी पर्याप्त नहीं होता। कबीर को यह ज्ञान भी बहुत देर से हुआ।
कबीर ने उसके बाद एक लम्बे समय तक किसी लड़की को ‘‘आई लव यू’’ नहीं कहा। कबीर के मन में यह भावना घर कर गई, कि वह परिपक्व नहीं था, लिहा़जा किसी लड़की के लायक नहीं था। जब कबीर की उम्र का लड़का ख़ुद को लड़कियों के क़ाबिल नहीं मानता, तो वह ख़ुद को ऐसी किसी भी ची़ज के क़ाबिल नहीं मानता, जिसे पाने या करने के लिए एक आत्मविश्वास भरे व्यक्तित्व की ज़रूरत होती है। ‘ही वा़ज नॉट गुड इऩफ।’, ये कबीर का विश्वास बन गया था। कबीर ने लड़कियों से ध्यान हटाकर पढाई-लिखाई में लगाना शुरू किया। लड़कियों से ध्यान हट जाए, तो पढ़ाई-लिखाई में ध्यान आसानी से लग जाता है। स्कूली पढ़ाई-लिखाई जानकारियाँ तो बहुत दे देती है मगर व्यक्तित्व के निखार में उनकी कोई ख़ास भूमिका नहीं होती। कबीर का व्यक्तित्व भी कुछ वैसा ही बनता गया... किताबी कीड़े सा; जिसे किताबी ज्ञान तो भरपूर था, मगर व्यवहारिक ज्ञान का़फी कम। लड़कियाँ कबीर के किताबी ज्ञान से प्रभावित तो होतीं; मगर उसके अलावा कबीर के व्यक्तित्व में ऐसा कोई चार्म नहीं था, जो लड़कियों को आकर्षित कर पाता।
कबीर, स्कूल की पढ़ाई खत्म कर यूनिवर्सिटी पहुँचा। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के किंग्स कॉलेज में कंप्यूटर एंड इनफार्मेशन इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। कबीर, कॉलेज इस दृढ़ निश्चय के साथ गया, कि नए परिवेश में अपनी ग्रंथियों से निकलने का नए तरीके से प्रयास करेगा। कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन होना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी; मगर वहाँ तो सभी वही उपलब्धि लेकर आए थे। कबीर के पास ऐसा कुछ नहीं था जो बाकियों से बेहतर हो, जिसके सहारे वह अपनी ग्रंथियों से बाहर निकलने का प्रयास कर सके। इसे समझते हुए कबीर ने उन लड़कों से दोस्ती करने की कोशिश की, जो कॉलेज में कुछ ख़ास माने जाते थे; यानी जो कूल थे, पॉपुलर थे; ताकि उनकी दोस्ती के सहारे ही कबीर की गिनती कुछ ख़ास लोगों में हो। उन कूल और पॉपुलर लड़कों में ही एक था राज। लम्बा-तगड़ा और खूबसूरत हंक। कॉलेज में राज की इमेज मिस्टर परफेक्ट की थी। सबसे अच्छे सम्बन्ध रखना, और सबकी ऩजरों में अच्छा बने रहना राज की खासियत थी। राज के मीठे बोल सबको आकर्षित करते। कबीर जैसे लडकों के लिए राज उनका रहनुमा था, जो उन्हें गाइड भी करे और ग्रूम भी।
‘‘हेलो, दिस इस राज! इफ यू नीड एनीथिंग फ्रॉम मी, जस्ट आस्क फॉर इट, नेवर हे़जीटेट... मुझे अपना बड़ा भाई समझो यार।’’ राज ने कबीर से पहली ही मुलाकात में कहा था।
इसके बाद कबीर और राज की दोस्ती बढ़ती गई। राज, कबीर की मदद करता और उसे गाइड करता, और बदले में कबीर अक्सर लोगों से राज की तारीफ करता, जो राज की छवि निखारने में काम आता, साथ ही कबीर को राज के संबंधों का फायदा भी मिलता; यानी कि विन-विन रिलेशनशिप, सिवा इस बात के कि कबीर को जाने-अन्जाने राज के अहसानों के भार का अहसास होने लगा था। धीरे-धीरे कबीर, राज की साइडकिक बनने लगा।
‘‘हे कबीर, टुनाइट देयर इ़ज ए पार्टी एट ब्रायन्स, यू मस्ट कम।’’ एक दिन राज ने कबीर से कहा। ब्रायन राज का ख़ास दोस्त था।
‘‘ओह ऑफकोर्स! आई मोस्ट सरटेनली विल कम।’’ कबीर ने बेझिझक कहा।
‘‘दैट्स वंडरफुल, एंड कैन आई आस्क ए फेवर! यार मेरी कार सर्विसिंग के लिए गई है, सो कैन आई आस्क यू टू गिव मी ए लिफ्ट टू ब्रायन्स।’’
‘‘श्योर, आई विल पिक यू अप फ्रॉम योर होम।’’
‘‘ग्रेट, प्ली़ज पिक मी अप एट सिक्स।’’
‘‘या, श्योर।’’
कबीर ने कार ब्रायन के घर से लगभग सौ मीटर दूर पार्क की। दरअसल उससे कम दूरी पर कोई पार्किंग की जगह खाली ही नहीं थी। सौ मीटर की दूरी से भी ब्रायन के घर से उठता ते़ज संगीत का शोर सा़फ सुनाई दे रहा था। राज के साथ ब्रायन के घर के भीतर जाते हुए कबीर थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था। उस पार्टी में कबीर, राज का मेहमान था। ब्रायन से उसकी थोड़ी बहुत ही जान-पहचान थी, और ब्रायन के बाकी दोस्तों से बिल्कुल नहीं या नहीं के बराबर।
पार्टी में कुछ दोस्तों से परिचय कराने, और कुछ देर बातचीत के बाद राज ने कबीर से कहा, ‘‘कबीर, मुझे किसी से ज़रूरी बातें करनी हैं; यू जस्ट हैंग अराउंड एंड एन्जॉय योरसेल्फ।’’
इतना कहकर राज, कबीर को कुछ दोस्तों के हवाले करके वहाँ से चला गया। राज और ब्रायन के दोस्त कबीर के लिए अपरिचित ही थे। कुछ देर उनके साथ समय बिताने के बाद कबीर ख़ुद को अकेला महसूस करने लगा। बोर होता हुआ कबीर, हाथ में एक बियर की बोतल लिए हुए एक काउच पर जा सिमटा।
‘हाय!’ काउच पर बैठा कबीर सिर झुकाए कुछ सोच ही रहा था, कि उसे किसी लड़की की आवा़ज सुनाई दी।
कबीर ने ऩजरें उठाकर देखा। सामने एक लगभग उन्नीस-बीस साल की खूबसूरत लड़की खड़ी था। रंग साँवला, कद मीडियम, स्लिम फिगर और शार्प फीचर्स। लड़की ने का़फी टाइट और रिवीलिंग ड्रेस पहनी थी जो इस तरह की पार्टियों के लिए आम थी।
‘‘हाय, आई एम नेहा।’’ बाएँ हाथ में रेडवाइन का गिलास थामे हुए लड़की ने दायाँ हाथ कबीर की ओर बढ़ाया।
‘‘हाय! कबीर।’’ कबीर ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘कैन आई ज्वाइन यू?’’ नेहा ने चंचलता में लिपटी विनम्रता से पूछा।
‘‘या, ऑफकोर्स।’’ कबीर ने काउच पर अपनी बगल की ओर इशारा किया।
‘‘व्हाई डोंट वी गो आउट इन द गार्डन? इट्स क्वाइट लाउड इन हियर।’’ नेहा ने दरवा़जे की ओर इशारा किया।
‘‘या श्योर।’’ कबीर ने उठते हुए कहा।
 
कॉलेज में आने के बाद से कबीर का लड़कियों से सि़र्फ परिचय ही रहा था; दोस्ती का न कोई अवसर पैदा हुआ था, और न ही कोई अवसर कबीर ने पैदा करने की कोशिश की थी। लड़कियों को लेकर कबीर की झिझक और काम्प्लेक्स अभी तक नहीं गए थे, मगर फिर भी वह नेहा के साथ बातचीत के लिए का़फी आतुर था।
‘‘आर यू ऑन योर ओन हियर।’’ कबीर को अकेला देख नेहा ने प्रश्न किया।
‘‘नहीं, मैं एक दोस्त के साथ आया हूँ, मगर वह कहीं और बि़जी है।
‘‘सेम हियर... मैं भी किसी के साथ आई हूँ, मगर वह भी कहीं और बि़जी है।’’ नेहा ने हँसते हुए कहा।
नेहा की हँसी कबीर को बहुत प्यारी लगी। एक लम्बे समय बाद उसके सामने किसी लड़की की ऐसी सरल-सहज हँसी बिखरी थी।
‘‘डू यू स्टडी हियर इन कैंब्रिज? आपको पहले कभी नहीं देखा।’’ गार्डन में पहुँचकर कबीर ने नेहा से प्रश्न किया।
‘‘या, क्वीन्स कॉलेज, डूइंग अंडरग्रैड इन फिलॉसफी।’’
‘‘वाह, तो आप फिलासफर हैं?’’
‘‘जी नहीं, मैं फिलासफी पढ़ रही हूँ, और फिलॉसफी पढ़ने भर से कोई फिलॉसफर नहीं बन जाता।’’ नेहा ने हँसकर कहा; ‘‘वैसे आप क्या कर रहे हैं?’’
‘‘मैं कंप्यूटर इंजीनियरिंग पढ़ रहा हूँ।’’ कबीर ने नेहा की नकल करते हुए कहा।
‘‘हा, हा.. मगर कंप्यूटर इंजीनियरिंग पढ़कर आप कंप्यूटर इंजिनियर तो बन जाएँगे।’’
‘‘हाँ, अगर पास हुआ तो।’’
‘‘नहीं तो?’’
‘‘फिलॉसफर बन जाऊँगा।’’ कबीर ने ठहाका लगाया।
‘‘वैसे एक बात कहूँ; कैंब्रिज में पढ़ने के अपने चैलेंज हैं।’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘वह ये कि भले पढ़ाई कितनी भी कठिन हो, आप फेल होना अफोर्ड नहीं कर सकते। किसी खटारा कार से अगर स़फर पूरा न हो, तो दोष कार पर डाला जा सकता है, मगर फरारी की सवारी करके भी मंज़िल तक न पहुँचे तो उसकी ज़िम्मेदारी आप ही को लेनी होती है।’’
‘‘अरे वाह! आप तो अभी से फिलॉसफर हो गईं।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘हे कबीर!’’ राज की आवा़ज आई। राज उनकी ओर ही आ रहा था।
‘‘हाय राज! मीट नेहा।’’ राज के करीब आते ही कबीर ने उससे नेहा का परिचय कराया।
‘‘हाय नेहा; थैंक्स फॉर गिविंग कबीर योर ब्यूटीफुल कंपनी।’’ राज ने नेहा से कुछ अधिक ही आत्मीयता से हाथ मिलाया, और फिर कबीर की ओर देखकर आँख मारते हुए कहा ‘‘होप कबीर बिहेव्ड हिमसेल्फ; इसे खूबसूरत लड़कियों के साथ की आदत नहीं है।’’
नेहा का चेहरा लजीले गर्व से गुलाबी हो उठा, और कबीर का चेहरा शर्मीली झेंप से लाल। कबीर की झेंप को महसूस किए बिना ही नेहा, राज के साथ बातों में मशगूल हो गई। कबीर, जो थोड़ी देर पहले नेहा के साथ में अपना खोया हुआ आत्मविश्वास ढूँढ़ रहा था, एक बार फिर नर्वस होने लगा। थोड़ी देर पहले उसे राज पर इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि वह उसे अकेला छोड़कर चला गया था; अब उसे राज से यह शिकायत थी कि उसने लौटकर उसे अकेला कर दिया था। मगर सच तो यह था कि कबीर को राज ने नहीं, बल्कि उसके साहस की कमी ने अकेला किया था। नेहा और राज अब भी उसके साथ ही थे; वो चाहता तो उनकी बातों में शामिल हो सकता था, मगर इस बार भी साहस की कमी की वजह से उसने अकेलेपन को ही चुना। उस रात के बाद कई दिनों तक कबीर ख़ुद को अकेला ही महसूस करता रहा।
 
अगले कुछ दिनों तक कबीर, राज से भी कटा-कटा सा रहने लगा। उसे राज से कुछ ईष्र्या भी होने लगी थी। जिस राज की, मिस्टर परफेक्ट की छवि से उसे कभी ईष्र्या नहीं हुई; जिस राज की साइडकिक बनकर भी वह खुश था; उसी राज से उसे अब ईष्र्या होने लगी थी, सि़र्फ इसलिए कि उसने उससे नेहा का साथ छीन लिया था। इस बात का अहसास राज को भी था कि कबीर उससे कटा-कटा सा रह रहा था, जो उसकी मिस्टर परफेक्ट की छवि के लिए अच्छा नहीं था। उसने कबीर की नारा़जगी दूर करना तय किया।
‘‘हे कबीर, आज रात क्लब चलते हो?’’ राज ने कबीर के दायें कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
‘क्लब?’
‘‘हाँ यार, बहुत दिन हो गए तुम्हारे साथ टाइम स्पेंड किए हुए... लेट्स एन्जॉय अवरसेल्व्स टुनाइट।’’
‘‘मगर..।’’
‘‘मगर वगर कुछ नहीं, लेट्स गो बडी।’’ राज ने ज़ोर देकर कहा।
‘‘ओके।’’ कबीर मना नहीं कर सका।
राज के साथ कबीर क्लब में कुछ अनमना सा ही दाखिल हुआ, मगर क्लब के भीतर के माहौल ने उसे थोड़ी जीवंत ऊर्जा से भरना शुरू किया। गूँजता हुआ संगीत, झिलमिलाती रौशनी और थिरकते हुए जवान जिस्मों का जोश उसके बदन को हरकत में लाने लगा। कबीर, राज के साथ बार की ओर बढ़ा ही था कि पीछे से किसी लड़की की आवा़ज आई, ‘‘हाय! कबीर, हाय राज!’’
कबीर ने आवा़ज से ही पहचान लिया कि वह नेहा की आवा़ज थी। कबीर ने ख़ुशी से मुड़कर देखा, पीछे नेहा खड़ी थी, मुस्कुराकर हाथ हिलाते हुए।
‘‘हाय! नेहा, तुम यहाँ?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘राज ने मुझे यहाँ बुलाया है; उसने तुम्हें नहीं बताया।’’ नेहा ने आँखों से राज की ओर इशारा किया।
‘‘मैं कबीर को सरप्राइ़ज देना चाहता था।’’ राज ने कबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
कबीर को राज का यह जेस्चर अच्छा लगा – तो राज उसके मन की हालत समझता था। राज वाकई मिस्टर परफेक्ट था, मगर फिर कबीर को वही घबराहट हुई; कहीं नेहा और राज उस दिन की तरह एक दूसरे में व्यस्त होकर उसे फिर से अकेला न कर दें। मगर कबीर ने निश्चय किया कि आज वह पीछे नहीं हटेगा, नेहा से जम कर बातें करेगा, और उसके साथ जम कर डांस भी करेगा। आ़िखर राज ने नेहा को उसके लिए ही तो वहाँ बुलाया था। या फिर राज का इरादा कुछ और तो नहीं था? वह ख़ुद तो नेहा को पसंद नहीं करता था? मगर यदि वह ख़ुद नेहा को पसंद करता होता, तो उसे क्यों क्लब में साथ ले आता, कबाब में हड्डी बनाकर; नेहा तो उसके लिए ही वहाँ आई थी।
कबीर और राज ने बार से बियर की एक-एक बोतल ली, और नेहा ने वाइट रम, पाइनएप्पल जूस और कोकोनट क्रीम का कॉकटेल। अपनी-अपनी ड्रिंक लेकर वे एक बूथ में पसर गए। गपशप करते हुए ड्रिंक्स के दौर चलते रहे। बीच-बीच में वे डांस फ्लोर पर भी हो आते, और फिर बैठकर शराब के घूँट भरते हुए बातों में लग जाते। इस बीच राज ने इस बात का पूरा ख़याल रखा, कि वह नेहा को अपनी बातों में इतना व्यस्त न कर ले कि कबीर अकेला महसूस करने लगे, मगर साथ ही नेहा की मेहमाननवा़जी में भी कोई कमी नहीं रखी। नेहा के ड्रिंक का गिलास खाली होता, और तुरंत ही दूसरा हा़िजर हो जाता। थोड़ी देर बाद राज का सेलफोन वाइब्रेट हुआ। राज ने अपना फ़ोन चेक किया। कोई मैसेज आया था।
‘‘गाए़ज, देयर इ़ज एन इमरजेंसी; आई हैव टू गो समवेयर; यू गाए़ज एन्जॉय योरसेल्व्स।’’ राज ने उठते हुए कहा।
कबीर को समझ आ गया, कि यह सब राज का प्लान किया हुआ था, उसे नेहा के साथ अकेले छोड़ने के लिए। राज वा़ज रियली ए वेरी नाइस गाए... मिस्टर परफेक्ट।
‘‘लेट्स गो टू डांस फ्लोर।’’ राज के जाते ही कबीर ने नेहा से कहा।
‘‘कैन आई हैव एनअदर ड्रिंक प्ली़ज।’’ नेहा ने खाली गिलास की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘‘नेहा, तुम पहले ही बहुत अधिक पी चुकी हो।’’ कबीर ने ऐतरा़ज किया।
‘‘जस्ट वन मोर।’’
‘‘अच्छा, क्या लोगी?’’ नशे में डूबी नेहा की अदा के आगे कबीर का ऐतरा़ज टिक न सका।
‘सेम।’
‘ओके।’
कबीर, नेहा के लिए वाइट रम, पाइनएप्पल जूस और कोकोनट क्रीम का एक और कॉकटेल ले आया।
‘‘डू यू ड्रिंक ए लॉट?’’ कबीर ने गिलास नेहा के सामने रखते हुए पूछा।
‘‘आई लाइक ड्रिंक्स।’’ नेहा ने गिलास उठाते हुए कहा। नेहा की आवा़ज से कबीर को लगा कि उस पर शराब का नशा कुछ ज़्यादा ही हो चुका था।
‘‘कितनी ड्रिंक्स लेती हो तुम!’’
‘‘जितनी मॉम की याद आती है।’’ नेहा ने ड्रिंक का एक लम्बा सिप लिया।
‘‘उसके लिए इतना ड्रिंक करने की क्या ज़रूरत है; वीकेंड पर घर जाकर माँ से मिल आओ।’’ कबीर ने बड़े भोलेपन से कहा।
कबीर की बात सुनकर नेहा के होठों पर एक हल्की सी हँसी उभरी, मगर तुरंत ही उस हँसी को हटाती उदासी की परत फैल गई, ‘‘कबीर, मॉम हमारे साथ नहीं रहतींr।’’
‘‘क्या मतलब?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘मैं पाँच साल की थी, जब मॉम और डैड अलग हो गए थे।’’
 
‘‘क्या मतलब?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘मैं पाँच साल की थी, जब मॉम और डैड अलग हो गए थे।’’
‘‘ओह सॉरी।’’
‘‘यू डोंट नीड टू बी सॉरी कबीर; मुझे अच्छा लगता है जब कोई मॉम की बात करता है।’’
‘‘अब मॉम कहाँ हैं? तुम उनसे मिलती तो हो न?’’
‘‘कबीर, इट्स ए लॉन्ग स्टोरी, रहने दो, लेट्स गो एंड डांस।’’ नेहा ने बाकी की शराब एक घूँट में गटकते हुए कहा।
कबीर, नेहा को लिए डांस फ्लोर पर आ गया। डांस करते हुए नेहा के क़दम लड़खड़ा रहे थे, और उसे कबीर की बाँहों के सहारे की कुछ अधिक ही ज़रूरत महसूस हो रही थी। नेहा के ना़जुक बदन को बाँहों में थामे, डांस करने में कबीर को आनंद तो बहुत आ रहा था, मगर साथ ही उसे नेहा की चिंता भी हो रही थी। मन तो उसका नेहा को यूँ ही बाँहों में लिए सारी रात डांस करते रहने का था, मगर नेहा का नशा धीरे-धीरे बेहोशी में बदल रहा था। थोड़ी देर डांस करने के बाद कबीर ने नेहा से कहा, ‘‘नेहा, आई थिंक, वी शुड गो नाउ।’’
‘‘ओ नो कबीर, थोड़ी देर और डांस करते हैं न... आई एम एन्जोयिंग इट।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में कहा।
‘‘नहीं नेहा; तुम्हें नशा कुछ ज़्यादा ही हो गया है, चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।’’
‘‘मेरा कोई घर नहीं है कबीर।’’ नेहा की आवा़ज में एक ऐसा दर्द था, मानो वह लड़खड़ाते हुए गिरकर कोई गहरी चोट खा बैठी हो।
‘‘जहाँ भी तुम रहती हो; चलो अब।’’ कबीर ने नेहा को दोनों बाँहों में भींचकर लगभग खींचते हुए कहा।
नेहा को बाँहों में भींचते हुए कबीर की साँसें ते़ज हो चली थीं, मगर उस वक्त उसे सि़र्फ नेहा का ख़याल था। क्लब से बाहर निकलकर कबीर ने इशारा कर एक टैक्सी बुलाई। टैक्सी की पिछली सीट का दरवा़जा खोलकर नेहा को टैक्सी में बैठाया।
‘‘नेहा प्ली़ज टेल योर एड्रेस।’’ कबीर ने नेहा से उसका पता पूछा।
‘‘मेरा कोई घर नहीं है।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में फिर वही कहा।
‘‘आजकल के बच्चे... न घर-बार की फ़िक्र है, और न ही माँ-बाप की। माँ-बाप समझते हैं कि ये पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होंगे, और ये यहाँ शराब पीकर लड़खड़ाते रहते हैं।’’ टैक्सी ड्राइवर अपने एक्सेंट और रंग-रूप से पाकिस्तानी मूल का लग रहा था।
‘‘हे यू शटअप! अपने काम से काम रखो, भाषण मत दो।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में टैक्सी ड्राइवर को झिड़का।
‘‘नेहा, अगर तुम अपना पता भी नहीं बताओगी, तो ये अपना काम कैसे करेंगे।’’ कबीर ने नेहा से कहा।
नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में अपना पता बताया। टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।
नेहा का स्टूडियो अपार्टमेंट सेकंड फ्लोर पर था। नेहा, टैक्सी में ही गहरी नींद में डूब चुकी थी। कबीर, नेहा को टैक्सी से उतारकर बाँहों में उठाए बिल्डिंग के भीतर पहुँचा। तीन फ्लोर ऊँची बिल्डिंग में लिफ्ट नहीं थी। कबीर को, नेहा को बाँहों में उठाए हुए ही दो फ्लोर की सीढ़ियाँ चढ़नी थीं; मगर किसी भी जवान लड़के को किसी जवान लड़की के खूबसूरत बदन का भार बोझ नहीं लगता। कबीर ने एक ऩजर अपनी बाँहों में झूलते नेहा के बदन पर डाली। एक ओर उसका खूबसूरत चेहरा और झूलते हुए खुले रेशमी बाल, दूसरी ओर पॉइंटेड हील के गोल्डन ब्राउन लेदर में लिपटे उसके ना़जुक पैरों तक पहुँचती सुडौल टाँगें और बाँहों के बीच स्कर्ट और क्रॉपटॉप के बीच से झलकती छरहरी कमर; ऐसे खूबसूरत बदन को वह दो फ्लोर की चढ़ाई तो क्या, समय के अंत तक उठाने को तैयार था।
नेहा के अपार्टमेंट के दरवा़जे पर पहुँचकर कबीर ने नेहा के बाएँ कंधे पर झूल रहे उसके पर्स से अपार्टमेंट की चाबी निकालकर दरवा़जा खोला। अपार्टमेंट छोटा, मगर खूबसूरत था। एक ओर रेड और क्रीम फैब्रिक का सो़फाबेड था, बीच में ओक वुड का कॉ़फी टेबल, और साथ में कुछ केन की कुर्सियाँ, और दूसरी ओर ग्लॉस क्रीम और रेड यूनिट्स का फिटेड किचन। अपार्टमेंट न सि़र्फ कॉम्पैक्ट और सा़फ-सुथरा था, बल्कि शौक और सलीके से सजाया हुआ भी था। अपार्टमेंट को देखकर यह कतई नहीं लग रहा था कि वह उस नेहा का था, जिसकी शामें और रातें अपनी उदासी को शराब में डुबाकर लापरवाही से गु़जरती हैं।
नेहा को सो़फाबेड पर लेटाकर, कबीर ने उसके पैरों से उसकी हील्स उतारनी चाही। कुछ देर के लिए कबीर की ऩजरें नेहा के ना़जुक पैरों पर लिपटी उसकी खूबसूरत हील्स पर ही जम गईं। कबीर को अचानक एक अद्भुत उत्तेजना सी महसूस हुई। उसका मन हुआ कि घुटनों के बल बैठकर नेहा के पैरों पर अपने होंठ रख दे। वह मन का मचलना क्या था? समर्पण, या किसी किस्म का सेक्सुअल फेटिश, जो चार्ली का लूसी के पैरों के प्रति था? या फिर दोनों में कोई अंतर ही नहीं था। कबीर ने चार्ली ही की तरह घुटनों पर बैठते हुए सिर झुकाकर अपने होंठ नेहा के पैरों के करीब लाए। नेहा की हील्स से उठती ता़जे लेदर की गंध, उसे और उत्तेजित कर गई। कबीर के होंठ काँप उठे, मगर उसकी हिम्मत उन्हें नेहा के पैरों पर रखने की नहीं हुई। मचलते हुए मन पर एक सहमा सा विचार मँडराया, कि कहीं उसके होंठों के स्पर्श से नेहा की नींद न खुल जाए। काँपते होंठों को नेहा की हील्स के करीब रखे हुए, वह कुछ देर उनसे उठती मादक गंध में मदहोश होता रहा; फिर उसने काँपते हाथों से नेहा की हील्स के स्ट्रैप्स खोले; हील्स को नेहा के पैरों से उतारकर, उसने उन्हें हसरत भरी निगाहों से देखा, और उन्हें अपने चेहरे से सटाते हुए उन पर अपने होंठ रख दिए। हील्स से उठती मादक गंध, उसे एक बार फिर मदहोश कर गई।
 
चैप्टर 12
उस रात अपने अपार्टमेंट लौटकर कबीर, नेहा के ख़यालों में ही महकता रहा, और उसकी फैंटसियों में नेहा ही मचलती रही। जो न हो सका, उसकी भरपाई, क्या कुछ हो सकता था, की कल्पनाओं से होती रही, मगर अगली सुबह, फिर कबीर को कल्पनाओं के मुलायम आकाश से उतारकर वास्तविकता की खुरदुरी ज़मीन पर ले आई। अपनी फैंटसियों से निकलने के बाद उसे नेहा की चिंता सताने लगी। नेहा का नशे में डूबना, उसका अपनी मॉम को मिस करना, उसका दर्द भरी आवा़ज में कहना - ‘मेरा कोई घर नहीं है।’ कबीर को लगा कि उसे नेहा से बात करनी चाहिए, कि आ़िखर उसका दर्द क्या है। छोटी उम्र में माँ-बाप का अलग हो जाना तकली़फदेह तो होता है, मगर कबीर को नेहा का दर्द कुछ अधिक ही लगा। शाम को कॉलेज खत्म होते ही उसने राज से नेहा का मोबाइल; नंबर लिया और उसे कॉल किया।
‘‘हेलो नेहा! दिस इ़ज कबीर; हाउ आर यू?’’
‘‘हे कबीर! आई एम फाइन; हाउ अबाउट यू।’’ नेहा ने आश्चर्य में डूबी ख़ुशी से कहा।
‘‘आई एम गुड नेहा; कैन वी मीट?’’
‘कब?’
‘‘अभी... एट प्रिंस कै़फे।’’
‘‘ओके, आई विल बी देयर इन टेन मिनिट्स।’’
नेहा को कै़फे पहुँचने में दस मिनट से ज़्यादा ही लगे। कबीर, कै़फे में उसका इंत़जार कर रहा था। नेहा का गेटअप देखकर कबीर को लगा, जैसे वह सीधे कॉलेज से ही चली आ रही हो। उसकी ड्रेस पर सिलवटें सी पड़ी थीं, मेकअप उतरा-उतरा सा लग रहा था, पैरों में हाई हील की जगह फ्लैट शू थे। वह नेहा उस नेहा से बहुत अलग लग रही थी, जो सारी रात उसकी फैंटसियों में थिरक रही थी। फिर भी नेहा को देखकर उसे अच्छा ही लगा। आज वह उस नेहा से मिलने आया था, जिसकी उसे चिंता सता रही थी; न कि उस नेहा से, जिसके ख़यालों में वह सारी रात महकता रहा था।
‘‘हाय नेहा, कैसी हो? कल तुम्हारी हालत कुछ ठीक नहीं थी।’’ कबीर ने सवाल किया।
‘‘अरे मैं ठीक हूँ; कल बस यूँ ही कुछ ज़्यादा पी ली थी।’’ टेबल के दूसरी ओर रखी कुर्सी पर बैठते हुए नेहा ने कहा।
‘‘नेहा, तुम इतना ड्रिंक क्यों करती हो कि सँभल ही न पाओ; इस तरह लड़खड़ाकर फरारी की सवारी करोगी?’’ कबीर के लह़जे में शिकायत भरी थी।
‘‘छोड़ो न कबीर; प्ली़ज ऑर्डर कॉ़फी।’’ नेहा ने पिछली रात के नशे की बात को टालना चाहा।
‘‘ओह या, क्या लोगी?’’
‘‘लेट्टे विद वन शुगर।’’
थोड़ी देर में कबीर दो कॉ़फी ले आया।
‘‘नाउ प्ली़ज टेल मी नेहा; तुम ख़ुद को शराब में क्यों डुबा देती हो?’’ कबीर ने बैठते हुए फिर वही प्रश्न किया।
‘‘कबीर, तुमने यही पूछने के लिए मुझे यहाँ बुलाया है?’’
‘‘हाँ नेहा, मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है।’’
‘‘तो सुनो कबीर; मुझे डिप्रेशन है, और मुझे ड्रिंक करके अच्छा लगता है।’’
‘‘डिप्रेशन की वजह?’’
‘‘मेरी माँ मुझे तब छोड़कर चली गई थी, जब मैं सि़र्फ पाँच साल की थी।’’
‘‘मुझे पता है नेहा; तुमने बताया था... मगर तलाक तो इस देश में आम बात हो गई है... तुम जैसे कितने बच्चे होंगे इस देश में; सब सारी ज़िंदगी डिप्रेशन में तो नहीं जी सकते।’’
‘‘मगर उन्हें कोई सहारा तो मिलता होगा; कबीर, मेरी कहानी बहुत अलग है।’’
‘‘मैं सुनने को तैयार हूँ नेहा; शायद तुम्हें कहकर अच्छा लगे।’’
‘‘कबीर; मेरे मॉम और डैड की अरेंज्ड मैरिज थी। डैड यहाँ ब्रिटेन में पले बढ़े हैं, और मॉम इंडिया से आई थीं। डैड बहुत ऐम्बिशस हैं; अपनी लॉ फ़र्म का बि़जनेस बढ़ाना और ऊँची सोसाइटी में उठना-बैठना, इसी में उनका ज़्यादा वक्त निकलता। मॉम साधारण थीं, डैड की लाइफ स्टाइल से उनका मेल नहीं था, और मॉम की लाइफ में डैड का वक्त नहीं था। इसके दो ही नती़जे हो सकते थे, या तो मॉम समझौता करतीं या फिर तलाक। मॉम समझौता नहीं कर पाईं। डैड बड़े लॉयर हैं; उन्होंने कोर्ट से मेरी कस्टडी ले ली। मॉम वापस इंडिया चली गईं।’’
‘‘तो क्या तुम्हारे डैड ने तुम्हारा ख़याल नहीं रखा?’’
‘‘डैड मुझे बहुत चाहते हैं; उन्होंने मुझे प्यार भी बहुत दिया है... मगर उनके प्यार में लिपटकर आती है उनकी ऐम्बिशन्स; उनके सपने। डैड मुझे लॉयर बनाना चाहते थे। मैंने पहले लॉ कोर्स में एडमिशन लिया था, मगर मुझसे न हो सका। मुझे लॉ बिल्कुल पसंद नहीं आया। डैड के जिस करियर, जिस प्रोफेशन ने उन्हें मॉम से दूर कर दिया, मैं उसे कैसे पसंद कर सकती थी। मैंने लॉ ड्राप करके फिलॉसफी ले लिया। डैड बहुत नारा़ज हुए। उन्हें फिलॉसफी मन को कम़जोर करने वाला विषय लगता है। ज़िंदगी की हक़ीक़त से भागकर फ़लस़फों की आड़ लेना; फिलॉसफी के बारे में डैड बस इतना ही समझते हैं। डैड को जितनी ऩफरत फिलॉसफी से नहीं है, उतनी कम़जोरी से है। बचपन में मुझे जब भी माँ की याद आती, मन उदास होता या डिप्रेशन होता, तो डैड के पास उसका एक ही इला़ज होता... वन ऑवर रिगरस प्ले। जिम जाओ, टेनिस खेलो, स्विमिंग करो; फिट और स्ट्रांग रहो... देयर इ़ज नो प्लेस फॉर द वीक इन दिस वल्र्ड। बस यही एक रट होती।’’
‘‘तुम्हारे डैड आर्मी स्कूल में पढ़े हैं?’’
‘‘कबीर, तुम्हें म़जाक सूझ रहा है?’’
‘‘सॉरी नेहा, मगर तुम्हारे डैड कैरेक्टर हैं।’’
‘‘कबीर, मुझे सि़र्फ डिप्रेशन ही नहीं था, बल्कि उसका अपराधबोध भी था; जैसे कि डिप्रेस होना कम़जोर होने की निशानी हो। सब कुछ तो है तुम्हारे पास, किस ची़ज की कमी है? – डैड बस यही कहते। ची़ज? प्यार तो कोई ची़ज नहीं होता न; माँ तो कोई ची़ज नहीं होती। ख़ुशी को ची़जों में तौलने वाले माहौल में डिप्रेशन से कहीं अधिक मन पर उसका बोझ तकलीफ देता है। जिसे साधनों की कमी हो, उसका डिप्रेशन तो फिर भी समझा जाता है, मगर जिसके पास सारे साधन हों, उसका डिप्रेशन? वह तो उसकी अपनी ही कमी समझा जाता है।’’
‘‘आई एम सॉरी टू हियर दिस नेहा; मगर क्या तुम कभी अपनी मॉम से नहीं मिली? या वह कभी तुमसे मिलने नहीं आर्इं?’’
‘‘मॉम ने इंडिया जाकर दूसरी शादी कर ली। मॉम मुझे वहाँ बुलाती हैं, मगर मेरा ही मन नहीं करता वहाँ जाने का। यहाँ के दर्द तो पहचाने हुए हैं; वहाँ जाकर न जाने कौन से नए दर्द मिलें।’’
जब अपने दुःख परेशान करें, तो दूसरों के दुःख समझो; अपने दुःख कम लगने लगते हैं। नेहा के दर्द सुनकर कबीर को भी यही अहसास हो रहा था। इससे पहले कि कबीर कुछ और कहता, एक खूबसूरत जवान लड़का पास से गु़जरते हुए रुका।
‘‘हाय नेहा!’’ लड़के ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘हाय साहिल!’’ नेहा ने एक मजबूर मुस्कान से जवाब दिया।
‘‘न्यू बॉयफ्रेंड?’’ साहिल ने कबीर की ओर इशारा किया।
‘‘साहिल प्ली़ज!’’ नेहा ने कुछ खीझते हुए कहा।
‘‘ओह! सॉरी नेहा, होप यू आर डूइंग वेल।’’
‘‘आई एम गुड, थैंक्स साहिल।’’
‘‘ओके... यू गाए़ज एन्जॉय योरसेल्फ, सी यू लेटर।’’ कहकर साहिल आगे बढ़ गया।
 
‘‘कौन है ये?’’ साहिल के जाते ही कबीर ने पूछा।
‘‘साहिल, मेरा बॉयफ्रेंड था।’’
‘‘बॉयफ्रेंड था?’’ कबीर के सवाल में बेचैनी के साथ आशंका भी थी।
‘‘हाँ; हम एक साल साथ थे, मगर अब हमारा ब्रेकअप हो गया है।’’
ब्रेकअप की बात सुनकर कबीर को थोड़ी तसल्ली हुई, मगर साहिल की इस छोटी सी मौजूदगी ने उसे फिर उसी पुराने कॉम्प्लेक्स से भर दिया। साहिल के, कबीर को नेहा का ‘न्यू बॉयफ्रेंड’ कहने पर नेहा का खीझ उठना, उसे एक विचित्र सी हीनता से भर गया। कबीर, नेहा के दर्द बाँटना चाहता था; उससे कहना चाहता था, ‘मैं हूँ न।’... मगर अचानक उसे अपना ‘मैं’ इतना छोटा लगने लगा, कि वह उसे नेहा के सामने पेश करने में घबराने लगा। साहिल का नेहा से ब्रेकअप हो चुका था; नेहा कबीर के साथ बैठी थी... मगर फिर भी कबीर, साहिल की मौजूदगी में कॉम्प्लेक्स महसूस कर रहा था। कबीर को एक बार फिर अपना कद छोटा, और दर्द बड़ा लगने लगा।
कबीर के अगले कुछ दिन नेहा से दूरी में कटे। उसने नेहा से मिलने की कोई पहल नहीं की, लेकिन उसे नेहा के मैसेज या फ़ोन कॉल आने की उम्मीद बनी रहती। हर मैसेज या कॉल पर वह फ़ोन की ओर बेसब्री से लपकता, कि शायद वह नेहा का ही हो; मगर हर बार उसे मायूसी ही हाथ लगती। कभी मन करता कि नेहा को कॉल किया जाए... मगर फिर लगता कि जिस लड़की ने उसे कोई मैसेज भी नहीं किया, उसकी उसमें भला क्या दिलचस्पी होगी। मगर फिर एक शाम एक सुखद आश्चर्य लेकर आई... नेहा का फ़ोन आया,
‘‘हे कबीर! हाउ आर यू?’’ फ़ोन पर नेहा की आवा़ज आई।
‘‘आई एम गुड नेहा, हाउ आर यू?’’ कबीर ने चहकते हुए कहा।
‘‘आई एम आल्सो गुड’’ नेहा ने कहा, ‘‘व्हाट आर यू डूइंग टूनाइट?’’
‘‘नथिंग इम्पोर्टेन्ट।’’ नेहा की ओर से किसी आमन्त्रण की आहट पाकर कबीर ने खुश होते हुए कहा।
‘‘आई एम गोइंग टू क्लब विद ए कपल ऑ़फ फ्रेंड्स, व्हाई डोंट यू आल्सो कम अलोंग?’’
‘‘व्हाई नॉट... सेम प्लेस?’’ कबीर की चहकती आवा़ज में एक नई उमंग घुल गई।
‘‘यस, सेम प्लेस।’’
नेहा, कबीर के लिए वह आलम्ब बन चुकी थी, जिस पर उसके मन का संतुलन टिका था; जिसकी एक करवट उसकी उमंगों को उड़ान देती, तो दूसरी, उसकी उदासी को उफान। जब मनुष्य का मन किसी ऐसे आलम्ब पर आकर टिक जाए, जिसकी अपनी ख़ुद की ज़मीन ही कच्ची हो, तो उसका मनोबल पल-पल डगमगाता है... ऐसी डगमगाती राह पर फरारी की सवारी, सि़र्फ और सि़र्फ दुर्घटना को ही जन्म देती है।
 
चैप्टर 13
उस शाम कबीर बहुत उमंगों से क्लब जाने के लिए तैयार हुआ। उमंग सि़र्फ नेहा से मिलने की ही नहीं थी; उमंग इस उम्मीद की भी थी, कि शायद उसे नेहा से ये कहने या अहसास दिलाने का मौका मिले, कि वह उसका संबल बन सकता है। स्किनी ब्लू जींस के ऊपर सिल्कसैटन की पार्टी शर्ट पर अरमानी का परफ्यूम छिड़ककर उसने अपनी उमंगों को और तरोता़जा किया। उन्हीं महकती उमंगों में मचलता हुआ वह क्लब पहुँचा, मगर भीतर का दृश्य देखकर उसकी उमंगें मुरझाने लगीं। भीतर एक बूथ में नेहा थी, और उसका हाथ थामे बैठा था साहिल। पहले-पहल तो कबीर को वह आँखों का धोखा लगा, मगर जल्दी ही उसे समझ आया कि वक्त उसके साथ एक और म़जाक कर रहा था। साहिल और नेहा फिर साथ थे। अगर साहिल नेहा की ज़िन्दगी में लौट आया था, तो फिर कबीर के लिए नेहा की ज़िन्दगी में कौन सी और कितनी जगह हो सकती थी? शायद नेहा की ज़िन्दगी में उसके लिए कोई ख़ास जगह थी ही नहीं। शायद वह जबरन ही नेहा की ज़िन्दगी में वह जगह ढूँढ़ रहा था, जो उसने उसके लिए बनाई ही नहीं थी। इन्हीं सवालों से उखड़े साहिल के क़दम क्लब के भीतर जाने के बजाय उसे वापस उसके घर लौटा लाए। इस बीच नेहा के कुछ फ़ोन कॉल भी आए, मगर कबीर का न तो उन्हें रिसीव करने का मन ही हुआ और न ही साहस।
अगले दिन सुबह उठने पर कबीर ने पाया कि उसके सेल़फोन पर नेहा के चार मिस्डकॉल थे। आश्चर्य की बात ये कि चारों कॉल सुबह ही आए थे। कबीर के लिए उन मिस्डकॉल को ऩजरअंदा़ज करना कठिन था। सुबह सुबह चार कॉल करने का मतलब ही था, कि कोई बहुत ही ज़रूरी बात थी। कबीर ने नेहा को कॉल किया। नेहा के फ़ोन उठाते ही उसकी सिसकती हुई आवा़ज आई, ‘कबीर..।’
कबीर चौंक उठा। नेहा सिसक क्यों रही थी? रात भर में ऐसा क्या हुआ?
‘‘नेहा क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?’’ कबीर की आवा़ज घबराहट भरी थी।
‘‘कबीर कैन यू प्ली़ज कम हियर?’’ नेहा ने उसी सिसकती आवा़ज से कहा।
‘‘श्योर, कहाँ?’’
‘‘माइ प्लेस।’’
‘‘आई विल बी राइट देयर।’’ कबीर ने हड़बड़ाते हुए कहा।
नेहा के स्टूडियो अपार्टमेंट में पहुँचकर कबीर ने देखा कि अपार्टमेंट का दरवा़जा खुला हुआ था। हड़बड़ाकर भीतर जाने पर पाया कि नेहा सो़फाबेड पर बैठी थी, घुटनों के बीच चेहरा दबाए।
‘‘नेहा, क्या हुआ? रो क्यों रही हो?’’ नेहा के बगल में बैठते हुए कबीर ने उसके सिर पर हाथ रखकर घबराते हुए पूछा।
‘‘कबीर, पहले यह बताओ कि तुम कल क्लब क्यों नहीं आए थे?’’ नेहा ने घुटनों से अपना चेहरा उठाया। उसके बाल बिखरे हुए थे, और आँखें सूजी हुई थीं।
‘‘सॉरी नेहा, कुछ ज़रूरी काम आ गया था; मगर तुमने तो एन्जॉय किया न।’’ कबीर ने झूठ बोला, जिसे शायद नेहा ने समझ भी लिया।
‘‘कल क्लब में साहिल आया था।’’ नेहा की आवा़ज में अब भी उसकी सिसकी मौजूद थी।
‘‘मैंने देखा था।’’ कबीर के मुँह से निकलते-निकलते रह गया।
‘‘साहिल मुझसे रिक्वेस्ट कर रहा था, कि क्या हम अपनी रिलेशनशिप को एक और मौका दे सकते हैं। मैंने कहा कि मैं उस वक्त कोई फैसला नहीं ले सकती; मुझे वक्त चाहिए था। साहिल ने कहा कि वह मुझे मिस कर रहा था, और कुछ वक्त मेरे साथ बिताना चाहता था। उस वक्त मैं अपने दोस्तों के बीच साहिल को शामिल करने के मूड में नहीं थी। मुझे लगा कि साहिल ख़ुद को मुझ पर लाद रहा था; मगर वह उदास लग रहा था, इसलिए मैंने उसे अपने साथ रहने दिया। हम आम रातों की तरह ड्रिंक, डांस और मस्ती करते रहे। धीरे-धीरे मेरे बाकी के दोस्त चले गए, और मैं और साहिल ही रह गए।’’
‘‘तुमने कल फिर ज़्यादा ड्रिंक की?’’
‘‘हाँ कबीर; कल फिर मेरी हालत वही थी; मैं नशे में होश खो रही थी। साहिल मुझे घर छोड़ने आया, मगर..मगर..कबीर...।’’ कहते हुए नेहा एक बार फिर सिसक उठी।
‘‘मगर..क्या हुआ?’’ कबीर ने घबराकर पूछा।
‘‘कबीर, मुझे ज़रा भी होश नहीं था, और उस बेहोशी की हालत में...।’’
‘‘क्या हुआ उस बेहोशी की हालत में?’’
‘‘साहिल ने मुझसे जबरन सेक्स किया।’’ नेहा फफक पड़ी।
‘‘व्हाट? यू मीन रेप?’’ कबीर चौंक उठा।
नेहा चुप रही; सि़र्फ उसकी सिसकियों की आवा़ज आती रही।
कबीर एक बार फिर एक अजीब से कॉम्प्लेक्स से भर गया। कभी उसकी बाँहों में भी नेहा थी; नशे में चूर, गहरी नींद में डूबी... मगर उसकी हिम्मत नेहा के पैर चूमने की भी नहीं हुई थी, और साहिल... किस तरह का लड़का रहा होगा साहिल? क्या साहिल ने अपनी किसी फैंटसी में किसी लड़की को कोई सम्मान, कोई अधिकार दिया होगा? क्या उसने किसी लड़की के आगे सिर झुकाया होगा, समर्पण किया होगा? साहिल जैसे लड़के, कैसे किसी लड़की का प्रेम हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं? कैसे किसी लड़की का उन पर दिल आ जाता है? क्या यही फ़र्क है अपनी फैंटसियों में जीने वाले कबीर और लड़कियों का प्रेम हासिल करने वाले लड़कों में?
‘‘छी..साहिल ऐसा कैसे कर सकता है! नेहा, तुम्हें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए।’’ कबीर ने साहिल के प्रति गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा।
नेहा फिर चुप रही। भीगी आँखों से उसने कबीर को देखा। उन आँखों में आँसुओं की कुछ बूँदों के अलावा कई सवाल भी थे, जिन्हें शायद कबीर पढ़ न सका।
‘‘नेहा, यू शुड रिपोर्ट इट टू द पुलिस; तुम्हारे डैड बड़े लॉयर हैं, वो साहिल को ऐसी स़जा दिलाएँगे कि वह ऐसी हरकत फिर कभी नहीं कर पाएगा।’’ कबीर ने ज़ोर देकर कहा।
नेहा ने फिर उन्हीं भीगी आँखों से कबीर को घूरकर देखा। उसकी आँखें कबीर के चेहरे को पढ़ रही थीं। कबीर के चेहरे पर लिखी इबारत कुछ कह रही थी; मानो कबीर में उसके लिए हमदर्दी से कहीं अधिक, साहिल के लिए ईष्र्या थी। मानो उसकी दिलचस्पी नेहा के दर्द को समझने से कहीं अधिक साहिल को दंड दिलाने में थी।
‘‘नेहा, वेट ए मिनट, आई एम कॉलिंग पुलिस।’’ कबीर ने अपने मोबाइल पर उँगलियाँ फेरते हुए कहा।
 
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