Indian Sex Kahani डार्क नाइट - Page 4 - SexBaba
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Indian Sex Kahani डार्क नाइट

‘‘लीव इट कबीर..!’’ नेहा चीख उठी, ‘‘तुम नहीं समझोगे... तुममें से कोई भी नहीं समझेगा; तुम सब एक जैसे हो; तुम नहीं समझ सकते कि एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है... थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास। कबीर, मेरा विश्वास टूटा है; रेप मेरे शरीर का नहीं; मेरी आत्मा का हुआ है; मेरी आत्मा रौंदी गई है, मेरा आत्मविश्वास रौंदा गया है। किसे स़जा दिलाओगे कबीर? अपराध तो मैंने ख़ुद किया है। मैं यकीन नहीं कर पा रही, कि मैंने कभी साहिल जैसे लड़के को चाहा था, उस पर भरोसा किया था; उसके साथ ख़्वाब सजाए थे। सेक्स हमारे बीच पहले भी हुआ था; इसी कमरे में, इसी बिस्तर पर... मगर इस तरह नहीं। मुझे आज उन सारी रातों की यादों से ऩफरत हो रही है, जो मैंने साहिल के साथ बिताई थीं; इस बिस्तर से ऩफरत हो रही है, इस हवा से ऩफरत हो रही है; मुझे ख़ुद से ऩफरत हो रही है कबीर... मैं किस पर भरोसा करूँ; मेरा तो ख़ुद पर भरोसा नहीं रहा... अपनी पसंद पर भरोसा नहीं रहा, अपने चुनाव पर भरोसा नहीं रहा।’’
कबीर, नेहा से कहना चाहता था, कि वह उस पर भरोसा कर सकती है, मगर कह न पाया। कैसे कह सकता था; जब वह नेहा को समझ न सका। उसका दर्द समझ न सका, तो उसका यकीन कैसे हासिल कर सकता था।
‘‘कबीर..यू प्ली़ज गो... लीव मी अलोन।’’ नेहा ने उसी सिसकती आवा़ज से कहा।
‘‘नहीं नेहा...आई एम सॉरी, बट यू नीड मी।’’
‘‘आई डोंट नीड एनीवन, प्ली़ज... प्ली़ज लीव मी अलोन।’’ कहकर नेहा ने अपना आँसुओं में भीगा चेहरा फिर से घुटनों के बीच दबा लिया।
कबीर, नेहा के अपार्टमेंट से लौट आया; मन पर बोझ लिए। पिछली शाम अगर वह क्लब से लौट न आता, तो नेहा के साथ जो हुआ, वह न हुआ होता। अन्जाने में किए अपराध के उस बोझ को भी उठाना होता है, जो अपराध करते वक्त नहीं उठाया होता। नेहा के अपार्टमेंट से लौटते हुए, कबीर के मन पर भी उस अपराध का बोझ नहीं था, जो वह उस वक्त कर रहा था।
कबीर उस दिन कॉलेज नहीं गया; अपने अपार्टमेंट में लौटकर बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा। यूँ ही करवटें बदलते हुए उसकी आँख लग गई। नींद में सारी दोपहर बीत गई। शाम को उठकर देखा, सेल़फोन पर राज का मैसेज था, जिसमें सि़र्फ एक पिक्चर फाइल अटैच की हुई थी। कबीर ने अटैच्ड फाइल खोली। वह इवनिंग डेली के फ्रट पेज की कॉपी थी। खबर थी – ‘क्वीन्स कॉलेज स्टूडेंट कमिट्स सुसाइड।’’
चैप्टर 14
प्रिया, कबीर की आँखों में अपना अक्स देख रही थी। उस अक्स को अगर थोड़ा ज़ूम किया जाता तो कबीर की आँखों में उसे अपनी आँखें दिखतीं, और अगर थोड़ा और ज़ूम होता, तो उनमें डूबता कबीर। प्रिया, कबीर की आँखों में अपने लिए प्रेम देख सकती थी। कबीर पहला लड़का नहीं था जिसे प्रिया से प्रेम हुआ था, मगर कबीर पहला लड़का था, जिसने प्रिया को इस कदर इम्प्रेस किया था। आ़िखर ऐसा क्या था कबीर में? कबीर हैंडसम था, मगर प्रिया सि़र्फ लुक्स से इम्प्रेस होने वालों में नहीं थी; कबीर में उसने कुछ और ही देखा था... शायद उसकी सादगी, जिसमें कोई बनावट नहीं थी, या फिर उसका अल्हड़ और रूमानी मि़जाज, या उसकी बच्चों सी मुस्कान, या फिर उसकी आँखों का कौतुक, या उसका कॉन्फिडेंस, उसका सेंस ऑ़फ ह्यूमर, उसकी स्पिरिट, उसका पैशन... या फिर ये सब कुछ ही... या फिर कुछ और ही।
मगर उसने कबीर में कुछ ऐसा देखा था, जो औरों में कम ही देखने को मिलता है। एक स्पिरिट, जो उड़ना चाहती थी, जैसे किसी नए आसमान की तलाश में हो; दुनियादारी की सीमाओं के परे...या फिर बिना किसी तलाश के, जैसे कि उसका मकसद ही सि़र्फ उड़ना हो... एक आसमान से उड़कर दूसरे आसमान में, एक संसार से होकर दूसरे संसार में। क्या ऐसे किसी इंसान का हाथ थामा जा सकता है, जिसे किसी मंज़िल की परवाह न हो? क्या वह इंसान किसी के साथ बँधकर रह सकता है, जिसका मकसद ही उड़ना हो? क्या उसके साथ एक स्थाई सम्बन्ध बनाया जा सकता है? मगर प्रिया के लिए कबीर के आकर्षण को रोक पाना बहुत मुश्किल था। वे एक दिन पहले ही मिले थे, और प्रिया ने उसके साथ रात बिताने का फैसला भी कर लिया था। कैसा होगा कबीर बेड में? कबीर, जिसका हाथ थामते ही प्रिया के बदन में एक शॉकवेव सी उठती थी, उसके बदन से लिपटकर पूरी रात गु़जारने के ख़याल का थ्रिल ही कुछ अलग था।
‘‘योर फ्लैट इ़ज अमे़िजंग! द इंटीरियर, द डेकॉर, द कलर स्कीम, एवरीथिंग इ़ज सो एलिगेंट एंड सो वाइब्रेंट।’’ कबीर ने शम्पैन का फ्लूट सेंटर टेबल पर रखा और काउच पर पीछे की ओर धँसते हुए ड्राइंगरूम में चारों ओर ऩजरें घुमाईं, ‘‘कहना मुश्किल है कौन ज़्यादा खूबसूरत लग रहा है; तुम या तुम्हारा फ्लैट।’’
‘‘डेयर यू से द फ्लैट?’’ प्रिया ने बनावटी गुस्से से कबीर को देखा; हालाँकि उसने पूरा दिन फ्लैट को ठीक-ठाक करने और सजाने में बिताया था। कबीर को लाने का प्लान था, तो फ्लैट को थोड़ा रोमांटिक लुक देना भी ज़रूरी था, इसलिए कबीर का, फ्लैट की सजावट की तारी़फ करना उसे अच्छा ही लगा।
‘‘तुम गुस्से में और भी खूबसूरत लगती हो प्रिया; फाच्र्युनेट्ली, ये फ्लैट तुम्हारी तरह गुस्सा नहीं कर सकता।’’ कबीर ने प्रिया का चेहरा अपने हाथों में लिया, और अपने चेहरे को उसके कुछ और करीब लाते हुए उस पर एक शरारती ऩजर डाली। उसकी हथेलियों की हरारत से प्रिया का बनावटी गुस्सा भी पिघल गया। प्रिया की नजरें उसके होठों से टपकती शरारत पर टिक गईं; उसका ध्यान उसके ख़ुद के घर पर, उसकी ख़ुद की, की हुई सजावट पर नहीं था। जिस माहौल को पैदा करने के लिए दीवारों पर रोमांटिक और इरोटिक पेंटिंग्स, और शोकेस में इरॉटिक आर्ट पीसे़ज सजाए थे, वह माहौल कबीर की एक मुस्कान पैदा कर रही थी। उस वक्त प्रिया को कबीर का चेहरा ड्राइंगरूम में सजे हर आर्ट से कहीं ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था। वाकई, इंसान के बनाए आर्ट की नेचर के आर्ट से तुलना नहीं की जा सकती। प्रिया को कबीर की मुस्कान, प्रकृति की ओर से उसे दिया जा रहा सबसे खूबसूरत तोह़फा लग रही थी।
‘‘ये आर्ट पीसे़ज बहुत महँगे होंगे; तुम्हें इनके चोरी होने का डर नहीं लगता?’’ कबीर ने फ्लैट में सजी महँगी कलाकृतियों की ओर इशारा किया।
‘‘मुझे तो अब तुम्हारे चोरी होने का डर लगता है।’’ प्रिया ने कबीर के गले में अपनी बाँहें डालीं।
‘‘प्रिया, यू आर सो रिच।’’ प्रिया के चेहरे से सरककर कबीर के हाथ उसके कन्धों पर टिक गए; जैसे उसके अमीर होने का अहसास उसे प्रिया से कुछ दूरी बनाने को कह रहा हो।
‘‘ऑ़फकोर्स! एस आई हैव यू नाउ।’’ प्रिया ने कबीर के हाथ अपने कन्धों से हटाकर उसकी बाँहें अपनी कमर पर लपेटीं।
‘‘मेरा वह मतलब नहीं है; आई मीन योर फ़ादर इ़ज ए बिल्यनेयर'
‘‘सो व्हाट?’’
‘‘एंड आई बिलांग टू मिडिल क्लास।’’
‘तो?’
‘‘समझदार लोग कहते हैं कि रिलेशनशिप बराबर वालों के बीच होनी चाहिए।’’
‘‘समझदार लोगों की समझदारी उन्हें ही मुबारक; मुझे तुम्हारी नासमझी अच्छी लगती है।’’
‘‘अच्छा, और क्या अच्छा लगता है मेरा?’’
‘‘तुम्हारी ये क्यूट सी नाक।’’ प्रिया ने शरारत से उसकी नाक खींची।
‘और?’ कबीर का चेहरा प्रिया की ओर कुछ और झुक आया। प्रिया की आँखों से छलक कर शरारत, उसकी आँखों में भी भर गई।
‘‘और.. तुम्हारी शरारती आँखें।’’
 
‘और?’ कबीर ने प्रिया की कमर पर अपनी बाँहें कसते हुए उन्हें हल्के से ट्विस्ट किया। कबीर की बाँहों में उसकी कमर टैंगो डांस के किसी मूव पर थिरक उठी।
‘‘और...तुम्हारे होंठ।’’ अपनी गर्दन को झटकते हुए प्रिया ने अपने होंठ कबीर के होंठों के करीब लाए, ‘‘इडियट, किस मी।’’ उसके होंठों से एक आवा़ज निकलते-निकलते रह गई।
‘और...।’
प्रिया के बेलीबटन के पीछे एक तितली सी नाच उठी। एक बटरफ्लाई, जो कबीर के होठों पर मँडराना चाहती थी, उसके होंठों का रस पीना चाहती थी। प्रिया को एक मीठा दर्द सा महसूस हुआ; एक चुभती हुई हसरत सी उठी, कबीर के होठों का स्पर्श पाने की। वह कबीर के होंठ अपनी नाभि पर महसूस करना चाहती थी, उसे सहलाते हुए, उसे चूमते हुए, उसे सक करते हुए। मगर कबीर के होंठ, जैसे उसके सब्र का इम्तिहान ले रहे थे, और कबीर की यही बात प्रिया को पसंद थी। उसमें एनर्जी थी, पैशन था; मगर बेसब्री नहीं थी।
मगर प्रिया से सब्र न हो सका। उसने अपने होंठ कबीर के होंठों पर रख दिए। कबीर के होंठ गीले थे, मगर प्रिया को ऐसा लगा मानो उसकी क्रिमसन लिपस्टिक जल उठी हो। उसकी गर्मी से कबीर के होंठ भी हरकत में आ गए। उसके होंठों ने हल्के से प्रिया के ऊपरी होंठ को चूमा। उसकी गर्म साँसों में भरी शैम्पेन की महक प्रिया की साँसों में घुल गई। कबीर का किस बहुत सॉफ्ट और जेंटल था, जैसे गुलाब की पंखुड़ी पर ओस की बूँद फिसल रही हो। उसी जेंटलनेस से प्रिया ने कबीर के निचले होंठ को अपने होंठों में दबाया और उसे बहुत हल्के से सक किया। एक ओर प्रिया कबीर से उसकी जेंटलनेस सीख रही थी, दूसरी ओर उसका मन कबीर का भरपूर पैशन देखना चाह रहा था। शी वांटेड हिम टू गो वाइल्ड, टू बाइट हर, टू टीयर हर इनटू पीसे़ज, एंड ईट हर। उसके हाथ कबीर की गर्दन से नीचे सरकते हुए उसकी कमर पर गए, और उसकी कमी़ज को ऊपर खींचकर उसकी पीठ सहलाने लगे। कबीर ने एक बार फिर प्रिया की कमर को ट्विस्ट किया, और अपने हाथ उसकी जाँघों पर जमाते हुए उसे काउच से उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया। प्रिया के हाथ कबीर की पीठ पर जकड़ गए। कबीर की पीठ के मसल्स हार्ड और स्ट्रांग थे, मगर प्रिया को उनका टच सिल्की लग रहा था... उसके नाखून उनमें धँस जाना चाहते थे, उन्हें चीर डालना चाहते थे। कबीर के हाथ प्रिया की जाँघों पर सरकते हुए उसकी पैंटी के भीतर पहुँचे। उसकी हथेलियाँ प्रिया के कूल्हों पर कसीं, और उसके नाखून प्रिया की सॉफ्ट स्किन में गड़ गए। प्रिया को हल्का सा दर्द महसूस हुआ, मगर वह दर्द भी मीठा ही था।
कबीर के नाखूनों ने प्रिया के कूल्हों में गड़कर उसके नाखूनों की ख्वाहिश को कुछ और भड़का दिया। प्रिया के नाखून कबीर की पीठ में गड़े, और उसके दाँतों ने कबीर के निचले होंठ को दबाकर उन्हें ज़ोरों से सक किया। कबीर ने प्रिया के ऊपरी होंठ पर अपनी जीभ फेरी, और अपने निचले होंठ को उसके दाँतों की पकड़ से छुड़ाते हुए उसके होंठ को अपने होंठों में दबा लिया। कबीर की जेंटलनेस अब वाइल्डनेस में बदल रही थी। प्रिया को ये अच्छा लग रहा था; यही तो वह चाहती थी। उसने कबीर के निचले होंठ को एक बार फिर अपने दाँतों में दबाकर खींचा, और अपनी जीभ को कबीर के होंठों के बीच से सरकाते हुए उसके मुँह के भीतर फिराया। कबीर के होंठों के बीच उसकी जीभ किसी चॉकलेट सी घुलने लगी।
कबीर के हाथों की हरकत कुछ और बढ़ी, और प्रिया की पैंटी को खींचकर जाँघों पर उतार लाई। कबीर के हाथ एक बार फिर प्रिया के कूल्हों पर जकड़ गए। उन हाथों की गर्मी से एक लपट सी उठी, जो प्रिया के सीने में पहुँचकर उसकी साँसों को सुलगाने लगी। इसी लपट का पीछा करते हुए कबीर के हाथ प्रिया की पीठ पर पहुँचे, और उसकी ड्रेस को अऩिजप करने लगे। प्रिया का जिस्म कबीर की बाँहों में कस रहा था, और उसकी ड्रेस ढीली होकर नीचे सरक रही थी। कबीर के होंठ प्रिया के होंठों से सरक कर गरदन पर से होते हुए क्लीवेज तक आ पहुँचे। पीठ पर कबीर के हाथों की हरकत एक बार फिर महसूस हुई। एक झटके में ब्रा का हुक खुला, और प्रिया ने कबीर के चेहरे को अपनी बाँहों में कसते हुए क्लीवेज पर नीचे सरका लिया। प्रिया की साँसों को सुलगाती लपट कुछ और भड़क गई।
कुछ देर के लिए प्रिया के होश पूरी तरह गुम रहे। जब होश आया तो ख़ुद को काउच पर लेटा हुआ पाया। कबीर के हाथ प्रिया की नाभि पर शैम्पेन उड़ेल रहे थे, और उसके होंठ उस पर किसी भँवरे से मचल रहे थे। प्रिया की नाभि के पीछे एक तितली फिर से थिरक उठी। शैम्पेन की एक धार, नाभि से बहते हुए टाँगों के बीच पहुँची और उसके गीले क्रॉच को कुछ और भी भिगो गयी। शैम्पेन की धार का पीछा करते हुए कबीर के होंठ भी नीचे सरके। प्रिया ने कबीर की गरदन पर अपनी टाँगें लपेटीं, और उसके चेहरे को कसकर थाम लिया। कबीर का जो वाइल्ड पैशन प्रिया देखना चाहती थी, वह उसकी टाँगों के बीच मचल रहा था। कबीर के हाथ अब भी उसकी नाभि पर शैम्पेन उड़ेल रहे थे। ऐसी शैम्पेन कबीर ने पहले कभी नहीं पी थी... ऐसी शैम्पेन प्रिया ने पहले किसी और को नहीं पिलाई थी।
‘‘हेलो! किसके ख्यालों में खोए हो?’’ कबीर का ध्यान प्रिया की मीठी आवा़ज से टूटा। वह एक भूरे रंग की चमकती हुई ट्रे में बोनचाइना का टी सेट ले आई थी।
‘‘रात तुम्हारे साथ बीती है, तो ख्याल किसी और के कैसे हो सकते हैं?’’
‘‘लड़कों की तो फ़ितरत ही ऐसी होती है; बाँहों में कोई और, निगाहों में कोई और।’’ प्रिया ने साइड स्टूल पर ट्रे रखते हुए कबीर पर एक शरारती ऩजर डाली।
‘‘ऐसी फ़ितरत वाले लड़कों के साथ तुम जैसी लड़कियाँ नहीं होतीं।’’
‘‘बहुत कुछ जानते हो लड़कियों के बारे में।’’ चाय के कप तैयार करते हुए प्रिया ने एक बार फिर कबीर को शरारत से देखा।
‘‘तुम भी तो बहुत कुछ जानती हो लड़कों के बारे में।’’ चाय का कप उठाकर होठों से लगाते हुए कबीर ने कहा।
‘‘लड़कों को समझना आसान होता है।’’ प्रिया ने चाय का कप उठाकर बड़ी ऩजाकत से अपने होठों पर लगाया, जैसे चाय का कप न होकर शैम्पेन का फ्लूट हो।
‘‘हम्म..वह कैसे?’’
‘‘वह ऐसे, कि उन्हें बस एक ही ची़ज चाहिए होती है।’’ , प्रिया की आँखों से एक नई शरारत टपककर उसके होठों पर फैल गई, ‘‘बाकी सब तो बस मायाजाल होता है; जाल में लड़की फँसी नहीं, कि जाल उधड़ने लगता है।’’
‘‘और लड़कियों को क्या चाहिए होता है?’’
‘‘लड़कियों को पूरा मायाजाल चाहिए होता है; उधड़ने वाला नहीं, बल्कि उलझाए रखने वाला।’’
‘‘हम्म..इंट्रेस्टिंग... तो लड़कों की फ़ितरत जानते हुए भी लड़कियाँ जाल में उलझे रहना पसंद करती हैं?’’
‘‘फ़ितरत और नीयत में फ़र्क होता है मिस्टर! लड़कियाँ नीयत देखती हैं; और नीयत की गहराई पढ़ने वाला उनका मीटर बड़ा स्ट्रांग होता है।’’ प्रिया ने कबीर की आँखों में आँखें डालीं... जैसे उसकी आँखें कबीर की आँखों में तैरती नीयत की गहराई नाप रही हों।
‘‘हूँ... तो मेरी नीयत के बारे में तुम्हारा मीटर क्या कहता है?’’
‘‘फ़िलहाल तो तुम्हारी नीयत ने तुम्हारी फ़ितरत को सँभाल रखा है।’’ प्रिया ने चाय का कप स्टूल पर रखा, और कबीर की गोद में बैठते हुए उसके गले में अपनी बाँहें डालीं। प्रिया के सिल्क गाउन का निचला हिस्सा उसकी जाँघों से फिसलकर दायीं ओर लटक गया, और उसकी जाँघें कबीर की जाँघों पर फिसलकर कुछ आगे सरक गयीं। कबीर की आँखों की गहराई में तैरती नीयत, प्रिया की आँखों के एनीमेशन पर थिरक उठी। कबीर ने प्रिया की मुलायम जाँघों पर अपनी हथेलियाँ कसते हुए उसे अपने कुछ और करीब खींचा। उसने कहीं पढ़ रखा था कि औरत की मुलायम जाँघों का मखमली स्पर्श सबसे खूबसूरत होता है, मगर उस वक्त उसे लग रहा था कि लिखने वाले ने ग़लत लिखा था... सबसे खूबसूरत तो औरत की आँखों का संसार होता है। जाँघ का मखमल तो वक्त की मार से ढीला पड़ जाता है, मगर आँखों का संसार वक्त के परे बसा होता है। कबीर उस वक्त प्रिया की आँखों के उसी इंद्रजाल में डूबा हुआ था। आँखें, जो नारनिया के मायावी संसार सी लुभाती थीं, जिसमें से होकर न जाने कितने रोचक संसारों की खिड़कियाँ खुलती हैं; आँखें, जो तिलिस्म-ए-होशरुबा सी दिलकश थीं, जिसमें भटककर, उसकी हुकूमत से जंग किए बिना निकलना मुमकिन नहीं होता। क्या हर आशिक यही नहीं चाहता? किसी दिलरुबा के इश्क़ में होश गवाँकर उसके तिलिस्म में भटकना। प्रिया ने ग़लत कहा था, कि लड़कों को तो बस एक ही ची़ज चाहिए होती है; लड़कों को भी पूरा मायाजाल ही चाहिए होता है, मगर जिस तरह क़ुदरत की माया में इंसानी जुस्तजू पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, उनकी फ़ितरत भी कोई बंधन स्वीकार करना नहीं चाहती। एक तिलिस्म की हुकूमत से जंग कर, दूसरे तिलिस्म की खिड़कियाँ ढूँढ़ना उनकी आदत बन जाती है।
 
चैप्टर 15
कबीर, नेहा की तस्वीर को एकटक देखता रहा। न तो उसके आँसू थम रहे थे, और न ही मन को चीरते विचार। अब तक वह नेहा के साथ हुए बलात्कार के अपराधबोध से उबर भी न पाया था, कि नेहा ने ख़ुदकुशी कर उसे एक नए अपराधबोध से भर दिया। कबीर, जो पहले ही अपनी ग्रंथियों का बोझ नहीं उठा पा रहा था, उसे इन अपराधों का बोझ भी उठाना था; और इस बोझ से उसकी ग्रंथियों को और भी उलझना था। कबीर के मन में रह-रहकर नेहा के ये शब्द चोट करते, ‘तुम नहीं समझ सकते कि एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है... थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास।’ कबीर, नेहा को यह सब दे सकता था, यदि उसने कभी इसे जाना या समझा होता। अगर वह नेहा की आँखों को, उनमें उठते सवालों को, पढ़ सका होता, तो वह नेहा को बचा सकता था। कबीर, नेहा को चाहता था, मगर उससे कह न सका। वह नेहा से हमदर्दी रखता था, मगर उसे जता न सका। अगर उसमें नेहा से यह कहने की हिम्मत होती, कि वह उसे चाहता है; अगर उसमें यह विश्वास होता, कि नेहा उसकी चाहत और उसकी हमदर्दी को स्वीकार करेगी, तो वह नेहा को बचा सकता था। नेहा को उसकी नासमझी से कहीं अधिक, उसकी ग्रंथियों ने मारा था, उसके हौसले की कमी ने मारा था। मगर हिकमा के सामने तो उसने हौसला दिखाया था, लेकिन उस हौसले में नासमझी भरी थी। कबीर, आँखों में आँसू और मन पर बोझ लिए, इन्हीं विचारों में उलझा रहा, और हर विचार उसकी ग्रंथियों को और उलझाता गया।
कबीर ने कुछ दिनों के लिए कॉलेज से छुट्टी लेकर घर जाना तय किया। कैंब्रिज और यूनिवर्सिटी का माहौल उसे रह-रहकर नेहा की याद दिलाता था, और वे यादें उसे लगातार तंग करती थीं। शहर से निकलकर कबीर ने अपनी कार मोटरवे पर उतारी। हवा में ठंढक थी, मगर धूप खिली हुई थी। कबीर का मन इस खिली धूप और हवा के ठंढे झोंकों में भी उदास था। कबीर ने कार की खिड़कियों के काँच चढ़ाए, और सीडी प्लेयर में हिन्दी फिल्मों के नए डांस नंबर्स की सीडी लगाई; मगर थोड़ी देर में उसका मन उन गानों से भी ऊबने लगा। अचानक खिली हुई धूप मुरझाने लगी, और आसमान में काले बादल छाने लगे। हल्की बूँदाबाँदी शुरू हुई, जिसने जल्दी ही ते़ज बारिश का रूप ले लिया। कबीर ने म्यू़िजक सीडी बंद किया, और वाइपर की स्पीड बढ़ाई। उसे अपना मन कुछ डूबता सा लगने लगा। उसे लगा, जैसे वह अपने माहौल से कटने लगा था, और समय ठहरने लगा था। ते़ज गति से चलता कार का वाइपर, धीमी गति से टिक-टिक करती घड़ी की सुई सा लगने लगा। अचानक उसे लगा, जैसे वह टाइम और स्पेस के अनंत महासागर में किसी छोटी सी नौका पर सवार हो, जिसकी नियति कुछ लहरें पार कर इसी महासागर में डूबकर खो जाने की हो। बाहर ते़ज गति से दौड़ती कारों की कतारें, पानी की उस धार की तरह लगने लगीं, जो किन्हीं काली अँधेरी कंदराओं की ओर बढ़ रही हों। सबकी एक ही नियति है; इस अनंत के अँधेरे में खो जाना... मृत्यु, जीवन का एकमात्र सत्य है।
बारिश थमने लगी और धूप फिर से निकल आई। कबीर ने अपने डूबते हुए मन को सँभालने की कोशिश की। मोटरवे के पार, हरे खेतों पर ऩजर डाली। खेतों की हरियाली भी उसके मुरझाते मन को हर्षित न कर पायी। बाहर एनिमल फार्म में कुछ मेमने उछल-कूद कर रहे थे। मेमनों की उछल-कूद उसे कुछ देर अच्छी लगी; फिर अचानक लगा, जैसे वे सारे मेमने एक कतार में लगकर किसी कसाईखाने की ओर बढ़ रहे हों। सबकी एक ही नियति है... मृत्यु। मेमना हो या मनुष्य, पाँवों पर हो या कार में, होण्डा में हो या फ़रारी में, हर यात्रा का अंत, अनंत अँधेरा है। नेहा ने फरारी की, सवारी की और झटपट वहाँ पहुँच गई। उसकी होण्डा धीमी गति से उसी अनंत अँधेरे की ओर बढ़ रही है... एक वन वे ट्रैफिक में।
कुछ दिन कबीर को अपनी मनःस्थिति कुछ समझ न आई। उदासी थी, और उदासी का सबब नेहा की मौत था, बस इतना ही उसे समझ आया था; मगर इस उदासी में उसकी सोच का सारा खलिहान ही मुरझा गया था। जिन विचारों में खूबसूरत सपने सजते थे, जिन ख़यालों में रंगीन फैंटसियाँ मचलती थीं; उनमें सि़र्फ मृत्यु की निराशा छाई हुई थी। सपनों के अर्थ टूट चुके थे, ख़्वाबों के मायने बिखर चुके थे। गहन अवसाद की धुंध घेरे हुए थी; मगर उस धुंध के पार भी वह सि़र्फ अँधेरे की ही कल्पना कर पा रहा था। ऐसी धुंध से निकलने का अर्थ भी क्या था? मगर उस धुंध में घुटते दम की पीड़ा भी असहनीय थी।
‘‘डू यू नो, व्हाट्स हैपनिंग विद यू?’’ लंदन साइकियाट्रिक क्लिनिक के लीड साइकाइट्री कंसलटेंट डॉ. खान ने सामने बैठे कबीर से पूछा।
‘‘आई डोंट नो... मन उदास रहता है, जीवन में दिलचस्पी खत्म हो रही है; मगर जीवन को लेकर मन में हर समय ख़याल दौड़ते रहते हैं, कि जीवन क्यों, यदि मृत्यु ही सच है; ज़िन्दगी का हासिल क्या है? किसी ख़ुशी को ढूँढ़ने का अर्थ क्या है? किसी तकली़फ से गु़जरने के मायने क्या हैं? यदि सब कुछ एक दिन खत्म ही हो जाना है, तो फिर कुछ होने का मतलब ही क्या है? स़फर धीमा हो या ते़ज; यदि अंत मृत्यु में ही है, तो उस स़फर का आनंद कैसे लिया जा सकता है? कैसे कोई किसी यात्रा का आनंद ले सकता है, जब पता है कि उसका अंत एक ऐसे घनघोर अँधेरे में होना है, जिसके पार कुछ नहीं है... सि़र्फ और सि़र्फ अंधकार है।’’
‘‘कबीर! दिस इस कॉल्ड क्लिनिकल डिप्रेशन; तुम क्लिनिकल डिप्रेशन से पीड़ित हो, मगर साथ ही तुम्हें बॉर्डर लाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी है। आई एम प्रिसक्राइबिंग यू एन एंटीडिप्रेसेंट; तुम्हें इसे लगभग छह महीने तक लेना होगा; इसके साथ ही मैं तुम्हें काउन्सलिंग के लिए भी भेज रहा हूँ; एंटीडिप्रेसेंट तुम्हारे डिप्रेशन को कम करेगी, और काउन्सलिंग से तुम्हें ख़ुद को डिप्रेशन से दूर रखने में मदद मिलेगी। होप यू विल बी फाइन सून; आई विल आल्सो राइट टू योर कॉलेज, दैट यू नीड सम स्पेशल केयर व्हाइल यू आर सफरिंग फ्रॉम डिप्रेशन।’’
कबीर को डॉ. खान की बातें थोड़ी अजीब सी ही लगीं। जीवन को लेकर उसके गहरे और गूढ़ सवालों का जवाब किसी दवा में कैसे हो सकता है? कोई केमिकल कैसे ज़िन्दगी की पेचीदा गुत्थी को सुलझा सकता है? शायद काउन्सलिंग से कोई हल निकले; मगर क्या किसी काउंसलर के पास उसके सवालों के जवाब होंगे?
फिर भी डॉ. खान का शुक्रिया अदा कर वह क्लिनिक से लौट आया।
‘‘हे कबीर! व्हाट्स अप डियर?’’ समीर ने उदास बैठे कबीर का कन्धा थपथपाया।
 
‘‘कुछ नहीं भाई; बस अच्छा नहीं लग रहा।’’ कबीर ने उदास स्वर में कहा।
‘‘यार ये क्या डिप्रेशन डिप्रेशन लगा रखा है... ऐसे बैठा रहेगा तो अच्छा कैसे लगेगा; चिल आउट एंड हैव सम फन।’’
‘‘नेहा इ़ज डेड, हाउ कैन आई हैव फन?’’ कबीर खीझ उठा।
‘‘फॉरगेट हर, लुक फॉर सम अदर गर्ल।’’
‘‘भाई प्ली़ज।’’
‘‘ओके चल उठ, आज तेरा डिप्रेशन भगाता हूँ।’’
‘‘नहीं, मेरा मूड नहीं है।’’
‘‘मूड ठीक करने वाली जगह ही ले जा रहा हूँ, चल जल्दी उठ।’’ समीर ने कबीर के कंधे को ज़ोरों से थपथपाया।
कबीर मना न कर सका। हर किसी को यही लगता था कि उसका डिप्रेशन उसका ख़ुद का पैदा किया हुआ था, और उसका बस एक ही इला़ज था, चिल आउट एंड हैव फन।
समीर, कबीर को वेस्ट एंड के एक स्ट्रिप क्लब में ले आया। स्ट्रिप क्लब, जहाँ खूबसूरत लड़कियाँ निर्वस्त्र होकर पोल डांस और लैप डांस करती हैं; और पुरुष, होठों में मदिरा और आँखों में कामुकता लिए उनके नग्न सौन्दर्य का आनंद लेते हैं। ब्रिटेन के आम युवकों की तरह ही कबीर का वह स्ट्रिप क्लब का पहला अनुभव नहीं था, मगर उस दिन का अनुभव कबीर को बहुत अलग सा लग रहा था। समीर ने बार से ख़ुद के और कबीर के लिए बियर से भरे गिलास लिए, और एक स्टेज पोल के सामने बैठकर कामुक नृत्य का आनंद लेने लगा। स्टेज पोल पर डांस करती लड़की के अलावा लाउन्ज में कई अन्य खूबसूरत नग्न या अर्धनग्न लड़कियाँ भी थीं, जो कभी उनके करीब आकर नृत्य करतीं, और कभी उनकी गोद में बैठ उन्हें अपने अपने मादक शरीर को सहलाने का अवसर देतीं, और फिर उनसे एक या दो पौंड का सिक्का लेकर किसी और की गोद में जा बैठतीं। मगर कबीर को उन मादक युवतियों का सौम्य स्पर्श भी किसी किस्म की कोई उत्तेजना नहीं दे रहा था।
थोड़ी देर में मझले कद की खूबसूरत और छरहरी सी लड़की आकर कबीर की गोद में बैठी। टैन्ड त्वचा और गहरे भूरे घुँघराले बाल।
‘‘आर यू कमिंग अपस्टेर्स फॉर ए पर्सनल डांस?’’ कबीर के गाल को सहलाते हुए लड़की ने मादक मुस्कान बिखेरी। त्वचा के रंग, नैन-नक्श और एक्सेंट से वह स्पेनिश लग रही थी।
कबीर ने कोई जवाब नहीं दिया। उसका मन वैसे भी वहाँ नहीं लग रहा था, और उस पर वहाँ का माहौल, जीवन को लेकर उठ रहे उसके सवालों को और भी पेचीदा कर रहा था।
‘‘गो कबीर! गो विद हर।’’ समीर ने कबीर के कंधे को थपथपाते हुए कहा।
‘‘नहीं भाई, मेरा मूड नहीं है।’’
‘‘अरे जा तो सही; मूड तो ये नंगी बना देगी।’’ समीर ने अपनी जेब से बीस बीस पौंड के दो नोट निकालकर कबीर के हाथों में पकड़ाए।
‘‘कम ऑन बेबी लेट्स गो।’’ लड़की ने कबीर के गाल को प्यार से थपथपाया। जामुनी नोटों को देखकर उसकी आँखें भी चमक उठीं।
कबीर अनमना सा ही सही, मगर उसके साथ जाने को तैयार हो गया।
कबीर को वह लड़की ऊपर एक खूबसूरत से कमरे में लेकर गई, जिसकी सजावट बहुत ही आकर्षक थी। लेस के जामुनी पर्दों के पार नीली नशीली रौशनी में धीमा संगीत बह रहा था। हवा में मस्क, लेदर, वुड और वाइल्ड फ्लावर्स की मिली-जुली मादक खुश्बू बिखरी हुई थी। कबीर को एक बड़े और आरामदेह लेदर काउच पर बैठाकर लड़की ने उसकी गोद में थिरकना शुरू किया। नृत्य, उसके रूप और अदाओं की तरह ही नशीला था। लड़की का बदन कबीर की जाँघों पर फिसलता जाता, और जो थोड़े बहुत कपड़े उसने अपने बदन पर लपेटे हुए थे, वे उतरते जाते। अंत में उसके शरीर पर आवरण के नाम पर पैरों में पहनी पाँच इंच ऊँची हील ही रह गई; मगर इन सबके बावजूद कबीर को न तो कोई आनंद आ रहा था, और न ही कोई उत्तेजना हो रही थी। भीतर ही भीतर कहीं कोई झुंझलाहट थी, कोई द्वंद्व था, जो बाहर नहीं आ रहा था। कुछ देर यूँ ही उदासीन से बैठे रहने के बाद अचानक कबीर का द्वंद्व फूट पड़ा, और उसने लड़की की कमर पकड़ उसे अपनी गोद से उठाकर काउच पर अपनी बगल में पटक दिया।
‘‘हे व्हाट आर यू डूइंग?’’ लड़की आश्चर्य से चीख उठी।
‘‘आई एम सॉरी, बट आई एम जस्ट नॉट एन्जॉयिंग इट।’’ कबीर ने बेरुखी से कहा।
‘‘व्हाट! आर यू नॉट एन्जॉयिंग मी?’’ लड़की के जैसे अहं पर चोट लगी।
‘‘सॉरी, आई एम नॉट एन्जॉयिंग दिस।’’
‘‘यू आर नॉट एन्जॉयिंग माइ ब्यूटी? माइ डांस? माइ टच? डोंट टेल मी दैट यू आर गे।’’
‘‘सॉरी, आई एम नॉट एन्जॉयिंग दिस प्लेस, आई एम नॉट इन मूड।’’
‘‘आर यू डिप्रेस्ड?’’ लड़की का आश्चर्य, सहानुभूति में बदल गया।
‘‘डॉक्टर्स से दैट आई स़फर फ्रॉम क्लिनिकल डिप्रेशन; बट आई डोंट अंडरस्टैंड व्हाट्स हैप्पेनिंग टू मी। आई डोंट अंडरस्टैंड लाइफ, आई डोंट अंडरस्टैंड दिस वल्र्ड, आई डोंट अंडरस्टैंड माइसेल्फ। आई वांटेड गल्र्स, आई डि़जाअर्ड सो मच, आई सफर्ड सो मच, आई टुक सो मच पेन... व्हाई? व्हाई डिड आई नॉट जस्ट गो एंड बाय? थ्रो मनी, गेट गर्ल, इट्स सो इ़जी... इ़जंट इट?’’
‘‘ला नॉचे ओस्कुरा।’’ लड़की का चेहरा गंभीर हो उठा।
‘‘व्हाट ड़ज इट मीन?’’ कबीर ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘इट्स स्पेनिश, फॉर द डार्क नाइट; व्हाट यू आर सफरिंग फ्रॉम इ़ज कॉल्ड डार्क नाइट ऑ़फ द सोल।’’
‘‘आई डिड नॉट गेट इट।’’
‘‘वेट ए मिनट।’’
लड़की कमरे से बाहर गई, और थोड़ी देर बाद हाथ में एक वि़िजटिंग कार्ड लिए लौटी।
‘‘मीट दिस गाए, ही विल हेल्प यू।’’ वि़िजटिंग कार्ड कबीर को देते हुए लड़की ने कहा।
‘‘हू इ़ज ही?’’
‘‘माइ योगा गुरु।’’
‘‘यू लर्न योगा?’’ कबीर ने आश्चर्य से पूछा।
 
‘‘यस, वी डू हैव लाइफ आउटसाइड ऑ़फ दिस स्ट्रिप क्लब; वी आर आल्सो ह्यूमन, वी आल्सो हैव मीनिंग एंड पर्प़ज इन अवर लाइफ।’’ लड़की ने तंज़ भरे स्वर में कहा।
‘‘सॉरी, आई डिड नॉट मीन दैट।’’ कबीर की आवा़ज में थोड़ी शर्मिंदगी थी।
‘‘डोंट वरी अबाउट इट, मीट दिस गाए।’’ लड़की ने कबीर के कन्धों पर हाथ रखते हुए उसके बाएँ गाल को हल्के से चूमा। पहली बार कबीर को उसका स्पर्श सुखद लगा।
चैप्टर 16
इस तरह मेरा परिचय कबीर से हुआ।
‘‘स्पेन के एक ईसाई संत और कवि हुए हैं, सेंट जॉन ऑ़फ द क्रॉस; उनकी कविता है, ‘ला नॉचे ओस्कुरा देल अल्मा’ यानि ‘डार्क नाइट ऑ़फ द सोल।’’ मैंने अपने सामने बैठे कबीर को बताया।
‘‘लेकिन इसका मतलब क्या है?’’ कबीर, डार्क नाइट का अर्थ जानने को विचलित था।
‘‘द डार्क नाइट एक मानसिक या आध्यात्मिक संकट होता है, जिसमें मनुष्य के मन में जीवन और अस्तित्व पर प्रश्न उठते हैं; जीवन जैसा है, उसके उसे कोई मायने नहीं दिखते; जीवन को उसने जो भी अर्थ दिए होते हैं वे टूटकर बिखर जाते हैं, जीवन उसे निरर्थक लगने लगता है।’’ मैंने कबीर को डार्क नाइट का अर्थ समझाया।
‘‘और मैं इस डार्क नाइट से गु़जर रहा हूँ?’’
‘‘संभव है... डिप्रेशन एक शारीरिक बीमारी है, जिसका क्लिनिकल ट्रीटमेंट ज़रूरी है; मगर शरीर, मन और आत्मा से जुदा नहीं है; मन और आत्मा का संकट ही शारीरिक बीमारियाँ पैदा करता है।’’
‘‘आप इसमें मेरी क्या मदद कर सकते हैं?’’ कबीर मुझसे कई उम्मीदें लेकर आया था।
‘‘उतनी ही, जितनी कि तुम स्वयं अपनी मदद करना चाहो।’’
‘‘सुना है आपके हाथों में जादू है; आप अपने हाथों से छूकर कुण्डलिनी जगा देते हैं।’’ कबीर की आँखों में आश्चर्य और उम्मीद की मिली-जुली तस्वीर थी।
‘‘हर सुनी-सुनाई बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए,’’ मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया; ‘‘खैर, पहले तुम अपनी बात कहो; मैं तुम्हारी पूरी कहानी सुनना चाहता हूँ... अब तक तुम्हारी जो भी प्राब्लम्स रही हैं; जो भी बातें, जिन्होंने तुम्हें पीड़ा दी है, परेशान किया है।’’
कबीर ने मुझे अपनी पूरी कहानी कह सुनाई।
‘‘मैं किसी लड़की का प्रेम पाना चाहता था; मगर प्रेम तो बस एक शब्द था, जिसे मैंने ठीक से समझा या जाना ही नहीं था; तो फिर वह क्या था, जिसे मैं पाना चाहता था? क्या टीना के बदन से लगकर जो सुख मिला था, मैं उसे पाना चाहता था? यदि वैसा ही था, तो उससे घबराकर मैं भाग क्यों आया था? क्या हिकमा के साथ में जो उमंग मुझे हासिल होती थी, मैं उसे पाना चाहता था? मगर हिकमा के साथ होते हुए भी मुझे टीना की मुस्कान क्यों खींच रही थी? एक पहेली सी थी टीना की मुस्कान, जिसे मैं कभी समझ नहीं पाया। नेहा का साथ भी एक पहेली ही था। नेहा के साथ रहकर भी मैं कभी उसे अपने करीब महसूस नहीं कर पाया। उस रात जब नेहा नशे में थी, मैं चाहता तो पूरी रात नेहा को बाँहों में समेटे रह सकता था, जी भर के उसके बदन को महसूस कर सकता था; मगर मैं सि़र्फ उसका बदन नहीं चाहता था, मैं पूरी नेहा चाहता था। पर जब पूरी नेहा मेरे सामने टूटकर, बिखरकर बैठी थी, तो मैं उसे क्यों नहीं समेट पाया? अगर उस वक्त मैं बाँहें फैलाता तो नेहा उसमें सिमट आती, मगर मैं नहीं कर पाया... आ़िखर क्यों?’’ कहते हुए कबीर की पीड़ा उसकी आँखों से बह निकली।
मैं थोड़ी देर कबीर के चेहरे को देखता रहा... उसके चेहरे पर पुता उसका अवसाद, उसके चेहरे पर खिंची उसकी उलझनें पढ़ता रहा; फिर मैंने कहा, ‘‘कबीर, तुम्हारी समस्या ये नहीं है कि तुम्हें किसी लड़की का प्रेम नहीं मिला, तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हें अपना ख़ुद का प्रेम नहीं मिला... तुम अपने स्वयं से प्रेम नहीं करते, तुम्हें अपने आप पर विश्वास नहीं है। ख़ुद से प्रेम करो, ख़ुद को ख़ास समझो, स्पेशल समझो। तुम्हारे अपने प्रेम से तुम्हारा रूप निखरेगा, तुम्हारा व्यक्तित्व आकर्षक बनेगा। जब तुम स्वयं से प्रेम करोगे, तो तुम्हारी आत्मा तुम्हें उत्तर देगी कि वह क्या चाहती है।’’
कबीर मेरे उत्तर से संतुष्ट लगा। वह मेरा शिष्य बन गया। वह मुझसे योग साधनाएँ सीखने लगा। वह मेरी हर बात पर गौर करता; मेरी हर शिक्षा पर अमल करता। कबीर का व्यक्तित्व बदलने लगा। कबीर को लगता था कि वह मेरी शिक्षा का जादू था... मैं जानता था कि वह उसके समर्पण और आस्था का जादू था।
‘‘का़फी दिलचस्प कहानी है कबीर की।’’ मीरा की आँखों का कौतुक संतुष्ट लग रहा था।
‘‘अभी कहानी खत्म नहीं हुई है।’’ मैंने मीरा से कहा। दरअसल कोई भी कहानी कभी खत्म नहीं होती; अलि़फ-लैला की दास्तानों की तरह एक के बाद दूसरे किस्से निकलते आते हैं; ‘‘आगे की कहानी सुनने से पहले आपको माया को जानना होगा।’’
‘माया?’
‘‘हाँ; माया प्रिया की सहेली है।’’
‘कहिए।’ मीरा ने रिलैक्स होते हुए पीछे की ओर पीठ टिकाई।
चैप्टर 17
प्रिया के सेलफोन की घंटी बजी। प्रिया ने फ़ोन उठाया। दूसरी ओर से आवा़ज आई, ‘‘हाय प्रिया! हाउ आर यू?’’
‘‘हे माया! आई एम गुड, हाउ अबाउट यू?’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।
‘‘अच्छी हूँ... तुझे एक गुड न्यू़ज देनी है; मैं लंदन आ रही हूँ, मुझे जॉब मिली है तेरे शहर में।’’
‘‘वाओ! दैट्स ग्रेट... कब आ रही है?’’
‘‘नेक्स्ट सैटरडे।’’
‘‘ब्रिलियंट; मेरा फ्लैट है लंदन में, आई वुड लव यू टू स्टे विद मी।’’
‘‘तुझे कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी?’’
‘‘प्रॉब्लम कैसी? आई विल एन्जॉय योर कंपनी।’’
‘‘आई मीन तेरा कोई बॉयफ्रेंड होगा।’’
‘‘फ्लैट शेयर करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है; बस बॉयफ्रेंड से दूर रहना।’’ प्रिया ने ठहाका लगाया।
 
माया प्रिया की फ्रेंड थी। ग्लासगो में किसी एसेट मैनेजमेंट फ़र्म में कंसलटेंट थी। प्रिया के विपरीत माया बहुत ऐम्बिशस थी। माया के जीवन का लक्ष्य आर्थिक प्रतिष्ठा के उस शिखर पर पहुँचना था, जो प्रिया को धरोहर में मिला हुआ था। अपने लक्ष्य को पाने के लिए माया मेहनत भी बहुत करती थी। प्रेम के लिए उसके पास अधिक वक्त नहीं था। उसे तलाश थी एक ऐसे जीवनसाथी की, जो उसकी तरह ही महत्त्वाकांक्षी हो; जो अमीर तो हो, मगर उसकी सम्पन्नता और समृद्धि की भूख शांत न हुई हो।
प्रिया, उत्सुकता से माया का इंत़जार करने लगी। पराये देश में किसी का साथ हो, और ख़ासतौर पर किसी करीबी दोस्त का; तो घर और देश से दूरी उतनी नहीं खलती। कबीर के प्रेम के बाद माया का साथ... प्रिया के दिन और रातें दोनों ही अच्छे होने चले थे, मगर जब सब कुछ अच्छा होने लगे, तो नियति को उपेक्षा सी महसूस होने लगती है, और वह रूठने लगती है। प्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। दो दिन बाद उसके घर से फ़ोन आया कि उसकी माँ की तबियत खराब है।
‘कबीर!’ प्रिया ने कबीर को फ़ोन लगाया।
‘‘हाय प्रिया!’’ कबीर का जवाब आया।
‘‘कबीर, मॉम इस नॉट वेल, मुझे इंडिया जाना होगा।’’
‘‘ओह, सॉरी टू हियर प्रिया, क्या हुआ मॉम को?’’
‘‘नथिंग टू सीरियस, बट शी नीड्स मी।’’
‘‘ओके प्रिया, प्ली़ज लेट मी नो, इफ आई कैन बी एनी हेल्प।’’
‘‘इसीलिए तो फ़ोन किया है कबीर।’’
‘‘यस, प्ली़ज टेल मी।’’
‘‘कबीर, सैटरडे को माया आ रही है ग्लासगो से; कैन यू प्ली़ज रिसीव हर।’’
‘‘ओह या, श्योर!’’
‘‘ठीक है, आई विल ड्राप माइ अपार्टमेंट्स की एट योर प्लेस।’’
‘‘डोंट वरी, आई विल कम एंड कलेक्ट।’’
कबीर, माया को लेने एअरपोर्ट पहुँचा। प्रिया ने माया की फ़ोटो कबीर को मैसेज कर दी थी, ताकि वह माया को पहचान सके; मगर कबीर अपने साथ माया के नाम की तख्ती भी ले गया था, कि कहीं कोई ग़लती न हो। तख्ती पर लगी स़फेद काग़ज की शीट पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘माया मदान’ ग्लासगो से आने वाली फ्लाइट लंदन सिटी एअरपोर्ट पहुँच चुकी थी। कबीर, माया के नाम की तख्ती पकड़े मीटिंग पॉइंट पर उसका इंत़जार कर रहा था, तभी उसे अपनी ओर एक लम्बी, गोरी और खूबसूरत लड़की आती दिखाई दी। लड़की का बदन यूँ तो शेप में था, मगर अपनी लम्बाई की वजह से वह दुबली और छरहरी लग रही थी। लम्बे गोरे चेहरे पर उसने रे-बैन के डार्क ब्राउन पायलट शेप सनग्लास पहने हुए थे। स्ट्रेट किए हुए भूरे बालों की लटें चेहरे को दोनों ओर से घेरे हुए थीं। सनग्लास और बालों के घेर से झाँकते चेहरे को पहचानना आसान नहीं था, फिर भी कबीर को वह माया ही लगी। भूरे रंग के बूटकट क्रॉप ट्राउ़जर्ज, के ऊपर उसने डस्की पिंक कलर का बॉक्सी टॉप पहना था, गले में गहरे लाल रंग का पॉपी प्रिंट फ्लोरल स्का़र्फ और पैरों में ब्राउन फ्लैट स्लाइडर्स। कुल मिलाकर उसका पहनावा का़फी स्टाइलिश और व्यक्तित्व का़फी आकर्षक था। सैंडलवुड कलर के ट्राली सूटकेस को खींचते उसकी सुघड़ चाल से ऊर्जा की एक लपट सी उठती दिख रही थी, जो बिखरने से कहीं ज़्यादा समेटने की चाहत रखती मालूम हो रही थी।
‘‘हाय माया!’’ कबीर के पास पहुँचकर माया ने तपाक से अपना दाहिना हाथ बढ़ाया।
‘‘हाय कबीर!’’ माया से हाथ मिलाते हुए कबीर ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘सॉरी, प्रिया को अचानक इंडिया जाना पड़ा, इसलिए...’’
‘‘आई नो; प्रिया ने मुझे बताया था।’’ कबीर का वाक्य पूरा होने से पहले ही माया ने कहा।
‘‘ओके लेट्स गो; ये सूटकेस मुझे दे दें।’’ कबीर ने माया के हाथ में थमे सूटकेस की ओर इशारा किया।
‘‘नो प्ली़ज डोंट वरी, आई एम फाइन टू कैरी दिस।’’ माया ने बेझिझक कहा।
‘‘बट आई डोंट फील फाइन विद दिस; आप इस शहर में हमारी मेहमान हैं।’’ कबीर ने सूटकेस थामने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। माया ने सूटकेस पर अपनी पकड़ ढीली करते हुए उसे कबीर के हाथों में जाने दिया।
‘‘स़फर कैसा रहा?’’ शार्ट स्टे कार पार्क की ओर बढ़ते हुए कबीर ने पूछा।
‘‘डेढ़ घंटे का स़फर था, एक मैग़जीन पढ़ते हुए कट गया।’’
‘‘ओह, किस तरह की मैग़जीन पढ़ती हैं आप?’’
‘बि़जनेस।’
कबीर की रुचि बि़जनेस में कम ही थी, इसलिए उसने आगे उस टॉपिक पर कोई बात नहीं की।
‘‘प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया के अपार्टमेंट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने माया से कहा, ‘‘प्रिया दस बारह दिन में लौट आएगी, तब तक यह अपार्टमेंट सि़र्फ आपके हवाले है।’’
‘‘हूँ... नाइस अपार्टमेंट; आप कहाँ रहते हैं कबीर?’’ माया ने करीने से सजे लाउन्ज पर ऩजर फेरते हुए कहा।
‘‘यहीं, ईस्ट लंदन में, ज़्यादा दूर नहीं; आप मेरा मोबाइल नंबर ले लें, किसी भी ची़ज की ज़रूरत हो तो फ़ोन करने से हिचकिचाइएगा नहीं।’’
‘थैंक्स।’ कबीर का मोबाइल नंबर नोट करते हुए माया ने कहा।
‘‘आज शाम का क्या प्लान है? अगर प्रâी हों तो बाहर डिनर पर चलें?’’
 
‘‘आइडिया बुरा नहीं है; वैसे भी आज डिनर करने मुझे बाहर ही जाना होगा, और इस इलाके को मैं अच्छे से जानती भी नहीं हूँ।’’
‘‘ठीक है, मैं आपको सात बजे पिक करूँगा।’’
कबीर, माया को उसी रेस्टोरेंट में ले गया, जहाँ वह प्रिया को ले गया था। उसी डिम लाइट में माया का चेहरा भी प्रिया के चेहरे की तरह चमक रहा था, मगर प्रिया के चेहरे पर एक शीतल आभा थी। स्ट्रिप क्लब की नीली नशीली रौशनी की तरह... जबकि माया के चेहरे से एक आँच सी उठती लग रही थी।
‘‘आपकी जॉब कहाँ है?’’ कबीर चाहकर भी अपनी आँखों को उस आँच से बचा नहीं पा रहा था।
‘‘यहीं सिटी में, इन्वेस्टमेंट फ़र्म है।’’
‘‘वाह... जॉब का़फी चैलेंजिंग होगी?’’
‘‘आइ लाइक चैलेंजेस।’’ माया की आँखों में एक चमक सी कौंधी, ‘‘आप क्या करते हैं कबीर?’’
‘‘फिलहाल तो कुछ नहीं।’’ कबीर ने बे़फिक्री से कहा।
‘‘क्या! आप कोई जॉब नहीं करते?’’ माया चौंक उठी।
‘नहीं।’ कबीर की बे़फिक्री कायम रही।
‘‘आपकी क्वालिफिकेशन क्या है?’’
‘‘कंप्यूटर साइंस में पोस्टग्रैड किया है।’’
‘‘फिर भी कोई जॉब नहीं कर रहे! हमारी फ़र्म को कंप्यूटर इंजिनियर्स की ज़रूरत रहती है; आप कहें तो मैं आपके लिए बात करूँ?’’
‘‘थैंक्स, मगर अभी मेरा जॉब करने का कोई इरादा नहीं है।’’ कबीर ने विनम्रता से कहा।
‘‘आप करना क्या चाहते हैं अपनी ज़िंदगी में?’’ माया की आवा़ज आश्चर्य में डूबी हुई थी।
‘‘उड़ना चाहता हूँ।’’ कबीर ने एक मासूम मुस्कान बिखेरी।
‘‘पायलट बनना चाहते हैं?’’
‘‘उहूँ, चील की तरह उड़ना चाहता हूँ पंख फैलाकर... ऊँचे, खुले आसमान में।’’
‘‘सच कहूँ तो आप मुझे किसी बड़े बाप की बिगड़ी औलाद लगते हैं।’’ माया के स्वर में म़जाक था या व्यंग्य, कबीर ठीक से समझ नहीं पाया।
‘‘बड़ा बाप ही क्यों, बड़ी माँ क्यों नहीं?’’ कबीर ने भी कुछ उसी अंदा़ज में पूछा।
‘‘वाजिब सवाल है, मगर कहावत तो यही है।’’
‘‘इसे ही तो बदलना है; जब आपके बच्चे हो जाएँ तो उन्हें बिगाड़कर नई कहावत बनाइएगा।’’ कबीर ने ठहाका लगाया।
‘‘मैं बच्चे नहीं चाहती।’’
‘क्यों?’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘मुझे ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल करना है; बच्चों की परवरिश के लिए मेरे पास वक्त नहीं रहेगा।’’
कबीर ने आगे कुछ नहीं कहा। उसे माया में वह नेहा दिखाई दी, जिसने अपने डैड की बात मान ली थी, और सफलता और समृद्धि की राह पर अपनी ज़िंदगी की फरारी सरपट दौड़ा दी थी। नेहा भी रेस ट्रैक पर थी, मगर बेमन से; उसकी ऩजरें मंज़िल पर नहीं थीं। उसे तो पता भी नहीं था कि उसे कहाँ जाना था... मगर माया अपनी मंज़िल जानती थी। क्या माया अपनी मंज़िल तक पहुँच पाएगी? ईश्वर न करे कि वह नेहा की तरह किसी दुर्घटना का शिकार हो।
खाना खत्म होने पर वेटर बिल ले आया।
‘‘लेट मी पे।’’ बिल पर लगभग झपटते हुए माया ने कहा।
‘‘नहीं माया, आप मेरी मेहमान हैं।’’ कबीर ने टोका।
‘‘मगर कबीर, तुम तो कुछ कमाते भी नहीं हो।’’
कबीर ने माया के उसे ‘तुम’ कहने पर गौर किया। क्या माया का ‘आप’ से ‘तुम’ पर आना औपचारिकता को त्यागना था; या फिर ये जानकर, कि वह कुछ कमाता नहीं था, माया की ऩजरों में उसका सम्मान कम हो गया था।
 
‘‘बड़ी माँ की बिगड़ी औलाद हूँ, इतने पैसे तो हैं मेरे पास।’’ कबीर ने हँसते हुए माया के हाथ से बिल लेना चाहा।
‘‘नो कबीर, आई इंसिस्ट।’’ माया ने अपना हाथ पीछे खींचा।
‘‘इस बार तो नहीं, फिर कभी।’’ कबीर ने अपने वॉलेट से कार्ड निकालकर वेटर को थमाया, ‘‘प्ली़ज चार्ज द अमाउंट ऑन माइ कार्ड।’’
उसके बाद लगभग एक सप्ताह कबीर और माया की बातचीत या मिलना न हुआ। माया, नई जॉब में कड़ी मेहनत कर रही थी... सीनियर मैनेजमेंट में इम्प्रेशन की गहरी जड़ें जमाने और उन पर सफलता के विशाल वृक्ष के विस्तार की कामना में। अगले रविवार कबीर ने सुबह-सुबह माया को फ़ोन किया,
‘‘हाय माया! हाउ आर यू?’’
‘‘आइ एम फाइन कबीर, हाउ अबाउट यू?’’ माया ने जवाब दिया।
‘‘आई एम गुड; प्रिया का फ़ोन आया था, उसकी मॉम की तबीयत अभी भी ठीक नहीं है, उसे कुछ और भी समय लगेगा आने में; मगर वह मुझसे नारा़ज है कि मैं तुम्हें वक्त नहीं दे रहा हूँ।’’
‘‘डोंट से दिस कबीर, इट्स मी, हू इ़ज बि़जी।’’ माया ने विनम्र स्वर में कहा।
‘‘आज अगर प्रâी हो तो तुम्हें लंदन घुमाया जाए।’’
‘‘थैंक्स कबीर; हाँ आज प्रâी हूँ।’’
‘‘ओके, आई विल कम इन ए बिट।’’
आसमान सा़फ था। धूप खिली हुई थी और हवा गुनगुनी थी। माया के साथ कबीर, पिकाडिली सर्कस पहुँचा। पिकाडिली सर्कस किन्हीं करतब दिखाने वाले जानवरों और आदमियों का सर्कस नहीं है; पिकाडिली सर्कस में सर्कस का अर्थ है, चौक या चौराहा... फिर भी पिकाडिली सर्कस में दर्शकों की भीड़ से घिरे कोई न कोई करतब दिखाते कुछ लोग अक्सर मिल जाते हैं। पिकाडिली सर्कस, उस पिकाडिली मार्ग पर बना है, जिसके बारे में चाल्र्स डिकेन्स ने ‘डिकेन्स डिक्शनरी ऑ़फ लंदन’ में लिखा है, ‘पिकाडिली वह एकमात्र विशाल मार्ग है, जिसकी तुलना लंदन इतराकर पेरिस के मार्गों से कर सकता है।’ उस दिन भी पिकाडिली सर्कस उतना ही व्यस्त था, जितना किसी भी अन्य दिन होता है। माया और कबीर पिकाडिली सर्कस मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले। सामने शैफ्ट्सबरी अवेन्यू और ग्लास हाउस स्ट्रीट के मोड़ पर बनी इमारत पर लगे बड़े-बड़े बिलबोर्ड पर निऑन लाइटें चमक रही थीं। पास ही कहीं कोई भीड़ से घिरा, साइकिल पर करतब दिखा रहा था। अचानक माया की ऩजर हाथों में मैप लिए बारी़की से कुछ तलाशते हुए बच्चों के कुछ समूहों पर गई।
‘‘ये बच्चे यहाँ क्या ढूँढ़ रहे हैं?’’ माया ने कबीर से पूछा।
‘‘ये ट्रे़जर हंट खेल रहे हैं... खज़ाने की तलाश में हैं।’’
‘खज़ाना?’
‘‘हाँ ये एक खेल है; इन्हें मैप के साथ कुछ क्लू दिए जाते हैं, जिनके सहारे इन्हें खज़ाने तक पहुँचना होता है... तुम खेलना पसंद करोगी?’’
‘‘अब इस उम्र में क्या ये बच्चों का खेल खेलेंगे?’’ माया ने अरुचि जताई।
‘‘बड़े होकर हमारी दुनिया कितनी छोटी हो जाती है न माया! बचपन में हमारा सपना होता है कि घोड़े पर सवार होकर कहीं दूर किसी खज़ाने की खोज में निकल पड़ें; किसी मायावी संसार में पहुँचें; किसी तिलिस्म को तोड़ें, किसी ड्रैगन से लड़ें; बड़े होकर ये सारे सपने पता नहीं कहाँ चले जाते हैं।’’
‘‘बड़े होकर हम प्रैक्टिकल हो जाते हैं, और इन किस्से-कहानियों की बातों पर विश्वास करना बंद कर देते हैं।’’
‘‘मैं अब भी किस्से-कहानियों में यकीन रखता हूँ माया; सपने पूरे होने के लिए ही होते हैं, मगर हम ही उन्हें अधूरा छोड़ देते हैं। किस्से-कहानियाँ हमें सि़र्फ यही नहीं बताते, कि ड्रैगन होते हैं; वे हमें ये भी बताते हैं कि ड्रैगन से लड़कर उसे हराया भी जा सकता है।’’
‘‘फ़िलहाल तो तुम्हें ये मुंगेरीलाल के हसीन सपने छोड़कर कुछ काम करने की ज़रूरत है... बिना कुछ किए कोई सपना सच नहीं होता।’’ माया ने हँसते हुए कहा। माया के चेहरे पर दर्प था। कबीर को उसमें लूसी के गुरूर की झलक दिखाई दे रही थी।
पिकाडिली सर्कस के बाद माया और कबीर टावर ऑ़फ लंदन के करीब थेम्स नदी पर बने टावर ब्रिज पहुँचे। खूबसूरत, टावर ब्रिज के नीचे बहते थेम्स के पारदर्शी प्रवाह को देखते हुए कबीर ने कहा।
‘‘माया! पता है; यहाँ थेम्स नदी को फादर थेम्स कहते हैं, जबकि हमारे भारत में नदियों को माँ कहा जाता है।’’
‘‘हम लोग नदियों को माँ कहकर भी उन्हें सा़फ तक नहीं रखते, जबकि ये लोग फादर कहकर भी नदियों को कितना सा़फ और खूबसूरत बनाकर रखते हैं।’’ माया की ऩजरें थेम्स के सौन्दर्य को निहार रही थीं।
 
‘‘मगर, नदी मुझे हमेशा माँ का रूप ही लगती है; पावन, शीतल और सौम्य। माँ शब्द की बात ही कुछ और है। दुनिया में जितनी भी ख़ूबसूरती है, वो सब, इस एक शब्द में समाई हुई है।’’ कबीर, कहते हुए कुछ भावुक हो उठा, मगर फिर उसे ध्यान आया कि माया ने कहा था कि वह माँ नहीं बनना चाहती। उसने माया के चेहरे पर गौर किया, जिस पर थोड़ी बेचैनी के भाव थे। अचानक कबीर की ऩजर सड़क के किनारे मस्ती में झूमकर गिटार बजाते आदमी पर पड़ी।
‘‘माया, बताओ ये किस गाने की धुन बजा रहा है?’’ कबीर ने विषय बदलने के इरादे से कहा।
‘‘हम्म.. आई थिंक इट्स द येलो रो़ज ऑ़फ टेक्सस बाय एल्विस।’’ माया ने सोचते हुए कहा.
‘‘सही गेस किया है।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा, ‘‘और पता है, कि फेमस हिंदी सांग ‘‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई..।’’ इसी गाने से इंस्पायर्ड है।’’
‘‘सॉरी, आई डोंट वॉच बॉलीवुड।’’ माया की आवा़ज में थोड़ी बेरु़खी थी।
‘‘पर गाने तो सुनती होंगी।’’
‘‘सारे वेस्टर्न गानों से लिफ्ट किए हुए तो होते हैं।’’
‘‘लिफ्ट नहीं इंस्पायर्ड।’’ कबीर ने एक बार फिर हँसते हुए कहा; ‘‘आओ तुम्हें इस सांग का हिंदी वर्जन सुनाया जाए।’’
‘‘तुम गाते हो?’’ माया ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘गाता नहीं बजाता हूँ; वेट ए मिनट।’’ कबीर ने गिटार बजा रहे आदमी के पास जाकर पूछा, ‘‘हाय जेंटलमैन! कैन आई बारो योर गिटार फॉर ए फ्यू मिनट्स?’’
‘‘श्योर; यू वांट टू प्ले फॉर दैट ब्यूटीफुल लेडी?’’ उसने माया की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘‘ओह येह।’’ कबीर ने उसके हाथ से गिटार लेकर उसके तार छेड़ने शुरू किए। हिंदी फिल्म ‘आ गले लग जा’ के गीत ‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई..’ की धुन हवा में तैर उठी। गीत की धुन पर माया के साथ राह चलते लोग भी झूम उठे। माया, धुन का आनंद ले रही थी, और वह कबीर के टैलेंट से भी प्रभावित थी, मगर फिर भी उसे कबीर का आवारा मि़जाज खल रहा था।
‘‘कबीर, यू आर सो ब्राइट एंड टैलेंटेड; तुम इस तरह अपना वक्त क्यों बरबाद कर रहे हो?’’ धुन पूरी होने के बाद माया ने कबीर से कहा।
‘‘किस तरह?’’ कबीर ने कुछ बेपरवाही से पूछा।
‘‘यही, सड़कों पर गिटार बजाकर।’’
‘‘मुझे यह वक्त की बरबादी नहीं लगता माया, आई एन्जॉय इट।’’
‘‘नो कबीर, यू नीड टु टेक योर लाइफ सीरियसली; ऐसा करो, कल मुझे मेरे ऑफिस में मिलो।’’ माया का लह़जा थोड़ा सख्त था, जैसे कि वह किसी बिगड़े बच्चे पर लगाम कस रही हो।
‘‘तुम्हारे ऑफिस में?’’
‘‘हाँ, और अपना सीवी लाना मत भूलना'।
 
चैप्टर 18

‘‘कबीर, तुम्हारे ग्रेड्स बहुत अच्छे हैं; हमारी फ़र्म तुम्हें बहुत अच्छा पैकेज दे सकती है।’’ माया ने कबीर का सीवी देखते हुए कहा।

‘‘मगर माया, मैं अभी जॉब नहीं करना चाहता; अभी तो मैंने तय भी नहीं किया है कि मैं क्या करना चाहता हूँ।’’

‘‘कबीर, तुम्हारे पेरेंट्स इंडिया से यहाँ इसीलिए आए थे, कि तुम पढ़ाई पूरी करने के बाद भी ये तय न कर सको कि तुम्हें करना क्या है? क्या उन्होंने तुम्हें इतनी अच्छी एजुकेशन इसलिए दी, कि तुम सड़कों पर गिटार बजाते फिरो?’’ माया ने कबीर को झिड़का।

‘‘वेल दैट्स फन, आई सेड आई एम एन्जॉयिंग माइ लाइफ।’’

‘‘एंड आई सेड, यू नीड टू टेक योर लाइफ सीरियसली; आई एम सेंडिंग योर सीवी टू द एचआर, यू विल हियर फ्रॉम अस सून।’’ माया ने कबीर के सीवी पर कुछ लिखते हुए कहा, ‘‘और हाँ, आज शाम को मुझे घर पर मिल सकते हो?’’

‘‘अब क्या मुझे घर पर भी नौकर रखोगी।’’ कबीर ने म़जाक किया।

‘‘नहीं, मुझ पर तुम्हारा डिनर उधार है।’’ , एक लम्बे समय के बाद माया के होठों पर मुस्कान आई, ‘‘और हाँ, अपना गिटार भी लेकर आना... तुम गिटार बहुत अच्छा बजाते हो।’’
शाम को कबीर, प्रिया के अपार्टमेंट पहुँचा; एक खूबसूरत गुलदस्ता और शैम्पेन की दो बोतलें लिए।

‘‘प्ली़ज कम इन।’’ माया ने दरवा़जा खोलते हुए कहा।

‘‘थैंक्स, यू आर लुकिंग वेरी प्रिटी।’’ कबीर ने गुलदस्ता माया के हाथों में दिया और उसके बाएँ गाल से अपना बायाँ गाल मिलाया।

‘‘थैंक्स कबीर, प्ली़ज हैव ए सीट।’’

कबीर ने सो़फे पर बैठते हुए अपनी ऩजरें लिविंग रूम में घुमार्इं। उसे आश्चर्य हुआ, कि लिविंग रूम की सजावट बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी कि प्रिया छोड़ गई थी। फूलदानों में रखे फूल भी बदले नहीं गए थे, जो अब कुछ मुरझाने भी लगे थे। पिछले एक हफ्ते से वहाँ रह रही माया ने फ्लैट की सजावट में अपनी कोई पसंद या अपना कोई किरदार नहीं जोड़ा था।

‘‘माया! एक हफ्ते बाद भी यह फ्लैट प्रिया का फ्लैट ही लग रहा है; ऐसा लग ही नहीं रहा कि यहाँ कोई माया भी रह रही है।’’ कबीर ने थोड़े शिकायती अंदा़ज में कहा।

‘‘यह प्रिया का ही फ्लैट है, मैं तो बस मेहमान हूँ यहाँ।’’

‘‘हाँ, मगर मेहमान की भी तो अपनी कोई पसंद होती है; जिस घर में माया रह रही है, उसे देखकर माया के बारे में भी तो कुछ पता चले।’’

‘‘क्या जानना चाहते हो मेरे बारे में?’’

‘‘बहुत कुछ... फ़िलहाल तो मैं उस माया को जानता हूँ, जो प्रोफेशनल है, बॉसी है; जिसे सक्सेस, मनी और पॉवर पसंद है... मगर वह माया कैसी है, जो घर पर रहती है? उसे क्या पसंद है? उसे कौन से रंग पसंद हैं, कौन से फूल पसंद है, कैसी तस्वीरें पसंद हैं, कैसा म्यू़िजक पसंद है... वह माया कितनी रोमांटिक है; उसे लड़के कैसे पसंद हैं..।’’

‘‘कबीर..।’’ माया ने आँखों के इशारे से कबीर को झिड़का।

‘‘ओके; माया को लड़के पसंद नहीं हैं।’’ कबीर ने शरारत से हँसते हुए कहा।

‘शटअप!’ माया ने एक बार फिर उसे झिड़का।

‘‘लेट्स हैव सम ड्रिंक्स फर्स्ट... शायद ड्रिंक करके तुम कम्फर्टबल हो जाओ।’’

‘‘आई थिंक इट्स ए गुड आइडिया।’’

शैम्पेन की बोतल खोलकर फ्लूट्स में उड़ेलते हुए माया ने पूछा। ‘‘तुम शैम्पेन की दो बोतल क्यों लाए हो?’’
 
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