desiaks
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मै शनिबार अहमदाबाद पहुच गया. शाम हो गइ थी आने मे. नाना नानी मुझे हर बार की तरह स्माइल के साथ ही स्वागत किया. लेकिन हर बार की तरह माँ वहां दिखाइ नहीं दि. मैं अंदर आके अपना बैग रखा. पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की जब यह लोग इतने खुश दिख रहे है तो , जरूर कोई गड़बड़ तो नहीं है घर पर. फिर भी माँ मेरे साथ ऐसे क्यों कर रही है. मेरी कौन सी ग़लती पे माँ मुझ पर नाराज हो गयी!! क्या में उनको अन्जाने में दुःख पहुंचाया!!! यह सब भावनाएं मुझे घेर ने लगी. माँ जनरली घर पर ही रहती है. और आज तो मेरा आने का दिन है. आज तो वह रहती ही है. तोह फिर क्यों वह मेरे से मिलने सामने नहीं आई.
हम सब ड्राइंग रूम के सोफे पे बैठे थे. नानीजी पानी लाक़े दिए पीने के लिए और फिर नाना नानी मेरे से हास् हास् के खुसी के साथ बात कर रही थे. वही सब पुराना टोपीक. मेरा हाल वगेरा पूछते रहे. मैं उनलोगे के सवाल का जवाब दे रहा था छोटी छोटी शब्द मे. क्यूँ की मेरा मन धीरे धीरे जिद्द पकड़ने लगा. अगर सच में अन्जाने में में कोई ग़लती कर भी लिया , तो माँ होकर उनका यह फ़र्ज़ नहीं बनता की वह सामने से आकर अपनी बेटे का वह दोष बतादे.. और चाहे तो जो मर्ज़ी सजा दे. ऐसा न करके वह पूरे हप्ताह मेरे से ठीक से बात भी नही की. और अभी तो वह मेरे सामने भी नही आइ . मेरा दिल उनके लिए जिद्दी होने लगा. मेरा आंख जलने लगी. मैंने सोचा की ठीक है, अगर वह माँ होकर अपनी बेटे के साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, तोह में भी उनका बेटा हुण. मैं भी उनसे जाके मिलूँगा नहि, जब तक वह मेरे पास नही आती. मैं भी बहुत जिद्दी हुण. मैं बहुत भावुक बन रहा था. फिर भी में खुद को कण्ट्रोल करके नाना नानी से बात कर रहा था. इन सब बातों के बीच नानाजी मेरे तरफ देख के बोले
" बेटा.. तुमसे कुछ बात करना है." मैं शांति से बोला
" कहिये नानाजी"
उनहोने एक बार नानीजी को देख, फिर मेरे तरफ देख के थोड़ा स्माइल के साथ बोलै
" इतना अर्जेंट भी नहीं है. तुम फ्रेश हो जाओ. खाना वाना खाके आराम से बैठ के बाते करेंगे."
मैं मेरे रूम में जाकर फ्रेश होने लगा. नानाजी न जाने क्या बात करना चाहते है. लेकिन में माँ को लेके ज़ादा चिंतित था. ऐसे ही बहुत सारी चिंता से मन भरी था. कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. दिल बोल रहा था की है तो माँ इसी घर पर ही. दौड़ के जाके उनसे पुछु की क्या मेरा गुनाह है. पर मेरा जिद्द मेरा पैरों को बांध के रखा. मैं एक नया पाजामे और टी- शर्ट पेहेनके जैसे ही बाहर ड्राइंग रूम में आया, तब नानी डिनर के लिए बुलाया.
आज नानाजी और में बैठा. मालूम था की पहले जैसा आज सब कुछ होनेवाला नहीं था. नानी सर्व करने लगी. लेकिन में किचन में माँ की उपस्थिति फील कर रहा था. और एक दो बार तो नानी से बात भी करते हुए सुना. मुझे एक गुस्सा आया. सब तो ठीक ही है. तोह क्या में ही गुन्हेगार हूँ!! और नाना नानी को भी माँ का इस तरह से व्यवहार करना, या इस तरह से मेरे सामने पेश होना, जरूर नज़र आ रहा होगा. फिर भी कोई किसी को कुछ बोल भी नहीं रहा है. खाना खाते खाते सोचा की शायद नानाजी इस बारे में ही कुछ बताने वाले है.
डिनर के बाद नानाजी मुझे टेरेस पे लेके गये. गर्मी का टाइम था. सो टेरेस पे एक अच्छा फील हो रहा था. थोड़ा थोड़ा हवा आ रहा था बीच बीच मे. आस पास का एरिया में ऐसे ही सब प्राइवेट मकान है. और ईस्ट साइड में ,हमारे महल्ले का रास्ता जाकर जहाँ बड़े रास्ते से मिला है, वहां कुछ फ्लैट बिल्डिंग है. बाकि तरफ दूर दूर तक मैदान दिखाइ देता है. उधऱ से हवा आरही है. नानाजी किनारे के तरफ जाकर , टेरेस की फेंसिंग में टेक लगाके एक सिगरेट निकाले. और बोलने लगे " तुम्हारा नानी यहाँ नहीं है अब... तोह ठीक है...." बोलके हॅसने लगे और माचिस निकालकर सिगरेट जला लिये. मैं बोला
" नानाजी...डक्टर आप को स्मोक करने में मना किया है"
उन्होंने एक कस लगाके धुआं छोड़के बोला
" एक आध पिने में कुछ नहीं होता है..."
नानाजी हस्ते हस्ते ऐसे बाते सुनाने लगे. कुछ समय ऐसे ही बीत गया. पर मेरा मन यह सब सुन नहीं रहा था. मुझे बार बार यह चिंता सता रही है की नानाजी आखिर मुझे क्या बताना चाहते है.
ईस सब सोच के बीच नानीजी आवाज़ लगाई. हम नीचे गये. मैं नज़र घुमाके माँ को देख नहीं पाया. किचन में लाइट ऑफ है. माँ शायद डिनर करके अपने रूम में चलि गयी. मुझे बहुत ग़ुस्सा हुआ माँ के उपर. मैंने क्या ग़लती किया की उन्होंने मुझे ऐसे सजा दे रही है. नानाजी मुझे उनके कमरे में आने को कहे. नानीजी भी आ गई. नानाजी आकर दरवाज़ा थोड़ा बंध कर दिया.
मैं बेड के पास रखा कुरसी में बैठा. नाना नानी बेड पे आराम से बैठे. मेरा टेंशन बढ़ रहा है. आखिर क्या कहेंगे, और उस में माँ का क्या ताल्लुक है. यह सब हज़ारों चिंता जब मेरा दिमाग में भीड़ किया तब नानाजी बोलना सुरु किया.
"बेटा...हुम तुम्हारा परवरिश का कोई कमी नहीं रखा है. बचपन से सब कुछ देते आया. और आज तक तुम्हारा सब भावना चिंता हम करते है लेकिन अब तुम बड़े होगये हो. जॉब कर रहे हो. हम को छोड़के दूर जाकर अकेले रहने लगे हो. मालूम है वहां तुमको अकेले रहने में कुछ परेशानी फेस भी करना पडता है. तभी भी... यह सब से हम को बहुत ख़ुशी होता है. तुम अब तुम्हारी जिंदगी खुद जीने जा रहे हो. उस से हम को भी हटना पड़ेगा. और हम भी और कितना दिन रहेंगे. हमारा जाने के बाद भी तुम को अच्छी तरह ज़िन्दगी जीना है. अपना फॅमिली बनाना है. तो अब हम सोच रहे है की तुम्हारी शादी करवाने के लिये."
हम सब ड्राइंग रूम के सोफे पे बैठे थे. नानीजी पानी लाक़े दिए पीने के लिए और फिर नाना नानी मेरे से हास् हास् के खुसी के साथ बात कर रही थे. वही सब पुराना टोपीक. मेरा हाल वगेरा पूछते रहे. मैं उनलोगे के सवाल का जवाब दे रहा था छोटी छोटी शब्द मे. क्यूँ की मेरा मन धीरे धीरे जिद्द पकड़ने लगा. अगर सच में अन्जाने में में कोई ग़लती कर भी लिया , तो माँ होकर उनका यह फ़र्ज़ नहीं बनता की वह सामने से आकर अपनी बेटे का वह दोष बतादे.. और चाहे तो जो मर्ज़ी सजा दे. ऐसा न करके वह पूरे हप्ताह मेरे से ठीक से बात भी नही की. और अभी तो वह मेरे सामने भी नही आइ . मेरा दिल उनके लिए जिद्दी होने लगा. मेरा आंख जलने लगी. मैंने सोचा की ठीक है, अगर वह माँ होकर अपनी बेटे के साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, तोह में भी उनका बेटा हुण. मैं भी उनसे जाके मिलूँगा नहि, जब तक वह मेरे पास नही आती. मैं भी बहुत जिद्दी हुण. मैं बहुत भावुक बन रहा था. फिर भी में खुद को कण्ट्रोल करके नाना नानी से बात कर रहा था. इन सब बातों के बीच नानाजी मेरे तरफ देख के बोले
" बेटा.. तुमसे कुछ बात करना है." मैं शांति से बोला
" कहिये नानाजी"
उनहोने एक बार नानीजी को देख, फिर मेरे तरफ देख के थोड़ा स्माइल के साथ बोलै
" इतना अर्जेंट भी नहीं है. तुम फ्रेश हो जाओ. खाना वाना खाके आराम से बैठ के बाते करेंगे."
मैं मेरे रूम में जाकर फ्रेश होने लगा. नानाजी न जाने क्या बात करना चाहते है. लेकिन में माँ को लेके ज़ादा चिंतित था. ऐसे ही बहुत सारी चिंता से मन भरी था. कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. दिल बोल रहा था की है तो माँ इसी घर पर ही. दौड़ के जाके उनसे पुछु की क्या मेरा गुनाह है. पर मेरा जिद्द मेरा पैरों को बांध के रखा. मैं एक नया पाजामे और टी- शर्ट पेहेनके जैसे ही बाहर ड्राइंग रूम में आया, तब नानी डिनर के लिए बुलाया.
आज नानाजी और में बैठा. मालूम था की पहले जैसा आज सब कुछ होनेवाला नहीं था. नानी सर्व करने लगी. लेकिन में किचन में माँ की उपस्थिति फील कर रहा था. और एक दो बार तो नानी से बात भी करते हुए सुना. मुझे एक गुस्सा आया. सब तो ठीक ही है. तोह क्या में ही गुन्हेगार हूँ!! और नाना नानी को भी माँ का इस तरह से व्यवहार करना, या इस तरह से मेरे सामने पेश होना, जरूर नज़र आ रहा होगा. फिर भी कोई किसी को कुछ बोल भी नहीं रहा है. खाना खाते खाते सोचा की शायद नानाजी इस बारे में ही कुछ बताने वाले है.
डिनर के बाद नानाजी मुझे टेरेस पे लेके गये. गर्मी का टाइम था. सो टेरेस पे एक अच्छा फील हो रहा था. थोड़ा थोड़ा हवा आ रहा था बीच बीच मे. आस पास का एरिया में ऐसे ही सब प्राइवेट मकान है. और ईस्ट साइड में ,हमारे महल्ले का रास्ता जाकर जहाँ बड़े रास्ते से मिला है, वहां कुछ फ्लैट बिल्डिंग है. बाकि तरफ दूर दूर तक मैदान दिखाइ देता है. उधऱ से हवा आरही है. नानाजी किनारे के तरफ जाकर , टेरेस की फेंसिंग में टेक लगाके एक सिगरेट निकाले. और बोलने लगे " तुम्हारा नानी यहाँ नहीं है अब... तोह ठीक है...." बोलके हॅसने लगे और माचिस निकालकर सिगरेट जला लिये. मैं बोला
" नानाजी...डक्टर आप को स्मोक करने में मना किया है"
उन्होंने एक कस लगाके धुआं छोड़के बोला
" एक आध पिने में कुछ नहीं होता है..."
नानाजी हस्ते हस्ते ऐसे बाते सुनाने लगे. कुछ समय ऐसे ही बीत गया. पर मेरा मन यह सब सुन नहीं रहा था. मुझे बार बार यह चिंता सता रही है की नानाजी आखिर मुझे क्या बताना चाहते है.
ईस सब सोच के बीच नानीजी आवाज़ लगाई. हम नीचे गये. मैं नज़र घुमाके माँ को देख नहीं पाया. किचन में लाइट ऑफ है. माँ शायद डिनर करके अपने रूम में चलि गयी. मुझे बहुत ग़ुस्सा हुआ माँ के उपर. मैंने क्या ग़लती किया की उन्होंने मुझे ऐसे सजा दे रही है. नानाजी मुझे उनके कमरे में आने को कहे. नानीजी भी आ गई. नानाजी आकर दरवाज़ा थोड़ा बंध कर दिया.
मैं बेड के पास रखा कुरसी में बैठा. नाना नानी बेड पे आराम से बैठे. मेरा टेंशन बढ़ रहा है. आखिर क्या कहेंगे, और उस में माँ का क्या ताल्लुक है. यह सब हज़ारों चिंता जब मेरा दिमाग में भीड़ किया तब नानाजी बोलना सुरु किया.
"बेटा...हुम तुम्हारा परवरिश का कोई कमी नहीं रखा है. बचपन से सब कुछ देते आया. और आज तक तुम्हारा सब भावना चिंता हम करते है लेकिन अब तुम बड़े होगये हो. जॉब कर रहे हो. हम को छोड़के दूर जाकर अकेले रहने लगे हो. मालूम है वहां तुमको अकेले रहने में कुछ परेशानी फेस भी करना पडता है. तभी भी... यह सब से हम को बहुत ख़ुशी होता है. तुम अब तुम्हारी जिंदगी खुद जीने जा रहे हो. उस से हम को भी हटना पड़ेगा. और हम भी और कितना दिन रहेंगे. हमारा जाने के बाद भी तुम को अच्छी तरह ज़िन्दगी जीना है. अपना फॅमिली बनाना है. तो अब हम सोच रहे है की तुम्हारी शादी करवाने के लिये."