hotaks444
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मेने उसकी टांगो को थोड़ा फैलते हुए अपनी जीब उसकी चूत के मुँह पर रख दी, "ओह आआआअहह ओह." उसके मुँह से सिसकारी निकल पड़ी.
मैं अपनी ज़ुबान उसकी चूत के चारों तरफ फिरा रही थी कि बबिता ने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपनी ओर उठाते हुए पूछा, "दीदी तुम सही मे ये करना चाहती हो?"
"हां मैं तो करना चाहती हूँ, क्या तुम भी करना चाहती हो?" मेने उसकी चूत पर जीभ फिराते हुए कहा.
बबिता ने मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया और बोली, "ःआआआआण मीयेयिन कायर्नायये चाहती हूओन ऊहह प्रीईएटी मुझे प्याअर कारू."
उसकी चूत से उठ रही सुगंध मुझे बहोत अछी लग रही थी, में उसकी चूत का स्वाद भी लेना चाहती थी. मेने अपनी जीब उसकी चूत मे घुसाइ और चाटने लगी. उसकी चूत का स्वाद उसकी सुगंध से भी बेहतर था.
मेने अपने आपको ठीक उसकी टाँगो के बीच कर लिया और उसकी चूत को चाटने और चूसने लगी. चूत चूस्ते मेने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल दी और अंदर बाहर करने लगी.
बबिता जोरों से सिसक रही थी, "ओह डीईईईड्डी चूऊवसो हाआँ और ज़ोर से ओह अया आआआआज़ तक किसीस ने मेरी चूओत को आईसीई नही चूवसा."
बबिता उत्तेजना मे अपने कूल्हे उपर को उठा मेरी जीब को और अंदर तक घुसाने की कोशिश करने लगी. उसने नीचे से खुल्हे उठाए और उपर से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया, मुझे लगा कि मेरी जीब उसकी बच्चेदानि को छू रही थी.
बबिता ज़ोर से चीखी, "हाआँ ख़ाा जाओ मेरी चूऊत को ओह हाां ऑश मेराअ चूऊओटा." कहकर उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.
बबिता की चूत भी मेरी चूत की तरह धार मार कर पानी छोड़ती थी. मैं अपने होठों से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और उसका रस का स्वाद लेने लगी. मैं एक एक बूँद चूस चूस कर पी रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी जन्मों की प्यास बुझ रही थी.
बबिता निढाल होकर लेटी थी. मैं भी लेट कर अपनी उंगलियाँ अपनी चूत मे डाल अब अंदर बाहर कर रही थी. मेरे बदन मे आग लगी हुई थी और में भी झड़ने को बेताब थी.
बबिता ने जब मुझे मुठियाते देखा तो पूछा, "दीदी क्या में तुम्हारी चूत को छू सकती हूँ?'
मेने अपनी गर्दन हां मे हिलाई और बबिता अब मेरी टाँगो के बीच आ गयी. उसने धीरे से मेरी चूत पर हाथ फिराना शुरू किया.
मेने कई औरतों के साथ समय बिताया था पर ऐसा लग रहा था कि बबिता की उंगलियों मे जादू था. उसके हाथ लगाते ही एक अजीब नशा मेरे शरीर मे छा गया.
बबिता मेरे बदन को चूमते हुए नीचे की ओर आई और मेरी चूत को मुँह मे भर चूसने लगी. वो अपनी जीब को मेरी चूत के चारों और फिराते तो मुझे बड़ा अछा लगता. मैं भी उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके चुतताड मसल रही थी.
बबिता ने मेरी जांघों को थोड़ा उठा कर अपने कंधे पर रख लिया जिससे मेरी चूत उपर को उठ गयी. उसने दोनो हाथों से मेरे कूल्हे पकड़ रखे थे और मेरी चूत मे अपनी ज़ुबान अंदर बाहर कर रही थी.
मैं उत्तेजना मे पागल हुए जा रही थी. मेने अपनी टाँगो को उसकी गर्दन मे फँसा लिया था और अपनी चूत को उँचा उठा उसके मुँह मे दबा रही थी.
मुझसे सहन नही हो रहा था, मेरे सारे शरीर मे मानो चीटियाँ रेंग रही थी, में चिल्ला रही थी, "ओह हाआअँ चूऊवसूओ ओह आअहह जूऊर सीई ओह."
बबिता अब और जोरों से मेरी चूत मे अपनी जीब और होठों का कमाल दिखा रही थी. मेरा झड़ने का वक़्त आ गया था मेने अपनी चूत को और दबाते हुए पानी छोड़ दिया, जैसे कोई बाँध टूट गया हो मेरी चूत पानी पर पानी छोड़ रही थी.
वो अपने होठों से मेरा सारा पानी पी गयी फिर ज़ुबान चारों ओर फिरा मेरे रस को चाट रही थी.
मैं निढाल हो अपनी सांसो पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. बबिता मेरे बगल मे लेटते हुए बोली, "प्रीति मुझे नही पता था कि तुम इतनी गरम औरत हो?"
"हां और मुझे भी नही पता थी कि इतनी अच्छी तरह से चूत चूस्ति और चाट्ती हो?' मेने उसके होठों को चूमते हुए कहा.
"मुझे औरतों के साथ सेक्स करने में माज़ा आता है, क्या तुम्हारे पास कोई खिलोने है मज़े के लिए?" बबिता ने पूछा.
"हां दो है जो शायद तुम्हे पसंद आएँगे, वही जो उन लेज़्बीयन लड़कियों ने मुझे मनाली मे दिए थे." मेने उसे याद दिलाते हुए कहा.
"तब तो मज़्ज़ा आ जाएगा, में तो रुक नही सकती, और में रश्मि को भी अछी तरह से जान लेना चाहती हूँ." बबिता बोली.
"ज़रूर तुम्हारे जाने से पहले तुम्हे हर चीज़ का मज़ा मिलेगा ये मेरा वादा है." मेने कहा.
उसके बाद पूरे दिन हम बातें करते रहे. दोपहर को हमारा खेल एक बार फिर चला. शाम को प्रशांत अपने काम से वापस आया और हम दोनो को रात के खाने के लिए बाहर ले गया.
मैं अपनी ज़ुबान उसकी चूत के चारों तरफ फिरा रही थी कि बबिता ने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपनी ओर उठाते हुए पूछा, "दीदी तुम सही मे ये करना चाहती हो?"
"हां मैं तो करना चाहती हूँ, क्या तुम भी करना चाहती हो?" मेने उसकी चूत पर जीभ फिराते हुए कहा.
बबिता ने मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया और बोली, "ःआआआआण मीयेयिन कायर्नायये चाहती हूओन ऊहह प्रीईएटी मुझे प्याअर कारू."
उसकी चूत से उठ रही सुगंध मुझे बहोत अछी लग रही थी, में उसकी चूत का स्वाद भी लेना चाहती थी. मेने अपनी जीब उसकी चूत मे घुसाइ और चाटने लगी. उसकी चूत का स्वाद उसकी सुगंध से भी बेहतर था.
मेने अपने आपको ठीक उसकी टाँगो के बीच कर लिया और उसकी चूत को चाटने और चूसने लगी. चूत चूस्ते मेने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल दी और अंदर बाहर करने लगी.
बबिता जोरों से सिसक रही थी, "ओह डीईईईड्डी चूऊवसो हाआँ और ज़ोर से ओह अया आआआआज़ तक किसीस ने मेरी चूओत को आईसीई नही चूवसा."
बबिता उत्तेजना मे अपने कूल्हे उपर को उठा मेरी जीब को और अंदर तक घुसाने की कोशिश करने लगी. उसने नीचे से खुल्हे उठाए और उपर से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया, मुझे लगा कि मेरी जीब उसकी बच्चेदानि को छू रही थी.
बबिता ज़ोर से चीखी, "हाआँ ख़ाा जाओ मेरी चूऊत को ओह हाां ऑश मेराअ चूऊओटा." कहकर उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.
बबिता की चूत भी मेरी चूत की तरह धार मार कर पानी छोड़ती थी. मैं अपने होठों से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और उसका रस का स्वाद लेने लगी. मैं एक एक बूँद चूस चूस कर पी रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी जन्मों की प्यास बुझ रही थी.
बबिता निढाल होकर लेटी थी. मैं भी लेट कर अपनी उंगलियाँ अपनी चूत मे डाल अब अंदर बाहर कर रही थी. मेरे बदन मे आग लगी हुई थी और में भी झड़ने को बेताब थी.
बबिता ने जब मुझे मुठियाते देखा तो पूछा, "दीदी क्या में तुम्हारी चूत को छू सकती हूँ?'
मेने अपनी गर्दन हां मे हिलाई और बबिता अब मेरी टाँगो के बीच आ गयी. उसने धीरे से मेरी चूत पर हाथ फिराना शुरू किया.
मेने कई औरतों के साथ समय बिताया था पर ऐसा लग रहा था कि बबिता की उंगलियों मे जादू था. उसके हाथ लगाते ही एक अजीब नशा मेरे शरीर मे छा गया.
बबिता मेरे बदन को चूमते हुए नीचे की ओर आई और मेरी चूत को मुँह मे भर चूसने लगी. वो अपनी जीब को मेरी चूत के चारों और फिराते तो मुझे बड़ा अछा लगता. मैं भी उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके चुतताड मसल रही थी.
बबिता ने मेरी जांघों को थोड़ा उठा कर अपने कंधे पर रख लिया जिससे मेरी चूत उपर को उठ गयी. उसने दोनो हाथों से मेरे कूल्हे पकड़ रखे थे और मेरी चूत मे अपनी ज़ुबान अंदर बाहर कर रही थी.
मैं उत्तेजना मे पागल हुए जा रही थी. मेने अपनी टाँगो को उसकी गर्दन मे फँसा लिया था और अपनी चूत को उँचा उठा उसके मुँह मे दबा रही थी.
मुझसे सहन नही हो रहा था, मेरे सारे शरीर मे मानो चीटियाँ रेंग रही थी, में चिल्ला रही थी, "ओह हाआअँ चूऊवसूओ ओह आअहह जूऊर सीई ओह."
बबिता अब और जोरों से मेरी चूत मे अपनी जीब और होठों का कमाल दिखा रही थी. मेरा झड़ने का वक़्त आ गया था मेने अपनी चूत को और दबाते हुए पानी छोड़ दिया, जैसे कोई बाँध टूट गया हो मेरी चूत पानी पर पानी छोड़ रही थी.
वो अपने होठों से मेरा सारा पानी पी गयी फिर ज़ुबान चारों ओर फिरा मेरे रस को चाट रही थी.
मैं निढाल हो अपनी सांसो पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. बबिता मेरे बगल मे लेटते हुए बोली, "प्रीति मुझे नही पता था कि तुम इतनी गरम औरत हो?"
"हां और मुझे भी नही पता थी कि इतनी अच्छी तरह से चूत चूस्ति और चाट्ती हो?' मेने उसके होठों को चूमते हुए कहा.
"मुझे औरतों के साथ सेक्स करने में माज़ा आता है, क्या तुम्हारे पास कोई खिलोने है मज़े के लिए?" बबिता ने पूछा.
"हां दो है जो शायद तुम्हे पसंद आएँगे, वही जो उन लेज़्बीयन लड़कियों ने मुझे मनाली मे दिए थे." मेने उसे याद दिलाते हुए कहा.
"तब तो मज़्ज़ा आ जाएगा, में तो रुक नही सकती, और में रश्मि को भी अछी तरह से जान लेना चाहती हूँ." बबिता बोली.
"ज़रूर तुम्हारे जाने से पहले तुम्हे हर चीज़ का मज़ा मिलेगा ये मेरा वादा है." मेने कहा.
उसके बाद पूरे दिन हम बातें करते रहे. दोपहर को हमारा खेल एक बार फिर चला. शाम को प्रशांत अपने काम से वापस आया और हम दोनो को रात के खाने के लिए बाहर ले गया.