hotaks444
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तानी धीरे धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ
मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे , हाँ पेंगे और जोर जोर से लग रही थीं।
किसी भौजी ने मुझे ललकारा , " अरे काहें मुस्स भड़क बइठल हो तानी कौनो मोटा लंड घुसेडल हो का का। "
मैंने मुंह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सूना दो , हम सब साथ देंगे न।
तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी , " कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो , बिलौजवा के बाद ई साडियों फाड़ के तुहरे गंडियों में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू।
अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गयी ,
तानी धीरे धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ
मस्त जुबनवा चोली धईला , गाल त कई देहला लाल।
काहें धँसावत बाड़ा भाला , बड़ा दुखाला रजउ।
और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की ऊँगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर बाहर हो रही थी , मैं लग रहा था अब गयी तब गयी।
लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूद कर झूले से उत्तर गए की कहीं ये डाल भी नहीं ,
किसी ने बोला की चला जाय क्या ,
लेकिन अँधेरा जबरदस्त था , पानी की धार भी तेज थी और बाग़ में नीचे जमींन एकदम कीचड़ हो गयी थी। चलना भी आसान नही था , हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था।
चलना भी आसान नहीं थी।
" अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न। " ये आवाज गुलबिया की थी।
मुझे क्या मालूम ये बात वो क्सिके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी . ब्लाउज तो पहले ही फट चूका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।
मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे , हाँ पेंगे और जोर जोर से लग रही थीं।
किसी भौजी ने मुझे ललकारा , " अरे काहें मुस्स भड़क बइठल हो तानी कौनो मोटा लंड घुसेडल हो का का। "
मैंने मुंह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सूना दो , हम सब साथ देंगे न।
तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी , " कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो , बिलौजवा के बाद ई साडियों फाड़ के तुहरे गंडियों में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू।
अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गयी ,
तानी धीरे धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ
मस्त जुबनवा चोली धईला , गाल त कई देहला लाल।
काहें धँसावत बाड़ा भाला , बड़ा दुखाला रजउ।
और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की ऊँगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर बाहर हो रही थी , मैं लग रहा था अब गयी तब गयी।
लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूद कर झूले से उत्तर गए की कहीं ये डाल भी नहीं ,
किसी ने बोला की चला जाय क्या ,
लेकिन अँधेरा जबरदस्त था , पानी की धार भी तेज थी और बाग़ में नीचे जमींन एकदम कीचड़ हो गयी थी। चलना भी आसान नही था , हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था।
चलना भी आसान नहीं थी।
" अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न। " ये आवाज गुलबिया की थी।
मुझे क्या मालूम ये बात वो क्सिके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी . ब्लाउज तो पहले ही फट चूका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।