Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 10 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

तानी धीरे धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ 











मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे , हाँ पेंगे और जोर जोर से लग रही थीं। 


किसी भौजी ने मुझे ललकारा , " अरे काहें मुस्स भड़क बइठल हो तानी कौनो मोटा लंड घुसेडल हो का का। "

मैंने मुंह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सूना दो , हम सब साथ देंगे न। 

तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी , " कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो , बिलौजवा के बाद ई साडियों फाड़ के तुहरे गंडियों में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू। 

अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गयी ,


तानी धीरे धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ 

मस्त जुबनवा चोली धईला , गाल त कई देहला लाल। 

काहें धँसावत बाड़ा भाला , बड़ा दुखाला रजउ। 

और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की ऊँगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर बाहर हो रही थी , मैं लग रहा था अब गयी तब गयी। 

लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूद कर झूले से उत्तर गए की कहीं ये डाल भी नहीं ,

किसी ने बोला की चला जाय क्या ,

लेकिन अँधेरा जबरदस्त था , पानी की धार भी तेज थी और बाग़ में नीचे जमींन एकदम कीचड़ हो गयी थी। चलना भी आसान नही था , हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था। 

चलना भी आसान नहीं थी। 


" अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न। " ये आवाज गुलबिया की थी। 

मुझे क्या मालूम ये बात वो क्सिके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी . ब्लाउज तो पहले ही फट चूका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में। 
 
गुलबिया 












" अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न। " ये आवाज गुलबिया की थी। 

मुझे क्या मालूम ये बात वो क्सिके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी . ब्लाउज तो पहले ही फट चूका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में। 

गुलबिया ने बस वहीँ से कीचड़ उठा उठा के मेरे जोबन पे लगाना शुरू कर दिया। 

मैं क्यों छोड़ती आखिर,… मैं भी तो अपनी भौजी की ननद थी , और इतने दिनों में चंपा भाभी और बसंती संगत में काफी खेल तमाशे सीख चुकी थी। फिर दिनेश ने भी मेरेसाथ आँगन में कीचड़ की होली खेली थी। 

मैंने दोनों हाथों में कीचड़ लेकर सीधे गुलबिया की दोनों चूंचियों पे ,३६ + रही होंगी लेकिन एकदम कड़ी ,गोल गोल। 

लेकिन गुलबिया ने खूब खुश हो के मुझे गले लगा लिया और बोली " मान गए हो तुम हमार लहुरी ननदिया। बहुत मजा आई तोहरे साथ। "

" एकदम भौजी , आखिर मजा लेवे आई हूँ तोहरे गाँव , न देबू ता जबरन लेब " मुस्करा के मैं बोली और उसकी चूंची पे लगे कीचड़ को जोर जोर से रगड़ने लगी। 

मेरी साडी तो सरक के छल्ला बन गयी थी कमर पे और ब्लाउज कामिनी भाभी और बसंती ने फाड़ के बराबर कर दिया था , मैंने भी गुलबिया की चोली कुछ फाड़ी कुछ खोल दी थी। 

लेकिन गुलबिया ,मैंने कहा था न बसंती के टक्कर की थी , तो बस नीचे से पैर फंसा के उसने ऐसी पलटी दी की मैं नीचे वो ऊपर। 

और अब मैं समझी की गाँव सारी लड़कियां गुलबिया के नाम से डरती क्यों थी। 

मुझे अजय की याद आ गयी , जिस तरह बँसवाड़ी में उसने मेरी चूंचियां रगड़ीं थी ,उसी तरह। पहले दोनों हाथो की हथेलियों से ,फिर पकड़ के कुचलते हुए ,

और साथ में उसकी चूत मेरी चूत पे घिस्से लगा रहा थी , पूरी ताकत से। 

गुलबिया के जोर से मेरे चूतड़ नीचे कीचड़ में रगड़े जा रहे थे। 

मैं सिसक रही थी लेकिन मैं धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी , चूत मेरी भी घिस्सों पर घिस्से मार रही थी। 

पानी करीब करीब बंद हो गया था , बस हलकी हलकी बूंदे पड़ रही थीं। 

मैं बस ,लग रहा था की पहले बसंती और फिर कामिनी भाभी चूत में आग लगा के छोड़ दी तो अब गुलबिया ही बारिश करा के ,... "


उधर उस कच्ची कली ,सुनील की बहन को भी दो भौजाइयों ने दबोच रखा था, और खुल के उस की रगड़ाई मसलाई हो रही थी। 

और इधर मेरी भी ,गुलबिया ने गचाक से एक ऊँगली मेरी चूत में पेल दी और मेरी कच्ची कसी चूत ने उसे जोर से दबोच लिया। 

" बहुत कसी है , एकदम टाइट , लेकिन अब हमरे हाथ में पड़ गयी हो न , देखना भोंसड़ीवाली बना के भेजूंगी। "

" पक्का भौजी तोहरे मुंह में घी शक्कर " खिलखिलाते हुए मैंने कहा और जोर से अपनी चूत सिकोड़ ली। 


तब तक नीरू ने दोनों भौजाइयों से बचने की कोशिश करते हुए बोला ,

" भाभी अरे बरसात बंद हो गयी है अब चलूँ , " 

जवाब बसंती ने दिया , जो तब तक वहां शामिल हो गयी थी ,

" अरी ननद रानी , अबही कहाँ , असली बरसात तो बाकी है ,तानी उसका भी तो स्वाद चख लो " और वहीँ से गुलबिया को गुहार लगाई। 

गुलबिया की मंझली ऊँगली ,मेरी कसी गीली गुलाबी चूत के अंदर करोच रही थी। मुझे छोड़ते हुए वो बोली ,

" बिन्नो ,हमार तोहार उधार , .... " और बंसती की ओर चली गयी। 

मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी तो कामिनी भाभी ने हाथ मेरा पकड़ के सहारा देके उठाया। चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ। 
ब्लाउज तो फट ही गया था ,किसी तरह साडी को लपेटा मैंने ,और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली। 

बारिश बंद हो गयी थी और अब हवा एक बार फिर तेज चलने लगी थी। आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था। 

पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा ,

सुनील की बहन छटपटा रही थी , लेकिन उसके दोनों हाथ ,एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था ,और दूसरे हाथ से उसके फूले फूले गाल जोर से दबा रखे थे। 

उसने गौरेया की तरह मुंह चियार रखा था , और उसके मुंह के ठीक ऊपर ,गुलबिया ,दोनों घुटने मोडे ,साडी उसकी कमर तक,


बारिश शुरू हो गयी , पहले तो बूँद बूँद , फिर घल घल , गुलबिया की ... जाँघों के बीच से ,



सुनहली पीली बारिश ,


" अरे बिना भौजाइन क खारा शरबत पिए , हमारे ननदन क जवानी ठीक से नहीं आती। " बंसती बोल रही थी। 


कामिनी भाभी का घर पास में ही था , थोड़ी देर में मैं और चंपा भाभी , उनके साथ ,उनके घर पहुँच गए। 

..... 
 
कामिनी भाभी 



आसमान अभी भी बादलों से घिरा था। बूंदा बादी हलकी हो गयी थी लेकिन जिस तरह से रुक रुक कर बिजली चमक रही थी , बादल गरज रहे थे लग रहा था की बारिश फिर कभी भी शुरू हो सकती थी। जो रास्ते दिन में जाने पहचाने लगते थे अब उन्हें ढूंढना भी मुश्किल होता। 

कामिनी भाभी आज घर में अकेली थीं , उनके पति शहर गए थे और उन्हें शाम को लौटना था लेकिन लगता था की बारिश के चलते वहीँ रुक गए। मेरी पूरी देह कीचड़ में लथपथ थी ,खासतौर से आगे और पीछे के उभार , जिस तरह गुलबिया ने कीचड़ उठा उठा के मेरे जोबन पे रगड़ा था और मेरे ऊपर चढ़ के कीचड़ हो गयी मिटटी में मेरे चूतड़ों को घिस घिस के ,... 

कामिनी भाभी मुझे पकड़ के सीधे बाथरूम में ले गयी जहाँ कई बाल्टियों में पानी भरा था। ब्लाउज तो मेरा पहले ही उन्होंने बसंती और गुलबिया के साथ मिल के चिथड़े चिथड़े कर दिए और साडी भी एकदम कीचड़ में लथपथ हो गयी थी। एक झटके में साडी खीच के उन्होंने उतार दी और धोने के लिए डाल दी। तब तक चंपा भाभी की बाहर से आवाज आई ,

" मैं चल रही हूँ , तेज बारिश आने वाली है। आज रात में घर पे कोई नहीं है। कल दोपहर को आके इसे ले जाउंगी। "
और बाहर से दरवाजा उठंगाने की आवाज आई। 

कामिनी भाभी बाहर दरवाजा बंद करने के लिए उठीं , तो घबड़ा के मैं बोली ," मैं भी चलती हूँ , यहाँ कहाँ ,... "

कामिनी भाभी एक पल के लिए रुक गयीं और मुस्कराते हुए बोलीं , 

" तो जाओ न मेरी बिन्नो , ऐसे जाओगी। चंपा भाभी तो कहाँ पहुँच गयी होंगी , जाओगी ऐसे अकेले , ... रास्ते में, इतने छैले मिलेंगे न की कल शाम तक भी घर नहीं पहुँच पाओगी। "

और मैंने अपनी ओर देखा तो , ... एकदम निसूति , ब्लाउज तो अमराई में फट फटा कर ,और अब साडी भी कामिनी भाभी के कब्जे में थी। ऐसे में , ... 

फिर मेरी ठुड्डी पकड़ के कामिनी भाभी ने प्यार से समझाया ," अरे तेरी भौजाई और उनकी माँ पास के गाँव में रात में चली गयी है। तो आज रात चंपा भाभी तुम्हारी घर पे होंगी सिर्फ बसंती के साथ , तो काहे उनकी दावत में , ... " और बाहर का दरवाजा बंद करने चली गयी.


बात मैं अब अच्छी तरह समझ गयी ,और घबड़ा भी अब नहीं रही थी। चंदा , चंपा भाभी ,बसंती और गुलबिया सब के साथ तो थोड़ा बहुत मजा मैंने लिया ही था और कामिनी भाभी तो इन सब की गुरुआइन थीं। बहुत हुआ तो वो भी , ...और इस हालत में तो घर लौटना भी मुश्किल था।
और तब तक सोचने समझने का मौका भी चला गया , कामिनी भाभी लौट आई थीं। 

हाँ उन्होंने बाथरूम का दरवाजा भी नहीं बंद किया , घर में हमीं दोनों तो थे और बाहर का दरवज्जा वो अच्छे से बंद कर के आ गयी थीं। 
और जब दिमाग नहीं चलता तो हाथ चलता है , मेरा हाथ चल गया , मैंने कामिनी भाभी की साडी खींच ली। ( ब्लाउज उन का भी झूले पे ही खुलगया था )

" भाभी , अरे इतनी बढ़िया साडी फालतू में गीली हो जायेगी। "

और अब हम दोनों एक तरह से , लेकिन कामिनी भाभी को इससे कुछ फरक नहीं पड़ता था। 

बाथरूम के बाहर रखी लालटेन की मद्धम मद्धम हल्की हल्की पीली रौशनी में मैं कामिनी भाभी की देह देख रही थी। 

थोड़ी स्थूल , लेकिन कहीं भी फैट ज्यादा नहीं ,अगर था भी तो एकदम सही जगहों पर। एकदम गठीली ,कसी कसी पिंडलियाँ , गोरी ,केले के तने ऐसी चिकनी मोटी जांघे , दीर्घ नितम्बा लेकिन जरा भी थुलथुल नहीं। कमर मेरी तरह,किसी षोडसी किशोरी ऐसी पतली तो नहीं लेकिन तब भी काफी पतली खास तौर से ४० + नितम्ब और ३८ + डी डी खूब गदराई कड़ी कड़ी चूंचियों के बीच पतली छल्ले की तरह लगती थी। 

जैसे मैं उन्हें देख रही थी , उससे ज्यादा मीठी निगाहों से वो मुझे देख रही थीं और फिर वो काम पे लग गयी। 

सबसे पहले पानी डाल डाल के मेरे जुबना पे लगे कीचड़ों को उन्होंने छुड़ाना शुरू किया।
 
नहाना धोना 







सबसे पहले पानी डाल डाल के मेरे जुबना पे लगे कीचड़ों को उन्होंने छुड़ाना शुरू किया।
जिस तरह से कामिनी भाभी की उंगलियां मेरे छोटे नए आते उभारों को , ललचाते छु रही थीं , सहला रही थी , उनकी हालत का पता साफ़ साफ़ चल रहा था। 

लेकिन कामिनी भाभी के हाथ कब तक शरमाते झिझकते और गुलबिया का लगाया कीचड़ भी इतनी आसानी से कहाँ छूटता। 

जल्द ही रगड़ना मसलना चालू हो गया , और वो कीचड़ छूटने पे भी बंद नहीं हुआ। 

मैंने क्यों पीछे रहती आखिर अपनी भौजी की छुटकी ननदिया जो थी , तो मेरे भी दोनों हाथ कामिनी भाभी की बड़ी बड़ी ठोस गुदाज गदराई चूंचियों पे। हाँ मेरी एक मुट्ठी में उनकी चूंची नहीं समा पा रही थी। 
बड़ी बड़ी लेकिन एकदम ठोस। 

मेरे निपल अभी छोटे थे लेकिन कामिनी भाभी के अंगूठे और तर्जनी ने उन्हें थोड़ी ही देर में खड़ा कर दिया। 

और मेरे हाथ , मेरी उँगलियाँ कामिनी भाभी को कापी कर रही थीं। 

थोड़ी ही देर में कामिनी भाभी का एक हाथ मेरी जाँघों के बीच में था और उनकी गदोरी चुन्मुनिया को हलके हलके रगड़ रहा था , और मैं जैसे ही सिसकने लगी ,झड़ने के कगार पर पहुँच गयी ,उन्होंने मुझे पलट दिया। 

मेरे भरे भरे चूतड़ अब कामिनी भाभी की मुट्ठी में थे , और वहां वो पानी डाल रही थी। गुलबिया ने ऐसे रगड़ा था की मेरे चूतड़ एकदम कीचड़ में लथपथ हो गए थे , यहाँ तक की उँगलियों में कीचड़ लपेट के उसने मेरी पिछवाड़े की दरार में भी अच्छी तरह से ,... 

दोनों नितम्बो को फैलाकर कामिनी भाभी साफ़ कर रही थीं और अचानक उन्होंने अपनी कलाई के जोर से एक ऊँगली पूरी ताकत से गचाक से पेल दी। लेकिन इसके बावजूद मुश्किल से ऊँगली की एक पोर भी नहीं घुसी ठीक से। 

" साल्ली ,बहुत कसी है। बहुत दर्द होगा इसको , मजा भी लेकिन खूब आएगा। "

वो बुदबुदा रही थीं लेकिन मेरा मन तो खोया था उनके दूसरे हाथ की हरकत में। उसकी गदोरी मेरी चुनमुनिया को दबा रही थी ,रगड़ रही थी सहला रही थी। और साथ में कामिनी भाभी का दुष्ट अंगूठा मेरी रसीली गुलाबी क्लिट को कभी दबाता ,कभी मसलता। 

आज दोपहर से मैं तड़प रही थी, पहले तो घर पे बसंती ने , दो तीन बार मुझे किनारे पे ले जाके छोड़ दिया। उसके बाद झूले पे भी कामिनी भाभी और बसंती मिल के दोनों , और जब लगा की गुलबिया जिस तरह से मेरी चूत रगड़ रही है वो पानी निकाल के ही छोड़ेगी , ऐन मौके पे वो नीरू के पास चली गयी ,खारा शरबत पिलाने। और यहाँ एक बार फिर , ...मैं मस्ती से अपनी दोनों जांघे रगड़ रही थी की पानी अब निकले तब निकले , की कामिनी भाभी ने सीधे आधी बाल्टी पानी मेरी जाँघों के बीच डाल दिया। 

मैं क्यों चूकती ,मैंने भी दूसरी बाल्टी का पानी उठा के उनके भी ठीक वहीँ , ... 

नहा धो के हम दोनों निकले तो दोनों ने एक दूसरे के बदन को तौलिये से अच्छी तरह रगड़ा ,सुखाया लेकिन मेरे उभारों और चुनमुनिया को उन्होंने गीला ही रहने दिया और मुझे पकड़ के एक पलंग पे पीठ के बल लिटा दिया और फिर एक क्रीम ले आई और दो चार छोटी छोटी शीशियां।
 
उरोज लेप








कामिनी भाभी ने एक बड़ी सी बोतल से एक क्रीम निकाली , हलकी सी दानेदार , और अपनी सिर्फ दो उँगलियों से पहले मेरे उभारों के नीचे की ओर से लगाना शुरू किया , बहुत पतली सी फिल्म की तरह की लेयर , फिर धीरे धीरे कांसेंट्रिक सर्किल्स की तरह उनकी उँगलियाँ ऊपर बढ़ती गयी जैसे किसी पहाड़ी की परिक्रमा कर रही हों , लेकिन निपल के पहले पहुँच कर रुक गयीं। और उसके बाद दूसरे उभार का नंबर आया , और वहां भी उन्होंने निपल को छोड़ दिया। 

कुछ ही देर में मेरे दोनों उरोजों में कुछ चुनचुनाहट महसूस शुरू हुयी , एक अजब तरह की महक मेरे नथुनों में जा रही थी और एक हलका सा नशा भी तारी हो रहा था। 

" कुछ लग रहा है मेरी बिन्नो " प्यार से मेरे एक निपल को पिंच करते भाभी ने पूछा , 

" हाँ भाभी , एक चुनचुनाहट सी लग रही है , अच्छा लग रहा है। "

" इसका मतलब असर शुरू हो गया है , देख रोज रात को सोने के पहले और सुबह नहाने के बाद , वैसे १० मिनट का टाइम काफी होता है उसके बाद कपडे पहन सकती हो , लेकिन आज पहली बार लगा रही हो तो कम से कम एक घण्टे तक इसे वैसे ही रखना होगा। हाँ सूख ये १० मिनट में जाएगा। " वो मुस्कराते हुए बोलीं। 

आसमान में बाहर बादल अभी भी आसमान को ढके हुए थे लेकिन हलकी हलकी हवा चलनी शुरू हो गयी थी। खुली खिड़की से बाहर अमराई की गामक और हवा आ रही थी। बाहर बरामदे में रखी लालटेन की हलकी मद्धम रोशनी में हम दोनों बस छाया की तरह लग रहे थे। कामिनी भाभी का घर थोड़ा बस्ती से अलग था , एक ओर खूब बड़ा सा आम का बाग़ और दो ओर खेत गन्ने और अरहर के। सामने गाय ,भैस के बाँधने की जगह ,एक कुँवा और छोटा सा पोखर , बँसवाड़ी। अगला घर उनके खेतों के बाद ही था। 

मेरी देह मस्ती से अलसा रही थी , तबतक एक और बोतल भाभी ने खोली ,और उसमें से कुछ तेल सा निकाल के अपने दोनों हथेलियों पे मला। 

तबतक मेरे सीने पे लगा लेप कुछ कुछ सूख गया था। और अब भाभी ने अपने हाथ में लगा तेल मेरे स्तन पे हलके हलके मसाज करना शुरू कर दिया , और मुझे समझा भी रही थीं की अपने से ब्रेस्ट मसाज कैसे करते हैं , साइज और कड़ेपन दोनों के लिए।
 
और अब भाभी ने अपने हाथ में लगा तेल मेरे स्तन पे हलके हलके मसाज करना शुरू कर दिया , और मुझे समझा भी रही थीं की अपने से ब्रेस्ट मसाज कैसे करते हैं , साइज और कड़ेपन दोनों के लिए। 

" पहले ये तेल दोनों हाथ में अच्छी तरह मल लो , जरा भी तेल बचा न रहे सब गदोरी में , और फिर ( उन्होंने खुद अपने हाथ से पकड़ के मेरा दायां हाथ ,बाएं उभार की ओर कर दिया ,कांख के ठीक नीचे ) हाँ , अब यहाँ से हलके हलके हाथ दबाते हुए बीच की ओर ले जाओ , हाँ एकदम ठीक ऐसे ही। मेरी पक्की ननद हो , जल्द सीख जाती हो। चलो अब दूसरा हाथ भी लेकिन ध्यान रखना की निपल खुला रहे , हाँ इस दूसरे हाथ से हलके हलके दबाओ , फिर गोल गोल गदोरी घुमाओ , १० बार क्लॉक वाइज फिर दस बार एंटी क्लॉक वाइज। और अब उसी तरह इस वाले पे "

दो चार बार उन्होंने मुझसे कराया और फिर खुद एक साथ अपने दोनों हाथों से , ... और जब उन्होंने हाथ हटाया तो मेरे दोनों उभार चमक रहे थे ,तेल से। 

" पांच दस मिनट का इंटरवल ज़रा मैं रसोई से आती हूँ लेकिन तुम बस ऐसे ही लेटी रहना। 

बादल थोड़े से हट गए थे और दुष्ट चाँद , जैसे इसी मौके की तलाश में था। बादल का पर्दा हटा के , सीधे मेरे दोनों उभार तक रहा था। चाँदनी मेरे पूरे बदन पे फैली हुयी थी। 

रसोई से कुछ खटपट सुनाई दे रही थी। 






कामिनी भाभी के बारे में कुछ तो चंपा भाभी ने और ज्यादा बसंती ने बताया था। ये पास के गाँव की किसी बड़े वैद्य की इकलौती लड़की थीं और बहुत कुछ गुन उन्होंने अपने पिता जी से सीख रखे थे। गाँव में औरतों टाइप जो भी प्राबलम होतीं थी , और जिसे औरतें किसी से कहने में हिचकती थी उन सब का हल कामिनी भाभी के पास था। माहवारी न आ रही हो , ज्यादा आ रही हो , बच्चा होने में दिक्कत हो रही हो , बच्चा रोकना हो , कहीं गलती से पेट ठहर गया हो ,सब चीज का इलाज उनके पास था। और सबसे बड़ी बात की वैसे तो उनके पेट में कोई बात नहीं पचती थी ,और मजाक करने में गारी गाने में न वो रिश्ता नाता देखती थीं न उमर, लेकिन ये सब बाते वो अगर किसी को उन्होंने हेल्प किया तो कभी भी नहीं बोलती थी ,जिसको हेल्प किया उससे भी नहीं। 

लेकिन बसंती ने एक बात बतायी थीं , अगर मैं कामिनी भाभी को किसी तरह पटा लूँ ,उनसे पक्की वाली दोस्ती कर लूँ , तो बहुत सी चीजें उनसे सीख सकती हूँ। उनको बहुत से मंतर भी मालूम हैं ,तरीके भीं जो वो किसी को नहीं बताती। उनकी दोस्ती बहुत फायदे की रहेगी। 

और अबकी वो आई तो साडी चोली ( बैकलेस ,पीछे से बंध वाली ) पहने थी और उनके हाथ में एक मेरे लिए साडी थी। 

मैंने उनकी आखो में देखा तो मेरी बात वो समझ गयीं और मुस्कराते हुयी बोलीं ,

" अरी मेरी छिनरो ननदिया , ई जो तोहरे चूंची पे लगा है न आज पहली बार है इसलिए घंटे भर इसके ऊपर कोई रगड़ नहीं पड़नी चाहिए ,इसलिए तुम आज अभी ऐसे ही रहो , फिर हमहीं तुम हैं तो घर में। "

मैंने झपट्टा मार के उनके चोली के बंध खोल दिए और उनके बड़े बड़े कबूतर भी आजाद हो गए। 

झुक के उन्होंने सीधे मेरे होंठों पे अपने होंठ रगड़ते हुए , कस के चुम्मा लिया और बोलीं , " आज मुझे मिली है मेरी असली ननद। "

और मैंने भी दोनों हाथों से जोर के उनका सर पकड़ते हुए उन्हें अपनी ओर फिर खिंचा और उनसे भी तगड़ा चुम्मा लेकर बोली ,

" अरे भाभी एहमें कौन शक , ननद तो हूँ ही आपकी। "
कामिनी भाभी ने एक और छोटी सी डिबिया खोली। उसमें मलहम जैसा कुछ था,चिपचिपा। अपनी तरजनी पर उन्होंने ज़रा सा लगाया और फिर मंझली और अगूंठे से मेरे निप्स को थोड़ा रोल किया। निप्स बाहर की ओर हलके हलके निकल आये थे। फिर उस तरजनी में लगे मलहम को उन्होंने निपल के बेस से लेकर ऊपर तक हलके हलके दो चार बार मला , और उसे अच्छी तरह उस क्रीम से कवर कर दिया। फिर दूसरे निपल का नंबर था। जब तक कामिनी भाभी ने उसमें क्रीम लगाना खत्म किया , पहली वाली में जैसे सुइयां चुभें , वह शुरू हो गया था। 

" रोज स्कूल जाने के पहले जाने लगाना , नहाने के बाद। बस पांच मिनट तक ब्रा मत पहनना। इसका असर आधे घंटे के अंदर शुरू हो जाता है और ८-१० घण्टे तक पूरा रहता है। तू रोज लगाना इसको तो दो चार हफ्ते में तो परमानेंट असर हो जाएगा , लेकिन अभी १० मिनट तक चुप चाप लेटी रहो उसके बाद ही उठना ,हाँ साडी कमर के ऊपर जरा सा भी नहीं , .. लेकिन तेरी चुनमुनिया पे तो कुछ लगाया नहीं "और एक शीशी से दो चार बूंदे एक अंगुली पे लगा के सीधे वहीँ ,... . 

कामिनी भाभी किचेन में चली गयीं लेकिन मैं उस बड़ी सी बोतल को देख रही थी जिस में से वो लेप अभी भी मेरे उरोजों पे लगा हुआ था। 

उस समय तो नहीं लेकिन बहुत बाद में मुझे पता चला की उसमें क्या क्या था। बताएगा कौन ,कामिनी भाभी ने ही बताया। सौंफ ,मेथी ,सा पालमेटो ,रेड क्लोवर ,शतावर ,और एक दो हर्ब और ,.. प्याज का रस और घर की बनी देशी शराब भी थोड़ी सी ,और घृतकुमारी के रस में मिलाके लेप बना था और साथ में अनार के दानों का रस ... वो सारी चीजें भाभी ने अपने बगीचे में ही उगाई थी और उसमें भी बहुत पेंच था जैसे मेथी होते ही उसे कब तोडा जाय , . और सबसे कठिन था जो लेप उन्होंने निपल पर लगाया था उसमें कई तरह की भस्म थीं , सिन्दूर भस्म ( वो भी कोई कामिया भस्म होती थी वो ), लौह भस्म ,नाग भस्म और साथ में मकरध्वज और शहद ( जो की आम के पेड़ पर लगे छत्ते से निकाला गया हो ) से मिलाकर। 
 
कामिनी भाभी 












पांच मिनट बाद मैं साडी बस कमर में लपेट के रसोई में पहुंची। 

कामिनी भाभी आटा गूंथ चुकी थी और रोटी बनाने की तैयारी कर रही थी ,

" भाभी लाइए मैं बेला देती हूँ। " मैंने हेल्प करने के लिए बोला। 

" क्यों आगया बेलन पकड़ना " मुस्करा कर द्विअर्थी डायलॉग भाभी ने बोला। 

मैं क्यों पीछे रहती ,मैंने भी उसी तरह जवाब दिया ,

" पहले नहीं आता था लेकिन अब यहाँ आकर सीख गयी हूँ। और कुछ कमी बेसी रही गयी हो तो वो आप सिखा दीजियेगा न , आखिर भाभी हैं प्यारी प्यारी मेरी। " भोली बनकर ,अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे गोल गोल नचाते हुए मैंने भी उसी तरह जवाब दिया। 

" एकदम ,अच्छी तरह ट्रेन करके भेजूंगी। लम्बा ,मोटा कुछ भी पकड़ने में कोई परेसानी नहीं आएगी मेरी प्यारी बिन्नो को। " भाभी मुस्करा के बोलीं। 

एक सवाल जो मेरे मन में उमड़ घुमड़ रहा था उसका जवाब भाभी ने बिना पूछे दे दिया। 

" जानती है तेरे इस जुबना पे गाँव के सिर्फ लौंडे ही नहीं , मर्द भी मरते हैं। ( मुझे मालूम था ,इन मरदों में कामिनी भाभी के वो भी शामिल हैं। ) और अपनी समौरिया में तेरे ये गद्दर जोबन २० नहीं २२ होंगे। " रोटी सेंकते भाभी बोलीं। 

बात भाभी की एकदम सही थी मेरी क्लास में कई के तो अभी ठीक से उभार आये भी नहीं थे , ढूंढते रह जाओगे टाइप ,बस। 

" लेकिन मैं चाहती हूँ मेरी ननदिया के २५ हों , जब शहर में लौटे तो बस आग लगा दें , जुबना से गोली मारे , बरछी कटार बन के तोहरे जोबन लौंडन के सीने में साइज ,कप साइज सब बढ़ जायेगी। " वो आगे बोलीं। 

" किस काम का भाभी , स्कूल में ऐसे दुपट्टा लेना पड़ता है तीन परत की , और घुसते ही टीचर चेक करती हैं , " मैंने बुरा सा मुंह बना के अपनी परेशानी बतायी।
कामिनी भाभी जोर से खिलकिलायीं , फिर मेरे कड़े खड़े निपल्स के कान जोर से उमेठ के बोलीं ,

" अरे हमार छिनार ननदो , तोहार जोबन तो हम अस कय देब न की लोहे क चादर फाड़ के लौंडन के सीने में छेद करेगी। ई दुपट्टा कौन चीज है। अरे दुपट्टे का तो फायदा उठाया जाता है इस उम्र में। "

फिर अपने आँचल को दुपट्टा बना के वो मुझे सिखाने में जुट गयीं , और उसे कस के अपनी गर्दन के चारों ओर लिपटा चिपका के बोलीं , 

" देख जोबन का जलवा दिख रहा है न पूरा। लौंडन का फायदा होगा और तुम्हारे साथ की लड़कियां जल के राख हो जाएंगी। "

मेरे सवाल को अच्छी तरह समझ के बिना मेरे पूछे उन्होंने जवाब दिया , " अरे छैले सब कहाँ मिलते होंगे, तुम्हारी गली के बाहर , स्कूल के सामने छुट्टी के टाइम , बाजार में , है न ?

भाभी की बात सोलहो आने सही थी , जैसे हम लोगों की छुट्टी होती थी , स्कूल के गेट के बाहर ही ८-१० भौंरे बाहर मंडराते रहते थे , और किसी दिन १-२ भी कम हो गए तो बड़ा सूना लगता था। और हम भी आपस में फुसफुसा के कहती थीं ,ये तेरा वाला है , ये तेरा वाला है। कई तो जब मैं स्कूल रिक्शे से किसी सहेली के साथ जाती थी तो साइकिल से स्कूल तक , और शाम को वापसी में भी ,... 

" बस , तो स्कूल में टीचर का राज चलेगा न , जैसे ही बाहर निकलो उस समय बस दुपट्टा गले पे और उभार बाहर। जाते समय भी घर से बाहर निकलने के बाद , दुपट्टा उस तरह से ले लो जिसमें तेरा भी फायदा हो और लौंडन का भी , स्कूल में घुसने के पहले जैसे टीचर कहती है वैसे कर लो। "

अब खिलखिलाने की बारी मेरी थी। भाभी की ट्रिक तो बहोत अच्छी थी। 

" अरे ऐसे मस्त जोबन आने का फायदा क्या जब तक दो चार लौंडन रोज बेहोश न हों। " कामिनी भाभी भी मेरी खिलखिलाहट में शामिल होती बोलीं। 

फिर उन्होंने दुपट्टा लेने की दसों ट्रिक सिखाई , लेकिन सबका सारांश यही था की थोड़ा छिपाओ , ज्यादा दिखाओ। अगर कभी मजबूरन पूरी तरह से लेना भी पड़ गया तो बस ऐसे रखो की साइड से पूरा कटाव ,उभार , कड़ापन दिखाई दे। कभी पार्टी में ,शादी में जाओ तो बस एक कंधे पे , जिससे एक जोबन तो पूरी तरह दिखे और दूसरा भी आधा तीहा। कपड़ा भी दुपट्टे का झीना झीना हो जिससे जहाँ पूरा डालना भी पड़े , तो अंदर से झलक तो बिचारों को दिखे। "

मैं बहुत ध्यान से सुन रही थी। असली गुरुआइन मुझे अब मिली थी। 

" और टॉप खरीदो या कुरता या सिलवाओ , नीचे से और साइड से एकदम टाइट हों , जिससे उभारों का कटाव ,साइज और कड़ापन एकदम साफ़ साफ़ दिखे , हाँ और ऊपर से थोड़ा ढीला हो , तो जैसे ही थोड़ा सा भी झुकोगी न ,पूरा क्लीवेज ,गोलाइयाँ सब नजर आजाएंगी और सामने वाले की हालत ख़राब। "

भाभी की बात एकदम सही थी। 

गाँव में पहले ही दिन ,मेले में ये बात सीख ली थी ,चंदा और पूरबी से। बस दूकान पे ज़रा सा झुक के मैं अपने जोबन दर्शन कराती थी , और चंदा और पूरबी फ़ीस वसूल लेती थीं। उस के बात तो मैं पक्की हो गयी थी।
 
रोटियां बन गयी थीं। भाभी ने पूछा ,

" सुन यार दूध रोटी चलेगी ,अचार भी है या सब्जी भी बनाऊं। "

" दूध रोटी दौड़ेगी ,भाभी। " उन्हें प्यार से दबोचते मैं बोलीं। 

और दूध रोटी के साथ भाभी ने दूसरा पाठ शुरु किया ,लड़कों को पटाने का।
" जुबना दिखा के ललचाना लुभाना एक बात है , लेकिन थोड़ा लाइन देना भी पड़ता है लौंडन को पटाने के लिए। अरे चुदवाने में खाली लौंडन को मजा थोड़े ही आता है तो पटने पटाने में लौंडिया को भी हाथ बटाना चाहिए न। " 

भाभी अब फुल फ़ार्म पर आगयी थीं और बात उनकी सोलहो आना सही भी थी। जोश में मैं भी उनकी हामी भरते बोल गयी ,

" भाभी आप एकदम सही कह रही हैं, जब जाता है अंदर तो बहुत दर्द होता है ,जान निकल जाती ही लेकिन जो मजा आता है मैं बता नहीं सकती। " 

ऊप्स मैं क्या बोल गयी , मैंने जीभ काटी।

भाभी ने गनीमत था मुझे चिढ़ाना नहीं चालू किया , अभी वो एकदम समझाने पढ़ाने के मूड में थीं। बोलीं ,

"इसलिए तो समझा रही हूँ , जब लौटोगी शहर तो कुछ करना पडेगा न , अरे जैसे पेट को दोनों टाइम भोजन चाहिए न , वैसे जो उसके बीतते भर नीचे छेद है उसकी भूख मिटाने का भी तो इंतजाम होना चाहिए न। और ओकरे लिए ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ा बहुत छिनारपना सीखना पड़ता है। तुम्हारे जैसे सीधी भोली लड़की के लिए तो बहुत जरूरी है वरना कोई लड़का साला फंसेगा ही नही। "
मैं चुप रही। भाभी की बात में दम था। 

और भाभी ने मेरे चिकने गोर गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए एक सवाल दाग दिया ,

" जस तोहार रंग रूप हो ,चिक्कन चिक्कन गाल हो ,इतना मस्त जोबन हौ , खाली अपने स्कूल में नहीं पूरे तोहरे शहर में अइसन सुन्दर लड़की शयद ही होई। "

भाभी की बात सही थी , लाज से मेरे गाल गुलाल हो गए , लेकिन अपनी तारीफ़ में मैं क्या कहती। 

लेकिन अगली बात जो भाभी ने कही वो ज्यादा सही थी। 

" लेकिन खाली खूबसूरत होने से लौंडे नहीं पटते। ई बात पक्की है दर्जनो तोहरे पीछे पड़े होंगे , लेकिन मजा कौन लूटी होंगी , जो तुमसे आधी भी अच्छी नहीं होंगी। क्यों , एह लिए की उ उनके छेड़ने का जवाब दी होंगी , लौंडन कुछ दिन तक तो लाइन मारते हैं फिर अगर कौनो जवाब नहीं मिला तो थक जाते हैं और फिर जउन जवान माल जवाब देती है ,बस उसी के ऊपर ध्यान लगाते हैं , मिलने मिलाने का जुगाड़ करते हैं और बात आगे बढ़ी तो बस , किला फतह। बाकी तोहरे अस सुन्दर लड़की के साथ वो खाली आँख गरम कर लेंगे , कमेंट वमेंट मार लेंगे बस ,उसके आगे नहीं बढ़ेंगे। 



भाभी को तो मनोवैज्ञानिक होना चाहिए था। या जासूस। 

उन्होंने जो कुछ कहा था सब एकदम सही था। मेरी क्लास में दो तिहाई से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया कब से उड़ने लगी थी। दो चार ही बची थी मेरी जैसी। ये तो भला हो भाभी का जो मुझे अपने गाँव ले आयीं और चंदा का जिसने अजय और सुनील से , ... 

और ये बात भी सही थी कामिनी भाभी की , कि सीने पे मेरे आये उभारों का पता मुझे बाद में चला , गली के बाहर खड़े लौंडो को पहले। एक से एक भद्दे खुले कमेंट ,कई बार बुरा भी लगता लेकिन ज्यादातर अच्छा भी। कमेंट ज्यादातर मेरे ऊपर होते थे , लेकिन मेरे साथ जाने वाली मेरी एक सहेली ने अपने ताले में ताली पहले लगवा ली , उन्ही में से एक से. दो तीन हम लोगों के पीछे स्कूल तक जाते थे और शाम को वापस लौटते , और उनकी रनिंग कमेंट्री चालू रहती। उन्ही में से एक से , और आके खूब तेल मसाला लगा के गाया भी। 

सब लड़कियां खूब जल रही थी उससे। मैं भी। और उसके बाद उसने अबतक ६-७ से तो अपनी नैया चलवा ली। सबसे पॉपुलर लड़कियों में हो गयी वो। 

और फिर शहर में पाबंदी भी कितनी , घर से स्कूल ,स्कूल से घर। हाँ भाभी के यहाँ मैं रेगुलर जाती थी और सहेलियों के यहाँ जाने पे भी कोई रोक टोक नहीं थी , अक्सर उनके साथ पिक्चर विक्चर भी चली जाती थी , शॉपिंग को भी। 

बात भाभी की सही थी लेकिन कैसे , एक तो मेरे अंदर हिम्मत नहीं थी ,डर भी लगता था और फिर कैसे क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता था ,और जब तक मैं कुछ करू , मेरी कोई सहेली उस लड़के को ले उड़ती थी। कैसे ,कुछ समझ में नहीं आता था। 

और यही बात मेरे मुंह से निकल गयी ,

" कैसे भाभी ?"
" अरे बस मेरी बात सुनो ध्यान से और बस वैसे ही करना ,महीने दो महीने में जब लौटोगी न यहाँ तो कम से कम ६-७ लौंडे तो तोहरे मुट्ठी में होंगे। गारंटी हमार है। अबहीं कितने लड़के तोहरे पीछे पड़े रहते हैं। " भाभी ने पूछा। 

दो चार मिनट लगे होंगे ,मुझे जोड़ने में। मैं खाली परमानेण्ट वालों को जोड़ रही थी , चार पांच तो गली के मोड़ पे रहते हैं ,जब भी मैं स्कूल जाती हूँ, लौटती हूँ , यहाँ तक की किसी सहेली के यहां जाती हूँ , और तीन चार स्कूल के बाहर मिलते हैं। उसके अलावा दो वहां रहते हैं जहाँ मैं म्यूजिक के ट्यूशन को जाती हूँ। उसमें से एक ने तो कई बार चिट्ठी भी पकड़ाने की कोशिश की। एक दो और हैं , मेरी सहेली उन की सिफारिश करती रहती है ,

" भाभी ,१० -११ तो होंगे। " मुस्करा के मैं बोली। 

' कमेंट करते रहते हैं , चार पांच तो आगे पीछे , मेरे साथ साथ आते जाते भी है , दो तीन ने चिट्ठी देने की भी कोशिश की। " मैंने पूरा हाल बता दिया। 

" और तुम क्या करती हो जब वो कॉमेंट करते हैं , या आगे पीछे चलते हैं तेरे " मुस्कराते हुए कामिनी भाभी ने इन्क्वायरी की। 

" भाभी ,टोटल इग्नोर। मैं ऐसे बिहेव करती हूँ जैसे वो वहां हो ही नहीं। उनके बारे में किसी से बात भी नहीं करती ,अपनी सहेलियों से भी नहीं। आज पहली बार आप को बता रही हूँ। "

भाभी ने गुस्सा होने का नाटक किया और बोलीं , " तुम तो एकदमै बुद्धू हो , तबै ,.. पिटाई होनी चाहिए तुम्हारी। " 

फिर उन्होंने क्या करना चाहिए ये समझाया ,

"सबसे बड़ी गलती यही करती हो जो इग्नोर करती हो। अरे बहुत हो तो गुस्सा हो जाओ , हड़काओ उसे लेकिन इग्नोर कभी मत करो। आखिर बिचारा कितने दिन तक पीछे पड़ा रहेगा। उसे लगेगा की यहाँ कुछ नहीं हो रहा है तो किसी और चिड़िया को दाना डालने लगेगा। गुस्सा होने से उतना नुक्सान नहीं है ,जितना इग्नोर करने से ,... "

बात भाभी की एकदम सही थी। मेरी एक सहेली थी साथ में , एक दिन हम लोग मॉल जा रहे थे और एक ने कमेंट किया , " मॉल में माल , अरे आज तो मालामाल हो जायेगा। " पीछे वो मेरे पड़ा था , कमेंट भी मेरे ऊपर था लेकिन मेरी सहेली ने एकदम गुस्से में सैंडल निकाल लिया। पंद्रह दिनों के अंदर मेरी वो सहेली ,उस लड़के के नीचे लेट गयी , और फिर तो बिना नागा , और उस लड़के की इतनी तारीफ़ की,.. 

" अरे सारे कमेंट बुरे थोड़े ही लगते होंगे ,कुछ कुछ अच्छे भी लगते होंगे ". 
मैंने सर हिला के माना ,ज्यादातर अच्छे ही लगते हैं। 

" बस, कुछ बोलने की जरूरत नहीं , अरे कम से कम रुक के अपनी चप्पल झुक के ठीक करो। उनको जोबन का नजारा मिल जाएगा। दुपट्टा ठीक करने के बहाने जुबना झलका दो , लेकिन मुड़ के एक बार देख तो लो और अपना दिखा दो उन बिचारों को , सबसे जरूरी है ,हलके से मुस्करा दो , हाँ उनकी आँखों से आँख मिलाना जरूरी है। बस पहली बार में इतना काफी है। और अगर कोई सहेली साथ में हो तो थोड़ा हिम्मत कर के कमेंट का जवाब भी दे सकती , उन सबको नहीं ,अपनी सहेली को लेकिन उन्हें सुना के। और वो समझ जाएंगे इशारा। लेकिन तीन स्टेज होती है इसमें , ... " उन्होंने ट्रिक का पिटारा खोला।
 
लेकिन तीन स्टेज होती है इसमें , ... " उन्होंने ट्रिक का पिटारा खोला। 

मैं कान पारे सुन रही थी लेकिन तीन स्टेज वाली बात समझ में नहीं आई , और मैंने पूछ लिया। कामिनी भाभी ने खुल के समझा भी दिया। 

" देखो पहली स्टेज है सेलेक्ट करो ,दूसरी स्टेज है चेक वेक करो ,काम लायक है की नहीं और तीसरी स्टेज है , सटासट गपागप। 

लेकिन जिस दिन से चारा डालना शुरू करो न , उसके दो तीन हफ्ते के अंदर घोंट लो , वरना वो समझेगा की सिर्फ टरका रही है और बाकी लड़कों में भी ये बात फ़ैल जायेगी। और एक बार जहाँ तुमने दो चार को चखा दिया न फिर तो एकदम से मार्केट बढ़ जायेगी तेरी। लेकिन जिसको सेलेक्ट न करो उसको भी इग्नोर मत करो , जवाब तो दो ही। शुरू में १० -१२ में से सात आठ को चारा डालना शुरू करो ,सात आठ से शुरू करोगी न तो चार पांच से काम होगा , क्योकि कई लड़के तो बातों के बीर होते हैं ,नैन मटक्का से आगे नहीं बढ़ते। हाँ सेलेक्ट करते समय ये जरूर देखना की उसकी बाड़ी वाडी कैसी है , ताकत कितनी होगी। "

मैं ध्यान लगा के सुन रही थी और कामिनी भाभी ने एक नया चैपटर खोला ,




" इन छैलों के अलावा अरे यार तेरी सहेलियों के भाई वाई भी तो होंगे ,उनके यहाँ आने जाने में , मिलने में भी कोई रोक टोक नहीं होगी। "

भाभी की बात एकदम सही थी , पांच छ तो मेरी पक्की सहेलियां था जो अपने सगे भाई से फंसी थी और हर रात बिना नागा कबड्डी खेलती थी , उससे भी बढ़कर अगले दिन आके सब हाल खुलासा सुना के मुझे जलाती थीं। और कजिन तो पूछना नहीं , आधी क्लास की लड़कियां अपने ममेरे ,फुफेरे ,चचेरे कजिन्स से ,... 

" एक बार थोड़ा सा लिफ्ट दे दोगी न तो फिर वो सीधे बात वात करने के चक्कर में ,चिट्ठी का चक्कर चालू हो जाएगा। बस जिस को सेलेक्ट करोगी न उसी से , लेकिन कभी भी जब वो चिट्ठी दे तो लेने से मना मत करो , हाँ पहली चिट्ठी का जवाब मत देना। तड़पने देना और दूसरी चिट्ठी का बहुत छोटा सा लेकिन कभी भी चिट्ठी में नाम मत लिखना न उसका न अपना और राइटिंग बिगाड़ के लिखना। और मिलने के लिए चेक वेक करने के लिए पिक्चर हाल से बढ़िया कुछ नहीं , हाँ सबसे पहले तेरे हाथ पे हाथ रखेगा वो तो अपना हाथ हटा लेना। लेकिन दूसरी बार अगर दुबारा हाथ रखे तो मत हाथ हटाना। हाँ अगर किस्सी विस्सी ले तो मना कर देना , लेकिन उभार पे तो हाथ रखेगा ही। और दूसरी बार में तो वो नाप जोख किये बिना मानेगा नहीं। अगर अपना हाथ पकड़ के अपने औजार पे रखवाए तो थोड़ा बहुत नखडा कर के मान जाना , तो तुमको भी अंदाज लग जाएगा की पतंग की डोर आगे बढ़ाओ की नहीं। और अगर तुझे पसंद आगया तो फिर तो हफ्ते के अंदर ठुकवा लेना। "


कामिनी भाभी की बातों में बहुत दम था ,अब गांव से कुछ दिन बाद लौट के जब घर पहुँचूंगी तो कुछ तो करना होगा। वरना ,फिर वही पहले जैसा , मेरा सहेलियाँ मजे लूटेंगी , मुझे आके जलाएंगी और मैं वैसे की वैसी। यहाँ तो कोई दिन नागा नहीं जाता , और वहां फिर वही ,... 

" अरे मेरी ननद रानी ,अब मायके लौटो न तो खूब खुल के ये जोबन दबवाओ मिजवाओ ,लौंडन को ललचाओ। जो तेल और क्रीम दे रही हूँ न ,बस उ लगा के जाना ,एकदम टनाटन रहेगा। कितनो रगड़वाओगी , वैसे ही कड़ा रहेगा। " मेरे उभार कस के दबाती मुस्कराती कामिनी भाभी ने समझाया। 

मेरी मुस्कान ने उनकी बात में हामी भरी। 

दूसरा हाथ मेरी जाँघों के बीच साडी के ऊपर से चुनमुनिया को रगड़ रहा था। वो फिर बोलीं , " अरे गपागप चुदवाओ न , मैं अइसन गोली दूंगी , खाली महीने में एक बार खाना होगा , जब महीना खतम हो उसी दिन फिर अगले महीने तक छुट्टी। कुल मलाई सीधे बच्चेदानी में लिलोगी न तब भी कुछ नहीं होगा। और एक बात और , चोदना खाली लौंडन का काम नहीं है। हमार असली ननद तब होगी जब खुद पटक के लौंडन को चोद दोगी ,"

अब मैं बोली , " एकदम भाभी आपकी असली ननद हूँ ,जब अगली बार आउंगी तो देखियेगा ,बताउंगी सब किस्सा। "


लेकिन इस बीच गडबड हो गयी। 


खाना तो कब का खत्म हो गया था। 

चम्पा भाभी बसंती ने कामिनी भाभी के पति का जो हाल बयान किया था , मेरा मन बहुत कर रहा था ,लेकिन अभी तो वो थे ही नहीं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया ,

" भाभी आपके वो कब आएंगे। "

अब भाभी अलफ़। सारी दोस्ती मस्ती एक मिनट में खत्म। उनका चेहरा तमक गया। 

मैं घबड़ा गयी ,क्या गलती हो गयी मुझसे। 

" तुम मुझे क्या बोलती हो। " बहुत ठंडी आवाज में उन्होंने पूछा। 

" भाभी ,आपको भाभी बोलती हूँ। " मैंने सहम के जवाब दिया। 

" और मेरे 'वो ' क्या लगे तुम्हारे ," फिर उन्होंने पूछा। 

अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया , और सुधारने का मौका भी मिल गया। 
दोनों कान पकड़ के बोली ," गलती हो गयी भाभी ,भैया हैं मेरे , और आगे से आपको मैं भौजी बोलूंगी उनको भैया। "

सारा गुस्सा कामिनी भाभी का कपूर की तरह उड़ गया। उन्होंने मुझे कस के बाँहों में भींच लिया और अपने बड़े बड़े उभारों से मेरी कच्ची अमिया दबाती मसलती बोलीं , 

" एकदम ,तू हमार सच्च में असल ननद हो। "

फिर उन्होंने पूरा किस्सा बताया। जब वो शादी हो के आयीं तो पता चला की उनकी कोई ननद नही है , सगी नहीं है ये तो पता ही था लेकिन कोई चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी ,फुफेरी बहन भी नहीं है उनके पति के उन्हें तब पता चला। गाँव के रिश्ते से थी लेकिन असल रिश्ते वाली एकदम नहीं थी और आज उन्होंने मुझे अपनी वो 'मिसिंग ननद ' बना लिया था. 

" एकदम भौजी ओहमें कौनो शक ," उनके मीठे मीठे मालपूआ ऐसे गाल पे कचकचा के चुम्मा लेते मैंने बोला। 

" डरोगी तो नहीं " मेरी चुन्मुनिया रगड़ते उन्होंने पूछा। 

" अगर डर गयी भौजी तो आपकी ननद नहीं " जवाब में उनकी चूंची मैंने कस के मसल दी। 

" मैंने तय किया था की मेरी जो असल ननद होगी न उसे भाईचोद बनाउंगी और उनको पक्का बहनचोद ,लेकिन कोई ननद थी नहीं। " मुस्कराते वो बोलीं। 

" नहीं रही होगी लेकिन अब तो है न " उनकी आँखों में आँखे डाल के मैंने बोला , और जवाब में मेरी साड़ी खोल के गचाक से एक ऊँगली उन्होंने मेरी कसी चूत में पेल दी। 

" लेकिन भैया तो हैं नहीं " मैंने बोला , लेकिन मेरी बात का जवाब बिना दिए भाभी रसोई में वापस चली गयीं। 

हम दोनों बेड रूम में बिस्तर पर बैठे थे। 

जब वो लौटीं तो उनके हाथ में बड़ा सा ग्लास था।



भौजी के हाथ में बखीर थी। और वो भी मुझे तब चला जब एक कौर मेरे मुंह में चला गया।
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]भौजी के हाथ में बखीर थी। और वो भी मुझे तब चला जब एक कौर मेरे मुंह में चला गया। 
………………………………….
बखीर - मुझे अच्छी तरह मालूम था ये क्या चीज है और उससे भी ज्यादा ये भी मालूम था इसका असर क्या होता है। गुड चावल की खीर , लेकिन अक्सर इसे ताजे गन्ने के रस में बनाते हैं और जितना ताजा गन्ने का रस हो और जितना ही पुराना चावल हो उसका मजा और असर उतना ही ज्यादा होता है। 

गौने की रात दुल्हन को उसकी छोटी ननदें , जिठानियां गाँव में दुलहन को कमरे में भेजने के पहले इसे जरूर खिलाते हैं। दुलहन को उसके मायके में उसकी भौजाइयां , सहेलियां सब सीखा पढ़ा के भेजती हैं की किसी भी हालत में बखीर खाने से बचना और अगर बहुत मज़बूरी हो तो बस रसम के नाम पे एक दो कौर , बस। लेकिन यहां उसकी ननदें तैयार रहती हों , चाहे बहला फुसला के , चाहे जोर जबरदस्ती वो बिना पूरा खिलाये नहीं छोड़तीं। फायदा उनके भाई को होता है। अगर गौने की दुल्हन ने बखीर खा लिया तो वो , ... उसकी तासीर इतनी गरम होती है कि थोड़ी देर में ही खुद उसका मन करने लगता है , और मना करना या बहाने बनाना तो दूर , खुद उनका मन करता है की कितनी जल्दी भरतपुर का ,... और बाहर खड़ी ,दरवाजे खिड़की से ननदियां कान चिपकाए इन्तजार करती रहती है की कब भाभी की जोर से कमरे के अंदर से जोर की चीख आये , ... 

और फिर तो बाहर खड़ी ननदों ,जिठानियों की खिलखिलाहटें , मुंह बंद करके , खिस खिस , ... 

और थोड़ी दूर जग रही सास , चचिया ,ममेरी ,फुफेरी सब , एक दूसरे को देख के मुस्कराती 


और अगले दिन जो ननदें भाभी को कमरे से लाने जाती हैं तभी से छेड़खानी , 


मुझे इसलिए भी मालूम है की किस तरह अपनी भाभी को मैंने बहाने बना के ,फुसला के बखीर खिलाई थी ,एकलौती ननद होने के रिश्ते से ये काम भी मेरा था। 


लेकिन कामिनी भाभी जितना बखीर खिला रही थीं वो उसके दुगुने से भी ज्यादा रहा होगा। 

मैंने लाख नखड़े बनाये ,ना नुकुर किया , लेकिन कामिनी भाभी के आगे किसी ननद की आज तक चली है की मेरी चलती। 

वो अपने हाथ से बखीर खिला रही थीं की कही जोर से कुछ गिरने की या दरवाजा खुलने ऐसी आवाज हुयी। 

भाभी ने बखीर मुझे पकड़ा दी और बोलीं की उनके लौटने से पहले बखीर खत्म हो जानी चाहिए। उन्हें लगा की कोई चूहा है या कोई दरवाजा ठीक से नहीं बंद था। 

वो चली गयीं और उनके आने में पांच दस मिनट लग गए। 

मेरा ध्यान बस इसी में था की कौन सा चूहा है जिसे भगाने में भाभी को इतना टाइम लग गया। 

वो लौटीं तो मैंने छेड़ा भी ,

" भौजी कौन सा चूहा था ,कितना मोटा था ,आपका कोई पुराना यार तो नहीं था की मौका देख के आपके बिल के चक्कर में ,... "

मेरी बात काट के मुस्कराती बोलीं वो ,

" सही कह रही हो बहुत मोटा था ( अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के उन्होंने इशारा भी किया ,ढाई तीन इंच मोटा होने का ), और तुम्हारी बिलिया में घुसेगा घबड़ाओ मत। लेकिन बखीर खतम हुयी की नहीं ."

और फिर उनके तगड़े हाथ ने जबरन मेरा गाल दबाया और दूसरे हाथ से बखीर लेके सीधे उन्होंने ,... पूरा खत्म करवा के मानी। 

वो बरतन किचेन में रखने गयीं और मैं बिस्तर पे लेट गयी , साडी से मैंने अपने उभार ढक लिए। 

दिल मेरा धक धक कर रहा था , अब क्या होगा।
हुआ वही जो होना था।
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[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]

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Re: सोलहवां सावन,[/font]


[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Post by komaalrani » 22 Feb 2016 13:53[/font]
दिल मेरा धक धक कर रहा था , अब क्या होगा।
हुआ वही जो होना था। 

कामिनी भाभी के साथ चीजें इतने सहज ढंग से होती थीं की पता ही नहीं चला कब हम दोनों के कपडे हमसे दूर हुए , कब बातें चुम्बनों में और चुम्बन सिसकियों में बदल गए। 

पहल उन्होंने ही की लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने खुद मुझे ऊपर कर लिया , जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन उत्सुकतावश विपरीत रति करने की कोशिश में , खुद अपने पति के ऊपर चढ़ जाती है। 

मैंने कन्या रस सुख पहले भी लिया था , लेकिन आज की बात अलग ही थी। आज तो जैसे १०० मीटर की दौड़ दौड़ने वाला ,मैराथन में उतर जाय। कुछ देर तक मेरे होंठ उनके होंठों का अधर रस लेते रहे , उँगलियाँ उनके दीर्घ स्तनों की गोलाइयों नापने का जतन करती रहीं , लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों को लग गया की कौन ऊपर होना चाहिए और कौन नीचे। 

कामिनी भाभी ,हर तरह के खेल की खिलाड़िन , काम शास्त्र प्रवीणा मेरे ऊपर थीं लेकिन आज उन्हें भी कुछ जल्दी नहीं थी। उनके होंठ मेरे होंठ को सहला रहे थे , दुलरा रहे थे। कभी वो हलके से चूम लेतीं तो कभी उनकी जीभ चुपके से मुंह से निकल के उसे छेड़ जाती और मेरे होंठ लरज के रह जाते।
मेरे होंठों ने सरेंडर कर दिया था। बस, अब जो कुछ करना है ,वो करें। 

और उनके होंठों ने खेल तमासा छोड़ ,मेरे होंठों को गपुच लिया अधिकार के साथ ,कभी वो चुभलातीं ,चूसतीं अधिकार के साथ तो कभी हलके से अपने दांतों के निशान छोड़ देती। और इसी के साथ अब कामिनी भाभी के खेले खाए हाथ भी मैदान में आ गए। मेरे उभार अब उन हाथों में थे ,कभी रगड़तीं कभी दबाती तो कभी जोर जोर से मिजतीं। मैं गिनगिना रही थी , सिसक रही थी अपने छोटे छोटे चूतड़ पटक रही थी। 

लेकिन कामिनी भाभी भी न , तड़पाने में जैसे उन्हें अलग मजा मिल रहा था। मेरी जांघे अपने आप फैल गयी थीं , चुनमुनिया गीली हो रही थी। लेकिन वो भी न , 

लेकिन जब उन्होंने रगड़ाई शुरू की तो फिर ,...मेरी दोनों खुली जाँघों के बीच उनकी जांघे , मेरी प्यासी गीली चुनमुनिया के उपर उनकी भूखी चिरैया , फिर क्या रगड़ाई उन्होंने की , क्या कोई मरद चोदेगा जैसे कामिनी भाभी चोद रही थीं। और कुछ ही देर में वो अपने पूरे रूप में आ गयीं , दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन का रस ले रहे थे , दबा रहे थे कुचल रहे थे ,कभी निपल्स को फ्लिक करते तो कभी जोर से पिंच कर देते ,और होंठ किसी मदमाती पगलाई तितली की तरह कभी मेरे गुलाल से गालों पे तो कभी जुबना पे , और साथ में गालियों की बौछार ,.. जिसके बिना ननद भाभी का रिश्ता अधूरा रहता है। 

किसी लता की तरह मैं उनसे चिपकी थी, धीरे धीरे अपने नवल बांके उभार भाभी के बड़े बड़े मस्त जोबन से हलके हलके रगड़ने की कोशिश कर रही थी। मेरी चुनमुनिया जोर जोर से फुदक रही थी , पंखे फैलाके उड़ने को बेताब थी। मैं पनिया रही थी। 

८-१० मिनट , हालांकि टाइम का अहसास न मुझे था न मेरी भौजी को। मैं किनारे पर पहुँच गयी , पहली बार नहीं , दूसरी तीसरी बार , लेकिन अबकी भाभी ने बजाय मुझे पार लगाने के , एकदम मझधार ,में छोड़ दिया। 

शाम से ही यही हो रहा था , बंसती ,गुलबिया और कामिनी भौजी ,... 

लेकिन अगले पल पता चला की हमला बंद नहीं हुआ ,सिर्फ और घातक हो गया था। 

हम दोनों 69 की पोज में हो गए थे , भौजाई ऊपर और मैं नीचे।


और वहां भी वो शोले भड़का रही थीं. बजाय सीधे 'वहां 'पहुँचने के उनके रसीले होंठों ने मेरी फैली खुली रेशमी जाँघों को टारगेट बनाया और कभी हलके से लम्बे लम्बे लिंक्स और कभी हलके से किस, और बहुत बहुत धीमे धीमे उनके होंठ मेरे आनद द्वार की ओर पहुँच गए , लेकिन कामिनी भाभी की गीली जीभ मेरे निचले होंठों के बाहरी दरवाजे के बाहर , बस हलके हलके एक लाइन सी खींचती रही। 

मैंने मस्ती से आँखे बंद कर ली थी ,हलके हलके सिसक रही थी। जोर से मेरी मुट्ठियों ने चादर दबोच रखी थी। 
और जैसे कोई बाज झपट्टा मार के किसी नन्ही गौरैया को दबोच ले , बस वही हालत मेरी चुनमुनिया की हुयी। भाभी ने तो अपनी जीभ की नोक मेरी कसी कसी रसीली गुलाबी चूत की फांकों के बीच डाल कर दोनों होंठों को अलग कर दिया। उनकी जीभ प्रेम गली के अंदर थी ,कभी सहलाती कभी हलके से प्रेस करती,... मैं पनिया रही थी ,गीली हो रही थी। फिर भाभी के दोनों होंठ उन्होंने एक झपट्टे में दोनों फांको को दबोच लिया। 


मैं सोच रही थी की वो अब चूस चूस कर , ... लेकिन नहीं। उन्हके होंठ बस मेरे निचले होंठों को हलके हलके दबाते रहे। रगड़ते रहे। लेकिन मेरी चूत में घुसी उनकी जीभ ने शैतानी शुरू कर दी। चूत के अंदर , कभी आगे पीछे ,कभी अंदर बाहर , तो कभी गोल ,... 


जवाब मेरे होंठों ने उनकी बुर पे देना शुरू किया लेकिन वहां भी वही हावी थीं। जोर जोर से रगड़ना , मेरे होंठों को बंद कर देना ,...
हाँ कभी कभी जब वो चाहती थीं की उनकी छुटकी ननदिया उनके छेड़ने का जवाब दे , तो पल भर के लिए मेरे होंठ आजाद हो जाते थे। कामिनी भाभी की जाँघों की पकड़ का अहसास मुझे अच्छी तरह हो गया था ,किसी मजबूत लोहे की सँडसी की पकड़ से भी तेज ,मेरा सर उनकी जाँघों के बीच दबा था ,और मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती थी। 

और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघो को कस के फैला रखा था।
 
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