hotaks444
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"बोलो ना मा! क्या वे तुम्हारे गुप्तांगो को मुझसे अधिक प्यार करते थे ?" ऋषभ ने पुनः पुच्छा और इस बार उसका सवाल, सवाल ना हो कर पिता-पुत्र की अग्यात तुलनात्मक श्रेणी में परिवर्तित हो चुका था ताकि उसकी मा को सोचने का ज़्यादा वक़्त ना मिल सके और उनके दरमियाँ अचानक आई इस स्थिरता को भी दोबारा गति मिल जाए, तत-पश्चात वह अपनी उंगलियों से अपनी मा की उंगलियों को पकड़ कर उसके हाथ को उसकी चूत से हटाते हुवे उसके चूतडो की दरार के बीचो-बीच खींच लाता है.
"मैं नही जानती कि तू अपने पापा से क्यों नाराज़ है मगर इतना अवश्य पता है कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा तुझसे प्यार करते हैं" ममता प्रश्न बदलने के उद्देश्य से बोली, वह बहुत हैरान थी और परेशान भी. उसके पुत्र की अश्लील हरक़तो के चलते उसका सैयम अब टूटने की कगार के बेहद करीब पहुँच चुका था, चूत भभक्ते अंगार समान सुलगती ही जा रही थी और जिसकी अगन को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द के गाढ़े वीर्य से ही शांत किया जा सकता था. उसके हाथो में भरी हुई लाल चूड़ियों की खनक! पैरो में बँधी पाजेब के घूंघुरूओ की छनक! कभी घुटि तो कभी ना रोक सकने योग्य सिसकियों की मनमोहक ध्वनि और चूत से निरंतर बहते कामरस की मादक सुगंध, पल प्रति पल ऋषभ पूर्व से कहीं ज़्यादा हिंसक बनने पर विवश होता जा रहा था.
"तुम नही बताना चाहती तो ना सही मगर झूठ का सहारा मत लो मा" आवेश के स्वर में कहते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के अंगूठे को उसके खुद के गुदा-द्वार से सटा दिया और हौले-हौले अंगूठे के नाख़ून से छिद्र की दानेदार सतह को कुरेदने लगता है.
"उफफफफफ्फ़! नाराज़ क्यों होता है, जब तू मुझसे झूठ बोल सकता है तो मैं क्यों नही" ममता अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से अपने बाएँ चूचक को उमेठति हुवी बुदबुदाई. आज से पहले उसने असन्ख्य बार अपनी गान्ड के छेद का स्पर्श किया था परंतु जितना आनंद वह इस वक़्त महसूस कर रही थी, कल्पना से परे था. उसका पुत्र स्वयं उसके अंगूठे को नियंत्रित कर रहा था, जब! जहाँ! जैसे-चाहे वह अंगूठे को चलायमान कर देता और ममता का बदन बुरी तरह से काँपने लगता.
"मैने क्या झूठ बोला मा ? ज़रा मुझे भी तो पता चले" ऋषभ को वाद-विवाद की नयी दिशा मिल रही थी, मौके को भुनाने हेतु उसने फॉरन पुछा.
"बहुत से झूठ बोले हैं तूने" ममता ने विचार्मग्न होने से पहले हल्का सा संकेत किया और तत-पश्चात सोचने लगी कि कहाँ से शुरूवात करना उचित रहेगी. आमतौर पर मारियादित रिश्तों के बीच अमर्यादित सम्वादो का आदान-प्रदान बड़ा असहज होता है लेकिन ममता-ऋषभ अब इस धारणा से बिल्कुल मुक्त हो चले थे, वे खुल कर देशी अति-उत्तेजनात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे थे, एक- दोसरे के गुप्तांगो की चर्चा तो मानो उनके दरमियाँ बेहद सहज हो चुकी थी.
"हे हे हे हे! कहीं तुम्हारा इशारा तुम्हारे मम्मो और चूतड़ो की तरफ तो नही मा .. मुझे तो यही लगता है" ऋषभ ने निर्लज्जता पूर्ण ढंग से हँसते हुए बताया और इसके उपरांत ही वह अपनी मा के अंगूठे को छोड़ देता है.
"तेरा अनुभव वाकाई प्रशन्शा के काबिल है रेशू! औरतो के मन को पढ़ना तुझे बखूबी आता है" अपने पुत्र के कयास को जान कर ममता भी मुस्कुराए बगैर नही रह सकी और बेशर्मी के साथ उसे अपनी प्रतियक्रिया से अवगत करवाती है.
"मा! तुम्हारे मम्मो की अत्यधिक कसावट, उनका प्राकृतिक आकार, निप्पलो की कामुक रंगत और उनका तनाव किसी नपुंसक को भी उत्तेजित कर देने में सक्षम है" कह कर ऋषभ अपने दोनो हाथो को अपनी मा के चूतड़ो की दरार से घुमाते हुए उन्हे उसके उभरे पेट पर ले आता है, उसके पंजे ममता के पसीने से लथपथ बदन की चिकनी चमड़ी पर बेहद चिपक कर फिसल रहे थे. इसके उपरांत वह उन्हे अपनी मा के मम्मो की दिशा में ऊपर की ओर सरकाने लगा और कुच्छ ही छनो के विलंब के पस्चात उसकी मा के गोल मटोल मम्मे उसके विशाल पंजो की मजबूत जाकड़ में क़ैद हो जाते हैं.
"अहह सीईईईई .. रेशूउऊ! मेरे मम्मो की जाँच तो तू पहले ही कर चुका है" ममता ने सिस्कार्ते हुए कहा.
"फिर दोबारा क्यों बेटे ?" उसने शंकित स्वर में सवाल किया.
"हां मा! मैं इनकी जाँच कर चुका हूँ मगर तब इनसे प्यार नही कर पाया था! उफफफफफ्फ़ .. कितने फूले हुवे मम्मे हैं तुम्हारे" आह भरते हुवे ऋषभ अपनी मा के मम्मो का बेरहेमी से मर्दन करना आरंभ कर देता है, जिसे वह प्यार की झुटि संगया दे रहा था वह मात्र हवस के कुच्छ और ना थी. ममता की अनियंत्रित सांसो का उतार-चढ़ाव से पल प्रति पल उसके पुत्र के पंजे उसके मम्मो को आसानीपूर्वक गूँथने लगते. अपनी मा की पीठ पर धीरे-धीरे वह अपने शरीर का संपूर्ण भार भी डालता जा रहा था, जिसके नतीजन अपने आप ही उसका विकराल लंड उसकी मा की नंगी पीठ से टकराने लगता है.
क्रमशः............................................
"मैं नही जानती कि तू अपने पापा से क्यों नाराज़ है मगर इतना अवश्य पता है कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा तुझसे प्यार करते हैं" ममता प्रश्न बदलने के उद्देश्य से बोली, वह बहुत हैरान थी और परेशान भी. उसके पुत्र की अश्लील हरक़तो के चलते उसका सैयम अब टूटने की कगार के बेहद करीब पहुँच चुका था, चूत भभक्ते अंगार समान सुलगती ही जा रही थी और जिसकी अगन को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द के गाढ़े वीर्य से ही शांत किया जा सकता था. उसके हाथो में भरी हुई लाल चूड़ियों की खनक! पैरो में बँधी पाजेब के घूंघुरूओ की छनक! कभी घुटि तो कभी ना रोक सकने योग्य सिसकियों की मनमोहक ध्वनि और चूत से निरंतर बहते कामरस की मादक सुगंध, पल प्रति पल ऋषभ पूर्व से कहीं ज़्यादा हिंसक बनने पर विवश होता जा रहा था.
"तुम नही बताना चाहती तो ना सही मगर झूठ का सहारा मत लो मा" आवेश के स्वर में कहते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के अंगूठे को उसके खुद के गुदा-द्वार से सटा दिया और हौले-हौले अंगूठे के नाख़ून से छिद्र की दानेदार सतह को कुरेदने लगता है.
"उफफफफफ्फ़! नाराज़ क्यों होता है, जब तू मुझसे झूठ बोल सकता है तो मैं क्यों नही" ममता अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से अपने बाएँ चूचक को उमेठति हुवी बुदबुदाई. आज से पहले उसने असन्ख्य बार अपनी गान्ड के छेद का स्पर्श किया था परंतु जितना आनंद वह इस वक़्त महसूस कर रही थी, कल्पना से परे था. उसका पुत्र स्वयं उसके अंगूठे को नियंत्रित कर रहा था, जब! जहाँ! जैसे-चाहे वह अंगूठे को चलायमान कर देता और ममता का बदन बुरी तरह से काँपने लगता.
"मैने क्या झूठ बोला मा ? ज़रा मुझे भी तो पता चले" ऋषभ को वाद-विवाद की नयी दिशा मिल रही थी, मौके को भुनाने हेतु उसने फॉरन पुछा.
"बहुत से झूठ बोले हैं तूने" ममता ने विचार्मग्न होने से पहले हल्का सा संकेत किया और तत-पश्चात सोचने लगी कि कहाँ से शुरूवात करना उचित रहेगी. आमतौर पर मारियादित रिश्तों के बीच अमर्यादित सम्वादो का आदान-प्रदान बड़ा असहज होता है लेकिन ममता-ऋषभ अब इस धारणा से बिल्कुल मुक्त हो चले थे, वे खुल कर देशी अति-उत्तेजनात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे थे, एक- दोसरे के गुप्तांगो की चर्चा तो मानो उनके दरमियाँ बेहद सहज हो चुकी थी.
"हे हे हे हे! कहीं तुम्हारा इशारा तुम्हारे मम्मो और चूतड़ो की तरफ तो नही मा .. मुझे तो यही लगता है" ऋषभ ने निर्लज्जता पूर्ण ढंग से हँसते हुए बताया और इसके उपरांत ही वह अपनी मा के अंगूठे को छोड़ देता है.
"तेरा अनुभव वाकाई प्रशन्शा के काबिल है रेशू! औरतो के मन को पढ़ना तुझे बखूबी आता है" अपने पुत्र के कयास को जान कर ममता भी मुस्कुराए बगैर नही रह सकी और बेशर्मी के साथ उसे अपनी प्रतियक्रिया से अवगत करवाती है.
"मा! तुम्हारे मम्मो की अत्यधिक कसावट, उनका प्राकृतिक आकार, निप्पलो की कामुक रंगत और उनका तनाव किसी नपुंसक को भी उत्तेजित कर देने में सक्षम है" कह कर ऋषभ अपने दोनो हाथो को अपनी मा के चूतड़ो की दरार से घुमाते हुए उन्हे उसके उभरे पेट पर ले आता है, उसके पंजे ममता के पसीने से लथपथ बदन की चिकनी चमड़ी पर बेहद चिपक कर फिसल रहे थे. इसके उपरांत वह उन्हे अपनी मा के मम्मो की दिशा में ऊपर की ओर सरकाने लगा और कुच्छ ही छनो के विलंब के पस्चात उसकी मा के गोल मटोल मम्मे उसके विशाल पंजो की मजबूत जाकड़ में क़ैद हो जाते हैं.
"अहह सीईईईई .. रेशूउऊ! मेरे मम्मो की जाँच तो तू पहले ही कर चुका है" ममता ने सिस्कार्ते हुए कहा.
"फिर दोबारा क्यों बेटे ?" उसने शंकित स्वर में सवाल किया.
"हां मा! मैं इनकी जाँच कर चुका हूँ मगर तब इनसे प्यार नही कर पाया था! उफफफफफ्फ़ .. कितने फूले हुवे मम्मे हैं तुम्हारे" आह भरते हुवे ऋषभ अपनी मा के मम्मो का बेरहेमी से मर्दन करना आरंभ कर देता है, जिसे वह प्यार की झुटि संगया दे रहा था वह मात्र हवस के कुच्छ और ना थी. ममता की अनियंत्रित सांसो का उतार-चढ़ाव से पल प्रति पल उसके पुत्र के पंजे उसके मम्मो को आसानीपूर्वक गूँथने लगते. अपनी मा की पीठ पर धीरे-धीरे वह अपने शरीर का संपूर्ण भार भी डालता जा रहा था, जिसके नतीजन अपने आप ही उसका विकराल लंड उसकी मा की नंगी पीठ से टकराने लगता है.
क्रमशः............................................