hotaks444
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" न .. न .. रेशू नही उफफफ्फ़ ! वहाँ .. वहाँ नही बेटा" ममता की चीख अब सीत्कार ध्वनि में बदलते देर ना लगी. पुत्र की जीभ का गीला स्पर्श, उसकी थिरकन का एहसास अपनी गान्ड के कोमल छिद्र पर झेल पाना नामुमकिन था. इतने अधिक आनंद की कल्पना तो उसने कभी नही की थी, उसे तो पता तक नही था कि शरीर के इस गंदे छेद को भी चूसा या चाटा जा सकता है और सबसे बड़ी बात कि इस अप्राकृतिक कार्य से प्राप्त होती सिरहन तो वाकाई प्राणघातक थी.
ऋषभ उस छेद को काफ़ी गीला कर चुका था और अब वह उसे अपने होंठो में भीचते हुवे बड़ी कठोरता के साथ चूसना शुरू कर देता है, मानो उस छेद के भीतर से भी कोई तरल पदार्थ बाहर निकाल कर उससे अपना गला तर करना चाहता हो
"ओह्ह्ह! मान जा रेशू ..मैं मर जाउन्गि" ममता गिड़गिदाते हुवे बोली, उसका शरीर तो इस सुखमय एहसास से प्रफुल्लित होता जा रहा था परंतु मन ही मन वह बहुत घबरा रही थी. पहली बार उसके पति के अलावा कोई पराया मर्द उसके गुप्तांगो के इतने करीब था और उस पराए मर्द का उसका सगा बेटा होना ही उसकी लज्जा का प्रमुख विषय था. हलाकी प्रेम के मामले में आज ऋषभ ने अपने पिता को हरा दिया था मगर अब तक ममता तय नही कर पाई थी कि पति-पुत्र में से उसे किसका चुनाव करना था. यदि पति के पास जाती तो ता-उमर घुट'ते हुवे जीती और पुत्र के पास जा कर सुख तो मिलता मगर महज रंडी कहलाती. उसे इस बात का भी डर था की अब कैसे वह अपने पुत्र से अपनी आँख मिला सकेगी, ऋषभ उसकी गान्ड के छेद को चाटने व चूसने में बुरी तरह से व्यस्त हो चुका था मगर कभी ना कभी तो वह रुकता ही और उसके रुकने के पश्चात ममता की मौत निश्चित थी. अभी वह ठीक से विचार-मग्न भी नही हो पाई थी इससे पूर्व ही ऋषभ का विस्फोटक प्रश्न उसकी रूह कपा देता है.
"मा! क्या तुम्हारे गुदा-द्वार की पीड़ा मे कमी आई या अभी भी उसमें दर्द शेष है ?
ऋषभ उस छेद को काफ़ी गीला कर चुका था और अब वह उसे अपने होंठो में भीचते हुवे बड़ी कठोरता के साथ चूसना शुरू कर देता है, मानो उस छेद के भीतर से भी कोई तरल पदार्थ बाहर निकाल कर उससे अपना गला तर करना चाहता हो
"ओह्ह्ह! मान जा रेशू ..मैं मर जाउन्गि" ममता गिड़गिदाते हुवे बोली, उसका शरीर तो इस सुखमय एहसास से प्रफुल्लित होता जा रहा था परंतु मन ही मन वह बहुत घबरा रही थी. पहली बार उसके पति के अलावा कोई पराया मर्द उसके गुप्तांगो के इतने करीब था और उस पराए मर्द का उसका सगा बेटा होना ही उसकी लज्जा का प्रमुख विषय था. हलाकी प्रेम के मामले में आज ऋषभ ने अपने पिता को हरा दिया था मगर अब तक ममता तय नही कर पाई थी कि पति-पुत्र में से उसे किसका चुनाव करना था. यदि पति के पास जाती तो ता-उमर घुट'ते हुवे जीती और पुत्र के पास जा कर सुख तो मिलता मगर महज रंडी कहलाती. उसे इस बात का भी डर था की अब कैसे वह अपने पुत्र से अपनी आँख मिला सकेगी, ऋषभ उसकी गान्ड के छेद को चाटने व चूसने में बुरी तरह से व्यस्त हो चुका था मगर कभी ना कभी तो वह रुकता ही और उसके रुकने के पश्चात ममता की मौत निश्चित थी. अभी वह ठीक से विचार-मग्न भी नही हो पाई थी इससे पूर्व ही ऋषभ का विस्फोटक प्रश्न उसकी रूह कपा देता है.
"मा! क्या तुम्हारे गुदा-द्वार की पीड़ा मे कमी आई या अभी भी उसमें दर्द शेष है ?