hotaks444
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मैं मखखां ले आया. डॅडी बस अपनी लंड सहलाते हुए बैठे रहे. छोटा
होने की वजह से सारी तैयारी मुझे ही करनी पड़ी. मैने बुरा नही माना, बल्कि
काफ़ी मस्ती का अनुभव कर रहा था. पहले मैने मा की पैंटी की पत्ती बाजू मे
की और गान्ड मे प्यार से मख्खन चुपडा. फिर हथेली पर लेकर डॅडी के लंड
पर लगाया. डॅडी के मस्त हुए शिश्न को मख्खन लगाने मे बड़ा मज़ा आ रहा
था. मैं मख्खन चुपड रहा था तभी उन्होने प्यार से मुझे बाहों मे ले
लिया और मुझे चूमने लगे. बार बार मेरे होंठों, गालों और आँखों को
चूमते हुए बोले "अनिल मेरे बेटे, बहुत प्यारा है तू, इतना सुख दे रहा है
मुझे. बहुत रसीला भी है तू, अब मन लगाकर तेरा रस चखूँगा"
वे पीछे से मा पर चढ़े और मैने मा के चूतड़ फैलाकर मा की गान्ड मे
लंड डालने मे उनकी मदद की. शशिकला जो मा के नीचे दबी हुई मा की बुर
चाट रही थी, हँसकर बोली "वाह, मुझे क्या व्यू मिला है! बिलकुल पास से देख
रही हू मेरी मम्मी की गान्ड मे घुसते डॅडी के लंड को"
डॅडी मा की गान्ड मारने लगे. मख्खन से चिकनी गान्ड मे सपासाप उनका
लंड अंदर बाहर होने लगा. इस बार मा बिलकुल नही कराही, पिछली बार मारने
पर काफ़ी सिसकी थी. पर आज एक तो उसकी गान्ड को अब आदत हो गयी थी, दूसरे
शशिकला के साथ सिक्स्टी नाइन करने मे उसे वह लुत्फ़ आ रहा था कि और कोई
परवाह उसे नही थी. शशिकला बीच बीच मे मा की बुर से मूह हटकर डॅडी
के अंदर बाहर होते लंड पर जीभ लगा देती.
मैं वैसे ही बैठा यह मस्ती देख रहा था. लगता था मैं भी चढ़ जाउ और किसी
को चोद डालु पर समझ मे नही आ रहा था, दोनों औरतों की चुते और मूह
व्यस्त थे. शशिकला की गान्ड ज़रूर खाली थी पर वह मा के नीचे दबी होने से
उसे चोदने की कोई गुंजाइश नही थी.
शशिकला ने मुझसे चुटकी ली "अब तू क्या करेगा अनिल?" मैं बस देखता रहा.
डॅडी थोड़े तिरछे हुए और बोले "मेरे अनिल को मत तंग करो. इतना प्यारा लड़का
है. अनिल, आओ बेटे, यहाँ मा के बाजू मे लेटो. मैं तुम्हारा ये जवान रसीला लंड
चूसना चाहता हू"
शशिकला हंस पड़ी "हाँ अनिल, हमने कब से ये आसान सोच रखा था, शादी के
बाद की चुदाई का पहला आसन. आ जा, शरमा मत, डॅडी तो कब से प्यासे है तेरी
जवानी के"
धड़कते दिल से मैं मा के बाजू मे लेट गया. डॅडी ने झुक कर प्यार से मेरे
सुपाडे को चूमा, जीभ से चाटा और फिर मूह मे ले लिया. ज़्यादा खिलवाड़ के लिए
उनके पास समय नही था. मूह खोल कर मेरा पूरा लंड उन्होने निगल लिया और
चूसने लगे. चूसते चूसते फिर से मा की गान्ड मारने लगे.
बीस पचीस मिनित बाद जब वे झाडे तो सभी सुख के चरम शिखर पर पहुँच
गये थे. मा और शशिकला दीदी तो कई बार झाड़ चुकी थी. मुझे भी यह सुख
सहन नही हो रहा था. डॅडी ... अशोक अंकल ... बहुत मस्त चूस रहे थे, बाद
बाद मे तो मैं सब शरम भूल कर उनके सिर को पकड़कर नीचे से धक्का दे
देकर चूतड़ उछाल उछाल कर उनका मूह चोद रहा था. इधर वे झाडे और उधर
मेरा वीर्य भलभलाकर उनके मूह मे उबल आया. डॅडी ने हान्फते हुए चूस
चूस कर मेरा वीर्य निगला, एक बूँद नही छोड़ी. मेरा लंड सिकुड कर ज़रा सा हो
गया पर डॅडी चोदने के मूड मे नही थे, उसे मूह मे लेकर चाकलेट की
तरह चूसते ही रहे.
जब डॅडी मा पर से उतरे तो शशिकला ने गर्दन आगे करके मा की गान्ड का
छेद चूम लिया. उसमे से डॅडी का वीर्य बह रहा था. मा के उस गुलाबी चुदे
हुए छेद मे से बहता वह गाढ़ा सफेद वीर्य बहुत स्वादिष्ट दिख रहा था.
शशिकला पड़े पड़े उसे चाटने लगी. मैं तक लगाकर देख रहा था.
शशिकला ने मुझे भी बुलाया "अलग क्यो पड़ा है अनिल? नही चाहिए कामदेव
का यह प्रसाद? आ ना, चख ले, शरमा मत, अरे इसी रस के लिए तो असली रसिक
मरते है."
मैं उठकर मा के चुतडो पर झुक कर चाटने लगा. शशिकला ने मूह
हटा लिया "फिफ्थी फिफ्थी भैया, आधा तुम, आधा मैं" बारी बारी से हम दोनों
अशोक अंकल का वीर्य चाटने लगा. मुझे स्वाद अजीब सा लगा, कसैला, खरा सा पर
एकदम मादक . मैने मन भरके मा की गान्ड चूसी. मा की गान्ड का
सौंधा सौंधा स्वाद उसमे लग गया था. बाहर निकलता वीर्य ख़तम हो गया
तो फिर मैने मा की गान्ड चौड़ी की और अंदर जीभ डालकर चाटने लगा. मुझे
लगा था कि दीदी अब बंद कर देगी पर वह तो उस्ताद निकली. "अनिल, मम्मी की गान्ड
खोल कर रख और मुझे भी स्वाद लेने दे, मन नही भरा अब तक" और जीभ अंदर
डाल दी.
होने की वजह से सारी तैयारी मुझे ही करनी पड़ी. मैने बुरा नही माना, बल्कि
काफ़ी मस्ती का अनुभव कर रहा था. पहले मैने मा की पैंटी की पत्ती बाजू मे
की और गान्ड मे प्यार से मख्खन चुपडा. फिर हथेली पर लेकर डॅडी के लंड
पर लगाया. डॅडी के मस्त हुए शिश्न को मख्खन लगाने मे बड़ा मज़ा आ रहा
था. मैं मख्खन चुपड रहा था तभी उन्होने प्यार से मुझे बाहों मे ले
लिया और मुझे चूमने लगे. बार बार मेरे होंठों, गालों और आँखों को
चूमते हुए बोले "अनिल मेरे बेटे, बहुत प्यारा है तू, इतना सुख दे रहा है
मुझे. बहुत रसीला भी है तू, अब मन लगाकर तेरा रस चखूँगा"
वे पीछे से मा पर चढ़े और मैने मा के चूतड़ फैलाकर मा की गान्ड मे
लंड डालने मे उनकी मदद की. शशिकला जो मा के नीचे दबी हुई मा की बुर
चाट रही थी, हँसकर बोली "वाह, मुझे क्या व्यू मिला है! बिलकुल पास से देख
रही हू मेरी मम्मी की गान्ड मे घुसते डॅडी के लंड को"
डॅडी मा की गान्ड मारने लगे. मख्खन से चिकनी गान्ड मे सपासाप उनका
लंड अंदर बाहर होने लगा. इस बार मा बिलकुल नही कराही, पिछली बार मारने
पर काफ़ी सिसकी थी. पर आज एक तो उसकी गान्ड को अब आदत हो गयी थी, दूसरे
शशिकला के साथ सिक्स्टी नाइन करने मे उसे वह लुत्फ़ आ रहा था कि और कोई
परवाह उसे नही थी. शशिकला बीच बीच मे मा की बुर से मूह हटकर डॅडी
के अंदर बाहर होते लंड पर जीभ लगा देती.
मैं वैसे ही बैठा यह मस्ती देख रहा था. लगता था मैं भी चढ़ जाउ और किसी
को चोद डालु पर समझ मे नही आ रहा था, दोनों औरतों की चुते और मूह
व्यस्त थे. शशिकला की गान्ड ज़रूर खाली थी पर वह मा के नीचे दबी होने से
उसे चोदने की कोई गुंजाइश नही थी.
शशिकला ने मुझसे चुटकी ली "अब तू क्या करेगा अनिल?" मैं बस देखता रहा.
डॅडी थोड़े तिरछे हुए और बोले "मेरे अनिल को मत तंग करो. इतना प्यारा लड़का
है. अनिल, आओ बेटे, यहाँ मा के बाजू मे लेटो. मैं तुम्हारा ये जवान रसीला लंड
चूसना चाहता हू"
शशिकला हंस पड़ी "हाँ अनिल, हमने कब से ये आसान सोच रखा था, शादी के
बाद की चुदाई का पहला आसन. आ जा, शरमा मत, डॅडी तो कब से प्यासे है तेरी
जवानी के"
धड़कते दिल से मैं मा के बाजू मे लेट गया. डॅडी ने झुक कर प्यार से मेरे
सुपाडे को चूमा, जीभ से चाटा और फिर मूह मे ले लिया. ज़्यादा खिलवाड़ के लिए
उनके पास समय नही था. मूह खोल कर मेरा पूरा लंड उन्होने निगल लिया और
चूसने लगे. चूसते चूसते फिर से मा की गान्ड मारने लगे.
बीस पचीस मिनित बाद जब वे झाडे तो सभी सुख के चरम शिखर पर पहुँच
गये थे. मा और शशिकला दीदी तो कई बार झाड़ चुकी थी. मुझे भी यह सुख
सहन नही हो रहा था. डॅडी ... अशोक अंकल ... बहुत मस्त चूस रहे थे, बाद
बाद मे तो मैं सब शरम भूल कर उनके सिर को पकड़कर नीचे से धक्का दे
देकर चूतड़ उछाल उछाल कर उनका मूह चोद रहा था. इधर वे झाडे और उधर
मेरा वीर्य भलभलाकर उनके मूह मे उबल आया. डॅडी ने हान्फते हुए चूस
चूस कर मेरा वीर्य निगला, एक बूँद नही छोड़ी. मेरा लंड सिकुड कर ज़रा सा हो
गया पर डॅडी चोदने के मूड मे नही थे, उसे मूह मे लेकर चाकलेट की
तरह चूसते ही रहे.
जब डॅडी मा पर से उतरे तो शशिकला ने गर्दन आगे करके मा की गान्ड का
छेद चूम लिया. उसमे से डॅडी का वीर्य बह रहा था. मा के उस गुलाबी चुदे
हुए छेद मे से बहता वह गाढ़ा सफेद वीर्य बहुत स्वादिष्ट दिख रहा था.
शशिकला पड़े पड़े उसे चाटने लगी. मैं तक लगाकर देख रहा था.
शशिकला ने मुझे भी बुलाया "अलग क्यो पड़ा है अनिल? नही चाहिए कामदेव
का यह प्रसाद? आ ना, चख ले, शरमा मत, अरे इसी रस के लिए तो असली रसिक
मरते है."
मैं उठकर मा के चुतडो पर झुक कर चाटने लगा. शशिकला ने मूह
हटा लिया "फिफ्थी फिफ्थी भैया, आधा तुम, आधा मैं" बारी बारी से हम दोनों
अशोक अंकल का वीर्य चाटने लगा. मुझे स्वाद अजीब सा लगा, कसैला, खरा सा पर
एकदम मादक . मैने मन भरके मा की गान्ड चूसी. मा की गान्ड का
सौंधा सौंधा स्वाद उसमे लग गया था. बाहर निकलता वीर्य ख़तम हो गया
तो फिर मैने मा की गान्ड चौड़ी की और अंदर जीभ डालकर चाटने लगा. मुझे
लगा था कि दीदी अब बंद कर देगी पर वह तो उस्ताद निकली. "अनिल, मम्मी की गान्ड
खोल कर रख और मुझे भी स्वाद लेने दे, मन नही भरा अब तक" और जीभ अंदर
डाल दी.