Maa ki Chudai माँ का दुलारा - Page 6 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Maa ki Chudai माँ का दुलारा

अशोक अंकल मा पर लेट गये. मा को चूमते हुए वे मा को एक लय से चोदने
लगे. अब उनका लंड कस के मा की बुर के अंदर बाहर हो रहा था.
"चल, मा तो शुरू हो गयी, अब तू आ जा मैदान मे. अभी तू उपर से आ, देखती हू
कितनी देर टिकता है मेरा मुन्ना" लड़ से मेरे बाल बिखरा कर शशिकला टाँगे
खोल कर मेरे सामने लेट गयी. मैने उसकी बुर मे लंड डाला और उसपर लेट कर
उसे चोदने लगा. बहुत चिपचिपी और गीली बुर थी, लगता है वह कामतूर
कन्या कभी भी तृप्त नही होती थी.


मैने शशिकला के गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रखे, थोड़ा शरमाते
हुए. उसने मेरे चुम्मे के जवाब मे हंस कर कहा "चल, चोद अब, पर
झड़ना नही" और अपना मूह खोल कर मेरे होंठ अपने मूह मे भर लिए और
चूसने लगी. अपनी टाँगों और बाहों से उसने मेरे बदन को भींच लिया था
और कमर उचका उचका कर चुदवा रही थी. मैने भी कस कर हचक
हचक कर उसे चोदना शुरू कर दिया.

क्या समा था, मैं अशोक अंकल की बेटी को चोद रहा था, और उसी पलंग पर
हमसे एक फुट दूर लेटकर वे मेरी मा चोद रहे थे. उनकी चुदाई अब पूरे
निखार पर थी, मा की बुर कितनी गीली हो गयी थी इसका अंदाज़ा मुझे मा की
चूत से निकलती 'फॅक' 'फॅक' 'फॅक' की आवाज़ से आ रहा था. मा ने वासना के आवेश मे
आकर अंकल को कहना शुरू कर दिया "मैं गाढ अशोक, कितना अच्छा चोदते हो,
तुम्हारा लंड अंदर घुसता है तो मेरी चूत ऐसे फैलती है कि लगता है फट
जाएगी, ऐसा लगता है कोई मेरी बुर मे हाथ डालकर चोद रहा है, चोदो
मुझे मेरे राजा, मेरे प्यारे, कस के चोदो ..." अंकल ने मा के मूह को अपने
मूह से पकड़कर मा की आवाज़ ही बंद कर दी. उसे बाहों मे कस के वे अब ऐसे
मा को चोद रहे थे जैसे उसे रात भर के लिए खरीद लिया हो और पैसा वसूल
कर रहे हों.

मेरा हाल बुरा था. मा की ऐसी चुदाई देखकर मेरा ऐसा तन्ना गया था कि मैं
झड़ने को आ गया. शशिकला मस्त चुदवा रही थी, उसे पता चल गया, उसने
तुरंत पलटकर मुझे पलंग पर चित किया और मुझपर चढ़ बैठी. बिना
धक्का लगाए वह मुझे दबोच कर बैठी रही. जब मेरा उछलता लंड थोड़ा
शांत हुआ तो मेरे गाल पर चपत मार कर झूठ मूठ के गुस्से से बोली "झडने
वाला था ना तू? मैने मना किया था ना? मालूम है ना तू मुझे क्यों चोद रहा
है? मुझे तू चोद रहा है मुझे सुख देने को, खुद के आनंद के लिए नही.
जैसे डॅडी चोद रहे है तेरी मा को. अब चुप पड़ा रह, मैं छोड़ूँगी तुझे,

देख कैसे तरसा तरसा कर तेरा काम तमाम करती हू. पहले ज़रा दीदी की बुर
मे भरे पानी को पी ले, बहुत गीली हो गयी है"

मेरे लंड को चूत से निकालकर वह मेरे मूह पर बैठ गयी. मुझसे अपनी
बुर चटवाई. मेरा लंड जब कुछ संभला तो मेरे लंड को बुर मे
घुसेड कर मेरे पेट पर बैठकर मुझे चोदने लगी.
 
इतनी देर यह चुदाई चली कि मैं रोने को आ गया. शशिकला माहिर खिलाड़ी थी.
खुद कई बार झड़ी पर मुझे नही झड़ने दिया. मैं झड़ने को आता तो रुक जाती
या लंड को बुर से निकाल डालती.

उधर मा को अंकल ने ऐसे चोदा की मैं उनकी कामकला का कायल हो गया.
शशिकला को उन्हे उलाहना देने की ज़रूरत नही पड़ी. वे लगातार मा को चोद
रहे थे. कभी छोटे धक्के लगाते, बस ज़रा सा लंड मा की बुर मे अंदर बाहर
करते, कभी हचक हचक कर चोदते, पूरा लंड मा की चूत से बाहर
खींचते और सटाक से फिर पेल देते. मा जब ज़्यादा मस्ती मे चिल्लाने लगती तो
उसके मूह को अपने मूह से बंद कर देते. बीच बीच मे मा के मम्मे
पकड़कर प्यार से मसलने लगते.


आख़िर मा झाड़ झाड़ कर लास्ट हो गयी पर अशोक अंकल ने चोदना नही छोड़ा.
मा बोली "बस अब हो गया अशोक, तुमने मेरी कमर तोड़ दी, इतना आज तक नही
चुदि मैं, बिलकुल तृप्त कर दिया तुमने मेरी बुर को, पर अब छोड़ दो, अब मत
चोदो, मैं नही सह पाउन्गी"


अशोक अंकल ने अपनी प्यारी बेटी की ओर देखा. शशिकला पूरे जोश मे थी. उसकी
वासना अब धधक रही थी. मुझे चोदते हुए वह कई बार झड़ी थी पर अब भी
गरमाई हुई थी. शायद मुझे ऐसे तरसा तरसा कर चोदने मे उसे बहुत
मज़ा आ रहा था. उसने अपने डॅडी से कहा "क्या डॅडी आप भी मम्मी की
बातों मे आ गये. उस जैसी गरम औरत की भूख इतने मे कैसे मिटेगी! वो तो
ऐसे ही कह रही है. आप मत सुनिए, चोदिये और, ज़्यादा नखरा करे तो मूह
बंद कर दीजिए, ज़रा ज़ोर से चोदिये, आपका लंड उसके बच्चेदानी मे घुस
जाना चाहिए तब उसे तृप्ति मिलेगी. मैं नही चाहती कि मम्मी मुझे कहे कि
शशिकला, बड़ी उम्मीद से आई थी तेरे घर कि मुझे चोद चोद कर बिलकुल
मस्त कर देंगे तेरे डॅडी पर उन्होने तो आधे मे छोड़ दिया. मुझे देखो,
कितना मज़ा दे रही हू अनिल को. बेचारा मस्ती से पागल होने को है पर मैं इसे
नही छोड़ने वाली. याद रखेगा हमेशा अपनी दीदी की चुदाई"


मा को दबोच कर उसके मूह को अपने होंठों मे पकड़कर चुसते हुए अब
अशोक अंकल ने जैसा मा को चोदा उसकी मैं कल्पना भी नही कर सकता था.
क्या स्टेमिना था उनका. लगातार घचघाच घचघाच उनका लंड मा की
बुर को चीरता रहा. मा अब तड़प तड़प कर उनके चंगुल से निकलने की
कोशिश कर रही थी, हाथों से उनकी पीठ पर वार कर रही थी, उन्हे धकेलने
की कोशिश कर रही थी पर वे थे कि जुटे हुए थे. ऐसा लग रहा था जैसे बलात्कार
कर रहे हों.


दस मिनिट बाद मा ने एक गहरी सांस ली और आँखे बंद करके लुढ़क गयी,
उसका शरीर लास्ट पड़ गया. "लगता है बेहोश हो गयी मम्मी. अब ठीक है, अब
हम कह सकते है कि आपने मम्मी को चोदा है. शाबास डॅडी, आपने मेरी
लाज रख ली. अब आप भी झाड़ ले तो मैं कुछ नही कहुगी" शशिकला ने अपने
डॅडी को शाबासी दी. वे अब मा को ऐसे चोदने लगे जैसे उसके शरीर मे
अपना शरीर घुसा देना चाहते हों. मेरे अंदाज मे लोग रंडियो को पैसे
वसूल करने को ऐसे ही चोदते होंगे. दो मिनिट मे वे झाड़ गये और मा के
शरीर पर लस्त होकर लुढ़क गये.


शशिकला की आँखों मे एक अजीब चमक थी. अब वह भी मुझ पर तरस खा कर
नीचे लेट गयी और मुझे उपर ले लिया. "चोदो अब अनिल, चोद लो दीदी को, कसर
निकाल लो पूरी. काफ़ी तड़पाया है मैने तुझे. पर मज़ा आया ना? सच बोल!" मैं
कुछ बोलने की स्थिति मे नही था, बस कस कर शशिकला को चोदा और झाड़ कर
लस्त हो गया.


हम सभी पाँच मिनिट पड़े रहे. शशिकला मा को चूम चूम कर जगाने
मे लगी थी. मा होश मे आई तो पहला काम यह किया कि अंकल को बाहों मे
लेकर चूम लिया "अशोक, तुम आदमी हो या घोड़ा, कैसे चोदते हो? मार ही
डालोगे मुझे लगता है. और तू शशि, मुझे बचाने के बजाय अपने डॅडी
को शह दे रही थी कि और चोदो!"


"मम्मी, तुम्हारे जैसी सेक्सी सुंदर औरत को ऐसे ही चोदना चाहिए, नही तो
यह तुम्हारे रूप का अपमान होगा. ऐसे हचक हचक कर अगर तुम्हे नही
चोदा तो डॅडी के इस लंड का क्या फ़ायदा? वैसे नाराज़ मत हो, तुम हो भी इतनी
सुंदर कि मैं कहती तो भी डॅडी नही छोड़ते" शशिकला बोली.


"सच है शशि, इतना गुदाज नरम बदन कभी बाहों मे लेने को नही मिला.
मेरे लंड को आज जैसा नशा चढ़ा है वो बरसों बाद नसीब हुआ है. असल
मे मेरा लंड भी आज पूरी खुमारी मे था, झड़ने के मूड मे नही था,
मम्मी के सुंदर बदन का पूरा रस लेना चाहता था" अशोक अंकल मा को
चूमते हुए बोले. फिर मुझे पूछा "अनिल, कुछ मज़ा आया तेरी चुदाई मे? वैसे
मेरी ये बेटी काफ़ी दुष्ट है, बहुत तरसाती है पर स्वर्ग पहुँचा देती है"
 
मैं क्या कहता, मुझे दीदी ने बहुत तड़पाया था पर सुख भी उतना ही दिया
था. मैं उसका एक मुलायम स्तन मूह मे लेकर चूसने लगा.


"चलो अब नहा लेते है, फिर आराम करेंगे." शशिकला ने कहा.

मा बोली "देख, मेरी बुर मे कितना वीर्य भर गया है, बेकार जाएगा, मैं अशोक
का लंड चूस लेती तो सब मुझे मिल जाता"

"तुम्हारे नही, यह मेरे भाग्य मे था मम्मी. और तेरे बेटे की जो मलाई है
मेरे अंदर वो तेरे लिए है, ज़रा चख ले, बेटी और बेटे का मिला जुला रस" कहकर
शशि उठाकर मा के पास गयी और डॅडी को उठाकर मा पर सिक्सटी नाइन के
अंदाज मे लेट गयी. मा समझ गयी और शशि की बुर से बह रहे मेरे वीर्य को
चाटना शुरू कर दिया. शशि तो पहले ही मा की बुर से चूस चूस कर अपने
डॅडी की मलाई खा रही थी.

हम सब नहाने लगे. बहुत थक गये थे पर खुश थे. सब ने एक दूसरे को
साबुन लगाया. साबुन लगाते समय मेरा हाथ एक बार अशोक अंकल के लंड पर पड़
गया. वह आधा खड़ा हो गया था. बड़ा अजीब सा लगा. मैने हाथ हटा लिया, वे
भी कुछ नही बोले, बस मुझे देख कर हंस दिए.


नहाने के बाद हमने आराम किया. रात के दो बज गये थे. आपस मे लिपट कर
हम सो गये. मा और शशि लिपट कर सोई थी और एक तरफ से मैं और एक तरफ से
अशोक अंकल उन्हे चिपटे थे.

सुबह उठे तो लंड ऐसे मस्त तन्नाए थे कि हमने तुरंत एक चुदाई कर ली. मैं
दीदी पर चढ़ गया और अंकल फिर मा पर सवार हो गये. यह बड़ी मीठी हौले
हौले मज़ा ले कर की गयी चुदाई थी. तृप्त होकर हम उठ बैठे.

चाय नाश्ते और नहाने मे दो तीन घंटे लग गये. तब तक मैने घर का
चक्कर लगाया. बड़ा आलीशान घर था. मुझे उत्सुकता थी शशिकला का
बेडरूम ठीक से देखने की. जब तक बाकी सब लोग तैयार हो रहे थे, मैने
शशिकला का वार्डरोब खोल कर देखा. एक से एक ड्रेस वहाँ थी. मेरा ध्यान
उसकी ब्रा और पैंटी पर था. शशिकला के पास चालीस पचास जोड़े थे, एक से एक
खूबसूरत. उन तरह तरह की ब्रा और पैंटी को देखकर ही मेरा लंड खड़ा हो
गया. लग रहा था कि उनसे खेलने लग जाउ, लंड मे लपेट लू पर शायद वहाँ
बाकी के लोग मेरा इंतजार कर रहे होंगे यह सोच कर मैने कोई गड़बड़ नही
की.


अब मैने शशिकला के सॅंडल रखने के रैक को खोला. वहाँ बीस पचीस
संडलों के और स्लीपरों के जोड़े थे. एक से एक खूबसूरत सॅंडल थे. मेरा
उछलने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे अलादीन का खजाना देख रहा होऊ.
मुझसे नही रहा गया. सफेद रुपहले रंग की एक नाज़ुक सॅंडल मैने हाथ मे
ली और उसपर उंगलियाँ फेरी. बहुत मुलायम और चिकने सोल थे. नाक के पास ले
जाकर मैने सूँघा, शशिकला के शरीर की सौंधी सौंधी खुशबू आ रही
थी. मन न माना तो मैने जीभ निकालकर सॅंडल के पत्ते और पैर रखने का
चिकना भाग चाट लिया.


किसी ने मेरे कान पकड़कर मरोड़े तो घबरा कर मैने सॅंडल वापस रखी.
देखा तो शशिकला थी, शैतानी से मुस्करा रही थी. "क्या कर रहा है रे
बदमाश? मेरी चप्पलो से खेल रहा है? खानी है क्या? खिलाऊ?"
मैं चुप रहा. बड़ी शरम आ रही थी. लंड बैठने लगा तो शशिकला ने हाथ
मे पकड़ लिया. फिर से बोली "शरमाता क्यों है? किस कर रहा था ना? बोल
खाएगा क्या? मैं खिलाउन्गि अपनी चप्पल तुझे" और एक रबर की चप्पल
उठाकर धीरे से मेरी पीठ पर जड़ दी. "वैसे भी खिलाउन्गी ..." और फिर उसे मेरे
मूह से सटा कर बोली "और ऐसे भी खिलाउन्गी"


फिर मुझे चूम कर बोली "शौकीन लगता है इनका, सच बोल. डॅडी भी शौकीन
है, घबरा मत, वैसे सच मे तुझे इसमे मज़ा आता है?"

"हाँ दीदी, मैं मा की चप्पलो का भी दीवाना हू, उसके पैर इतने खूबसूरत
है. और दीदी तुम्हारे तो और भी प्यारे है, कल से मुझे लग रहा है कि तुम्हारे
पैरों को चुमू, उन प्यारे संडलों को चाटू" मैने सिर नीचे करके बता
दिया.
 
शशिकला बोली "सब करने मिलेगा. तू ऐसे स्वर्ग मे आ गया है जहा कोई भी
इच्छा पूरी होगी. चल अब बाहर, देख तेरी मम्मी क्या कर रही है, क्या औरत है,
गरम की गरम है, ठंडी ही नही होती"

वापस बाहर आया तो देखा कि अशोक अंकल सोफे पर लेटे हुए थे और मा उनपर
चढ़ि हुई थी. अंकल के लंड को अपनी चूत मे लेकर मा उन्हे चोद रही थी.
अंकल ने अपने हाथों मे मा की चुचियाँ पकड़ी हुई थी और दबा रहे थे.
मा आराम से मज़े ले लेकर चोद रही थी. उसके उपर नीचे उछलने से उसके
स्तन इधर उधर डोल रहे थे और उनके बीच की सोने की चेन भी हिल रही थी.
"ए शशि, तेरे डॅडी को अब मैं घंटा भर तो ज़रूर चोदुन्गि, कल रात को तो
खूब जोश दिखा रहे थे, आज देखती हू कितने दम मे है. अगर घंटे भर
टिक गये तो इनाम दूँगी" मा ने कहा.


"क्या इनाम देंगी मम्मी? आपके शरीर के रस से बढ़ कर क्या इनाम हो सकता
है मेरे लिए" अपने होंठों को दाँत से काट कर अपनी वासना दबाने की
कोशिश करते हुए अंकल बोले.


"खुद अपनी बुर का शहद पिलाउन्गि, ऐसे ही लिटाकर, तुम्हारे मूह पर बैठ कर.
पर है तुम्हारा लंड बहुत जानदार अशोक! अंदर लेकर लगता है कैसी मोटी
ककड़ी अंदर ले ली है. अरी शशि, मेरे बेटे को भूखा ही रखेगी या कुछ देगी
उसे?" मा ने शशि को फटकारा.

मा की वासना देख कर मैं बहुत खुश था. मा अब ऐसे लग रही थी जैसे
जनम जनम की भूखी औरत को पकवानों का भोग मिल जाए, उसे तृप्ति ही नही
हो रही थी.


शशिकला ने कहा. "अनिल, आ जा, अलग अलग मज़ा बहुत हो गया, चल हम भी
शामिल हो जाए इसमे. तूने भी मा को कल से छुआ भी नही है, आ मज़ा कर ले,
मैं डॅडी की थोड़ी खबर लेती हू" और वह जाकर सीधे अंकल के मूह पर बैठ
गयी. "डॅडी, मम्मी चखाएगी तब चखाएगी, अभी अपनी बेटी का रस चख
लीजिए. पड़े पड़े मज़ा ले रहे है, कुछ काम भी कीजिए, आपकी जीभ तो खाली
है ना, उसी से कहिए कि मेरी सेवा करे" और अपने डॅडी के सिर को जांघों मे
दबा कर शशिकला उपर नीचे होकर उनका मूह चोदने लगी.


मम्मी ने झुक कर उसे पीछे से बाहों मे भर लिया और उसका सिर अपनी ओर
घूमाकर उसका चुंबन लिया "ये अच्छा किया शशि, मेरा बहुत मन हो रहा
था कि कुछ चखने को मिले, मेरी रानी बिटिया के मूह से मीठा क्या हो सकता
है मेरे लिए" कहकर मा उसे चूमते हुए उसकी चूंचियाँ दबाने लगी.

दो औरतों को एक मर्द पर चढ़ कर इस तरह से चोदते देख कर मेरा ऐसा
खड़ा हुआ कि क्या काहु. मैं अपने आप को नही रोक सका और जाकर उन दोनों से
लिपट गया. कभी मा के स्तन दबाता कभी शशिकला के. वे एक दूसरे के मूह
को छोड़ कर बीच बीच मे मुझे चूमने लगती. मैने लंड मा की कमर पर
रगड़ना शुरू कर दिया.

शशिकला बोली "अनिल, ऐसा मत कर, आ सामने आकर खड़ा हो जा, डॅडी अगर
शहद चख रहे है तो हम भी मलाई तो खा ही सकते है" मैं तुरंत पलंग
पर चढ़ कर अंकल के दोनों ओर पैर जमाकर खड़ा हो गया. शशिकला का
चेहरा मेरी कमर के सामने था. मा से चूमा चाटी बंद करके वह मेरा
लंड चूसने लगी.


मा बोली "अकेले अकेले बेटी? मुझे भी तो चखने दे मेरे लाल को, कितना
समय हो गया. ये मिठाई मिल कर खाएँगे"

शशिकला बोली "मम्मी, कितना प्यारा है ये, मुझे तो लगता है कि चबा
चबा कर खा जाउ. तुम अच्छी आज तक अकेले इसका मज़ा लेती रही, अब ये नही
चलेगा"

मा बोली "तो तू नही अकेले अकेले अपने डॅडी के इस मतवाले सोंटे का मज़ा लेती
रही?" मीठी नोक झोंक करते करते दोनों बारी बारी मेरे लंड को चुसती
रही. जब मैं झाड़ा तो दोनों ने मेरा वीर्य पिया, शशिकला ने पूरा वीर्य मूह मे
लिया और फिर मा के मूह से मूह लगा कर आधा उसे दे दिया.


एक घंटे तक मा ने अंकल को चोदा और उन्होने भी बड़ी मस्ती से बिना झाडे
मा की चूत को पूरा तृप्त किया. जब आख़िर मा थक गयी तो वायदे के अनुसार
उसने अंकल के मूह पर बैठ कर अपनी चूत का पानी उन्हे चुसावया. अंकल
ऐसे चटखारे ले लाकर उसे पी गये जैसे अमृत पी रहे हों. शशिकला और
मा ने फिर मिल कर उनका लंड चूस डाला. शशिकला अपने डॅडी के लंड से
चुदने को बेताब थी पर मा ने नही सुना, उसे उस मतवाले लंड की मलाई की
भूख थी.


बीच मे खाना खाने और कुछ देर सोने के अलावा हम लगातार रति करते रहे.
अब सब मिलकर चुदाई कर रहे थे. झाड़ झाड़ कर हमारे लंड थक गये थे
इसलिए मुँह से चूत पूजा ज़्यादा हुई. मैं और अशोक अंकल उन दोनों औरतों की
बुर से चिपके रहे, अदल बदल कर चुसते रहे.
 
मैं देख रहा था कि अंकल बार बार मा से लिपटकर उसे चूमते और खास कर
उसकी चुचियों के पीछे लग जाते. उनके हाथ सदा मा के मोटे नितंबों पर
होते जिन्हे वे बड़े प्यार से सहलाते और दबाते. जब मा और शशिकला पलंग
पर आजू बाजू लेट कर सिक्सटी नाइन कर रही थी तब हम दोनों सोफे पर बैठ कर
देख रहे थे. दोनों औरतों के गोल मटोल गोरे नितंब देख देख कर उनके
पीछे चिपकने का मन हो रहा था.


अंकल ने मुझे आँख मारी. जब मैं अपना सिर उनके पास लाया तो कान मे बोले
"यार अनिल, यही मौका है, इन औरतों की इस मतवाली गान्ड को प्यार कर लेने का.
मैं तो मरा जा रहा हू तुम्हारी मम्मी की इस गोरी गुदाज गान्ड मे मूह मारने
को. तुम भी शशि के इन गोरे चूतडो का मज़ा ले लो. बहुत प्यारे है. वैसे
एक बात बताओ, नाराज़ मत होना पर तुमने अपनी मा को पीछे से ... याने मेरा
मतलब है ..."


मैं समझ गया. फुसफुसा कर बोला "बिल्कुल अंकल, मैं तो दीवाना हू उसका. मा की
गान्ड मारने मे मुझे जो आनंद आता है वो मैं बयान नही कर सकता. वह भी
मरवा लेती है पर हफ्ते मे बस दो तिन बार. क्या आपने कभी शशिकला दीदी
...?"

"हाँ, वह तो बड़े चाव से मरवाती है. छोटी थी तब से मारता हू ना, उसकी मा
ने ही पहली बार अपने सामने मुझसे अपनी बेटी की गान्ड मरवाई थी. कुछ
औरतों को यह बहुत पसंद है, शशिकला की मा और शशिकला दोनों को
यह शौक था" अंकल बोले.


मैं आश्चर्य से बोला "आपका इतना बड़ा यह लंड, कैसे उसकी नाज़ुक गान्ड मे
जाता है? उसे दुखता नही है?"


अंकल अपना लंड सहला रहे थे. गान्ड मारने की बात से ही उनका खड़ा होने
लगा था. "आराम से लेती है. तू भी मार कर देख, क्या मुलायम छेद है मेरी बेटी
का. पर यार, तुम्हारी मा को मनाना पड़ेगा. मैं तो गुलाम हो जाउ उनका, अगर
मुझे अपनी वह मोटी फूली गान्ड मारने दे."

पलंग पर लिपटे उन दोनों गोरे शरीरों को देखकर वे बोले "चलो ट्राइ
करते है. कम से कम इन मतवाले चूतडो का स्वाद तो ले ले, फिर गान्ड
मारने को भी मनवा लेंगे. शशि जानती है मैं रीमाजी की गान्ड का कितना
मतवाला हू. ऑफीस मे ही साड़ी के नीचे से दिखते उन चौड़े कुल्हों को
देखकर मेरा खड़ा हो जाता था. शशि मेरा बहुत मज़ाक उड़ाती थी, वह मदद
करेगी. अभी ऐसा करो तुम शशि से चिपक जाओ और मैं तुम्हारी मा के [size=large]नितंबों की पूजा करता हू. अभी वो दोनों मस्ती मे है, कुछ नही कहेंगी."[/size]
 
प्लान अच्छा था. मैं उठाकर शशि से उलटी बाजू से चिपक गया. उसके
नितंबों को सहलाने लगा. उसकी जांघों के बीच से मा मुझे देख रही थी.
उसका मूह शशिकला की बुर मे घुसा हुआ था. धीरे से मैं शशिकला के गोरे
चिकने नितंब चूमने लगा. फिर उसके नितंबों को थोड़ा अलग करके देखा.
उसकी गान्ड का छेद एकदम गुलाबी था और काफ़ी खुला हुआ. अंकल से गान्ड
मरवाने का नतीजा था. मुझे रोमाँच हो आया. मैने छेद मे जीभ डाली और
चाटने लगा. शशिकला को मज़ा आ गया, मा की बुर चुसते हुए उसने मूह से
बस 'आआ' 'आआ' किया और कमर हिला कर मेरे चेहरे से अपनी गान्ड सटा दी कि
और चूसो. मैं उसका छेद चूसने मे लग गया.


उधर अंकल भी पीछे नही थे. उन्होने तो अपना चेहरा मा के चूतडो के
बीच छुपा दिया था और 'लॅप' 'लॅप' 'लॅप' चाटने की आवाज़ आ रही थी. मा सिर
उठाकर बोली "अरे ये क्या कर रहे हो अशोक? पागल हो गये हो? चलो छोड़ो.
चूसना ही है तो मैं तुम्हे रस भरी चीज़ चुसवाती हू"

अंकल मिन्नत करते हुए बोले "मम्मी, प्लीज़ चूसने दीजिए ना, बहुत अच्छी
है आपकी गान्ड, इतनी मोटी डनलॉप के तकिये जैसी गान्ड बहुत दिनों मे नसीब
हुई है. शशि की मा की ऐसी ही थी पर आप की तो और भी गुदाज है"


शशिकला ने मा के सिर को वापस अपनी जांघों मे खींच कर उसका मूह
अपनी बुर से बंद कर दिया "तुम क्यों फिकर करती हो मम्मी, चूस ही तो रहे
है बेचारे, चूसने दो. अभी अपनी बेटी की बुर पर ध्यान दो, इतना रस बहा रही
है अपनी मम्मी के लिए, उसे ज़रा चखो"
 
आख़िर जब झाड़ कर दोनों अलग हुई तब हम चिपके ही हुए थे. गान्ड से ऐसे
लगे थे जैसे घुस जाना चाहते हों. मा की गान्ड का तो मैं दीवाना था ही,
खूब जानता था कि अशोक अंकल की क्या हालत है. शशिकला की गान्ड भी बहुत
प्यारी थी, मा जितनी मोटी ताजी भले ही न हो, पर बहुत मीठी थी.
शशि हँसने लगी "अब आए ये दोनों असली रास्ते पर, मम्मी ये हमारी गान्ड
मारना चाहते है"

मा बोल पड़ी "ना बाबा ना, मैं नही मराउन्गि. ये मेरा बेटा भी ना जाने क्यों
पागल रहता है इसके पीछे, मैं दो तीन दिन मे इसे दे देती हू, बेचारा बहुत
प्यार करता है मुझे, इसका तो मैं सह लेती हू, पर अशोक का यह सोंटा! ना बाबा
ना! मार डालेगा मुझे. अशोक, तुम बस चुपचाप मेरी बुर रानी की सेवा करते
रहो, उसके लिए मैं तुम्हे कभी नही नही रोकूंगी"

शशिकला बोली "नही दीदी ऐसा न करो, मेरे डॅडी आस लगाए बैठे है, वे पागल
हो जाएँगे, मैं जानती हू कितने दीवाने है तुम्हारे इन गोल मटोल चूतडो के.
पर ऐसे ही नही मिलेगी यह अनमोल चीज़ इन्हे. कीमत देनी पड़ेगी. कीमत मैं तय
कर लुगी. मम्मी तुम मान जाओ प्लीज़, बाकी मुझ पर छोड़ दो"

मा ना नुकुर करती रही पर शशि ने उसे प्यार से मानना शुरू कर दिया. मा
के कन मे कुछ कहा. मा का चेहरा गुलाबी हो गया. "चल हट, ऐसा कैसे
होगा?"

शशि बोली "ऐसा ही होगा मम्मी, मेरा कब से प्लान है. डॅडी, इतनी अनमोल

चीज़ खास लोगों को ही मिलती है, किसी पास के रिश्ते वाले को, आप को कैसे इतनी
आसानी से मिल जाएगी?"

फिर मेरा और अंकल का लंड पकड़कर बोली "चलो मेरे दोनों मरदाने
मजनुओ, ज़रा मेहनत करो. मम्मी को खुश करना है, मम्मी का एक
सेकंड भी वेस्ट नही होना चाहिए. डॅडी, आप यहा लेटिये. मम्मी, तुम डॅडी
के लंड से मलाई निकाल लो. और तू अनिल, मा को कल से नही चोदा है ना, चल आ जा
, मा की सेवा कर. डॅडी, आप के लिए अब मेरी बुर मे शहद ही शहद है. सब
आराम से मज़ा ले लेकर चोदो, जल्दबाजी की कोई ज़रूरत नही है, अभी पूरी रात
पड़ी है.


अगले आधे घंटे हम चारों के शरीर एक बड़े प्यारे और मतवाले आसान मे
जुड़े रहे. शशिकला अपने डॅडी के मूह पर चूत जमा कर उनके सिर को
जांघों मे जाकड़ कर हल्के हल्के मज़े ले लेकर चोद रही थी. मा झुक कर
अशोक अंकल के लंड को मन लगाकर चूस रही थी. पूरा लंड उसने गन्ने जैसा
मूह मे ले लिया था. उसके चूतड़ हवा मे उठे हुए थे. मैं उसके पीछे
घुटनों के बल बैठकर पीछे से उसे चोद रहा था. पास से मा को अंकल का
महके लंड चुसते हुए देख रहा था. मा की आँखों मे जो तृप्ति थी उसे
देख कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मूह मे अच्छा बड़ा रसीला लंड था
और उसका बेटा पीछे से उसे मन लगाकर चोद रहा था, किसी नारी को इससे ज़्यादा
क्या चाहिए! उस गोरे रसीले लंड को मा के मूह मे देखकर मुझे थोड़ी जलन
भी हुई. क्या मज़ा आ रहा होगा मा को, इतने खूबसूरत लंड बहुत कम लोगों
के होते है.

झड़ने के बाद मैं तो लुढ़क कर सो गया, बहुत थक गया था. लंड और
गोटियाँ भी दुखने लगे थे. मेरे झड़ने के बाद शायद कुछ देर चुदाई
और चली क्योंकि आँख लगाने के बस ज़रा से पहले अंकल के मूह से निकलती
"ओह्ह्ह ओह्ह्ह्ह आअहह" आवाज़ मैने सुनी, वे शायद मा के मूह मे झाड़ गये
थे.
--- भाग 2 समाप्त ---
 
मा का दुलारा – भाग -3


सोकर उठा तो रात के बारह बजे थे. मैं पाँच घंटे सोया था! बाकी सब पहले ही
जाग गये थे. सब वैसे ही नंगे किचन मे चाय पीते हुए गॅप शॅप कर रहे थे.
मैं भी पहुँचा. कुछ सीरियस बात हो रही थी. मा का चेहरा थोड़ा लाल था,
जैसे शरम से नववधू का होता है. मुझे देखकर शशिकला बोली "आओ
भैया, तुम्ही से बात कर लेते है, अब तुम्हारी मा का और तो कोई है नही, आख़िर
शादी ब्याह का मामला है"

मैं चकरा गया. उसकी ओर देखने लगा. मा बोल पड़ी "शशि कितनी बदमाश
है तू, उससे क्यो पूछती है, वो बेचारा तो कितना छोटा है अभी"

"हमारे काम लायक बड़ा तो है मा, तुम्हारा काम कर रहा है साल भर से, कल
रात से जुटा है, हमारा भी खूब काम किया है" शशिकला ने चुटकी ली. मा
चुप रही, मेरी ओर देख कर हंस दी. वैसे मन मे बहुत खुश लग रही थी.

"बात यह है अनिल कि डॅडी तुम्हारी मा पर इतने फिदा है कि कहते है मैं तो
शादी करूँगा इनसे. मैं भी यही चाहती हू, जब से मम्मी को देखा है मेरी
मा की याद आती है. वह भी मुझे ऐसे ही प्यार करती थी. और अब मा के साथ
मुझे एक प्यारा भाई मिल जाएगा जिसे मैं खूब सताया करूँगी" शशिकला बोली.

मैं चकरा गया. खुश भी हुआ. मा की शादी, वो भी इतने बड़े परिवार मे! इस
खूबसूरत मर्द के साथ! पर कुछ समझ मे नही आया. मैने पूछा "पर दीदी,
शादी क्यो? मेरा मतलब है हम सब वैसे ही आनंद उठा रहे है, मा ने तो
नही कहा कि शादी करो, तभी चोदने दूँगी. वो तो वैसे ही चुदवाने को तैयार
है"

अशोक अंकल बोले "हां, तू सच कहता है अनिल, पर तेरी मा को मैं पूरी अपनी कर
लेना चाहता हू. इनके इस रूप को मैं नही दूर कर सकता, मुझे ये हमेशा साथ
चाहिए. मैं जहा भी जाउन्गा इन्हे ले जाउन्गा. बिना शादी के यह मुमकिन नही
होगा. तुम चिंता न करो, तुम्हारे सुख पर कोई आँच नही आएगी. मा तुम्हारी ही
रहेगी. हम सब एक बड़े प्यारे परिवार जैसे रहेंगे."

मा बोली "मेरे मन मे भी यही था. तू मान गया मेरे दिल का बोझ उतर गया.
असल मे इस अशोक ने मुझे कल रात ऐसा चोदा की ये मेरा गुलाम होने के बजाय
लगता है मैं ही इसकी गुलाम हो गयी."

शशिकला बोली "अब गान्ड मरवा लो मम्मी, अब कोई हर्ज नही है, आख़िर तुम्हारे
होने वाले पति है मेरे डॅडी. अपने पति को उसका हक तो देना पड़ेगा. यही मैं
डॅडी से कह रही थी कि मम्मी से शादी करो तभी मिलेगी उसकी यह गोरी गुदाज
गान्ड . ये इतने फिदा है तुम्हारी गान्ड पर कि झट से तैयार हो गये, सिर्फ़ तुम्हारी
गान्ड पाने को."

अशोक अंकल ज़मीन पर बैठ गये और मा का एक पैर अपने सीने से लगा लिया
"प्लीज़ रीमाजी, मान जाइए, मैं आप के चरणों का गुलाम बन कर रहूँगा. इतने
खूबसूरत चरण, इनके लिए तो मैं कुछ भी करूँगा" और मा के पैरों को वे
चूमने लगे. 

मा शरमा कर पैर हटाने लगी "अरे यह क्या कर रहे हो अशोक,
उठो, मैने कहा तो कि मैं तैयार हू"

शशिकला हँसने लगी "अरे चूमने दो दीदी, ये तो कब से करने को मरे जा
रहे है, पैरों की फेटिश है इन्हे, खूबसूरत पैर देखे कि फिदा हो जाते है,


तुम्हारे रूप के साथ साथ तुम्हारे इन हसीन पैरों का भी तो मैं दीवाना हूँ अशोक
माँ के पैरों के पास बैठ गया और उन्हे गोद मे लेकर सहलाने लगा. फिर अपने
गालों पर उन्हे सटा कर चुंबन लेने लगा. 

शशिकला बोली "देखो कैसे दीवाने है दोनों, अब इन्हे
इनका इनाम देना चाहिए, है ना मम्मी, अब आएगा इस नशीली रात का मज़ा"

मेरा लंड आधा खड़ा हो गया था. उसमे बड़ी मीठी गुदगुदी हो रही थी पर दिन
भर चोद चोद कर लंड की जान निकल गयी थी, ठीक से तन्ना कर खड़ा नही हो
रहा था. यही हाल अंकल का था. उनका भी आधा खड़ा हो कर इधर उधर डोल रहा था
पर लोहे के डंडे जैसा नही खड़ा था जैसा कल रात मा को चोदते समय
खड़ा था.
 
अशोक अंकल के गालों को अपने पैरों के अंगूठे से सहलाते हुए मा ने बड़ी
शोखी से पूछा "सच मे मेरी गान्ड के दीवाने हो तुम अशोक? वैसे मुझे
मराना ज़्यादा अच्छा नही लगता, मेरा बेटा भी मारता है तो मुझे दुखता
है थोड़ा, काफ़ी टाइट है ना मेरा छेद, पर वह मुझे इतना प्यार करता है कि
उसके दिल की हर बात मैं पूरी करती हू. अब तुम मेरे पति बनाने वाले हो तो
तुम्हे भी प्यासा नही रखूँगी. पर एक बात कहे देती हू, पूरी गुलामी करवाउन्गि,
जो कहूँगी करना पड़ेगा, मेरी हर बात मानना पड़ेगी"

मा के तलवे चाटते हुए अशोक अंकल भाव विभोर होकर बोले "मम्मी, आंटी,
रीमाजी, मुझसे जो चाहे गुलामी करवा लो, बस इस खूबसूरत गान्ड को मुझे दे
दो"

मेरे मूह मे अपने पैरों की उंगलिया घुसेड़ते हुए शशिकला बोली "ले चूस
अनिल, ठीक से चूस, फिर न कहना कि दीदी ने स्वाद नही लेने दिया. पर मम्मी,
तुम्हारे इस टाइट छेद को खोल कर घुसने के लिए लंड मे मस्त ताक़त होनी
चाहिए, डॅडी के ऐसे आधे खड़े लंड के बस की बात नही है यह. अनिल, तेरा भी
ठीक से खड़ा करना पड़ेगा, नही तो मेरी गान्ड मे ये ऐसे ही पक पक करेगा,
तुझे भी मज़ा नही आएगा और मुझे भी नही."

मा भी बोली "बात ठीक है बेटी पर अब क्या करे, बेचारे दोनों ने बहुत
मेहनत की है कल रात से. चलो इन्हे रात भर आराम कर लेने दो, सुबह
देखेंगे. वैसे अगर अशोक को मेरी मारनी है तो अभी मार ले, मुझे ज़रा आराम
मिलेगा, ऐसे नरम लंड से मुझे ज़्यादा तकलीफ़ भी नही होगी"

"सुबह क्यो दीदी, अभी आज रात मज़ा लेंगे हम. और गान्ड मारने का असली मज़ा
तो तभी है जब लंड कस के खड़ा हो. आख़िर तुम्हारी कुँवारी गान्ड है, बस अनिल
के इस प्यारे लंड से मरवाई हुई. मेरी मम्मी की गान्ड मारने वाला लंड पूरा
तना होना चाहिए. तकलीफ़ तो होगी मम्मी पर मज़ा भी आएगा. मुझे याद है
जब डॅडी ने मेरी मारी थी मा की मदद से, और तब मैं कितनी छोटी थी, मुझे
ऐसा लगा था जैसे लंड नही हाथ डाल दिया हो किसीने अंदर. मैं तो भाग जाती पर
मा ने पकड़ कर रखा था. मैं तो बेहोश हो गयी थी" शशिकला ने मा की
चूंची दबाते हुए कहा. वह अब काफ़ी मस्ती मे थी. मा की गान्ड मे अपने
डॅडी का मतवाला सोंटा घुसता देखने को वह बेताब थी.

मा घबरा रही थी पर उत्तेजित भी थी. होंठों पर जीभ फेरते हुए अशोक अंकल
के लंड को देख रही थी और कल्पना कर रही थी कि कैसा लगेगा जब वह अंदर
जाएगा. उसने एक बार और टालने की कोशिश की "पर बेटी, मैं यह चीज़ अशोक को
सुहागरात मे देना चाहती हू. आख़िर मेरा पति बनने वाला है और उसे कोई तो
कुँवारी चीज़ देनी चाहिए मुझे. चूत तो चोद चोद कर उसने अभी से ढीली
कर दी है."

"उसकी फिकर मत करो दीदी. सुहागरात को नयी नयी करने जैसे बहुत सी बाते
होंगी" मेरी ओर कनखियों से देखकर शरारत से हँसती हुई वह बोली. "अब सब
नहाने चलो, ताजे तवाने हो जाओ. फिर मैं बताती हू कि कैसे इन दोनों को मस्त किया
जाए. इन जैसे मस्ताने छोरो को गरम करना कोई मुश्किल काम नही है,
मुझे अचूक नुस्ख़ा मालूम है"

नहा कर हम जब बाहर आए तो शशिकला ने हम दोनों को बाहर सोफे पर
बैठकर इंतजार करने को कहा. खुद वह मा को अंदर बेडरूम मे ले गयी.
हम दोनों उनकी रह देखने लगे. अंकल तो बेताब हो रहे थे "अनिल यार, मैं तो
इस कल्पना से ही मरने को आ जाता हू कि तुम्हारी मा के उन गोरे चित्ते पहाड़
से चूतडो के बीच अपना लंड गाढ रहा हू. पर शशि की बात ठीक है, काश
मेरा लंड वैसा खड़ा हो जाए जैसा कल रात था. तुम्हारी मा को भी ज़रा फील होना
चाहिए कि उनकी गान्ड की सेवा एक हलब्बी लंड कर रहा है, कोई छोटा मोटा
नही"

मैं चुप था. मा की गान्ड आज दूसरा पुरुष मेरे सामने मारेगा इस विचार से
ही मैं मस्त हो रहा था. शशिकला की उस सुंदर गान्ड मे लंड डालने को मिलेगा
यह विचार भी मुझे मुग्ध कर रहा था.

मा और शशिकला जब बीस मिनिट बाद बाहर आए तो हम देखते रह गये. दोनों
बला की खूबसूरत लग रही थी. उन्होने बाल जुड़े मे बाँध लिए थे और मेकअप कर
लिया था. लाल लिपस्टिक लगाकर दोनों का रूप निखार आया था. पर असली मारू बात थी
उनका अर्धनग्न रूप. दोनों ब्रा और पैंटी मे थी और दोनों ने उँची ऐईडी की
सॅंडल पहन रखी थी.
 
शशिकला ने काले रंग की एकदम छोटी तंग और स्ट्रेप्लेस्स ब्रा पहनी थी,
कांचुकी स्टाइल मे. उसके पुश्ट स्तन बिना स्ट्रॅप के भी शान से सिर उठाए हुए
थे. पैंटी एकदम पतली बिकिनी स्टाइल की थी. उसने काले रंग की चार इंच हील की
पतले पतले पत्तों वाली सॅंडल पहनी थी. उन्हे देखते ही मन होता था कि
उन्हे छाती से लगा लू और चाटने लगू.


मा ने सफेद रंग की साड़ी ब्रा पहनी थी पर उस सादगी का ऐसा जादू था कि मा के
रूप को चार चाँद लग गये थे. सफेद कों जैसे नुकीले कपों मे मा के उरोज
भरे हुए थे और तो पर्वतों जैसे विशाल लग रहे थे. पैंटी एकदम पतले
सफेद नाइलोन की थी और इतनी टाइट थी कि उसमे से मा की बुर की गहरी लकीर और
उसकी घनी झांट दिख रही थी. और मा के सॅंडल, वही सफेद रुपहले सॅंडल
जो आज मैने शशिकला की अलमारी मे देखे थे. उनकी हील कम से कम चार इंच
की थी और उस उँची हील पर बॅलेन्स करते हुए लचक लचक कर चलती हुई मा
जब कमरे मे आई तो मेरा लंड सिर उठाने लगा. अशोक अंकल की भी हालत ऐसी ही
कुछ थी, वे मंत्रमुग्ध होकर मा एक उस रूप को देख रहे थे. मेरे सामने
ही उनका लंड एक इंच और बड़ा हो गया.

शशिकला हंस कर मा से बोली "देखा दीदी, दोनों कैसे पागल हो गये है, अरे
इनकी मैं नस नस पहचानती हू. चलो दीदी थोड़ा डॅन्स करते है, फिर इन्हे
देखेंगे. और सुनो तुम दोनों, इस बार मैने तुम्हे बाँधा नही है पर याद
रखना, अपने लंड को हाथ भी लगाया तो आज रात का प्रोग्राम कैंसल. समझे
ना?" अंकल और मैने सिर हिलाया, उन दोनों अप्सराओं के आगे हमारी क्या चलने
वाली थी.


एक म्यूज़िक की सी डी लगाकर दोनों डॅन्स करने लगी. एक दूसरे से लिपट कर
चुंबनो का आदान प्रदान करते हुए उन्होने ऐसा डॅन्स किया कि हमारी जान
निकाल दी. उँची ऐईडी के संडलों पर अपने आप को संभालते हुए जब वे घूमती
तो उनकी कमर लचक लचक जाती. वे बार बार एक दूसरे के नितंबों को सहलाती,
हमे दिखा दिखा कर अपनी साथिन के चुतडो को दबाती जैसे कह रही हों,
देखो, ये माल देखो!

दस मिनिट के बाद ही हमारा बुरा हाल हो गया. अशोकजी तो एकदम रीरियाने लगे
"रीमा जी प्लीज़, बस अब मत सताइए. बेटी बोलो ना अपनी मम्मी को, अपने दीवाने
को ऐसे न हलाल करे प्लीज़ बेटी दया करो ..." उनका लंड अब तन कर खड़ा हो
गया था.

दो मिनिट के बाद वे दोनों समझ गयी कि हम अब पूरी तरह से मस्त है. मा
बोली "शशि, ये दोनों तो फिर से ऐसे हो गये है कि कोई कह नही सकता कि कल रात
से ये हमारी सेवा मे लगे है"

शशिकला बोली "मम्मी, अभी तो और मतवाला बनाना है इन्हे. मैने बताया था
ना? चलो अब वैसे करते है, देखो कैसे हमारे कदमों मे आ गिरेन्गे"

वे दोनों डॅन्स ख़तम करके हमारे पास आई और एक एक कुर्सी मे बैठ गयी.
मा ने अपनी एक टाँग उठाकर दूसरी पर रख ली और हिलाने लगी. उसका हिलता
सॅंडल बहुत प्यारा लग रहा था. अशोकजी तो उसकी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे
भूखा खाने को देखता है.

उनकी ये हालत देखकर शशिकला उन्हे मज़ाक से पुचकार्ते हुए बोली "आइए
पतिदेव, ज़रा अपने होने वाली पत्नी के चरणों की पूजा कीजिए. जैसे चाहिए
कीजिए, घबराईए नही, मन भर कर मज़ा लीजिए. बस झाड़िएगा नही. आपकी पत्नी
की ये गुदाज गान्ड आपको मिलने वाली है एडवांस मे शादी के पहले, उसके लायक
अपने लंड को खड़ा कीजिए" फिर मेरी ओर मुड़कर बोली "और अनिल, उधर कमरे मे
छुप छुप मेरी चप्पल चाट रहा था ना? ले अब खुलकर चाट, मज़ा कर. ऐसे
मामलों मे शरमाया नही करते" और अपनी एक सॅंडल आधी उतारकर वह
अपनी उंगलियों पर नचाने लगी. जो लोग औरतों के पैरों और उनकी
चप्पलो के रसिक होते है उनके लिए इस से ज़्यादा मादक और कोई दृश्य नही
हो सकता कि कोई औरत अपनी चप्पल आधी पंजे से निकालकर अपनी उंगलियों
पर नचाए.

मैं शशिकला के सामने बैठकर बेतहाशा उसके उस खूबसूरत पाव और
सैंडल को चूमने लगा. जीभ से उसे चाटा और शशिकला के पैर की उंगलिया
मूह मे लेकर चूसने लगा. बड़ी गोरी और नाज़ुक उंगलिया थी, मोतिया नेल पालिश
से और सुंदर लग रही थी. उसके सॅंडल के पत्ते मूह मे भर लिए. ऐसा लग
रहा था कि चबा डालु. लंड अब तना तन उछल रहा था.
 
Back
Top