hotaks444
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कनखियों से मैने अशोक अंकल की ओर देखा. वे तो पागल से हो गये थे, मा
के पैर से लिपट कर उसे ऐसे चूम और चाट रहे थे जैसे खा जाना चाहते हों.
मेरे देखते देखते उन्होने मा की सॅंडल आधी उतारी और उसका अगला भाग मूह
मे ले लिया. सॅंडल चूस कर मन नही भरा तो मा के पैर का तलवा चाटने
लगे.
पाँच मिनित के बाद वे सीधे हुए और मा के पैर को हल्का सा मोड़ा. मा की ऐईडी
अब उनकी ओर थी. सॅंडल को मा के पैर से थोड़ा अलग करके उन्होने धीरे से अपना
लंड मा के तलवे और सॅंडल के चिकने सपाट तलवे के बीच घुसेड दिया. फिर
दोनों को दबा कर अपने लंड को उनमे सैंडविच कर लिया और धीरे धीरे
चोदने लगे. उनकी नज़र ऐसी गुलाबी हो गयी थी जैसे जन्नत की सैर कर रहे हों.
मेरे चेहरे के भाव देखकर शशिकला खिलखिला उठी "अरे मेरे डॅडी बहुत
रसिक है, पैरों के और लेडीज़ चप्पालों के दीवाने है. ये क्या क्या खेल खेलते
है इनके साथ, तूने सोचा भी नही होगा. अभी वे मम्मी के पैर को चोद रहे
है. तू भी करके देख, ले मैं सॅंडल उतारती हू" उसके मुलायम तलवे और
चिकनी सॅंडल के बीच दबाकर मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि मुझे लगा कि मैं
झाड़ जाउन्गा.
उधर मा को भी मज़ा आ रहा था. वह खुद अपनी सॅंडल को अपने पैर से
चिपका कर पैर आगे पीछे करके अंकल के लंड को चोद रही थी. "अशोक, छोड़ो
मेरे पैरों को. अरे मुझे मालूम होता कि तुम भी दीवाने हो इस चीज़ के मेरे
बेटे जैसे तो अपनी कुछ खास चप्पले साथ ले आती, मेरा बेटा तो बहुत खेलता
है उनसे"
अचानक शशिकला ने मुझे दूर किया और उठ खड़ी हुई. मा के पास जाकर अशोक
अंकल को खींच कर अलग किया और बोली "क्या डॅडी, आप भी मम्मी के झाँसे मे
आ गये! अरे ये तो चाहती है कि आप उनके पैरों मे ही झाड़ जाए. देखिए
आपका लंड कैसा शानदार खड़ा हो गया है! चलिए अब, मम्मी की गान्ड
मारिए."
मा बोली "क्या शशि, अपने डॅडी से ज़्यादा लगता है तू ही मेरे पीछे पड़ी है,
वे तो बेचारे भूल ही गये थे. वैसे इनका इतना मस्त खड़ा है कि लगता है
चूत चुदवा लू, मेरी चूत बुला रही है अपने यार को"
"चुदवाने को तो अब जिंदगी पड़ी है दीदी. चलिए डॅडी, मम्मी वैसे आप ठीक
कहती है, डॅडी तो भोले है, उनकी फिकर मुझे ही करनी पड़ती है और तुमने
ठीक समझा है, मैं देखना चाहती हू कि मेरी प्यारी मम्मी की गोल मटोल
गान्ड मे कैसे यह मतवाला सोंटा अंदर जाता है. आज सुहागरात है यही
समझ लो, सुहागरात मे पत्नी को कुछ तो दर्द होना चाहिए नही तो क्या मज़ा
आएगा"
माको उठाकर वह पलंग पर ले गयी. मा को पट सुलाया और चूम कर बोली.
"फिकर मत करो मम्मी, क्रीम लगा दूँगी, अच्छी इम्पोर्तेड क्रीम, एकदम
चिकनी है, आराम से डॅडी को अंदर ले लोगि"
वह जाकर क्रीम की शीशी उठा लाई. मा के गुदा मे क्रीम चुपडति हुई बोली "अनिल
तुम मेरे डॅडी के लंड मे क्रीम लगा दो. शरमाओ नही, मैं देख रही हू कि
तुम अब भी बहुत शरमाते हो. अब एक बेटा अपनी मा के होने वाले पति का लंड
क्रीम से चिकना करेगा जिससे उसकी मा की गान्ड अच्छे से मारी जा सके. और मैं
अपनी होने वाली मा की गान्ड चिकनी करूँगी. है ना मज़े की बात, चलो जल्दी
करो."
मैने कुछ शरमाते हुए क्रीम ली और अशोक अंकल के लंड मे चुपडने लगा.
अजीब सा लग रहा था, पहली बार थी जब किसी और के लंड को हाथ मे लिया था. अंकल
का लंड अब घोड़े जैसा हो गया था. मेरी दो मुत्थियो मे किसी तरह समा पा
रहा था. नसे भी फूल गयी थी. किसी जिंदा जानवर की तरह थरथरा रहा था.
मन ही मन मुझे बहुत उत्तेजना हुई, क्या खूबसूरत लॉडा है! जब मा की गान्ड
मे जाएगा तो वह बहाल हो जाएगी. मेरी मा के लिए ऐसा ही पुरुष चाहिए था जो
उसके शरीर को पूरी तरह से भोग सके. अंकल को भी मेरे हाथों का स्पर्श
अच्छा लग रहा था, वे आँखे बंद करके लंबी लंबी साँसे ले रहे थे.
के पैर से लिपट कर उसे ऐसे चूम और चाट रहे थे जैसे खा जाना चाहते हों.
मेरे देखते देखते उन्होने मा की सॅंडल आधी उतारी और उसका अगला भाग मूह
मे ले लिया. सॅंडल चूस कर मन नही भरा तो मा के पैर का तलवा चाटने
लगे.
पाँच मिनित के बाद वे सीधे हुए और मा के पैर को हल्का सा मोड़ा. मा की ऐईडी
अब उनकी ओर थी. सॅंडल को मा के पैर से थोड़ा अलग करके उन्होने धीरे से अपना
लंड मा के तलवे और सॅंडल के चिकने सपाट तलवे के बीच घुसेड दिया. फिर
दोनों को दबा कर अपने लंड को उनमे सैंडविच कर लिया और धीरे धीरे
चोदने लगे. उनकी नज़र ऐसी गुलाबी हो गयी थी जैसे जन्नत की सैर कर रहे हों.
मेरे चेहरे के भाव देखकर शशिकला खिलखिला उठी "अरे मेरे डॅडी बहुत
रसिक है, पैरों के और लेडीज़ चप्पालों के दीवाने है. ये क्या क्या खेल खेलते
है इनके साथ, तूने सोचा भी नही होगा. अभी वे मम्मी के पैर को चोद रहे
है. तू भी करके देख, ले मैं सॅंडल उतारती हू" उसके मुलायम तलवे और
चिकनी सॅंडल के बीच दबाकर मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि मुझे लगा कि मैं
झाड़ जाउन्गा.
उधर मा को भी मज़ा आ रहा था. वह खुद अपनी सॅंडल को अपने पैर से
चिपका कर पैर आगे पीछे करके अंकल के लंड को चोद रही थी. "अशोक, छोड़ो
मेरे पैरों को. अरे मुझे मालूम होता कि तुम भी दीवाने हो इस चीज़ के मेरे
बेटे जैसे तो अपनी कुछ खास चप्पले साथ ले आती, मेरा बेटा तो बहुत खेलता
है उनसे"
अचानक शशिकला ने मुझे दूर किया और उठ खड़ी हुई. मा के पास जाकर अशोक
अंकल को खींच कर अलग किया और बोली "क्या डॅडी, आप भी मम्मी के झाँसे मे
आ गये! अरे ये तो चाहती है कि आप उनके पैरों मे ही झाड़ जाए. देखिए
आपका लंड कैसा शानदार खड़ा हो गया है! चलिए अब, मम्मी की गान्ड
मारिए."
मा बोली "क्या शशि, अपने डॅडी से ज़्यादा लगता है तू ही मेरे पीछे पड़ी है,
वे तो बेचारे भूल ही गये थे. वैसे इनका इतना मस्त खड़ा है कि लगता है
चूत चुदवा लू, मेरी चूत बुला रही है अपने यार को"
"चुदवाने को तो अब जिंदगी पड़ी है दीदी. चलिए डॅडी, मम्मी वैसे आप ठीक
कहती है, डॅडी तो भोले है, उनकी फिकर मुझे ही करनी पड़ती है और तुमने
ठीक समझा है, मैं देखना चाहती हू कि मेरी प्यारी मम्मी की गोल मटोल
गान्ड मे कैसे यह मतवाला सोंटा अंदर जाता है. आज सुहागरात है यही
समझ लो, सुहागरात मे पत्नी को कुछ तो दर्द होना चाहिए नही तो क्या मज़ा
आएगा"
माको उठाकर वह पलंग पर ले गयी. मा को पट सुलाया और चूम कर बोली.
"फिकर मत करो मम्मी, क्रीम लगा दूँगी, अच्छी इम्पोर्तेड क्रीम, एकदम
चिकनी है, आराम से डॅडी को अंदर ले लोगि"
वह जाकर क्रीम की शीशी उठा लाई. मा के गुदा मे क्रीम चुपडति हुई बोली "अनिल
तुम मेरे डॅडी के लंड मे क्रीम लगा दो. शरमाओ नही, मैं देख रही हू कि
तुम अब भी बहुत शरमाते हो. अब एक बेटा अपनी मा के होने वाले पति का लंड
क्रीम से चिकना करेगा जिससे उसकी मा की गान्ड अच्छे से मारी जा सके. और मैं
अपनी होने वाली मा की गान्ड चिकनी करूँगी. है ना मज़े की बात, चलो जल्दी
करो."
मैने कुछ शरमाते हुए क्रीम ली और अशोक अंकल के लंड मे चुपडने लगा.
अजीब सा लग रहा था, पहली बार थी जब किसी और के लंड को हाथ मे लिया था. अंकल
का लंड अब घोड़े जैसा हो गया था. मेरी दो मुत्थियो मे किसी तरह समा पा
रहा था. नसे भी फूल गयी थी. किसी जिंदा जानवर की तरह थरथरा रहा था.
मन ही मन मुझे बहुत उत्तेजना हुई, क्या खूबसूरत लॉडा है! जब मा की गान्ड
मे जाएगा तो वह बहाल हो जाएगी. मेरी मा के लिए ऐसा ही पुरुष चाहिए था जो
उसके शरीर को पूरी तरह से भोग सके. अंकल को भी मेरे हाथों का स्पर्श
अच्छा लग रहा था, वे आँखे बंद करके लंबी लंबी साँसे ले रहे थे.