Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 22 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

लाजो ने तुरंत आदम को अपने से दूर धकेला और अपनी पेटिकोट की डोरी झट से बाँधी...फिर साड़ी को अपने बदन पे लपेट लिया....आदम ने तुरंत जैसे तैसे प्यज़ामे को पहना पर उभार के चलते माँ को शक़ ना हो जाए इसलिए उसने काफ़ी अहेतियात से दरवाजा खोला और एक आड़ हो गया....

माँ ने उसे पसीने पसीने पाया....आदम फिर उखड़े मन से बोला आप आ गयी ? आ जाओ.....इतना कहते हुए आदम कमरे में चला गया.....माँ की नज़र लाजो पे गयी

अंजुम : लाजो अभी तू यही है? तुझे देरी नही हुई

लाजो : आ.आ.आप ही ने कहा था

अंजुम : अच्छा अच्छा अब जा तू

आदम : माँ मैं उसे छोड़ देता हूँ

अंजुम : नही बेटा मैं उसे छोड़ आती हूँ वैसे भी अभी बाहर से ही लौटी हूँ आ लाजो

लाजो हाँफ रही थी उसने एक बार पलटके आदम की तरफ देखा....अपनी अधूरी प्रेम क्रीड़ा के बीच उसे उठके जाने में काफ़ी गुस्सा आया...क्यूंकी उसकी चूत पूरी गीली हुई सी थी...आदम ने उसे इशारा किया कि एक दिन ना सही अगले दिन तो पक्का....लाजो ने शरमाया फिर मुस्कुराया और अंजुम की आवाज़ देते ही वो बाहर निकल गयी....

आदम कमरे में आके हाथ मुँह धोया फिर उसने पेशाब किया अपने लंड से निकलते प्री-कम की बूँदो को पोंच्छा और लिंग को धोते हुए कमरे में लौट आया.....8 बज चुका था...आदम का दिल धक धक किए जा रहा था काश एक बार लाजो के साथ 1 घंटा और मिल जाता तो ना जाने क्यूँ आज उसे ताहिरा मौसी और रूपाली भाभी की याद आ गयी....

इतने में उसने पाया कि माँ आ गयी थी..."छोड़ आई उसे".....

."हां बेटा उफ्फ ग्रामीण सेवा की गाड़िया तो पूछो मत इतनी भीड़"........

"ह्म कोई बात नही दरवाजा लगा लो मच्छर आ रहा है बाहर से"........

अंजुम ने दरवाजा लगाया और खाना बनाने चली गयी....
 
आदम थोड़ी देर सुस्त लहज़े से लाइट ऑफ किए अपने कमरे का पलंग पे लेट गया...माँ ने किचन में से आवाज़ दी "आदम बेटा आना तो ये मिक्सर में मसाला पीस दे आदम बेटा"........जब अंजुम को लगा कि आदम आवाज़ का कोई जवाब नही दे रहा....तो वो खुद कमरे की तरफ
आई उसने देखा कमरे में अंधेरा है और बेटा पलंग पे लेटा हुआ है....

माँ मुस्कुराई वापिस किचन में खाना बनाने लगी उसने फिर खुद ही मिक्सर में मसाला पीसा फिर उसे कढ़ाई में डालते हुए चौंकने लगी....जब खाना से फारिग हुई तो उसे बोरियत सी लगी अब तो ना उसका हज़्बेंड घर पे था और ना ही उसकी बहू जिसके लिए वो जल्दी जल्दी करे एक टाइम था माँ-बेटा देर रात गये एक साथ खाते थे आज जैसे उन दीनो को अंजुम याद कर रही थी....

वो धीरे धीरे बेटे के कमरे में आई उसने पलंग पे चढ़ते हुए उसके माथे को चूमा "बाबू सो गया क्या?".....बेटे के बाज़ू पे हाथ फेरते हुए

आदम : क्या कर रही हो माँ? (माँ की तरफ पलटते हुए)

माँ ने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके बालों की तरफ देखा फिर चेहरे की धाड़ी की ओर...."तू बाल क्यूँ नही कटवा रहा? कितना गंदा लग रहा है चेहरा देखने में"........

"जाने दो".........\\

"देख आजकल तेरा ज़रा सा भी खुद पे ध्यान नही नौकरी के बाद आता है और थक्के चूर हो जाता है ऐसा थोड़ी ना चलेगा शरीर को फिट भी
रखना ज़रूरी है".........

."क्या करना माँ ये सब करके? अब तो ज़िंदगी से जैसे जी भर गया

माँ ने कस कर उसके पीठ पे थप्पड़ मारा....."क्या कहा तूने? दुबारा ऐसा ना कहना जिंदगी से जी भर गया आख़िर क्यूँ इतना सोच रहा है तू? क्या इंसान अकेला नही जीता क्या हर इंसान के ज़िंदगी में दुख नही होता टेन्षन नही होता अभी तो तेरी पूरी लाइफ पड़ी हुई है"..........

.आदम ने कोई जवाब नही दिया जैसे वो फिर सो रहा था....

अंजुम : अगर तुझे कुछ हो जाएगा तो मेरा क्या होगा मालूम है तुझे? जब से वो गयी है तबसे मेरा घर जैसे बेरौनक हो गया है आख़िर पूछती हूँ क्यूँ? क्यूँ मुझे याद दिलाता है कि जो ग़लती मैने की अब तू ही मुझे उस ग़लती की सज़ा दे दे जो मैने तेरी ज़िंदगी बर्बाद की और तूने शादी करने का फ़ैसला लिया तेरा तो कभी दिल नही था ना

आदम : माँ तुम्हें कुछ हो जाए तो मैं खुद भी ख़तम कर लूँगा प्ल्ज़्ज़ ऐसी बात ना कहो
 
अंजुम सुबकने लगी....तो आदम ने उठके उसकी तरफ प्यार से देखा और उसके आँसू पोंछे..."माँ अब हम हालत के मारे हुए है....अब मुझसे ये ना कहना कि मैं फिर कभी किसी और लड़की को अपनी घर की बहू बनाके ले आउ मैं अब किसी को स्वीकार करने के हालत में नही हूँ एक बार ठोकर खा चुका और नही खाउँगा जानती भी हो घर में ददिहाल में सबको मालूम चल गया होगा कि आदम की बीवी किसी और से
फँसी हुई थी? उसका मेरा तलाक़ हो गया कोई तो ये भी कह चुका कि मेरा बच्चा लिए वो इस शहर को छोड़ गयी".......

माँ ने जैसे उसे ज़ज़्बातो पे बह जाने से रोका

अंजुम : देख लोग क्या कहते क्या सोचते हैं ? हमे इसकी परवाह नही कल तक तू ही ये कहता था ना कि मुझे परवाह नही कि हमारे बीच कैसा भी रिश्ता क्यूँ ना हो? मुझे किसी की परवाह नही

आदम : उस वक़्त सिर्फ़ हम दोनो का वास्ता था माँ

अंजुम : जानती हूँ

अंजुम ने बेटे के सीने को सहलाया और उसे कहा कि खाना ख़ाके सोए...और ज़्यादा टेन्षन ना ले दिन पे दिन दुबला पतला होते जा रहा है...आदम ने कुछ ना कहा वो उठके मुँह धोने चला गया...अंजुम को जैसे उसकी चिंता सताने लगी....कही वो टूटके बिखर ना जाए? उसने
बेटे\ को ग़लत दिशा दिखाई अब उसे ही बेटे को पहले जैसा नॉर्मल करना था...उसने ठान लिया की वो ऐसा करके रहेगी..


अगले शाम आदम जब नौकरी से थका हारा घर लौटा तो उसने दरवाजा खुला पाया उसने कॉल बेल नही बजाया....."उफ्फ माँ को कितनी दफ़ा कहा है? ऐसा घर खुला छोड़ा ना करे दिन ज़माना ठीक नही है"......आदम नाराज़गी भरे लहज़े में घर में दाखिल हुआ और दरवाजा लगाए जैसे अंदर घुसा....

"माँ माँ कहाँ हो तुम?"....अपना बॅग को रखते हुए टाइ को ढीला करते हुए आदम ने इधर उधर नज़रें फिराई पर माँ कही नही थी....जब उसकी निगाह अपने माता पिता के कमरे की ओर हुई तो जैसे कमरे का दरवाजा लगा हुआ था...

"मामा मामा दरवाजा खोलो माँ क्या कर रही हो अंदर? अरे माँ श माँ"....अंदर से गाना बजने की आवाज़ें आ रही थी....शायद माँ ने टीवी ऑन रखा हुआ था कमरे की ट्यूबलाइट तो जल रही थी लेकिन माँ ने अंदर से दरवाजा लगाया हुआ था....आदम को थोड़ी फिकर हुई क्यूंकी दरवाजा माँ खोल नही रही थी...आदम ने फिर दो-चार बार दस्तक दी पर माँ ने कोई जवाब ना दिया

"माँ माँ दरवाजा खोलो माँ माँ"......आदम दरवाजे को खोलने की नाकाम कोशिश कर रहा था....उसका दिल जैसे बेचैन हो रहा था....कि आख़िर क्या बात हो गयी? इतना टाइम हो गया माँ दरवाजा क्यूँ नही खोल रही?

इसी लहज़े में जब उसने दुबारा हॅंडल पे हाथ रखना चाहा ही था कि कुण्डी खुलने की आवाज़ हुई और उसके बाद दरवाजा खुद पे खुद चर्र चर्रे तीखे स्वर में अपने आप खुलने लगा...आदम ने झट से दरवाजे को धकेला....तो पाया कि सामने का नज़ारा कुछ और ही था आदम ऐसा
दृश्य देख हक्का बक्का खड़ा रह गया
 
आदम जैसे कमरे के दरवाजे पे ही खड़ा ठिठक गया....उसका मुँह खुला का खुला रह गया....जो आँखे थकी हारी रोज़ाना आँसुओं बोझल सी
हो जाती थी वो एकदम से सामने के नज़ारे को देख जैसे आँखे बड़ी बड़ी सी हो गयी....सामने का नज़ारा कुछ था ही वैसा...

सामने बिस्तर पे अंजुम बैठी हुई थी उसके हाथ पाओ पे मेहेन्दि का रंग चढ़ा हुआ था...शायद दिन में ही मेहेन्दि लगाई थी उसने...उसके बदन पे एक भी कपड़ा नही था....एकदम मदरजात नंगी अपने बेटे के सामने जैसे प्रस्तुत थी...दोनो कलाईयों में भरी भरी चूड़िया और पाओ में बेटे का दिलाए हुए वो पायल....उसकी चुचियाँ एकदम लटकी हुई थी ब्राउन निपल्स जैसे कठोर से हुए से थे....टाँगों पर से टाँग हटाए जब उसने
दोनो टाँगों को एकदुसरे से अलग किया टाँगों को फैलाया तो उसकी झान्टेदार चूत बेटे के सामने हुई झान्टो के ठीक बीच में जैसे चूत एकदम गुलाबी सी थी....माँ एका एक बेटे के सामने खड़ी होके अपनी चोटी पे हाथ फेरते हुए गजरे को जैसे ठीक करने लगी जो उसके बालों में सजी हुई थी....

माँ : क्या हुआ बेटा? तू ऐसे बाहर क्यूँ खड़ा है? क्या हुआ तुझे (एका एक शरारत से मुस्कुराते हुए)

आदम : म्म...माँ आप ऐसे

माँ : क्यूँ? अपने घर क्या ऐसे भी रहना गुनाह है क्या?

आदम : पर माँ ये सब आज कैसे?

आदम की नज़र माँ की बगलो को उठाने से उसके काख के शेव्ड बालो पे पड़ी लगता था वहाँ से माँ ने हाल ही में ही बाल सॉफ किए थे इसलिए वहाँ कालापन और हल्की हल्की उगती बाल दिख रही थी...

अंजुम बेटे के एकदम नज़दीक आई तो आदम ने पाया कि उसके बदन से भीनी मोगरे की खुश्बू आ रही थी....आदम ने तुरंत माँ के पेट पे हाथ रखते हुए हाथ नीचे ले जाते हुए स्ट्रेच मार्क्स बने दागो पे फिर तल पेट को सहलाया....माँ इससे सिहर उठी उसने कस कर बेटे के हाथ
को थाम लिया....आदम ने अपना हाथ एका एक तल पेट से नीचे ले जाते हुए झान्टो में लाया और उस पर हाथ से सहलाते हुए चूत के ठीक
उपरी सिरे पे हाथ रखा...

चूत एकदम गरम हो चुकी थी....आदम ने कस कर चूत को अपने हाथो में लिए दबोचा और उसे 2-3 बार मसला...वैसे भी काफ़ी अरसा हो गया था माँ से दूर हुए आज जैसे माँ खुद रह ना पाई और इतने सालो बाद दोनो ने अपने फास्लो को एक झटके में एकदुसरे के बीच से दूर कर दिया...

जब तक आदम का हाथ माँ के चूत को सहला रहा था उसकी पावरोटी जैसी फूली सूजी चूत के मुआने पे उंगलिया जैसे घिस रहा था....उस
पल अंजुम ने बेटे के कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया.....कुछ ही पल में फर्श पर आदम के कपड़े गिरे परे हुए थे

और आदम माँ की टाँगों के बीच अब अपनी बीच की उंगली चूत के मुआने के अंदर बाहर कर रहा था....और उसी बीच वो माँ की छूट को
\ खूब कस कर मुट्ठी में लिए मसल देता...जिससे माँ का पूरा बदन सिहर जाता और वो जैसे स्खलित होने जैसी अवस्था में आ जाती...

"ऑश ऑश सस्स उूउउइइ सस्स आहह".......अंजुम सिसक उठी और ठीक उसी पल बेटे ने मुट्ठी में चूत को जैसे 2 मिनट के लिए दबोचे रखा और फिर उसे मसल्ते हुए छेद को अंगूठे से जैसे सहलाया फिर उसने लगभग तीन उंगली अंदर डाली और फिर चूत को अच्छी तरह से उंगली करने लगा...कुछ ही पल में अंजुम ने बेटे के उंगली करते हाथो को कस कर पकड़ा और ठीक उसी पल जैसे उसका बदन एक बार काँप
उठा उसने मुँह को भीच लिया सख्ती से...और चूत से फव्वारा जैसे बरसाया....आदम का पूरा हाथ गीला हो गया और फर्श पे अंजुम की चूत
से निकला पानी फैल गया....

अंजुम अब पलंग पे लेटी हुई थी और उसकी टाँगों के ठीक बीच आदम अपना मुँह रखे हुए था...उसने चूत पे अपना मुँह लगाया हुआ उसे मुँह में लिए जैसे उसे ज़ुबान से चाटें जा रहा था....अंजुम को यह मुख मैथुन बेटे की बहुत पसंद थी....वो नंगी ही लेटी हान्फते हुए बेटे के मुँह को
अपनी चूत पे लगा देख उसके बालों पे हाथ फैरने लगी....
!
 
उसने बेटे को जैसे प्रोत्साहित किया कि वो और गहराई से चूत को चूसे...आदम ने चूत के दाने को मुँह में भरते हुए उसे बड़े प्यार से चूसा
और उसके बाद मुंहाने पे अपनी गीली ज़ुबान चलाता रहा....माँ की गरम नमकीन चूत का स्वाद चखते हुए आदम जैसे पागला गया....

"ओह्ह स"......ज़बान अब छेद के भीतर जैसे आदम घुसा रहा था...कुछ ही पल में चूत जैसे फिर पानी पानी हो गयी.....आदम ने उससे
निकलते रस को चखते हुए उसमे जैसे अपनी नाक घुसाई और उसे सूँघा भीतर से एक भीनी महेक आ रही थी...

आदम उठ खड़ा हुआ और उसने अंजुम की दोनो टाँगों को अपने गिरफ़्त में ले लिया अंजुम ने अपनी दोनो अपने हाथो से थामते हुए एकदम फैला ली...जैसे इस दिन के लिए वो कितनी बेचैन हो?

आदम ने माँ की चूत में सटाक से एक ही करारे धक्के में लंड को फुरती से अंदर जैसे धकेल दिया था....चूत ने जैसे उसके लंड को एक ही झटके में अंदर तक समा लिया....इससे माँ का पूरा बदन काँप उठा...

अंजुम : उईईई हाए अल्ल्लाहह

आदम : ओह्ह्ह माँ ऐसा लगता है कि कभी ये ढीली हुई ही नही

अंजुम : ढीली अगर ना होती तो तो एक ही बार में कैसे इतना अंदर तक तू ले सकता? उमर के हिसाब से औरतो की वो जगह ढीली होती ही जाती है चल लगा धक्के

आदम : ससस्स माँ उफ़फ्फ़ तुम्हे ऐसी टांगे चौड़ी किए मुद्रा में देखकर तो मेरा लंड अंदर जैसे ही फारिग हो जाएगा

अंजुम : हा हा हा हा हा काबू रख खुद पर ज़्यादा परिश्रम करने की ज़रूरत नही आराम से आराम कर

आदम वैसे ही धक्का पेलता हुआ चूत से सटासट लंड को अंदर बाहर कर रहा था....माँ की चूत की चिकनाई लिंग को अपने द्वार से बाहर धकेलते हुए जैसे वापिस ढीला छोड़े खुद के अंदर ले रही थी.....आदम को ऐसा महसूस हो रहा था की जैसे उसका लंड की गरम भट्टी के
अंदर जा घुसा....माँ की चूत की गर्मी को सहना जैसे उसके सहन की बात ना थी...
 
आदम वैसे ही धक्का पेलता हुआ चूत से सटासट लंड को अंदर बाहर कर रहा था....माँ की चूत की चिकनाई लिंग को अपने द्वार से बाहर धकेलते हुए जैसे वापिस ढीला छोड़े खुद के अंदर ले रही थी.....आदम को ऐसा महसूस हो रहा था की जैसे उसका लंड की गरम भट्टी के
अंदर जा घुसा....माँ की चूत की गर्मी को सहना जैसे उसके सहन की बात ना थी...

उसने धक्के तेज़ किए..तो चूत से फ़च फचक की आवाज़ आनी शुरू हो गयी....आदम ने झुकते हुए उसके दोनो चुचियो को जैसे हाथो में लेके मसलना शुरू कर दिया....और एक एक चुचि को मुँह में लेने से पहले उसके निपल्स पे अपने ज़ुबान लगाए फिर उसे मुँह में लेके
चूसा...उसकी चुसाइ से ही माँ जैसे पागला उठी....उसने अपनी टांगे बेटे की कमर में लपेट ली थी...

"उईइ माँ आहह स्स्स आहह आहह "......."ओह्ह्ह माँ ससस्स उफ़फ्फ़"........बेटा और माँ दोनो एक साथ जैसे चुदाई का आनंद ले रहे थे...कुछ ही पल में आदम ने माँ की चूत में सतसट धक्के पेलने ज़ोर ज़ोर से करने शुरू कर दिए...जिससे माँ पलभर में काँपने लगी साथ साथ बेटे को अपने उपर चढ़ाए जैसे उसके पीठ पे नाख़ून गाड़ने लगी...

"सस्सह उउई आहह सस्स आहह उररगगगगघह आहह".......माँ की दहाड़ जैसे पूरे कमरे में गूँज़ उठ रही थी..

.आदम जैसे पागलो की तरह माँ के उपर नीचे हो रहा था उसकी चूत से पिस्टल की तरह लंड अंदर बाहर हो रही थी...अंजुम अपने बेटे के पीठ और गाल को चूमते चाटते हुए उसके कुल्हो पे हाथ रख कर उसे कस कर दबाने लगी जिससे आदम को अहसास हुआ कि माँ अब फिर
से झड़ने वाली है..

उसने कस कर लंड को कुछ धक्को के पश्‍चात चूत के भीतर ही लंड को रोके रखा....जिससे माँ एकपल को काँपी और उसके बाद उसकी चूत ने एक पेशाब की तेज़ धार जैसे छोड़ी...जो ठीक उसकी चूत की गहराई से निकलता हुआ चादर से होते हुए फर्श पे जाके गिरा....इससे माँ के दोनो बदन काँप उठे माँ का चेहरा एकदम लाल था और पसीने से तरबतर भी...

वो रोई सा मुँह बनाए चीखने लगी...उसने चादरो को कस कर हाथो में दोनो तरफ से पकड़ लिया...."आहह आहह आहह"......आदम फिर चूत में अपना लंड दाखिल कर फिर उसे चोदने लगा...माँ हर धक्को में हिल रही थी आदम ने उसकी हिलती छातियो को दोनो हाथो से थामा और उसे कस कर मसलना शुरू किया

आदम : आहह सस्स मामा उफ़फ्फ़ अफ फ़ससस सस्स आहह आहह

माँ जैसे दर्द भरा मुँह बनाए उसे देख रही थी उसके दोनो कंधो पे हाथ रखके उसके बेटे के पसीने होते बदन को सहला रही थी अपने हाथो से....फिर उसने उसे अपने से कस कर लिपटा लिया
 
माँ : आहह ह मेरा लाल्ल मेरा बेटा आहह सस्स चोद्द डाल मुझे उफ़फ्फ़ सस्स कार और कस कर और कस कर

आदम वैसे ही पागलो की तरह माँ की चूत पेलता रहा....जब उससे माँ की सिसकती आवाज़ सहन ना हो सकी..तो जैसे वो काँप उठा...उसके
माथे पे जैसे नस एककत्रित हो गयी...और वो ज़ोर लगाने की मुद्रा से कस कर दहाड़ उठा...

उसने धक्के लगाने बंद किए और वैसे ही आधा लंड चूत में फँसाए माँ पे जैसे ढेर हो गया उसका शरीर अकड़ने लगा उसके बाद दोनो हाफने लगे...आदम अपनी माँ की चूत में ही फारिग होने लगा....सफेद रस उसकी गहराईयो में जैसे बहने लगा...माँ को अपने बेटे के गरम रस का अहसास भीतर तक महसूस हुआ...

अंजुम ने आदम को शांत किया उसके माथे के पसीने को पोंछते हुए उसके बालों को समेटते हुए उसके गाल और गले को चूमा....फिर उससे कस कर लिपट गयी.....


"आहह हाहह आहह आहह आहह"........माँ के घुटने मुड़े हुए थे और उसका बेटा आदम उसकी गान्ड की फांको के अंदर बाहर अपने लंड
को कर रहा था उसने इस बीच लंड को बाहर खीचा और छेड़ पे मुँह लगाया और उसे ज़ुबान से गीला किया...

अंजुम हंस पड़ी उसने कस कर अपने नितंबो को भीचा और सिकुड़ते खुलते छेद के बीच एक तीखी सी आवाज़ में पाद छोड्री....प्र्रररर.....आदम ने उसकी चूत पे थप्पड़ मारा और उसके छेद पे नाक लगाया..."ओह्ह्ह वाहह तेरी महेक इतनी खुश्बुदार है
माँ".......

."छी तू क्या जानवर है जो ऐसे सूंघ रहा है".......

."हाहाहा माँ हमे काहे का घिन जब तंन मन से एक मर्द औरत को अपना बनाता है उन दोनो के बीच कोई घिन पीट नही बचती".........आदम ने कस कर माँ की पीठ की मालिश करते हुए

छेद के भीतर फिर अपने मोटे लंड को जैसे जड़ तक पेल दिया....इस बार उसे माँ की बच्चेदानी का अहसास हुआ उसने कस कस कर धक्को पे धक्के लगाए....जिससे कुछ ही पल में अंजुम जैसे फिर चीखने लगी....बेटे के चूत फाड़ने से उसे चूत की सिकाई वैसे ही करनी थी
 
और उपर से बेटे ने ठीक उसी पल उसे कुतिया की मुद्रा बनाया और उस पर चढ़ गया...उफ्फ कितना सेक्स भरा है उसके बेटे के अंदर ये
सोचते हुए वो खिलखाए चुदते वक़्त मुस्कुरा उठी

उसकी छातिया जैसे लटक रही थी जिन्हें नीचे हाथ ले जाते हुए बेटे ने एक दो बार दबाया तो माँ चिहुक उठी...बेटे के झुकने से उसके
अंडकोष ही नितंबो से बाहर लटके हुए थे...पूरा 8 इंच का मस्त लंड उसकी गान्ड की गहराईयो में डाला हुआ था

बेटे ने फिर कमर पे दोनो हाथ कसे और अंजुम की ताबड़तोड़ फिर चुदाइ की "इस्सह सस्स सस्स अहः आहह अहहह माँ मैं
आआया".......

"निकाल डाल्ल"....उसने हाथ बेटे के अंडकोष को सहलाते हुए कहा

तो बेटा जैसे एकदम अकड़ गया....और उसकी गान्ड के भीतर ही जैसे फारिग होता चला गया जब उसने मुआने से अपना लंड प्यूच की आवाज़ के साथ बाहर खीचा तो छेद जैसे खुलते हुए रस बाहर उगल रहा था.....अंजुम की दोनो छेद एकदम लबालब रस से भरी हुई थी वो हानफते हुए जैसे बिस्तर पे ढेर हो गयी...

आदम ने वैसे ही गीले लंड को पास पड़े कपड़े से पोछा और माँ की तरफ देखा जो थकि हुई बुझी आँखो से साँस भरती हुई पेट के बल लेटी हुई थी उसके चेहरे पे बाल जैसे बिखरे हुए थे...

आदम ने उन बालों को जैसे समेटते हुए माँ के माथे को चूमा.....बाहर चाँद जैसे अपना उजाला फ़ैक् रहा था....
 
अंजुम बेटे से लिपटी हुई उसे सीने के बालों से खेल रही थी...

आदम : माँ मैं इस दिन का बेसब्री से इन्तिजार में था

अंजुम : मुझे खुशी दी की तूने सारे गीले शिकवे भुलाके मुझे अपना बना लिया इतना प्यार करता है तू मुझसे? उस दिन तूने क्यूँ ना कहा कि
तुझे निशा से शादी करने का कोई दिलचस्पी नही था..

आदम : बस माँ तेरी सेवा करने के लिए मुझे मज़बूरन ये फ़ैसला लेना पड़ा...लेकिन तुझसे दूर होना ये मेरे लिए मुनासिब ना हुआ

अंजुम : उफ्फ चल कोई बात नही रात गयी बात गयी तू जानता है आज करवाचौथ है

आदम : हाहाहा जानता हूँ माँ स्टाफ मेंबर सब जल्दी जल्दी घर को निकल गये करवा चौथ मनाने आज तो उनकी जैसे हसीन रात है

अंजुम : दो प्यार करने वालो की रात जैसे पत्नी अपने पति के लिए दिन भर वृत रखती है और फिर उसके लिए दुआ मांगती है और उसके
बाद चाँद के बाद अपने पति का मुँह देखकर अपना वृत तोड़ती है

आदम : मैं तुझसे रखवाता हाहहा

अंजुम और आदम दोनो हंस पड़े....."अच्छा आदम बेटा".......

."हां माँ"....

."अब तेरा क्या विचार है आगे के लिए?".....\\

."क्या विचार होगा माँ? अब शादी से जैसे विश्वास उठ चुका है जिसके लिए दिल में बहुत कुछ सोच रखा था वो भी ना मुझे मिल
सका".......आदम ने जैसे माँ की तरफ दुखी भरी निगाहो से देखा

माँ को लगा शायद वो उसकी और अपनी शादी की बात के बारे में कह रहा था उसके इनकार से ही बेटा जैसे उखड़ा उकड़ा सा रहने
लगा....लेकिन उसे क्या पता? की सिर्फ़ उसके इनकार से ही नही बल्कि चंपा की मौत से भी शोक में जैसे डूबा हुआ था आदम...

अंजुम : अगर तू जो चाहता है वो सच हो जाए तो

आदम : मतलब ?(सवालिया निगाहो से माँ की तरफ देखते हुए)

अंजुम : मतलब वहीं जिससे मैने इनकार किया था

आदम : सच माँ पर पिता जी?

अंजुम : अब उनका होना या ना होना एक ही बराबर है उन्हें ज़िंदगी में भी कभी इस बात की खबर ना लगने दूँगी मैं तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ

आदम : क्या ये इज़हार एक तरफ़ा है ये क्या तेरा सिर्फ़ फ़ैसला है या दिल से?
!
 
अंजुम ने अपने बेटे के होंठ को चूमा और उसे देखते हुए कहा कि एक औरत सिर्फ़ मर्द का साथ नही चाहती उसका मुहब्बत भी चाहती है ताकि दोनो सिर्फ़ एकदुसरे के ही बने रहे...अंजुम ने जो अरमान उठाया उससे आदम ने उसे अपने गले लगा लिया..

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वो शाम ही कुछ अजीब थी....महफ़िल जैसे सज़ा हुआ था....घर एकदम दुल्हन की तरह सज़ा हुआ था....और दोनो तरफ पक्ष बैठे हुए थे एक तरफ शेरवानी में आदम तो दूसरी ओर उसकी माँ अंजुम...ये दिन एकदम से आ जाएगा किसी से ने सोचा ना था....जिस रात इज़हार पूर्ण हुई...दूसरे ही दिन सोफीया और समीर को इत्तिला करते ही समीर और सोफीया उनके घर पहुचे....सारी आप बीती सुनने के बाद दोनो ने जैसे गम भुलाने को कहा और निशा की खूब निंदा की....अफ़सोस बेहद हुआ कि वो चाह कर भी कुछ कर ना सके लेकिन अब दिन बदल चुका
था ये वो वक़्त था जिसका आदम और समीर को ख़ासकारके बेसवरी से इन्तिजार था राजीव अपनी पत्नी ज्योति भाभी के साथ ब्रड्वेन गये थे और उसी बीच निक़ाह अपने घर में करने की बात आदम ने रखी थी....और आज वहीं दिन था....पिता जी को गये हुए डेढ़ माँस हो चुका
था...होमटाउन का हर कोई अंजान था सिवाय लाजो के जो केवल उसकी माँ को ना मालूम चल जाए इसलिए छुट्टी किए हुए आई नही थी.....


समीर सोफीया दोनो एकदुसरे के पक्षो के साथ बैठे हुए थे.....क़ाज़ी निक़ाहनामा पढ़ रहा था....कुछ ही पल में जब दोनो से इजाज़त माँगी गई
तो दोनो अपनी तरफ से कॅबूल है कहा....क़ाज़ी ने दोनो पक्षो और दूल्हा दुल्हनो को निक़ाह पूरी हो जाने की बधाइया दी...

समीर : फाइनली फाइनली ये दिन आ ही गया जिसका मुझे बेसवरी से इन्तिजार था (दुल्हन से सजी लाल साड़ी के जोड़े में अंजुम बेहद खूबसूरत लग रही थी जो आदम के साथ बैठी हुई थी)

सोफीया : हां अंजुम इतना कुछ हो गया और तुम दोनो की कहानी यहाँ तक पहुच जाएगी हमने तो उम्मीद ही ना की थी

आदम : मुझे खुशी है कि आप दोनो यहाँ बेंगाल आए

समीर : अबे ओह तू ना भी बुलाता तो अभी हम टपक पड़ते हाहाहा

सब खिलखिलाए हंस पड़े....कुछ देर बाद समीर और सोफीया उन दोनो को सुहागरात के सजे कमरे में छोड़के फ़ौरन बाहर चले गये....आज
अंजुम को ऐसा लग रहा था जैसे ये रात उसकी पहली सुहागरात हो....बेटे ने कमरे में दस्तक दी तो जैसे उसने शरमाये घूँघट किए नज़रें झुका लिया
 
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