Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 26 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

लालटेन की रोशनी फीकी पड़ती जा रही थी और इधर अर्जुन तबीयत से अपनी माँ की चुदाई लगातार करता जा रहा था....उसके बाद जैसे उसका शरीर आकड़ा सा हो

अर्जुन : आहह उम्म्म सस्स आहह म्‍म्माम ओह्ह्ह माँ ससस्स (धक्के तेज़ करते हुए जैसे वो चुचियो को चूसने लगा और उपर नीचे जल्दी जल्दी होने लगा अरुणा के जिस्म से रगड़ते हुए)

अरुणा को अहसास हुआ तो उसने लंड को अपने भीतर सख्ती से कस्स लिया तो अर्जुन दहाड़ उठा और वो अकड़ता हुआ जैसे अपनी माँ पे ढेर हो गया उसकी छातियो पे अपना सर रखके हाफने लगा....अरुणा उसके पसीने पसीने बदन पे हाथ फेरते हुए उसे कस कर अपने से
लिपटाये हुई थी....उसे अपने भीतर प्रथम बार बेटे के गरम वीर्य का अहसास हुआ

उसने चूत से तब तक लंड ना बाहर खींचा जब तक चूत की गहराईयो में उसका बीज पूरा ना चला गया...फिर उसने चूत की सख्ती से ही बेटे के लंड को निचोड़ते हुए उसे बाहर अपनी गुप्तांगो से खीचा....पुकच्छ की आवाज़ आई और उसी पल बेटे को अपने से दूर धकेलते हुए अरुणा हाफने लगी....उसे अहसास हुआ कि उसकी चूत से बेटे का रस लबालब निकल रहा है....उस रात अरुणा सोई नही उसने अपने गुप्तांगो को
सॉफ किया फिर पेशाब किए उठी और सारी रात बस बैठी बैठी बेटे की तरफ घूरते हुए उसे पंखा करती रही....वो ऐसी कशमकश में घिरी
हुई थी की उसे मालूम ही ना चला ये सब अचानक कैसे हो गया? उसके मन ने चाहा बेटे कि ये सिर्फ़ वासना है पर वो जानती थी अगर वो
वासना भी थी तो उसे वो स्वीकार है क्यूंकी उसका बेटा दिलो जान से चाहता था

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ये तो जैसे सिर्फ़ हर रात की ही नही..हर दिन की बात हो....धीरे धीरे प्यार की हसरत अर्जुन की इतनी हद तक बढ़ गयी थी कि उसने माँ के साथ खेतों में भी अपनी शहवत पूरी की....उस रात के बाद से दोनो अर्जुन और अरुणा का प्यार जैसे और भी गहरा होता चला गया.....दोनो
के बीच किसी भी किसम की दूरिया ना रही....रात भर थका हारा जब खेतों से गाओं जब अर्जुन लौटता तो माँ उसे रात्रि भोजन देती उसके बाद मुँह हाथ धोके जब वो बिस्तर पे आता....

तो दरवाजे को लगाते हुए नंगी खड़ी अरुणा को देखता....हर रात दोनो की कुछ इस कदर ही कंटति थी....अब तो जैसे अर्जुन ने कसम खा ली थी कि वो माँ के बिना कभी किसी की तरफ आख उठाके भी ना देखेगा वो अपनी माँ अरुणा को महेज़ अपनी माँ नही बल्कि अपनी बीवी समझने लगा था उसी की तरह उस पर हक़ जताता रहता था....दोनो माँ-बेटे सबसे दूर ऐसे ही अपनी ज़िंदगी काट रहे थे....लेकिन जैसे इस व्यभाचरी रिश्ते को नज़र लगने वाली थी....

मुखिया रामसिंघ की बेटी तपोती अर्जुन को केयी बार खेतों में और गाओं में गुज़रते देखी थी...और उसे दिल ही दिल चाह बैठी थी वो उसके कसरती बदन और धोती के भीतर के उस औज़ार को जैसे हमेशा देखने के लिए तरसती थी..वो कच्ची उमर से भर जवान हो रही थी लेकिन
ज़िद्द उसकी वैसी की वैसी थी...जिसे पाना चाहे उसके पा के ही दम ले....

मुखिया रामसिंघ को उसके कयि रिश्ते आने लगे थे...लेकिन वो हर रिश्ता ठुकरा देती पिता नाराज़ ज़रूर होता लेकिन कुछ कर नही पाता....क्यूंकी बेटी की ज़िद्द के आगे जैसे वो उसका गुलाम था..रोज़ मटका भरने बहाने से नहेर जाती थी और वहीं से सीधा अपने पिता जी के
खेत की ओर जाते वक़्त ठहराती और अर्जुन को घूर्रती....पायल की छान्न छानन्न आवाज़ को अर्जुन हमेशा सुनता तो रास्ते से गुज़रती खुद की
तरफ मुस्कुराती तपोती को घूर्रता पाता..लेकिन उसने कभी पहेल ना की...उसे उसमें रत्तिभर का जैसा दिलचस्पी ना था..
 
एक दिन खेत से घर लौट रहा था...अर्जुन और ठीक उसी पल मचान पैड की टहनियो पे बैठी तपोती ने उसे गुज़रते हुए पाया तो चिल्लाते हुए जैसे गिरने का नाटक करने लगी....अर्जुन की उस पर जैसे नज़र पड़ी तो उसने लगभग गिरती तपोती को अपने मज़बूत बाहों में जैसे थाम लिया...और उसे घुरते हुए जल्दी से उतार भी दिया

अर्जुन : ये सब क्या हरकत है तपोती?

तपोती : हरकत नही है प्यार है

अर्जुन : क्या प्यार? तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है

तपोती : हमरा दिमाग़ तो ठीक ना ही जबसे तुझको देखे है बस इस दिल में तुझे ही जैसे समाए हुए है

अर्जुन : देख तपोती मुझे ये सब खिलवाड़ कभी नही पसंद आता....और ना ही मुझे तुझसे कोई प्यार व्यार करना हम्का जाने दे

तपोती ने अर्जुन का रास्ता रोका...."अगर हम ना जाने दे तो तू क्या करेगा?".......

."देख तपोती तोरे पिता को अगर मालूम चल गवा कि तू हमरे साथ ई प्यार का खेल खेल रही है तो हम्का जान से मार देगा उई वैसा भी हमरे परिवार से नफ़रत करता है"...........

."देख अर्जुंँ हमे तू ही पसंद और ये खेल नही हमारा प्यार है जब तक तू ना हमसे शादी के लिए हां कहेगा तब तक हम यूँ ही तेरा रास्ता रोके रहेंगे"........अर्जुन ने जैसे उसे धकेल दिया और वहाँ से चला गया..

तपोती गुस्से में तिलमिलाए वहीं गिरी रह गयी...

तपोती देखने में 22 वर्ष की थी और हूबहू जैसे चंपा थी....उसके इरादे दिन पे दिन जैसे अर्जुन के ज़िंदगी में तूफान लाने को इच्छुक थे....उसकी माँ ये सब गौर किए उसके पिता को बता देती है....तो उसके पिता बेटी को गुस्से से झाड़ते है लेकिन बेटी का दिल तो जैसे अर्जुन पे ही टीका हुआ था....

मुखिया रामसिंग : हरगिज़ नही वो लड़का हमारे घर का दामाद हर गिज़ नही बन सकता कह रहे है तुझको

तपोती : ठीक है अगर नही बना सकते तो हमे जान से मार दीजिए

मुखिया : तपोती ये कैसी ज़िद्द है तोरी? कह दिया ना तो बस कह दिए वो दो कौड़ी का जिसका पिता हमसे उधारी लेता हुआ आया उसके घर
हम तुझे ब्याह दे हरगिज़ नही नाक कट जाएगी हमरी

तपोती : तो ठीक है हम भी किसी से शादी ना करेंगे और यही ज़िद्द है हमरी या तो वो या तो कोई नही

तपोती अनसुना किए जैसे अपने कमरे का दरवाजा लगाए बंद हो गयी.....चिंतित मुखिया सोच में पड़ गया....उस रात शराब की घुट लगाता हुआ वो अपनी बेटी के लिए सोचता रहा....फिर ना जाने क्यूँ उसके मन में ये ख्याल आया? कि अगर अर्जुन की वो अपनी बेटी से शादी करवा देता है तो उसका घर और वो खेत वो दोनो उसका हो जाएगा....एक पल को उसकी निगाह में शैतानी सोच उमड़ी उसने एक बार उसकी
बेवा माँ अरुणा का ख्याल किया फिर जैसे उसके अंदर की वासना भड़क उठी दिखने में जवान खूबसूरत गाओं की सबसे सुंदर महिला थी
अरुणा जिसपे हर मर्द मरता था...लेकिन उसके इज़्ज़तदार और विधवा होने से सबने किनारा कर रखा था....
 
बेटी की ज़िद्द के आगे जैसे मुखिया रामसिंग ने हार मान ली थी....पर उसने अपने मन से भी कुछ ऐसा इरादा कर लिया था जिससे वो अर्जुन का सबकुछ उससे छीन लेना चाहता था...उस दिन अर्जुन उसके घर के द्वार पे खड़ा उसके मेज़ पर पैसो का बंड्ल रख देता है

अर्जुन : ये हमरे पिता जी का कर्ज़ा सूद समित आज हम आपको चुका दे रहे है काका जो पिता जी ने आपसे उधारी ली वो इस आखरी कीमत के साथ चुकता होती है

मुखिया : ह्म्‍म्म्म देखो अर्जुन हम जानत है कि तू बड़ा मेहनती लड़का है तूने दिन रात एक करके खेतो में काम कर करके इन पैसो को जुटाया और अपने घर के दामन में बेज़्ज़ती के दाग को पोछ भी दिया लेकिन हम तुझसे कुछ और भी चाहते है कि जो तू दे सके

अर्जुन : क्या मतलब काका?

मुखिया : हम चाहते है कि हम अपनी बेटी तुझसे ब्याह दे काफ़ी सोच के हम ये फ़ैसला ले रहे है क्यूंकी तेरे पास तो सिर्फ़ खेत है और तेरे पास मेरी बेटी को देने के लए कुछ नही और उसकी ज़िद्द है की वो तुझसे ही ब्याह रचाए

अर्जुन ने जैसे गुस्से में आग बाबूला होके मुखिया की तरफ देखा....उसने एक बार ऊपर खड़ी आँगन से झाँक रही तपोती की ओर गौर
किया....

"तुझे हम दौलतमंद कर देंगे अगर तू ये प्रस्ताव लेता है तो"..........

."हरगिज़ नही"..........एकदम से जैसे मुखिया रामसिंग को झटका लगा

मुखिया : क्या कहा? (खड़े होते हुए)

अर्जुन : हमने कहा हरगिज़ नही...ईया खेत और घर ही हमारी दौलत है और हमे आपसे कुछ नही चाही ना आपकी बेटी ना आपकी दौलत अपने पास रखिए

मुखिया : अर्जुन तुझे पता है तू किससे इतनी ऊँची आवाज़ में बात कर रहा है ग्यात भी है तुझे

अर्जुन : पूरा ग्यात है काका कि आपकी वजह से मेरी माँ विधवा हुई आपने मेरे पिता जी को ना सिर्फ़ नशाखोर बनाया बल्कि उससे उसका हंसता खेलता परिवार भी छीन लिया कम उमर से ही खेत संभालते मैं आया और अपने भविश्य को कुचल दिया मेरे पिता ने सिर्फ़ आपकी वजह से और आप चाहते है मैं इस घर के रिश्ता जोड़ू हरगिज़ नही
 
मुखिया को हुई ये बेज़्ज़ती ना भाई उसने अर्जुन को उंगली दिखा कर जैसे कहा की ये उसने भूल की जो उसके घर में आके उसकी बेज़्ज़ती की उसने.....

अर्जुन ने कुछ ना कहा और उसने बिना पीछे मूड कर देखे वहाँ से चला गया...



उस दिन मुखिया को बड़ा गुस्सा आया अपने घर में हुई सरेआम बेज़्ज़ती को वो झेल नही पा रहा था उसने निश्चय कर लिया कि वो अर्जुन से उसका सबकुछ छीन कर ही रहेगा यहाँ तक कि उसकी माँ अरुणा को भी

उधर लड़ाई के बावजूद तपोती अर्जुन के खेत आके उससे जैसे बात करना चाहती थी...लेकिन वो उसे भाव तक ना देता था...उसे बेहद बुरा लगा था और उसे अपना ज़िद्द चकना चूर होता दिख रहा था.....उसने धीरे धीरे खेतों मे आकर अर्जुन माँ अरुणा से आगे आगे बात चीत करना शुरू कर दिया.....

अरुणा उसे कुछ नही बोलती थी बल्कि उसे बेटी की तरह प्यार करती थी उसने बेटे को समझाया भी कि वो तपोती से ऐसे ना पेश आया करे...लेकिन अर्जुन ने सॉफ इनकार कर दिया उसने बताया कि उसके पिता का उसे हर पल ख़ौफ़ सताए रहता है कि कब उसे कोई मौका मिले और वो हमसे हमारा सबकुछ छीन ले...अरुणा को मालूम था कि तपोती के पिता का उस पर जैसे नज़र था.....

हर दिन की तरह उस दिन भी अर्जुन खेतो से घर आ रहा था...अपना मुँह हाथ धोए जैसे वो पलटा उसने तपोती को आते पाया...तपोती उसके
पास आके उसे फिर टोकने लगी.....

अर्जुन : देख तपोती तुझे यहाँ नही बार बार आना चाहिए तेरे पिता जी को मालूम चल गया तो तुझे खूब मारेंगे

तपोती : देख अर्जुन तू चाहे मुझसे जितना भी दूर हो जाए मैं तुझे खुद से दूर नही कर पाती मैं चाहती हूँ कि तू मुझे अपनी बना ले

अर्जुन : जो संभव नही उसकी बात क्यूँ करती है? जा यहाँ से मेरे दिल में तेरे प्यार के लिए कोई जगह नही मेरे दिल में मेरे ख्यालो में मेरे
ज़िंदगी में सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी माँ का वजूद है जिसके लिए मैं साँसें लेता हूँ

तपोती : देख अर्जुन बहुत ज़्यादा हो रहा है तेरा तू मान जा वरना

अर्जुन : वरना क्या कर लेगी ?

तपोती ने जाते अर्जुन को एकदम से कस कर अपने आगोश में जकड़ा और अर्जुन उसे छुड़ाने अपने बदन से दूर करने लगा...."हट तपोती ये क्या कर रही है तू? छोड़ हम्का छोड़ सस्स छोड़ उम्म्म"......

.तपोती ने कस कर जैसे अर्जुन के होंठो को कस कर चूसना शुरू कर ईदया उसने कस्स कस कर अर्जुन के होंठो से होंठ जोड़े उसके होंठो को बहुत बेतरतीब ढंग से चुस्सा...तो एक पल को तपोती को कस कर अर्जुन ने अपने से दूर धकेलके उसे गिरा दिया और हान्फ्ते हुए हैरत से उसे देखने लगा
 
तपोती अपने होंठ पे लगे थूक को पोंछते हुए मुस्कुराइ...उसने अपनी एक टाँग पत्थरो पे रखा और दूसरे हाथ से अपना ल़हेंगा झट से उपर
उठाया....अर्जुन की नज़र उसकी चिकनी साँवली सी चूत पे गयी जिसपर एक भी बाल नही था....

तपोती : अर्जुन हम तुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकते है आ अर्जुन हमरे पास आ

अर्जुन के जैसे पैर वहीं ठहर गये और उसे सोचने का वक़्त भी ना मिला....कि तपोती ने उसकी धोती के उपर से ही उसके मोटे लंड को कस कर अपने मुट्ठी में ले लिया..और उसे कस्स के आगे पीछे हिलाने लगी....अर्जुन जैसे अपनी वासना पे काबू नही कर पा रहा था एक पल को
वो कशमकश के घेरे में जैसे चला गया उस वक़्त उसे अरुणा का ज़रा सा भी ख्याल ना आया उसने चाह कर उसे अपने से दूर करना चाहा
पर उसे दर्द उठने लगा क्यूंकी तपोती उसकी धोती को कबका उतारे उसके लंड को अपने हाथो में लेके कस कर कस कर भीच रही थी...

तपोती : हाए दायया इतना मोटा लंबा कैसे हो गया? शायद खेतो में हल् चलते चलते तूने औरत की खेती पे चलाने के लिए ये हल जैसे छोड़ रखा है ? (लंड को मुत्ठियाते हुए)

अर्जुन ने उसके दोनो कंधो को कस कर जकड़ा पर चाह कर भी इतना बलशाली होने के बावजूद उससे अपने से दूर ना कर सका....तपोती ने इस बीच अपने तपते होंठ जैसे अर्जुन के होंठो पे रख दिए..वो उसके मुँह में अपनी जीब डालके चलाने लगती है....अर्जुन इससे बदहवास हो जाता है...

उसका लंड जो रह रहके तपोती के मज़बूत हाथो की पकड़ में दर्द कर रहा था उसे...एक बार फिर जैसे और सख़्त हो जाता है...इसी बीच तपोती उसे कस कर भीच देती है तो एक कर्राहट सी आवाज़ आदम के मुँह से निकलती है...

"हाए सस्स मज़ा आवत रहा है अर्जुन बाबू अफ"........तपोती शरारत भरी हँसी देते हुए लंड को आगे पीछे मुत्ठियाए उसकी तरफ देखती है जो आँखे मुन्दे इधर उधर नज़र जैसे फेर रहा है...

जल्द ही तपोती उसे धकेल देती है...जिससे अर्जुन तुरंत ज़मीन पे गिर पड़ता है....तपोती उसकी टाँगों के बीच खड़ी हो जाती है और फिर अपना ल़हेंगे का ज़रबन खोल देती है...जिससे ल़हेंगा सीधे उसके पाओ के बीच फस जाता है....उसे पाओ से खीचके उतारते हुए वो एक ओर फ़ैक् देती है और फिर...

अर्जुन के मोटे लंबे लंड को एक हाथो से पकड़े उसके उपर जैसे अपनी चूत बिठाने की कोशिश करने लगती है......तपोती के पाओ की दोनो पायल जैसे उसके हिल डुलने से छान्न छान्न की आवाज़ निकाल रही थी...उसी बीच उसने कस कर अपनी कुल्हो को सख़्त किया और हॅगने
की मुद्रा में जैसे लंड को अपने चूत के अंदर दाखिल करते हुए उस पर बैठने लगी...
 
तपोती का चेहरा एकदम लाल और दर्द से भर गया....और उसी पल उसने अपनी गान्ड को जैसे ढीला छोड़ा...तो उसे लंड की सख्ती और
चुभन अपनी चूत के भीतर प्रवेश होते महसूस हुई...उसने कस कर दम साढ़ लिया तो अर्जुन भी जैसे दाँतों पे दाँत रख उठा...

अर्जुन को बड़े कस कर अपने लंड छिल्ने का जैसे जलन सा हुआ क्यूंकी उसे अपना लंड किसी गरम भट्टी में घुस्सते महसूस हो रहा था...."सस्स आहह"......इधर तपोती का भी बुरा हाल था वो ज़ोर से चीखी....अब तक जो कुँवारापन उसने शायद ब्याह तक के लिए बचा रखा था आज वो अर्जुन के लंड की घुसा से फॅट रहा था.....

तपोती ने होंठो को कस कर दाँतों से भीचा और काँपते हुए लिंग पे पूरा ज़ोर दिए अपने भीतर बैठ गयी...जिससे उसे एक कस कर दर्द अपने पूरे शरीर के भीतर लगा....

तपोटी : हाययएए माँाआ मररर गाइिईईई सस्स साहह उम्म्म्म (तपोती जैसे रोने रोने पे हो गयी)

हवस वासना की आग में जैसे दहेक उठी तपोती को शायद चूत के कुंवारेपन और सख्ती का मालूमत नही था...उसे तो लगा कि औरत जब
चाहे मर्द का लंड अपने अंदर लेती है और वैसी ही चुदने लगती है...जैसा वो कयि रात अपने पिता को माँ की चुदाइ करते देख चुकी थी....

दर्द से बिबिला उठी तपोती और जैसे अर्जुन पे ढेर हो गयी.....अर्जुन को उस वक़्त ऐसा लगा कि उसके लंड को तपोती की सख़्त चूत के भीतर किसी चीज़ ने कस कर जकड लिया है दरअसल तपोती ने अपनी चूत को इतना सख़्त कर लिया दर्द से कि उसने लिंग को बुरी तरीके
से जकड लिया...अर्जुन चाह कर भी ना आगे पीछे लंड को कर सकता था और ना ही चूत से लंड को एक इंच भी बाहर खीच निकाल सकता था...

तपोती की जैसे आँखो में वासना का जुनून था अर्जुन को पा लेने का जैसे दीवानापन उसने दर्द में ही अर्जुन के हाथो को खुद की चुचियो पे रखके अपने ही हाथो से उसे दबाने को कहा....."हाए सस्स अर्जुंन्ं तुम्हारा बहुत मोटा और लंबा है बहुत दर्द और तक़लीफ़ हो रही है मुझे पर तुम ठहरे किसलिए हो लगाओ धक्के सस्स दो मुझे वो मज़ा जो एक मर्द एक औरत को देता है अगर ब्याह होता तो भी तो तुम मेरे साथ यही सब करते आख़िर तुम कुछ करते क्यूँ नही? करो ना कुछ करो ना"........बार बार तपोती जैसे उल्झनो में फँसे अर्जुन की ओर देखते हुए कह रही थी....

अर्जुन ने उसके नितंबो को पीछे से कस कर दबाया और एक करारा धक्का बिना जलन की परवाह किए और गहराई तक लगाया....तपोती जैसे चिहुक उठी उसने कस कर जैसे दहाड़ लगाई पूरे खेत में जैसे उसकी चीख गूँज़ उठी....

अर्जुन ने वैसे ही दस बारह करारे धक्के उसकी चूत के अंदर बाहर करने शुरू कर दिए..."सस्स सस्स ससस्स आह अहहह उउररघ्ज्ग
आहह"......तपोती अर्जुन से कस कर लिपटी अपना कुँवारापन खोते हुए धक्को से चीख रही थी...

कुछ पल बाद अर्जुन ने उसे अपनी बाहों में भरा और उस पर जैसे सवार होते हुए उसे अपने नीचे लेटा दिया....उस वक़्त अर्जुन के दिलो दिमाग़ पे जैसे तपोती का क़ब्ज़ा था वो ना जाने कैसे तपोती से खुद को दूर ना कर सका और उसकी चुदाई का जैसे हिकच हिकच के मज़ा लेने लगा...एक पल को उसे अपनी माँ अरुणा का भी ख्याल ना आया...

तपोती को अच्छा लगा कि उसने पहेल कर ली थी...उसने अपने उपर नीचे हो रहे अर्जुन के माथे को कस कर चूमा और फिर उसके होंठ नाक और गाल को फिर उसके चेहरे को थामे उसके आँखो में फुटती वासना और दर्द को देख मुस्कुराने लगी....
 
चूत से लंड बेतरतीब ढंग से अंदर बाहर हो रहा था....लंड पे और चूत पे खून के लत्ते जैसे लगे हुए थे...तपोती की सील टूट चुकी थी उसकी
चूत का कुँवारापन अब खो चुका था...वो झड ज़रूर रही थी पर उसके ऑर्गॅज़म में खून भी निकल रहा था...

तपोती : सस्स और कर और कर्र आह आहह आहह देगी ऐसा मज़ा कोई तुझे अहहह क़िस्ससे ब्याहह करके तुझे ऐसा मज़ा मिलेगा आहह स गाओं की सब कोई तो अपनी चूत पहले ही किसी ना किसी से मरा चुकी आहह किसी ने गाओं के लड़के से किसी ने अपने मंगेतरर से तो किसी ने अपने भाई या पिता से हाहहा

जैसे तपोती चुदते हुए बड्बडा रही थी और अर्जुन उसके उपर नीचे होता हुआ जैसे उसकी बातें सुन रहा था उसे चोद भी रहा था...जब अर्जुन को अहसास हुआ कि अब वो चरम सीमा पे है उसने कस कर तपोती के होंठो से होंठ जोड़ दिए और धक्के करारे और जल्दी जल्दी लगाने लगा...

तपोती : आहह आह हहाई दायया अहाआहह आहह ह्ह बॅस कर्र आ स्स्स आहह फाड़ दी आहह स दर्द्द्द हो रहा हाीइ आहह आहह रुक
रुक्क्क जा आहह आहह कय्या हूँ रहाआ हाीइ तुझी अहह्ा आआआआआहह

अर्जुन : आहह उरर्ग्घ आआआआआआहह

अर्जुन ज़ोर से दहाड़ उठा और ठीक उसी पल वो अकड़ने लगा...तपोती को अपनी चूत के भीतर कुछ गीला गीला और गरम बहता महसूस हुआ उसने मुस्कुराया अर्जुन ने अपना बीज उसके अंदर डाल दिया था...उसने कस कर अर्जुन को अपने बदन से जैसे लिपटा लिया दोनो एकदुसरे के पाओ से पाओ रगड़ते हुए एकदुसरे से जैसे लिपट गये...दोनो के बदन पसीने पसीने हो रहे थे कच्ची मिट्टी के उपर दोनो कुछ देर वैसे ही सुस्ताते पड़े रहे....

जब अर्जुन को अहसास हुआ कि उससे क्या भूल हुई? वो एकदम से तपोती को खुद से छुड़ाए उठ खड़ा हुआ ...उसके उठने के साथ साथ उसका लिंग भी चूत की दरारो को चौड़ा किए हुए बाहर निकल आया...वो हांफता हुआ आँखे बड़ी बड़ी किए उसकी चूत से निकलते वीर्य को देख रहा था....इतने में अपनी चूत से सख़्त कोई चीज़ के निकलने के अहसास से ही तपोती को होश आया और वो जैसे उठी तो चूत के दर्द ने जैसे उसे टीस मारी वो वैसे ही गुप्तांगो पे लगे वीर्य पे हाथ से पोंछती हुई अर्जुन को हक्का बक्का खड़ा देख रही थी...
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अर्जुन : ये तूने क्या किया? तपोती क्या किया तूने?

तपोती : क....क्या किया? प्यार किया और क्या किया?

अर्जुन : नहिी तपोती ये ठीक नही किया तूने तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की तूने ये क्यूँ किया?

तपोती : मुझे यही सही लगा तू मुझसे दूर इसलिए जा रहा था तो मुझे लगा कि शायद ये सब करके तू मेरे करीब आ सकता है

अर्जुन : देख तपोती जो हुआ वो मेरी भूल और तेरी ग़लती थी मैं तुझे किसी भी हाल में अपनी पत्नी स्वीकार नही करूँगा मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना घर बार देखना है मेरी माँ अरुणा ही मेरे लिए सबकुछ है

तपोती को जैसे झटका लगा वो अर्जुन को और कुछ कह पाती...अर्जुन वहाँ से अपनी धोती लिए उसी हालत में खेत से दूर चला गया....तपोती वहीं गिरके रोने लगी....ऐसा लगा जैसे उसे धोका मिला था....

चाह कर भी अर्जुन सबकुछ भुला नही पा रहा था..उसने आज जो कुछ तपोती के साथ किया कल को उसका भरना पड़ेगा उसे ही भुगतना पड़ता....वो घर लौटा तो माँ को बिना कहे वो वहीं बैठके नहाने लगा.....अरुणा ने उससे बात करने की भी कोशिश की पर अर्जुन उस अवस्था में नही था की उसे कुछ कह पाए क्यूंकी वो काफ़ी डरा हुआ था....उसे लगा की तपोती ना जाने कही उसे बलात्कारी ना बोलके या फिर उसकी इज़्ज़त लूटी ऐसा कुछ ना कह कर उसके लिए कोई मुसीबत खड़ी करवा दे क्यूंकी उसने सॉफ इनकार किया था...

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गाओं के मुखिया रामसिंग से ये बात छुपी ना रह सकी...क्यूंकी उसी का घर का नौकर उस दिन तपोती और अर्जुन को उसके खेत में चुदाई करते हुए देख लेता है....उसे विश्वास नही होता कि तपोती अर्जुन के साथ कैसे ज़बरदस्ती कर रही थी..उसने चुदाई का हर एक लम्हा अपनी
आँखो से देखा था....वो ये सब बात मुखिया रामसिंघ को बताके जैसे मज़े लेना चाह रहा था.....उसे डर तो था पर ये बात भी वो जानता था कि तपोती अर्जुन को बेपना चाहती है...

बात सुनके रामसिंघ ने उसी पल जैसे अपने नौकर को एक थप्पड़ कस कर लगाया वो गश ख़ाके वहीं गिर पड़ा....रामसिंघ को मालूम था की अगर अर्जुन को कुछ किया तो ये बात फैल जाएगी कि उसकी बेटी ही तो आगे आगे उसके खेत जाया करती थी उसी ने ही तो ज़बरदस्ती
चुदवाया...अपना कुँवारापन खोई...ये सब सोचते सोचते उसे लगा कि अर्जुन को ज़बरदस्ती धमका कर वो अपनी बेटी से शादी करवा भी नही
सकता क्यूंकी अर्जुन हरगिज़ इसके लिए तय्यार नही इसी कशमकश में उसने एक गहरी चाल चली....घर हुई बेज़्ज़ती से भी ज़्यादा उसे अपनी बेटी के कुँवारापन और उसकी इज़्ज़त खो देने का जो गुस्सा चढ़ा उससे तो अर्जुन बच नही सकता था.....
 
उस रात....

"माँ मैं खेत जा रहा हूँ आजकल सुनने में आया है कि मूसलधार बरसात होने की बड़ी आसार है इससे फसल को नुकसान हो जाएगा अगर रात गये बाअृिश होने लगी तो तू किवाड़ लगाए सो जाना हो सका तो मैं देर रात्त आउ मैं आवाज़ लगाउन्गा तू खोल देना किवाड़"...............अर्जुन कहता हुआ आपना गमछा ओढ़े खेत के रास्ते चला गया....

"ठीक है बेटा ध्यान रखना"........माँ चिल्लाते हुए उसके जाने के वक़्त बोल उठी....

उसने बेटे के जाते ही दरवाजा लगाया और लालटेन जलाए तकिया ठीक किए उस पर सर रखकर सोने लगी....इकलौता बेटा इतनी रात गये
अकेले अंधेरे में खेत की तरफ गया काश वो ना जाता...ये सोचते सोचते उसकी आँख कब लग गयी उसे मालूम नही चला....

कंबल ओढ़े अपने दो प्यादो के साथ....मुखिया रामसिंग ने अर्जुन के घर की तरफ रवाना दिया....वहाँ पहूचके उसने घर का जायेज़ा लिया सब कुछ खामोशी में जैसे वीरान था....उसने दरवाजा लगा हुआ देख छप्पर पे चढ़ने के लिए सीडिया लगाई.....जैसे तैसे चढ़ते हुए उसने अपने प्यादो को घर में कूदने का इशारा किया....

वो दोनो नीचे धप्प से कूदे...तो एका एक अरुणा की नींद टूटी उसने उठते हुए लालटेन जलाई ही थी की उसे दो मर्द दिखे वो चीख उठी तो उन दोनो ने आगे बढ़ते हुए उसके मुँह को कस कर दबोचा....उम्म्म म्‍म्म्मम......अरुणा की आवाज़ जैसे गले में ही घूंटति रह गयी..उसने आखे बड़ी बड़ी किए दोनो की तरफ एक बार गौर किया दोनो उसे पहचान के लगे वो मुखिया रामसिंघ के नौकर थे....

एक ने आगे बढ़ते हुए दरवाजा खोला और अंदर मुख्य रामसिंघ दाखिल हुआ..उसके भीतर आते ही नौकर ने दरवाजा फिर लगा दिया...."क्यूँ रे साली अरुणा? अकेले अकेले आराम फरमा रही है तोरे बेटे के बदौलत हमरी बेटी की जिंदगी जो खराब हुई वो आज तेरी इज़्ज़त उतारके हम ना ली तो हमरा नाम रामसिंघ नही साला तोके किसी को मुँह दिखाने लायक हम ना छोड़ेंगे आज"...........

.अरुणा को ख़ौफ्फ सताने लगा वो समझ चुकी थी उसने अब हाथ पाँव चलाना शुरू कर दिया...उसने कस कर मुँह पे हाथ रखे हुए नौकर के हाथो को कस कर काट लिया

तो नौकर चिल्ला उठा...एका एक उठ खड़ी होते हुए चीखने लगी....मुखिया रामसिंघ ने बाघ की तरह उस पर झपट्टा मारा और उसे गिरा डाला..."तुम दोनो बाहर जाके जायेज़ा लेते रहो कोई आने ना पाए जाओ"....दोनो नौकर बाहर निकल गये फिर किवाड़ बाहर से ही लगा दिए...पहरा देने लगा

अरुणा बड़ी बड़ी आँखे किए जैसे उसे खुद से दूर करने लगी रामसिंघ उसके साया को कस कर लगभग फाड़ता हुआ खीच के उतारने लगा......"बड़ी विधवा बनती है साली आज दिखात है तुझे"......उसने कस कर जैसे अरुणा को निवस्त्र कर दिया एक झटके में अरुणा उसके सामने नंगी खड़ी हो गयी...अरुणा ने चीखते चिल्लाते हुए मदद की जैसे गुहार लगाई उसने अपने छातियो को एक हाथ और दूसरे हाथ से अपने गुप्ताँग को छुपाए टाँगों के बीच हाथ रखकर घर के इधर उधर दौड़ने लगी...

उसके बदन को देखते ही जैसे रामसिंघ पागल सा हो गया और उसको कस कर पकड़ लिया अरुणा उसके हाथ किसी भी तरीके से नही आ
रही थी तो उसने कस कर एक थप्पड़ उसके चहहरे पे लगाया गश खाए अरुणा ज़मीन पे गिर पड़ी...राम सिंग अपने कपड़े उतारने लगा था....

तो इतने में उसे किवाड़ खुलने की आवाज़ हुई...उसने पाया कि उसका बेटा अर्जुन आ चुका था...देखते ही देखते रामसिंघ के जैसे टट्टो में जान ना रही...उसकी पकड़ ढीली हुई तो अरुणा ने एक करारा धक्का उसके पेट से देते हुए उसे अपने उपर से दूसरी ओर गिरा डाला...और उसी नंगी हालत में बेटे के बदन से लिपटके रोने लगी.....अर्जुन का तो जैसे खून खौल उठा....रामसिंघ को अहसास नही था कि उसके दोनो नौकर उसे अंदर आने से रोक नही सकते थे...
 
अर्जुन ने उसे झींझोड़ा अरुणा ने उसके कंधे पे हाथ रखके उसे संभाला...अर्जुन की सुर्ख गुलाब आँखे रामसिंघ की ओर
उठी...."य्ाआ"......दहाड़ते हुए अर्जुंन्ं वैसी ही तपोती की बेजान लाश को छोड़....उस पर जैसे टूट पड़ा...

रामसिंघ को पलभर का मौका ना मिला और ठीक उसी पल अर्जुन ने उसके गले को कस कर दबोच दिया और उसके हाथ की छुरी अपने हाथो में खीचके उसके पेट में कयि दफ़ा छुरी अंदर बाहर करते रहा...लाहुलुहान दहाड़ते हुए वहीं दर्द से तड़प्ता रामसिंघ गिर पड़ा....उसके
पेट से खून बेहिसाब से बहे जा रहा था....वो भी दर्द से तड़प्ता हुआ छटपटाता वहीं दम तोड़ चुका था...

अरुणा ने अर्जुन के हाथो से कस कर छुरी छीनी और उसे एक ओर फैका जिसपे खून लगा हुआ था...उसने बेटे के दोनो हाथो को खून से रंगा हुआ देखा..."बेटा चल बेटा भाग चल यहाँ से वारना गावंवाले तुझे मार डालेंगे कोइ हमपर यकीन नही करेगा ये तूने क्यूँ किया? क्यूँ किया आख़िर ऐसा?"......बौखलाए बेटे को उसी रात अरुणा खीचते हुए घर से लिए बाहर दौड़ पड़ी...पीछे छूटती चली गयी तपोती की लाश जो घर में उनके पड़ी हुई थी....

उसने देखा कि गाओं वाले मशाल लिए रात गये उनके घर की तरफ ही आ रहे थे...अंधेरे का फ़ायदा उठाए वो दोनो जैसे तैसे अपने इक्का दुक्का सामान की गठरी लिए भागें जा रहे थे...अर्जुन जानता था गावंवाले उन्हें मुखिया और उसकी बेटी का खून का दोषी मानते....अरुणा को बचाने के लिए ही उसके पाओ वहाँ से भाग खड़े हुए थे...

वो दोनो जंगल ही जंगल के रास्तो से भागते भागते नहर के करीब पहुच चुके थे...उन्हें जितना हो सके उतना दूर इस राज्य को जल्द से जल्द छोड़के जाना था....अपना घर खेत सबकुछ वैसा का वैसा छोड़ जान बचाने के डर से दोनो वियावान जंगल में उस गहरी हो रही रात को बस भागें ही जा रहे थे जब दोनो की साँस उखड़ने पे हो गयी तो एका एक नहेर के पास किनारे तट पे पत्थरों पे बैठते हुए हाफने लगे....अरुणा को जैसे साँस लेने में तक़लीफ़ हो रही थी...नहेर से बहता पानी का शोर एक मात्र सुनाई दे रहा था इस खामोश वीरान जंगलों में तो कही दूर कोई जानवर रो रहा था....उन्हें महसूस हुआ की उनका पीछा करता अब कोई नही आ रहा तो वो दोनो वहीं झाड़ियों के पास जाके छुपे रहे...बार बार झाड़ियों से दूर झाँक झाँके देख रहे थे लेकिन उस नीम अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा था...जैसे खामोशी ही चारो तरफ छाई हुई थी....

अपनी अपनी साँसों पे काबू पाते हुए...अर्जुन ने एक झलक घुटनो पे दोनो हाथ रखकर साँस लेने की नाकाम कोशिशें की...फिर वो जब शांत हुआ तो सीधा होके उसने पेड़ के सहारे टैक लिए हुए माँ को देखा....फिर उसके पास आए उसके गाल को सहलाने लगा....माँ जैसे थककर हान्फ्ते हुए पसीने पसीने हो रही थी आँखो में जैसे दहशत सिमटी हुई थी...

अर्जुन : माँ माँ तू ठीक है माँ (अपने हाथो पे लगे खून को देख अर्जुन फिर एक बार दुखी हो गया)

उसने पास की नहर से बहते पानी के भीतर अपना हाथ डाला और अपने हाथो को धोते हुए वापिस किनारे घने जंगलों में आया....माँ की आँखो से आँसू थम जाने का नाम नही ले रहे थे....

अर्जुन : माँ होश में आओ

अरुणा : बेटा इतना बड़ा हादसा हो जाएगा मैने सोचा नही था

अर्जुन : माँ अगर मैं वक़्त पे नही आता तो शायद आज कोई अनर्थ ही हो जाता..जाने दो उस खेत और घर को माँ मानते है उसमें हमरे बाप
की पसीने और खून की मेहनत थी पर अब वहाँ से भागने के अलावा हम कर भी क्या सकते थे?

अरुणा : मुझे बहुत डर लग रहा है मुझे यकीन नही होता कि मुखिया रामसिंघ इस हद तक गुज़र जाने वाला था....अगर तू सही वक़्त पे ना आता तो शायद तुझे मेरी लाश ही घर लौटते हुए मिलती
 
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