Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 25 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

"माँ आज चलोगि?"..........

."कहाँ पे?"........

."आज दीपावली से पहले 10 दिनो का मेला लगा है चलते है ना".........\

."नही बेटा तू जा घूम फिर आ मुझे ज़्यादा चलने को डॉक्टर ने मना किया है ना"..........

."अरे माँ बाइक पे चलेंगे"........

."ना रे ना बहुत ही भीड़ होती है मैं ज़्यादा चल ना पाउन्गि".......

."अच्छा माँ पर मैं जा रहा हूँ क्यूंकी दिल्ली में तो कभी मेला नही देखा अब मेला तो ऐसे छोटे शहरो में ही लगता है"........

."ठीक है तो फिर तू घूम आ"......

.मैं थोड़ा मांयूस सा हो गया क्यूंकी माँ जाना नही चाह रही थी उसे वैसे भी शोर शराबा पसंद नही था...

मैं मेला पहुचा वाक़ई काफ़ी भीड़ लगी हुई थी...बड़े बुड्ढे बच्चे सब जैसे मज़ूद थे वहाँ...पर अकेले अकेले माँ के बगैर अच्छा भी नही लग रहा था....मैने देखा कि मौत का कुआ पे भीड़ लगी हुई है इसलिए मैं वहाँ खड़ा होके मौत का कुआ पे चलती गाड़ी और बाइक्स को गोल गोल
घूमते हुए देखने लगा...वाक़ई काफ़ी मज़ा आ रहा था मुझे....जब ज़्यादा भीढ़ बढ़ गयी तो पैसा देके मैं वहाँ से बाहर उतरा....

उसके बाद देखा कि जाइयंट वील चल रही है...सोचा कि उसका भी एक राइड ले लूँ आज जैसे मुझपे बच्पना सा चढ़ गया था...लेकिन फिर कदम ठिठक गये माँ होती तो मज़ा आता क्यूंकी उसमें दो जनों के बैठने लायक सीट्स थी...मुझे माँ के बगैर अच्छा ना लगा तो मैं दूसरी ओर चल पड़ा...अचानक देखता हूँ कि एक टेंट लगा हुआ है और इसके बाहर लिखा है सिद्दी बाबा मुझे लगा शायद जादू टोने वाला कोई जादूगर
हो....तो बाहर ही खड़ा एक लड़का सबको पर्चिया बाँट रह था...मेरे पास आके बोला "सर आप जाएँगे अंदर "......

.मैं ना नुकुर करने लगा...तो उसने कहा कि पैसे नही लेते वो काफ़ी पहुचे हुए है ऐसे ही लोगो के मश्तिक को देखके सबकुछ बता देते है...

मेरी थोड़ी क्यूरीयासिटी जाग गयी....पैसा नही लेने वाला ज़रूर कोई पहुचा हुआ होगा...सोचा अपने भविश्य के बारे में थोड़ा जान लूँ पर दिल नही मान रहा था फिर भी ना जाने क्यूँ पैर टेंट की तरफ बढ़े? मैं अंदर घुसा तो देखा एक औरत अपने पति के साथ निकल रही थी....पेट
उसका काफ़ी हद तक निकला हुआ था सॉफ था कि वो गर्भवती थी मैं थोड़ा आड़ में हो गया ताकि उसे धक्का ना लग जाए फिर उन दोनो के जाते ही अंदर दाखिल हुआ

एक लंबी लंबी दाढ़ी और बालों वाला ध्यान में जैसे आँखे मुन्दे लाल रंग का कपड़ा पहने हुए बैठा था...एक अज़ीब सी महेक आ रही थी शायद किसी अगरबत्ती की खुश्बू थी....उसके बीच जहाँ वो बैठा हुआ था वहाँ अज़ीबो ग़रीब सामान पड़े हुए थे एक पल को हुआ जादू टोना वाला तो नही....
 
तो उसने एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ आँखे खोले देखा...तो मैं थोड़ा घबरा गया..."आओ बेटा बैठो आओ बैठो आदम बेटा".......उसे मेरा नाम कैसे मालूम था मुझे चौंकता देख वो फिर मुस्कुराया

बाबा : बेटा मुझे तुम्हारी ज़िंदगी अगला पिछला सब मालूम है बैठ जाओ आके डरो नही मैं कोई टोना टोक वाला काला जादूगर नही हूँ

मैं एकदम सखते में पड़ गया....एक पढ़ा लिखा इंसान था मैं लेकिन आज जैसे अंधविश्वास को यकीन में तब्दील होते देख रहा था...मैं उसके करीब बैठ गया...

."मन में तो हज़ार सवाल लिए आए हो क्या क्या पूछ पाओगे मुझसे?"...........

"आ..आपको कैसे मेरा नाम और सबकुछ मालूम है"........

"हाहाहा बस जो सिद्दी मैने प्राप्त की है ये उसी का नतीजा है खैर बेटा संकोच ना करो मैं पैसे नही लेता मैं उन पंखंडी बाबओ में से नही हूँ
फिर भी मन का सवाल अगर खुद ही पुछोगे तो शायद संतुष्ट महसूस करोगे"........

.मेरे से बोल ना बन पाया

मैं चुपचाप थोड़ा वक़्त खामोश रहा उसके बाद मैने अपनी चुप्पी तोड़ी...

आदम : बस भविश्य (जैसे गौर से देख रहे थे मुझे बाबा)

बाबा : ह्म तुम्हारा भविश्य तो तुम्हारी माँ बनी पत्नी के साथ प्युरे ज़िंदगी का वक़्त बीतना लिखा है बेटा

आदम : क्क...क्या? ये आप क्या कह रहे है? आप इतना कुछ (मेरी माँ का नाम लेने से और उसके साथ हुए शादी के बारे में उसे कैसे मालूम था? मैं एकदम शॉक्ड )
!
 
बाबा : मैने कहा ना मुझे अगला पिछला सब मालूम है इसलिए चिंता ना करो अगर कोई मुसीबत भी होगी तो भी तुम्हें अवगत करा देता वैसे तुम और तुम्हारी माँ का संबंध करीब 2 सालो से चल रहा था इस बीच तुम्हारी शादी हुई थी एक बेवफा औरत से उसने तुमपे बहुत दुख ढाए

आदम : जीि जब आपको मालूम है तो फिर मेरे कहना वाजिब नही फिर तो

बाबा : ह्म बहुत कष्ट में है वो उसका रिश्ता इसलिए टूट गया क्यूंकी वो माँ बन गयी और वो भी तुम्हारी संतान की

आदम : क्या? इसका मतलब

बाबा : तुम्हारे कुल 4 बच्चे है और ये सब तुम्हारे संबंध जोड़ने से हुए है पहला तुम्हारी मौसेरी भाभी के साथ जिसे तुम दिलो जान से प्यार अब भी करते हो जिसका नाम राहिल है और दो जुड़वा औलाद तुम्हारी तबस्सुम दीदी को तुमसे हुए है...और एक अब उस औरत को हुआ है तुम्हारा

आदम जैसे खामोश चुपचाप आँखे बड़ी बड़ी किए थूक घोंट रहा था बाबा जी को इसका मतलब ये भी मालूम था कि उसका व्यभाचारी रिश्ता है

बाबा : व्यबचार रिश्ता तुम्हारी ताहिरा मौसी से शुरू हुआ है उसके बाद फिर उसकी बहू यानी तुम्हारी भाई की बीवी उसके बाद तुम्हारी बड़ी बुआ की बेटी यानी तुम्हारी दीदी से और फिर अब एक सौतेली रिश्ते में लगी तुम्हारे घर जो काम करने आती है उससे जिसका नाम लाजो है
क्यूँ सही कह रहा हूँ ना (जैसे मुस्कुराते चले गये मुझे वाक़िफ़ करते हुए मैं सिर्फ़ हां में सर हिला रहा था)

बाबा : तुम वासना में डूबे रहने वाले लड़के थे तुम्हारी माँ की मुहब्बत ने तुम्हें बदला और ये सब चीज़ो से तुम्हें वाक़िफ़ एक वेश्या ने करवाया था जो मज़बूरी में वो काम में उतर गयी थी जिसका नाम चंपा था उसे तुम आख़िर में मिलने भी गये थे उसने गंदी बीमारी के वजह से अपना
दम तोडा था आख़िरत में उसने तुम्हें बहुत याद किया था...कहो सच कह रहा हूँ कि नही?

आदम : जब आप सब जानते है तो फिर कहना कैसा?
 
ऐसा लग रहा था जैसे मैं फिर किसी दुख में डूब सा गया था...बाबा ने मेरे कंधे पे एकदम से हाथ रखा और मुझे शांत होने को कहा फिर वो कुछ ऐसा बताने लगे जिसे मैं बड़ी गौर से सुन रहा था इस बीच खेमे में उसका शागिर्द आया तो बाबा ने उसे बाहर जाने को बोल दिया और कहा की 1 घंटे तक कोई अंदर ना आए...वो सुनके अनुमति लिए बाहर चला गया....

बाबा : तुम्हारी किस्मत में बार बार ऐसे संबंध बनना और व्याबचारी रिश्तो का आना साधारण बात नही थी वासना और काम क्रिया की हद जब बढ़ जाए तो वो संबंधो के हदो को पार कर जाती है और वो इन रिश्तो को नये नज़रिए से देखने लगती है...ये तुम्हारी किस्मत थी...लेकिन इन्ही रिश्तो के चलते तुम्हें अपने काई पुराने रिश्ते नातो को खोना भी पड़ गया....आज तुम भगवान की दया से अच्छा कमाते हो...और तुम्हारे
पास अब पत्नी के रूप में तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है ये आसान बात नही....दो आत्माओ का मिलन जैसे इस जनम में हुआ है....मुझे मालूम था
कि तुम यहाँ आओगे मैं तुम्हारा ही जैसे इन्तिजार कर रहा था ताकि तुम्हें मालूम चल जाए अपने वजूद के बारे में...

आदम : कैसा वजूद? (मैने एकदम से कहा)

बाबा : धीरज रखो मैं दिखाउन्गा तुम्हें तुम्हारी माँ अंजुम का इस जनम में तुम्हारे साथ होना कयि कठिनाइयो से तुम दोनो का गुज़रना (राज़ौल और निशा की आड़े आने की कहानी बताते हुए) इसलिए था कि इस जनम का तुम दोनो ने एकदुसरे से वादा किया था और भगवान ने तुम्हें
फिर एक संग मिलाया लेकिन चंपा आज इस जनम में तुम्हारे सामने वैश्या थी पर उस जनम में उसी के बदौलत तुम्हारी आत्मा तुम्हारी माँ की आत्मा से अलग हुई थी

आदम : क्क...क्या? चंपा पर आप ऐसा कह कैसे सकते है? उसने मुझे मेरी माँ के प्रति जो नज़रिया दिलवाया था उसमें पहले तो वासना थी लेकिन धीरे धीरे मैं माँ के प्रति उससे सच्चा प्यार करने लगा जैसे एक गैर मर्द एक औरत को करता है
 
बाबा : जानता हूँ क्यूंकी तुम दोनो की आत्माओ का मिलन जो एकदुसरे से था....वो यक़ीनन तुम्हें अपने कोख से जन्मी ताकि तुम्हें ज़िंदा हो जाओ और उसी के खून से बनो और उसके ही बन जाओ चंपा तुम्हारी ज़िंदगी में तुम्हारी माँ के बाद अहमियत रखती है आज भी जैसे उसकी मौत का गम जैसे तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग़ पे छाया हुआ है आज भी तुम उससे जैसे मिलने के लिए छटपटाते हो

आदम अपने आँसुओं को पोंछ रहा था....

बाबा : उस जनम में तुम माँ-बेटों की आत्मा एकदुसरे से अलग हुई तो उसी ने ही ये प्रण लिया था कि वो तुम दोनो को एक करेगी लेकिन भगवान से उसने एक ये भी इच्छा माँगी कि चाहे उसका दूसरा भी जनम क्यूँ ना हो? वो तुम्हारी ही बनके रहे चाहे तुम उसे अपनी घर की दासी ही क्यूँ ना बना लो? या फिर एक सौतन बनके ही उसे क्यूँ ना अपना लिया जाए?

आदम : लेकिन ऐसा कैसे मुमकिन है? मैं उसके प्रति आकृषित हुआ ज़रूर था...पर माँ को उसके बारे में तो क्या किसी भी मेरे रिश्तो के बारे
रत्तिभर नही मालूम

बाबा : ह्म और ना मालूम चलेगा....लेकिन जो सच है वहीं मैं तुम्हें बता रहा हूँ...अपना हाथ सीधा करो और मेरी तरफ लाओ

आदम ने ठीक वैसे ही अपना एक हाथ सीधा किया उनकी तरफ़ बढ़ाया...बाबा ने उस हाथ पे आँखे मुन्दे कस कर उसके थामा....

"आँखे मूंद लो अब तुम उस सदी में जाओगे जिसकी कड़ी तुम्हारे इस जनम से ताल्लुक रखती है".......सुनके पहले तो आदम मन ही मन
हैरत में पड़ गया...क्या पिछला जनम ऐसा हो सकता है? जब इतना कुछ उन्होने बता दिया तो फिर शायद ये भी.....

कह ना पाया आदम और उसने अपना हाथ सीधा रखा बाबा ने झट से उसे कस कर दबाया और कुछ पढ़ने लगे...आदम आँखे मूंद चुका था..ऐसा लग रहा था जैसे कानो के आस पास हवाओ का शोर जैसे कितना तेज़ हो रहा हो....और एकदम से अचानक जैसे वो किसी गहरी
अंधेरी खाई में गिरता जा रहा हो उसे कुछ होश नही आ रहा था जैसे सपना देख रहा हो...उसका बदन सिहर उठ रहा था...

और ठीक उसी पल उसे सफेद सा कुछ चमकता हुआ दिखा और फिर !

चारो तरफ जहाँ नज़र दौड़ाओ तो दूर दूर में उचे पैड थे....एक नहेर ठीक बीच में से बह रही थी...उनपे उधर से इधर आने के लिए मानो बड़े बड़े पत्थर जैसे एक दूसरे के फास्लो से कुछ ही दूरी पे स्थित थे..और उनके बीच से जैसा बहता पानी जो दूर कही किसी नदी से मिल रहा था...

और ठीक उसी नहेर के बगल में एक सड़क जा रही थी....कच्ची सी सड़क....एक औरत महेज़ एक लाल रंग की साड़ी अपने बदन से जैसे लिपटाये पहनी हुई थी कमर में उसके फँसा एक मटका पानी से भरा हुआ था जिससे मज़बूती से पकड़े हुए वो आँचल किए हुए उस सड़क पे चल रही थी...
 
कुछ ही दूरी पे चलते चलते खेत शुरू हो गया....वो औरत वहाँ ठहर कर दूर खेत में एक लड़के को काम करते हुए देखने लगी....जो कुल्हाड़ी से काम कर रहा था चिलचिलाती धुंप की गर्मी में जैसे उसका बदन पसीने पसीने हो रहा था...उसका कठोर बदन इस बात का गवाह था की उसने ये कसरती बदन इस कड़क धुंप में इन खेतो में काम करके बनाया है...

वो औरत जब उस लड़के के पास पहुचि तो उसने कमर से अपना मटका खेत के पास बनी मचान के वहाँ रखा और चलते हुए पास की उस गड्ढो में भरे पानी से अपना मुँह धोते हुए अपने बाज़ू और कलाईयों को भी जैसे गीला करने लगी....उसने सिर्फ़ साया कर रखा था जो मुस्किल से सिर्फ़ उसके दोनो छातियो को छुपाए हुए था जब उसने बगल उठाए तो उसके कांख के उगते बाल दिखे....

इस बीच उस लड़के ने कुल्हाड़ी फैकि और हांफता हुआ जब उस ओर देखा तो पाया कि वो औरत अपने मुँह को पानी से धो रही थी अपने बदन को पानी से गीला कर रही थी...लड़के के चेहरे पे एक मुस्कुराहट आई और उसने आवाज़ दी

"मम्मी मम्मी"........इस आवाज़ को सुन वो औरत सामने खड़े उस लड़के को पुकारते देखती है

लड़का उसे इशारे से आने की बात कहता है..फिर अपना गमछा पास से उठाके अपना पसीने से गीला चेहरा और हाथ पोंछते हुए खेतो के बीच से बाहर निकलते हुए मचान की तरफ आता है....

लड़का अपनी धोती को ठीक करता हुआ जैसे अपने उभरे हुए लंड को धोती के उपर से ही खुजा रहा था...इस बीच उसने मज़बूती से अपने
लंड को धोती के उपर से ही दबाना शुरू किया और फिर जब औरत के तरफ आया तो एक दम से अपना हाथ अपने धोती से हटा लिया...

औरत हूबहू दिखने में अंजुम थी...उसने एक बार पलटके लड़के की ओर देखा और मुस्कुराते हुए उसे बैठने को बोली....लड़का अपने साथ एक पोटली लाया हुआ था उसे खोलते हुए उसने कुछ रोटिया और सब्ज़िया निकाली....लड़का उसका बेटा था और वो हूबहू जैसे आदम ही था....

"अरे बेटा अर्जुन तूने खाना अब तक क्यूँ ना खाया?".......

"हमको पता था माँ कि तुम आओगी इसलिए हम तुम्हारा ही इन्तिजार में बैठे हुए थे"........

."अरे पगले अगर हमे देरी हो जाती तो .......

."हम जानते है तू देरी नही करती और हम ये भी जानते है कि तेरे गले से एक नीवाला भी मुझे खिलाए बगैर नही जाता"........दोनो माँ-बेटे जैसे एकदुसरे को देखके मुस्कुराए
 
अर्जुन की नज़र अपनी माँ की लपेटी हुई उस पसीने पसीने साड़ी पे पड़ी जिससे उसकी माँ की छातियो का उभार और निपल्स सॉफ दिख रहे थे....जब बेटे को माँ ने नीवाला दिया तो उसके नज़रों का पीछा करते हुए उसे अहसास हुआ कि बेटा उसके छातियो को घूर्र रहा है...उसने झिझकते हुए अपने साड़ी से जैसे और कस कर छातियो को लपेट लिया....

"बेटा ले खा लेना क्या घूर्र घूर्र के देख रहा है??".......अर्जुन जैसे सकपकाया..उसने नज़रें झुका ली

"क...कुछ नही"......माँ जैसे मन ही मन मुस्कुरा पड़ी

अर्जुन : माँ तू इतना दूर गाओं से यहाँ आती है सिर्फ़ हमरे खाने के लिए तू जानती भी है कि गाओं का माहौल कितना खराब है? तू जवान औरत है और अधिखतर गाओं के मर्द तुझे घुरते है आगे से भी और पीछे से भी

अर्जुन के ऐसा कहने पे माँ शरमाई नही बल्कि उसे जैसे सुनके अच्छा ना लगा...."अब हम का करे बिटवा? जिस औरत का मर्द स्वरगवास सिद्धार ले उसके पीछे तो आने मर्द ऐसे ही पड़ते रहते है ये तो इस गाओं की रीत जैसे चली आ रही है"..........माँ ने उदासी सा मुँह बनाया

अर्जुन : मेरी प्यारी माँ तू उदास काहे होती है अगर तुझे कोई इस निगाहो से देखे तो हम उसकी आँखे ना नोच ले (माँ के चेहरे को सहलाते हुए)

माँ : हम जानते है तू हमरी बहुत परवाह करता है....पर लोग ज़ालिम है हम माँ-बेटों पे भी जैसे शक़ करते है उस दिन तू नदी में डुबकी लगा रहा था तो हमरे साथ जो औरातिया थी वो मज़ाक करते हुए हमको क्या बोली पता है? कहती है कि भर जवान बेटा घर में पाली हुई हो बहू ना लाने के बजाय खुद जवान बैठी हुई हो

आदम जैसे हंस पड़ा.....माँ भी मुस्कुरा पड़ी...."हम जानते है माँ हमपर ये गाओं तरह तरह का लांक्षन लगाता है....अब क्या करे? इसी में तो हमे जीना है ये खेत ये गाओं ही तो हमारा सबकुछ है..पिता जी का तो साया जबसे सर से उठ गया है तबसे तू और मैं ऐसे ही तो बस खुद में जीवन व्यतीत कर रहे है..."....एक पल को माँ अपने बेटे अर्जुन की तरफ मुस्कुराइ देखने लगी

माँ : तू अगर ना होता तो हमारा क्या होता? आज तू है तो हमे अपने इज़्ज़त का कोई भय नही वरना मुखिया जो है गाओं का तू तो जानता है वो कितना गिरा हुआ नीच आदमी है गाओं की किसी भी औरत को वो नही बखसता बस तू किसी तरह से पैसे इकट्ठा कर तो हम किसी और
राज्य में जा पाए

अर्जुन : हां माँ मैं ऐसा ही करूँगा

इस बीच अर्जुन उठके मुँह हाथ धोने के लिए उठा...तो माँ ने पास रखे लोटे से उसके हाथ को धुल्वा दिया फिर अपने साड़ी के आँचल से
उसके हाथ और फिर मुँह को पोंच्छा....अर्जुन ने भी लोटे के पानी से माँ के मुँह को धोया....उन दोनो का प्यार जैसे अटूट था....
 
अर्जुन अपनी माँ अरुणा के साथ गाओं में ज़िंदगी बसर कर रहा था....कहने को पिता का दिया खेत और छत था....लेकिन उस छत और उस खेत पर मुखिया की नज़र थी जिससे किसी ज़माने में अर्जुन के पिता ने उधार लिया हुआ था....मुखिया को पता था कि जब तक अरुणा के साथ उसका बेटा अर्जुन है तब तक उसके पास फटकने के भी उसकी हिम्मत नही क्यूंकी अर्जुन से गाओं का हर मर्द घबराता था....एक बार
उसकी माँ अरुणा ऐसे ही दोपहरी में खेत आ रही थी जब गाओं के हरामी मदिरा पिए हुए मर्दो ने उसका रास्ता रोका...लेकिन वो उसके आबरू पे हाथ डाल ही पाते कि अर्जुन ने आके उन चारो को छटी का दूध याद दिला दिया...तबसे लेके आजतक किसी का साहस ना हुआ की अर्जुन के घर की औरत अरुणा को कोई छेड़ दे....

अर्जुन अपनी माँ अरुणा सा अटूट प्यार करता था....उसने अपनी माँ की झोली में जैसे सारी खुशिया लाके दी थी....उसकी माँ और वो उस ग़रीबी हालत में अपना जीवन गुज़र कर रहे थे.....अर्जुन भर जवान लड़का था.....और उसकी माँ अरुणा भी 38 वर्षीए हो गयी थी....जब पति ज़िंदा था तो उसे काफ़ी दुख उठाने पड़े...लेकिन जब से अर्जुन ने होश संभाला तबसे वो अरुणा से दूर दूर रहने लगा...यही वजह थी कि
बढती मदिरा की लत और उधारी ने उसे अपनी बीवी और बेटे से अलग कर दिया....कुछ ही दिन बाद उनका देहांत हो गया और फिर अर्जुन ही पूरे खेत को संभालने लगा....उसने पिता की उधारी को पाई पाई करके लौटा दिया....

माँ अरुणा के साथ रहते रहते उसने कभी किसी गैर लड़की को आँख उठाके भी ना देखा था हालाकी उसके बदन पे सिर्फ़ उसके कमर से टाँगो तक सिर्फ़ एक सफेद धोती ही बँधी हुई होती थी...और वो कुछ नही पहनता था....गाओं की लड़किया उसे काफ़ी घूर्रती थी पर वो किसी को भाव नही देता था....वो तो जब खेत से थका हारा घर लौटता था तो उसे तो सिर्फ़ अपनी माँ ही पे ध्यान एकत्रित रहता था....वो उसके बदन को लिपटी साड़ी में जैसे हरपल घूर्रता रहता था....अरुणा इस बात को समझ सकती थी...वो विधवा होने के इतने दिनो बाद भी जैसे अपने
दिल को काबू किए हुई थी...उसके अंदर भी तंन की गर्मी जैसे ज्वाला बनके निकलना चाह रही थी...लेकिन उसे किसी भी पुरुष की तरफ
कोई लगाव नही था...एक तो विधवा होने से सबने उससे किनारा कर लिया था और दूसरी ओर बदनामी का डर उसे हरपल सताए रहता था...

लेकिन धीरे धीरे बेटे की नियत में बदलाव देखते हुए वो समझ रही थी कि उसका बेटा अब जवान हो चुका है...उसने बेटे की धोती को कयि बार उतरते वक़्त उसके मोटे लंबे झूलते लिंग को देखा भी था....पर वो उसका बेटा था जिसकी वजह से वो खुद को जैसे कोस्ती थी...

लेकिन बेटे के अंदर की ज्वाला उससे कहीं ज़्यादा उठ रही थी और उसने अपनी माँ अरुणा को अपने दिल की हसरत बना लिया था....माँ विधवा होने के बाद भी आज इतने सालो बाद भी कितनी जवान और सुंदर दिखती थी..मिट्टी का घर था इसलिए बीच में परदा डाले जब वो
नहाया करती थी...तो उस वक़्त बेटा अपनी माँ को चोर नज़रों से झाँकके देखता था वो उसे केयी बार नंगा नहाते वक़्त देख चुका था इसलिए उसके दिल की हसरतें काई ज़्यादा उसपर हावी हो रही थी...

उस दिन सुबह 5 बजे का वक़्त था.....गीली साड़ी को जैसे अपने बदन से अलग करते हुए अरुणा भर भर मटके का पानी अपने बदन पे
उडेल रही थी....इतने में मोमबत्ती की रोशनी में बेटे ने देखा कि माँ परदा किए नहा रही है पर्दे से ही उसकी नगन परछाई बेटे की तरफ थी जो की परछाई में उसके छातियो को घूर्र घूर्र के देख रहा था....
 
अर्जुन ने दबे पाओ जैसे तैसे पर्दे के आड़े अपना सर अंदर की ओर किया...तो देखा कि उसकी माँ एकदम मदरजात नंगी भीगे बदन नहा रही थी....वो अपनी बगलो पे हाथ मलते हुए अपने झान्टेदार चूत में भी जैसे हाथ घुसा रही थी...अर्जुन ये सब देखके अपने धोती के उपर से
ही अपने लंड को दबाने लगा.....अरुणा हमेशा की तरह उसके सोते वक़्त वो इसी बेला (वक़्त) नहाया करती थी...

एक पल में जैसे ही वो एकदम से अपने बेटे को खुद को घुरते हुए पाई तो चिल्ला उठी....

.अर्जुन ने आगे बढ़के माँ के मुँह पे हाथ रखा और उसे चुप किया माँ ने उसे पीछे धकेला और कस कर उसके चेहरे पे थप्पड़ मारा

"तुझे शरम नही है अपनी माँ को ऐसे देख रहा है"............अर्जुन की आँखो से आँसू जैसे बह निकले वो उठा और पर्दे से बाहर निकल गया....

उसी वक़्त अर्जुन खेत चला गया....अरुणा को बाद में अपनी ग़लती का अहसास हुआ लेकिन उसे ये भी लगा कि वो उसका सगा बेटा है . वो अपनी माँ को ऐसी नंगी क्यूँ नहाते वक़्त देख रहा था? एक पल को उसे लगा कि शायद जवान लड़का है कदम तो उसके भी बहेक रहे है.....सुबह का निकला बेटा अभी तक घर लौट कर नही आया था....उसने आज फिर पोटली बाँधी और उसकी चिंता करते हुए खेत पर पहुँची

जहाँ खेत में हल ज़ोर ज़ोर से चलाते हुए जैसे चुपचाप कठोर बना अर्जुन काम किए जा रहा था...माँ ने दूर से ही उसे कयि बार आवाज़ दी पर उसने पीछे मूड कर भी ना देखा....अरुणा को चिंता हुई और वो मचान की तरफ लौटी की शायद बेटा आए...पर वो नही आया वो काम करते ही रहा...

जब अरुणा से सवर् ना हो सका तो वो खेतो पे चलते हुए बेटे के पास आई और कस कर उसे पकड़ा..."क्या कर रहा है तू? ना सुबह कुछ खाया ना दोपहर का भोजन किया आख़िर मैं पूछती हूँ ये कैसा क्रोध है तेरा?"........

..अर्जुन जैसे मुँह फैरे मांयुसी से कुल्हाड़ी वहीं फ़ैक् मचान के पास आया



"देख बाबू अगर तू ऐसे ही मुझसे नाराज़ रहेगा तो मैं मर जाउन्गी"......जैसे अरुणा ने ज़ज़्बाती होते हुए कहा

"ना माँ हमे कुछ भी हो जाए पर ग़लती से भी ये बात तू अपने मुँह से निकाल ना हम शर्मिंदा है कि आज हमने जो हरकत तेरे साथ की शायद हम खुद पे काबू ना कर सके कयि दिनो से हमारे अंदर तेरे प्रति अज़ीब अज़ीब विचार पनप रहे थे उनके चलते आज हमने".........एका एक अर्जुन ने जैसे माँ को ब्यान देते हुए कहा

अरुणा कुछ देर खड़ी बेटे की बातों को सुनती रही फिर उसने उसके दोनो कंधो को थामा...."देख अर्जुन तू मेरी औलाद है और तू ग़लत कभी हो नही सकता पर तुझे ऐसे विचार कैसे आने लगे? तू जानता है कि ये घोर पाप है"............

."हम जानते है माँ लेकिन हम तुझसे मुहब्बत करने लगे है तेरे बिना एक पल भी जी नही पाते और तो और ना जाने क्यूँ तेरी तरफ आकर्षित हो रहे है"........

."अर्जुन्न हम तेरी माँ है हम जैसी बुढ़िया में तुझे कैसी दिलचस्पी? ये हसरत नही ये वासना है अर्जुन".........

"हम खाना नही खाएँगे तू जा".....

."बेटा गुस्सा थूक डाल".........

."तू जा माँ"...........

."बेटा मेरे खातिर अच्छा ठीक है हम्का मांफ कर जो हम तुझसे ऐसे पेश आए".........एक पल को अर्जुन खामोश हो गया और वहीं वक़्त था
जब अरुणा को एक झटके में जैसे अपनी बाहों की गिरफ़्त में लिए लिपटाया
 
अरुणा की छातिया बेटे के जैसे सीने से दब गयी..उसने माँ को बड़ी मज़बूती से गले लगाए रखा....अरुणा रोती हुई जैसे उसके कान को चूमते हुए ऐसा महसूस कर रही थी जैसे वो अपने बेटे के नही बल्कि किसी ऐसे मर्द की बाहों में लिपटी हो जो उससे बेपनाह प्यार करता
है....अरुणा को ये सब शुरू शुरू में ठीक ना लगा उसने बेटे का दिल रखने के लिए उसे कुछ ना मालूम चलने दिया....उसने बेटे को अपने
बदन से अलग किया और उसे बिठा कर अपने हाथो से खिलाने लगी....

दोनो शाम तक वापिस घर पहुचे....लालटेन की रोशनी फूकते हुए साया को ठीक किए अरुणा बेटे के बगल में जैसे उससे थोड़ा फ़ासले दूर लेट गयी....वो जैसे कशमकश के घेरॉन में थी..कि अचानक उसके बेटे का हाथ उसे अपनी नाभि में महसूस हुआ...इस अहसास से ही वो सिहर उठी....

उसने एक बार अर्जुन की तरफ देखा अंधेरे में वो जगा हुआ था ये मालूम नही चला उसे....एक पल को अरुणा ने हाथ हटाया फिर दूसरे ही पल वो हाथ धीरे धीरे सरकते हुए उसके ब्लाउज के उपर छातियो के उभार पे जैसे आ गया....अरुणा चाहती थी तो उसके हाथ को दूर झटक देती लेकिन उस वक़्त उसके दिल में ना जाने कैसा तूफान चल रहा था? वो तूफान जो एक अकेली औरत के दिलो में चलता है जिस वक़्त वो
बेसहारा किसी के साथ को पाने में होती है....उस वक़्त उसे किसी की ज़रूरत होती है? ना जाने क्यूँ दिल बार बार उसके ज़मीर को
झिंजोड़ते हुए कह रहा था की बदल जा अरुणा बदल जा छोड़ दे अपनी ज़िद्द और अपनी खुशी भरी एक ज़िंदगी बिता.....ये मर्यादा लाँघ दे अब तू....


अरुणा जैसे खामोशी से लेटी हुई थी और ठीक उसी पल साया के अंदर जैसे हाथ घुस्सने लगा....तो अरुणा ने कस कर बेटे के हाथ को पकड़ लिया....उसने एक बार बेटे की तरफ पलटके देखा...अर्जुन जगा हुआ था उसने उठते ही लालटेन की रोशनी को धीमा किया और उसे जलाए सिरहने में छोड़ दिया अब दोनो एकदुसरे को स्पष्ट रूप से देख पा रहे थे....

अरुणा : बेटा ये ग़लत! (अर्जुन ने माँ के होंठो पे उंगली रखी)

अर्जुन : माँ मुझे मालूम है कि मैं तेरा बेटा हूँ और हमारे बीच एक हद है लेकिन माँ मेरा मुहब्बत उन हदों को पार करना चाह रहा है हम
जानते है की गावंवालो की बदनामी का तुझे डर है पर ना जाने क्यूँ माँ? मैं अपनी पूरी ज़िंदगी तेरे नाम करना चाहता हूँ सिर्फ़ तेरे नाम

अरुणा : तू मेरा खून है अर्जुन भला तू मुझ जैसी विधवा के लिए अपनी ज़िंदगी क्यूँ बर्बाद करना चाह रहा है? (एका एक अरुणा की आँखो मे
आँसू घुल गये)

अर्जुन : माँ सबने तेरा साथ छोड़ दिया तुझे पति से कभी प्यार ना मिला पिताजी तो वैसे भी सिर्फ़ तुझे हवस की निगाहो से ही देखते आए
लेकिन माँ मैं वचन देता हूँ इस जनम में तो क्या मैं हर जनम में तेरा ही रहूँगा सिर्फ़ तेरा

अरुणा खुद के ज़ज़्बातो पे काबू ना कर पाई और वो कस कर बेटे से लिपट गयी...दोनो कुछ देर तक जैसे ज़ज़्बातो में डूबे रहे....फिर जब एकदुसरे से अलग हुए तो अर्जुन की आँखें एकदम सख़्त गुलाब थी अरुणा एकदम खामोशी से उसे घुर्रें जा रही थी....अर्जुन ने हाथ बढ़ाते हुए उसके साया को उसके बदन से अलग करना चाहा लेकिन अरुणा ने एक आखरी बार बेटे को ना करने की कोशिश की अर्जुन ने उसके हाथ को दूसरे हाथ से हटाते हुए धीरे धीरे साड़ी उसके बदन से जैसे अलग कर दी....

अरुणा का नंगा बदन जैसे अर्जुन के आँखो में सवार हो गया....अर्जुन ने अपनी धोती को खोल कर उतार दिया एक झटके में...और फिर माँ की झान्टेदर चूत पे हाथ रखते हुए उसके दोनो टाँग फैला दिए....अरुणा जानती थी कि अब क्या होने वाला है? वो उसी पल ज़ोर से चीख उठी....तो अर्जुन ने उसे कस कर अपने आलिंगन में जकड लिया..अर्जुन को माँ की चूत की सख्ती का पूरा पूरा अहसास हुआ....

माँ अरुणा उसके कुल्हो पे अपनी जांघों को रगड़ते हुए उसके दोनो तरफ अपनी टांगे फँसा चुकी थी..अर्जुन कस्स कस कर चूत के अंदर बाहर लंड को किए कुल्हो में जैसे ताक़त भरे उसे चोद रहा था..."सस्स हह आहह आहह"......लज़्ज़त से अरुणा ने आँखे मूंद ली उसे ये अहसास कभी मिला नही था इसके लिए दिन रात उसके पति से उसका झगड़ा होता आया था....आज अपने सगे बेटे से चुदते हुए उसे जैसे वो लज़्ज़त वो मज़ा मिल रहा था...

अर्जुन : माँ तेरा भीतरी क्षेत्र कितना सख़्त है उफ़फ्फ़ सस्स ऐसा लग रहा है जैसे हमरा छिल गया (अरुणा के उपर नीचे होते हुए)

अरुणा क्को कहने का मौका भी ना मिला और उसके बेटे के होंठ उसके तपते सूखे होंठो से जैसे जुड़ गये..दोनो ने आँखे मूंद ली और एकदुसरे को पागलो की तरह एकदुसरे के मुँह में जीब डाले एकदुसरे को किस करने लगे....थूक की आवाज़ जैसे दोनो के जुड़े मुँह के भीतर से बाहर सुनाई दे रही थी...
 
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