hotaks444
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"कुछ चीज़ों के लिए तन्हाॅई सबसे अच्छी होती है बुआ।" रितू ने रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए कहा___"अगर यही तन्हाई हमें काटती है तो यही तन्हाई कभी कभी हमें बड़ा सुकून भी देती है।"
"ओहो क्या बात कही है तुमने।" नैना ने हैरानी से कहा___"इतनी गहरी बात यूॅ ही तो तुम्हारे दिमाग़ में नहीं आई होगी? आई नो कुछ तो वजह है इसकी। इस लिए अगर उचित समझो तो अपनी इस बुआ को बताओ फिर।"
"ज़रूर बताऊॅगी बुआ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"पर आज नहीं। पहले मैं खुद भी तो इसकी वजह समझ लूॅ। आख़िर मुझे भी तो समझ आए कि इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में आई कैसे? क्योंकि ये सब बातें तो उनके ही दिमाग़ में आती हैं जो ज़रा गंभीर तबीयत का होता है फिर सबसे अलग रहना पसंद करता है।"
"ओहो अनादर वन।" नैना मुस्कुराई___"सच सच बता किसी लड़के से कोई चक्कर वक्कर तो नहीं चल गया? वैसे जहाॅ तक मैं तुझे समझती हूॅ तो ऐसा प्वासिबल है नहीं। कोई पागल ही होगा जो तुमसे प्यार का राग अलापेगा। वरना अपने हाॅथ पैर की हड्डियाॅ तो सबको प्यारी ही होती हैं।"
"व्हाट डू यू मीन बुआ?" रितू की ऑखें फैल गई___"मतलब आप ये समझती हैं कि मैं कोई बैंडिड क्वीन हूॅ जो किसी की भी हड्डियाॅ तोड़ दूॅगी?"
"अरे तुम तो नाराज़ हो गई मेरी डाल।" नैना ने हॅस कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था रे। आई वाज जस्ट किडिंग डियर।"
"कोई बात बेवजह ही मुख से नहीं निकला करती बुआ।" रितू सहसा गंभीर हो गई__"हर बात के पीछे उसका कोई न कोई मतलब भी छिपा होता है। और ये बात भी आपने मेरे कैरेक्टर को देख कर ही कही है। मैं मानती हूॅ बुआ कि मुझे लड़के लड़कियों के बीच की ये चोंचलेबाज़ी शुरू से ही पसंद नहीं थी मगर ये भी सच है बुआ कि मेरे सीने में भी एक दिल है। जो धड़कना जानता है। उसको भी ये एहसास होता है कि प्यार क्या है और नफ़रत क्या है?"
नैना कुछ बोल न सकी बल्कि आश्चर्य से रितू को देखती रह गई। उसे अहसास हुआ कि उसकी बड़ी भतीजी आज गंभीर है। और शायद बहुत ज्यादा गंभीर है। पर किस लिए ये उसे समझ न आया।
"क्या बातें हो रही हैं बुआ भतीजी के बीच ज़रा मुझे भी बताओ?" प्रतिमा ने किचेन से आते हुए कहा था।
"कुछ नहीं माॅम।" रितू ने सहसा सामान्य होकर कहा___"बुआ पूछ रही थी कि अब रात में मैं कहाॅ जा रही हूॅ?"
"क्या???" प्रतिमा तो चौंकी ही लेकिन नैना उससे ज्यादा चौंकी थी, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम इस वक्त अब कहाॅ जा रही हो?"
"कुछ ज़रूरी काम है माॅम।" रितू ने सामान्य भाव से कहा___"आप तो जानती हैं कि पुलिस की नौकरी में किसी भी वक्त कहीं भी जाना पड़ जाता है।"
"मुझे तो तुम्हारा ये पुलिस की नौकरी करना शुरू से ही नापसंद था बेटी।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"मगर मेरी बात मानता ही कौन है यहाॅ? जिसे जो करना है करे।"
"शुरू से आपकी और डैड की बात मानते ही तो आ रहे हैं माॅम।" रितू के मुह से जाने ये कैसे निकल गया__"अब अगर एक काम मैने अपनी खुशी से कर लिया तो क्यों ऐतराज़ हो गया आपको?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा ने हैरानी से ऑखें फैला कर कहा___"और ये किस लहजे में बात कर रही हो तुम? दिमाग़ तो सही है ना तुम्हारा?"
"पता नहीं माॅम।" रितू ने हाॅथ धोते हुए अजीब भाव से कहा___"कभी कभी सोचती हूॅ कि इसी हवेली के अंदर कभी परिवार के सारे लोग कितना हॅसी खुशी से रहा करते थे। मगर जाने ऐसा क्या हो गया कि आज इस हवेली में सिर्फ हम रह गए। बाॅकियों को ये ज़मीन खा गई या फिर आसमान निगल गया कुछ समझ ही नहीं आया आजतक?"
"आज ये क्या हो गया है तुझे?" प्रतिमा की हवा निकल गई थी अंदर ही अंदर, बोली__"ये कैसी फालतू की बातें कर रही है तू?"
"कमाल है न माॅम?" रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आज आपको अपनी ही बेटी की बात फालतू लग रही है। सुना है कि कोई अगर ग़लती कर दे तो उसे आख़िर में माफ़ ही कर दिया जाता है। मगर कुछ ऐसे भी बेचारे बदनसीब होते हैं जिनको कोई माफ़ भी नहीं करता। सुना तो ये भी है माॅम कि परिवार अगर किसी कारण से एक दूसरे से अलग हो जाता है या बिखर जाता है तो परिवार के मुखिया हर संभव यही प्रयास करता है कि उसका बिखरा हुआ परिवार फिर से जुड़ जाए। कदाचित तभी एक सच्चे मुखिया के दिल को सुकून मिलता है। कहते हैं कि हर परिवार के बीच कभी न कभी कोई न कोई अनबन हो ही जाती है मगर उसका मतलब ये तो नहीं होता न कि फिर उनसे हर रिश्ता ही तोड़ लिया जाए? या फिर उस अनबन को दूर ही न किया जाए।"
"तू आख़िर कहना क्या चाहती है?" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा___"क्या चल रहा है तेरे मन में? अगर कोई बात है तो उसे साफ साफ कह। यूॅ घुमा फिरा कर कहने का क्या मतलब है तेरा?"
"जाने दीजिए माॅम।" रितू कुर्सी से उठते हुए बोली___"मैं क्या कह रही हूॅ वो आप समझ तो गई ही हैं न? फिर साफ साफ कहने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर चलती हूॅ माॅम। बाय डियर बुआ जी।"
"बाय बेटा।" नैना ने रुॅधे हुए गले से कहा। उसकी ऑखों में ऑसू तैर रहे थे।
"पुलिस की नौकरी क्या करने लगी इसका सारा दिमाग़ ही ख़राब हो गया है।" प्रतिमा भुनभुनाते हुए टेबल से थाली उठाते हुए कहा___"पता नहीं कहाॅ से ऐसी बेकार की बातें सीख कर आती है ये?"
"सच ही तो कह रही थी वो।" नैना ने गंभीरता से कहा___"भला ऐसा किस परिवार में होता है भाभी कि अगर परिवार में किसी से कोई ग़लती हो जाए तो उसे कभी माफ़ ही न किया जाए? कितनी खुशियाॅ थी इस घर में। हम सब कितना हॅसी खुशी से रहते थे सबके साथ। परिवार में सबकी एकता को देख कर माॅ बाबूजी कितना खुश थे। मगर आज इस घर में न वो खुशियाॅ हैं और न ही खुशियाॅ फैलाने वाला परिवार का कोई बाॅकी सदस्य। विजय भइया की मौत क्या हुई मानो इस घर से खुशियाॅ ही चली गई। माॅ बाबू जी आज भी कोमा से बाहर नहीं आए। अगर कोई पूछे कि इस सबका जिम्मेदार कौन है तो किसका नाम लिया जाए?"
"ओहो क्या बात कही है तुमने।" नैना ने हैरानी से कहा___"इतनी गहरी बात यूॅ ही तो तुम्हारे दिमाग़ में नहीं आई होगी? आई नो कुछ तो वजह है इसकी। इस लिए अगर उचित समझो तो अपनी इस बुआ को बताओ फिर।"
"ज़रूर बताऊॅगी बुआ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"पर आज नहीं। पहले मैं खुद भी तो इसकी वजह समझ लूॅ। आख़िर मुझे भी तो समझ आए कि इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में आई कैसे? क्योंकि ये सब बातें तो उनके ही दिमाग़ में आती हैं जो ज़रा गंभीर तबीयत का होता है फिर सबसे अलग रहना पसंद करता है।"
"ओहो अनादर वन।" नैना मुस्कुराई___"सच सच बता किसी लड़के से कोई चक्कर वक्कर तो नहीं चल गया? वैसे जहाॅ तक मैं तुझे समझती हूॅ तो ऐसा प्वासिबल है नहीं। कोई पागल ही होगा जो तुमसे प्यार का राग अलापेगा। वरना अपने हाॅथ पैर की हड्डियाॅ तो सबको प्यारी ही होती हैं।"
"व्हाट डू यू मीन बुआ?" रितू की ऑखें फैल गई___"मतलब आप ये समझती हैं कि मैं कोई बैंडिड क्वीन हूॅ जो किसी की भी हड्डियाॅ तोड़ दूॅगी?"
"अरे तुम तो नाराज़ हो गई मेरी डाल।" नैना ने हॅस कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था रे। आई वाज जस्ट किडिंग डियर।"
"कोई बात बेवजह ही मुख से नहीं निकला करती बुआ।" रितू सहसा गंभीर हो गई__"हर बात के पीछे उसका कोई न कोई मतलब भी छिपा होता है। और ये बात भी आपने मेरे कैरेक्टर को देख कर ही कही है। मैं मानती हूॅ बुआ कि मुझे लड़के लड़कियों के बीच की ये चोंचलेबाज़ी शुरू से ही पसंद नहीं थी मगर ये भी सच है बुआ कि मेरे सीने में भी एक दिल है। जो धड़कना जानता है। उसको भी ये एहसास होता है कि प्यार क्या है और नफ़रत क्या है?"
नैना कुछ बोल न सकी बल्कि आश्चर्य से रितू को देखती रह गई। उसे अहसास हुआ कि उसकी बड़ी भतीजी आज गंभीर है। और शायद बहुत ज्यादा गंभीर है। पर किस लिए ये उसे समझ न आया।
"क्या बातें हो रही हैं बुआ भतीजी के बीच ज़रा मुझे भी बताओ?" प्रतिमा ने किचेन से आते हुए कहा था।
"कुछ नहीं माॅम।" रितू ने सहसा सामान्य होकर कहा___"बुआ पूछ रही थी कि अब रात में मैं कहाॅ जा रही हूॅ?"
"क्या???" प्रतिमा तो चौंकी ही लेकिन नैना उससे ज्यादा चौंकी थी, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम इस वक्त अब कहाॅ जा रही हो?"
"कुछ ज़रूरी काम है माॅम।" रितू ने सामान्य भाव से कहा___"आप तो जानती हैं कि पुलिस की नौकरी में किसी भी वक्त कहीं भी जाना पड़ जाता है।"
"मुझे तो तुम्हारा ये पुलिस की नौकरी करना शुरू से ही नापसंद था बेटी।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"मगर मेरी बात मानता ही कौन है यहाॅ? जिसे जो करना है करे।"
"शुरू से आपकी और डैड की बात मानते ही तो आ रहे हैं माॅम।" रितू के मुह से जाने ये कैसे निकल गया__"अब अगर एक काम मैने अपनी खुशी से कर लिया तो क्यों ऐतराज़ हो गया आपको?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा ने हैरानी से ऑखें फैला कर कहा___"और ये किस लहजे में बात कर रही हो तुम? दिमाग़ तो सही है ना तुम्हारा?"
"पता नहीं माॅम।" रितू ने हाॅथ धोते हुए अजीब भाव से कहा___"कभी कभी सोचती हूॅ कि इसी हवेली के अंदर कभी परिवार के सारे लोग कितना हॅसी खुशी से रहा करते थे। मगर जाने ऐसा क्या हो गया कि आज इस हवेली में सिर्फ हम रह गए। बाॅकियों को ये ज़मीन खा गई या फिर आसमान निगल गया कुछ समझ ही नहीं आया आजतक?"
"आज ये क्या हो गया है तुझे?" प्रतिमा की हवा निकल गई थी अंदर ही अंदर, बोली__"ये कैसी फालतू की बातें कर रही है तू?"
"कमाल है न माॅम?" रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आज आपको अपनी ही बेटी की बात फालतू लग रही है। सुना है कि कोई अगर ग़लती कर दे तो उसे आख़िर में माफ़ ही कर दिया जाता है। मगर कुछ ऐसे भी बेचारे बदनसीब होते हैं जिनको कोई माफ़ भी नहीं करता। सुना तो ये भी है माॅम कि परिवार अगर किसी कारण से एक दूसरे से अलग हो जाता है या बिखर जाता है तो परिवार के मुखिया हर संभव यही प्रयास करता है कि उसका बिखरा हुआ परिवार फिर से जुड़ जाए। कदाचित तभी एक सच्चे मुखिया के दिल को सुकून मिलता है। कहते हैं कि हर परिवार के बीच कभी न कभी कोई न कोई अनबन हो ही जाती है मगर उसका मतलब ये तो नहीं होता न कि फिर उनसे हर रिश्ता ही तोड़ लिया जाए? या फिर उस अनबन को दूर ही न किया जाए।"
"तू आख़िर कहना क्या चाहती है?" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा___"क्या चल रहा है तेरे मन में? अगर कोई बात है तो उसे साफ साफ कह। यूॅ घुमा फिरा कर कहने का क्या मतलब है तेरा?"
"जाने दीजिए माॅम।" रितू कुर्सी से उठते हुए बोली___"मैं क्या कह रही हूॅ वो आप समझ तो गई ही हैं न? फिर साफ साफ कहने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर चलती हूॅ माॅम। बाय डियर बुआ जी।"
"बाय बेटा।" नैना ने रुॅधे हुए गले से कहा। उसकी ऑखों में ऑसू तैर रहे थे।
"पुलिस की नौकरी क्या करने लगी इसका सारा दिमाग़ ही ख़राब हो गया है।" प्रतिमा भुनभुनाते हुए टेबल से थाली उठाते हुए कहा___"पता नहीं कहाॅ से ऐसी बेकार की बातें सीख कर आती है ये?"
"सच ही तो कह रही थी वो।" नैना ने गंभीरता से कहा___"भला ऐसा किस परिवार में होता है भाभी कि अगर परिवार में किसी से कोई ग़लती हो जाए तो उसे कभी माफ़ ही न किया जाए? कितनी खुशियाॅ थी इस घर में। हम सब कितना हॅसी खुशी से रहते थे सबके साथ। परिवार में सबकी एकता को देख कर माॅ बाबूजी कितना खुश थे। मगर आज इस घर में न वो खुशियाॅ हैं और न ही खुशियाॅ फैलाने वाला परिवार का कोई बाॅकी सदस्य। विजय भइया की मौत क्या हुई मानो इस घर से खुशियाॅ ही चली गई। माॅ बाबू जी आज भी कोमा से बाहर नहीं आए। अगर कोई पूछे कि इस सबका जिम्मेदार कौन है तो किसका नाम लिया जाए?"