non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 17 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

मैं डरते-डरते पलंग के पास पहुँची और पलंग के ऊपर बैठ गई। ससुरजी पलंग के ऊपर लेटे हुए सो रहे थे। मैं डरते हुए उनके पाँव को सहलाते हुए लण्ड को सहलाने लगी। लण्ड थोड़ी ही देर में खड़ा होने लगा। मैंने उसे धोती के बाहर निकाला और हाथ से सहलाने लगी। मेरे ससुरजी का लण्ड अभी पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था और ये तो मेरे देवर से भी बड़ा दिख रहा था। बाप रे.. ये लण्ड तो सचमुच में मजा की जगह सजा देने वाला है। लण्ड अपने जोर पे आ चुका था।

और मैंने सोचा- ससुरजी तो सो रहे हैं। थोड़ा चूसकर देख लेती हूँ कि कितना मजा आता है। मैंने लण्ड के सुपाड़े को अपने मुँह में ले लिया।

वाह रे चम्पारानी... दिन में देवर का लण्ड चख लिया। शर्म नहीं आई अब ससुर के लण्ड को।

हाँ... पर मजा भी तो आ रहा है कितना... और मैंने अपनी आवाज को दबाते हुए लण्ड को चूसना जारी रखा।

ससुर- अरे वाह... मुन्ने की अम्मा, आ गई तू। मैं तो उम्मीद हार चुका था। मैंने सोचा तू नहीं आयेगी पर तूने अपना वादा निभाया। मैं भी वादा करता हूँ कि सिर्फ एक घंटा ही चोदूंगा। फिर मेरा पानी निकले ना निकले तुझे नहीं चोदूंगा बस। तू मुँह में भले ना लेना, हाथ से ही निकाल देना।

मैं घबराते हुए- क्या? क्या कहा आपने? एक घंटा चुदाई करेंगे?

ससुर- हाँ... सिर्फ एक घंटा ही चोदूंगा मेरे रानी। वैसे तेरी आवाज को क्या हो गया?

मैं- वो थोड़ी हरारत थी ना... इसीलिए।

ससुर- “अच्छा... अच्छा, पर आज तुझे मेरा लण्ड चूसना कैसे सूझा मुन्ने की अम्मा...”
 
मैं- वो... मैंने सोचा, आज चूस के देख ही लेती हूँ कि कैसे लगता है। वैसे लण्ड चूसना अच्छा लगा।

ससुर- फिर तो रोज ही चूसना मुन्ने की अम्मा।


मैं- देगी, सोचूंगी। पर आप मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते।

ससुर- नहीं करूँगा मुन्ने की अम्मा। मैंने तो कभी आज तक जबरदस्ती नहीं की। चुदाई के एक घंटे के बाद। मैंने कभी तुझे नहीं चोदा। भले ही मेरे लण्ड से पानी ना निकला हो। मैंने लण्ड को बाहर निकाला है और तुझे ज्यादा दर्द नहीं दिया है। भले ही तुम मेरे ऊपर दया करते हुए हाथ से पानी निकाल देती थी।

मैं थी ससुर के बेडरूम में ससुर के साथ। कमरे में घुप्प अंधेरा। अंधेरा इसीलिए था की... अरे साहब... लो, लाइट नहीं गई हुई थी। मैंने उनके रूम का बल्ब बदल दिया था। फ्यूज बल्ब लगा दिया था। देखा मेरा दिमाग? तो ससुरजी मेरे चूचियों को दबा रहे थे।

ससुर- अरे मुन्ने की अम्मा, तेरी चूचियां तो कसी-कसी लग रही हैं, क्या बात है?

मैं (चम्पारानी)- आप भी ना... अरे दो महीने हो गये, आपने दबाया ही नहीं है। आज बहू ने बड़ी सेवा की, तेल लगाके इतनी बढ़िया मालिश की कि क्या बताऊँ? मेरी चूत पनिया गई। बहू के सोते ही मैं आपके पास आई हूँ।

ससुर- अच्छा... इसीलिए मैं सोच रहा था कि आज चूचियां कुछ कठोर लग रही हैं, जैसी नई-नई शादी के टाइम थीं। अच्छा देखें, तुमरी चूत कैसे पनिया गई है, मेरी बहू की मालिश के कारण। अरे... मुन्ने की अम्मा, तुमने तो चड्ढी पहनी हुई है?

मैं घबराई- वो... क्या है कि मालिश करने से पहले मैंने बहू को कहा था की तेरी चड्ढी पहन लेती हूँ वरना मैं तो पूरी ही नंगी हो जाऊँगी। इस पर पता है बहू ने क्या कहा?

ससुर- अच्छा, क्या कहा बहू ने?

मैं- बहू ने कहा कि अरी अम्माजी... देख लँगी तो क्या हो जाएगा? और उसने पता है... मेरे साये को पूरा उठा दिया और मेरी फुद्दी को सहलाने लगी और फिर दोनों हाथ जोड़ करके कहा प्रणाम।

ससुर- अच्छा... पर मुन्ने की अम्मा, उसने तेरी फुद्दी को प्रणाम क्यों कहा?

मैं- वही तो... वही तो मैंने भी उससे पूछा की अरे बहू, तुम हमरी चूतवा को प्रणाम काहे कर रही हो? इस पर बहूरानी ने कहा- अरे अम्मा जी, इसको तो परणाम करना ही पड़ेगा। आज पहली बार जो देख रही हूँ। उस जगह को, जो मेरे ससुरजी की कर्मभूमी है और मेरे पति की जन्मभूमी है।

ससुर- अरे वाह... हमरी बहू भी ना... बड़ी मजाक पसंद है। अगर वो मेरा सामान देख लेगी तो... भला क्या कहेगी?

चम्पारानी गुस्से का नाटका करते हुए- “अरे, आपको शर्म नहीं आती, अपने और बहू के बारे में ऐसा सोचते हुए?”

ससुर- अरे गुस्सा क्यों करती है? मुन्ने की अम्मा। मैं तो मजाक कर रहा था।

मैं- “मैं भी मजाक कर रही हूँ मुन्ने के बाबूजी। मैं भी चाहती हूँ की आप बहू के साथ...”
 
ससुर- क्या बात करती है? मुन्ने की अम्मा। मैं और बहू के साथ? मैं... नहीं... अच्छा चलो... पर मैं ऐसा करूं तो तुझे बुरा नहीं लगेगा?

मैं- बिल्कुल भी नहीं। बल्कि मैं तो चाहती हूँ की आप बहू के साथ ऐसा करें।


ससुर- पर... क्यों मुन्ने की माँ?

मैं- वो इसीलिए मुन्ने का बाबू की मैंने अपने बेटे का लण्ड देखा है।

ससुर- अरे, तूने कैसे देख लिया बेटे के लण्ड को, तुझे शर्म नहीं आई?

मैं- अरे, आप भी ना... मैं उसकी माँ हूँ। बचपन से देखते आ रही हूँ। मेरे बेटे का लण्ड है छोटा... आपके साइज से चौथाई भी नहीं है। उससे बड़ा तो हमरे छोटे बेटवा का है।

ससुर- हाँ... वो तो है।

मैं- इधर आप इतने बड़े चोदू हैं की क्या बताऊँ? मैं आपको संतुष्ट नहीं कर पाती हैं। इसीलिए मैंने अपनी बहन को अपने पास रखा था, ताकी वो आपको संतुष्ट कर सके। और मैं हर पंद्रह दिन में आपसे चुदवाती थी ताकी मेरी भी आदत बनी रहे।

ससुर- तो क्या? तुम्हें मेरे और साली के बारे में?

मैं- अरे, जब मैंने ही उसे आपसे चुदवाने के लिए बुलाया था तो कैसे पता नहीं चलता?

ससुर- पर मेरी साली मुझसे चुदवाने के लिए तैयार कैसे हो गई?

मैं- अरे, वो गाँव में किसी ने उसे चोद दिया। चुदाई का चस्का लग ही चुका था। बाहर मुँह काला ना करे इसीलिए मैंने ही उसे अपने पास रख लिया था। जिससे शादी होने तक उसकी चूत की खुजली भी मिटती रही। आपके लण्ड की प्यास भी बुझती रही। और मेरी फुद्दी भी आपके विशाल लण्ड की चुदाई से फटने से बची रही।


(पाठक सोच रहे होंगे की मैं, उनकी बहू... मुझे कैसे पता चला? अरे जब, मैं सास की मालिश कर रही थी ना... तो उनको उत्तेजित करके उनके मुँह से सब उगलवा लिया।)

ससुर- अरे वाह... मुन्ने की अम्मा, मन गये तोहार दिमाग को। पर अब ये बहू वाला क्या चक्कर है?

मैं- अरे, आप भी ना... देखो, एक तो बेटे का लण्ड छोटा। ऊपर से रविवार को ही आता है। भरी जवानी, कहीं बहू के कदम बहक गये, और इधर-उधर मुँह मार लिया तो तन्निक सोचो कि कितनी बदनामी होगी। हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे। इससे तो अच्छा है आप ही बहू के साथ?

ससुर- पर... क्या बहू मान जाएगी?

सास- वो... सब आप मुझपे छोड़ दो। बस.. अब लण्ड घुसा दो।

ससुर- ये ले मेरी जान।

मैं- देखकर घुसाना, बहुत बड़ा है आपका लण्ड। कर ना देना मेरी फुद्दी को खंड बिखंड।


ससुर- अरे, बड़े प्यार से चोदूंगा। पर... ये क्या मुन्ने की अम्मा... तेरी फुद्दी की झाँटें सब कहाँ गई? पूरा मैदान सफाचट है।

मैं- अरे रे... मैं तो आपको कहना ही भूल गई। वो बहू ने मेरी झांटों को देखा और मेरे मना करने के बावजूद उसने साफ कर दिया। आपको अच्छा नहीं लगा?

ससुर- अरे, क्या बात करती हो मुन्ने की अम्मा। बड़ी ही प्यारी और खूबसूरत लग रही है तेरी चूत। जी करता है। चुम्मी दे दें।

मैं- तो मना किसने किया। चुम्मी दे दो, चूस भी लो।

ससुर- “अरे वाह... आज तो खूब मेहरवान हो रही है मुन्ने की माँ। मजा आ गया...”

मैं (चम्पारानी)- हाय... मुन्ने के बाबूजी। धीरे-धीरे घुसाना अपने लण्डराज को मेरी बिल के अन्दर। बहुत दिनों से चुदी नहीं हूँ।
 
ससुर- “अरे मुन्ने की अम्मा, ऐसी चुदाई करूंगा की तुझे पता भी नहीं चलेगा कि कब लण्डराज घुस जायेगा तेरी फुद्दी के अन्दर...” और मेरे ससुर ने अपना मुँह मेरी सफाचट बुर के मुहाने पे लगा ही तो दिया। मैं अन्दर तक सिहर गई। अभी मैं फुदक ही रही थी की ससुरजी ने मेरी चूत के दाने को जीभ से सहलाना शुरू कर दिया। मैं तो उछल ही पड़ी।

मैं- हाय... मुन्ने के बाबूजी, ये आपने कहाँ जीभ सटा दिया?

ससुर- अरे आज पहली बार चटवा रही है मुन्ने की अम्मा। जरा खुल के मजा ले।

मैं- ठीक है बाबा, अब मैं बीच में नहीं बोलूंगी। पर जरा अन्दर तक जीभ को पेलिए ना। बहू कह रही थी की हमरा बेटा बढ़िया से बुर को चाटता है। और बहुरिया को बहुत आनंद आता है। आप भी तनिक अच्छे से चाटिये ना।

ससुर- अच्छा बाबा, चाटता हूँ। आज तो तू कमाल ही कर रही है। मुन्ने की अम्मा, जरा लण्ड को भी सहला।

मैं- अरे आप इधर करिए ना लण्ड को सहलाने की बात करते हैं। चलो आज मैं चूसके दिखाती हैं।

ससुर- वही तो गड़बड़ है। साला आज ही कमरे का बल्ब फ्यूज हो गया, वरना बहुत मजा आता।

मैं- अरे अभी मजा नहीं आ रहा है क्या? जो उजालाकरना चाहते हो। अच्छा हुआ की अँधेरा है, वरना मैं वो सब नहीं कर पाती जो आज अँधेरे में कर रही हैं।

ससुर- वो बात भी सही है, मुन्ने की अम्मा। आज तूने अँधेरे में मुझे जो मजा देने का आईडिया सोचा है बड़ा गजब का है।

मैं- आप अपनी जीभ अच्छे से चलाते रहिये। हाँ हाँ ऐसे ही अन्दर तक घुसाईए जीभ को। बड़ा मजा आ रहा है।

ससुर- तू भी तो मुझे आज मजा दे रही है मुन्ने की अम्मा। आज तूने पहली बार मेरे लण्ड को चूसा है। तुमरी बहन तो रोज चूसती थी। पर तूने पहली बार स्वाद चखा है। कैसा है मेरा लण्ड?

मैं- “मैंने नाहक ही पहले लण्ड चूसने से मना किया था जी। आज पहली बार इस अलौकिक सुख को पा रही हूँ। हाय... क्या बढ़िया जीभ चला रहे हो आप...”

ससुर- बस मुन्ने की अम्मा। अब रहा भी नहीं जा रहा है। तेरी चूत तो पहले से ही बहू की मालिश से पनिया चुकी थी। मेरे जीभ चलाने से और भी पनिया गई है। तू कहे तो घुसा हूँ, मेरा सामान तुमरे अन्दर।

मैं- और नहीं तो क्या मेरी चूत की आरती उतारोगे? जय चूत महारानी। जय चूत महारानी महीने में एक बार तुम तो छोड़ती लाल पानी जय चूत महारानी। जब तुमरे अन्दर मुन्ने के अब्बा का लण्डवा घुस जाये। नीचे से चूतड़ उछाले, ऊपर से चिल्लाये। जय चूत महारानी
 
ससुर- अरे वाह री मुन्ने की अम्मा। कहाँ से सिखा तूने ये गाना? जय चूत महारानी वाला।

मैं- मेरी बहू ने सिखाया।

ससुर- पर ये गाना तो?

मैं- मैं जानती हूँ। ये गाना आप तब गाते थे जब आप अपनी साली को चोदते थे।

ससुर- पर बहुरिया को कैसे पता चला?

मैं- मैंने आपकी डायरी उसे पढ़ने के लिए दी थी।

ससुर- तुम भी मुन्ने की अम्मा। भला बहुरिया हमरे बारे में क्या सोचेगी? बता तो।

मैं- अरे का सोचेगी? हम तोहरे लिए बहुरिया का साया का नाड़ा खोल रहे हैं। और तुम हमरे ऊपर नाराज हो रहे हो। बहुरिया तो साड़ी के ऊपर से अपनी बुर को खुजलाते हुए पढ़ रही थी... हाँ नहीं तो।

ससुर- अच्छा भला किया तुमने मुन्ने की अम्मा। आज तो तुम हम पे दयावान होती जा रही हो।
मैं- कहो तो अभी के अभी कमरे से बाहर चली जाऊँ? और सो जाऊँ बहुरिया के पास। फिर मजे से अपने खुद के हाथ से मूठ मारते रहना... हाँ नहीं तो।

ससुर- अरे ऐसा गजब नहीं करना मुन्ने की अम्मा। तू जैसे बोलेगी... जैसे कहेगी वैसे करने को तैयार हूँ मैं। पर चुदवाने से पहले बाहर नहीं जाना, तुझे हमरी कशम है।

अरे बुढ़ऊ चुदवाने से पहले ऐसे मैं भी कहाँ जाने वाली हैं। कमरे में अँधेरा करके मैं तेरी बहुरिया ही तो हूँ जो तुझसे चुदवाने आई हूँ। उधर तेरी बीवी मेरे कमरे में घोड़े बेचके सो रही है। इधर मैं सास बनकर तुझसे चुदवाने आई हूँ।

मैं- अरे जब आपने कशम ही दे दी तो बिना चुदवाए तो जाऊँगी नहीं। पर धीरे-धीरे घुसाना। देखो, दो महीने से चुदी नहीं हूँ। चूत की दिवारें संकरी हो गई हैं। कहीं जोश में आकर मेरी फुद्दी को ही नहीं फाड़ देना... कहे देती

ससुर- अरे बाबा पहले घुसाने तो दे।

मैं- अरे बाबा घुसाने तो दे? और जब फट जायेगी मेरी फुद्दी तब? इसीलिए पहले से ही कहे देती हूँ कि जरा आराम से घुसाना। तभी दोनों को मजा आएगा। आप बड़ी जल्दी जोश में होश खो बैठते हो और मुझे मजा की जगह सजा भुगतनी पड़ती है।

अब ससुर ने अपने लण्ड पे वैसेलीन लगाया और कुछ मेरे फुद्दी में भी उंगली की सहायता से लगाया। अब उन्होंने दुबारा कोशिश की। इस बार मैंने भी चूत की पुत्तियों को दोनों हाथों से फैलाया और ससुर ने सुपाड़े को चूत के मुहाने से सटाया और एक हल्का सा धक्का लगाया। सुपाड़ा मेरी फुद्दी में घुस चुका था।
ससुर ने दूसरा जोर का धक्का लगाया और जोश में आकर मैंने भी नीचे से चूतड़ को उछाल दिया। हाय... उनका मोटा लण्ड पांच इंच तक मेरी चूत में समा चुका था।
 
मैं- हाय... मैं मरी रे... फाड़ दिया आपने तो... ये क्या किया? एक साथ ही सारा का सारा घुसा दिया। मैंने आपसे पहले भी कहा था.. पर आप नहीं सुधरने वाले। किसी ने सही कहा है- 'कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं हो सकती आप बिना जोश दिखाए बिना मेरी फुद्दी का भुरता बनाये आज नहीं मानने वाले। हाय... आज तो आप मुझे पूरा मारकर ही दम लोगे।

मैं ससुर से ये सब कह भी रही थी और उनसे लिपटती भी जा रही थी। ससुर डर के मारे चुपचाप मेरे से सटे हुए थे। ना तो लण्ड को बाहर ही निकल रहे थे और ना अन्दर कर रहे थे।

मैं- अरे आपको क्या हो गया?

ससुर- बहुत दर्द हो रहा है मुन्ने की अम्मा?

मैं- वो सब छोड़ो और चोदना चालू करो... बस अब तो।

ससुर- पर इतने में तो मुझे मजा नहीं आ रहा है। थोड़ा सा और घुसाऊँ?

मैं- थोड़ा सा और घुसाऊँ? अरे घुसा तो दिया है, अब क्या खुद भी घुसोगे मेरी फुद्दी के अन्दर?

ससुर- अरे नहीं। पर लण्ड अभी भी कहाँ पूरा घुसा है। अभी तो आधा भी नहीं घुसा है?

मैं- क्या? क्या कहा आपने? आधा भी नहीं घुसा है? अरे बाप रे... अभी से मेरी ये हालत है तो... जब पूरा घुसेगा तब क्या होगा? खैर, ओखली में सिर दे दिया है तो मूसल से क्या डरना? जब चुदवाने के लिए जांघ फैला दिया है तो मोटे लण्ड से क्या डरना?

ससुर- ये हुई ना बात... ले मेरा और एक धक्का।

मैं- अरे, बोलकर तो मारना था ना धक्का ।

ससुर- बोल तो दिया? अब क्या माइक लगाकर सारे मुहल्ले को बोलकर धक्का मारूं?

मैं- नहीं, पर... साथ में चूचियों को भी दबाना चाहिए। एक को मुँह में चूसना भी चाहिए। दूजे को दबाना चाहिए। पांच मिनट में चूची को बदलना चाहिए। याने जिसे चूस रहे उसे दबाओ और जिसे दबा रहे हो उसे चूसो। तभी जोरू को पूरा मजा आई... समझे मुन्ने के बाबूजी।

ससुर- और ये सब तुझे बहुरिया ने ही सिखाया होगा?

मैं- हाँ... पर आपको कैसे मालूम?

ससुर- अरे जब इतने सारे गुर तूने उसी से सीखे हैं तो ये भी तो उसी ने सिखाया होगा? ले मैं दबाना चालू करता हूँ।

मैं- धक्का मारते हुए एक साथ घुसा दो लण्ड को।

ससुर- क्या सही में?

मैं- हाँ... और नहीं तो क्या? एक बार जो दर्द होगा सो होगा।

और ससुरजी ने कस के धक्का मारा और पूरा का पूरा लण्ड मेरी फुद्दी में समा गया। मेरी जान हलक पे आ गई। मेरी आँखों से आंसू निकल गए।

मैं- अरे। मैं बोल दी और तुमने घुसा ही दिया। बाप रे इतना बड़ा लण्ड और एक साथ घुसा दिया... माँ रे मरी मैं तो... हाय निकाल लो अपने लण्ड को... मुझे नहीं चुदवाना आपसे। सही में आपसे चुदवाने में मुझे मजा नहीं सजा ही मिल रही है।
 
ससुर- बस हो गया मुन्ने की अम्मा। पूरा का पूरा घुस तो गया।

मैं- नहीं... आप पूरा नहीं घुसाए हो... अभी बोलोगे कि आधा और बाकी है।

ससुर- तेरी कशम मुन्ने की अम्मा, पूरा का पूरा लण्ड घुस चुका है तोहरी चूत में। और आज तूने जोर से चिल्लाया भी नहीं देख तुझे मजा भी आ रहा है। देख कैसे नीचे से अपना चूतड़ उछाल रही है तू।

और सचमुच में, मैं जोश में आकर नीचे से अपना चूतड़ उछाल रही थी। ससुरजी का लण्ड बड़े स्पीड से अन्दर बाहर हो रहा था। मेरे मुँह से सिसकारी निकल रही थी- हाँ हाँ मुन्ने के बाबूजी, बस... आज तो मुझे इतना दर्द भी नहीं हुआ... चुदाई भी बढ़िया कर रहे हो... लण्ड आपका सटासट अन्दर बाहर हो रहा है। चूत की दीवारें फूल रही हैं, पिचक रही हैं। हाय... फच-फच की आवाजें कितनी प्यारी लग रही हैं। मुनी के बाबूजी। हाय... मैं तो झड़ रही हूँ। हाय... मैं तो गई।

ससुर- पर मेरा अभी तक निकला नहीं है, मुन्ने की अम्मा। पर तू कहे तो निकाल दें अपना लण्ड। वैसे मेरा मन तो कर रहा है कि तुझे चोदे जाऊँ.. चोदे जाऊँ।

मैं- तो चोदो ना मेरे सैंया... रुक क्यों जा रहे हो? आपसे मना किसने किया? चोदो आज जी भरकर चोदो। कर लो अपने मन की आज। पता नहीं कल मैं आपसे ऐसे चुदवाऊँ या ना चुदवाऊँ?

ससुर- अरे नहीं मुन्ने की अम्मा। मैं तो रोज तुझे ऐसा प्यार करना चाहता हूँ, रोज।

मैं- ठीक है। पर अब चोदना बंद मत करो, चोदते रहो।

और ससुरजी मुझे दनादन चोदे जा रहे थे, बिना रुके। मेरी चूत में अब दर्द होना शुरू हो गया। फिर दर्द कम हुआ और मैंने फिर से चूतड़ उछालना शुरू कर दिया।

ससुर- हाय... आज तो बड़ा जोश खा रही है मुन्ने की अम्मा।

मैं- तो का करूं? आप ऐसी मस्त चुदाई भी तो कर रहे हो। ऐसे ही रोज अगर मेरी चूत को चाटो, मेरे फुद्दी को सहलाओ, मुझे अपना लण्ड चुसवाओ... तो दोनों को मजा आ जाये।

ससुर- हाँ मुन्ने की अम्मा, तूने सही कहा। मैंने पहले तेरे साथ बहुत ज्यादती की है। तुझे गरम किये बिना ही तेरी सूखी चूत में अपना लण्ड पेल के तुझे बहुत दुःख दिया है। अब ऐसा ना होगा। पहले तेरी चूचियों को। दबाऊँगा, सहलाऊँगा, चुसुंगा... फिर तेरी फुद्दी को चूमूंगा, चाटुंगा, तुझे अपना लण्ड चूसने दूंगा। और जब तू खुद ही कहेगी कि चलो जी चुदाई चालू करो... तभी चुदाई शुरू करूँगा।

मैं- “ठीक, ये बात याद रखना। तो दोनों को मजा ही मजा... वरना मुझे सजा ही सजा... और फिर जब हम दोनों झड़ रहे थे तो दोनों ही पशीने-पशीने हो रखे थे। और मैं उनके लण्ड को सहलाने लगी। मजा तो बहुत आया था पर हाँ दर्द भी हुआ था।

ससुर- अरे मुन्ने की अम्मा, फिर से मूड है क्या?

मैं- आप पागल हो गये हैं क्या? एक बार चुदवाने आ गई... मतलब, आपने तो हमें कुछ और ही समझ लिया। मारने का विचार है क्या आपका?

ससुर- अरे नहीं, मुन्ने की अम्मा... मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था। पर एक बात बताना आज तुझे मजा मिली या सजा?

मैं- “शुरू शुरू में दर्द हुआ... पर मजा खूब आया। सच में...” मैंने ससुर के मुँह को चूमते हुए कहा।

ससुर- पर एक बात तो बता मुन्ने की अम्मा? मैं अगर एक बार और कहूँ तो... दया करेगी मुझपे।

मैं- “चलो, आप भी क्या याद रखोगे? किस दयावान बीवी ने आज दया करके मुझे दुबारा चोदने को दिया है...” और जब मैं उनसे दूसरी बार चुदवा चुकी तो। सच में चलने की हिम्मत तक नहीं थी। पर पकड़े जाने के डर से मैंने हिम्मत जुटायी और ससुर के लण्ड को चूमते हुए बाहर को निकली।

ससुर- अरे मुन्ने की अम्मा, यहीं पे सो जाती।

मैं- आप पागल हो गये हो? सोते वक्त बहरिया के साथ सोयी थी। बहू अगर उठ गई तो क्या सोचेगी? की सास की बुर में इस बुढ़ापे में भी खुजली?

ससुर- ठीक है... मुन्ने की अम्मा। जा तो रही है, पर दिल तोड़ के जा रही है.. खड़े लण्ड पे धोखा दे के जा रही है मुन्ने की माँ... ये गलत बात है... एक बार और हो जाता तो दिल, लण्ड, मन सब खुश हो जाते।

मैं (चम्परानी)- अरे पागल हो गये हो आप? आज तक कभी भी आपसे दो बार चुदवाया है क्या? आज दो बार चुदवा ली हूँ, ये कम बात है? जिश्म का पोर-पोर दुःख रहा है, फुद्दी मेरी पावरोटी बन चुकी है, जांघों में चलने की ताकत नहीं है, चलती हूँ तो चक्कर से आ रहे हैं... और एक आप हैं की आपको अपने खड़े लण्ड की पड़ी है। आपका अगर इतना ही खड़ा हो रहा है तो मार लो मुठ, और सो जाओ। मैं ये चली बहू के कमरे में। वरना आपका कुछ भरोसा नहीं है। मुझे इधर नींद आई नहीं की आप जांघ फैला के मेरी फूली हुई चूत में अपना खड़ा लण्ड पेल दोगे। जानते ही हो कि थोड़ी देर रोएगी पर इतने जोर से चिल्लायेगी भी नहीं की बेटा-बहू उठ जाएं। नहीं बाबा मैं कौनो जोखिम नहीं ले सकती।
 
मैं चली, मैं चली, देखो सपनों की गली। अपने सैया के लण्ड से चुदवा के हो।

आज की चुदाई बस हुई इतनी। कर लेना कल चुदाई चाहे जितनी हो।

और मैंने आखिरी बार ससुरजी के लण्ड को चुम्मी दी तो लण्ड फनफना के उठ खड़ा हुआ।

ससुर- हे... मुन्ने की अम्मा, क्या कर दिया तूने? हे... अब तो लगता है मूठ मारके ही सोना पड़ेगा? खैर, तू झट से यहाँ से चली जा। इससे पहले की मेरे अंदर का शैतान जाग जाए और मैं तुझे पलंग के ऊपर पटक कर, जाँघ फैलाकर तेरी फुद्दी में मेरा कड़क लण्ड घुसाके, फर्राटेदार, दनदनाते हुए चोदना शुरू कर दें। चली जा मुन्ने की अम्मा ... चली जा यहाँ से।

और... मैं चम्पारानी डर के मारे तुरंत कमरे से बाहर निकली, और कमरे का दरवाजा खुलते ही एक साया बाथरूम की ओर जाता नजर आया। तो मैं रुक गई।

ससुर- क्या हुआ मुन्ने की अम्मा? मुझ पे दया आ गई। फिर से चुदवाने को तैयार हो गई। आ जा, आ जा मेरे लौड़े पे बैठ जा। खुद भी ले और मुझको भी दे दे मजा।

मैं- अरे, चुप करो... बाहर कोई बाथरूम गया है।

ससुर- अच्छा अच्छा।

वो साया थोड़ी ही देर बाद बाथरूम से निकला और मेरे कमरे की ओर बढ़ा। मैंने राहत की साँस ली। अरे ये तो सासूमाँ हैं।

मैं ठिठक गई। अगर ये सासूमाँ है तो... मुझे थोड़ी देर करनी होगी। वरना क्या बहाना बनाऊँगी की मैं कहाँ गई थी। इतने में ससुरजी मेरे पीछे आकर मेरी चूचियों को सहलाने लगे। और मैं फिर से गरम होने लगी। पर नहीं मुझे अपने मन को रोकना होगा।

मन तो कर रहा था की ससुर का लण्ड सारी रात घुसवाए पड़ी रहूं। पर मैंने अभी और ना चुदवाने का ही फैसला किया। आज की चुदाई दो बार की काफी है। मैं ये सब सोच ही रही थी की ससुरजी ने अपना लण्ड मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

मैंने कुछ सोचकर उनके लण्ड पर हाथ चलाना शुरू कर दिया। और ससुरजी ने मेरी चूचियों को दबाना, सहलाना शुरू कर दिया।

ससुर- अरे, मुन्ने की अम्मा। आज तो मूठ भी बढ़िया मार रही है। लगता है हमारी बहूरिया ने आज तुझे बहुत ही बढ़िया तरीके से सबकुछ सिखाया है। बस लगी रह... बस मेरा निकालने ही वाला है।

और इतना सुनते ही मैंने अपना हाथ उनके लण्ड से हटा लिया।

ससुर- क्या हुआ? मुन्ने की माँ क्या हुआ? अपना हाथ काहे हटा लिया तुमने? बस मेरा निकलने ही वाला था।

और मैं घुटनों के बल हो गई और उनके लण्ड को गप्प से मुँह में लेकर चूसने लगी। ससुरजी के मुँह सिसकियां निकलनी शुरू हो गई।

ससुर- हाय मुन्ने की अम्मा, आज तो तूने सचमुच कमाल कर दिया। झटके पे झटका दे रही हो मेरी जान। क्या गजब का चूसती हो? तूने तो आज अपनी छोटी बहन, याने हमरी साली को भी फेल कर दिया। वो भी इतने सुंदर तरीके से नहीं चूसती जैसा की तूने चूसा है। बस... मुन्ने की अम्मा अपने मुँह से लण्ड निकल दे। मेरा निकलने ही वाला है। अरे हटा ले... हटा ले।
 
मैंने उनका कहा अनसुना करते हुए लण्ड चूसना जारी रखा, और बड़े ही शानदार तरीके से चूस रही थी उनके लण्ड को।

ससुर- अरे, मुन्ने की अम्मा, मेरा निकल जाएगा। देख, निकाल ले वरना तुझे उबकाई आ जाएगी और उल्टी हो जायेगी। अरे निकल ले... निकल ले... अर्ररी... री... ले चूस ले... निकल गया... हाय... निकल गया। मैंने कितना । रोका, कितना कहा की निकाल ले। अब थूक दे... अरे... रे... मुन्ने की अम्मा तूने तो सारा पानी गटक लिया है। पूरा पी गई... लण्ड का सारा पानी निचोड़ लिया तूने तो... अरे गजब... ऐसा तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था की तू मुझसे आज दो-दो बार चुदवाएगी और मेरे लण्ड को इस तरह से चूसेगी भी। वाह... मुन्ने की अम्मा... वाह।

मैं (चम्पारानी)- वैसे मुझे तो मजा आया और आपको?

ससुर- मुझसे लिपटते हुए, अरे मुझे तो बिशवास ही नहीं हो रहा है मुन्ने की अम्मा की आज मुझे इतना मजा आ रहा है।

मैं- ठीक है। मुन्ने की अम्मा, ये चली अपनी बहुरिया के पास।

ससुर- हाँ हाँ.. बहुरिया ये चली अपने सास के पास।

मैं चौंकते हुए- क्या मतलब है? मुन्ने के बाबूजी।

ससुर- हाँ बहुरिया हाँ... मैं तुझसे लिपटते ही समझ गया था की तुम मेरी बहुरिया हो, मेरी बीवी नहीं। अरे... उसकी चूचियां तुमसे कितनी बड़ी-बड़ी हैं। तुमरी गाण्ड उसके जितनी कहाँ फैली है? तुमरी गाण्ड को दबाने से तो लगता है की चूचियां दबा रहा हूँ.. तुमरी फुद्दी सफाचट, उसकी झांटदार। वो आज तक मेरा लण्ड चूसी नहीं। तुमने तो आते ही शुरुवात ही लण्ड चूसने से की। अरे बहुरिया, मैं तुरंत समझ गया था की तुम बहुरिया ही हो।

मैं- आपने मुझे धोखा दिया बाबूजी। आपने अपनी बहुरिया को ही चोद दिया।

ससुर- मैंने कौनो धोखा नहीं दिया बहुरिया। उल्टे तुझे अपने मस्ताने लण्ड से खूब मजा दिया।


मैं- हाँ... बाबूजी... मजा तो खूब आया। पर मैंने तो सोचा था की आपको पता नहीं चलेगा। पर आपने तो मुझे पकड़ ही लिया है। अब कल आपसे कैसे आँखें मिला पाऊँगी?

ससुर- आँखें क्यों मिलाएगी बहुरिया? कल रात को फिर से आ जाना, चूत में लण्ड मिलाएंगे।

मैं- छीः बाबूजी आपको शर्म नहीं आती? अपनी बहरिया की चूत में लण्ड पेलने की, उसे चोदने की बातें करते हैं। हाय... बाबूजी... अब तो छोड़ दो। कहीं सासूमाँ उठ गई तो इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।

ससुर- पहले वादा कर बहुरिया की रोज मुझसे चुदवाएगी?

मैं- ऐसा कैसे होगा बाबूजी? रवीवार को तो आपके बेटे आते हैं। और बाकी दिन भी अम्माजी भी तो आपके साथ ही सोती हैं। (और इधर मैंने अपने देवर को भी चूतरस का स्वाद चखा दिया। उसका क्या होगा? क्या वो बिना चोदे रुक पाएगा?) खैर बाबूजी। अब मुझे जाने दीजिए, और मैंने उनके गाल पर एक पप्पी दिया। और उन्होंने भी मेरे गाल पर पप्पी की झड़ी लगा दी। आखीरकार मैंने उनको अपने से अलग किया और बाहर निकल गई।

मैं बथरूम जाकर पहले तो मूतने बैठ गई। पेशाब के साथ-साथ ससुरजी का माल भी निकल रहा था। और मेरी चूत से सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आने लगी। तो मेरे चेहरे पे मुश्कान छा गई। आखीरकार मेरी चूत से भी सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आने ही लगी। पहले तो चईएरर... चईएरर... की आवाज आती थी जब मैं पेशाब करती थी।

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एक दिन की बात है। जब मैं और सासूमाँ खेत में एक साथ पेशाब कर रहे थे तो मेरी चूत से चईएरर.. चईएरर... की आवाज और मेरी सासूमाँ की चूत से सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आ रही थी।

मैंने आश्चर्य से सासूमाँ को पूछा- अम्मा जी, क्या बात है? मेरी चूत से तो चईएरर... चईएरर.. की आवाज और आपकी चूत से सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आ रही है। दोनों की चूत में ऐसा अंतर क्यों?


सासूमाँ- अरे बहुरिया, मेरी भी पहले तेरी फुद्दी के जैसे ही चईएरर... चईएरर... की आवाज आती थी जब मैं पेशाब करने बैठती थी। पर तेरे बाबूजी ने अपने विशालकाय लण्ड को इसमें पेल-पेलकर इसकी सीटी खराब कर दी। इसीलिए अब चईएरर... चईएरर... की आवाज की जगह सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आ रही है।

और मैंने भी आज अपनी चूत की सीटी को अपने देवर और अपने ससुर से लण्ड पेलवा करके खराब कर ही ली। अब मेरी फुद्दी से भी सुर्ररर... सुर्ररर... की आवाज आ रही है। वाह.. चम्पारानी वाह... पेशाब करके मैं (चम्पारानी) बाथरूम से बाहर निकली, और अपने कमरे की तरफ बढ़ी।

जब अपने कमरे के पास पहुँची तो मेरे कदम जहाँ के तहाँ ही रुक गये।

मुझे याद आया- अरे... मैंने जाते वक्त तो अपने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया था। तो सासूमाँ पेशाब करने के लिए बाहर गई तो गई कैसे? और मैं सिर से पाँव तक काँप गई। इसका मतलब वो साया अम्मा जी याने मेरी सास का नहीं था।

तो फिर कौन? कौन हो सकता है? अरे हे भगवान्... मैं अपने देवर को तो भूल ही गई थी। देवर दिन में मेरी फुद्दी का रस चख चुका था। उसके लण्ड के मुँह में मेरी चूत का रस लगने के बाद जो भूचाल आएगा। उस बारे में तो मैंने सोचा भी नहीं था। हाय... ये क्या हो गया? देवर तो मुझे चोदने के लिए मेरे कमरे में खड़ा लण्ड लिए घुस चुका है, और कमरे में उसकी भाभी की जगह तो उसकी खुद की माँ है।

हे भगवान... अब क्या होगा? जब उसे पता चलेगा तो क्या होगा? मेरे बारे में क्या सोचेगा? इधर मैंने अपनी चूत का रस देके ससुर को मजा तो खूब दिया पर सुबह जब पता चलेगा की उनका बेटा उनकी बीवी को ही चोद दिया तो उनपे क्या गुजरेगी?

हाय मुझे ये सबको तुरंत रोकना होगा। मैं कमरे की तरफ जल्दी से बढ़ी और मेरे कदम दरवाजे पे आकर ठिठक गये। जैसे किसी ने मेरे कदमों को चाभी से बंद कर दिया हो।

कमरे में से घनघोर चुदाई की आवाज आ रही थी- “हाँ बेटा... हाँ हाँ... ऐसे ही चोदो... हाय... बहुत मजा आ रहा है... बेटा चोदो...”

और मैं सिर से पाँव तक कॉप गई और खिड़की से अंदर देखने लगी।

***** समाप्त ****
 
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