non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ - Page 5 - SexBaba
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non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ

गधे का वीर्य-रस इतनी जोर से शाजिया के मुँह में छुटा कि शाजिया का सिर उसके लंड से पीछे झटक गया। शाजिया को लगा जैसे उस के मुँह में गर्म झरना फूट पड़ा हो। उसने साँस लेते हुए और वीर्य को निगलते हुए अपने होंठ लंड के सुपाड़े पर कस दिये। गधे का वीर्य शाजिया के हलक से नीचे बहते हुए उसके मुँह में भी भरने लगा। शाजिया किसी भूखे भेड़िये। की तरह उसके वीर्य को निगल रही थी।
शाजिया उत्तेजना से कराही तो वीर्य से भीगे उसके गले से आवाज बुदबुदाती हुई निकली। गधा मज़े से अपने आँड खाली करता हुआ अपना लंड झटक रहा था और शाजिया भी उसे । चूसती हुई दोनों हाथों से लंड को रगड़ कर उसमें से वीर्य निचोड़ रही थी। उसने गधे के टट्टों को मुझते हुए देखा। वो सिसकती हुई और जोर से चूसने लगी।
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गधा रेंका और उसने अपना लंड शाजिया के मुँह में झटकना बंद कर दिया। उसका सुपाड़ा थोड़ सा सिकुड़ा और अब शाजिया का मुँह पहले जितना नहीं भरा हुआ था। गधे के वीर्य की लालची औरत अब अपना सिर गधे के लंड पर ऊपर-नीचे हुचकाती हुई अपने होंठ आगे खिसका कर लंड की छड़ के दो-तीन इंच अपने मुँह में लेने लगी। उसके हाथ अभी भी गधे के लंड पर आगे पीछे मालिश कर रहे थे।
गधा घुरघुराता हुआ पीछे हटा और झटक कर अपना लिसलिसा लंड शाजिया के मुँह से । बाहर खींच लिया। शाजिया के थूक के झाग से सना हुआ लंड ऊपर-नीचे झूलने लगा। शाजिया ने अपनी जीभ निकाल कर गधे के लंड के मूत-छिद्र से वीर्य का आखिरी कतरा चाटा और फिर अपना सिर पीछे झुका कर अपने मुँह में भरे वीर्य रस को अपने हलक में धीरे धीरे बहने देने लगी।
| “मादरचोद - कितना वीर्य था?” वो फुसफुसायी। वो गधे के वीर्य की इतनी अधिक मात्रा
से अचंभित थी। शाजिया ने देखा कि गधे का काफी वीर्य उसके होंठों से बह कर उसकी चूचियों और टाँगों पर भी गिरा हुआ था। यहाँ तक कि उसके हाई-हील के सैंडलों में। उसके पैरों की अंगुलियाँ भी वीर्य से चिपचिपा रही थीं। शाजिया के ख्याल से गधे के टट्टों
में जितना समा सके, उससे कहीं ज्यादा वीर्य, गधे ने उसके मुँह में उड़ेला था। वो आँड | अब कुछ मुझ से गये थे पर गधे का लंड अभी भी आशाजनक स्थिति में खड़ा था।
वडा था।
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गधे का लंबा लंड थोड़ा झुक गया था परंतु ये स्पष्ट था कि ज़रा सी कोशिश करने पर वो प्रबल लंड फिर से पूरा तन कर खड़ा हो सकता था। शाजिया ने उसके लंड को निहारा।
हालांकि इतने बड़े लंड को वो अपने मुंह में सुपाड़े से अधिक नहीं ले पायी थी पर न उसकी चूत तो उसके मुँह से कहीं ज्यादा गहरी थी।
अब जबकि, लंड को मुँह में ले कर चूसने की उसकी वासना शाँत हो गयी थी, उसकी । चूत अब गधे के लंड और उसके वीर्य के लिये तरसने लगी थी।
 
कुछ देर उसी अवस्था में कुतिया की तरह टीपू से चिपके रहने के बाद नजीबा ने औरंगजेब का लंड जड़ से पकड़ा और धीरे से अपने होंठ उसके लिसलिसे लंड से दूर खींचे। वो कुत्ता नजीबा के कंधों से चिपक कर धीमे से कराहया और फिर फुदक कर नीचे उतर । गया। नजीबा के मुँह से वीर्य का झाग निकल रहा था।

नजीबा ने अपने घुटनों के बीच में से अपना हाथ पीछे ले जाकर टीपू के टट्टों को पकड़ कर धीरे से झंझोड़ा। नजीबा का विचार था कि वो दोनों अभी भी एक दूसरे से चिपके हुए थे क्योंकि टीपू का लंड अभी भी उसकी चूत के अंदर था। पर फिर कुत्ते । का लंड धीरे से बाहर फिसलने लगा। उसके लंड की गाँठ कुछ क्षण के लिये नजीबा की चूत की पंखुड़ियाँ बाहर खींचे हुए चूत में टिकी रही और फिर पॉप की आवाज़ के साथ बाहर आ गयी और फिर पूरा लंड बाहर फिसल गया।
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टीपू फिर घूम कर उसके चूतड़ों पर चड़ गया। नजीबा बहुत खुश हुई कि टीपू फिर से उसे चोदने को बेकरार हो रहा था पर वो पहले कुछ पीना चाहती थी। उसका गला औरंगजेब के वीर्य से चिपचिपा रहा था। नजीबा ने अपने चूतड़ जोर से झटका कर हिलाये तो टीपू ठिनठिनाता हुआ उसके चूतड़ों से नीचे उतर गया।
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नजीबा डगमगाती हुई खड़ी हुई। कुत्तों के साथ विकृत चुदाई और नशे के कारण उसका सिर चकरा रहा था। उसे एहसास हुआ कि वो ज्यादा चलने की हालत में नहीं थी। वो बेडरूम के बाहर किचन तक इस हालत में गिरते-पड़ते जाना नहीं चाहती थी क्योंकि इससे शाजिया के जाग जाने का खतरा था और वो कुत्तों के साथ चुदाई के दूसरे दौर का मौका खोना नहीं चाहती थी। उसके बेडरूम में ही एक कोने में एक काँच की अलमारी में कुछ शराब की बोतलों के साथ सोडे की बोतलें भी सजी थीं। अपनी हालत पर नजीबा खिलखिला कर हंस पड़ी। अपने ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में वो लड़खड़ाती हुई वहाँ तक पहुँची और सोडे की एक बोतल खोल कर गटागट पीने लगी।
शराब की बोतलें देख कर उसका मन डोल गया। शराब उसकी कमज़ोरी थी। ऐसा नहीं था कि वो हर रोज़ पीती थी पर जब कभी भी वो शराब पीती थी तो उसे पीने पर नियंत्रण नहीं रहता था। उसने एक व्हिस्की की बोतल खोली और चूंकि वहाँ कोई ग्लास नहीं था, उसने बोतल ही मुँह से लगा कर चार-पाँच बड़े पैंट पीये। फिर बोतल लेकर वैसे ही लड़खड़ाती हुई चमड़े की कुरसी पर आकर बैठ गयी और धीरे-धीरे व्हिस्की की चुसकियाँ लेने लगी।
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टीपू लपक कर नजीबा के पास आ गया और उसने अपना थूथन नजीबा की जाँघों के बीच में फँसा दिया और उसकी लंबी जीभ नजीबा की चूत के ऊपर झटपट फिरने लगी। वो चपड़-चपड़ की आवाज़ करते हुए उसकी खुली हुई रसभरी चूत को चाटने लगा।
हाँआआआ.” नजीबा गुर्रायी जब उसकी फूली हुई क्लिट पर टीपू की जीभ की चपत पड़ने लगी। नजीबा की चूत में विकृत वासना की आग फिर से प्रज्वलित हो उठी थी। नजीबा की रिसती हुई चूत को टीपू लप-लप करके चाट रहा था और उसकी जीभ जल्दी-जल्दी झपट कर नजीबा की चूत से बहते रस को चाट रही थी। नजीबा अपनी चूत जोर से आगे ठेलने लगी। अपने थूथन पर नजीबा की चूत के जोर-जोर से टकराने से परेशान हो कर टीपू गुर्राया।
 
नजीबा ने एक हाथ में पकड़ी हुई बोतल से व्हिस्की पीते हुए दूसरा हाथ नीचे ले जाकर अपनी चूत को चौड़ा खोल दिया। कुत्ते की लंबी, गरम जीभ ठीक उसकी चूत के अंदर फिसल गयी और सनसनाहट से नजीबा की सिसकरी निकल गयी। टीपू ने फिर सुड़क कर अपनी जीभ उसकी चूत से उसकी नाभी तक फिरायी तो नजीबा अपनी कमर अकड़ा कर काँपने लगी। कुत्ते की गीली जीभ उसकी गाँड की दरार से शुरू हो कर उसकी खुली चूत में खिसकती और फिर नाभि के ठीक नीचे जाकर झटकते हुए फिसल जाती थी।


नजीबा की चूत के अमृत रस के छींटे उसके पेट पर पड़ने लगे। उस अमृत रस की एक धार उसकी जाँघों के भीतरी हिस्से से नीचे बह कर उसकी गाँड की दरार को भिगोने लगी। उसकी उत्प्लावी चूत को चाटते हुए टीपू पागल सा हुआ जा रहा था और उसकी चुस्त लंबी जीभ पूरे जोश से नजीबा की चूत पर चाबुक की तरह पड़ रही थी।


“ओह! ओह! ओओओओओहहहहह....” नजीबा मतवाली हो कर सिसकती हुई झटकझटक कर कुत्ते के थूथन पर अपनी चूत दबाने लगी।
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टीपू नजीबा की दहकती चूत में रिरियाने लगा। उसकी जीभ नजीबा की चूत के अंदर धंस कर फिर बाहर निकलती और फिर चूत के किनारे से फिसल कर उसकी क्लिट को भिगो देती। जैसे-जैसे नजीबा की चूत और अधिक गर्म हो कर ज्यादा मलाई उत्पन्न करने लगी, वैसे वैसे टीपू की उत्तेजना भी बढ़ने लगी और वो चूत के प्रवाह को मज़े से चाटने लगा।

“हाँ.. हाँ.. चोद मुझे अपनी जीभ से... साले... आआआ' नजीबा ने कराहते हुए।

अपनी जाँखें बंद करके उसके सिर के दोनों तरफ कस कर उसे जकड़ लिया और फिर आ जाँचें फैला कर चौड़ी खोल कर उसे अपनी चूत चाटने की खुली छूट दे दी।
उसने व्हिस्की की बोतल अपनी बगल में टिका दी और उस एक हाथ से अपनी क्लिट और दूसरे हाथ से अपने निप्पल नोचती हुई अपनी टाँगें खोलने बंद करने लगी। अचानक ही उसका बदन ऐंठ कर काँपने लगा और वो एकाएक झड़ गयी। लेकिन उसकी वासना अभी शाँत नहीं हुई थी। कुत्ते की उस निराली जीभ की मौजूदगी में वो बार-बार झड़ना चाहती थी। नशे में उसका सिर चकरा रहा था और आँखें बोझल थी पर उसकी कामुक्ता अपनी चोटी पर थी और चूत की आग बुझने की जगह और दहकती ही जा रही थी।

नजीबा ने टीपू के सिर पर हाथ फिराया। “चाट मेरी चूत... और चाट... प्यारे चोदू कुत्ते?' नजीबा घुरघुरायी। टीपू ने वैसे भी चाटना बंद नहीं किया था।
पहले से रिस रहे चूत-रस और नजीबा के झड़ने के वक्त निकले चूत रस के स्वाद में टीपू फर्क कर सकता था और उसे नया रस अधिक स्वादिष्ट लग रहा था। नजीबा के झड़ने के वक्त टीपू ने उसकी चूत चाटना जारी रखा था और अब वो एक बार फिर नजीबा की चूत से वैसा ही रस छुड़ाने के लिये नये जोश में चाट रहा था।

नजीबा ने गर्दन घुमा कर कमरे में चारों तरफ एक नज़र डाली पर उसे कहीं भी औरंगजेब दिखायी नहीं दिया। उसे फिर से औरंगजेब लंड चूस कर स्वाद लेने की कामना हो रही थी।
और औरंगजेब को कमरे में ना पाकर उसे निराशा हुई। नजीबा ने फिर अपनी बगल में झुक कर एक नज़र टीपू के लंड पर डाली।
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“मादरचोद! यू फकिंग डॉग” नजीबा ने गहरी साँस ली जब उसने देखा कि टीपू का बड़ा लाल लंड बाहर निकला हुआ फुफकार रहा था। हालाँकि इस समय उसका लंड करीभ छः इंच ही था पर नजीबा अब तक जान गयी थी कि यह उसके लंड की असली लंबाई और मोटायी नहीं थी। कुत्ते का लंड वास्तव में चूत के अंदर जा कर फुलता है। चूत के बाहर तो लंड का आकार उसके अंदर की हड्डी का आकार होता है जो कि कुत्ते के । उत्तेजित होने पर अपनी झिल्ली से बाहर निकल आती है। नजीबा ने देखा कि लंड का छिद्र फैला हुआ था उसमें से वीर्य की कुछ बूंदें रिस कर कार्पेट पर टपक रही थीं। नजीबा आँखें फाड़े मंत्रमुग्ध सी टीपू के झटकते लंड को निहार रही थी कि उसे इस बात का एहसास ही नहीं था कि उसके होंठों से राल निकल कर उसकी ठुड्डी से नीचे बह रही थी।
 
नजीबा ने अपना एक पैर बढ़ा कर किनारे से टीपू के नीचे खिसका दिया और उसके लंड को अपने सैंडल के तले से सहलाने लगी। फिर उसने पैर घुमा कर टीपू के लंड को अपने पैर के ऊपरी हिस्से से छुआ। नजीबा की गहरी आखें वासना और खुशी से। फैल गयीं जब उसे एहसास हुआ की कुत्ते का लंड कितना सख्त और गर्म था। नजीबा ने अपना दूसरा पैर भी टीपू के नीचे खिसका दिया और उसके लंड को अपने दोनों पैर के सैंडलों के तलों के बीच में धीरे से सहलाने लगी। टीपू के लंड का पारदर्शी चिपचिपा रस उसके सैंडलों और पैरों पर बहने लगा।


टीपू भी नजीबा की चूत चाटते हुए आगे पीछे हिल कर नजीबा के सैंडलों के बीच में अपना लंड चोदने लगा। एक बार तो नजीबा के मन में ख्याल आया कि अपने पैरों और सैंडलों से ज़ोर-ज़ोर से कुत्ते का लंड सहलाते हुए उसे स्खलित कर दे पर फिर उसने सहलाने की गति कम कर दी। औरंगजेब कहीं दिखायी नहीं दे रहा था तो उसे चुदाई के लिये टीपू का लंड ही उपलब्ध था। साथ ही नजीबा एक बार फिर कामानंद की चोटी की तरफ अग्रसर होने लगी थी। कामानंद की लहरें उसके बदन में उठ रही थीं और उसके कड़क निप्पलों से शुरू हो कर उसकी चूत से होती हुई उसके टाँगों में दौड़ने लगी थीं।


“चाट ले... चाट ले मेरी चूत... सक इट... ओह गॉड' वो चिल्लायी। उसकी आवाज़ नशे में डगमगा रही थी।
वो भाप के इंजन की तरह हाँफ रही थी। टीपू भी वैसे ही हाँफ रहा था और उसकी गरम साँसें नजीबा की चूत के अंदर लहरा रही थीं। नजीबा इतनी गरम थी कि उसे लगा कि उसका बदन जलने लगेगा।
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चरम कामानंद की तीसरी लहर उसके बदन में दौड़ गयी और फिर चौथी लहर। उसके बाद कामानंद की मीठी लहरें उसके अंदर इतनी तीव्रता से एक के बाद एक उठने लगीं की सब लहरें आपस में मिल कर परमानंद का विस्तृत कंपन बन गयीं। नजीबा स्वर्गिकसुख की चोटी पर थी। नजीबा का पूरा बदन काँपने लगा और उसे लगा कि जैसे वो पिघल रही है। उसकी संपूर्ण चेतना, कुत्ते की जीभ पर पिघलती हुई अपनी चूत पर केंद्रित थी।

“चाट ले मेरी चूत की मलाई नजीबा फिर चींखी।

कुत्ते के जीभ चूत का पूरा रस समेट रही थी। नजीबा के चूत-रस को बेसब्री से पीते हुए टीपू का कण्ठ धड़क रहा था।

आआआआआईईईईईई ऊऊऊआआआआआआ...” नजीबा आनंद की चोटी पर पहुँच कर जोर से चीखी और उस चरम आनंद की आखिरी लहरें उसके अंदर फूट पड़ीं। उसकी चूत पूर-द्वार (फ्लड-गेट) की तरह खुल गयी और चूत-रस का दरिया कुत्ते की अधीर जीभ और मुँह के अंदर बहने लगा।

नजीबा के शरीर की ऐंठन और कंपन कम हो कर फिर बंद हो गयी। उसके होंठों पर आनंदमय मुस्कुराहट आ गयी और उसकी नशे में बोझल आँखें स्वप्नमय हो गयीं। उसने टीपू के सिर पर हाथ फिराया। वो कुत्ता अभी भी निष्ठा से उस गर्म चुदक्कड़ औरत की स्वादिष्ट चूत चाट रहा था। नजीबा कि इच्छा तो हुई कि उसका चाटना जारी रहने दे क्योंकि वो जानती थी कि कुत्ते के चाटने से वो उसकी चूत कुछ ही पलों में फिर से कामानंद की चोटी पर चढ़ाई शुरू कर देगी। परंतु नजीबा को बहुत जोर से पेशाब लगी

उसने अपनी बगल में रखी बोतल उठा कर व्हिस्की के दो-तीन बड़े पैंट पिये और फिर वो बोतल वहीं रख कर बेडरूम से अटैच्ड बाथरूम की तरफ लड़खड़ाती हुई लगभग दौड़ पड़ी। परंतु नशे में होने के कारण वो हाई हील सैंडलों में अपना संतुलन खो बैठी और रास्ते में ही लुढ़क गयी। उसका पेशाब वहीं कार्पेट पर निकलने लगा तो पहले तो उसने रोकने की कोशिश की पर फिर यह सोच कर कि ‘जाने दो.. क्या फर्क पड़ता है, उसने वहीं मूतना शुरू कर दिया और खिलखिला कर हँसने लगी।

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टीपू जो पहले से तैयार था, नजीबा को घुटनों और हाथों के बल गिरी हुई देख कर लपक कर पीछे से उसके चूतड़ों पर सवार हो गया। टीपू भी चुदाई के दूसरे दौर के लिये नजीबा जितना ही उत्तेजित था। नजीबा के कुल्हों पर अपनी अगली टाँगें कस कर लपेट कर टीपू उसके चुतड़ों चिपक कर हाँफने लगा। नजीबा को उसका लंड अपनी चूत में घुसता महसूस हुआ।
ठेल दे मेरी चूत में अंदर तक, नजीबा बड़बड़ायी, “भर दे अपना बड़ा चोदू लंड मेरी... ऊऊघघघ.... फक माय चूत, कुत्ते साले! भर दे अपने चोद बड़े कुत्ते-लंड स! ओहहहह, ० हाँ! चोद डाल मेरी चूत को... मादरचोद... कुत्ते के लंड! फिर एक बार अपने वीर्य से मेरी चूत को निहाल कर दे।” नजीबा अपने चूतड़ और ऊपर उठा कर कुत्ते से अपनी चूत में लंड चोदने के लिये जिद्द करने लगी।


टीपू उत्तेजना से भौंका। अब चूंकि उसके लंड का सुपाड़ा चूत में घुस चुका था, टीपू के लिये आगे आसान था। उसका शरीर उत्तेजना से कांप रहा था और वो बुरी तरह हाँफते हुए नजीबा की कमर पर राल बहाने लगा। फिर उसने अपना पूरा लंड नजीबा C की दहकती चूत में घुसेड़ना चालू कर दिया।

ओओहहहह” नजीबा ठिनठिनायी, जब उसे अपनी चूत में कुत्ते का लंड धंसता हुआ महसूस हुआ। उसने अपनी गाँड उसके गदा जैसे लंड पर पीछे की तरफ ढकेल दी। टीपू ने घरघराहट की आवाज़ के साथ फिर से एक धक्का लगा कर पूरा लंड नजीबा की चूत में ठेल दिया। अब उसका लंड जड़ तक नजीबा की चूत में गड़ा हुआ था।
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नजीबा के कूल्हों से चिपक कर रिरियाते हुए टीपू ने नजीबा की मीठी और चिपचिपी | चूत में अपने पूरे लंड की कस कर पैंठ बनायी हुई थी। अपनी चूत में कुत्ते के कड़क लंड के भरे होने के एहसास से नजीबा रोमांचित हो रही थी।

अपनी चूत में लंड की पैंठ कायम रखे हुए नजीबा अपनी गाँड और चूतड़ हिलाकर अपनी चूत कुत्ते के लंड पर घिसने लगी। उसकी चूत की दीवारें धड़क उठीं और लंड पर जकड़ कर लहराने लगीं। उसके ठोस चूतड़ ऊपर नीचे हिलने लगे। नजीबा की गीली चूत गन्ने का रस निकालने की मशीन की तरह कुत्ते के लंड को निचोड़ रही थी।

टीपू अभी भी पूरा लंड नजीबा की चूत में गाढ़े हुए उन्मत्तता से तेज़ और महीन आवाज़ में कराह रहा था। टीपू के सख्त लंड पर अपनी चूत चोदती हुई नजीबा ऊपरनीचे हिलने लगी।
नजीबा ने अपनी गाँड उस चोदू कुत्ते को सौंप दी और अपना सिर अपने आगे अपनी बांहों पे झुका कर टिका लिया। टीपू जब उसकी चूत की कस कर धुआंधार चुदाई करने लगा तो नजीबा भी उत्तेजना और जोश में भर कर हिलने और थरथराने लगी।

आनजीबा की चूत में अपना मोटा लंड पेलते हुए टीपू की पिछली टाँगें नजीबा के घुटनों के बीच में उछल रही थीं और वो लगातार नजीबा की गोरी चिकनी कमर पर राल बहा रहा था। नजीबा कई बार चींखी और चिल्लायी और उसने अपनी चूत उस शानदार लंड पर पीछे ठेल कर चोदी। वासना और कामुक्ता से कराहती और हाँफती हुई नजीबा कुत्ते के चोदते हुए लंड पर अपनी चूत गोल-गोल घुमा कर कई बार झड़ी।
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कामानंद से भरपूर लहरें नजीबा की चूत से होते हुए उसकी जाँघों में दौड़ने लगीं। उस गर्म और चुदक्कड़ औरत की चूत बार-बार मलाई छोड़ते हुए झड़ रही थी। उसकी चूत और क्लिट वासना के ज्वार भाटे की चोटी पर पहुँच कर फूट के शांत हो जाती और फिर ।। अगली चोटी पर चढ़ने लगती। “झड़ जा... ऊफ्फ्हहह.... भर दे मुझे... ऊघघघघ... छोड़ दे अपना गर्म वीर्य मेरी चूत में?” नजीबा वासना के नशे में बड़बड़ाने लगी। चूत भर कर कुत्ते के गर्म वीर्य की चाह में वो अपनी गाँड उचका-उचका कर टीपू के लंड पर अपनी चूत चोदने लगी। टीपू भी लगातर जोर-जोर से अपना लंड उसकी चूत में पेलते हुए भौंक रहा था। जिस तरह उस कुत्ते का लंड नजीबा की चूत चोद रहा था और उस के लंड की गाँठ फूल कर चूत की दीवारों को फैलाने लगी थी, उससे नजीबा को आभास हो गया की कुत्ता उसकी चूत में अपने वीर्य की बाढ़ छोड़ने को तैयार है।


कुत्ते के लंड की गाँठ नजीबा की चूत में फूल गयी और नजीबा को अपनी चूत में कुत्ते के वीर्य का दरिया बहता हुआ महसूस हुआ। वो फिर एक नये आनंद से चींख पड़ी और उसकी क्लिट में फिर एक बार जोरदार विस्फोट हुआ और उसकी चूत की दीवारें कुत्ते के लंड पर सिकुड़ गयीं। उसकी चूत की दीवारें धड़कती और लहराती हुई कुत्ते के लंड से वीर्य की आखिरी बूंदें दलदली चूत में दुहने लगीं।


जब टीपू के धक्के बंद हो गये तो नजीबा को एहसास हुआ कि फिर से कुत्ते के लंड के गाँठ अंदर और अधिक फूल कर उसकी चूत को फैला रही थी और वो कुत्तिया की तरह फिर उससे चिपक गयी थी। इस अतिरिक्त उत्तेजना से उसकी चूत फिर एक बार घड़घड़ा कर झड़ गयी। टीपू ने अपनी टाँगें नजीबा की कमर से हटा कर नीचे ज़मीन पर रखीं तो उसके लंड की फूली हुई गाँठ से नजीबा की चूत निर्दयता से खिंच गयी और जब टीपू ने घूम कर अपनी टाँगें पीछे घसीटीं तो अचनाक उठे दर्द से नजीबा चिल्ला उठी। अब नजीबा कुत्तिया की तरह कुत्ते की गाँड से चिपकी हुई थी।
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तभी औरंगजेब भौंकता हुआ कमरे में दाखिल हुआ और धीरे से नजीबा के पीछे आकर अपना थूथन उसके चूतड़ों में घुसा दिया। नजीबा ने जब खोल में से बाहर लटके हुए औरंगजेब के लंड का आकार देखा तो उसकी मदहोश आखें कामवासना से चमक उठीं। कुछ देर पहले के अनुभव से नजीबा जानती थी कि टीपू के लंड की गाँठ को धीली पड़ने में । पंद्रह-बीस मिनट लग जायेंगे। इसलिये उसने हाथ बढ़ा कर औरंगजेब को अपने मुह के पास खींचने की कोशिश की पर औरंगजेब टस-से-मस नहीं हुआ।

औरंगजेब चकरया हुआ था। वो औरत कुत्तिया की तरह चुदाई की मुद्रा में थी पर उसकी चूत भरी हुई थी। नजीबा ने फिर एक बार पुचकारते हुए उस आगे खींचा तो वो आगे खिसक
आया। नजीबा ने अपने होंठ खोल कर उसे अपने सामने आने के लिये फुसलाया पर औरंगजेब इस बार लंड चुसवाने के मूड में नहीं था। वो नजीबा के मम्मों और कमर पर जीभ फिराने लगा। फिर उसने उछल कर बगल से अपनी टाँगें नजीबा की कमर पर रख दीं और ज़ोरज़ोर से आगे पीछे हिल कर साइड से अपने लंड से उसकी कमर पर चोट मारने लगा।

औरंगजेब व्याकुल हो कर जोर-जोर से गुर्राने और भौंकने लगा। वो नजीबा की कमर से नीचे उतरा और फिर उसके पीछे जाकर नजीबा की चूत और टीपू के टट्टों को चाटने लगा और फिर नजीबा के चूतड़ों की दरार में चाटते हुए उसने अपनी जीभ उसकी गाँड के छेद पर लगा दी। नजीबा ने कलबला कर अपने कुल्हे पीछे की तरफ ढकेल कर अपनी गाँड औरंगजेब के थूथन पर दबा दी।
 
अचानक औरंगजेब स्वाभाविक्ता से उछल कर नजीबा के चूतड़ों पर सवार हो गया और अपनी अगली टाँगें नजीबा की कमर पर कस के जकड़ लीं। उसने आगे-पीछे हिलते हुए अपने पीड़ित लंड से नजीबा की चूत पर वार किया पर नजीबा की चूत तो टीपू के लंड से। भरी थी। औरंगजेब का चिकना लंड टीपू के लंड की जड़ से टकरा कर वापस उछल गया। वो जोर से रिरियाते हुए भौंका और नजीबा की भरी चूत से हैरान हो कर पागलों की तरह आगे-पीछे हिलने लगा। हर धक्के के बाद उसका लंड नजीबा के चूतड़ों से टकरा कर पलट जाता। नजीबा के चूतड़ कुत्ते के लंड के वार से दुखने लगे थे क्योंकि कुत्ते के लंड में ठोस हड्डी होती है जिससे नजीबा को चोट लग रही थी।

नजीबा की भी चीख निकल गयी और उसने फिर औरंगजेब को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की लेकिन औरंगजेब ने उसकी कमर अपने अगले पैरों से कस कर जकड़ी हुई थी। औरंगजेब ने एक और धक्का लगाया तो इस बार उसका लंबा लंड नजीबा के चूतड़ों की दरार में फिसल गया और उसके लंड का सुपाड़ा नजीबा की गाँड के छेद पर टेहोक गया।
“ओहहहहहह” नजीबा जोर से सिसकी और उसकी आँखें चौड़ी फैल गयीं। एक नयी । संभावना से औरंगजेब अपने लंड का सुपाड़ा नजीबा की गाँड के छेद पे ठोकने लगा।
मादरचोद... साला चोद कुत्ता... मेरी गाँड में लंड पेलने की कोशिश कर रहा है, नजीबा नशे में भरी कर्कश आवाज़ में बोली।
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नजीबा को कुत्ते के लंड की नोक अपनी गाँड में दहकती महसूस हुई तो वो एक क्षण के लिये हिचकिचायी पर फिर उसके होंठों पे वासना भरी कुटिल मुस्कुराहट आ गयी। अपनी चूत और गाँड में एक साथ दो-दो कुत्तों के लंड भरे होने का विचार उस हवस से भरी चुदक्कड़ औरत को कामवासना से पागल बना रहा था। वो पहले भी कई बार अपनी गाँड मरवा चुकी थी और उसे दो-दो आदमियों के लंड एक साथ अपनी चूत और गाँड में लेने का सुखद अनुभव था पर दो कुत्तों से एक साथ वही मज़ा लेने के विचार से वो उत्तेजना से थर-थर काँपने लगी।
- उसने अपना हाथ पीछे ले जाकर औरंगजेब का आधा लंड जड़ के पास से अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसके दहकते हुए सुपाड़े को अपनी तंग गुफा में ठेलने लगी। कुत्ता रिरियाते
हुए अपना लंड नजीबा की मुट्ठी में चोदने लगा। उसके लंड ने नजीबा की गाँड के छिद्र * पर धक्का मारा तो वो छोटा सा छेद फड़फड़ाता और लहराता हुआ फैल गया। वो गाँड-छिद्र
पहले से ही कुत्ते के थूक से भीगा हुआ था। और अब कुत्ते के लंड के मूत-छिद्र से चिकने रस की कुछ बूंदें उस छेद में छलक गयीं और गाँड को और चिकना कर दिया। कुत्ते के लंड के नुकीले सुपाड़े की नोक नजीबा की गाँड में ज़बरन घुसने लगी। नजीबा ने अपनी गाँड उसके लंड की तरफ पीछे ठेल दी। वो भी कुत्ते के लंड से अपनी गाँड भरने के लिये उतनी ही उतावली थी जितना कि वो कुत्ता उसकी तंग गाँड में अपना लंड पेलने के लिये उतावला था।
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लेकिन औरंगजेब के लंड का सुपाड़ा गाँड के छोटे से छेद में सिर्फ नुकीला सिरा घुसा कर फैंस कर जाम हो गया। नजीबा का सुडौल जिस्म थरथरा रहा था। उसने अपनी हथेली पर तीन-चार बार थूक कर अपना थूक एकत्र किया और फिर वो हाथ पीछे ले जाकर औरंगजेब के लंड पर वो थूक मल कर उसे चिपचिपा बनाने लगी। फिर उसने अपना थूक अपनी गाँड के छेद पर भी लगाया और दूसरे हाथ से कुत्ते का लंड पकड़ कर उसका सुपाड़ा अपनी चत में पेल दिया।

लंड का सुपाड़ा गाँड में फँसने के बाद औरंगजेब ने ज़ोरदार चुदाई शुरू कर दी। अपने प्रत्येक धक्के के साथ वो अपना लंड थोड़ा और अंदर तक नजीबा की गाँड में पेल देता। नजीबा को कुत्ते का गर्म लौड़ा अपनी गाँड की सुरंग में फँस कर धीरे-धीरे गाँड की अंतड़ियों में बढ़ता हुआ महसूस हुआ। "आआआधघहहहहह।" नजीबा चिल्लायी। औरंगजेब का लोहे की तरह सख्त लौड़ा धधकता हुआ नजीबा की गाँड में चीरता हूआ अंदर धंस रहा था। जैसे जैसे वो भभकता हुआ लंड उसकी गांड की गहराइयों में उतरता महसूस हुआ तो नजीबा किकयाने और चिल्लाने लगी। उसकी गाँड की सुरंग उस विशाल लंड की मोटाई के अनुकूल फैलने लगी। गाँड की तंग दिवारें लहरा कर कुत्ते के लंड को गहराइयों में खींचने लगीं।


उस कुत्ते ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया और गाँठ के अलावा बाकी का पूरा लंड नजीबा की गाँड में लुप्त हो गया। वो चीखने लगी जब उसे लंड का अगला हिस्सा गाँड कि
अंतड़ियों में धधकता महसूस हुआ। अपना पूरा लंड अंदर ठेल कर कुत्ता कस कर नजीबा | के चूतड़ों पर चिपका हुआ था और उसकी फूली गाँठ और आँड टीपू के लंड पर दब रहे थे।
- कुछ क्षणों के बाद, नजीबा की गाँड की पेशियाँ पर्याप्त रूप से ढीली पड़ गयीं और नजीबा को अब गाँड में लंड का एहसास आनंद दे रहा था। इससे भी ज्यादा मज़ा उसे उस सनसनी से आ रहा था जब-जब उसे दोनों कुत्तों के लंड अपनी चूत और गाँड के बीच की झिल्ली पर एक साथ रगड़ते हुए महसूस हो रहे थे। नजीबा की चूत और गाँड के द्वारों पर टीपू का लंड औरंगजेब की बड़ी गाँठ पर रगड़ खा रहा था। नजीबा को अपनी चूत में टीपू के लंड की गाँठ और फैलती हुई महसूस हुई। उसकी गाँठ की ढीली पड़ कर लंड चूत में से जल्दी आज़ाद होने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।

नजीबा अपनी गाँड झटकाती हुई आगे-पीछे हिलाने और अगल-बगल झुलाने लगी। जब नजीबा की गाँड लालच से औरंगजेब के लंड को निचोड़ने लगी तो औरंगजेब ने गुरते और भौंकते। हुए एक पल के लिये अपना पूरा लंड नजीबा की गाँड में स्थिर रखा। नजीबा की गाँड के छेद के अंदरूनी छल्ले फड़फड़ा कर कुत्ते के फूले हुए लंड को खींच और घसीट रहे थे।
 
नजीबा को यह पूरा अनुभव अपनी सबसे विकृत कामकल्पना से भी बढ़ कर महसूस हो रहा था। वो कभी सोच भी नहीं सकती थी उसे ऐसा यौन सुख भी कभी मिल सकता है। उसकी कमोत्तेजना इस कद बढ़ गयी थी कि उसके निप्पल बिना छुए ही कड़क हो गये। थे। नजीबा पर कामुक्ता का जुनून सा सवार हो गया था। अपनी गाँड में कुत्ते के लंड की धुंआधार चुदाई से नजीबा की साँसें उखड़ सी रही थीं और वो अनाप-शनाप बक रही। थी... “चोद गाँडू.... मेरी गाँड... मार ले मेरी गाँड... फाड़ डल साले... गाँड मेरी... कुत्तिया की गाँड... पेल दे... चूत का भी भोसड़ा हो गया... मादरचोद कुत्तों... भर दो मेरी चूत और गाँड अपने वीर्य से... तुम दोनों की कुतिया हूँ मैं... हाय.. ऊऊऊऊ... कितना मज़ा... क्या जिंदगी है... चोदो.. गाँड.. चूत... लंड... आआआआहहहह....” इस समय अपनी चूत और गाँड में एक साथ दो लंड भरे होने के कामुक एहसास के अलावा उसे और किसी। बात की परवाह नहीं थी।



औरंगजेब अपना बड़ा लंड पूरे जोश से उस औरत की गाँड में पेल रहा था। उसके लंड के आखिर की बड़ी गाँठ नजीबा की गाँड पर जोर-जोर से टकराने लगी। औरंगजेब अपनी गाँठ भी गाँड में ठेलने का भरसक प्रयास कर रहा था पर उसे सफ़लता नहीं मिल रही थी। नजीबा का दिमाग शराब और वासन के नशे में चूर हो कर सन्न हो गया था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी गांड के छेद पर क्या चीज़ इतनी जोर से चोट मार रही है। टीपू से दो बार चुदने के बाद उसे गाँठ के बारे में तो पता था और उसकी चूत में इस समय भी टीपू के लंड की गाँठ फैंसी हुई थी पर उसकी गाँड पे टकराने वाली चीज़ उसे गाँठ से भीन्न लग रही थी। उसने अपना एक हाथ पीछे ले जा कर अपनी गाँड पे टकराती हुई चीज़ को छुआ। उसने मुँह खोल कर जोर से गहरी साँस ली जब छू कर उसे महसूस हुआ कि वो कुत्ते के लंड की गाँठ ही थी। उसकी चूत में दो बार फंस चुकी टीपू की बड़ी गाँठ जैसी ही थी पर आकार में उससे कहीं ज्यादा फूली हुई थी। जब नजीबा ने औरंगजेब का लंड अपने मुँह में चूसा था तब भी यह गाँठ इतनी नहीं फूली थी।
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इतनी मस्ती और उत्तेजना में होने के बावजूद भी नजीबा को पहली बार थोड़ी चिंता सी हुई और ना चाहते हुए भी क्षणिक प्रतिक्रिया से उसने कुत्तों से स्वयं को दूर खींचने की कोशिश की। लेकिन उसकी चूत में एक कुत्ते का लंड हँसा हुआ अभी भी धड़क रहा था और दूसरा कुत्ता उसकी गाँड में लंड पेलते हुए उसकी कमर को जोर से जकड़े हुए था जिस वजह से नजीबा उनसे अलग नहीं हो पायी।


औरंगजेब ने धक्के लगाना जारी रखा और हर धक्के के साथ नजीबा उसके लंड की गाँठ अपनी गाँड पर और जोर-जोर से और बर्बरता से टकराती महसूस होने लगी। दर्द के कारण उसकी आँखों में आंसू निकल आये। इसके बावजूद चुदाई के जुनून में भरे उसके जिस्म को मज़ा भी आ रहा था और उसका प्रतिरोध कुछ कम हो गया था। काफी समय तक औरंगजेब अपनी गाँठ नजीबा की गाँड के हल्के प्रतिरोध के बावजूद अंदर ठेलने की कोशिश करता रहा। हालाँकि नजीबा ने अपनी गाँड में कई छोटे-बड़े लंड मज़े से लिये थे पर वो जानती थी कि कुत्ते की इस असमान्य मोटी गाँठ का अंदर घुसना संभव नहीं होगा। पर फिर एक जबरदस्त धक्के के बाद वो क्रिकेट की गेंद जितनी मोटी गाँठ अंदर घुस गयी और वो दोनों चिपक गये।
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“आआआआईईईईईईईईई भोंसड़ी के... फाड़ डाली मेरी गाँड. चिपक गया तू भी मादरचोद... ऊऊऊईईई आआआईईई...” नजीबा को जब वो फूली हुई गाँठ अपनी गाँड में चीरती हुई अंदर धंसती हुई महसूस हुई तो वो आश्चर्य और पीड़ा से चींख उठी।

चुदाई और व्याभिचार से भरी अपनी जिंदगी में नजीबा ने कभी स्वयं को इतना भरा हुआ महसूस नहीं किया था। वो दो कुत्तों के लंड अपनी चूत और गाँड में फँसाये उनसे चिपकी हुई थी। औरंगजेब के लंड की संपूर्ण लंबाई नजीबा को अपनी गाँड में ऊपर-नीचे फिसलती महसूस हो रही थी। वो लंड जितना हो सके, उतना अंदर तक पहुँचने का प्रयास कर रहा था। अंदर फैंसी लंड की गाँठ की मोटाई नजीबा की गाँड को बुरी तरह फैला कर चौड़ा कर रही थी। नजीबा ने प्रैशर थोड़ा कम करने की नियत से थोड़ा हिलने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ।
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औरंगजेब ने नजीबा की गाँड में चुदाई जारी रखी। उसे परवाह नहीं थी कि उसका लंड कितना बड़ा था और उसकी कुत्तिया, नजीबा, की गाँड उस लंड की मोटी गाँठ को अपने अंदर समायोजित करने के लिये बहुत छोटी थी। जहाँ तक उस कुत्ते की दिलचस्पी का सवाल था, तो उसका लंड उसकी कुत्तिया की गाँड में फँसा हुआ था और जब तक वो झड़ नहीं । जाता तब तक उसकी कुत्तिया के परे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। उसने तुरंत नजीबा को और भी जोर से जकड़ लिया जितना हो सके अपना लंड नजीबा की जकड़ती गाँड में गहरायी तक पेलते हुए कस कर चोदना जारी रखा।
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जब कुत्ते के लंड की गाँठ ने फूलना जारी रखा तो नजीबा ने अपना सिर झटकते हुए कराहना शुरू कर दिया। अपनी गाँड में एक कुत्ते के लंड के धक्कों की ताकत और उसकी गाँठ की मोटाई और दूसरे कुत्ते के लंड की उतनी ही मोटी गाँठ के चूत में फँसे होने से कुछ ही क्षणों में उसके हलक से “ऑऑघंघ आआओं ऊऊ आआऑघ' जैसी घुरघुराने की आवाजें निकलने लगीं। नजीबा के कराहें और ‘घों घों की आवाजें उसके चूतड़ों पर पड़ रही औरंगजेब के टट्टों की थाप के साथ मिलने लगी।
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जो गाँठ कुछ देर पहले क्रिकेट की गेंद जैसी महसूस हो रही थी वो अब नजीबा को ऐसे महसूस हो रही थी जैसे उसकी गाँड में अंदर फुटबॉल ढूँसी हो। जब भी औरंगजेब अपना लंड पीछे खींचता, तो उसकी गाँठ नजीबा की गाँड जैसे चीर-सी देती थी और नजीबा को एक ही पल में एक साथ जीने-मरने का अनुभव हो जाता। उसके गालों पर आँसू बह । रहे थे। उसके मन का एक हिस्सा गाँड में से लंड को बाहर निकालना चाहता था। नजीबा ने एक बार कोशिश भी की पर वो एक नहीं दो-दो लौड़ों से बंधी हुई थी। पर फिर उसके मन का दूसरा मौलिक हिस्सा, चाह रहा था की वो लंड जितनी जोर से हो सके उसकी गाँड की धुनाई करे -- उसकी गाँड तब तक चीरते हुए मारता रहे जब तक वो आनंद से चींखने ना लगे।

तभी उसे एहसास हुआ कि वो असल में अपने चूतड़ पीछे ठेलती हुई अपनी गाँड मरवाने में कुत्ते का साथ दे रही थी। कुत्ते की मोटी गाँठ के आघात से पुनः बहाल हो कर नजीबा फिर मस्त होने लगी थी और उस समय उसकी जिंदगी की एक ही अभिलाषा थी कि वो कुत्ता उसे अपनी कुत्तिया बना कर उसकी गाँड मार कर उसका भुर्ता बना ले। नजीबा के आगे-पीछे हिलने से उसकी चूत और गाँड में भरे दोनों कुत्तों के लंड पतली सी झिल्ली से जुदा पटरियों पर धड़कते हुए इस तरह फिसलने लगे जैसे किसी अंधेरी गुफा में दो रेलगाड़ियाँ दौड़ रही हो। उसे निराशा सी हो रही थी कि गाँड में गाँठ फँसे होने की वजह से औरंगजेब का लंड गाँड में ज्यादा आगे पीछे नहीं हिल पा रहा था। औरंगजेब के लंड की गाँठ की मोटाई के कारण उसे अपनी टाँगें फैलनी पड़ी जिससे टीपू के लंड पर जकड़ी उसकी चूत पर ऐंठन कुछ कम हो।
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दोनों कुत्ते हाँफ रहे थे और दोनों की राल बह रही थी। औरंगजेब की राल नजीबा की कमर पर बह रही थी पर नजीबा को परवाह नहीं थी क्योंकि उसके खुद के मुँह से ढेर सारा थूक बह रहा था। उसकी गाँड की दीवारें अकड़ कर हिलोरें मार रही थीं और चूत बार-बार झड़ कर कलकल की आवाज़ के साथ अपनी मलाई छोड़ने लगी। नजीबा का सिर आ वासना से चूर हो कर चकरा रहा था और वो जोर-जोर से सिसक रही थी।

उसे लगा जैसे वो अपने अंदर कुत्तों के लौड़ों की ऊँफकारने की आवाज़ सुन सकती थी और अपनी चूत के रस के बहने की आवाज़ भी आ रही थी। टीपू के लंड ने उसकी चूत में अब वीर्य छोड़ना बंद कर दिया था और अचानक ही उसका लंड की गाँठ धीली हो कर बोतल में से डाट की तरह पॉप’ की आवाज़ के साथ बाहर निकल आयी और टीपू नजीबा से दूर हो कर हाँफता हुआ एक तरफ लेट गया। ।
 
औरंगजेब लगातार अपना लंड नजीबा की गाँड में चोद रहा था पर गाँठ के फैंसे होने के कारण उसके लंड की गति बहुत तेज़ नहीं थी पर नजीबा को काफी मज़ा आ रहा था। नजीबा ने जल्दी ही महसूस किया कि इस धीरे पर ठंसाठस चुदाइ का एक फायदा यह था कि इससे चुदाई इतने अधिक समय तक बरकरार थी जो कभी भी किसी आदमी के साथ चुदाई में संभव नहीं था।

पंद्रह मिनट बीत चुके थे जबसे औरंगजेब ने उसकी गाँड मे अपना लंड हँसा था और उतना ही वक्त टीपू के लंड की गाँठ को ढीली हो कर नजीबा की चूत में से निकलने में लगा था। औरंगजेब के लंड की ताकत कम होने का अभी भी कोई संकेत नज़र नहीं आ रहा था। नजीबा की चूत बार-बार झड़ रही थी। नजीबा पहले कभी एक साथ इतनी बार नहीं झड़ी थी... कई मर्दो से चुदाई के दौरान वो दो या कभी तीन बार झड़ी थी पर औरंगजेब अब तक पिछले पंद्रह मिनट में कम से कम सात बार नजीबा का पानी छुड़ा चुका था और उसके रुकने के आसार नज़र नहीं आ रहे थे। शाम से अब तक दोनों कुत्तों के साथ चुदाई में कम से कम बीस बार झड़ कर चरम कामोन्माद का अनुभव ले चुकी थी।

उसे अपनी क्षमता पर आश्चर्य हो रहा था। उसके अंदर जैसे निंफोमानियक औरत की तरह चुदाई की आग भड़क उठी थी जो बुझने का नाम ही नहीं ले रही थी। हालाँकि जैसा कुत्तों की चुदाई में होता है, औरंगजेब के लंड से लगातार पतला सा चिपचिपा द्रव्य नजीबा की गाँड में एनिमा की तरह छलक रहा था पर उस द्रव्य का छिड़काव उसकी आग ठंडी करने की बजाय घी बनकर उसकी वासना की आग और अधिक भड़का रहा था।

कराहते हुए नजीबा उस कुत्ते से विनती सी करने लगी, “प्लीज... ओह गॉड, हाँ.. ओह। गॉड... ओह गॉड... फक मी... ओह चोद मुझे... ओह मॉय गॉड... ओहहहहह गॉडडडड.. चोद मुझे... हाँ... चोद अपनी कुत्तिया को... मुझे अपनी कुत्तिया बना ले... फक मी हार्ड.. प्लीज... धज्जियाँ उड़ा दे मेरी गाँड की... प्लीज..." इसी तरह कराहती और रिरियाती हुई नजीबा अपनी गाँड गोल-गोल हिला रही थी। उसे और किसी बात का होश नहीं था। 

इस समय वो विकृत चुदाई ही उसके अस्तित्व का एकमात्र आधार थी। वो कुत्ते के उस अद्भुत लंड को ज्यदा से ज्यादा अपनी गाँड में ले लेना चाहती थी। वो चाहती थी कि औरंगजेब । कयामत तक उसे चोदता रहे। उसे और किसी बात की परवाह नहीं थी। सृष्टि में जो कुछ भी होगा वो सिर्फ इसलिए कि वो कुत्ता सदा उसकी गाँड में लंड पेल कर उसे चोद सके।
 
कुछ देर पश्चात जो कि अनंतकाल की तरह था, कुत्ते के लंड की गाँठ थोड़ी और फूल गयी और वो रिरियाने लगा। औरंगजेब ने पूरी ताकत से अपना लंड जितनी गहरायी तक संभव था उतना ठेल दिया और उसके गाढ़े वीर्य की धार नजीबा की गाँड में फूट पड़ी। नजीबा को ऐसा लगा जैसे इस बार तो उसकी गाँड फट कर जरूर पड़ेगी। कुत्ते का गरम वीर्य गाँड में छूटने से और उस पीड़ा से स्वतः ही एक और चरम कामोन्माद ट्रिगर हो गया और अपनी कमर ऐंठ कर वो बहुत जोर से चिल्ला पड़ी, ऊऊऊऊआआआआआआआआहहहह... मैं गयीईईईईईईईईई, और फिर उसने जोर से अपने दाँत भींच लिये और उसका जिस्म थरथर काँपने लगा। करीब दो-तीन मिनट तक कुत्ता उसकी गाँड में गाढ़ा वीर्य, गोला-बारी की तरह दागता रहा।

नजीबा को पूरा जिस्म झनझना उठा और उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसे इतने जबरदस्त कामानंद की अनुभूति हुई कि कुछ पलों के लिये वो अचेत सी हो गयी। जब उसे होश आया तो उसने पाया कि औरंगजेब ने चुदाई बंद कर दी थी पर अभी भी वो उसके ऊपर सवार था। नजीबा की चूत उसके लंड और गाँठ के इर्द-गिर्द जकड़ी हुई थी और नजीबा को अपनी गाँड आश्चर्यजनक रूप से भरी हुई महसूस हो रही थी। यह । सनसनाहट उसे बहुत अच्छी लग रही थी।

दूसरे कुत्ते से दो बार अपनी चूत चुदवाने के बाद वो समझ गयी थी कि उसे औरंगजेब के लंड की गाँठ के सिकुड़ने तक ऐसे ही कुत्तिया बने हुए इंतज़ार करना पड़ेगा। उसकी गाँड अभी भी हवा में थी क्योंकि उसमें कुत्ते का लंड और गाँठ फैंसी हुई थी। इसलिए नजीबा ने अपनी बांहें ज़मीन पर फैला दी और अपना सिर भी ज़मीन पर टिका दिया।

औरंगजेब में टीपू जैसा सब्र नहीं था और संतुष्ट होने के बाद वो अपनी गाँठ नजीबा की गाँड में से आज़ाद करने के लिये खींचने की कोशिश करने लगा। नजीबा फिर चिल्लायी। उसे अपनी गाँड फिर फटती हुई महसूस हुई। कुत्ते ने आज़ाद होने का कई बार प्रयत्न किया और फिर जैसा टीपू ने पहले किया था, औरंगजेब ने भी अपना जिस्म नजीबा से परे धकेला और अपनी पिछली टाँगें के बल कूद कर पीछे मुड़ गया। नजीबा को अपनी गाँड | और ऊपर उठानी पड़ी क्योंकि औरंगजेब की ऊँचाई ज्यादा थी और इसका नतीजा यह हुआकी नजीबा की गाँड कुत्ते के लंड से लटकी हुई प्रतीत होने लगी।

नजीबा को बहुत दर्द हो रहा था पर मजेदार बात यह थी की उसे यह अच्छा लग रहा था। हालाँकि वो पहले कभी भी ‘स्व-पीड़न या पर-पीड़न कामुक्ता' में आकृष्ट नहीं हुई थी, पर कुत्ते के लंड से लटके होने का आभास, गाँठ द्वारा अपनी गाँड में जोरदार खिंचाव की पीड़ा मिश्रित सनसनी, कुत्ते के पूरे लंड का अपनी गाँड में अहसास, और इन सबका संयोजन उसकी काम-विकृत वासना को भड़का कर उसे पागल कर रहा था। 
 
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