hotaks444
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घर का दूध पार्ट--1
दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और कहानी घर का दूध आपके लिए
लेकर हाजिर हूँ दोस्तों वैसे तो आप लोगो में से कुछ दोस्तों ने ये कहानी
पढ़ ली होगी अब तक ये कहानी सिर्फ पीडीऍफ़ फाइल में ही थी इस कहानी को
टेक्स्ट फाइल में आप लोगो के लिए लाया हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये और
बताइये कहानी आपको कैसी लगी ..... "बाबू जी, काटो मत, कितनी ज़ोर से
काटते हो ? खा जयोगे क्या मेरी चूची ? गुस्से से मंजू बाई चिल्लाई ओर फिर
हस्ने लगी. मैं उसपर चढ़ कर उसें चोद रहा था ओर उसकी एक चूची मुँह में
लेकर चूस रहा था. उसका छर्हरा सांवला शरीर मेरे नीचे दबा था ओर उसकी
मजबूत टांगे मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपटी हुई थी. मैं इतनी मस्ती मे था
कि वासना सहन नही होने से मैने मंजू के निपल को दाँतों मे दबा कर चबा
डाला था ओर वो चिल्ला उठी थी. मैने उसकी बात को उनसुनी करके उसकी आधी
चूची को मुँह मे भर लिया ओर फिर से उसें दाँतों से काटने लगा. उसके फिर
से चीखने के पहले मैने अपने मुँह से उसकी चूची निकाली ओर उसके होंठों को
अपने होंठों मे दबाकर उसकी आवाज़ बंद कर दी. उसके होंठों को चूस्ते हुए
मैं अब उसें कस कर चोदने लगा. वो भी आहह न आहह सस्सह की दबी हुई आवाज़
निकालते हुए मुझसे चिपेट कर छट-पटाने लगी. यह उसके झड़ने के करीब आने की
निशानी थी. दो तीन धक्कों के बाद ही उसके बंद मुँह से एक चीख निकली ओर
उसने अपनी जीब मेरे मुँह मे डाल दी. उसका शरीर कड़ा हो गया था ओर वो
थरथराने लगी. उसकी चूत मे से अब ढेर सारा पानी बह रहा था. मैने भी तीन
चार ओर करारे धक्के लगाए ओर अपना लंड उसकी चूत मे पूरा अंदर घुसेड कर
झाड़ गया. थोड़ी देर बाद मैं लुढ़क कर उसके उपर से अलग हुआ ओर लेट कर
सुस्ताने लगा. मंजू बाई उठकर अपने कपड़े पहनने लगी. उसकी चूची पर मेरे
दाँतों के गहरे निशान थे, उन्हे सहलाते हुए वह मुझसे शिकायत करते हुए
बोली, " बाबूजी, क्यों काटतें हो मेरी चूची को बार बार, मुझे बहुत
दुख़्ता हैं, परसो तो तुमने थोड़ा खून भी निकाल दिया था;". उसकी आवाज़ मे
शिकायत के साथ साथ हल्का सा नखरा भी था. उसे दर्द तो हुआ होगा पर मेरी उस
दुष्ट हरकत पर मज़ा भी आया था. मैने कोई जवाब नही दिया, बस मुस्कराते हुए
उसे बाहों मे खींच कर उसके साँवले होंठों का चुंबन लेते हुए सोचने लगा कि
क्या मेरी तक़दीर है जो इतनी गरम चुदैल औरत मेरे पल्ले पड़ी है. एक
नौकरानी थी, अब मेरी प्रेमिका बन गयी थी मंजू बाई! यह अफ़साना कैसे शुरू
हुआ उसे मैं याद कर रहा था. मैं कुछ ही महीने पहले यहाँ नौकरी पर आया था.
बी.ए. करने के बाद यह मेरी पहली नौकरी थी. फॅक्टरी एक छोटे सहर के बाहर
खैमोर गाओं के पास थी, वहाँ कोई आना पसंद नही करता था इसलिए एक तगड़ी
सॅलरी के साथ कंपनी ने मुझे कॉलोनी मे एक बंगले भी रहने को दे दिया था.
कॉलोनी सहर से दूर थी ओर इसलिए नौकरो के लिए छ्होटे क्वॉर्टर भी हर बंगले
मे बने थे. मैं अभी अकेला ही था, अभी शादी नही हुई थी. मेरे बंगले के
क्वॉर्टर मे मंजू बाई पहले से ही रहती थी. उस बंगले मे रहने वाले लोगो के
घर का सारा काम काज करने के लिए कंपनी ने उसे रखा था. वह पास के गाओं की
थी पर उसे फ्री मे रहने ले लिए क्वॉर्टर ओर थोड़ी तनख़्वाह भी कंपनी देती
थी इसलिए वो बंगले मे ही रहती थी. वैसे तो उसका पति भी था. मैने उसे बस
एक दो बार देखा था. शायद उसका ओर कही लॅफाडा था ओर शराब की लत थी इसलिए
मंजू से उसका खूब झगड़ा होता था. वो मंजू की गाली गलौच से घबराता था
इसलिए अक्सर घर से महीनो गायब रहता था. मंजू मेरे घर का सारा काम करती थी
ओर बड़े प्यार से मन लगाकर करती थी. खाना बनाना, कपड़े धोना, सॉफ सफाई
करना, मेरे लिए बेज़ार से ज़रूरत की सब चीज़ें ले आना, ये सब वही करती
थी. मुझे कोई तक़लीफ़ नही होने देती थी. उसकी ईमानदारी ओर मीठे स्वाभाव
के कारण उसपेर मेरा पूरा विशवाश हो गया था. मैने घर की पूरी ज़िम्मेदारी
उस पर डाल दी थी ओर उसे उपर से तीन सौ रुपय भी देता था. उसके कहने से
मैने बंगले के बाथरूम मे उसे नहाने धोने की इज़ाज़त भी दे दी थी क्योंकि
नौकरो के क्वॉर्टर मे बाथरूम ढंग का नही था. ग़रीबी के बावजूद सॉफ सुथरा
रहने का उसे बहुत शौक था ओर इसीलिए बंगले के बाथरूम मे नहाने की इज़ाज़त
मिलने से वो बहुत खुश थी. दिन मे दो बार नहाती ओर हमेशा सॉफ सुथरी रहती,
नही तो नौकरानिया अक्सर इतनी सफाई से नही रहती. मुझे बाबूजी कहकर बुलाती
थी ओर मैं उसे मंजू बाई कहता था. मेरा बर्ताव उसके साथ एकदम अच्छा ओर
सभ्य था, नौकरो जैसा नही. यहाँ आए हुए मुझे दो महीने हो गये थे. उन दो
महीनो में मैने मंजू पर एक औरत के रूप में ज़यादा ध्यान नही दिया था.
मुझे उसकी उमर का भी ठीक अंदाज नही था, हां वो मुझ से काफ़ी बड़ी हैं ये
मालूम था. इस वर्ग की औरतें अक्सर तीस से लेकर पैंतालीस तक एक सी दिखती
हैं, समझ मे नही आता की उनकी असली उमर क्या है. कुच्छ जल्दी बूढ़ी लगने
लगती हैं तो कुच्छ पचास की होकर भी तीस पैंतीस की दिखती हैं. मंजू की उमर
मेरे ख़याल में सेंतिस अड़तीस की होगी. पर लगती थी कि जैसे तीस साल की
जवान औरत हो. शरीर एकद्ूम मजबूत, छर्हरा ओर कसा हुआ था. काम करने की
फुर्ती देखकर मैं मन ही मन उसकी दाद देता था कि क्या एनर्जी है इस औरत
में. कभी कभी वह पान भी खाती थी ओर तब उसके साँवले होंठ लाल हो जाते.
मुझे पान का शौक नही हैं पर जब वह पास से गुजरती तो उसके खाए पान की
सुगंध मुझे बड़ी अछी लगती थी. अब इतने करीब रहने के बाद यह स्वाभाविक था
की धीरे धीरे मैं उसकी तरफ एक नौकरानी ही नही, एक औरत की तरह देखने लग
जाउ. मैं भी एक तेईस(23) साल का जवान था, ओर जवानी अपने रंग दिखाएगी ही.
काम ख़तम होने पर घर आता तो कुच्छ करने के लिए नही था सिवाए टीवी देखने
के ओर पढ़ने के. कभी कभी क्लब हो आता था पर मेरे अकेलेपन के स्वाभाव के
कारण अक्सर घर में ही रहना पसंद करता था. मंजू काम करती रहती ओर मेरी
नज़र अपने आप उसके फुर्तीले बदन पर जा कर टिक जाती. ऐसा शायद चलता रहता
पर तभी एक घटना ऐसी हुई कि मंजू के प्रति मेरी भावनाए अचानक बदल गयी. एक
दिन बॅडमिंटन खेलते हुए मेरे पाँव में मोच आ गयी. शाम तक पैर सूज गया.
दूसरे दिन काम पर भी नही जा सका. डॉक्टर की लिखी दवा ली ओर मरहम लगाया पर
दर्द कम नही हो रहा था. मंजू मेरी हालत देख कर मुझसे बोली, "बाबूजी, पैर
की मालिश कर दूं?" मैने मना किया. मुझे भरोसा नही था, डरता था कि पैर ओर
ना सूज जाए. ओर वैसे भी एक औरत से पैर दब्वाना मुझे ठीक नही लग रहा था.
वह ज़िद करने लगी, मेरे अच्छे बर्ताव की वजह से मुझको अब वह बहुत मानती
थी ओर मेरी सेवा का यह मौका नही छ्चोड़ना चाहती थी, "एकदम आराम आ जाएगा
बाबूजी, देखो तो. मैं बहुत अच्छा मालिश करती हूँ, गाओं मे तो किसी को ऐसा
कुच्छ होता है तो मुझे ही बुलाते है". उसके चेहरे के उत्साह को देखकर
मैने हां कर दी, की उसे बुरा ना लगे. उसने मुझे पलंग पर लीटाया ओर जाकर
गरम करके तेल ले आई. फिर पाजामा उपर करके मेरे पैरों की मालिश करने लगी.
उसके हाथ मे सच में जादू था. बहुत अच्छा लग रहा था. काम करके उसके हाथ
ज़रा कड़े हो गये थे फिर भी उनका दवाब मेरे पैर को बहुत आराम दे रहा था.
पास से मैने पहली बार मंजू को ठीक से देखा था. वह मालिश करने में लगी हुई
थी इसलिए उसका ध्यान मेरे चेहरे पर नही था. मैं चुपचाप उसे घूर्ने लगा.
सादे कपड़ो मे लिपटे उसके सीधे साधे रूप के नीचे छुपि उसके बदन की मादकता
मुझे महसूस होने लगी. क्रमशः........
दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और कहानी घर का दूध आपके लिए
लेकर हाजिर हूँ दोस्तों वैसे तो आप लोगो में से कुछ दोस्तों ने ये कहानी
पढ़ ली होगी अब तक ये कहानी सिर्फ पीडीऍफ़ फाइल में ही थी इस कहानी को
टेक्स्ट फाइल में आप लोगो के लिए लाया हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये और
बताइये कहानी आपको कैसी लगी ..... "बाबू जी, काटो मत, कितनी ज़ोर से
काटते हो ? खा जयोगे क्या मेरी चूची ? गुस्से से मंजू बाई चिल्लाई ओर फिर
हस्ने लगी. मैं उसपर चढ़ कर उसें चोद रहा था ओर उसकी एक चूची मुँह में
लेकर चूस रहा था. उसका छर्हरा सांवला शरीर मेरे नीचे दबा था ओर उसकी
मजबूत टांगे मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपटी हुई थी. मैं इतनी मस्ती मे था
कि वासना सहन नही होने से मैने मंजू के निपल को दाँतों मे दबा कर चबा
डाला था ओर वो चिल्ला उठी थी. मैने उसकी बात को उनसुनी करके उसकी आधी
चूची को मुँह मे भर लिया ओर फिर से उसें दाँतों से काटने लगा. उसके फिर
से चीखने के पहले मैने अपने मुँह से उसकी चूची निकाली ओर उसके होंठों को
अपने होंठों मे दबाकर उसकी आवाज़ बंद कर दी. उसके होंठों को चूस्ते हुए
मैं अब उसें कस कर चोदने लगा. वो भी आहह न आहह सस्सह की दबी हुई आवाज़
निकालते हुए मुझसे चिपेट कर छट-पटाने लगी. यह उसके झड़ने के करीब आने की
निशानी थी. दो तीन धक्कों के बाद ही उसके बंद मुँह से एक चीख निकली ओर
उसने अपनी जीब मेरे मुँह मे डाल दी. उसका शरीर कड़ा हो गया था ओर वो
थरथराने लगी. उसकी चूत मे से अब ढेर सारा पानी बह रहा था. मैने भी तीन
चार ओर करारे धक्के लगाए ओर अपना लंड उसकी चूत मे पूरा अंदर घुसेड कर
झाड़ गया. थोड़ी देर बाद मैं लुढ़क कर उसके उपर से अलग हुआ ओर लेट कर
सुस्ताने लगा. मंजू बाई उठकर अपने कपड़े पहनने लगी. उसकी चूची पर मेरे
दाँतों के गहरे निशान थे, उन्हे सहलाते हुए वह मुझसे शिकायत करते हुए
बोली, " बाबूजी, क्यों काटतें हो मेरी चूची को बार बार, मुझे बहुत
दुख़्ता हैं, परसो तो तुमने थोड़ा खून भी निकाल दिया था;". उसकी आवाज़ मे
शिकायत के साथ साथ हल्का सा नखरा भी था. उसे दर्द तो हुआ होगा पर मेरी उस
दुष्ट हरकत पर मज़ा भी आया था. मैने कोई जवाब नही दिया, बस मुस्कराते हुए
उसे बाहों मे खींच कर उसके साँवले होंठों का चुंबन लेते हुए सोचने लगा कि
क्या मेरी तक़दीर है जो इतनी गरम चुदैल औरत मेरे पल्ले पड़ी है. एक
नौकरानी थी, अब मेरी प्रेमिका बन गयी थी मंजू बाई! यह अफ़साना कैसे शुरू
हुआ उसे मैं याद कर रहा था. मैं कुछ ही महीने पहले यहाँ नौकरी पर आया था.
बी.ए. करने के बाद यह मेरी पहली नौकरी थी. फॅक्टरी एक छोटे सहर के बाहर
खैमोर गाओं के पास थी, वहाँ कोई आना पसंद नही करता था इसलिए एक तगड़ी
सॅलरी के साथ कंपनी ने मुझे कॉलोनी मे एक बंगले भी रहने को दे दिया था.
कॉलोनी सहर से दूर थी ओर इसलिए नौकरो के लिए छ्होटे क्वॉर्टर भी हर बंगले
मे बने थे. मैं अभी अकेला ही था, अभी शादी नही हुई थी. मेरे बंगले के
क्वॉर्टर मे मंजू बाई पहले से ही रहती थी. उस बंगले मे रहने वाले लोगो के
घर का सारा काम काज करने के लिए कंपनी ने उसे रखा था. वह पास के गाओं की
थी पर उसे फ्री मे रहने ले लिए क्वॉर्टर ओर थोड़ी तनख़्वाह भी कंपनी देती
थी इसलिए वो बंगले मे ही रहती थी. वैसे तो उसका पति भी था. मैने उसे बस
एक दो बार देखा था. शायद उसका ओर कही लॅफाडा था ओर शराब की लत थी इसलिए
मंजू से उसका खूब झगड़ा होता था. वो मंजू की गाली गलौच से घबराता था
इसलिए अक्सर घर से महीनो गायब रहता था. मंजू मेरे घर का सारा काम करती थी
ओर बड़े प्यार से मन लगाकर करती थी. खाना बनाना, कपड़े धोना, सॉफ सफाई
करना, मेरे लिए बेज़ार से ज़रूरत की सब चीज़ें ले आना, ये सब वही करती
थी. मुझे कोई तक़लीफ़ नही होने देती थी. उसकी ईमानदारी ओर मीठे स्वाभाव
के कारण उसपेर मेरा पूरा विशवाश हो गया था. मैने घर की पूरी ज़िम्मेदारी
उस पर डाल दी थी ओर उसे उपर से तीन सौ रुपय भी देता था. उसके कहने से
मैने बंगले के बाथरूम मे उसे नहाने धोने की इज़ाज़त भी दे दी थी क्योंकि
नौकरो के क्वॉर्टर मे बाथरूम ढंग का नही था. ग़रीबी के बावजूद सॉफ सुथरा
रहने का उसे बहुत शौक था ओर इसीलिए बंगले के बाथरूम मे नहाने की इज़ाज़त
मिलने से वो बहुत खुश थी. दिन मे दो बार नहाती ओर हमेशा सॉफ सुथरी रहती,
नही तो नौकरानिया अक्सर इतनी सफाई से नही रहती. मुझे बाबूजी कहकर बुलाती
थी ओर मैं उसे मंजू बाई कहता था. मेरा बर्ताव उसके साथ एकदम अच्छा ओर
सभ्य था, नौकरो जैसा नही. यहाँ आए हुए मुझे दो महीने हो गये थे. उन दो
महीनो में मैने मंजू पर एक औरत के रूप में ज़यादा ध्यान नही दिया था.
मुझे उसकी उमर का भी ठीक अंदाज नही था, हां वो मुझ से काफ़ी बड़ी हैं ये
मालूम था. इस वर्ग की औरतें अक्सर तीस से लेकर पैंतालीस तक एक सी दिखती
हैं, समझ मे नही आता की उनकी असली उमर क्या है. कुच्छ जल्दी बूढ़ी लगने
लगती हैं तो कुच्छ पचास की होकर भी तीस पैंतीस की दिखती हैं. मंजू की उमर
मेरे ख़याल में सेंतिस अड़तीस की होगी. पर लगती थी कि जैसे तीस साल की
जवान औरत हो. शरीर एकद्ूम मजबूत, छर्हरा ओर कसा हुआ था. काम करने की
फुर्ती देखकर मैं मन ही मन उसकी दाद देता था कि क्या एनर्जी है इस औरत
में. कभी कभी वह पान भी खाती थी ओर तब उसके साँवले होंठ लाल हो जाते.
मुझे पान का शौक नही हैं पर जब वह पास से गुजरती तो उसके खाए पान की
सुगंध मुझे बड़ी अछी लगती थी. अब इतने करीब रहने के बाद यह स्वाभाविक था
की धीरे धीरे मैं उसकी तरफ एक नौकरानी ही नही, एक औरत की तरह देखने लग
जाउ. मैं भी एक तेईस(23) साल का जवान था, ओर जवानी अपने रंग दिखाएगी ही.
काम ख़तम होने पर घर आता तो कुच्छ करने के लिए नही था सिवाए टीवी देखने
के ओर पढ़ने के. कभी कभी क्लब हो आता था पर मेरे अकेलेपन के स्वाभाव के
कारण अक्सर घर में ही रहना पसंद करता था. मंजू काम करती रहती ओर मेरी
नज़र अपने आप उसके फुर्तीले बदन पर जा कर टिक जाती. ऐसा शायद चलता रहता
पर तभी एक घटना ऐसी हुई कि मंजू के प्रति मेरी भावनाए अचानक बदल गयी. एक
दिन बॅडमिंटन खेलते हुए मेरे पाँव में मोच आ गयी. शाम तक पैर सूज गया.
दूसरे दिन काम पर भी नही जा सका. डॉक्टर की लिखी दवा ली ओर मरहम लगाया पर
दर्द कम नही हो रहा था. मंजू मेरी हालत देख कर मुझसे बोली, "बाबूजी, पैर
की मालिश कर दूं?" मैने मना किया. मुझे भरोसा नही था, डरता था कि पैर ओर
ना सूज जाए. ओर वैसे भी एक औरत से पैर दब्वाना मुझे ठीक नही लग रहा था.
वह ज़िद करने लगी, मेरे अच्छे बर्ताव की वजह से मुझको अब वह बहुत मानती
थी ओर मेरी सेवा का यह मौका नही छ्चोड़ना चाहती थी, "एकदम आराम आ जाएगा
बाबूजी, देखो तो. मैं बहुत अच्छा मालिश करती हूँ, गाओं मे तो किसी को ऐसा
कुच्छ होता है तो मुझे ही बुलाते है". उसके चेहरे के उत्साह को देखकर
मैने हां कर दी, की उसे बुरा ना लगे. उसने मुझे पलंग पर लीटाया ओर जाकर
गरम करके तेल ले आई. फिर पाजामा उपर करके मेरे पैरों की मालिश करने लगी.
उसके हाथ मे सच में जादू था. बहुत अच्छा लग रहा था. काम करके उसके हाथ
ज़रा कड़े हो गये थे फिर भी उनका दवाब मेरे पैर को बहुत आराम दे रहा था.
पास से मैने पहली बार मंजू को ठीक से देखा था. वह मालिश करने में लगी हुई
थी इसलिए उसका ध्यान मेरे चेहरे पर नही था. मैं चुपचाप उसे घूर्ने लगा.
सादे कपड़ो मे लिपटे उसके सीधे साधे रूप के नीचे छुपि उसके बदन की मादकता
मुझे महसूस होने लगी. क्रमशः........