Parivaar Mai Chudai घर का दूध - SexBaba
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Parivaar Mai Chudai घर का दूध

hotaks444

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Nov 15, 2016
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घर का दूध पार्ट--1

दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और कहानी घर का दूध आपके लिए
लेकर हाजिर हूँ दोस्तों वैसे तो आप लोगो में से कुछ दोस्तों ने ये कहानी
पढ़ ली होगी अब तक ये कहानी सिर्फ पीडीऍफ़ फाइल में ही थी इस कहानी को
टेक्स्ट फाइल में आप लोगो के लिए लाया हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये और
बताइये कहानी आपको कैसी लगी ..... "बाबू जी, काटो मत, कितनी ज़ोर से
काटते हो ? खा जयोगे क्या मेरी चूची ? गुस्से से मंजू बाई चिल्लाई ओर फिर
हस्ने लगी. मैं उसपर चढ़ कर उसें चोद रहा था ओर उसकी एक चूची मुँह में
लेकर चूस रहा था. उसका छर्हरा सांवला शरीर मेरे नीचे दबा था ओर उसकी
मजबूत टांगे मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपटी हुई थी. मैं इतनी मस्ती मे था
कि वासना सहन नही होने से मैने मंजू के निपल को दाँतों मे दबा कर चबा
डाला था ओर वो चिल्ला उठी थी. मैने उसकी बात को उनसुनी करके उसकी आधी
चूची को मुँह मे भर लिया ओर फिर से उसें दाँतों से काटने लगा. उसके फिर
से चीखने के पहले मैने अपने मुँह से उसकी चूची निकाली ओर उसके होंठों को
अपने होंठों मे दबाकर उसकी आवाज़ बंद कर दी. उसके होंठों को चूस्ते हुए
मैं अब उसें कस कर चोदने लगा. वो भी आहह न आहह सस्सह की दबी हुई आवाज़
निकालते हुए मुझसे चिपेट कर छट-पटाने लगी. यह उसके झड़ने के करीब आने की
निशानी थी. दो तीन धक्कों के बाद ही उसके बंद मुँह से एक चीख निकली ओर
उसने अपनी जीब मेरे मुँह मे डाल दी. उसका शरीर कड़ा हो गया था ओर वो
थरथराने लगी. उसकी चूत मे से अब ढेर सारा पानी बह रहा था. मैने भी तीन
चार ओर करारे धक्के लगाए ओर अपना लंड उसकी चूत मे पूरा अंदर घुसेड कर
झाड़ गया. थोड़ी देर बाद मैं लुढ़क कर उसके उपर से अलग हुआ ओर लेट कर
सुस्ताने लगा. मंजू बाई उठकर अपने कपड़े पहनने लगी. उसकी चूची पर मेरे
दाँतों के गहरे निशान थे, उन्हे सहलाते हुए वह मुझसे शिकायत करते हुए
बोली, " बाबूजी, क्यों काटतें हो मेरी चूची को बार बार, मुझे बहुत
दुख़्ता हैं, परसो तो तुमने थोड़ा खून भी निकाल दिया था;". उसकी आवाज़ मे
शिकायत के साथ साथ हल्का सा नखरा भी था. उसे दर्द तो हुआ होगा पर मेरी उस
दुष्ट हरकत पर मज़ा भी आया था. मैने कोई जवाब नही दिया, बस मुस्कराते हुए
उसे बाहों मे खींच कर उसके साँवले होंठों का चुंबन लेते हुए सोचने लगा कि
क्या मेरी तक़दीर है जो इतनी गरम चुदैल औरत मेरे पल्ले पड़ी है. एक
नौकरानी थी, अब मेरी प्रेमिका बन गयी थी मंजू बाई! यह अफ़साना कैसे शुरू
हुआ उसे मैं याद कर रहा था. मैं कुछ ही महीने पहले यहाँ नौकरी पर आया था.
बी.ए. करने के बाद यह मेरी पहली नौकरी थी. फॅक्टरी एक छोटे सहर के बाहर
खैमोर गाओं के पास थी, वहाँ कोई आना पसंद नही करता था इसलिए एक तगड़ी
सॅलरी के साथ कंपनी ने मुझे कॉलोनी मे एक बंगले भी रहने को दे दिया था.
कॉलोनी सहर से दूर थी ओर इसलिए नौकरो के लिए छ्होटे क्वॉर्टर भी हर बंगले
मे बने थे. मैं अभी अकेला ही था, अभी शादी नही हुई थी. मेरे बंगले के
क्वॉर्टर मे मंजू बाई पहले से ही रहती थी. उस बंगले मे रहने वाले लोगो के
घर का सारा काम काज करने के लिए कंपनी ने उसे रखा था. वह पास के गाओं की
थी पर उसे फ्री मे रहने ले लिए क्वॉर्टर ओर थोड़ी तनख़्वाह भी कंपनी देती
थी इसलिए वो बंगले मे ही रहती थी. वैसे तो उसका पति भी था. मैने उसे बस
एक दो बार देखा था. शायद उसका ओर कही लॅफाडा था ओर शराब की लत थी इसलिए
मंजू से उसका खूब झगड़ा होता था. वो मंजू की गाली गलौच से घबराता था
इसलिए अक्सर घर से महीनो गायब रहता था. मंजू मेरे घर का सारा काम करती थी
ओर बड़े प्यार से मन लगाकर करती थी. खाना बनाना, कपड़े धोना, सॉफ सफाई
करना, मेरे लिए बेज़ार से ज़रूरत की सब चीज़ें ले आना, ये सब वही करती
थी. मुझे कोई तक़लीफ़ नही होने देती थी. उसकी ईमानदारी ओर मीठे स्वाभाव
के कारण उसपेर मेरा पूरा विशवाश हो गया था. मैने घर की पूरी ज़िम्मेदारी
उस पर डाल दी थी ओर उसे उपर से तीन सौ रुपय भी देता था. उसके कहने से
मैने बंगले के बाथरूम मे उसे नहाने धोने की इज़ाज़त भी दे दी थी क्योंकि
नौकरो के क्वॉर्टर मे बाथरूम ढंग का नही था. ग़रीबी के बावजूद सॉफ सुथरा
रहने का उसे बहुत शौक था ओर इसीलिए बंगले के बाथरूम मे नहाने की इज़ाज़त
मिलने से वो बहुत खुश थी. दिन मे दो बार नहाती ओर हमेशा सॉफ सुथरी रहती,
नही तो नौकरानिया अक्सर इतनी सफाई से नही रहती. मुझे बाबूजी कहकर बुलाती
थी ओर मैं उसे मंजू बाई कहता था. मेरा बर्ताव उसके साथ एकदम अच्छा ओर
सभ्य था, नौकरो जैसा नही. यहाँ आए हुए मुझे दो महीने हो गये थे. उन दो
महीनो में मैने मंजू पर एक औरत के रूप में ज़यादा ध्यान नही दिया था.
मुझे उसकी उमर का भी ठीक अंदाज नही था, हां वो मुझ से काफ़ी बड़ी हैं ये
मालूम था. इस वर्ग की औरतें अक्सर तीस से लेकर पैंतालीस तक एक सी दिखती
हैं, समझ मे नही आता की उनकी असली उमर क्या है. कुच्छ जल्दी बूढ़ी लगने
लगती हैं तो कुच्छ पचास की होकर भी तीस पैंतीस की दिखती हैं. मंजू की उमर
मेरे ख़याल में सेंतिस अड़तीस की होगी. पर लगती थी कि जैसे तीस साल की
जवान औरत हो. शरीर एकद्ूम मजबूत, छर्हरा ओर कसा हुआ था. काम करने की
फुर्ती देखकर मैं मन ही मन उसकी दाद देता था कि क्या एनर्जी है इस औरत
में. कभी कभी वह पान भी खाती थी ओर तब उसके साँवले होंठ लाल हो जाते.
मुझे पान का शौक नही हैं पर जब वह पास से गुजरती तो उसके खाए पान की
सुगंध मुझे बड़ी अछी लगती थी. अब इतने करीब रहने के बाद यह स्वाभाविक था
की धीरे धीरे मैं उसकी तरफ एक नौकरानी ही नही, एक औरत की तरह देखने लग
जाउ. मैं भी एक तेईस(23) साल का जवान था, ओर जवानी अपने रंग दिखाएगी ही.
काम ख़तम होने पर घर आता तो कुच्छ करने के लिए नही था सिवाए टीवी देखने
के ओर पढ़ने के. कभी कभी क्लब हो आता था पर मेरे अकेलेपन के स्वाभाव के
कारण अक्सर घर में ही रहना पसंद करता था. मंजू काम करती रहती ओर मेरी
नज़र अपने आप उसके फुर्तीले बदन पर जा कर टिक जाती. ऐसा शायद चलता रहता
पर तभी एक घटना ऐसी हुई कि मंजू के प्रति मेरी भावनाए अचानक बदल गयी. एक
दिन बॅडमिंटन खेलते हुए मेरे पाँव में मोच आ गयी. शाम तक पैर सूज गया.
दूसरे दिन काम पर भी नही जा सका. डॉक्टर की लिखी दवा ली ओर मरहम लगाया पर
दर्द कम नही हो रहा था. मंजू मेरी हालत देख कर मुझसे बोली, "बाबूजी, पैर
की मालिश कर दूं?" मैने मना किया. मुझे भरोसा नही था, डरता था कि पैर ओर
ना सूज जाए. ओर वैसे भी एक औरत से पैर दब्वाना मुझे ठीक नही लग रहा था.
वह ज़िद करने लगी, मेरे अच्छे बर्ताव की वजह से मुझको अब वह बहुत मानती
थी ओर मेरी सेवा का यह मौका नही छ्चोड़ना चाहती थी, "एकदम आराम आ जाएगा
बाबूजी, देखो तो. मैं बहुत अच्छा मालिश करती हूँ, गाओं मे तो किसी को ऐसा
कुच्छ होता है तो मुझे ही बुलाते है". उसके चेहरे के उत्साह को देखकर
मैने हां कर दी, की उसे बुरा ना लगे. उसने मुझे पलंग पर लीटाया ओर जाकर
गरम करके तेल ले आई. फिर पाजामा उपर करके मेरे पैरों की मालिश करने लगी.
उसके हाथ मे सच में जादू था. बहुत अच्छा लग रहा था. काम करके उसके हाथ
ज़रा कड़े हो गये थे फिर भी उनका दवाब मेरे पैर को बहुत आराम दे रहा था.
पास से मैने पहली बार मंजू को ठीक से देखा था. वह मालिश करने में लगी हुई
थी इसलिए उसका ध्यान मेरे चेहरे पर नही था. मैं चुपचाप उसे घूर्ने लगा.
सादे कपड़ो मे लिपटे उसके सीधे साधे रूप के नीचे छुपि उसके बदन की मादकता
मुझे महसूस होने लगी. क्रमशः........
 
घर का दूध पार्ट--2

गाटांक से आगे............ दिखने मे वह साधारण थी. बाल जुड़े मे बाँध रखे
थे, उनमे एक फूलों की वेणी थी. थी तो वह साँवली पर उसकी त्वचा एकदम चिकनी
ओर दमकती हुई. माथे पर बड़ी बिंदी थी ओर नाक मे नथ्नि पहने थी. वह गाओं
की औरतों जैसे धोती की तरह साड़ी पहने थी जिसमे से उसके चिकने सुडौल पैर
ओर मांसल पिंडलियाँ दिख रही थी. चोली ओर साड़ी के बीच दिखती उसकी पीठ और
कमर भी एकदम सपाट ओर मुलायम थी. चोली के नीचे शायद वह कुछ नही पहनती थी
क्योंकि कटोरी से तेल लेने को जब वह मुड़ती तो पिछे से उसकी चोली के पतले
कपड़े मे से ब्रा का कोई स्ट्रॅप नही दिख रहा था. आँचल उसने कमर मे खोंस
रखा था ओर उसके नीचे से उसकी छाती का हल्का सा उभार दिखता था. उसके स्तन
ज़यादा बड़े नही थे पर ऐसा लगता था की जीतने भी हैं, काफ़ी सख़्त ओर कसे
हुए हैं. उसके उस दुबले पतले चेहरे पर एकदम स्वस्थ ओर कसे हुए चिकने शरीर
को देखकर पहली बार मुझे समझ मे आया कि जब किसी औरत को "त्वन्गि" कहते है,
याने जिसका बदन किसी पेड़ के तने जैसा होता है, तो इसका क्या मतलब है.
उसके हाथो के स्पर्श ओर पास से दिखते उसके सादे पर स्वस्थ रूप ने मुझपेर
ऐसा जादू किया कि जो होना था वह हो कर रहा. मेरा लंड उठने लगा. मैं
परेशान था, उसके सामने उसे दबाने को कुच्छ कर भी नही सकता था. इसलिए पलट
कर पेट के बल सो गया. वह कुच्छ नही बोली, पिछे से मेरे टखने की मालिश
करती रही. अब मैं उसके बारे मे कुच्छ भी सोचने को आज़ाद था. मैं मन ही मन
लड्डू खाने लगा. मंजू बाई नंगी कैसी दिखेगी! उसे भींच कर उसे चोदने मे
क्या मज़ा आएगा ! मेरा लंड तन्ना कर खड़ा हो गया. दस मिनिट बाद वह बोली,
" अब सीधे हो जाओ बाबूजी, मैं पैर मोड़ कर मालिश करूँगी, आप एकदम सीधे
चलने लगॉगे". मैं आनाकानी करने लगा. "हो गया, बाई, अब अच्छा लग रहा है,
तुम जाओ." आख़िर खड़ा लंड उसे कैसे दिखता! पर वह नही मानी ओर मजबूर होकर
मैने करवट बदली ओर कुर्ते से लंड के उभार को ढँक कर मन ही मन प्रार्थना
करने लगा कि उसे मेरा खड़ा लंड ना दिखे. वैसे कुर्ते में भी अब तंबू बन
गया था सो अब च्छूपने की कोई गुंजाइश नही थी. वह कुछ ना बोली ओर पाँच
मिनिट मे मालिश ख़तम करके चली गयी. " बस हो गया बाबूजी, अब आराम करो आप".
कमरे से बाहर जाते जाते हुए मुस्करा कर बोली," अब देखो बाबूजी, तुम्हारी
सारी परेशानी दूर हो जाएगी". उसकी आँखों मे एक चमक सी थी. मैं सोचता रहा
कि उसके इस कहने मे ओर कुच्छ मतलब तो नही छुपा. उसकी मालिश से मैं उसी
दिन चलने फिरने लगा. दूसरे दिन उसने फिर एक बार मालिश की, ओर मेरा पैर
पूरी तरह से ठीक हो गया. इसबार मैं पूरा सावधान था ओर अपने लंड पर मैने
पूरा कंट्रोल रखा. ना जाने क्यों मुझे लगा कि जाते जाते मंजू बाई कुच्छ
उदास सी लगी. अब उसको देखने की मेरी नज़र बदल सी गयी थी. जब भी मैं घर
में होता तो उसकी नज़र बचाकर उसके शरीर को घूर्ने का कोई भी मौका नही
छ्चोड़ता था. खाना बनाते समय जब वह किचन के चबूतरे के पास खड़ी होती तो
पिछे से उसे देखना मुझे बहुत अच्छा लगता, उसकी चिकनी पीठ ओर गर्देन मुझ
पर जादू सा कर देती, मैं बार बार किसी ना किसी बहाने से किचन के दरवाजे
से गुज़रता ओर मन भर कर उसे पिछे से देखता. जब वह चलती तो मैं उसके
चूतदों ओर पिंडलियों को घूरता. उसके चूतड़ छ्होटे थे पर एकदम गोल ओर
सख़्त थे. जब वह अपने पंजो पर खड़ी होकर उपर देखते हुए कपड़े सूखने को
डालती तो उसके छ्होटे मम्मे तन कर उसके आँचल मे से अपनी मस्ती दिखने
लगते. उसे भी मेरी इस हालत का अंदाज़ा हो गया होगा,आख़िर मालिश करते समय
कुर्ते के नीचे से मेरा खड़ा लंड उसने देखा ही था. पर नाराज़ होने ओर
बुरा मानने के बजाए वह अब मेरे सामने कुच्छ कुच्छ नखरे दिखाने लगी थी.
बार बार आकर मुझसे बातें करती, कभी बेमतलब मेरी ओर देखकर हल्के से हंस
देती. उसकी हँसी भी एकदम लुभावनी थी, हंसते समय उसकी मुस्कान बड़ी मीठी
होती ओर उसके सफेद दाँत ओर गुलाबी मसूड़े दिखते क्योंकि उसका उपरी होंठ
एक खास अंदाज़ मे उपर कीओर खुल जाता. मैं समझ गया की शायद वह भी चुदासि
की भूखी थी ओर मुझे रिझाने की कोशिश कर रही थी. आख़िर उस जैसी नौकरानी को
मेरे जैसा उच्च वर्गिय नौजवान कहाँ मिलने वाला था? उसका पति तो नलायक
शराबी था ही, उसे संबंध तो मंजू ने कब के तोड़ लिए थे. मुझे यकीन हो गया
था कि बस मेरे पहल करने की देर है यह शिकार खुद मेरे पंजे में आ फँसेगा.
पर मैने कोई पहल नही की. डर था कुच्छ लेफ्डा ना हो जाए, ओर अगर मैने मंजू
को समझने मे कोई भूल की हो तो फिर तो बहुत तमाशा हो जाएगा. वह चिल्ला कर
पूरी कॉलोनी सिर पर ना उठा ले, नही तो कंपनी मे मुँह दिखाने की जगह भी ना
मिलेगी. पर मंजू ने मेरी नज़र की भूख पहचान ली थी. अब उसने आगे कदम
बढ़ाना शुरू कर दिया. वह थी बड़ी चालाक, मेरे ख़याल से उसने मन मे ठान ली
थी की मुझे फँसा कर रहेगी. अब वह मेरे सामने होती, तो उसका आँचल बार बार
गिर जाता. ख़ास कर मेरे कमरे मे झाड़ू लगाते हुए तो उसका आँचल गिरा ही
रहता. वैसे ही मुझे खाना परोसते समय उसका आँचल अक्सर खिसकने लगा ओर वैसे
मे ही वो झुक झुक कर मुझे खाना परोसती. अंदर ब्रा तो वो पहनती नही थी
इसलिए ढले आँचल के कारण उसकी चोली के उपर से उसके छ्होटे ओर कड़े मम्मो
ओर उनकी घुंडीयों का आकार सॉफ सॉफ दिखता. भले छ्होटे हों पर बड़े खूबसूरत
मम्मे थे उसके. बड़ी मुश्किल से मैं अपने आप को संभाल पाता, वरना लगता तो
था कि अभी उन कबूतरों को पकड़ लूँ ओर मसल डालूं, चूस लूँ. मैं अब उसके
मोहज़ाल मे पूरा फँस चुक्का था. रोज़ रात को मूठ मारता तो इस तीखी
नौकरानी के नाम से. उसकी नज़रों से नज़र मिलाना मैने छ्चोड़ दिया था कि
उसे मेरी नज़रों की वासना की भूख दिख ना जाए. बार बार लगता कि उसे उठा कर
पलंग पर ले जाउ ओर कचकच छोड़ मारू. अक्सर खाना खाने के बाद मैं दस मिनिट
तक बैठा रहता, उठता नही था ताकि मेरा तना लंड उसको दिख ना जाएँ. यह
ज़यादा दिन चलने वाला नही था. आख़िर एक शनिवार को छुट्टी के दिन की
दोपेहर में बाँध टूट ही गया. उस दिन खाना परोसते हुए मंजू चीख पड़ी कि
चिंटी काट रही है ओर मेरे सामने अपनी सारी उठा कर अपनी टाँगो मे चिंटी
ढूँढने का नाटक करने लगी. उसकी पुश्त सुडौल साँवली चिकनी जांघे पहली बार
मैने देखी थी. उसने सादी गुलाबी पेंटी पहनी हुई थी. उस टांग पॅंटी मे से
उसकी फूली बुर का उभार सांफ दिख रहा था. साथ ही पॅंटी के बीच के संकरे
पट्टे के दोनो ओर से घनी काली झाँतें बाहर निकल रही थी. एकदम देसी नज़ारा
था. ओर यह नज़ारा मुझे पूरे पाँच मिनिट मंजू ने दिखाया. उउई उउई करती हुई
मेरी ओर देखकर हंसते हुए वो चिंटी ढूँढती रही जो आख़िर तक नही मिली. मैने
खाना किसी तरह ख़तम किया ओर आराम करने के लिए बेडरूम मे आ गया. दरवाजा
उड़का कर मैं सीधा पलंग पर गया ओर लॅंड हाथ मे लेकर हिलाने लगा. मंजू की
वी चिकनी झंघे मेरी आँखों के सामने तेर रही थी. मैं हथेली मे लंड पकड़ कर
उसे मुत्हियाने लगा, मानो मंजू की टाँगों पर उसे रगड़ रहा हूँ. इतने मे
बेडरूम का दरवाजा खुला ओर मंजू अंदर आ गयी. वह चतुर औरत जानबूझ कर मुझे
धुला पाजामा देने का बहाना करके आई थी. दरवाजे की सितकनी मैं लगाना भूल
गया था इसीलिए वो सीधे अंदर घूस आई थी. मुझे मूठ मारते देख कर वहीं खड़ी
हो गयी ओर मुझे देखने लगी. मैं सकते मे आकर रुक गया. अब भी मेरा तननाया
हुआ लंड मेरी मुठ्ठी मे था. मंजू के चेहरे पर शिकन तक नही थी, मेरी ओर
देखकर हँसी ओर आकर मेरे पास पलंग पर बैठ गयी. "क्या बाबूजी, मैं यहाँ हूँ
आपकी हर खातिर ओर सेवा करने को फिर भी ऐसा बच्पना करते हो! मुझे मालूम है
तुम्हारे मन मे क्या है. बिल्कुल अनाड़ी हो आप बाबीजी, इतने दीनो से
इशारे कर रही हूँ पर आप नही समझते, क्या भोन्दु हो बिल्कुल आप!" मैं चुप
था, उसकी ओर देख कर शर्मा कर बस हंस दिया. आख़िर मेरी चोरी पकड़ी गयी थी.
मेरी हालत देख कर मंजू की आँखें चमक उठी," मेरे नाम से सदका लगा रहे थे
बाबूजी? अरे मैं यहाँ आपकी सेवा मे तैयार हूँ ओर आप मूठ मार रहे हो. चलो
अब हाथ हटाओ, मैं दिखाती हूँ कि ऐसे सुन्दर लंड की पूजा कैसे की जाती
है". ओर मेरे हाथ से लंड निकाल कर उसने अपने हाथ मे ले लिया ओर उसे
हथेलियों के बीच रगड़ने लगी. उसकी खुरदरी हथेलियों के रगड़ने से मेरा लंड
पागल सा हो गया. मुझे लग रहा था की मंजू को बाँहो मे भींच लूँ ओर उस पर
चढ़ जाउ, पर उसके पहले ही उसने अचानक मेरी गोद मे सिर झुककर मेरा सूपड़ा
अपने मुँह मे ले लिया ओर मेरे लंड को चूसने लगी. उसके गीले तपते मुँह ओर
मच्चली सी फुदक्ति जीभ ने मेरे लंड को ऐसा तडपाया कि मैं झड़ने को आ गया.
मैं चुप रहा ओर मज़ा लेने लगा. सोचा अब जो होगा देखा जाएगा. हाथ बढ़ा कर
मैने उसके मम्मे पकड़ लिए. क्या माल था! सेब से कड़े थे उसके स्तन.
सूपड़ा चूस्ते चूस्ते वह अपनी एक मुठ्ठी मे लंड का डंडा पकड़कर सदका लगा
रही थी, बीच मे आँखे उपर करके मेरी आँखो मे देखती ओर फिर चूसने लग जाती.
उसकी आँखो मे इतनी शैतानी खिलखिला रही थी कि दो मिनिट मे मैं हुमक कर
झाड़ गया. "मंजू बाई, मुँह हटा लो, मैं झड़ने वाला हूँ ओ:ओ:, मैं कहता रह
गया पर उसने तो ओर लंड को मुँह मे अंदर तक ले लिया ओर जब तक चूस्ति रही
जब तक मेरा पूरा विर्य उसके हलक के नीचे नही उतर गया". मैने हान्फ्ते हुए
उसे पूंच्छा, "कैसी हो तुम बाई, अरे मुँह बाजू मे क्यों नही किये, मैने
बोला तो था कि झड़ने के पहले!" "अरे मैं क्या पगली हूँ बाबूजी इतनी मस्त
मलाई छ्चोड़ देने को? तुम्हारे जैसा खूबसूरत लॉडा कहाँ हम ग़रीबों को
नसीब होता हैं! ये तो भगवान का प्रषाद है हमारे लिए" वह बड़े लाड़ के
अंदाज़ मे बोली. उसकी इस अदा पर मैने उसे बाहों मे जाकड़ लिया ओर चूमने
लगा पर वह छ्छूट कर खड़ी हो गयी ओर खिलखिला उठी " अभी नही बाबूजी, बड़े
आए अब चूमा चाति करने वाले. इतने दिन तो कैसे मिट्टी के माधो बने घूमते
थे अब चले आए चिपक्ने. चलो जाने दो मुझको" कपड़े ठीक करके वह कमरे के
बाहर चली गयी. जाते जाते मेरे चेहरे की निराशा देखकर बोली, " ऐसे मुँह मत
लटकाओ मेरे राजा बाबू मैं आउन्गि फिर अभी कोई आ जाएगा तो? अब ज़रा सबर
करो मैं रात को आउन्गि. देखना कैसी सेवा करूँगी अपने राजकुमार जैसे
बाबूजी की. अब मूठ नही मारना आपको मेरी कसम!" मैं तिरुप्त होकर लूड़क गया
ओर मेरी आँख लग गयी. विश्वास नही हो रहा था की इस मतवाली औरत ने अभी अभी
मेरा लंड चूसा है. सीधा शाम को उठा. मन मे खुशी के लड्डू फुट रहे थे.
क्या औरत थी! इतना मस्त लंड चूसने वाली ओर एकद्ूम तीखी कटारी. कमरे के
बाहर जाकर देखा तो मंजू गायब थी. अच्छा हुआ क्योंकि जिस मूड मे मैं था
उसमें उसे पकड़कर ज़रूर उसे ज़बरदस्ती चोद डालता. टाइम पास करने को मैं
क्लब मे चला गया. जब रात को नौ बजे वापस आया तो खाना टेबल पर रखा था.
मंजू अब भी गायब थी. मैं समझ गया कि वो अब सीधे सोने के समय ही आएगी.
आख़िर उसे भी एहसास होगा कि कोई रात को उसे मेरे घर मे देख ना ले. दिन की
बात ओर थी. वैसे घर की चाभी उसके पास थी ही. मैं जाकर नहाया ओर फिर खाना
खाकर अपने कमरे मे आ गया. अपने सारे कपड़े निकाल दिए ओर अपने खड़े लंड को
पूचकारता हुआ मंजू का इंतज़ार करने लगा. दस बजे दरवाजा खोल कर मंजू बाई
अंदर आई. तब तक मेरा लंड सूज़ कर सोंटा बन गया था. बहुत मीठी तक़लीफ़ दे
रहा था. मंजू को देखकर मेरा लंड ओर ज़यादा थिरक उठा. उसकी हिम्मत की मैने
मन ही मन दाद दी. मैं यह भी समझ गया की उसे भी तेज़ चुदासी सता रही होगी!
मंजू बाई बाहर के कमरे मे अपने सारे कपड़े उतार कर आई थी एकदम मादरजात
नंगी. पहली बार उसका नागन मादक असली देसी रूप मैने देखा. साँवली छर्हरि
काया, छ्होटे सेब जैसी ठोस चूचियाँ, बस ज़रा सी लटकी हुई, स्लिम पर मजबूत
झांघे ओर घनी झांतों से भरी बुर, मैं तो पागला सा गया. उसके शरीर पर कहीं
भी चर्बी का ज़रा सा काटना नहीं था, बस एकदम कड़क दुबला पतला शरीर था. वो
मेरी ओर बिना झिझके देख रही थी पर मैं थोड़ा शर्मा गया था. पहली बार किसी
औरत के सामने मैं नंगा हुआ था ओर किसी औरत को पूरा नंगा देख रहा था. ओर
वह आख़िर उम्र मे मुझसे काफ़ी बड़ी थी, करीब मेरी मौसी की उम्र की. पर वह
बड़ी सहजता से चलती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरा लंड हाथ मे पकड़ कर
बोली,"वाह बाबूजी, क्या खड़ा है? मेरी याद आ रही थी? ये मंजू बाई पसंद आ
गयी है लगता है आपके लौदे को." क्रमशः
 
घर का दूध पार्ट--3

गतान्क से आगे............ अब मुझसे रहा नही गया. उसे बाँहो मे भींच कर
मैं उसको चूमने लगा. उसके होंठ भी थोड़े खुरदारे थे पर एकदम मीठे, उनमें
से पान की भीनी खुश्बू आ रही थी. वह भी अपनी बाहें मेरे गले मे डाल कर
इतराती हुई मेरे चुंबनो का उत्तर देने लगी, अपनी जीभ उसने मेरे मुँह मे
डाल दी ओर मैं उसे चूसने मे लग गया. बड़ा मादक चुंबन था,उस नौकरानी का
मुँह इतना मीठा होगा, मैने सपने मे सोचा भी नहीं था. मेरा लंड अब ऐसा
फनफना रहा था कि मैं अब उसे पटक कर उसपेर चढ़ने की कोशिश करने लगा. "अरे
क्या भूखे भेड़िए जैसे कर रहे हो बाबूजी, ज़रा मज़ा लो, धीरे धीरे मस्ती
करो. आप आराम से लेटो,मैं करूँगी जो करना है" कहकर उसने मुझे पलंग पर
धकेल दिया. मुझे लिटाकर वह फिर मेरा लंड चूसने लगी. मुझे मज़ा आ रहा था
पर उसे कस के चोदने की इच्छा मुझे शांत नही लेटने दे रही थी. "मंजू बाई
चलो अब चुदवा भी लो, ऐसे ना सताओ. देखो, फिर चूस कर नही झड़ाना, आज मैं
तुझे खूब चोदुन्गा." मैने उसकी एक चूंची हाथ मे लेकर कहा. उसका कड़ा निपल
कांचे जैसा मेरी हथेली मे चुभ रहा था. उसने हंस कर मुंदी हिलाई की समझ
गयी पर मेरे लंड को उसने नही छ्चोड़ा, ओर ज़यादा मुँह में लेकर चूस्ति ही
रही. शायद फिर से मेरी मलाई के पीछे थी वो बिल्ली! मैं तैश मे आ गया, उठ
कर उसके मुँह से ज़बरदस्ती बाहर खींचा ओर उसे बिस्तर पर पटक दिया. वह
कहती रह गयी, " अरे रूको बाबूजी, ऐसे नही" पर मैने उसकी टांगे अलग करके
अपना लंड उसकी चूत पर रखा ओर पेल दिया. बुर इतनी गीली थी की लंड आराम से
अंदर चला गया. मैं अब रुकने की स्थिति मे नही था, एक झटके से मैने लंड
जड़ तक उसकी चूत में उतार दिया ओर फिर उस के उप्पर लेट कर उसे चोदने लगा.
मंजू हंसते हुए मुझे दूर करने की कोशिश करने लगी, " बाबूजी रूको, ऐसे नही
चोदो, ज़रा मज़ा करके चोदो, मैं कहाँ भागी जा रही हूँ? अरे धीरे बाबूजी,
ऐसे जानवर जैसे ना धक्के मारो! ज़रा हौले हौले प्यार करो मेरी बुर को"
मैने उसके मुँह को अपने होंठों मे दबा लिया ओर उसकी बकबक बंद कर दी. फिर
उसे भींच कर कस के हचक हचक कर उसे चोदने लगा. उसकी चूत इतनी गीली थी कि
मेरा लंड गपगाप अंदर बाहर हो रहा था. कुच्छ देर ओर छूटने की कोशिश करने
के बाद मंजू बाई ने हार मान ली ओर मुझसे चेपेट कर अपने चूतड़ उच्छाल
उच्छाल कर चुदवाने लगी. अपने पैर उसने मेरी कमर के इर्द गिर्द कस रखे थे
ओर अपनी बाँहों मे मुझे भींच लिया था. इतना आनंद हो सकता है चुदाई मे
मैने सोचा भी नही था. मंजू का मुँह चूस्ते हुए मैने उसकी चूत की कुटाई
चालू रखी. यह सच कभी समाप्त ना हो ऐसा मुझे लग रहा था. पर मैने बहुत
जल्दी की थी. मंजू बाई की उस मादक देसी काया ओर उसकी गरमागरम चिपचिपी चूत
ने मुझे ऐसा बहकाया कि मैं दो मिनिट मे ही झाड़ गया. पड़ा पड़ा मैं इस सच
मे डूबा मज़ा लेता रहा. मंजू बाई बेचारी अब भी गरम थी ओर नीचे से अपनी
चूत को उपर नीचे कर के चुदने की कोशिश कर रही थी. मुझे अब थोड़ी शरम आई
की बिना मंजू को झड़ाए मैं झाड़ गया. " मांफ करना मंजू बाई, तुमको झदाने
के पहले ही मैं बहक गया." मेरी हालत देखकर मंजू बाई मुझसे चिपटकर मुझे
चूमते हुए बोली "कोई बात नही मेरे राजा बाबू. आप जैसा गरम नौजवान ऐसे नही
बहकेगा तो कौन बहकेगा. और मेरे बदन को देख कर ही आप ऐसे मस्त हुए हो ना?
मैं तो निहाल हो गयी की मेरे बाबूजी को ये गाँव की औरत इतनी अच्छी लगी.
आप मुझसे कितने छ्होटे हो, पर फिर भी आप को मैं भा गयी, पिच्छले जनम मे
मैने ज़रूर अच्छे कर्म किए होंगे. चलो, अब भूख मिट गयी ना? अब तो मेरा
कहना मानो. आराम से पड़े रहो और मुझे अपना काम करने दो." मंजू के कहने पर
मैने अपना झाड़ा लंड वैसे ही मंजू की चूत मे रहने दिया और उसपेर पड़ा
रहा. मुझे बाँहों मे भरके चूमते हुए वह मुझसे तरह तरह की उकसाने वाली
बातें करने लगी "बाबूजी मज़ा आया? मेरी चूत कैसी लगी? मुलायम है ना? पर
मखमल जैसी चिकनी है या रेशम जैसी? कुच्छ तो बोलो, शरमाओ नही!" मैने उसे
चूम कर कहा की दुनिया के किसी भी मखमल या रेशम से ज़्यादा मुलायम है उसकी
बुर. मेरी तारीफ़ पर वह फूल उठी. आगे पाटर पाटर करने लगी. "पर मेरी झाँते
तो नही चुभि आपके लंड को? बहुत बढ़ गयी हैं और घूंघराली भी है, पर मैं
क्या करूँ, काटने का मन नही होता मेरा. वैसे आप कहो तो काट दूं. मुझे
बड़ी झाँते अच्छि लगती है. और मेरा चुम्मा कैसा लगता है, बताओ ना? मीठा
है कि नही? मेरी जीभ कैसी है बताओ. मैने कहा की जलेबी जैसी. मैं समझ गया
था कि वह तारीफ़ की भूखी है. वह मस्ती से बहक सी गयी. "कितना मीठा बोलते
हो, जलेबी जैसी है ना? लो चूसो मेरी जलेबी" और मेरे गाल हाथों मे लेकर
मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. मैने उसे दाँतों के बीच पकड़ लिया और
चूसने लगा. वह हाथ पैर फेकने लगी. किसी तरह छ्छूट कर बोली "अब देखो मैं
तुमको कैसे चोदती हूँ. अब मेरे पल्ले पड़े हो, रोज इतना चोदुन्गि तुमको
की मेरी चूत के गुलाम हो जाओगे" इन कामुक बातों का परिणाम यह हुआ कि दस
मिनिट मे मेरा फिर खड़ा हो गया और मंजू की चूत मे अंदर घुस गया. मैने फिर
उसे चोदना शुरू कर दिया पर अब धीरे धीरे और प्यार से मज़े ले लेकर. मंजू
भी मज़े ले लेकर चुदवाति रही पर बीच मे अचानक उसने पलटकर मुझे नीचे पटक
दिया और मेरे उपेर आ गयी. उपेर से उसने मुझे चोदना चालू रखा. "अब चुपचाप
पड़े रहो बाबूजी. आजकी बाकी चुदाई मुझपर छ्चोड़ दो." उसका यह हुक्म मान
कर मैं चुपचाप लेट गया. वह उठकर मेरे पेट पर बैठ गयी. मेरा लंड अब भी
उसकी चूत मे अंदर तक घुसा हुआ था. वह आराम से घुटने मोड़ कर बैठ गयी और
उपेर नीचे होकर मुझे चोदने लगी. उपेर नीचे होते समय उसके मम्मे उच्छल रहे
थे. मैने हाथ बढ़ाकर उन्हे पकड़ लिया और दबाने लगा. उसकी गीली चूत बड़ी
आसानी से मेरे लंड पर फिसल रही थी. उस मखमली म्यान ने मेरे लंड को ऐसा
कड़ा कर दिया जैसे लोहे का डंडा हो. मंजू मन लगाकर मज़ा ले लेकर मुझे
हौले हौले चोद रही थी. चूत से पानी की धार बह रही थी जिससे मेरा पेट गीला
हो गया था. मैने अपना पूरा ज़ोर लगाकर अपने आप को झदाने से रोका और कमर
उपेर नीचे करके नीचे से ही मंजू की बुर मे लंड पेलता रहा. आख़िर मंजू बाई
एक हल्की सिसकी के साथ झाड़ ही गयी. उसकी आँखों मे झलक आई तृप्ति को
देखकर मुझे रोमाच हो आया. आख़िर मेरे लंड ने पहली बार किसी औरत को इतना
सुख दिया था. झाड़ कर भी वह रुकी नही, मुझे चोदति रही
 
"पड़े रहो बाबूजी,
अभी थोड़े छ्चोड़ूँगी तुमको, घंटा भर चोदुन्गि, बहुत दिन बाद लंड मिला है
और वो भी ऐसा शाही लॉडा. और देखो मैं कहूँ तब तक झड़ना नही, नही तो मैं
आपकी नौकरी छ्चोड़ दूँगी" एस मीठी धमकी के बाद मेरी क्या मज़ाल थी झदाने
की. घंटे भर तो नही, पर बीस एक मिनिट मंजू बाई ने मुझे खूब चोदा, अपनी
सारी हवस पूरी कर ली. चोदने मे वह बड़ी उस्ताद निकली, मुझे बराबर मीठी
च्छुरी से हलाल करती रही, अगर मैं झदाने के करीब आता तो रुक जाती. मुझे
और मस्त करने को वह बीच बीच मे खुद ही अपनी चूंचियाँ मसल्ने लगती. कहती
"चुसोगे बाबूजी?" और खुद ही झुक कर अपनी चून्चि खींच कर निप्पल चूसने
लगती. मैं उठकर उसकी चून्चि मुँह मे लेने की कोशिश करता तो हंस कर मुझे
वापस पलंग पर धकेल देती. तरसा रही थी मुझे! दो बार झदाने के बाद वह मुझ
पर तरस खाकर रुकी. अब मैं वासना से तड़प रहा था. मुझसे साँस भी नही ली जा
रही थी. "चलो पिछे खिसक कर सिरहाने से टिक कर बैठ जाओ बाबूजी, तुम बड़े
अच्छे सैयाँ हो, मेरी बात मानते हो, अब इनाम दूँगी" मैं सरका और टिक कर
बैठ गया. अब वह मेरी ओर मुँह करके मेरी गोद मे बैठी थी. मेरा उच्छलता लंड
अब भी उसकी चूत मे क़ैद था. वह उपेर होने के कारण उसकी छाती मेरे मुँह के
सामने थी. पास से उसके सेब से मम्मे देखकर मज़ा आ गया. किशमिश के दानो
जैसे छ्होटे निप्पल थे उसके और तन कर खड़े थे. मंजू मेरे से लाड करते हुए
बोली "मुँह खोलो बाबूजी, अपनी मंजू अम्मा का दूध पियो. दूध है तो नही
मेरी चून्चि मेी, झुत मूत का ही पियो, मुझे मज़ा आता है" मेरे मुँह मे एक
घुंडी देकर उसने मेरे सिर को अपनी छाति पर भींच लिया और मुझे ज़ोर ज़ोर
से चोदने लगी. उसका आधा मम्मा मेरे मुँह मे समा गया था. उसे चूस्ते हुए
मैने भी नीचे से उचक उचक कर चोदना शुरू कर दिया, बहुत देर का मैं इस
च्छुरी की धार पर था, जल्द ही झाड़ गया. पड़ा पड़ा मैं इस मस्त स्खलन का
लुत्फ़ लेने लगा. मंजू उठी और मुझे प्यार भरा एक चुम्मा देकर जाने लगी.
उसकी आँखों मे असीम प्यार और तृप्ति की भावना थी. मैं उसका हाथ पकड़कर
बोला. "अब कहाँ जाती हो मंजू बाई, यहीं सो जाओ मेरे पास, अभी तो रात बाकी
है" वह हाथ छुड़ा कर बोली "नही बाबूजी, मैं कोई आपकी लुगाई थोड़े ही हूँ,
कोई देख लेगा तो आफ़त हो जाएगी. कुच्छ दिन देखूँगी. अगर किसी को पता नही
चला तो आप के साथ रात भर सोया करूँगी" मुझे पक्का यकीन था कि इस कालोनी
मे जहाँ दिन मे भी कोई नही होता था, रात को कोई देखने वाला कहाँ होगा!.
और उसका घर भी तो भी मेरे बंगले से लगा हुआ था. पर वह थोड़ी घबरा रही थी
इसीलिए अभी मैने उसे जाने दिया. दूसरे दिन से मेरा जीवन ऐसे निखर गया
जैसे खुद भगवान कामदेव की मुझ पर कृपा हो. मंजू सुबह सुबह चाइ बनाकर मेरे
बेडरूम मे लाती और मुझे जगाती. जब तक मैं चाइ पीता, वह मेरा लंड चूस
लेती. मेरा लंड सुबह तन कर खड़ा रहता था और झाड़ कर मुझे बहुत अच्छा लगता
था. फिर नहा धोकर नाश्ता करके मैं ऑफीस को चला जाता. दोपहर को जब मैं घर
आता तो मंजू एकदम तैयार रहती थी. उसे बेडरूम मे ले जाकर मैं फटाफट दस
मिनिट मे चोद डालता. वह भी ऐसी गरम रहती थी की तुरंत झाड़ जाती थी. इस
जल्दबाज़ी की चुदाइ का आनंद ही कुच्छ और था. अब मुझे पता चला कि 'चुदाई'
किस चीज़ का नाम है. चुदने के बाद वह मुझे खुद अपने हाथों से प्यार से
खाना खिलाती, एक बच्च्चे जैसे. मैं फिर ऑफीस को निकल जाता. शाम को हम
ज़रा सावधानी बरतते थे. मुझे क्लब जाना पड़ता था. कोई मिलने भी अक्सर घर
आ जाता था. इसलिए शाम को मंजू बस कित्चन मे ही रहती या बाहर चली जाती. पर
रात को ऐसी धुआँधार चुदाई होती की दिन कि सारी कसर पूरी हो जाती. सोने को
तो बारह बज जाते. अब वह मेरे साथ ही सोती थी. एक हफ़्ता हो गया था और रात
को माहौल इतना सुनसान होता था कि किसी को कुच्छ पता चलने का सवाल ही नही
था. वीकेंड मे शुक्रवार और शनिवार रात तो मैं उसे रात भर चोद्ता, तीन चार
बज जाते सोने को. मैने उसकी तनखुवा भी बढ़ा दी थी. अब मैं उसे हज़ार
रुपये तनखुवा देता था. पहले वह नही मान रही थी. ज़रा नाराज़ होकर बोली
"ये मैं पैसे को थोड़ी करती हूँ बाबूजी, तुम मुझे अच्छे लगते हो इसीलिए
करती हूँ." पर मैने ज़बरदस्ती की तो मान गयी. इसके बाद वह बहुत खुश रहती
थी. मुझे लगता है कि उसकी वह खुशी पैसे के कारण नही बल्कि इसलिए थी की
उसे चोदने को मेरे जैसा नौजवान मिल गया था, करीब करीब उसके बेटे की उमर
का. मंजू को मैं कई आसनो मे चोद्ता था पर उसकी पसंद का आसान था मुझे
कुर्सी मे बिठाकर मेरे उपेर बैठ कर अपनी चून्चि मुझसे चुसवाते हुए मुझे
चोदना. मुझे कुर्सी मे बिठाकर वह मेरा लंड अपनी चूत मे लेकर मेरी ओर मुँह
करके मेरी गोद मे बैठ जाती. फिर मेरे गले मे बाँहे डाल कर मुझे अपनी छाती
से चिपटाकर चोदति. उसकी चून्चि मैं इस आसान मे आराम से चूस सकता था और वह
भी मुझे उपेर से मन चाहे जितनी देर चोद सकती थी क्योंकि मेरा झड़ना उसके
हाथ मे था. उसके कड़े निपल मुँह मे लेकर मैं मदहोश हो जाता. शनिवार
रविवार को बहुत मज़ा आता था. मेरी छुट्टी होने से मैं घर मे ही रहता था
इसलिए मौका देखकर कभी भी उससे चिपत जाता था और खूब चूमता और उसके मम्मे
दबाता. जब वह किचन मे खाना बनाती थी तो उसके पिछे खड़े होकर मैं उससे
चिपेट कर उसके मम्मे दबाता हुआ उसकी गर्दन और कंधे चूमता. उसे इससे
गुदगुदी होती थी और वह खूब हँसती और मुझे दूर करने की झूठी कोशिश करती
"हटो बाबूजी, क्या लपर लपर कर रहे हो कुत्तों जैसे, मुझे अपना काम करने
दो" तब मैं उसके मुँह को अपने मुँह से बंद कर देता. मेरा लंड उसके साड़ी
के उपेर से ही चूतदों के बीच की खाई मे समा जाता और उसे उसकी गांद पर
रगड़ रगड़ कर मैं खूब मज़ा लेता. कभी मौका मिलता तो दिन मे ही बेडरूम मे
ले जाकर फटाफट चोद डालता था. क्रमशः..........
 
घर का दूध पार्ट--4

गतान्क से आगे............ धीरे धीरे मेरे दिमाग़ मे उसके उन मस्त चूतदो
को चोदने का ख़याल आने लगा. उसके छ्छूतड़ थे तो छ्होटे पर एकदम गोल और
कड़े थे. चोद्ते समय मैं कई बार उन्हें पकड़ कर दबाता था. इसपर वह कुच्छ
नही कहती थी पर एकाध बार जब मैने उसकी गांद मे उंगली करने की कोशिश की तो
बिचक गयी. उसे वह अच्छा नही लगता था. कब उसकी गांद मारने को मिलती है इस
विचार से मैं पागल सा हो जाता. वह चुदेल औरत भी शायद जानती थी कि मैं
कैसे उसकी गांद को ललचाकर देखता था. इसीलिए मेरे सामने जान बूझकर वह मटक
मटक कर छ्छूतड़ हिलाकर चलती थी. लगता था कि अभी पटक कर उस छिनाल के
छ्छूतदों के बीच अपना लॉडा गाढ दूं. एक दिन मैने साहस करके उससे कह ही
डाला "मंजू बाई, अपने इस सैयाँ को कभी पिछे के दरवाजे से भी अपने घर मे
आने दो, सामने से तुम्हारे घर मे घुसने मे बहुत मज़ा आता है पर पिछे के
दरवाजे से आने मे बात ही और कुच्छ है" वह हंस कर टाल गयी "वाह बाबूजी,
बड़े शैतान हो, सीधे क्यों नही कहते की मेरी गांद मारना चाहते हो. बोलो,
यही बात है ना?" मैने जब थोड़ा सकुचा कर हामी भरी तो तुनक कर बोली "मैं
क्यों अपनी गांद मरवाउ, मेरा क्या फयडा उसमे? और दर्द होगा वो अलग!" वो
पैसे के फ़ायदे के बारे मे नही कह रही थी क्योंकि जब मैने एक बार हिचकते
हिचकते उसकी तनखुवा बढ़ा देने की बात की तो बेहद नाराज़ हो गयी. दो दिन
मुझे हाथ भी नही लगाने दिया. "मुझे रंडी समझा है क्या बाबूजी? कि पैसे
देकर गांद मार लोगे?" गुस्से से बोली. उसे समझाने बुझाने मे मुझे पूरे दो
दिन लग गये. बिल्कुल रूठी हुई प्रेमिका जैसे उसे मनाना पड़ा तब उसका
गुस्सा उतरा. मुझे समझ मे नही आता था की कैसे उसे मनाउ गांद मारने देने
को. एक बार मैने बहुत मिन्नत की तो बोली "तुम्हारा इतना मन है तो देखती
हूँ बाबूजी, कोई रास्ता निकलता है क्या. पर बड़े अपने आप को मेरा सैयाँ
कहते हो! मुझे कितना प्यार करते हो ये तो दिखाओ. मेरी ये रसीली चूत कितनी
अच्छि लगती है तुम्हे ये साबित करो. मुझे खुश करो मेरे राजा बाबू तो मैं
शायद मारने दूँगी अपनी गांद तुमको. मेरे सैयाँ के लिए मैं कुच्छ भी कर
लूँगी, पर मेरा सच्चा सैयाँ बन कर तो दिखाओ" पर यह नही बोलती थी की मैं
कैसे उसे खुश करूँ. मैं चोद्ता तो था उसे मन भर के, उसकी इच्छा के
अनुसार. पर वो और कुच्छ खुलासा नही करती थी की उसके मन मे क्या है. एक
रात मैं मंजू को गोद मे बिठाकर उसे चूमते हुए एक हाथ से उसके मम्मे मसल
रहा था और एक हाथ से उसकी घनी झांतों मेी उंगली डाल कर उसकी बर सहला रहा
था. ऐसा मैं अक्सर करता था, बड़ा मज़ा आता था, मंजू के मीठे मीठे चुममे,
उसका कड़क बदन मेरी बाँहों मे और उंगली उसकी घुंघराले घने बालों से भरी
बुर मे. उस दिन मैं उसकी चूत मे उंगली डालकर उसे हस्तमैथुन करा रहा था.
मैने उसे सहज पुच्छा था कि जब मेरा लंड नही था तो कैसे अपनी चुदासी दूर
करती थी तो हंस कर बोली "ये हाथ किस लिए है बाबूजी?" फिर मेरे आग्रह पर
उसने मेरी गोद मे बैठे बैठे ही अपनी उंगली से अपनी मूठ मार कर दिखाई.
सामने के आईने मे मुझे सॉफ दिख रहा था, मंजू अंगूठे और एक उंगली से अपनी
झांन्तें बाजू मे करके बीच की उंगली बड़े प्यार से अपनी बुर की लकीर मे
चला कर अपना क्लाइटॉरिस रगड़ रही थी और बीच बीच मे वह उस उंगली को अंदर
घुसेड कर अंदर बाहर करने लगती थी. उसका हस्तमैथुन देख कर मैं ऐसा गरम हुआ
की तभी उसे चोद डालना चाहता था. पर उसने ज़िद पकड़ ली कि अब मैं उसकी मूठ
मारु. मैने अपनी उंगली उसकी बुर मे डाल दी. वह मुझे सिखाने लगी की कैसे
औरत की चूत को उंगली से चोदा जाता है. जब वह झाड़ गयी तो मैने उंगली बाहर
निकाली. उस पर सफेद चिपचिपा रस लगा था. मैने सहज ही उसे नाक के पास ले
जाकर सूँघा. बहुत मादक सुगंध थी. मेरी यह हरकत देखकर वह इतरा कर बोली
"सिर्फ़ सूँघोगे बाबूजी, चाखोगे नही? बहुत मज़ा आएगा, असली देसी घी
निकलता है मेरी चूत से मेरे राजा. "खोबा है खोबा!" उसकी चमकती आँखों मे
एक अजीब कामुकता थी. अचानक मेरे दिमाग़ मे बिजली सी कौंध गयी की वह मुझसे
क्या चाहती है. अचानक मेरे दिमाग़ मे बिजली सी कौंध गयी की वह मुझसे क्या
चाहती है. इतने दीनो की चुदाई मे वह बेचारी रोज मेरा लंड चुस्ती थी, मेरा
विर्य पीती थी पर मैने एक दिन भी उसकी चूत को मुँह नही लगाया था. वैसे
उसकी रिस्ति लाल चूत देखकर कई बार मेरे मन मे ये बात आई थी पर मन नही
मानता था. थोड़ी घिन लगती थी कि इस नौकरानी की चूत ठीक से साफ़ की हुई
होगी की नही. वैसे वह बेचारी दिन मे दो बार नहाती थी पर फिर भी मैने कभी
उसकी चूत मे मुँह नही डाला था. आज उसकी उस रिस्ति बुर को देखकर मैने
निश्चय कर लिया कि चूस कर देखूँगा, खूब चाटूंगा कि कैसा है यह सफेद शहद.
मेरा लंड तन कर खड़ा था, उसके जोश मे मैने उसकी ओर देखकर अपना मुँह खोला
और अपनी उंगली मुँह मे लेकर चूसने लगा.
 
मेरी सारी हिचक दूर हो गयी. बहुत
मस्त खारा सा स्वाद था. मंजू मेरी गोद मे बिल्कुल चुप बैठी मेरी ओर देख
रही थी. उसकी साँस अब तेज चल रही थी. एक अनकही वासना उसकी आँखों मे उमड़
आई थी. मैं उंगली जीभ से सॉफ करके बोला "मंजू बाई, तेरी बुर मे तो लगता
है खजाना है शहद का. चलो चटवाओ, टाँगें खोलो और लेट जाओ. मैं भी तो चूत
चाट कर देखूं कि कितना रस निकलता है तेरी चूत मे से" यह सुनकर वह कुच्छ
देर ऐसे ही बैठी रही जैसे मेरी बात पर उसे यकीन नही हो रहा हो. फिर जब
उसने समझ लिया की मैं पूरे दिल से यह बात कह रहा हूँ तो बिना कुच्छ कहे
मेरी गोद से वह उठ कर बाहर चली गयी. मुझे समझ मे नही आया कि इसे क्या
हुआ. दो मिनिट बाद वापस आई तो हाथ मे नारियल के तेल की शीशी लेकर. मैने
पूछा "अरे ये क्यों ले आई हो मंजू रानी, चोदने मे तो इसकी ज़रूरत नही
पड़ती, तेरी चूत तो वैसे ही गीली रहती है हरदम" तो शीशी सिरहाने रखकर
बोली "अगर आज आपने मुझे खुश कर दिया बाबूजी तो मेरी गांद आपके लिए
नज़राने में पेश है. मार लेना जैसे चाहे. इसीलिए तेल ले आई हूँ, बिना तेल
के आपका यह मुस्टंडा अंदर नही जाएगा, मेरी गांद बिल्कुल कुँवारी है
बाबूजी, फट जाएगी, ज़रा रहम करके मारना" उसकी कोरी गांद मारने के ख़याल
से मेरा लंड उच्छलने लगा. मैने उसे कुर्सी मे बिठाया और उसकी टाँगें
उठाकर कुर्सी के हाथों मे फँसा दी. अब उसकी टाँगें पूरी फैली हुई थी और
बुर एकदम खुली हुई थी. मैने उसके सामने नीचे ज़मीन पर बैठ कर उसकी जांघों
को चूमा. मंजू अब मस्ती मे पागल सी हो गयी थी. उसने खुद ही अपनी उंगली से
अपनी झांन्तें बाजू मे की और दूसरे हाथ की उंगली से चूत के पपोते खोल कर
लाल लाल गीला छेद मुझे दिखाया. "चूस लो मेरे राजा मेरे जन्नत के इस
दरवाजे को, चाट लो मेरा माल मेरे राजा, माँ कसम, बहुत मसालेदार रज है
मेरी, आप चातोगे तो फिर और कुच्छ नही भाएगा. मैं तो कब से सपना देख रही
हूँ अपने सैयाँ को अपना ये अमरित चखाने का, पर आपने मौका ही नही दिया"
मैं जीभ निकालकर उसकी चूत पर धीरे धीरे फिराने लगा. उस चिपचिपे पानी का
स्वाद कुच्छ ऐसा मादक था की मैं कुत्ते जैसी पूरी जीभ निकालकर उसकी बुर
को उपेर से नीचे तक चाटने लगा. उसके घुंघराले बाल मेरी जीभ मे लग रहे थे.
चूत के उपेर के कोने मे ज़रा सा लाल लाल कड़ा हीरे जैसा उसका क्लिट था.
उस पर से मेरी जीभ जाती तो वह किलकने लगती. उसका रस ठीक से पीने के लिए
मैने अपने मुँह मे उसकी चूत भर ली और आम जैसा चूसने लगा. चम्मच चम्मच रस
मेरे मुँह मे आने लगा. "हाए बाबूजी, कितना मस्त चूस्ते हो मेरी चूत, आज
मैं सब पा गयी मेरे राजा, कब से मैने मन्नत माँगी थी की आप को मेरे बुर
का माल पिलाउ, मैं जानती थी की आप पसंद करोगे" कराहते हुए वह बोली. अब वह
अपनी कमर हिला हिला कर आगे पिछे होते हुई मेरे मुँह से अपने आप को
चुदवाने की कोशिश कर रही थी. अचानक वह झड़ी और अगले दो तीन मिनिट मैं
घूँट घूँट वह शहद पीता रहा. "बाई, सच मे तेरी चूत का पानी बड़ा जायकेदार
है, एकदम शहद है, फालतू में मैने इतने दिन गँवाए" मैने जीभ से चटखारे
लेते हुए कहा. "तो क्या हुआ बाबूजी, अब से रोज पिया करो, अब तो मैं सुबह
शाम, दिन रात आपको पेट भर कर अपना शहद चटवाउन्गि." मंजू मेरे सिर को अपनी
चूत पर दबाकर बोली. मैं चूत चाट्ता ही रहा. उसे तीन बार और झड़ाया. वह भी
मस्ती मे मेरे सिर को कस कर अपनी बुर पर दबाए मेरे मुँह पर धक्के लगाती
रही. झाड़ झाड़ कर वो थक गयी पर मैं नही रुका. वो पूरी लास्ट होकर कुर्सी
मे पिछे लुढ़क गयी थी. अब जब भी मेरी जीभ उसके क्लिट पर जाती, तो उसका
बदन काँप उठता. उसे सहन नही हो रहा था. "छ्चोड़ो अब बाबूजी, मार डालोगे
क्या? मेरी बुर दुखने लगी है, तुमने तो उसे निचोड़ डाला है, अब किरपा करो
मुझपर, छोड़ दो मुझे, पाँव पड़ती हूँ तुम्हारे" वो मेरे सिर को हटाने की
कोशिश करते हुए बोली. मैने उसके हाथ पकड़ कर अपने सिर से अलग किए और उसकी
चूत को और ज़ोर से चाटने और चूसने लगा. उसके क्लिट को मैं अब जीभ से रेती
की तरह घिस रहा था. उसके तड़पने मे मुझे मज़ा आ रहा था. वो अब सिसक सिसक
कर इधर उधर हाथ पैर फेंक कर तड़प रही थी. जब आख़िर वो रोने लगी तब मैने
उसे छ्चोड़ा. उठ कर उसे खींच कर उठता हुआ बोला "चलो बाई, तेरा शहद लगता
है ख़तम हो गया है. अब गांद मराने को तैयार हो जाओ. कैसे मराओगि, खड़े
खड़े या लेट कर?" वह बेचारी झाड़ झाड़ कर इतनी थक गयी थी कि उससे खड़ा भी
नही हुआ जा रहा था. उसकी हालत देख कर मैने उसे बाँहों मे उठाया और उसके
मस्त शरीर को पलंग पर पटक कर उस पर चढ़ बैठा. क्रमशः............
 
घर का दूध पार्ट--5

गतान्क से आगे............ मैने जल्दी जल्दी अपना लंड तेल से चिकना किया
और फिर उसकी गांद मे तेल लगाने लगा. एकदम सांकरा और छोटा छेद था, वो सच
बोल रही थी की अब तक उसकी गांद मे कभी किसी ने लंड नही डाला था. मैने
पहले एक और फिर दो उंगली डाल दी. वो दर्द से सिसक उठी. "धीरे बाबूजी,
दुख़्ता है ना, दया करो थोड़ी अपनी इस नौकरानी पर, हौले हौले उंगली करो"
मैं तैश मे था. सीधा उसकी गांद का छेद दो उंगलियों से खोल कर बोतल लगाई
और चार पाँच चम्मच तेल अंदर भर दिया. फिर दो उंगली अंदर बाहर करने लगा
"चुप रहो बाई, चूत चुस्वा कर मज़ा किया ना, अब जब मैं लंड से गांद
फाड़ुँगा तो देखना कितना मज़ा आता है. तेरी चूत के रस ने मेरे लंड को
मस्त किया है, अब उसकी मस्ती तेरी गांद से ही उतरेगी". मंजू सिसकते हुए
बोली पर उसकी आवाज़ मे प्यार और समर्पण उमड़ पड़ रहा था "बाबूजी, गांद
मार लो, मैने तो खुद आपको ये चढ़ावे मे दे दी है, आपने मुझे इतना सुख
दिया है मेरी चूत चूस कर, ये अब आपकी है, जैसे चाहो मज़ा कर लो, बस ज़रा
धीरे मारो मेरे राजा" अब तक मेरा लंड भी पूरा फनफना गया था. उठ कर मैं
मंजू की कमर के दोनो ओर घुटने टेक कर बैठा और गुदा पर सुपाड़ा जमा कर
अंदर पेल दिया. उसके संकरे छेद मे जाने मे तकलीफ़ हो रही थी इसीलिए मैने
हाथों से पकड़ कर उसके छ्छूतड़ फैलाए और फिर कस कर सुपाड़ा अंदर डाल
दिया. पक्क से वह अंदर गया और मंजू दबी आवाज़ मे "उई माँ, मर गयी रे" चीख
कर थरथराने लगी. पर बेचारी ऐसा नही बोली की बाबूजी गांद नही मराववँगी.
मुझे रोकने की भी उसने कोई कोशिश नही की. मैं रुक गया. ऐसा लग रहा था
जैसे सुपादे को किसी ने कस के मुठ्ठी मे पकड़ा हो. थोड़ी देर बाद मैने
फिर पेलना शुरू किया. इंच इंच कर के लंड मंजू बाई की गांद मे धंसता गया.
जब बहुत दुख़्ता तो बेचारी सिसक कर हल्के से चीख देती और मैं रुक जाता.
आख़िर जब जड़ तक लंड अंदर गया तो मैने उसके कूल्हे पकड़ लिए और लंड धीरे
धीरे अंदर बाहर करने लगा. उसकी गांद का छल्ला मेरे लंड की जड़ को कस कर
पकड़ा था, जैसे किसीने अंगूठी पहना दी हो. उसके कूल्हे पकड़ कर मैने उसकी
गांद मारना शुरू कर दी. पहले धीरे धीरे मारी. गांद मे इतना तेल था कि लंड
मस्त फॅक फॅक करता हुआ सतक रहा था. वह अब लगातार कराह रही थी. जब उसका
सिसकना थोड़ा कम हुआ तो मैने उसके बदन को बाहों मे भींच लिया और उस पर
लेट कर उसके मम्मे पकड़ कर दबाते हुए कस के उसकी गांद मारने लगा. मैने उस
रात बिना किसी रहम के मंजू की गांद मारी, ऐसे मारी जैसे रंडी को पैसे
देकर रात भर को खरीदा हो और फिर उसे कूट कर पैसा वसूल कर रहा हूँ. मैं
इतना उत्तेजित था कि अगर वह रोकने की कोशिश करती तो उसका मुँह बंद करके
ज़बरदस्ती उसकी मारता. उसकी चूंचियाँ भी मैं बेरहमी से मसल रहा था, जैसे
आम का रस निकालने को पिलपिला करते है. पर वह बेचारी सब सह रही थी. आख़िर
मे तो मैने ऐसे धक्के लगाए की वह दर्द से बिलबिलाने लगी. मैं झाड़ कर
उसके बदन पर लस्त सो गया. क्या मज़ा आया था. ऐसा लगता था की अभी अभी किसी
का बलात्कार किया हो. जब लंड उसकी गांद से निकाल कर उसे पलटा तो बेचारी
की आँखों मे दर्द से आँसू आ गये थे, बहुत दुखा था उसे पर वह बोली कुच्छ
नही क्योंकि उसीने खुद मुझे उसकी गांद मारने की इजाज़त दी थी. उसका
चुम्मा लेकर मैं बाजू मे हुआ तो वह उठकर बाथरूम चली गयी. उससे चला भी नही
जा रहा था, पैर फैला कर लंगड़ा कर चल रही थी. जब वापस आई तो मैने उसे
बाँहों मे ले लिया. मुझसे लिपटे हुए बोली "बाबूजी, मज़ा आया? मेरी गांद
कैसी थी?" मैने उस चूम कर कहा "मंजू बाई, तेरी कोरी कोरी गांद तो लाजवाब
है, आज तक कैसे बच गयी? वो भी तेरे जैसी चुदैल औरत की गांद ! लगता है
मेरे ही नसीब मे थी" वो मज़ाक करते हुए बोली "मैने बचा के रखी बाबूजी आप
के लिए. मुझे मालूम था आप आओगे. अब आप कभी भी मेरी गांद मारो, मैं मना
नही करूँगी. मेरी चूत मे मुँह लगाकर आपने तो मुझे अपना गुलाम बना लिया.
बस ऐसे ही मेरी चूत चूसा करो मेरे राजा बाबू, फिर चाहे जितनी बार मारो
मेरी गांद, पर बहुत दुख़्ता है बाबूजी, आपका लंड है कि मूसल और आप ने आज
गांद की धज्जियाँ उड़ा दी, बहुत बेदर्दी से मारी है मेरी गांद! पर तुमको
सौ खून मांफ है मेरे राजा, आख़िर मेरे सैयाँ हो और मेरे सैयाँ को मेरे ये
छ्छूतड़ इतने भा गये, इसकी भी बड़ी खुशी है मुझे" उसकी इस अदा पर मैने उस
रात फिर उसकी बुर चूसी और फिर उसे मन भर के चोदा. इसके बाद मैं उसकी गांद
हफ्ते मे दो बार मारने लगा, उससे ज़्यादा नही, बेचारी को बहुत दुख़्ता
था. मैं भी मार मार कर उसकी कोरी टाइट गांद ढीली नही करना चाहता था. उसका
दर्द कम करने को गांद मे लंड घुसेड़ने के बाद मैं उसे गोद मे बिठा लेता
और उसकी बुर को उंगली से चोद्कर उसे मज़ा देता, दो तीन बार उसे झड़ाकार
फिर उसकी मारता. गांद मारने के बाद खूब उसकी बुर चूस्ता,
 
उसे मज़ा देने
को और उसका दर्द कम करने को. वैसे उसकी चूत के पानी का चस्का मुझे ऐसा
लगा, की जब मौका मिले, मैं उसकी चूत चूसने लगता. एक दो बार तो जब वह खाना
बना रही थी, या टेबल पर बैठ कर सब्जी काट रही थी, मैने उसकी साड़ी उठाकर
उसकी बुर चूस ली. उसको हर तरह से चोदने और चूसने की मुझे अब ऐसी आदत लग
गयी थी की मैं सोचता था की मंजू नही होती तो मैं क्या करता. यही सब सोचते
मैं पड़ा था. मंजू ने अपने मम्मों पर हुए ज़ख़्मों पर तेल लगाते हुए मुझे
फिर उलहना दिया "क्यों चबाते हो मेरी चून्चि बाबूजी ऐसे बेरहमी से. पिछले
दो तीन दिन से ज़्यादा ही काटने लगे हो मुझे" मैने उसकी बुर को सहलाते
हुए कहा "बाई, अब तुम मुझे इतनी अच्छि लगती हो कि तेरे बदन का सारा रस
मैं पीना चाहता हूँ. तेरी चूत का अमरित तो बस तीन चार चम्मच निकलता है,
मेरा पेट नही भरता. तेरी चूंचियाँ इतनी सुंदर है, लगता है इनमे दूध होता
तो पेट भर पी लेता. अब दूध नही निकलता तो जोश मे काटने का मन होता है" वह
हंसते हुए बोली "अब इस उमर मे कहाँ मुझे दूध छूतेगा बाबूजी. दूध छ्छूटता
है नौजवान छ्हॉकरियों को जो अभी अभी माँ बनी है." फिर वह चुप हो गयी और
कपड़े पहनने लगी. कुच्छ सोच रही थी. अचानक मुझसे पुच्छ बैठी "बाबूजी, आप
को सच मे औरत का दूध पीना है या ऐसे ही मुफ़्त बतिया रहे हो" मैने उसे
भरोसा दिलाया की अगर उसके जैसे रसीली मतवाली औरत हो तो ज़रूर उसका दूध
पीने मे मुझे मज़ा आएगा. "कोई इंतज़ाम करती हूँ बाबूजी. पर मुझे खुश रखा
करो. और मेरी चूंचियों को दाँत से काटना बंद कर दो" उसने हुकुम दिया. उसे
खुश रखने को अब मैने रोज उसकी बुर पूजा शुरू कर दी. जब मौका मिलता, उसकी
चूत चाटने मे लग जाता. मैने एक वी सी आर भी खरीद लिया और उसे कुच्छ ब्लू
फिल्म दिखाई. टेप लगाकर मैं उसे सोफे मे बिठा देता और खुद उसकी साड़ी
उपेर कर के उसकी बुर चूसने मे लग जाता. एक घंटे की कैसेट ख़तम होते होते
वह मस्ती से पागल होने को आ जाती. मेरा सिर पकड़कर अपनी चूत पर दबा कर
मेरे सिर को जांघों मे पकड़कर वह फिल्म देखते हुए ऐसी झड़ती की एकाध घंटे
किसी काम की नही रहती. रात को कभी कभी मैं उसे अपने मुँह पर बिठा लेता.
उच्छल उच्छल कर वो ऐसे मेरे मुँह और जीभ को चोद्ति की जैसे घोड़े की
सवारी कर रही हो. कभी मैं उससे सिक्स्टी नाइन कर लेता और उसकी बुर चूस कर
अपने लंड की मलाई उसे खिलाता. मंजू बाई मुझ पर बेहद खुश थी और मैं राह
देख रहा था कि कब वह मुझ पर मेहरबान होती है. एक इतवार को वह सुबह ही
गायब हो गयी. सुबह से दोपहर हो गयी. फिर दोपहर से शाम फिर शाम से रात पेर
मंजू बाई का कुच्छ अता पता नही था की वो कहाँ गयी है ओर क्यों गयी है.
मैं लेटा लेटा उसकी इंतज़ार करता करता सो गया. रात की नींद के बाद मैं जब
सुबह उठा तो मंजू वापस आ गयी थी. चाय लेकर खड़ी थी. मैने उसकी कमर मे हाथ
डाल कर पास खींचा और ज़ोर से चूम लिया. "क्यों मंजू बाई, कल से कहाँ गायब
थी. मुझे कल सुबह से चम्मच भर शहद भी नही मिला. कहाँ गायब हो गयी थी?" वह
मुझसे छूट कर मुझे आँख मारते हुए धीरे से बोली, "आप ही के काम से गयी थी
बाबूजी. ज़रा देखो, क्या माल लाई हूँ तुम्हारे लिए!" मैने देखा तो दरवाजे
मे एक जवान लड़की खड़ी थी. थोड़ी शर्मा ज़रूर रही थी पर तक लगाकर मेरी और
मंजू के बीच की चुम्मा चॅटी देख रही थी. मैने मंजू को छ्चोड़ा और उससे
पुछा कि ये कौन है. वैसे मंजू और उस लड़की की सूरत इतनी मिलती थी की मैं
समझ गया कि ये "कन्या" कौन है. मंजू ने भी पुष्टि की "बाबूजी, ये गीता
है, मेरी बेटी. बीस साल की है, दो साल पहले शादी की है इसकी. अब एक बच्चा
भी है" मैं गीता को बड़े इंटेरेस्ट से घूर रहा था. मंजू बाई उसे क्यों
लाई थी यह भी मुझे थोड़ा थोड़ा समझ मे आ रहा था. गीता मंजू जैसी ही
साँवली थी पर उससे ज़्यादा खूबसूरत थी. शायद उसकी जवानी की वजह से ऐसी लग
रही थी. मंजू से थोड़ी नाटी थी और उसका बदन भी मंजू से ज़्यादा भरा पूरा
था. एकदम मांसल और गोल मटोल, शायद माँ बनने की वजह से होगा.
क्रमशः.......
 
घर का दूध पार्ट--6

गाटांक से आगे............ उस लड़की का कोई अंग एकदम मन मे भरता था तो वह
था उसकी विशाल छाती. उसका आँचल ढला हुआ था; शायद उसने जान बूझकर भी
गिराया हो. उसकी चोली इतनी तंग थी कि छातियाँ उसमे से बाहर आने को कर रही
थी. चोली के पतले कपड़े मे से उसके नारियल जैसे मम्मे और उनके सिरे पर
जामुन जैसे निप्पालों का आकार दिख रहा था. निप्पालों पर उसकी चोली थोड़ी
गीली भी थी. मेरा लंड खड़ा होने लगा. मुझे थोड़ा अटपटा लगा पर मैं क्या
करता, उस छ्छोकरी की मस्त जवानी थी ही ऐसी. मंजू आगे बोली. "उसे मैने सब
बता दिया है बाबूजी, इसीलिए आराम से रहो, कुच्छ च्छुपाने की ज़रूरत नही
है" मेरा लंड अब तक तन्ना कर पूरा खड़ा हो गया था. मंजू हँसने लगी "मेरी
बिटिया भा गयी बाबूजी आपको. कहो तो इसे भी यहीं रख लूँ. आप की सेवा
करेगी. हां इसकी तनखुवा अलग होगी" उस मतवाली छ्हॉकरी के लिए मैं कुच्छ भी
करने को तैयार था. "बिल्कुल रख लो बाई, और तनखुवा की चिंता मत करो" "असल
बात तो आप समझे ही नही बाबूजी, गीता पिच्छले साल ही माँ बनी है. बहुत दूध
आता है उसको, बड़ी तकलीफ़ भी होती है बेचारी को. बच्चा एक साल को हो गया,
अब दूध नही पिता, पर इसका दूध बंद नही होता. चून्चि सूज कर दुखने लगती
है. जब आप मेरा दूध पीने की बात बोले तो मुझे ख़याल आया, क्यों ना गीता
को गाँव से बुला लाउ, उसकी भी तकलीफ़ दूर हो जाएगी और आपके मन की बात भी
हो जाएगी? बोलो, जमता है ना बाबूजी?" मैने गीता की चून्चि घुरते हुए कहा
"पर इसका मर्द और बच्चा?" "उसकी फिकर आप मत करो, इसका आदमी काम से च्छेः
महीने को शहर गया है, इसीलिए मैने इसे मायके बुला लिया. इसकी सास अपने
पोते के बिना नही रह सकती, बहुत लगाव है, इसीलिए उसे वहीं छ्चोड़ दिया
है, ये अकेली है इधर" याने मेरी लाइन एकदम क्लियर थी. मैं गीता का जोबन
देखने लगा. लगता था कि पकड़ कर खा जाउ, चढ़ कर मसल डालूं उसके मतवाले रूप
को. गीता भी मस्त हो गयी थी, मेरे खड़े लंड को देख कर. लंड देखते हुए
धीरे धीरे खड़े खड़े अपनी जांघें रगड़ रही थी. "सिर्फ़ दूध पीने की बात
हुई है बाबूजी, ये सम्झ लो." मंजू ने मुझे उलाहना दिया. फिर गीता को मीठी
फटकार लगाई "और सुन री छिनाल लड़की. मेरी इजाज़त के बिना इस लंड को हाथ
भी नही लगाना, ये सिर्फ़ तेरी अम्मा का है" "अम्मा , ये क्या? मेरे को भी
मज़ा करने दे ना & कितना मतवाला लंड है, तू बता रही थी तो भरोसा नही था
मेरा पर ये तो और खूबसूरत निकला" गीता मचल कर बोली. उसकी नज़रें मेरे लंड
पर गढ़ी हुई थीं. बड़ी चालू चीज़ थी, ज़रा भी नही शर्मा रही थी, बल्कि
चुदने को मरी जा रही थी. "बदमाश कहीं की, तू सुधरेगी नही, मैने कहा ना
फिर देखेंगे. अभी चोली निकाल और फटाफट बाबूजी को दूध पीला." मंजू ने अपनी
बेटी को डाँटते हुए कहा. मंजू अब मेरे लंड को पाजामे के बाहर निकाल कर
प्यार से मुठिया रही थी. फिर उसने झुक कर उसे चूसना शुरू कर दिया. उधर
गीता ने अपना ब्लओज़ निकाल दिया. उसकी पपीते जैसे मोटी मोटी चूंचियाँ अब
नंगी थीं. वह एकदम फूली फूली थी जैसे अंदर कुच्छ भरा हो. वजन से वो लटक
रही थी. एक स्तन को हाथ मे उठाकर सहारा देते हुए गीता बोली "अम्मा देख
ना, कैसे भर गये है मम्मे मेरे, आज सुबह से खाली नही हुए, बहुत दुखाते
है" "अरे तो टाइम क्यों बर्बाद कर रही है. आ बैठ बाबूजी के पास और जल्दी
दूध पीला उनको. भूखे होंगे बेचारे" मंजू ने उसका हाथ पकड़ कर खींचा और
पलंग पर मेरे पास बिठा दिया. मैं सिरहाने से टिक कर बैठा था. गीता मेरे
पास सरकी, उसकी काली आँखों मे मस्ती झलक रही थी. उसके मम्मे मेरे सामने
थे. निप्पालों के चारों ओर तश्तरी जैसे बड़े गोले थे. पास से वी मोटे
मोटे लटके स्तन और भी ज़यादा रसीले लग रहे थे. अब मुझसे नही रहा गया और
झुक कर मैने एक काला जामुन मुँह मे ले लिया और चूसने लगा. मीठा कुनकुना
दूध मेरे मुँह मे भर गया. मेरी उस अवस्था मे मुझे वह अमृत जैसा लग रहा
था. मैने दोनो हाथों मे उसकी चून्चि पकड़ी और चूसने लगा जैसे की बड़े
नारियल का पानी पी रहा हूँ. लगता था मैं फिर छ्होटा हो गया हूँ. आँखें
बंद करके मैं स्तनपान करने लगा. उधर मंजू ने मेरा लंड मुँह मे ले लिया.
अपनी कमर उछाल कर मैं उसका मुँह चोदने की कोशिश करने लगा. वह महा उस्ताद
थी, बिना मुझे झड़ाए प्यार से मेरा लंड चुसती रही. अब तक गीता भी गरमा
गयी थी. मेरा सिर उसने कस कर अपनी चूचियो पर भींच लिया जिससे मैं छ्छूट
ना पाउ और उसका निपल मुँह से ना निकालूं. उसे क्या मालूम था की उसकी उस
मतवाली चून्चि को छ्चोड़ दूँ ऐसा मूरख मैं नही था. उसका मम्मा दबा दबा कर
उसे दुहाते हुए मैं दूध पीने लगा. अब वह प्यार से मेरे बाल चूम रही थी.
सुख की सिसकारियाँ भरती हुई बोली "अम्मा, बाबूजी की क्या जवानी है, देख
क्या मस्त चूस रहे है मेरी चून्चि, एकदम भूखे बच्चे जैसे पी रहे है. और
उनका यह लंड तो देख अम्मा, कितनी ज़ोर से खड़ा है.
 
अम्मा, मुझे भी चूसने
दे ना!" मंजू ने मेरा लंड मुँह से निकाल कर कहा "कल से, आज नही, वो भी
अगर बाबूजी हां कहें तो! पता नही तेरा दूध उन्हें पसंद आया है कि नही"
वैसे गीता के दूध के बारे मे मैं क्या सोचता हूँ, इसका पता उसे मेरे
उच्छालते लंड से ही लग गया होगा. आख़िर गीता का स्तन खाली हो गया. उसे
दबा दबा कर मैने पूरा दूध निचोड़ लिया. फिर भी उसके उस मोटे जामुन से
निपल को मुँह से निकालने का मन नही हो रहा था. पर मैने देखा की उसके
दूसरे निपल से अब दूध टपकने लगा था. शायद ज़्यादा भर गया था. मैने उसे
मुँह मे लिया और उसकी दूसरी चून्चि दूह कर पीने लगा. गीता खुशी से चाहक
उठी. "अम्मा, ये तो दूसरा मम्मा भी खाली कर रहे है. मुझे लगा था कि एक से
इनका मन भर जाएगा." "तो पीने दे ना पगली, उन्हें भूख लगी होगी. अच्च्छा
भी लगा होगा तेरा दूध. अब बकबक मत कर, मुझे बाबूजी का लॉडा चूसने दे ठीक
से, बस मलाई फेकने ही वाला है अब" कह कर मंजू फिर शुरू हो गयी अब दूसरी
चून्चि भी मैने खाली कर दी तब मंजू ने मेरा लंड जड़ तक निगल कर अपने गले
मे ले लिया और ऐसे चूसा की मैं झाड़ गया. मुझे दूध पिलवा कर उस बिल्ली ने
मेरी मलाई निकाल ली थी. मैं लस्त होकर पिछे लुढ़क गया पर गीता अब भी मेरा
सिर अपनी चूची पर भींच कर अपनी चून्चि मेरे मुँह मे ठूँसती हुई वैसे ही
बैठी थी. मैने किसी तरहा से उसे अलग किया. गीता मेरी ओर देख कर बोली
"बाबूजी, पसंद आया मेरा दूध?" वह ज़रा टेंशन मे थी कि मैं क्या कहता हूँ.
मैने खींच कर उसका गाल चूम लिया. "बिल्कुल अमरित था गीता रानी, रोज
पिलाओगी ना?" वह थोड़ी शर्मा गयी पर मुझे आँख मार कर हँसने लगी. मैने
मंजू से पुचछा "कितना दूध निकलता है इसके थनो से रोज बाई? आज तो मेरा ही
पेट भर गया, इसका बच्चा कैसे पीता था इतना दूध" मंजू बोली "अभी ज़्यादा
था बाबूजी, कल से बेचारी की चून्चि खाली नही की थी ना. नही तो करीब इसका
आधा ही निकलता है एक बार मे. वैसे हर चार घंटे मे पीला सकती है ये." मैने
हिसाब लगाया. मैने कम से कम पाव डेढ़ पाव दूध ज़रूर पिया था. अगर दिन मे
चार बार यह आधा पाव दूध भी दे तो आधा पौना लीटर दूध होता था दिन का. दिन
मे दो तीन पाव देने वाली उस मस्त दो पैर की गाय को देख कर मैं बहक गया.
मंजू को पुच्छा "बोलो बाई, कितनी तनखुवा लेगी तेरी बेटी?" वो गीता की ओर
देख कर बोली "पाँच सौ रुपये दे देना बाबूजी. आप हज़ार वैसे ही देते हो,
आप से ज़्यादा नही लूँगी." मैने कहा कि हज़ार रुपये दूँगा गीता को. गीता
तुनक कर बोली "पर काहे को बाबूजी, पाँच सौ बहुत है, और मैं भी तो आपके इस
लाख रुपये के लंड से चुदवंगी रोज . हज़ार ज़्यादा है, मैं कोई कमाने
थोड़े ही आई हूँ आपके पास." मैने गीता की चून्चि प्यार से दबा कर कहा
"मेरी रानी, ज़्यादा नही दे रहा हूँ, पाँच सौ तुम्हारे काम के, और पाँच
सौ दूध के. अब कम से कम मेरे लिए तो बाहर से दूध खरीदने की ज़रूरत नही
है. वैसे तुम्हारा ये दूध तो हज़ारों रुपये मे भी सस्ता है" गीता शर्मा
गयी पर मंजू हँसने लगी "बिल्कुल ठीक है बाबूजी. बीस रुपये लीटर दूध मिलता
है, उस हिसाब से महीने भर मे बीस पचीस लीटर दूध तो मिल ही जाएगा आपको"
गीता ने एक दो बार और ज़िद की पर उस रात मंजू ने मुझे अपनी बेटी नही
चोदने दी. बस उस रात को एक बार और गीता का दूध मुझे पिलवाया. दूध पिलाते
पिलाते गीता बार बार चुदाने की ज़िद कर रही थी पर मंजू आडी रही. "गीता
बेटी, आज रात और सबर कर ले. कल शनिवार है, बाबूजी की छुट्टी है. कल सुबह
दूध पिलाने आएगी ना तू, उसके बाद कर लेना मज़ा" गीता के जाने के बाद मैने
मंजू को ऐसा चोदा की वह एकदम खुश हो गयी. "आज तो बाबूजी, बहुत मस्त चोद
रहे हो हचक हचक कर. लगता है मेरी बेटी बहुत पसंद आई है, उसी की याद आ रही
है, है ना?" क्रमशः...........
 
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