hotaks444
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११५
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अकबर चाचू और शन्नो मौसी
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हमारी और शानू की मम्मी का निकाह जब हुआ था तो वो उन्नीस साल की थीं। जैसा उस वक्त का दस्तूर था जब बेटी ससुराल
रवाना होती तो छोटा भाई या बहन कुछ दिनों के लिए बेटी के साथ रवाना होती थी। शानू की मम्मी, रज्जो, का कोई छोटा भाई
तो था नहीं सो उसकी सबसे छोटी बहन उनके साथ हमारे घर आयी। शहाना बड़ी चुलबुली लड़की थी। उसे प्यार सब शन्नो कहते
थे। शन्नो और रज्जो के बीच में मझली बहन ईशा थी जो शन्नो से दो साल बड़ी थी। शन्नो सातवीं में थी और ईशा नवीं में दाखिल
हो गयी थी।
उस वक्त शायद शन्नो शानू से दो एक साल छोटी होगी। पर उसका शरीर पकने लगा था। मैंने जब भी उस से छेड़ छाड़ की तो वो
मटक कर नाराज़गी दीख देती। निकाह के बाद खाने हुआ और जब सोने का इंतिज़ाम शुरू हुआ तो मैंने शन्नो को अकेला पा कर
उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। जैस मैने बताया अभी उसे किशोरावस्था का पहला साल लगने में दो तीन महीने थे पर उसकी
चूचियाँ बाहर निकल आईं थीं।
मैंने शन्नो को बाँहों में भींच कर उसके कुर्ती के ऊपर से उसके चूचियाँ मसलने लगा। शन्नो मचल कर दूर फटक गयी।
"जीजू मैं सब सालियों की तरह नहीं हूँ। जो जब जीजू चाहें उसे मसल दें। आप अपने हाथ रज्जो आपा के लिए हे रखें। " शन्नो
ने हाथ नचा कर मुझे फटकारने लगी।
"साली साहिबा, जीजू तुम्हे नहीं मसलेगें तो तुम्हारी इज़्ज़त का क्या होगा। जब तुम्हारी सहेलियां पूछेंगीं कि जीजू से चुदी अर...
जीजू ने दरवाज़ा खोला या नहीं तो तब क्या बोलोगी। " मैंने मुस्कुरा कर शन्नो को चिढ़ाया, "चलो अब अच्छी साली की तरह आ
जाओ और फिर देखना जीजू कितना मज़ा देते हैं तुम्हें ?"
शन्नो ने फिर से मटक कर कहा , "मज़ा आप आपा के लिए रख लें। हमें नहीं चाहिये आपका मज़ा। हमें पता हैं की मज़े के लिया
आप हमारे साथ क्या करना चाहते हैं। "
तभी शानू के नानी जान, हमारी सासू और ईशा आ गयीं।
"क्या जीजू आप कहाँ छुपे है। हम सब तरफ आपको ढूंढ रहे हैं। आप बारात के साथ कल चले जायेंगे। फिर पता नहीं कब
मिलेंगे।
वैसे भी तो आपा के ऊपर आप कल तक हमला नहीं बोल सकते तो हमने सोचा कि जीजू की हालत खराब न हो जाये चल कर
उनका ख्याल रखतें है। और आप देखो न जाने कहाँ गायब हो गए। " ईशा के किशोरावस्था के दो सालों ने गज़ब का बदलाव आ
गया था।
ईशा के उरोज़ उभर कर फट पड़ने जैसे लगने लगे थे। उसके नितिम्बों में औरताना भराव आ गया था। तीनों बेटियां अपनी मम्मी
जैसी ख़ूबसूरत गदराये शरीर के मलिकाएँ थीं।
सासू अम्मी ने सर हिला कर और खुल कर मुस्करा कर अपने मझली बेटी ईशा की बात का साथ दिया।
" बड़ी साली साहिबा, हम तो अपनी छोटी साली को पटाने के कोशिश कर रहे थे पर ये हाथ ही नहीं रखने देतीं। ," मैंने शन्नो की
शिकायत उसकी बड़ी बहन से लगाई। पर मैं शानू की नानीजान को असलियत में शिकायत लगा रहा था।
"अरे नासमझ जीजू को हाथ नहीं लगाने देगी तो क्या करेगी , किस मर्द से पटेगी तू ? जीजू की खुशी में तो साली की खुशी है।
देख ईशा और जीजू कितने फंसे हुए हैं। " सासू अम्मी ने हाथ हिला कर शन्नो को उलहना दिया। मैंने ईशा को खींच कर बांहों में भर
लिया था। उसके चूचियाँ मेरे दोनों हाथों में भर गयी। मैंने उन्हें कस कर मसला तो ईशा कराह उठी।
"दामाद बेटा अभी तो ईशा है यहाँ तुम्हारा ख्याल रखने के लिए। यह तुनक मिजाज़ तो तुम्हारे साथ ही जाएगी। पकड़ कर रगड़ देना
इसे अपने घर में। कहाँ जाएगी बच कर ?"सासु माँ ने बनावटी गुस्सा दिखाया , "देख तो शन्नो ईशा को कैसा मज़ा दे रहें है दामाद
बेटा ? यदि दामाद बेटा चाहें तो मैं भी उन्हें सब कुछ दे दूँ। " सासु माँ ने मुस्कुरा कर कहा।
"अम्मी जान आप जैसी खूबरूरत सासू तो खुदा की नियामत है किसी भी दामाद के लिए। मैं तो आपका शुक्र गुज़र हूँ की आपने
अपनी हूर जैसी ख़ूबसूरत बेटी मुझे दे दी है। "
"बेटा मैंने तो एक बेटी नहीं खोयी पर एक बेटा पा लिया है ,"सासु माँ थोड़ी जज़्बाती हो गयीं। उन्होंने मेरी बला उतारते हुए मुझे
चूमा और बोलीं, "बेटा मुझे बड़े काम हैं। मैं तुम्हारी सालियां तुम्हारे लिए तुम्हे छोड़ रहीं हूँ। "
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अकबर चाचू और शन्नो मौसी
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हमारी और शानू की मम्मी का निकाह जब हुआ था तो वो उन्नीस साल की थीं। जैसा उस वक्त का दस्तूर था जब बेटी ससुराल
रवाना होती तो छोटा भाई या बहन कुछ दिनों के लिए बेटी के साथ रवाना होती थी। शानू की मम्मी, रज्जो, का कोई छोटा भाई
तो था नहीं सो उसकी सबसे छोटी बहन उनके साथ हमारे घर आयी। शहाना बड़ी चुलबुली लड़की थी। उसे प्यार सब शन्नो कहते
थे। शन्नो और रज्जो के बीच में मझली बहन ईशा थी जो शन्नो से दो साल बड़ी थी। शन्नो सातवीं में थी और ईशा नवीं में दाखिल
हो गयी थी।
उस वक्त शायद शन्नो शानू से दो एक साल छोटी होगी। पर उसका शरीर पकने लगा था। मैंने जब भी उस से छेड़ छाड़ की तो वो
मटक कर नाराज़गी दीख देती। निकाह के बाद खाने हुआ और जब सोने का इंतिज़ाम शुरू हुआ तो मैंने शन्नो को अकेला पा कर
उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। जैस मैने बताया अभी उसे किशोरावस्था का पहला साल लगने में दो तीन महीने थे पर उसकी
चूचियाँ बाहर निकल आईं थीं।
मैंने शन्नो को बाँहों में भींच कर उसके कुर्ती के ऊपर से उसके चूचियाँ मसलने लगा। शन्नो मचल कर दूर फटक गयी।
"जीजू मैं सब सालियों की तरह नहीं हूँ। जो जब जीजू चाहें उसे मसल दें। आप अपने हाथ रज्जो आपा के लिए हे रखें। " शन्नो
ने हाथ नचा कर मुझे फटकारने लगी।
"साली साहिबा, जीजू तुम्हे नहीं मसलेगें तो तुम्हारी इज़्ज़त का क्या होगा। जब तुम्हारी सहेलियां पूछेंगीं कि जीजू से चुदी अर...
जीजू ने दरवाज़ा खोला या नहीं तो तब क्या बोलोगी। " मैंने मुस्कुरा कर शन्नो को चिढ़ाया, "चलो अब अच्छी साली की तरह आ
जाओ और फिर देखना जीजू कितना मज़ा देते हैं तुम्हें ?"
शन्नो ने फिर से मटक कर कहा , "मज़ा आप आपा के लिए रख लें। हमें नहीं चाहिये आपका मज़ा। हमें पता हैं की मज़े के लिया
आप हमारे साथ क्या करना चाहते हैं। "
तभी शानू के नानी जान, हमारी सासू और ईशा आ गयीं।
"क्या जीजू आप कहाँ छुपे है। हम सब तरफ आपको ढूंढ रहे हैं। आप बारात के साथ कल चले जायेंगे। फिर पता नहीं कब
मिलेंगे।
वैसे भी तो आपा के ऊपर आप कल तक हमला नहीं बोल सकते तो हमने सोचा कि जीजू की हालत खराब न हो जाये चल कर
उनका ख्याल रखतें है। और आप देखो न जाने कहाँ गायब हो गए। " ईशा के किशोरावस्था के दो सालों ने गज़ब का बदलाव आ
गया था।
ईशा के उरोज़ उभर कर फट पड़ने जैसे लगने लगे थे। उसके नितिम्बों में औरताना भराव आ गया था। तीनों बेटियां अपनी मम्मी
जैसी ख़ूबसूरत गदराये शरीर के मलिकाएँ थीं।
सासू अम्मी ने सर हिला कर और खुल कर मुस्करा कर अपने मझली बेटी ईशा की बात का साथ दिया।
" बड़ी साली साहिबा, हम तो अपनी छोटी साली को पटाने के कोशिश कर रहे थे पर ये हाथ ही नहीं रखने देतीं। ," मैंने शन्नो की
शिकायत उसकी बड़ी बहन से लगाई। पर मैं शानू की नानीजान को असलियत में शिकायत लगा रहा था।
"अरे नासमझ जीजू को हाथ नहीं लगाने देगी तो क्या करेगी , किस मर्द से पटेगी तू ? जीजू की खुशी में तो साली की खुशी है।
देख ईशा और जीजू कितने फंसे हुए हैं। " सासू अम्मी ने हाथ हिला कर शन्नो को उलहना दिया। मैंने ईशा को खींच कर बांहों में भर
लिया था। उसके चूचियाँ मेरे दोनों हाथों में भर गयी। मैंने उन्हें कस कर मसला तो ईशा कराह उठी।
"दामाद बेटा अभी तो ईशा है यहाँ तुम्हारा ख्याल रखने के लिए। यह तुनक मिजाज़ तो तुम्हारे साथ ही जाएगी। पकड़ कर रगड़ देना
इसे अपने घर में। कहाँ जाएगी बच कर ?"सासु माँ ने बनावटी गुस्सा दिखाया , "देख तो शन्नो ईशा को कैसा मज़ा दे रहें है दामाद
बेटा ? यदि दामाद बेटा चाहें तो मैं भी उन्हें सब कुछ दे दूँ। " सासु माँ ने मुस्कुरा कर कहा।
"अम्मी जान आप जैसी खूबरूरत सासू तो खुदा की नियामत है किसी भी दामाद के लिए। मैं तो आपका शुक्र गुज़र हूँ की आपने
अपनी हूर जैसी ख़ूबसूरत बेटी मुझे दे दी है। "
"बेटा मैंने तो एक बेटी नहीं खोयी पर एक बेटा पा लिया है ,"सासु माँ थोड़ी जज़्बाती हो गयीं। उन्होंने मेरी बला उतारते हुए मुझे
चूमा और बोलीं, "बेटा मुझे बड़े काम हैं। मैं तुम्हारी सालियां तुम्हारे लिए तुम्हे छोड़ रहीं हूँ। "