hotaks444
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जाल पार्ट--11
गतान्क से आगे.
"थॅंक्स.",उसने इंटरकॉम बंद किया & ठीक उसी वक़्त उसके दिमाग़ मे उसकी परेशानी का हाल कौंधा.तजुर्बे & क्वालिफिकेशन्स की बिना पे बस सोनम ही उसकी सेक्रेटरी बन सकती थी.आज तक उसने अपने बिज़्नेस के साथ समझौता नही किया था & आज भी नही करेगा.उसने इंटरकम का बटन दबाया,"मिस.सोनम रौत & मिस.रंभा वेर्मा के अलावा बाकी लड़कियो को जाने को कहो & फिर मिस.रौत को मेरे पास भेजो."
"मिस.रौत,कंग्रॅजुलेशन्स!",विजयंत ने उस से हाथ मिलाया तो सोनम के बदन मे झुरजुरी दौड़ गयी.उसके कॅबिन मे घुसने पे विजयंत ने खड़े होके उसका स्वागत किया था,"आप इस पोस्ट के लिए चुन ली गयी हैं."
"थॅंक्स,सर."
"उमीद है हमारे साथ काम करके आपको अच्छा लगेगा.आप बाहर जाएँगी तो आपको मिस्टर.कुमार मिलेंगे जोकि आपको ऑफर लेटर देंगे अगर उसमे लिखी बातें आपको मंज़ूर होंगी तो आपका अपायंटमेंट लेटर आपको थमा दिया जाएगा."
"थॅंक यू,सर.",सोनम बाहर आई & कुमार नाम के शख्स के साथ बैठ अपनी सॅलरी & बाकी बातें समझने लगी.
"आइए मिस.रंभा.",विजयंत खड़ा मुस्कुरा रहा था,अब कॅबिन मे रोशनी भी ज़्यादा थी.उसके लंबे-चौड़े डील-डौल & हॅंडसम चेहरे को देख रंभा के दिल मे 1 कसक उठी.उसका दिल किया कि अपने हाथ से उसकी सुनेहरी दाढ़ी मे हाथ फिरा दे.उसने रंभा को बैठने को इशारा किया तो रंभा डेस्क के सामने की 1 कुर्सी पे बैठ गयी.विजयंत उसके करीब आया & डेस्क पे बैठ गया.1 पल को उसकी निगाहे रंभा की मक्खनी जाँघो पे पड़ी फिर उसने अपनी नज़रे उसकी नज़रो से मिला दी.
"मिस.रंभा,मैं आपको अपनी सेक्रेटरी की जगह नही दे सकता.",मायूस रंभा ने सर झुका लिया,"..लेकिन मैं आपको 1 दूसरी पोस्ट ऑफर कर सकता हू.",रंभा ने हैरत से सर उठाया.
"क्या आप मेरे बेटे की सेक्रेटरी बनाना पसंद करेंगी?"
"सर!",रंभा इस नये ऑफर से चौंक गयी थी.
"जी,देखिए कोई और उमीदवार था जोकि आपसे बेहतर था लेकिन इसका ये मतलब नही कि आप काबिल नही हैं.आप काबिल हैं & इसलिए मैं आपको खोना नही चाहता..",खोना लफ्ज़ पे विजयंत ने ज़ोर दिया था,"..तो क्या आपको ये ऑफर मंज़ूर है?"
"ज़रूर,सर..",रंभा खुशी & रहट से मुस्कुराइ,"..आपके ग्रूप मे काम करने का मौका मैं गँवाने की सोच भी नही सकती."
"तो ठीक है.कंग्रॅजुलेशन्स!",उसने उसकी ओर हाथ बढ़ाया & उसके कोमल,नाज़ुक से हाथ के एहसास से वो फिर पागल हो गया.उसका दिल किया कि उसे खींच बाहो मे भर उसके चेहरे को अपने बेकरार होंठो के निशानो से ढँक दे!
"आप बाहर जाइए,आपको सभी बातें समझा दी जाएँगी.",ना चाहते हुए भी उसने उसका हाथ छ्चोड़ा & उसे विदा किया.रंभा तो हवा मे उड़ रही थी.इतना बड़ा इंसान खुद उसका इंटरव्यू ले & फिर खुद उसे बेटे की सेक्रेटरी बनाने को कहे.ये काम तो वो अपने किसी आदमी से भी करवा सकता था लेकिन उसने खुद उसे बुला के जॉब की ऑफर दी,ये सब उसके बड़प्पन की निशानी थी!
विजयंत के असली मंसूबो से अंजान रंभा खुशी मे चूर बाहर आके अपनी नयी नौकरी के बारे मे जानने-समझने लगी.
जब नयी नौकरी की सारी बातें पक्की कर रंभा ट्रस्ट ग्रूप के ऑफीस से निकली तो उसकी खुशी का ठिकाना नही था.वो बेकरार हो रही थी अपनी खुशी किसी से बाँटने के लिए लेकिन कौन था इस शहर मे जिसके साथ वो अपनी खुशी बाँटती?..& तब उसे विनोद का ख़याल आया जिसकी मदद के बिना ये होना नामुमकिन था.उसने फ़ौरन उसे फोन लगाया.
"हेलो,डार्लिंग!कैसा रहा इंटरव्यू?"
"बढ़िया."
"तो क्या नौकरी मिल गयी तुम्हे?"
"नही & हां."
"क्या पहेलियाँ बुझा रही हो?",रंभा हंस पड़ी.
"आज शाम को मिलो.इस पहेली का हल भी बताउन्गि & ट्रीट भी दूँगी.चलो ना,कही बाहर खाना खाएँगे!"
"आज तो मुश्किल है,जानेमन.बहुत काम है."
"ओह.",रंभा मायूस हो गयी.
"ऐसा क्यू नही करती कि सीधा मेरे घर पहुँचो.वही जश्न मनाते हैं.",रंभा उसके जश्न का मतलब समझ मुस्कुराइ.
"ओके."
"ठीक है,मैं फोन करूँगा & बताउन्गा की कितने बजे तक तुम घर आ जाओ."
"बाइ."
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"हेलो,डार्लिंग.",कामया ने होटेल वाय्लेट मे विजयंत के प्राइवेट सूयीट मे कदम रखा.1 लिफ्ट सीधा सूयीट मे खुलती थी & विजयंत ने उसका 1 कार्ड कामया को दे रखा था.विजयंत केवल 1 ड्रेसिंग गाउन पहने बिस्तर पे अढ़लेटा वाइन पी रहा था.गाउन के गले मे से उसका सुनहरे बालो से भरा सीना & नीचे मज़बूत टांगे नुमाया हो रहे थे.कामया समझ गयी थी की गाउन के नीचे उसका प्रेमी नंगा है & उसने 1 वासना भरी मुस्कान फेंकी.उसने 1 पीले रंग का कसा हुआ स्लीवेलसस टॉप & स्किन टाइट जीन्स पहनी हुई थी.वो विजयंत के करीब आई & उसके सामने बाई बाँह पे अढ़लेटी हो गयी & उसके हाथ से वाइन का ग्लास ले 1 घूँट भरा & फिर उसके होंठ चूम लिए.
अगले ही पल दोनो 1 दूसरे को बाहो मे भरे अपने जिस्मो को आपस मे रगड़ते हुए बड़ी शिद्दत के साथ किस्सिंग कर रहे थे.विजयंत का बाया हाथ कामया की गंद से लेके पीठ को मसल रहा था.कामया ने मस्त हो अपनी दाई टांग उसकी टाँगो के उपर चढ़ा दी.उसके हाथ विजयंत के सर & सीने के बालो मे घूम रहे थे & ज़ुबान विजयंत के मुँह मे.
"तुम्हे मेरा 1 काम करना होगा.",कामया ने विजयंत का गाउन खोल दिया था & उसके सीने को चूमने & उसके निपल्स को चूसने के बाद नीचे जा रही थी.कुच्छ ही लम्हो बाद विजयंत का सख़्त लंड उसके मुँह मे अंदर-बाहर हो रहा था.विजयंत ने हाथ बढ़ा उसकी शर्ट को उपर किया & उसकी गोरी पीठ को सहलाते हुए अपना हाथ नीचे कर उसकी चूचियो को दबाने लगा.
"कैसा काम?",लंड ने हमेशा की तरह कामया को तुरंत मदहोश कर दिया था.वो उठी & 1 ही झटके मे अपना टॉप & ब्रा निकाल दिए & विजयंत को धकेल बिस्तर पे सुला उसके उपर आई & अपनी बाई चूची को पकड़ उसके मुँह मे दे दिया & जैसे ही विजयंत ने उसे चूसने शुरू किया वो च्चटपटाते हुए आहें भरने लगी.
"तुम्हे मुझे सोनिया कोठारी से मिलवाना होगा लेकिन इस तरह की उसे लगे कि ये 1 इत्तेफ़ाक़ है कि हम दोनो 1 ही जगह पे हैं.",उसने कामया को पलटा & फिर उसकी दूधिया चूचियो को चूसने लगा.कामया आहे भरते हुए हाथ नीचे ले जाके उसके लंड से खेलने लगी.
"ओह..विजयंत लेकिन ये कैसे मुमकिन होगा..ऊहह..मेरी पॅंट उतारो..",उसने विजयंत की जीन्स उतारने मे मदद की,"..पहले की बात और थी वो पार्टीस ऑर्गनाइज़ करने का ही काम करती थी तो मुलाकात हो जाती थी लेकिन अब वो कोठारी की बीवी है,मैं किस तरह से उसकी & तुम्हारी मुलाकात कर्वाऊं?!..ओईईईईईईईईईईईईई..!",विजयंत ने उसे नगी कर उसकी चूत मे उंगली करते हुए उसके दाने को चूम लिया था.
"वो सोचना तुम्हारा काम है,डार्लिंग.",विजयंत ने उसकी चूत मे 2 उंगलिया घुसा दी थी,"..मुझे बस सोनिया से मिलना है."
"हूँ.",कामया ने विजयंत का सर पकड़ उसके मुँह को अपनी चूत पे दबा उसे खामोश कर दिया & दोनो जिस्मो का मस्ती भरा खेल खेलने लगे.
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"उउम्म्म्म..विनोद..ऊव्व..!",विनोद के घर मे कदम रखते ही उसने रंभा को दबोच लिया था & उसके चेहरे पे किस्सस की बौछार करते हुए उसकी गंद पे चिकोटी काट ली थी.रंभा ने 1 दिला-ढाला टॉप & लंबी,ढीली स्कर्ट पहनी हुई थी जिसे उठा के विनोद उसकी मोटी गंद को दबाए जा रहा था.
"नयी नौकरी की बधाई कबूल करो जानेमन!",उसने उसे गोद मे उठा लिया & अपने बेडरूम मे ला बिस्तर पे लिटा उसे बाहो मे भर उसके जिस्म के साथ खेलने लगा.
"बड़े बेसब्र हो तुम!....उउम्म्म्मम..!",विनोद ने उसकी स्कर्ट को कमर तक उपर कर दिया था & उसकी जाँघो को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.
"अब बताओ दिन मे क्या पहेली बुझा रही थी.",उसने उसका टॉप उपर किया & उसके चिकने पेट को चूमने लगा.
"उउन्न्ञन्..मुझे ट्रस्ट मे नौकरी मिल गयी मगर वो नही जिसके लिए मैने अर्ज़ी दी थी..आहह..!",विनोद उसकी नाभि चाट रहा था.
"तो फिर कौन सी नौकरी मिली?",रंभा ने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा & बाहो मे भर उसे पलट के उसके उपर सवार हो गयी & उसकी टी-शर्ट को निकाल उसके सीने को चूमने लगी.उसकी गर्म सांसो के साथ जब उसने विनोद के सीने पे पहले बहुत हल्की किस्सस दी & फिर दांतो से धीरे-2 काटा तो विनोद आहे भरने पे मजबूर हो गया.
"मुझे विजयंत मेहरा के बेटे समीर की सेक्रेटरी की नौकरी मिली है.",रंभा विनोद के जिस्म के दोनो ओर घुटने जमा के उसके उपर बैठी थी & उसके हाफ-पॅंट मे से उसका लंड उसकी गंद मे चुभ रहा था.उसने झट से विनोद की पॅंट सर्काई & उसके तने लंड को पकड़ के अपने मुँह के हवाले किया.
"आहह..ये तो कमाल हो गया!",विनोद ने उसके बाल पकड़ उसके सर को अपने लंड पे दबा दिया.
"हूँ..",उसका मुँह विनोद के लंड से भरा हुआ था जिसके नीचे लटके आंडो को वो दबाए जा रही थी.विनोद को लगा की अगर रंभा इसी तरह उसके लंड को चुस्ती रही तो वो फ़ौरन झाड़ जाएगा.उसने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा तो वो उसके उपर आ गयी & उसे चूमने लगी.दोनो पागलो की तरह 1 दूसरे को चूम रहे थे.विनोद के हाथ तो उसकी गंद से जैसे चिपक ही गये थे & उसकी पॅंटी की बगलो से अंदर घुस उसकी कसी फांको को दबोचे हुए थे.
"तुम्हारी बीवी अभी भी मयके मे है?",विनोद ने उसे लिटा दिया था & जल्दी-2 उसके कपड़े उतार रहा था.
"हां.",उसने उसकी पॅंटी निकाली & उसकी टाँगे फैला झुक के अपना मुँह उसकी गीली चूत से लगा दिया.
"कब लौटेगी?...ऊऊओह..!"
"कल.",उसने जवाब दिया & वापस उसकी चूत से बहते रस को पीने लगा.
"यही है वो....आन्न्न्नह.....हाआंन्णणन्..!",उसने दीवार पे लगी विनोद & उसकी बीवी की तस्वीर की ओर इशारा किया & ठीक उसी वक़्त विनोद ने उसके दाने को मुँह मे भर के उसपे जीभ फिराई & वो झाड़ गयी.
"हां.",विनोद उसकी फैली टाँगे थम घुटनो पे बैठा अपना लंड उसकी चूत मे घुसा रहा था.रंभा ने गौर किया कि विनोद अपनी बीवी के बारे मे बात करने से कतरा रहा था.उसने विनोद को अपने उपर गिराया & बाहो मे भर उसे चूमने लगी.उसका लंड चूत मे उसे बहुत भला लग रहा था & जिस्म मे वोही जाना-पहचाना मज़ेदार एहसास अपनी शिद्दत की ओर पहुँच रहा था.विनोद उसे चूमते,उसकी गर्दन को चूमते हुए बहुत ज़ोरदार धक्के लगा रहा था.रंभा ने अपनी बाहें & टाँगे उसके जिस्म के गिर्द लपेट दी थी & अपनी कमर जोश मे उचका रही थी.
"विनोद,तुम मेरे सवालो से परेशान हो गये थे ना?",उसने उसे पलटा & उसके उपर आ गयी.उसकी मस्त चूचियाँ विनोद के सीने पे दबी हुई थी & उसने उसके चेहरे को हाथो मे थामा हुआ था.विनोद ने जवाब नही दिया & अपना मुँह फेर लिया.
"उउम्म्म्म..डार्लिंग..घबराते क्यू हो?",कमर हिलाते हुए रंभा उसके चेहरे को चूम रही थी,"..तुम्हे क्या लगता है कि मैं तुम्हारे पीछे पड़ जाऊंगी?..तुम शादीशुदा हो इस बात का फयडा उठा तुम्हे धमकाऊँगी..हूँ?",विनोद उसकी आँखो मे देखने लगा.
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क्रमशः.......
गतान्क से आगे.
"थॅंक्स.",उसने इंटरकॉम बंद किया & ठीक उसी वक़्त उसके दिमाग़ मे उसकी परेशानी का हाल कौंधा.तजुर्बे & क्वालिफिकेशन्स की बिना पे बस सोनम ही उसकी सेक्रेटरी बन सकती थी.आज तक उसने अपने बिज़्नेस के साथ समझौता नही किया था & आज भी नही करेगा.उसने इंटरकम का बटन दबाया,"मिस.सोनम रौत & मिस.रंभा वेर्मा के अलावा बाकी लड़कियो को जाने को कहो & फिर मिस.रौत को मेरे पास भेजो."
"मिस.रौत,कंग्रॅजुलेशन्स!",विजयंत ने उस से हाथ मिलाया तो सोनम के बदन मे झुरजुरी दौड़ गयी.उसके कॅबिन मे घुसने पे विजयंत ने खड़े होके उसका स्वागत किया था,"आप इस पोस्ट के लिए चुन ली गयी हैं."
"थॅंक्स,सर."
"उमीद है हमारे साथ काम करके आपको अच्छा लगेगा.आप बाहर जाएँगी तो आपको मिस्टर.कुमार मिलेंगे जोकि आपको ऑफर लेटर देंगे अगर उसमे लिखी बातें आपको मंज़ूर होंगी तो आपका अपायंटमेंट लेटर आपको थमा दिया जाएगा."
"थॅंक यू,सर.",सोनम बाहर आई & कुमार नाम के शख्स के साथ बैठ अपनी सॅलरी & बाकी बातें समझने लगी.
"आइए मिस.रंभा.",विजयंत खड़ा मुस्कुरा रहा था,अब कॅबिन मे रोशनी भी ज़्यादा थी.उसके लंबे-चौड़े डील-डौल & हॅंडसम चेहरे को देख रंभा के दिल मे 1 कसक उठी.उसका दिल किया कि अपने हाथ से उसकी सुनेहरी दाढ़ी मे हाथ फिरा दे.उसने रंभा को बैठने को इशारा किया तो रंभा डेस्क के सामने की 1 कुर्सी पे बैठ गयी.विजयंत उसके करीब आया & डेस्क पे बैठ गया.1 पल को उसकी निगाहे रंभा की मक्खनी जाँघो पे पड़ी फिर उसने अपनी नज़रे उसकी नज़रो से मिला दी.
"मिस.रंभा,मैं आपको अपनी सेक्रेटरी की जगह नही दे सकता.",मायूस रंभा ने सर झुका लिया,"..लेकिन मैं आपको 1 दूसरी पोस्ट ऑफर कर सकता हू.",रंभा ने हैरत से सर उठाया.
"क्या आप मेरे बेटे की सेक्रेटरी बनाना पसंद करेंगी?"
"सर!",रंभा इस नये ऑफर से चौंक गयी थी.
"जी,देखिए कोई और उमीदवार था जोकि आपसे बेहतर था लेकिन इसका ये मतलब नही कि आप काबिल नही हैं.आप काबिल हैं & इसलिए मैं आपको खोना नही चाहता..",खोना लफ्ज़ पे विजयंत ने ज़ोर दिया था,"..तो क्या आपको ये ऑफर मंज़ूर है?"
"ज़रूर,सर..",रंभा खुशी & रहट से मुस्कुराइ,"..आपके ग्रूप मे काम करने का मौका मैं गँवाने की सोच भी नही सकती."
"तो ठीक है.कंग्रॅजुलेशन्स!",उसने उसकी ओर हाथ बढ़ाया & उसके कोमल,नाज़ुक से हाथ के एहसास से वो फिर पागल हो गया.उसका दिल किया कि उसे खींच बाहो मे भर उसके चेहरे को अपने बेकरार होंठो के निशानो से ढँक दे!
"आप बाहर जाइए,आपको सभी बातें समझा दी जाएँगी.",ना चाहते हुए भी उसने उसका हाथ छ्चोड़ा & उसे विदा किया.रंभा तो हवा मे उड़ रही थी.इतना बड़ा इंसान खुद उसका इंटरव्यू ले & फिर खुद उसे बेटे की सेक्रेटरी बनाने को कहे.ये काम तो वो अपने किसी आदमी से भी करवा सकता था लेकिन उसने खुद उसे बुला के जॉब की ऑफर दी,ये सब उसके बड़प्पन की निशानी थी!
विजयंत के असली मंसूबो से अंजान रंभा खुशी मे चूर बाहर आके अपनी नयी नौकरी के बारे मे जानने-समझने लगी.
जब नयी नौकरी की सारी बातें पक्की कर रंभा ट्रस्ट ग्रूप के ऑफीस से निकली तो उसकी खुशी का ठिकाना नही था.वो बेकरार हो रही थी अपनी खुशी किसी से बाँटने के लिए लेकिन कौन था इस शहर मे जिसके साथ वो अपनी खुशी बाँटती?..& तब उसे विनोद का ख़याल आया जिसकी मदद के बिना ये होना नामुमकिन था.उसने फ़ौरन उसे फोन लगाया.
"हेलो,डार्लिंग!कैसा रहा इंटरव्यू?"
"बढ़िया."
"तो क्या नौकरी मिल गयी तुम्हे?"
"नही & हां."
"क्या पहेलियाँ बुझा रही हो?",रंभा हंस पड़ी.
"आज शाम को मिलो.इस पहेली का हल भी बताउन्गि & ट्रीट भी दूँगी.चलो ना,कही बाहर खाना खाएँगे!"
"आज तो मुश्किल है,जानेमन.बहुत काम है."
"ओह.",रंभा मायूस हो गयी.
"ऐसा क्यू नही करती कि सीधा मेरे घर पहुँचो.वही जश्न मनाते हैं.",रंभा उसके जश्न का मतलब समझ मुस्कुराइ.
"ओके."
"ठीक है,मैं फोन करूँगा & बताउन्गा की कितने बजे तक तुम घर आ जाओ."
"बाइ."
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"हेलो,डार्लिंग.",कामया ने होटेल वाय्लेट मे विजयंत के प्राइवेट सूयीट मे कदम रखा.1 लिफ्ट सीधा सूयीट मे खुलती थी & विजयंत ने उसका 1 कार्ड कामया को दे रखा था.विजयंत केवल 1 ड्रेसिंग गाउन पहने बिस्तर पे अढ़लेटा वाइन पी रहा था.गाउन के गले मे से उसका सुनहरे बालो से भरा सीना & नीचे मज़बूत टांगे नुमाया हो रहे थे.कामया समझ गयी थी की गाउन के नीचे उसका प्रेमी नंगा है & उसने 1 वासना भरी मुस्कान फेंकी.उसने 1 पीले रंग का कसा हुआ स्लीवेलसस टॉप & स्किन टाइट जीन्स पहनी हुई थी.वो विजयंत के करीब आई & उसके सामने बाई बाँह पे अढ़लेटी हो गयी & उसके हाथ से वाइन का ग्लास ले 1 घूँट भरा & फिर उसके होंठ चूम लिए.
अगले ही पल दोनो 1 दूसरे को बाहो मे भरे अपने जिस्मो को आपस मे रगड़ते हुए बड़ी शिद्दत के साथ किस्सिंग कर रहे थे.विजयंत का बाया हाथ कामया की गंद से लेके पीठ को मसल रहा था.कामया ने मस्त हो अपनी दाई टांग उसकी टाँगो के उपर चढ़ा दी.उसके हाथ विजयंत के सर & सीने के बालो मे घूम रहे थे & ज़ुबान विजयंत के मुँह मे.
"तुम्हे मेरा 1 काम करना होगा.",कामया ने विजयंत का गाउन खोल दिया था & उसके सीने को चूमने & उसके निपल्स को चूसने के बाद नीचे जा रही थी.कुच्छ ही लम्हो बाद विजयंत का सख़्त लंड उसके मुँह मे अंदर-बाहर हो रहा था.विजयंत ने हाथ बढ़ा उसकी शर्ट को उपर किया & उसकी गोरी पीठ को सहलाते हुए अपना हाथ नीचे कर उसकी चूचियो को दबाने लगा.
"कैसा काम?",लंड ने हमेशा की तरह कामया को तुरंत मदहोश कर दिया था.वो उठी & 1 ही झटके मे अपना टॉप & ब्रा निकाल दिए & विजयंत को धकेल बिस्तर पे सुला उसके उपर आई & अपनी बाई चूची को पकड़ उसके मुँह मे दे दिया & जैसे ही विजयंत ने उसे चूसने शुरू किया वो च्चटपटाते हुए आहें भरने लगी.
"तुम्हे मुझे सोनिया कोठारी से मिलवाना होगा लेकिन इस तरह की उसे लगे कि ये 1 इत्तेफ़ाक़ है कि हम दोनो 1 ही जगह पे हैं.",उसने कामया को पलटा & फिर उसकी दूधिया चूचियो को चूसने लगा.कामया आहे भरते हुए हाथ नीचे ले जाके उसके लंड से खेलने लगी.
"ओह..विजयंत लेकिन ये कैसे मुमकिन होगा..ऊहह..मेरी पॅंट उतारो..",उसने विजयंत की जीन्स उतारने मे मदद की,"..पहले की बात और थी वो पार्टीस ऑर्गनाइज़ करने का ही काम करती थी तो मुलाकात हो जाती थी लेकिन अब वो कोठारी की बीवी है,मैं किस तरह से उसकी & तुम्हारी मुलाकात कर्वाऊं?!..ओईईईईईईईईईईईईई..!",विजयंत ने उसे नगी कर उसकी चूत मे उंगली करते हुए उसके दाने को चूम लिया था.
"वो सोचना तुम्हारा काम है,डार्लिंग.",विजयंत ने उसकी चूत मे 2 उंगलिया घुसा दी थी,"..मुझे बस सोनिया से मिलना है."
"हूँ.",कामया ने विजयंत का सर पकड़ उसके मुँह को अपनी चूत पे दबा उसे खामोश कर दिया & दोनो जिस्मो का मस्ती भरा खेल खेलने लगे.
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"उउम्म्म्म..विनोद..ऊव्व..!",विनोद के घर मे कदम रखते ही उसने रंभा को दबोच लिया था & उसके चेहरे पे किस्सस की बौछार करते हुए उसकी गंद पे चिकोटी काट ली थी.रंभा ने 1 दिला-ढाला टॉप & लंबी,ढीली स्कर्ट पहनी हुई थी जिसे उठा के विनोद उसकी मोटी गंद को दबाए जा रहा था.
"नयी नौकरी की बधाई कबूल करो जानेमन!",उसने उसे गोद मे उठा लिया & अपने बेडरूम मे ला बिस्तर पे लिटा उसे बाहो मे भर उसके जिस्म के साथ खेलने लगा.
"बड़े बेसब्र हो तुम!....उउम्म्म्मम..!",विनोद ने उसकी स्कर्ट को कमर तक उपर कर दिया था & उसकी जाँघो को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.
"अब बताओ दिन मे क्या पहेली बुझा रही थी.",उसने उसका टॉप उपर किया & उसके चिकने पेट को चूमने लगा.
"उउन्न्ञन्..मुझे ट्रस्ट मे नौकरी मिल गयी मगर वो नही जिसके लिए मैने अर्ज़ी दी थी..आहह..!",विनोद उसकी नाभि चाट रहा था.
"तो फिर कौन सी नौकरी मिली?",रंभा ने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा & बाहो मे भर उसे पलट के उसके उपर सवार हो गयी & उसकी टी-शर्ट को निकाल उसके सीने को चूमने लगी.उसकी गर्म सांसो के साथ जब उसने विनोद के सीने पे पहले बहुत हल्की किस्सस दी & फिर दांतो से धीरे-2 काटा तो विनोद आहे भरने पे मजबूर हो गया.
"मुझे विजयंत मेहरा के बेटे समीर की सेक्रेटरी की नौकरी मिली है.",रंभा विनोद के जिस्म के दोनो ओर घुटने जमा के उसके उपर बैठी थी & उसके हाफ-पॅंट मे से उसका लंड उसकी गंद मे चुभ रहा था.उसने झट से विनोद की पॅंट सर्काई & उसके तने लंड को पकड़ के अपने मुँह के हवाले किया.
"आहह..ये तो कमाल हो गया!",विनोद ने उसके बाल पकड़ उसके सर को अपने लंड पे दबा दिया.
"हूँ..",उसका मुँह विनोद के लंड से भरा हुआ था जिसके नीचे लटके आंडो को वो दबाए जा रही थी.विनोद को लगा की अगर रंभा इसी तरह उसके लंड को चुस्ती रही तो वो फ़ौरन झाड़ जाएगा.उसने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा तो वो उसके उपर आ गयी & उसे चूमने लगी.दोनो पागलो की तरह 1 दूसरे को चूम रहे थे.विनोद के हाथ तो उसकी गंद से जैसे चिपक ही गये थे & उसकी पॅंटी की बगलो से अंदर घुस उसकी कसी फांको को दबोचे हुए थे.
"तुम्हारी बीवी अभी भी मयके मे है?",विनोद ने उसे लिटा दिया था & जल्दी-2 उसके कपड़े उतार रहा था.
"हां.",उसने उसकी पॅंटी निकाली & उसकी टाँगे फैला झुक के अपना मुँह उसकी गीली चूत से लगा दिया.
"कब लौटेगी?...ऊऊओह..!"
"कल.",उसने जवाब दिया & वापस उसकी चूत से बहते रस को पीने लगा.
"यही है वो....आन्न्न्नह.....हाआंन्णणन्..!",उसने दीवार पे लगी विनोद & उसकी बीवी की तस्वीर की ओर इशारा किया & ठीक उसी वक़्त विनोद ने उसके दाने को मुँह मे भर के उसपे जीभ फिराई & वो झाड़ गयी.
"हां.",विनोद उसकी फैली टाँगे थम घुटनो पे बैठा अपना लंड उसकी चूत मे घुसा रहा था.रंभा ने गौर किया कि विनोद अपनी बीवी के बारे मे बात करने से कतरा रहा था.उसने विनोद को अपने उपर गिराया & बाहो मे भर उसे चूमने लगी.उसका लंड चूत मे उसे बहुत भला लग रहा था & जिस्म मे वोही जाना-पहचाना मज़ेदार एहसास अपनी शिद्दत की ओर पहुँच रहा था.विनोद उसे चूमते,उसकी गर्दन को चूमते हुए बहुत ज़ोरदार धक्के लगा रहा था.रंभा ने अपनी बाहें & टाँगे उसके जिस्म के गिर्द लपेट दी थी & अपनी कमर जोश मे उचका रही थी.
"विनोद,तुम मेरे सवालो से परेशान हो गये थे ना?",उसने उसे पलटा & उसके उपर आ गयी.उसकी मस्त चूचियाँ विनोद के सीने पे दबी हुई थी & उसने उसके चेहरे को हाथो मे थामा हुआ था.विनोद ने जवाब नही दिया & अपना मुँह फेर लिया.
"उउम्म्म्म..डार्लिंग..घबराते क्यू हो?",कमर हिलाते हुए रंभा उसके चेहरे को चूम रही थी,"..तुम्हे क्या लगता है कि मैं तुम्हारे पीछे पड़ जाऊंगी?..तुम शादीशुदा हो इस बात का फयडा उठा तुम्हे धमकाऊँगी..हूँ?",विनोद उसकी आँखो मे देखने लगा.
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क्रमशः.......