hotaks444
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उसने अपनी मैक्सी को पीठ की तरफ से पूरा ऊपर कर लिया मैंने अपना हाथ उसकी पीठ पर टच किया कसम से बहुत जबदस्त फीलिंग आई इतनी मुलायम खाल थी उसकी मेरे छुते ही उसके बदन में सनसनाहट हुई , उसकी झुरझुरी को महसूस किया मैंने ,अपने हाथ को पीठ पर फिराते हुए थोडा सा ऊपर को किया मैंने तो उसकी ब्रा की स्ट्रेप से टकरा गया वो मैंने तुरंत हाथ हटाया वहा से और पूछा- कहा पर
वो- नीचे की तरफ मैं हाथ को लाया यहाँ
वो- नहीं और नीचे
मैं- यहाँ
वो- थोडा सा और नीचे
अब मेरा हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से पर था मैंने कहा यहाँ
वो- थोडा सा और नीचे और इसी के साथ मेरा हाथ उसकी पेंटी के इलास्टिक से जा टकराया यहाँ से उसके कुलहो का हिस्सा शुरू होता था ,वो थोडा सा शरमाते हुए- बोली बस यही पर ही बहुत दर्द है
मैं- ठीक है, पर रती ये जो जगह हैं ना , देखो मेरा मतलब है की ........
वो- हां मैं समझ गयी तुम टेंशन ना लो
मैं- ठीक हैं
मैंने दवाई लगाना शुरू किया यहाँ पर थोड़ी मालिश करनी थी मैंने उसकी कच्छी को थोडा सा अपने स्थान से सरकाया उसके चुतद मेरे हाथो से टच होने लगे, हम दोनों में अब कोई बात नहीं हो रही थी बस चुपचाप मैं अपने हाथो को वहा पर फिर रहा था उसके बदन में गर्मी बढती सी लग रही थी मुझे , उसकी सांसो की सरगर्मिया चुहलबाजी सी करती लगी मुझे
मैं- क्या हुआ
वो- कुछ कुछ नहीं
मैं- खामोश क्यों हो
वो- पता नहीं
मैं- कुछ तो बात हैं
वो- कुछ नहीं
तभी मेरी चिकनी उंगलिया उसकी गांड की दरार की तरफ फिसली वो चिहुंकी उसका एक साइड का कुल्हा मेरे हाथ में था अबकी बार जान कर मैंने उसपर अपना हाथ फेर दिया रती के बदन में कंपकंपी छुट गयी पर तुरंत ही मैंने वहा से अपना हाथ हटा लिया वो बहुत लरजने से लगी थी मैं धीरे धीरे उसकी मालिश कर रहा था ये बात और भी की बीच बीच में मुझसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी हो जाया करती थी करीब १५-२० मिनट तक ऐसा ही चलता रहा उसका तो पता नहीं पर मेरा हाल बहुत बुरा हो गया था मेरा लंड फटने को तैयार था
मैंने- कहा हो गया ,
उसने शुक्रिया अदा किया .
टाइम भी ज्यादा हो गया था तो अब बस सोना ही था रती अपने बिस्तर पर थी मैं पास में एक गुदड़ी पर लेट गया अब घर जैसा कहा मिले पर अजनबी सहर में इतना आसरा भी किसी फाइव स्टार से कम नहीं था नींद भी जल्दी ही आ गयी पता नहीं रात के कितने बजे थे कमरे में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था बस पंखे के चलने की ही आवाज आ रही थी मेरी आँख खुली तो मैंने अपने शारीर पर कुछ महसूस किया तो पता चला की मेरी छाती पर रती का हाथ है
वो सरक कर मेरी और खिसक गयी थी मेरे गालो पर उसकी साँसे पड़ रही थी , ये बात मेरे ध्यान में आते ही मेरा लंड हरकत में आ गया चूत मेरे इतने पास थी , पर मुझे ख्याल आया की कही ये मुझे परख तो नहीं रही पर जल्दी ही पता चल गया की वो बस एक ख्याल था वो तो मस्त थी अपनी नींद की दुनिया में हम जागती आँखों से परेशां
अब मीच ली आँखे और करने लगे प्रयास सोने का देर सवेर नींद आ ही गयी
अगला दिन काफ़ी अरमान लिए आया कल का पूरा दिन बेफआलतू में ही कट गया था सुबह उठा तो रति मुझ को दिखी नहीं थोडा फ्रेश वगैरा होकर आया तब भी वो नहीं थी ये कहा गयी थोडा इंतज़ार किया पर वो ना आई करीब आधा घंटा हो गया तब वो आई,
कहा गए थे
वो- बस जरा पास की दुकान तक गयी थी
मैं- मै चला जाता पैर में लगी पड़ी है फिर भी , ये लापरवाही ठीक नहीं हैं
वो- पर जाना भी जरुरी था
मैं- आप जानो मैं ये कह रहा था की मैं चलता हूँ शाम को आऊंगा कुछ काम हो तो बताओ
वो- काम कुछ भी नहीं
मैं- तो मैं जाता हूँ
वो- एक मिनट रुको , वो तुम्हारे पैसे तो लेते जाओ तुम्हे जरुरत पड़ेगी उसने अपनी अलमारी खोली और मुझे मेरे पैसे दिए मैंने मन ही मन शुक्रिया कहा उसको और ये पंछी निकल पड़ा आजाद आसमान में उड़ने को , अब समय था रंगीले राजस्थान के रंगों में रंग जाने का , ऑटो पकड़ा उसको पता बताया और सफ़र शुरू हो गया टाइम तो अभी कुछ ना हुआ था पर धुप काफी हो गयी थी ऑटो में बैठे मैं सहर को देख रहा था हवा मेरे बालो से टकरा रही थी
औटोवाला भी साला लीचड़ ही था , बहुत देर लगादी उसने पर शुकर था की पंहूँचा ही दिया ,राजे महाराजो के किस्से कहानिया तो बहुत सुने थे हमने आज उनको अनुभव करने का समय था अपने बैग को सँभालते हुए मैं उतरा और वही पास में खड़े होकर नीनू का इंतज़ार करने लगा मेरे चारो तरफ चहल पहल मची पड़ी थी कुछ देसी- कुछ विदेशी लोग वो छोटा सा बाजार तरह तरह के सामान जैसे की कोई मेला लगा हो ,
थोड़ी देर बाद मेहरबान भी आ गयी, क्या गजब लग रही थी वो आज एक दम फैशन में आँखों पर चश्मा लगाये खुले बाल हमारा तो दिल ही धडक गया मैं तेजी से बढ़ा उसकी और , वो मुझे देख कर मुस्कुराई
कैसी हो पूछा मैंने
वो- मस्त तुम बताओ
मैं- मैं भी ठीक बस तुम्हारी यद् आई
वो- आ तो गयी हूँ
बाते करते करते हम लोगो ने पास लिए और चल दिए सच कहू कुछ तो बात थी राजस्थान में किले का नजारा बड़ा मस्त था ऐसे लग रहा था की जैसे ये ही अपने आप में एक शहर हो क्या ठाठ बात आज तो ये फिर भी समय की मार झेल रहा है पर अपने दिनों में जब ये जवान होगा खूब होगा मैंने नीनू का हाथ पकड़ा और हम एक साइड में बैठ गए
वो- क्या हुआ
मैं- थोडा सा थक गया हूँ
वो- अभी से , अभी तो कुछ भी नहीं देखा
मैं- हां यार सुबह से कुछ खाया पिया भी नहीं थोड़ी प्यास भी लग आई है
वो- लो पानी पियो और चलो फिर ऊपर से पुरे सहर को देखोगे तो भूख प्यास सब मिट जाएगी
वो- नीचे की तरफ मैं हाथ को लाया यहाँ
वो- नहीं और नीचे
मैं- यहाँ
वो- थोडा सा और नीचे
अब मेरा हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से पर था मैंने कहा यहाँ
वो- थोडा सा और नीचे और इसी के साथ मेरा हाथ उसकी पेंटी के इलास्टिक से जा टकराया यहाँ से उसके कुलहो का हिस्सा शुरू होता था ,वो थोडा सा शरमाते हुए- बोली बस यही पर ही बहुत दर्द है
मैं- ठीक है, पर रती ये जो जगह हैं ना , देखो मेरा मतलब है की ........
वो- हां मैं समझ गयी तुम टेंशन ना लो
मैं- ठीक हैं
मैंने दवाई लगाना शुरू किया यहाँ पर थोड़ी मालिश करनी थी मैंने उसकी कच्छी को थोडा सा अपने स्थान से सरकाया उसके चुतद मेरे हाथो से टच होने लगे, हम दोनों में अब कोई बात नहीं हो रही थी बस चुपचाप मैं अपने हाथो को वहा पर फिर रहा था उसके बदन में गर्मी बढती सी लग रही थी मुझे , उसकी सांसो की सरगर्मिया चुहलबाजी सी करती लगी मुझे
मैं- क्या हुआ
वो- कुछ कुछ नहीं
मैं- खामोश क्यों हो
वो- पता नहीं
मैं- कुछ तो बात हैं
वो- कुछ नहीं
तभी मेरी चिकनी उंगलिया उसकी गांड की दरार की तरफ फिसली वो चिहुंकी उसका एक साइड का कुल्हा मेरे हाथ में था अबकी बार जान कर मैंने उसपर अपना हाथ फेर दिया रती के बदन में कंपकंपी छुट गयी पर तुरंत ही मैंने वहा से अपना हाथ हटा लिया वो बहुत लरजने से लगी थी मैं धीरे धीरे उसकी मालिश कर रहा था ये बात और भी की बीच बीच में मुझसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी हो जाया करती थी करीब १५-२० मिनट तक ऐसा ही चलता रहा उसका तो पता नहीं पर मेरा हाल बहुत बुरा हो गया था मेरा लंड फटने को तैयार था
मैंने- कहा हो गया ,
उसने शुक्रिया अदा किया .
टाइम भी ज्यादा हो गया था तो अब बस सोना ही था रती अपने बिस्तर पर थी मैं पास में एक गुदड़ी पर लेट गया अब घर जैसा कहा मिले पर अजनबी सहर में इतना आसरा भी किसी फाइव स्टार से कम नहीं था नींद भी जल्दी ही आ गयी पता नहीं रात के कितने बजे थे कमरे में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था बस पंखे के चलने की ही आवाज आ रही थी मेरी आँख खुली तो मैंने अपने शारीर पर कुछ महसूस किया तो पता चला की मेरी छाती पर रती का हाथ है
वो सरक कर मेरी और खिसक गयी थी मेरे गालो पर उसकी साँसे पड़ रही थी , ये बात मेरे ध्यान में आते ही मेरा लंड हरकत में आ गया चूत मेरे इतने पास थी , पर मुझे ख्याल आया की कही ये मुझे परख तो नहीं रही पर जल्दी ही पता चल गया की वो बस एक ख्याल था वो तो मस्त थी अपनी नींद की दुनिया में हम जागती आँखों से परेशां
अब मीच ली आँखे और करने लगे प्रयास सोने का देर सवेर नींद आ ही गयी
अगला दिन काफ़ी अरमान लिए आया कल का पूरा दिन बेफआलतू में ही कट गया था सुबह उठा तो रति मुझ को दिखी नहीं थोडा फ्रेश वगैरा होकर आया तब भी वो नहीं थी ये कहा गयी थोडा इंतज़ार किया पर वो ना आई करीब आधा घंटा हो गया तब वो आई,
कहा गए थे
वो- बस जरा पास की दुकान तक गयी थी
मैं- मै चला जाता पैर में लगी पड़ी है फिर भी , ये लापरवाही ठीक नहीं हैं
वो- पर जाना भी जरुरी था
मैं- आप जानो मैं ये कह रहा था की मैं चलता हूँ शाम को आऊंगा कुछ काम हो तो बताओ
वो- काम कुछ भी नहीं
मैं- तो मैं जाता हूँ
वो- एक मिनट रुको , वो तुम्हारे पैसे तो लेते जाओ तुम्हे जरुरत पड़ेगी उसने अपनी अलमारी खोली और मुझे मेरे पैसे दिए मैंने मन ही मन शुक्रिया कहा उसको और ये पंछी निकल पड़ा आजाद आसमान में उड़ने को , अब समय था रंगीले राजस्थान के रंगों में रंग जाने का , ऑटो पकड़ा उसको पता बताया और सफ़र शुरू हो गया टाइम तो अभी कुछ ना हुआ था पर धुप काफी हो गयी थी ऑटो में बैठे मैं सहर को देख रहा था हवा मेरे बालो से टकरा रही थी
औटोवाला भी साला लीचड़ ही था , बहुत देर लगादी उसने पर शुकर था की पंहूँचा ही दिया ,राजे महाराजो के किस्से कहानिया तो बहुत सुने थे हमने आज उनको अनुभव करने का समय था अपने बैग को सँभालते हुए मैं उतरा और वही पास में खड़े होकर नीनू का इंतज़ार करने लगा मेरे चारो तरफ चहल पहल मची पड़ी थी कुछ देसी- कुछ विदेशी लोग वो छोटा सा बाजार तरह तरह के सामान जैसे की कोई मेला लगा हो ,
थोड़ी देर बाद मेहरबान भी आ गयी, क्या गजब लग रही थी वो आज एक दम फैशन में आँखों पर चश्मा लगाये खुले बाल हमारा तो दिल ही धडक गया मैं तेजी से बढ़ा उसकी और , वो मुझे देख कर मुस्कुराई
कैसी हो पूछा मैंने
वो- मस्त तुम बताओ
मैं- मैं भी ठीक बस तुम्हारी यद् आई
वो- आ तो गयी हूँ
बाते करते करते हम लोगो ने पास लिए और चल दिए सच कहू कुछ तो बात थी राजस्थान में किले का नजारा बड़ा मस्त था ऐसे लग रहा था की जैसे ये ही अपने आप में एक शहर हो क्या ठाठ बात आज तो ये फिर भी समय की मार झेल रहा है पर अपने दिनों में जब ये जवान होगा खूब होगा मैंने नीनू का हाथ पकड़ा और हम एक साइड में बैठ गए
वो- क्या हुआ
मैं- थोडा सा थक गया हूँ
वो- अभी से , अभी तो कुछ भी नहीं देखा
मैं- हां यार सुबह से कुछ खाया पिया भी नहीं थोड़ी प्यास भी लग आई है
वो- लो पानी पियो और चलो फिर ऊपर से पुरे सहर को देखोगे तो भूख प्यास सब मिट जाएगी