RajSharma Stories आई लव यू - Page 5 - SexBaba
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RajSharma Stories आई लव यू

“राज, आपने हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया...हमने पूछा, क्या आप हमें सिर्फ दोस्त की नज़र से देख पाएंगे, बस यह बता दीजिये।" उन्होंने पूछा था।

मेरे लिए बहुत मुश्किल था उनका दोस्त बनना। वो जब भी सामने आती थीं, तो मेरी आँखें अपने प्यार को बयां किए बिना मानती ही नहीं थीं। होंठ तो खुद-ब-खुद कह देते थे उनसे, कि बहुत प्यार है आपसे। ऐसे में शीतल के इस सवाल न मुझे उलझा दिया था। लेकिन क्या करता में...मना करता, तो उन्हें हमेशा के लिए खो देता।

बस,हाँ कह दिया था। "हाँ शीतल, हम बस दोस्त बनकर रहेंगे।" ।

सफर खत्म होने को था। बातों-बातों में कब ऋषिकेश से दिल्ली आ गया, पता ही नहीं चला। हमारी बॉल्बो, गाजियाबाद पार कर चुकी थी। सुबह के दस बज चुके थे। जितनी खुशी मुझे तीन दिन बाद शीतल के पास आने की थी, उतनी ही खुशी इस बात की भी थी, कि डॉली जैसी एक अच्छी दोस्त मुझे मिल गई थी। पाँच घंटे के सफर में उसने पूरे धैर्य से मेरी बात सुनी। वो मेरी बातों से बोर नहीं हुई थी, उसने मेरी बातों में पूरी रुचि दिखाई थी। शीतल के बारे में जानने पर कभी उसके आँसू भी निकले,तो कभी वो खूब हंसी भी।

"डॉली; तो अभी कहानी बस यहीं तक है। शीतल ऑफिस में मिलने वाली हैं आज, मैं बहुत खुश हूँ: तीसरे दिन उनसे मिल रहा हूँ।"- मैंने कहा।

“मच राज, शीतल बहुत खुशनसीब हैं, कि आपके जैसा प्यार करने वाला शब्म उन्हें मिला है। ये जानते हुए, कि आप दोनों एक-दूसरे के नहीं हो सकते हैं, आप उन्हें दिलोजान से प्यार करते हैं...।"डॉली ने कहा।

"नहीं डॉली, खुशनसीब तो मैं हूँ कि शीतल जैसी लड़की मुझे मिली है...बो मेरी जिंदगी में जिस भी रूप में हैं मेरे लिए बही काफी है।'- मैंने कहा।

"राज, मैं मिलना चाहती हूँ शीतल से।"- उसने कहा।

"अरे पक्का... में बताऊंगा तुम्हारे बारे में उन्हें और मिलवाऊंगा भी... उन्हें बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिलकर।"- मैंने कहा।

"पक्का मैं मिलूंगी।"- उसने कहा।

"और डॉली, मैं बहुत खुश हूँ कि ऋषिकेश के इस सफर में मुझे तुम्हारे जैसी एक प्यारी-सी दोस्त मिल गई है।"- मैंने कहा।

"राज, तुम्हारे जैसा दोस्त पाकर मैं भी बहुत खुश हूँ; तुम सच में बहुत साफ दिल के इंसान हो, वरना कोई एक लड़की को अपनी प्रेम कहानी नहीं बताता है। गर्लफ्रेंड और परेमिका होने के बाद भी मारे लड़के बस चांस मारना चाहते हैं दूसरी लड़कियों पर... पर तुमने मुझे अपने बारे में सब बताया, येही तुम्हारी अच्छी बात है।"- डॉली ने कहा।

"अरे बस करो यार...इतनी तारीफ मत करो अभी बैसे तुम भी बहुत अच्छी हो...आई एम हैप्पीटू हैब यू एज ए फ्रेंड।"- मैंने कहा।।

"तो डॉली, तुम ऑफिस जाओगी आज?"- मैंने पूछा।

"नहीं नहीं, मैं कल ऑफिस जाऊँगी।'- उसने जवाब दिया।

"ओके, तो अभी सीधा घर?"- मैंने पूछा।

"हाँ, घर।" उसने जवाब दिया।

"तो फिर मैं कैब बुक कर लेता हूँ; आपको मयूर विहार ड्रॉप करते हुए ऑफिस चला जाऊँगा।"- मैंने कहा।

"आपका ऑफिस तो नोएडा सेक्टर-18 में है न... आपको प्रॉब्लम तो नहीं होगी न?" डॉली ने कहा।

"नहीं नहीं, मुझे क्या प्रॉब्लम होगी।”- मैंने कहा। बस, आनंद बिहार पहुंच चुकी थी। मैंने फोन से एक कैब बुक कर ली थी। सफर खत्म हो चुका था। सुकून भरे ऋषिकेश से हम भागती-दौड़ती दिल्ली में उतर चुके थे। पाँच मिनट में कैब भी आ गई थी। शीतल का भी फोन आ चुका था। वो ऑफिस पहुँच चुकी थीं।

"चलो डॉली, कैब आ गई है।"- मैंने कहा।

'ओके।'

“भैय्या, मयूर विहार होते हुए सेक्टर-18 नोएडा चलना है।"- मैंने कैब में बैठते हुए कहा।

"जी सर।"- कैब ड्राइवर ने कहा।

"तो राज, कब मिलेंगे हम दोबारा?"- डॉली ने पूछा।
 
"हम दोनों के पास एक-दूसरे के नंबर हैं; जब भी मन करेगा मिल सकते हैं...वैसे भी मैं तो मयूर विहार में ही रहता है, तो मिलते रहेंगे।"- मैंने कहा।

“या कूल...तो फिर हम जल्दी मिलते हैं।"- डॉली ने कहा।

"हाँ जरूर...और क्या करोगे घर पर आज?"- मैंने पूछा।

"बस खूब सोना है आज।"- उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"बहुत बढ़िया...मौज है आपकी।"- मैंने कहा। कैब मयूर विहार के बाहर पहुंच चुकी थी।

“राज, आगे वाला कट मेरे घर के लिए जाता है।"- डॉली ने एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“अच्छा; भैय्या गाड़ी अंदरले लेना।"- मने ड्राइवर से कहा।

“राज तुम मुझे कॉर्नर पर ही ड्रॉप कर दो, ऑफिस के लिए देर होगी तुम्हें।" डॉली ने कहा। ___

“अरे कोई बात नहीं, छोड़ देते हैं...वैसे अगल्ने कट के अंदर मैं रहता हूँ, पार्क के सामने।"- मैंने कहा। _

“अच्छा ...इस कट से घूमकर भी उसी पार्क के सामने पहुंचते हैं; तब तो तुम्हारा और मेरा घर पास ही है।'- डॉली ने कहा।

ड्राइवर ने गाड़ी मयूर विहार फेज-1 की तरफ घुमा दी। डॉली अपना सामान समेटने लगी थी।

"ओके राज..ये मेरी अब तक की सबसे यादगार दिप थी; तुम्हारे साथ बिताया हर पल बहुत खास है मेरे लिए फिर मिलेंगे और मिलते रहेंगे।"- डॉली ने कहा। ___

“मैंने भी तुम्हारे साथ खूब एनज्वॉय किया; सच में एक अच्छा दोस्त मुझे मिला है...जल्दी मिलेंगे।"- मैंने कहा।

कैब डॉली के घर के बाहर रुक चुकी थी।

"राज यहीं रहती हूँ मैं; आओगे नहीं अंदर।" डॉली ने उतरते हुए कहा।

"डॉली अभी नहीं...फिर कभी जरूर आऊँगा; अभी ऑफिस में शीतल बेसब्री से इंतजार कर रही हैं।"- मैंने कहा।

"आऊँगा क्या...आना पड़ेगा; अब दोस्त हैं हम दोनों।"- डॉली ने कहा।

"ओके...चलो फिर बॉय...टेक केयर।"- मैंने कहा।

"ओके.यू टेक केयर।"- डॉली ने हाथ हिलाते हुए कहा।।

कैब ऑफिस के रास्ते पर बढ़ चुकी थी। डॉली तब तक कैब को देखकर हाथ हिलाती रही, जब तक कार मुड़ नहीं गई। इधर डॉली मुझे जाते हुए देख रही थी, तो उधर शीतल ऑफिस में बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थीं। आनंद विहार से लेकर अब तक के रास्ते में शीतल छह बार फोन कर चुकी थीं। हर बार बस एक ही सवाल होता था, "कहाँ तक पहुँचे?...कब आओगे?"

इस सवाल के जवाब में मैं ड्राइवर से बस इतना ही कहता, "भैय्या थोड़ा तेज चलाइए।"

अभी ग्यारह ही बजे थे। मौसम अचानक से खराब हो गया था। आसमान में घने बादल छा गए थे और तेज हवाएं चलने लगी थीं। कैब ऑफिस के बाहर रुक चुकी थी। ड्राइवर को पेमेंट करके में ऑफिस में दाखिल हो ही रहा था कि शीतल का फिर फोन आ गया।
 
“हेलो राज...कहाँ हो यार; जान निकली जा रही है मेरी....मौसम भी खराब हो गया है, जल्दी आओ न यार।"

"आ गया है मेरी जान....ऑफिस के गेट पर ही हूँ।”- मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया।

“बैंक गॉड, अब जान में जान आई।" उन्होंने कहा।

“मैं आता है मिलने थोड़ी देर में।"- मैंने कहा।

"थोड़ी देर में नहीं राज; अपने डिपार्टमेंट में बैग रखकर सीधे मेरे पास आओ, साथ में कॉफी पिएँगे।" उन्होंने कहा।

"ओके बाबा, आताहूँ।"- मैंने इतना कहकर फोन रख दिया। जितना पागल मैं था शीतल से मिलने के लिए, इतना ही पागल वो थीं मुझे देखने के लिए। डिपार्टमेंट अभी खाली था। सारे लोग बारह बजे तक आते थे। अपनी सीट पर बैग रखकर में सीधे उनके पास पहुंचा, तो हल्की-हल्की बूंदा-बांदी होने लगी थी। गर्मी के मौसम में थोड़ी राहत थी आज।

"शीतल, मैं आपके डिपार्टमेंट के बाहर है।"- मैंने फोन पर कहा।

"अरे अंदर आओ न... अभी कोई नहीं आया है।"- उन्होंने कहा। शीतल की हाइट पाँच फीट पाँच इंच थी। यही वजह थी कि उन पर हर कपड़ा फबता था। वो अपने बाल खोलकर साड़ी पहनती थीं, तो किसी परी से कम नहीं लगती थीं। सूट उन पर बहुत खिलता था और जींस-टॉप में तो वो किसी कॉलेज गर्ल से कम नहीं लगती थीं। उनके डिपार्टमेंट का दरवाजा खोलकर अंदर पहुंचा, तो सबसे कोने में अपनी डेस्क पर शीतल बैठी थीं। काले रंग का प्रिंटेड कुर्ता और औरंज लैगिंग में वो बेहद खूबसूरत लग रही थीं। ऊपर से ऑरेंज और गोल्डन कलर का जयपुरी दुपट्टा उनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहा था। जैसे ही मेरे पैर दो कदम बढ़े, शीतल ने दौड़कर मुझे अपने गले से लगा लिया। शीतल ने मुझे कस कर पकड़ लिया था। उनके होंठ बार-बार मेरा नामले रहे थे और उनकी कजरारी आँखों से आँसू टपकने लगे थे।

“अरे शीतल! तुम रो रहे हो।"- मैंने पूछा। __
“राज, फिर कभी हमें छोड़कर मत जाना..हम नहीं रह पाते हैं तुम्हारे बिना।" उन्होंने रोते हुए ही जवाब दिया। __

“इधर देखो.. मेरी आँखों में देखो।" ये कहकर मैंने अपने हाथों से शीतल के कंधों को पकड़कर खुद के सामने खड़ा किया। शीतल की आँखों में आँसू भरे हुए थे। उनकी पलकों पर डार्क काजल लगा हुआ था और उन पर उनके आँसू ठहर गए थे। शीतल के बहते हुए आँसुओं को अपने हाथों से पोंछा और उनके माथे पर अपने होंठों से स्पर्श किया। जैसे ही मेरे होंठों ने शीतल के माथे पर प्यार भरा चुंबन दिया, उनकी आँखें बंद हो गई। __

“शीतल, रोना बंद करो; बच्चे की तरह रो रहे हो तुम तो। ये आँसू यूँ ही निकलते रहेंगे तो मैं कभी तुमसे दूर नहीं जाऊँगा। तुम्हारे आँसू ज्यादा कीमती हैं मेरे लिए शीतल। अगर मेरा दर जाना तुमको इतना रुलाता है, तो कभी नहीं...कभी नहीं जाऊंगा में दर तुमसे, तुम्हारी कसम...।"- मैंने कहा।

इतना कहते ही शीतल ने एक बार फिर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। शीतल के चेहरे पर अब हल्की-सी मुस्कराहट थी। बाहर जोरदार बारिश होने लगी थी। गिरती बूंदों की आवाज, शीतल के डिपार्टमेंट के भीतर भी महसूस हो रही थी। मौसम अचानक से इतना ठंडा हो गया था कि ए.सी. में ठंड महसूस हो रही थी। लेकिन शीतल को बाँहों में भरते ही दोनों के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था। शीतल ने एक नजर उठाकर मेरे चेहरे की तरफ देखा, तो मैं होशोहवास खो बैठा। मैंने शीतल की कमर की तरफ अपना एक हाथ ले जाकर उन्हें अपनी तरफ खींच लिया। अब शीतल और मेरे बीच तनिक भी जगह नहीं थी। हम दोनों के बदन एक-दूसरे से चिपके हुए थे। शीतल और मैं एक-दूसरे की आँखों में खोते जा रहे थे। एक-दूसरे की आँखों में डूबते हुए ऐसा लग रहा था, मानो हम प्यार के समंदर में तैर रहे हों और इस प्यार के समंदर में तैरते हुए कब हम दोनों के होंठ एक-दूसरे से टकरा गए पता ही नहीं चला। उधर, बारिश की आवाज और तेज हो गई थी। इधर, हम दोनों की साँमें तेज हो गई थीं। शीतल और मैं एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूम रहे थे। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था। बाहर का तापमान आज कम था, लेकिन डिपार्टमेंट का तापमान बढ़ चुका था। शीतल ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया था। अब वो मेरे पूरे चेहरे को चूमती जा रही थीं।
 
शीतल की इस शरारत ने मुझे पागल कर दिया था। मैं भूल गया था कि हम ऑफिस में हैं। मैं शीतल के होंठों को चूम रहा था, मैं उनकी आँखों को चूम रहा था, मैं उनकी गर्दन को चूम रहा था। कभी मैं उनके बालों को चूम रहा था। मेरे हाथ शीतल के बालों से होते हुए उनकी पीठ तक पहुंच चुके थे। शीतल का पूरा शरीर काँपने लगा था। एक झटके से शीतल मुझसे अलग हुई, तो मैं हैरान हो गया। शीतल इस कदर काँप रही थीं कि वो खड़ी भी नहीं हो पा रही थीं। बो सँभलती इससे पहले मैंने फिर उन्हें अपनी बाँहों में जकड़ लिया और फिर उनके होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया। बाहर बादलों की वजह से अँधेरा हो चुका था। यही वजह थी कि डिपार्टमेंट के भीतर की दूधिया रोशनी ज्यादा निखर रही थी। प्यार में मुलगते दो शख्मों के बदन पहली बार आज मिले थे और इन अद्भुत रोमांचक पलों का गवाह बनी थी बारिश। आसमानी, बिजली की गड़गड़ाहट शीतल को डरा देती थी। शीतल के होंठ अभी भी मेरी गिरफ्त में थे। हम दोनों एक-दूसरे को भरपूर आनंद के साथ चखते जा रहे थे। शीतल शायद थक चुकी थीं।

“राज बस करिए।" उन्होंने घुटती हुई आवाज में कहा। शीतल के इतना कहने पर मैंने उनके होंठों को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया। हम दोनों अभी भी एक-दूसरे की आँखों में देखते जा रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी थी, लेकिन शीतल अब खड़ी नहीं हो पा रही थीं और बो सोफे पर बैठ गई थीं। उनकी धड़कनें अभी भी किसी दरेन की पटरियों की तरह धड़क रही थीं।

मैंने दो कॉफी ऑर्डर कर दी थीं। अब हम दोनों थोड़ा नार्मल हो रहे थे, पर दिमाग अभी भी काम नहीं कर रहा था। दो ही मिनट में पैंट्री ब्वाय शीतल की टेबल पर कॉफी रखकर चला गया। मैं शीतल की तरफ देखकर कॉफी का सिप ले रहा था और शीतल अपने हाथों से पकड़े हुए काफी मग में ही आँखें गड़ाए बैठी थीं। शीतल इतना शरमा रही थीं कि बो मेरी तरफ आँख उठाकर देख भी नहीं पा रही थीं। डिपार्टमेंट में सन्नाटा पसरा हुआ था। मैं जानता था, शीतल बात करने की हालत में नहीं हैं। ऐसी हालत अक्सर उनकी स्कूटी पर भी हो जाती थी, लेकिन में तब भी चुप ही रहता था।

बाहर बारिश थम चुकी थी। ऑफिस में लोग आने लगे थे। शीतल के डिपार्टमेंट के बाकी लोग भी अब आने लगे थे। कॉफी खत्म कर मैं शीतल की तरफ देखते हुए चुपचाप डिपार्टमेंट से बाहर निकल गया।

शाम के सात बजे थे अभी। तेज हवा चल रही थी और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। मानसून से पहले की यह बारिश दिल्ली वालों को गर्मी से राहत दे रही थी। सुबह से इतनी बारिश हुई थी कि ऑफिस के आस-पास पानी भर गया था। छोटे-छोटे बच्चे बारिश के पानी में उछलकूद कर रहे थे। मैं और शीतल, ऑफिस की छत पर टहल रहे थे। चाय का कप हाथ में लेकर हम दोनों के कदम तो साथ-साथ बढ़ रहे थे, लेकिन दोनों के बीच सिर्फ सन्नाटा पसरा हुआ था। न जाने कितनी ही शामें मैंने और शीतल ने यूँ ही छत पर घूमते गुजारी थीं। शीतल, साथ टहलते-टहलते अचानक से सामने आकर कुछ बताने लगती थीं। बेफिक्र होकर उनका मुस्कराना और अपने हाथों से किसी भी भाव को समझाना मैं आज मिस कर रहा था।

“आज आप ज्यादा करीब नहीं आ गए थे हमारे?"- शीतल ने यह कहकर अपनी चुप्पी तोड़ी थी।

मेरे पास शीतल के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। नजर उठाकर देखा, तो शीतल मुस्कराकर मेरे चेहरे की तरफ देख रही थीं।

"क्या कहा आपने?"- मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा। "हमने...हमने कब कुछ कहा...कुछ भी तो नहीं।" उन्होंने जवाब दिया।

नेहा अक्सर ऐसा करती थीं। वो कुछ बोल देती थीं और फिर छोटे बच्चे की तरह कहती थीं, हमने कहाँ कुछ कहा। शीतल की इस बचकानी और बेहद प्यारी-सी हरकत के जवाब में मैं मुस्करा भर दिया।

“बताइए..आज आप ज्यादा पास नहीं आ गए थे हमारे!"- उन्होंने धीमी आवाज में फिर पूछा।

मैं एक बार फिर मुस्करा दिया था। "अगर हमारी जान अटक जाती तो? जानते हैं, हमारी जान हमारे आँखों में आ गई थी...आप हमारी आँखों में देख लेते हैं तो हम बेसुध हो जाते हैं और आज तो आपने..." इतना ही कह पाई थीं बो।

"शीतल, इस दुनिया में अगर मैं सबसे ज्यादा किसी को प्यार करता है, तो वो आप हैं और जब तक मैं आपके साथ हूँ, आपको कुछ नहीं हो सकता है; आपकी जान मैं क्या कोई नहीं ले सकता है।"

मैं जानता था कि जो दृश्य मेरे दिमाग में सुबह से चल रहा है, वही दृश्य शीतल की आँखों के सामने भी चल रहा है। तभी तो साथ होते हुए भी शीतल के पास शब्द नहीं थे। शीतल अभी भी सुबह की हसीन यादों में डूबी हुई थीं। सुबह हम दोनों के प्रेम की सीमा, दिल की परिधि से निकलकर दो शरीरों के मिलन तक जा पहुंची थी। उसका प्रभाव अभी तक हम दोनों के मन-मस्तिष्क में था। दिमाग किसी और तरफ सोचना ही नहीं चाहता था। बार-बार एक-दूसरे की बाँहों में बिताए पल सामने आ जा रहे थे।

मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। शीतल की चाय, कप में पड़े-पड़े अपना दम तोड़ चुकी थी। कप, साइड में रख दिए गए थे। आठ बजने को थे। अँधेरा छा चुका था। हम दोनों अभी भी टहल रहे थे। शीतल की नजरें अभी भी झुकी हुई थीं। मैं समझ गया था कि शीतल को इस खुमारी से बाहर लाना जरूरी है, वरना घर जाते वक्त वो स्कूटी ड्राइव ही नहीं कर पाएंगी। चलते-चलते मैंने अपने हाथ से शीतल की उँगलियों को पकड़ लिया और सामने देखने लगा। शीतल ने अबाक होकर मेरे चेहरे की तरफ देखा, लेकिन मैं जान-बूझकर सामने ही देखता रहा।

"राज, ऑफिस है, कोई देख लेगा।" उन्होंने कहा। ___
 
"काफी अँधेरा है शीतल...कोई नहीं है अब यहाँ...और मुझे नहीं है किसी की परवाह अब।"
इतना कहकर मैंने अपने दोनों हाथों से शीतल को कंधे के पास पकड़ा और अपनी तरफ मोड़ लिया। शीतल ने अब अपनी नजरें उठा ली थीं। मैं उनकी आँखों में और वो मेरी आँखों में देख रही थीं। तभी मैंने एक कदम आगे बढ़ाया और शीतल के माथे को दुलार से चूम लिया। माथे को चूमते ही शीतल की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गई और वो किसी मदहोश इंसान की तरह मेरे बाँहों में समा गईं।

शीतल के साथ बिताया हर पल मेरी जिंदगी का बेहद हमीन पल होता था। साथ बैठकर एक-दूसरे की उँगलियों से खेलना, मेरे कंधे पर सिर रखकर शीतल का खूब बातें करना, लंच और डिनर पर हर पहला कौर उन्हें अपने हाथ से खिलाना; सब खास होता था मेरे लिए। शीतल का इस खुशनुमा मौसम में मेरी बाँहों में समा जाना भी उन्हीं पलों में से था।

घर जाने का वक्त हो चुका था।

“शीतल, घर चलें?"

“दो मिनट यूँ ही खड़े रहिए न प्लीज।"- शीतल ने कहा।

"शीतल...चलो।"

"आई लव यू राज ....आई लव यू।" उन्होंने मेरी बाँहों से हटते हुए कहा।

"आई लब यू टू..." शीतल और मैं अपना-अपना बैग लेकर उनकी स्कूटी पर घर के लिए निकल्न चुके थे। आज भी स्कूटी में ही चला रहा था हमेशा की तरह। बारिश थम गई थी, लेकिन ठंडी हवाएं चल रही थीं। शीतल मेरे पीठ से चिपकी हुई थीं। उनकी आँखें बंद थीं। मैं बखूबी जानता था कि उनकी आँखों में और उनके दिमाग में सुबह का दृश्य ही चल रहा है।

"शीतल! शीतल!"

"हम्म...कहिए।"- उन्होंने पीठ से चिपके हुए ही जबाब दिया।

"सुनिए...आप थके होंगे न आज, तो मयूर बिहार ही ड्रॉप कर देंगे आपको; कनॉट प्लेस तक मत चलिएगा आज।" उन्होंने कहा।

"अरे नहीं, मैं कनॉट प्लेस चलूँगा साथ आपके।"- मैंने कहा।

"अरे, आप आराम कीजिएगा आज।'- उन्होंने फिर कहा।

"आप अभी दिन की खुमारी में हैं... ड्राइव कैसे कर पाएँगे? आपसे स्कूटी चलेगी नहीं।"- मैंने कहा।

“पता नहीं हम कैसे करेंगे इराइव आज।" उन्होंने धीमी आवाज में कहा।

"तभी तो कह रहा हूँ...मैं चलता हूँ कनॉट प्लेस तक और आप क्यूँ जिद कर रही हो? हर रोज तो आता ही हूँ कनॉट प्लेस तक मैं आपके साथ।”- मैंने कहा। __

"आप तो पागल हैं न... मयूर विहार में घर है, लेकिन हमें छोड़ने पहले कनॉट प्लेस तक जाते हैं, फिर लौटकर मयूर विहार आते हैं।" उन्होंने मुस्कराते हुए कहा।

"हाँ, सच तो कहा है आपने ...पागल तो हूँ आपके लिए: कनॉट प्लेस तो क्या, कहीं तक भी चल सकता हूँ आपके साथ।"- मैंने जवाब दिया।

स्कूटी, मयूर बिहार से आगे बढ़ चुकी थी। शीतल फिर उसी स्थिति में आ गई थीं। अपने हाथों का घेरा बनाकर वो मेरी पीठ से चिपक गई थीं। मैं जान-बूझकर उन्हें छेड़ना नहीं चाहता था आज। ये सफर यूँ ही कनॉट प्लेस तक चलता रहा।

शीतल को छोड़कर मयूर विहार लौटते हुए भी दिमाग बहीं अटका हुआ था। मन में था कि शीतल के सामने खड़ा होकर कहूँ

"जानती हो, सबसे बुरा पल कब आता है? जब शाम को तुम मुझे छोड़कर जाती हो। रोभी नहीं पाता हूँ तब तो; क्योंकि तुमको मुस्कराहट से विदा करना होता है। तभी आना, जब तुमको बिदा न करना पड़े। तुम बिलकुल धुंघरू की तरह हो; पाम होती हो, तो एक खनक होती है मेरे दिल में और जब दूर होती हो, तो खामोश कर जाती हो। तुम हवा हो; जब बहती हो, तो दिल को सुकून देती हो। तुम सागर की लहरें हो... जब उठती हो, तो मन में उमंग भर देती हो। सच कहूँ तो मेरे लिए दुनिया की वो हर चीज़ हो तुम, जो जीने के लिए जरूरी होती है। मैं तुम्हारे कदमों के निशानों पर अपने पैर रखकर चलना चाहता हूँ। समंदर की रेत में बैठकर तुम्हारे साथ सूरज को निकलते और छिपते देखना चाहता हूँ।

मैं तुम्हारी बाँहों में रहना चाहता हूँ; बस तुम प्यार में मेरे माथे को चूम लेना...।"

हल्की बारिश शुरू हो गई थी, पर इतनी नहीं थीं कि पूरी तरह भिगो दे; इसलिए मैं मयूर बिहार मेट्रो स्टेशन से घर की तरफ पैदल ही जा रहा था। मेरे घर की दूरी मेट्रो स्टेशन से दस मिनट की ही थी। तसल्ली करने के लिए शीतल का मैसेज आ चुका था।

"लगभग पहुँच चुका है...घर के करीब ही हूँ।"- मैंने मैसेज का रिप्लाई किया।
 
"कल का याद हैन, मालविका का बर्थ-डे।" ।

“हाँ बाबा, याद है; मैं सुबह सात बजे आ जाऊँगा।"

"पहले हम लोग मंदिर चलेंगे, पूजा कराएँगे, फिर मालविका के स्कूल और उसके बाद घूमने।"

ओके। बारिश तेज हुई तो मैं मयूर विहार पार्क के सामने एक साउथ इंडियन कॉर्नर पर ठहर गया। अक्सर कभी कॉफी पीने या डोसा खाने का मन करता था, तो मैं यहाँ चला आता था। दुकान के मालिक भुबन भैय्या थे। बिहार के रहने वाले थे। सुबह-सुबह चाय के टाइम उनसे खूब गप्पे मारा करते थे। बारिश के बढ़ने के आसार देखकर मने एक हॉट कॉफी ऑर्डर कर दी थी।

"हाय राज ! कैसे हो?"- डॉली का मैसेज था।

"ओह हाय। मैं अच्छा हूँ, तुम बताओ।"

“यार बहुत थकान हो गई थी...जल्दी भी उठे थे आज...मो गई थी मैं तो...अभी उठी हूँ। मॉम-डैड कहीं बाहर गए हैं: तुम ऑफिस में हो अभी- उसने कहा।

"नहीं नहीं, मैं घर के पास ही हूँ।"

"घर के पास कहाँ? मयूर विहार में ना।"

"हाँ...इम्फेक्ट तुम्हारे घर के पास...पार्क बाले साउथ इंडियन कॉर्नर पर: तुम भी आ जाओ, कॉफी पीते हैं..."

“आई लव कॉफी; पर बाहर तो बारिश हो रही है न... कैसे आ पाऊँगी?"

"अरे दर थोड़ी है...तुम्हारे तो घर के सामने ही है: आ जाओ न यार।"

"ओके डियर...बेट, आई एम कमिंग।"

"भैय्या थोड़ी देर से देना कॉफी...एक फ्रेंड भी आ रही है।" मयूर विहार में सिंगल रहने वाले लोगों का अड्डा यही हुआ करता था। सुबह और शाम के समय चाय, कॉफी, ब्रेड बटर के साथ नाश्ते की बाकी चीजों के लिए यहाँ भीड़ लगा करती थी। आज तो मौसम भी काफी खुशमिजाज था। बारिश की बूंदों के बीच गर्मागर्म डोसा, इडली साँभर की खुशबू और चाय-कॉफी के कपों से निकलता धुआँ किसी को भी मदहोश करने और मुँह में पानी लाने के लिए काफी था। दुकान के सामने राउंड टेबल पर चार-चार के सेट में कुर्सियाँ लगी हुई थीं। खड़े होने के लिए भी कई स्टेंडिंग सेट लगे थे। कुल मिलाकर पचास लोग यहाँ बड़े आराम से बैठ सकते थे। मैं भी एक राउंड टेबल सेट पर बैठकर बारिश की बूंदों को निहार रहा था। शीतल के साथ बिताए सुबह के पलों के बारे में सोचकर चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। इस पल के लिए भगवान का शुक्रिया भी अदा कर चुका था।

'हेलो!'- डॉली ने हाथ हिलाते हुए कहा।

"हाय! आओ अंदर...भीगो मत बाहर।"

"तो कैसा रहा तुम्हारा दिन?"

"बहुत खूबसूरत।"

"भैय्या अब दो कॉफी देना।”

"कोई खास वजह इस खूबसूरत दिन की?"

“बजह तो तुम जानती ही हो।"- मैंने कहा।

"हम्म...तो जनाब मिल लिए अपनी जान से?"

"हाँ यार, सच में जान ही तो हैं वो मेरी।"- मैंने कहा।

“कितना प्यार करते हो न तुम शीतल को...और कितनी सच्चाई से उस प्यार को बयां भी कर देते हो...गुड।"- डॉली ने कहा।

"अगर किसी को सच्चा प्यार करते हो, तो बयां करने में प्राब्लम क्या है? मुझे प्यार छिपाना नहीं आता है डॉली।"

"जानती हूँ, तभी तो तुमने सब बता दिया था अपने और शीतल के बारे में...ये अच्छाई है तुम्हारी।"- डॉली ने कहा।

कॉफी आ चुकी थी। डॉली ने कॉफी का कप उठाया और उसे अपनी नाक के पास ले जाकर कहा, “आई लव कॉफी।"

“यू नो राज, मुझे न कॉफी की खुशबू बहुत प्यारी लगती है...मैं कॉफी पीने से पहले उसकी खुशबू एनज्वॉय करती हूँ।"-डॉली किसी छोटी बच्ची की तरह कॉफी के कप को अपनी नाक के पास ले जा रही थी।
'अच्छा । "हम्म... तुम भी करके देखो...ऐसे लगता है जैसे जन्नत मिल गई हो; करके देखो।" डॉली मुझसे कह रही थी।
 
"हम्म..बहुत अच्छी खुशबू है।"- डॉली के कहने पर मैंने भी ट्राइ किया। कॉफी का एक-एक सिप लेते हुए मैं डॉली को शीतल के बारे में बता रहा था। जानती हो डॉली अभी तो शीतल पूरी तरह मेरी जिंदगी में आई भी नहीं हैं, फिर भी ढेर सारी खुशियाँ लेकर आई हैं। अब मैं बहुत खुश रहता है। वो आएँगी भी या नहीं, पता नहीं; पर उनका मेरी जिंदगी में आना एक शगुन की तरह है। बिखरे हुए घर के बर्तन सँवरने लगे हैं, मुरझाए फूल महकने लगे हैं; चाँद की चाँदनी अब चिढ़ाने की बजाय प्यार करने लगी है।

वो लहरें, जो कभी सुकून देती थीं मेरे दिल को, आज मुस्कराने लगी हैं। एक वक्त था जब मैं प्यार से डरता था... लोगों को धोखा खाते देखकर बहुत बुरा लगता था। लेकिन बो शीतल ही हैं जिन्होंने प्यार करना सिखाया मुझे। जब वो खिलखिलाकर हँसती हैं और कहती हैं कि आप हमेशा हमारे दिल में रहेंगे, तो लगता है जैसे सब-कुछ मिल गया है मुझे, अब और कुछ नहीं चाहिए। वो जितनी खूबसूरत हैं, उतनी ही प्यारी उनकी आवाज है... जब कान में पड़ती है, तो सिबाय उनके कुछ याद नहीं रहता।

बस भगवान से यही चाहता हूँ कि ये आवाज मेरे कानों में हमेशा चाशनी की तरह चुलती रहे।"

“राज, कितनी खूबसूरती के साथ तुमने अपने प्यार को बयां किया है...सच में यार, शीतल बहुत लकी हैं, जो तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला उन्हें मिला है।" इतना कहकर डॉली मेरी तरफ देखकर मुस्करा रही थी। उसकी आँखों के भाव ऐसे थे, जैसे बो मेरे चेहरे में कुछ खोजना चाह रही है।

“मिलबाऊँगा तुम्हें कभी शीतल से।”- मैंने कहा।

'पक्का ।'- डॉली का जवाब था।।

"अच्छा, तुम्हारा बॉयफ्रेंड कैसा है?'- मैंने मुस्कराते हुए पूछा।

"बॉयफ्रेंड और मेरा! कौन झेलेगा मुझे? अकेले जिंदगी जीती हूँ मैं...देखा नहीं, अकेले ऋषिकेश गई; बॉयफ्रेंड होता तो उसके साथ ही जाती न।"- डॉली ने जवाब दिया। ___

“पता नहीं, पर खूबसूरत हो..हाइट भी अच्छी है. फैशन डिजाइनर हो, बॉयफ्रेंड होना चाहिए।"- मैंने मजाक में कहा।

“जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है...अकेले जिंदगी मजे से कटती है.. हाँ, पर तुम्हारी और शीतल की कहानी जानकर लगता है कि ऐसा रिलेशन अच्छा है। अगर रिलेशन में रहना है,तो बॉयफरेंड-गर्लफरेंड वाला नहीं, प्यार वाला होना चाहिए। डूब जाओ एक-दूसरे के प्यार में..तुम दोनों की तरह। पर मुझे ऐसा प्यार करने वाला कहाँ मिलेगा?"- डॉली ने कहा।

"अरे जरूर मिलेगा...सही वक्त आने पर।"- मैंने कहा। कॉफी खत्म हो चुकी थी और इसी के साथ बारिश बंद हो गई थी।

'चलें?'- मैंने कहा।

"हाँ यार...मॉम-डैड भी घर पर नहीं है। मैं लॉक करके आई हूँ।"- डॉली ने कहा।

हम दोनों पहले डॉली के घर की तरफ बढ़ रहे थे। सड़क पर पानी भरा हुआ था और हम उसी पानी में चलते जा रहे थे। डॉली को घर छोड़कर मैं अकेले अपने घर की तरफ बढ़ रहा था। हाँ, खयालों में अब भी शीतल ही थीं।
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चौदह अप्रैल मालविका का जन्म दिन था। शीतल के कहने पर मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। शीतल के लिए ये दिन बहुत खास था। मैंने आज का पूरा दिन शीतल और मालविका के साथ प्लान किया था। ठीक साढ़े छह बजे मैं कार से शीतल और मालविका को लेने निकल गया। रास्ते से मालविका के लिए ढेर सारी चॉकलेट,गुलाब के फूल कार में रख लिए थे। सात बजे मैं शीतल के फ्लैट के नीचे पहुँचा तो शीतल और मालविका पहले से ही मेरा इंतजार कर रहे थे। शीतल ने गहरे नीले रंग का सूट पहना था, तो मालविका गुलाबी रंग के फ्रॉक में लिटिल एंजल लग रही थी। ऊपर से उसके बालों में गुलाबी रंग का हेयर बैंड भी लगा था।

मैं फटाफट कार से उतरा और गुलाब के फूल लेकर मालविका के आगे घुटनों पर बैठ गया।

“हैप्पी बर्थ-डे स्वीट हार्ट।"- मैंने मालविका की तरफ फूल्न बढ़ाते हुए कहा।

"थॅंक यू अंकल।"

"तुम बहुत प्यारे लग रहे हो मालविका।”- मैंने उसके गालों को छेड़ते हुए कहा और उसे गोद में उठा लिया।

शीतल साथ में खड़ी होकर मुस्करा रही थीं। मालविका भी मेरी गोद में आराम से आ गई थी। ये मेरी और उसकी पहली मुलाकात थी। "आप राज अंकल हो न?"- उसने पूछा।

"हाँ बेटा, पर आपको किसने बताया?"

“मम्मा ने बताया कि आप मुझे और मम्मा को बहुत प्यार करते हो।"

"हाँ, वो तो है बेटा।"- मैंने शीतल की तरफ देखते हुए कहा। मालविका मेरी गोद में ही थी। हम लोग कार की तरफ बढ़े। बैठने से पहले शीतल ने मालविका को अपनी गोद में ले लिया।

"तो पहले मंदिर चलना है न शीतल!"

"हाँ, पहले मंदिर और फिर वहीं से मालविका के स्कूल चलना है; इसकी क्लास के बच्चों को चॉकलेट और नोटबुक देनी है।"

"ओके, चॉकलेट्स मैं लेकर आया हूँ।"

"अरे, तुम क्यों लेकर आए, मैं ले लेती न।"

"शीतल...मालविका के लिए मैं लेकर आऊँ या आप लें, एक ही बात है।"

शीतल इस बात पर मुस्करा दी। कुछ ही देर में हम लोग पास में ही मंदिर पहुंच गए। पूजा की थाली मालविका के हाथ में थी। मैं, मालविका और शीतल, तीनों भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के सामने खड़े थे। मैं और शीतल बराबर में खड़े थे और मालविका बिलकुल हमारे आगे खड़ी थी। शीतल, आँखें बंद कर भगवान से मालविका के लिए प्रार्थना कर रही थीं। मने शीतल का हाथ पकड़ा, तो अचानक उनकी आँखें खुल गई। सबसे पहले उनकी नजर मालविका पर गई, कि कहीं मालविका ने तो मुझे हाथ पकड़ते हुए नहीं देखा। मालविका सामने देख रही थी, तब शीतल ने मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखों में मासूमियत थी, जिसके ऊपर भाबुकता का पानी चढ़ा हुआ था। मैंने आँखों के इशारे से शीतल को तसल्ली देने की कोशिश की। पूजा के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ रहे थे। मालविका हम दोनों के बीच में चल रही थी और उसने अपने एक हाथ से मेरी उँगली और एक हाथ से शीतल को पकड़ रखा था...ठीक उस तरह जैसे एक बच्चा अपने मम्मी-पापा की उँगली पकड़कर चल रहा था। मैं बस यही सोच रहा था कि मालविका यूँ ही हमेशा मेरी और शीतल की उँगली पकड़कर चलती रहे। बीच-बीच में शीतल मेरी तरफ देखती और फिर नजर हटा लेतीं। शायद वो भी बहीं सोच रही थीं, जो मैं।

थोड़ी देर में हम मालविका के स्कूल पहुंच गए। मालविका की क्लास टीचर के साथ हम उसकी क्लास में पहुंचे, तो सभी बच्चों ने एक आवाज में मालविका को बर्थ-डे विश किया। क्लास में पहुँचते ही मालविका उन बच्चों के बीच पहुँच गई। कई छोटी बच्चियों ने मालविका को हग भी किया। बच्चों के बीच में मालविका बहुत खुश थी। उसकी खुशी देखकर मैं और शीतल भी बहुत खुश थे। मालविका ने क्लास के सभी बच्चों को एक-एक कर अपने हाथ से चॉकलेट और नोटबुक दी। सबसे बाद में मैंने अपनी जेब से एक बड़ी सी चॉकलेट निकालकर मालविका को दी, तो वो बहुत खुश हुई।

अब मालबिका को चिड़ियाघर दिखाना था। हम लोग वहाँ के लिए निकल पड़े। आज मालविका बहुत खुश थी, कार की प्रट सीट पर शीतल की गोद में बैठकर वो खूब खिलखिला रही थी, मुझसे बातें कर रही थी। मेरी और मालविका की टयूनिंग देख शीतल बहुत खुश थीं। इसकी एक वजह ये थी कि अगर मैं और शीतल शादी करते हैं, तो उस शादी के लिए मालविका का राजी होना बहुत जरूरी था और मालविका मुझसे घुल-मिल जाएगी, तो शीतल को उसे सब सच बताने में आसानी होगी।

अब हम लोग चिड़ियाघर में थे। घुसते ही रंग-बिरंगे पक्षियों, उछलकूद करते बंदरों, लूंगरों, दौड़ते-भागते हिरणों, मुस्त-मुस्त बड़े गैंडों को देखकर मालविका ताली बजाकर खिलखिला रही थी। कभी वो शीतल का हाथ पकड़ लेती, तो कभी बो राज अंकल कहकर मेरा हाथ पकड़ लेती। जानवरों को देखकर उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे... ये हिरण भाग क्यों रहे हैं....ये गैंडा है...मुस्त क्यों है? मैं बड़े प्यार से उसके सवालों के जवाब दे रहा था।

शीतल अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ किए हुए साथ-साथ चल रही थीं। कभी-कभी मालविका हम दोनों का हाथ छोड़कर जानवरों के बाड़े के करीब पहुंच जाती।
 
“अंकल मुझे लॉयन देखना है।"

"हाँ बेटा, लॉयन भी दिखाएंगे अभी।" मालविका शेर, चीते देखना चाहती थी। मैं और शीतल जंगली जानवरों के बाड़े की तरफ चल दिए। मालविका आगे-आगे पैदल भाग रही थी।

तभी शीतल ने कहा
“मालविका से तो अच्छी दोस्ती हो गई तुम्हारी।"

"हाँ...देखो न, कितने अच्छे से घुल-मिल गई है बो मुझसे।" ।

“मैंने हमेशा उसे आपके बारे में डरते-डरते ही बताया था; मुझे सच में उम्मीद नहीं थी कि वो तुम्हारे साथ इतनी जल्दी फ्रेंक हो जाएगी।"

"सच में शीतल, मैं भी डर रहा था कि जब पहली बार मालबिक्का मुझसे मिलेगी तो कैसे रिएक्ट करेगी।"

"पर राज, तुमने भी तो उसके लिए इतना कुछ किया न... वो खुश है तुम्हारे साथ और ये देखकर मैं बहुत खुश हूँ।"

"आई नो शीतल, दैट यू आर हैप्पी...तुम्हारे चेहरे से साफ दिख रहा है।" "अच्छा , तो जनाब मेरा चेहरा ही पढ़ रहे हैं..."

बातें करते-करते हम लोग शेर के बाड़े के सामने थे। जैसे ही सामने शेर दिखा, मैंने

मालविका को गोद में उठा लिया। “मालविका देखो, बो रहा शेर।"

शेर को देखकर मालविका खिलखिला उठी। बो शेर को अच्छे से देख सके, इसलिए मैंने उसे गोद से थोड़ा और ऊपर उठा लिया। मालविका ताली बजा रही थी। उसके बाद उसे बाघ, चीता और बारहसिंघा भी दिखाए। एक बज चुका था, मालविका थक चुकी थी। चिड़ियाघर की कैंटीन में ही हम लोगों ने खाना खाया। शाम को शीतल के घर पर मालविका की बर्थ-डे पार्टी थीं। शीतल चाहती थीं कि मैं उनके घर आऊँ और उनके परिवार से मिलूं। मैं आने के लिए मना कर चुका था, लेकिन जब मैं शीतल और मालविका को छोड़ने उनके घर जा रहा था, तो मालविका ने कहा
"अंकल, शाम को आएंगे न..."

मालविका के कहने पर मैं न नहीं कह पाया। शीतल समझ गई थीं कि अब मैं शाम को जरूर आऊँगा।

शीतल और मालविका को घर छोड़ा और रास्ते में यही सोचता रहा कि क्या शाम को शीतल के घर जाना ठीक होगा?

घर पहुँचकर भी इस बारे में काफी सोचा। दिमाग में ख्याल आया कि कहीं उनके घरवाले कुछ समझ बैठे तो क्या होगा? खैर, मैंने फाइनली डिसाइड किया कि मैं मालविका की पार्टी में जरूर जाऊँगा। थोड़ी देर आराम करने के बाद ठीक छह बजे मैं पार्टी के लिए निकल चुका था। पिछले कुछ दिन से मालविका के लिए चुन-चुनकर जो गिफ्ट्स जुटाए थे, वो सब कार में रख लिए थे। लगभग आधे घंटे बाद मैं शीतल के घर पहुंच गया। कार पार्क करके मैं सीढ़ियों पर चढ़ने लगा। मेरे मन में तमाम तरह की बातें चल रही थीं। मुझे अभी तक नहीं पता था कि मेरे आने के बारे में शीतल ने घर पर बताया है या नहीं... और अगर बताया है, तो क्या बताया है?
 
शीतल का फ्लैट फन्ट फ्लोर पर था। सीढ़ियों तक बच्चों की आवाजें आ रही थीं। मैं समझ गया था कि पार्टी में शामिल होने बच्चे आ चुके हैं। मैंने डोरबेल बजाई। दरवाजा शीतल ने ही खोला। व्हाइट और गोल्डन रंग का सूट, कानों में बड़े से झुमके, खुले बाल, आँखों में काजल और सेंट की महकती खुशबू। एक पल के लिए मैं सब-कुछ भूल गया। न मैंने कुछ बोला और न शीतल कुछ बोल पाई। हम दोनों स्तब्ध होकर एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। मैं शीतल को देखकर हैरान था और शीतल मुझे वहाँ देखकर। तभी मालविका ने हम दोनों को एक सपने से जैसे बाहर निकाला।

"हेलो अंकल ।"

"हैप्पी बर्थ-डे बेटा।"- यह कहते हए मैंने मालविका को गोद में उठा लिया। मालविका और शीतल ने बिलकुल एक जैसी रैस पहनी थी। शायद दोनों ने जान बूझकर एक जैसी ड्रेस इस खास मौके के लिए तैयार कराई थी। मालविका बिलकुल शीतल पर गई थी।

"आओ राज, अंदर आओ।"- शीतल ने कहा। मैं मालविका को लेकर अंदर बढ़ा। शीतल मुझे सामने रखे सोफे पर बैठने के लिए कहकर परिवार के बाकी लोगों को बुलाने चली गई। मालविका अभी भी मेरे पास थी।

उसके कुछ और दोस्त भी मेरे पास आ गए थे। मैंने ढेर सारे गिफ्ट मालविका को दिए और एक पैकेट से चॉकलेट निकालकर उसके बाकी दोस्तों को बाँट दी। तब तक शीतल अपने मम्मी-पापा को लेकर आई। नमस्ते हुई,हालचाल पूछे गए। ___“पापा, ये राज हैं; ऑफिस में मेरे साथ काम करते हैं और मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं।" - शीतल ने ये कहकर मेरा परिचय कराया था।
वैसे ऑफिस में केवल मैं ही पार्टी में पहुंचा था। मेरी और शीतल की उम्र का अंतर साफ झलक रहा था, तो ये उनके पापा और मम्मी के लिए चौंकने वाली बात नहीं थी। पार्टी में शामिल होने के लिए लगभग सभी लोग आ चुके थे।

केक तैयार था। सभी बच्चों ने बर्थ-डे बाली टोपी पहन ली थी। शीतल ने हल्का म्यूजिक चला दिया था। शीतल के पापा और मम्मी ने मालविका के साथ खड़े होकर केक कटबाया, तो पूरा घर हैप्पी बर्थ-डे टू यू मालविका' से गूंज उठा। शीतल बहुत खुश थीं। तभी मैंने उनसे ये पूछ भी लिया "खुश हो न तुम?"

शीतल का जवाब था- "हाँ, बहुत खुश है। मालविका पाँच साल की हो गई है और इस खुशी के मौके पर वो मेरे साथ है, जिसे मैं दिल-जान से ज्यादा प्यार करती हूँ... ये खुशी तुम्हारे बिना अधूरी ही रहती।"

मैंने इसका जबाब मुस्कराकर दिया। मालविका और उसके छोटे-छोटे दोस्त डांस कर रहे थे। मैं, शीतल के पापा-मम्मी और बाकी बच्चों के पैरेंट्स साथ बैठे थे। खाना भी लग चुका था। शीतल ने मुझसे खाने के लिए कहा, तो मैंने यह कहकर टाल दिया कि पहले बाकी लोगों को कराओ। मैं और आप बाद में करते हैं। इसके बाद शीतल ने बच्चों के पैरेंट्स और बच्चों को खाने के लिए बुलाया। मैं साइड में खड़ा था।

“राज बेटा खाना लोन ।'- शीतल के पापा ने पास आकर कहा।

"अंकल मैं लेताहूँ...बाकी लोगों को पहले करने दीजिए।"

"चलिए फिर ये सभी लोग डिनर कर लें, उसके बाद हम और आप साथ डिनर करेंगे; आप तो घर के हैं।"

शीतल के पापा की इस बात ने मेरे चेहरे पर खुशी ला दी थी। अब तक मेरे अंदर जो डर था, कि अंकल मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं, बो इस बात के बाद निकल गया था। मैं और अंकल अभी भी साथ ही खड़े थे। बीच में शीतल भी हालचाल पूछ गई थीं। थोड़ी देर बाद सब लोग खाना खाकर चले गए।

अब घर में बचे तो मैं, शीतल, अंकल-आंटी, शीतल की बहन, भाई-भाभी और मालविका।
 
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