desiaks
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“राज, आपने हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया...हमने पूछा, क्या आप हमें सिर्फ दोस्त की नज़र से देख पाएंगे, बस यह बता दीजिये।" उन्होंने पूछा था।
मेरे लिए बहुत मुश्किल था उनका दोस्त बनना। वो जब भी सामने आती थीं, तो मेरी आँखें अपने प्यार को बयां किए बिना मानती ही नहीं थीं। होंठ तो खुद-ब-खुद कह देते थे उनसे, कि बहुत प्यार है आपसे। ऐसे में शीतल के इस सवाल न मुझे उलझा दिया था। लेकिन क्या करता में...मना करता, तो उन्हें हमेशा के लिए खो देता।
बस,हाँ कह दिया था। "हाँ शीतल, हम बस दोस्त बनकर रहेंगे।" ।
सफर खत्म होने को था। बातों-बातों में कब ऋषिकेश से दिल्ली आ गया, पता ही नहीं चला। हमारी बॉल्बो, गाजियाबाद पार कर चुकी थी। सुबह के दस बज चुके थे। जितनी खुशी मुझे तीन दिन बाद शीतल के पास आने की थी, उतनी ही खुशी इस बात की भी थी, कि डॉली जैसी एक अच्छी दोस्त मुझे मिल गई थी। पाँच घंटे के सफर में उसने पूरे धैर्य से मेरी बात सुनी। वो मेरी बातों से बोर नहीं हुई थी, उसने मेरी बातों में पूरी रुचि दिखाई थी। शीतल के बारे में जानने पर कभी उसके आँसू भी निकले,तो कभी वो खूब हंसी भी।
"डॉली; तो अभी कहानी बस यहीं तक है। शीतल ऑफिस में मिलने वाली हैं आज, मैं बहुत खुश हूँ: तीसरे दिन उनसे मिल रहा हूँ।"- मैंने कहा।
“मच राज, शीतल बहुत खुशनसीब हैं, कि आपके जैसा प्यार करने वाला शब्म उन्हें मिला है। ये जानते हुए, कि आप दोनों एक-दूसरे के नहीं हो सकते हैं, आप उन्हें दिलोजान से प्यार करते हैं...।"डॉली ने कहा।
"नहीं डॉली, खुशनसीब तो मैं हूँ कि शीतल जैसी लड़की मुझे मिली है...बो मेरी जिंदगी में जिस भी रूप में हैं मेरे लिए बही काफी है।'- मैंने कहा।
"राज, मैं मिलना चाहती हूँ शीतल से।"- उसने कहा।
"अरे पक्का... में बताऊंगा तुम्हारे बारे में उन्हें और मिलवाऊंगा भी... उन्हें बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिलकर।"- मैंने कहा।
"पक्का मैं मिलूंगी।"- उसने कहा।
"और डॉली, मैं बहुत खुश हूँ कि ऋषिकेश के इस सफर में मुझे तुम्हारे जैसी एक प्यारी-सी दोस्त मिल गई है।"- मैंने कहा।
"राज, तुम्हारे जैसा दोस्त पाकर मैं भी बहुत खुश हूँ; तुम सच में बहुत साफ दिल के इंसान हो, वरना कोई एक लड़की को अपनी प्रेम कहानी नहीं बताता है। गर्लफ्रेंड और परेमिका होने के बाद भी मारे लड़के बस चांस मारना चाहते हैं दूसरी लड़कियों पर... पर तुमने मुझे अपने बारे में सब बताया, येही तुम्हारी अच्छी बात है।"- डॉली ने कहा।
"अरे बस करो यार...इतनी तारीफ मत करो अभी बैसे तुम भी बहुत अच्छी हो...आई एम हैप्पीटू हैब यू एज ए फ्रेंड।"- मैंने कहा।।
"तो डॉली, तुम ऑफिस जाओगी आज?"- मैंने पूछा।
"नहीं नहीं, मैं कल ऑफिस जाऊँगी।'- उसने जवाब दिया।
"ओके, तो अभी सीधा घर?"- मैंने पूछा।
"हाँ, घर।" उसने जवाब दिया।
"तो फिर मैं कैब बुक कर लेता हूँ; आपको मयूर विहार ड्रॉप करते हुए ऑफिस चला जाऊँगा।"- मैंने कहा।
"आपका ऑफिस तो नोएडा सेक्टर-18 में है न... आपको प्रॉब्लम तो नहीं होगी न?" डॉली ने कहा।
"नहीं नहीं, मुझे क्या प्रॉब्लम होगी।”- मैंने कहा। बस, आनंद बिहार पहुंच चुकी थी। मैंने फोन से एक कैब बुक कर ली थी। सफर खत्म हो चुका था। सुकून भरे ऋषिकेश से हम भागती-दौड़ती दिल्ली में उतर चुके थे। पाँच मिनट में कैब भी आ गई थी। शीतल का भी फोन आ चुका था। वो ऑफिस पहुँच चुकी थीं।
"चलो डॉली, कैब आ गई है।"- मैंने कहा।
'ओके।'
“भैय्या, मयूर विहार होते हुए सेक्टर-18 नोएडा चलना है।"- मैंने कैब में बैठते हुए कहा।
"जी सर।"- कैब ड्राइवर ने कहा।
"तो राज, कब मिलेंगे हम दोबारा?"- डॉली ने पूछा।
मेरे लिए बहुत मुश्किल था उनका दोस्त बनना। वो जब भी सामने आती थीं, तो मेरी आँखें अपने प्यार को बयां किए बिना मानती ही नहीं थीं। होंठ तो खुद-ब-खुद कह देते थे उनसे, कि बहुत प्यार है आपसे। ऐसे में शीतल के इस सवाल न मुझे उलझा दिया था। लेकिन क्या करता में...मना करता, तो उन्हें हमेशा के लिए खो देता।
बस,हाँ कह दिया था। "हाँ शीतल, हम बस दोस्त बनकर रहेंगे।" ।
सफर खत्म होने को था। बातों-बातों में कब ऋषिकेश से दिल्ली आ गया, पता ही नहीं चला। हमारी बॉल्बो, गाजियाबाद पार कर चुकी थी। सुबह के दस बज चुके थे। जितनी खुशी मुझे तीन दिन बाद शीतल के पास आने की थी, उतनी ही खुशी इस बात की भी थी, कि डॉली जैसी एक अच्छी दोस्त मुझे मिल गई थी। पाँच घंटे के सफर में उसने पूरे धैर्य से मेरी बात सुनी। वो मेरी बातों से बोर नहीं हुई थी, उसने मेरी बातों में पूरी रुचि दिखाई थी। शीतल के बारे में जानने पर कभी उसके आँसू भी निकले,तो कभी वो खूब हंसी भी।
"डॉली; तो अभी कहानी बस यहीं तक है। शीतल ऑफिस में मिलने वाली हैं आज, मैं बहुत खुश हूँ: तीसरे दिन उनसे मिल रहा हूँ।"- मैंने कहा।
“मच राज, शीतल बहुत खुशनसीब हैं, कि आपके जैसा प्यार करने वाला शब्म उन्हें मिला है। ये जानते हुए, कि आप दोनों एक-दूसरे के नहीं हो सकते हैं, आप उन्हें दिलोजान से प्यार करते हैं...।"डॉली ने कहा।
"नहीं डॉली, खुशनसीब तो मैं हूँ कि शीतल जैसी लड़की मुझे मिली है...बो मेरी जिंदगी में जिस भी रूप में हैं मेरे लिए बही काफी है।'- मैंने कहा।
"राज, मैं मिलना चाहती हूँ शीतल से।"- उसने कहा।
"अरे पक्का... में बताऊंगा तुम्हारे बारे में उन्हें और मिलवाऊंगा भी... उन्हें बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिलकर।"- मैंने कहा।
"पक्का मैं मिलूंगी।"- उसने कहा।
"और डॉली, मैं बहुत खुश हूँ कि ऋषिकेश के इस सफर में मुझे तुम्हारे जैसी एक प्यारी-सी दोस्त मिल गई है।"- मैंने कहा।
"राज, तुम्हारे जैसा दोस्त पाकर मैं भी बहुत खुश हूँ; तुम सच में बहुत साफ दिल के इंसान हो, वरना कोई एक लड़की को अपनी प्रेम कहानी नहीं बताता है। गर्लफ्रेंड और परेमिका होने के बाद भी मारे लड़के बस चांस मारना चाहते हैं दूसरी लड़कियों पर... पर तुमने मुझे अपने बारे में सब बताया, येही तुम्हारी अच्छी बात है।"- डॉली ने कहा।
"अरे बस करो यार...इतनी तारीफ मत करो अभी बैसे तुम भी बहुत अच्छी हो...आई एम हैप्पीटू हैब यू एज ए फ्रेंड।"- मैंने कहा।।
"तो डॉली, तुम ऑफिस जाओगी आज?"- मैंने पूछा।
"नहीं नहीं, मैं कल ऑफिस जाऊँगी।'- उसने जवाब दिया।
"ओके, तो अभी सीधा घर?"- मैंने पूछा।
"हाँ, घर।" उसने जवाब दिया।
"तो फिर मैं कैब बुक कर लेता हूँ; आपको मयूर विहार ड्रॉप करते हुए ऑफिस चला जाऊँगा।"- मैंने कहा।
"आपका ऑफिस तो नोएडा सेक्टर-18 में है न... आपको प्रॉब्लम तो नहीं होगी न?" डॉली ने कहा।
"नहीं नहीं, मुझे क्या प्रॉब्लम होगी।”- मैंने कहा। बस, आनंद बिहार पहुंच चुकी थी। मैंने फोन से एक कैब बुक कर ली थी। सफर खत्म हो चुका था। सुकून भरे ऋषिकेश से हम भागती-दौड़ती दिल्ली में उतर चुके थे। पाँच मिनट में कैब भी आ गई थी। शीतल का भी फोन आ चुका था। वो ऑफिस पहुँच चुकी थीं।
"चलो डॉली, कैब आ गई है।"- मैंने कहा।
'ओके।'
“भैय्या, मयूर विहार होते हुए सेक्टर-18 नोएडा चलना है।"- मैंने कैब में बैठते हुए कहा।
"जी सर।"- कैब ड्राइवर ने कहा।
"तो राज, कब मिलेंगे हम दोबारा?"- डॉली ने पूछा।