फिर भी मैं दिल और जान से ज्यादा प्यार करने लगा था उन्हें । उनके दिल की हर बात को पूरा करने के लिए मैं पागलपन की हद तक चला जाता था और आज भी चला जाता
शीतल कहती थीं, “राज, आप जानते हैं कि आपके और हमारे बीच कभी कोई रिश्ता नहीं बन पाएगा; हम शादी नहीं कर पाएंगे आपसे, हम जिंदगी नहीं बिता पाएंगे आपके साथ... फिर भी आप हमें इतना प्यार कर रहे हैं, क्यों? आपको डर नहीं लगता ये सोचकर, कि एक दिन सब खत्म हो जाएगा?"
"शीतल, बो प्यार ही क्या, जो ये सोचकर किया जाए कि क्या हाथ आएगा। पता है,
प्यार कितना अंधा है, ये तो तब ही पता चलता है, जब आपको ये पता हो कि आपके हाथ कुछ भी नहीं आएगा और आप पाने की उम्मीद छोड़कर प्यार करते हैं। कुछ रास्ते किसी मंजिल की ओर नहीं जाते हैं; बस शहरों के बीच से गुजर जाया करते हैं। और ऐसे रास्तों पर चलने का अलग मजा है। ये रास्ते आपको जीवन के अनुभव और कुछ यादगार पल दे देते हैं।"- मैंने कहा था।
हम दोनों ने अपने प्यार और रिश्ते के ऊपर 'दोस्ती' नाम का ऐसा कबर चढ़ा दिया था, जो न उन्हें पसंद था और न मुझे; लेकिन हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए इसके अलावा कोई और नाम नहीं था। हम दोनों के दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार भरा था, लेकिन उसे दुनिया के सामने स्वीकार करना किसी के बस में नहीं था, शायद इसीलिए हमने यह तय कर लिया था कि हम सिर्फ अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे।
बात करते-करते जब कभी मैं उनकी आँखों में देखकर दिल से जुड़ी कोई बात करता था, तो शीतल का जवाब तुरंत आता था, "राज, हम सिर्फ दोस्त हैं।" और इतना कहने के साथ वो अपनी आँखें चुरा लेती थीं और मुस्करा देती थीं।
हम दोनों प्यार का इजहार कर चुके थे, लेकिन आज तक एक-दूसरे को कभी छुआ तक नहीं था...आज तक शीतल से हाथ भी नहीं मिलाया था। शीतल ने रात में बात करते हुए कहा था, "आपने कभी हाथ नहीं मिलाया हमसे।"
रात से लेकर अगले दिन ऑफिस पहुँचने तक मैं उस पल का इंतजार कर रहा था, जब मैं शीतल की तरफ अपना हाथ बढ़ाऊँ और उनके हाथ को अपने हाथ में लूँ।
ऑफिस पहुँचकर शीतल को चाय के लिए मैसेज किया ही था, कि तुरंत उनका रिप्लाई आया, "या, कम इन कैंटीन।"
मैं दौड़कर कैंटीन पहुँचा। शीतल, कैंटीन के बाहर ही मेरा इंतजार कर रही थीं। उन्हें देखकर जैसे-जैसे मेरे कदम उनकी तरफ बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे धड़कन बढ़ती जा रही थीं। शीतल के चेहरे पर भी एक अजीब-सी खुशी थी। उनके करीब पहुँचते ही उनके चेहरे पर मुस्कराहट छा गई थी और उनकी नजरें शर्म से झुक गई थीं।
"हाय, शीतल!"- मने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा था।
उन्होंने एक झटके से अपना झुका हुआ चेहरा ऊपर उठाया और मेरी आँखों में देखा। मेरा हाथ अभी भी उनकी तरफ बढ़ा हुआ था। शीतल धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ा रही थीं। जैसे ही उनका हाथ थोड़ा-सा आगे आया, मैंने उसे अपने हाथ से थाम लिया था। कितना नाजुक था उनका हाथ। लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे का हाथ अपने हाथ में ले लिया हो। पहली बार मैंने शीतल को छुआ था। पहली बार किसी लड़की का हाथ पकड़ने पर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे।
शीतल का हाथ अभी भी मेरे हाथ में था। मैं अभी तक उस सुखद अहसास की दुनिया में था। मेरे दिल और दिमाग के बीच संपर्क खत्म हो चुका था। मैं भूल गया था कि हम ऑफिस की छत पर हैं। शीतल अपना हाथ खींच रही थीं, पर मैं उनका हाथ नहीं छोड़ना चाहता था। ये कोमल-सा हाथ जो मेरे हाथ में था, इसे उमर भर के लिए बस पकड़ लेना चाहता था।
आज भी दिन की शुरूआत हमेशा की तरह ही हुई थी। खिड़की से आने वाली चमकीली रोशनी को सबसे पहले देखना अब मुझे अच्छा नहीं लगता था। मुझे तो बस अच्छा लगता था कि शीतल के फोन से मेरे दिन की सुबह हो।
उठने के बाद हर काम बहुत जल्दबाजी में करने लगा था। फ्रोश होने और नहाने में केवल आधा घंटा लगता था। हाँ, तैयार होने में थोड़ा समय लगता था। ऑफिस आकर शीतल के चहकते चेहरे को देखने की उत्सुकता में ऑफिस का पैंतालीस मिनट का रास्ता कब कट जाता था,पता ही नहीं चलता था।
आज भी ऑफिस पहुँचकर शीतल को चाय के लिए मैसेज किया था। कुछ देर इंतजार किया, लेकिन रिप्लाई नहीं मिला था।
थोड़ी देर बाद शीतल का मेल मेरे इनबॉक्स में था। राज! हमने बहुत सोचा कल हमारे बारे में। देखिये, जिस तरह हम चल रहे हैं, उस तरह आगे चलकर काफी परेशानी में पड़ जाएंगे। आपमें और हममें उम्र के साथ काफी चीजों का अंतर है और बहुत जरूरी है उसे समझना।।
अभी आपकी जिंदगी शुरू होनी है और हमारी बीत चुकी... काफी हद तक। कुछ पा नहीं पाएंगे हम। आज जो छोटी-छोटी चीजें खुशी दे रही हैं, वही आगे चलकर बहुत दुःख देंगी। सही वक़्त पर रुकना बहुत जरूरी है।
मेरी जिंदगी में बहुत कुछ हो चुका है और हो रहा है। काफी जिम्मेदारियाँ हैं मेरे ऊपर। एक बार फिर भावनाओं के लिए न तो समय है और न जरूरत। भूल गई थी ये सब-कुछ, मेरी गलती है बो।
चंडीगढ़ बहुत खूबसूरत था...हर पल याद आएगा। पर...
वो वक़्त बीत चुका है... लौटकर नहीं आएगा; हमें भी हकीकत में आना चाहिए, सपनों की दुनिया से बाहर।
माफ कीजियेगा, पर हमारी शुभकामनाएँ हैं आपके साथ...आपके भविष्य के लिए।"
नेहा के इस मेल का खयाल भी नहीं था मेरे दिमाग में। मेल पढ़कर मैं हिल गया था। मैंने बस रिप्लाई किया था
"मुझे नहीं पता कि आप क्या कर रही हैं। लेकिन जो कर रही हैं वो मेरी समझ में नहीं आ रहा है। एकदम से ये सब हुआ, मुझे उम्मीद ही नहीं थी इसकी तो। आपका मेल पढ़ने के बाद बस रोए जा रहे हैं। आप सच में बहुत अच्छे हैं। मुझे नहीं पता कि हमारा रिश्ता कहाँ तक जाना चाहिए... बस इतना पता है कि प्यार करने लगे हैं आपको। आपके बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे हमारी सबसे प्यारी चीज हमसे दूर हो गई एक पल में। पलक झपकते ही हमने सब-कुछ खो दिया। दिल बैठा जा रहा है ये सोचकर कि क्या हुआ ये?
हम सच में प्यार करने लगे हैं आपको।" शीतल ने भी मेरी बात का रिप्लाई मेल में ही दिया था "राज,
नहीं पता आपने हमें सही समझा या ग़लत; पर यकीन मानिए, रात भर बहुत रोये हैं हम। हिम्मत नहीं है आपका सामना करने की, इसीलिए लिख भर दिया।
हर शब्द बहुत मुश्किल था। शब्दों में बयां करना उससे भी अधिक मुश्किल । हम आपसे छह साल बड़े हैं।
हाँ, आपसे बहुत कुछ कहना है...बहुत कुछ सुनना है...बात करनी है आपसे एक बार। राज, हम टूट रहे हैं... मर रहे हैं; समझ नहीं आ रहा क्या करें?
बस इसमें आपकी भलाई है...यही सोचकर कर रहे हैं। क्या हम दोस्त भी नहीं बन सकते हैं?" शीतल ने प्यार खत्म कर दोस्ती करने की बात कही थी। वो बात करना चाहती थीं। मैं सब-कुछ खत्म होने से डर गया था। आज पहली बार इस बात का अहसास उन्होंने मुझे कराया था कि मैं जो कर रहा हूँ वो गलत है। फिर भी उनसे बात करने का मन था।
दोपहर को ऑफिस की छत पर मैंने उन्हें मिलने बुलाया था। शीतल हमारे प्यार की तमाम शर्ते और अपनी मजबूरियाँ मुझे गिना रहीं थीं। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। मैं रो न दे, इसलिए उनकी आँखों में देख भी नहीं सकता था। बस ये कह कर चल दिया...हम दोस्त हैं आज से।
शीतल नीचे तक साथ आना चाहती थीं। हम दोनों एक साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गए थे। शीतल, लिफ्ट में हाथ मिलाना चाहती थीं और मैंने अपने दोनों हाथ अपने दराउजर के पॉकेट में कर लिए थे। बिना एक-दूसरे की तरफ देखे, हम अकेले लिफ्ट में थे और नीचे आ गए।
एक पल के लिए भी ये बुरा खयाल दिल और दिमाग से निकल ही नहीं रहा था। कुछ देर बाद शीतल का एक और मेल था
"आज लिफ्ट में बहुत कुछ था मन में। आपकी बाँहों में छप जाना चाहती थी, आँख बंद कर आपको गले लगाकर कुछ आँसू बहाना चाहती थी; आपकी झकी नज़रों में खुद को तलाशना चाहती थी, आपका हाथ थाम कर आँसू पोछना चाहती थी। आपके गाल पर हाथ रख कर इजहार करना चाहती थी। पर... आपकी झुकी नज़रों ने हमें रोक-सा लिया। लगा, हमें ये गुस्ताखी करने का हक नहीं है। आपके बिना रुके चले जाने से लगा, शायद आपने वो सुना ही नहीं, जो हम कह गए।
आज खुद से नज़रें भी नहीं मिला पा रहे हैं। आपके हर आँसू के लिए खुद को कोस रहे हैं। क्यों नजदीकी बढ़ाते गए? क्यों खुद को रोक नहीं पाए?
इसकी सजा हम खुद को देंगे...आपसे दूर रहकर।
जानते हैं कि आप हमें दोस्त नहीं बनाएंगे। आपका चेहरा, बात करने का तरीका; सब बता गया आज। शायद वो हमारी मजा भी होगी।
माफ कीजियेगा हमें राज जी।" लिफ्ट से आते हुए शीतल ने आज कहा था- “आई लव यू"
शायद वो नहीं जानती थीं कि में उनसे दर नहीं रह पाऊँगा... उनके लिए प्यार कभी कम नहीं होगा। मैंने खुद को बस इस तरह समझाया था कि तूफान आते हैं, चले जाते हैं;
मुश्किलें आती हैं और लोग पारहो जाते हैं।
शायद थोड़ी देर बाद हमारे रिश्ते की एक नई शुरुआत होगी।
बस, ढाबे से दिल्ली के लिए रवाना हो चुकी थी। कहानी सुनते-सुनते डॉली भी भावुक हो गई थी।
"आगे बताओ न राज ...फिर क्या हुआ?"- डॉली ने आँसू पोंछते हए कहा। पता है डॉली; प्यार और रिश्तों में अनबन बहुत जरूरी है। अनबन, रिश्तों और प्यार में रिनोवेशन का काम करती है। शीतल और मेरे रिश्ते में भी हम एक दिन की अनबन ने रिनोवेशन का काम किया था। जो शीतल, सब कुछ खत्म करने का मन बना चुकी थीं, उन्हें मैंने रोक लिया था। उन्होंने रिश्ता तोड़ने का इरादा बदल दिया था।
रात एक बार फिर रोते हुए गुजरी थी। अगले दिन चाय की टेबल पर हम दोनों एक दूसरे से नजरें मिला रहे थे और चुरा रहे थे।
हकीकत ये थी कि हम दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को छोड़ना नहीं चाहता था।
"शीतल, आज शाम को क्या आप मुझे इराप कर देंगी?" - मने कहा था।
'कहाँ?'- उन्होंने चौंकते हुए पूछा था।
"रास्ते में।"- मैंने जवाब दिया था।
"क्यूँ भई?"- उन्होंने पूछा था।
"ठीक है, रहने दीजिए, हम चले जाएँगे।"- मैंने जवाब दिया।
“अरे, मतलब कि, चलिएगा?"- उन्होंने कहा था।
'ओके - मैंने कहा था।
“पर जरा टाइम से निकलना, जल्दी चलेंगे।" उन्होंने कहा। 'हाँ- मैंने कहा।
आज शाम पहली बार शीतल के साथ स्कूटी पर जाना था। शाम के उस सफर के बारे में सोचकर मेरा दिल तो अभी से भाँगड़ा करने लगा था। इतनी खुशी थी कि काम ही नहीं हो पा रहा था। बस दिल चाहता था कि जल्दी से शाम हो और मैं शीतल के साथ स्कूटी पर निकल जाऊँ। आखिरकार एक-एक घड़ी इंतजार के बाद शाम के छह बज गए थे। निकलने के लिए शीतल का मैसेज आ चुका था। हम दोनों पार्किंग की तरफ साथ-साथ चल रहे थे। दोनों के चहरे पर हल्की-सी मुस्कराहट थी और दोनों ही इस मुस्कराहट को छिपाने की कोशिश कर रहे थे।
“राज, स्कूटी आप ड्राइब कीजिएगा?" - शीतल ने कहा था। 'क्यों?'- मैंने पूछा।
"नहीं, आप ही चलाइएगा, बस ऐसे ही।" उन्होंने कहा था।
“रिस्क है आपको पीछे बिठाने में।"- शीतल ने बहुत धीरे कहा था।
"क्या कहा आपने?'- मैंने पूछा।
"कुछ नहीं; कुछ सुना आपने?" - शीतल ने बिलकुल बच्चों की तरह पूछा था।
"नहीं, कुछ नहीं।"- मैंने कहा। आज पहली बार शीतल और मैं एक स्कूटी पर बैठकर घर जाने वाले थे। ये दिन किसी त्योहार से कम नहीं था मेरे लिए। शीतल बड़े आराम से पीछे बैठ गई थीं। उन्होंने अपना बैग हम दोनों के बीच में रखा था। वो मुझसे छ भी न जाएं, इसलिए अपने बैग को कम कर अपनी बाँहों में भर रखा था। पूरे रास्ते में और शीतल बातें करते रहे थे। जनवरी की मर्दी, दिल्ली में कहर बरपा रही थी। आज तो कैंपकपाने बाली ठंडी हवा भी चल रही थी। लेकिन इस सफर में ठंड लगने के बावजूद शीतल ने एक भी बार मुझे छुआ तक नहीं। कभी ब्रेक लगने पर भी बो मेरे पास नहीं आई थीं और मैं रास्ते भर उनका हाथ अपने कंधे पर आने का इंतजार ही करता रहा। सफर खत्म हो गया था। शीतल मुझे छोड़कर जाने वाली हाँ, जाते हुए उन्होंने ये जरूर पूछा था, “क्या मिला आपको स्कूटी पर साथ आकर?"
“जो प्यार करते हैं, बो कहाँ सोचते हैं कि कुछ मिले; हर इनवेस्टमेंट रिटर्न के लिए थोड़ी न होता है।''- मैंने जवाब दिया।
मेरे इस जवाब के जवाब में शीतल बस मुस्करा दीं।
उन्हें गुडबॉय बोलकर मैं अपने रास्ते चल दिया था। लेकिन उनकी इस बात का जवाब मेरे दिल में था। अगले दिन जब शीतल मिली, तो मैंने कहा