desiaks
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बालकनी में लेटे हुए, तारों को ताकते हुए रात गुजरी थी। दो बजे शीतल को जैसे-तैसे, कसमें खिलाकर मुलाया था। उधर वो भी मेरी शादी को लेकर परेशान थीं और इधर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। बुरे खयालों ने मेरे दिमाग में डर पैदा कर दिया था। एक डर था शीतल के छूट जाने का, तो एक डर था घर वालों से दूर हो जाने का।
साफ था, अगर मैं शीतल के साथ जिंदगी बिताने का फैसला करता है, तो घर से अलग होना पड़ेगा और अगर पापा की मर्जी से शादी करता हूँ, तो शीतल को अकेला छोड़ना पड़ेगा।
आज जिस हालत में शीतल हैं, उस हालत में मैं उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ सकता हूँ। दिन चढ़ चुका था। हर तरफ चहल-पहल होने लगी थी। आज मौसम भी साफ था। धूप निकलने को बेताब थी। मैं इसी असमंजस में था कि पापा को कल्न बुलाऊँ या मना कर दें। इसी सोच-विचार में कब आठ बज गए पता ही नहीं चला। मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था, जहाँ से दो रास्ते जाते थे; मुझे किसी एक रास्ते को चुनना था। लेकिन मैं एक रास्ते को चुनकर भी दोनों रास्तों पर अपना अधिकार चाहता था, जो शायद संभव होता नहीं दिख रहा था।
पापा और मम्मी की बातें दिमाग में चल रही थीं, तो शीतल के आँसू भी आँखों के सामने थे।
जब कुछ समझ नहीं आया, तो पापा को फोन मिला दिया।
"हेलो पापा!"
"हाँ राज, कैसे हो?"
"मैं ठीक है, आप कैसे हैं?"
"बस यहाँ भी सब बढ़िया है....कल्न की तैयारी है तुम्हारे पास आने की; तुम छुट्टी ले लेना कल की।"
“पापा, कल छुट्टी तो नहीं मिल पाएगी..."
"क्यों? तो फिर शाम को ऑफिस के बाद का प्रोग्राम रखते हैं। हम लोग शाम तक पहुँच जाएंगे, तुम ऑफिस के बाद आना।"
“पापा, मैं तीन दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ ऑफिस के काम से; जयपुर में इवेंट है एक।"
""राज, ये ड्रामा बंद करो; तुम्हें जब तीन दिन पहले बता दिया गया था कि लड़की वाले आएंगे, तो तुमने प्रोग्राम क्यों बना लिया जयपुर का?"- पापा ने थोड़े तल्ख मिजाज से कहा।
“पापा, तब नहीं पता था न मुझे अचानक से मुझे भेजा जा रहा है, तो क्या करूँ मैं? नौकरी वाली बात है।"
"तो अब मैं क्या करूँ? वो लोग तैयारर कर चुके हैं आने की।"
"पापा मुझे क्या पता...मुझे बस इतना पता है कि मैं तीन दिन के लिए जयपुर जा रहा हूँ इवेंट कराने।"
"तो फिर उन लोगों से मैं संडे के लिए कह दूं?"
"देखिए पापा, मैं अभी कुछ बता नहीं सकता हूँ संडे का भी...मंडे को शायद मुंबई जाना पड़े मुझे।" __
“देखो राज, तुम चराने की कोशिश मत करो हमें...पचास साल की उम्र हो गई है हमारी भी...दुनिया देखी है हमने ; तुम ये बताओ कि तुम्हें शादी करनी है या नहीं?"
“पापा मैं कोई चरा नहीं रहा हूँ आपको; बस मुझे अभी शादी नहीं करनी है...थोड़ा-मा समय चाहिए, आप लोग समझते क्यों नहीं हैं?"
"देखो राज, समझ तो तुम नहीं रहे हो..हम भी चाहते हैं कि तुम्हारी शादी हो, धूमधाम से हो, तुम्हारे बच्चों को खिलाएँ हम, घर में चहल-पहल बढ़े... पर तुम्हारे दिमाग में पता नहीं क्या भूत सवार है।"- पापा ने गुस्से से कहा।
“पापा, सारे काम होंगे, पर समय से होंगे; इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं।"
"ठीक हैतुम जानो,तुम्हारा काम जान...म उन लोगों से मना कर देता हःपर एक बात जान लो, ये बेइज्जती है हमारी...अब हमसे बात करने की जरूरत नहीं है, तुम अपना देख लो हिसाब-किताब।"- पापा ने कहा और माँ को फोन दे दिया।
"राज, क्या है बेटा ये सब; अब तुमको अचानक जयपुर जाना है?"
"मम्मी नौकरी है, कभी भी जाना पड़ सकता है...कल ही पता चला कि जाना है, अब क्या कर मैं?"
“अब बेटा मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता है....इधर तेरे पापा टेंशन करते हैं, उधर तुम टेंशन दे देते हो।"
“मम्मी बेवजह की टेंशन है न ये... शादी-शादी-शादी; इतनी जल्दी क्या है शादी की? अभी मैं इस बारे में कोई फैसला लेने की हालत में नहीं हूँ।"
"राज, क्या बात है, मुझे तो बताओ; कोई लड़की पसंद है क्या तुम्हें? देखो, साफ साफ बता दोगे तो कुछ हल निकलेगा, वरना बात बढ़ती ही जाएगी।"
"मम्मी अभी मैं कुछ भी नहीं बता सकता हूँ; बहुत टेंशन में हूँ शादी के मामले में।"
साफ था, अगर मैं शीतल के साथ जिंदगी बिताने का फैसला करता है, तो घर से अलग होना पड़ेगा और अगर पापा की मर्जी से शादी करता हूँ, तो शीतल को अकेला छोड़ना पड़ेगा।
आज जिस हालत में शीतल हैं, उस हालत में मैं उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ सकता हूँ। दिन चढ़ चुका था। हर तरफ चहल-पहल होने लगी थी। आज मौसम भी साफ था। धूप निकलने को बेताब थी। मैं इसी असमंजस में था कि पापा को कल्न बुलाऊँ या मना कर दें। इसी सोच-विचार में कब आठ बज गए पता ही नहीं चला। मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था, जहाँ से दो रास्ते जाते थे; मुझे किसी एक रास्ते को चुनना था। लेकिन मैं एक रास्ते को चुनकर भी दोनों रास्तों पर अपना अधिकार चाहता था, जो शायद संभव होता नहीं दिख रहा था।
पापा और मम्मी की बातें दिमाग में चल रही थीं, तो शीतल के आँसू भी आँखों के सामने थे।
जब कुछ समझ नहीं आया, तो पापा को फोन मिला दिया।
"हेलो पापा!"
"हाँ राज, कैसे हो?"
"मैं ठीक है, आप कैसे हैं?"
"बस यहाँ भी सब बढ़िया है....कल्न की तैयारी है तुम्हारे पास आने की; तुम छुट्टी ले लेना कल की।"
“पापा, कल छुट्टी तो नहीं मिल पाएगी..."
"क्यों? तो फिर शाम को ऑफिस के बाद का प्रोग्राम रखते हैं। हम लोग शाम तक पहुँच जाएंगे, तुम ऑफिस के बाद आना।"
“पापा, मैं तीन दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ ऑफिस के काम से; जयपुर में इवेंट है एक।"
""राज, ये ड्रामा बंद करो; तुम्हें जब तीन दिन पहले बता दिया गया था कि लड़की वाले आएंगे, तो तुमने प्रोग्राम क्यों बना लिया जयपुर का?"- पापा ने थोड़े तल्ख मिजाज से कहा।
“पापा, तब नहीं पता था न मुझे अचानक से मुझे भेजा जा रहा है, तो क्या करूँ मैं? नौकरी वाली बात है।"
"तो अब मैं क्या करूँ? वो लोग तैयारर कर चुके हैं आने की।"
"पापा मुझे क्या पता...मुझे बस इतना पता है कि मैं तीन दिन के लिए जयपुर जा रहा हूँ इवेंट कराने।"
"तो फिर उन लोगों से मैं संडे के लिए कह दूं?"
"देखिए पापा, मैं अभी कुछ बता नहीं सकता हूँ संडे का भी...मंडे को शायद मुंबई जाना पड़े मुझे।" __
“देखो राज, तुम चराने की कोशिश मत करो हमें...पचास साल की उम्र हो गई है हमारी भी...दुनिया देखी है हमने ; तुम ये बताओ कि तुम्हें शादी करनी है या नहीं?"
“पापा मैं कोई चरा नहीं रहा हूँ आपको; बस मुझे अभी शादी नहीं करनी है...थोड़ा-मा समय चाहिए, आप लोग समझते क्यों नहीं हैं?"
"देखो राज, समझ तो तुम नहीं रहे हो..हम भी चाहते हैं कि तुम्हारी शादी हो, धूमधाम से हो, तुम्हारे बच्चों को खिलाएँ हम, घर में चहल-पहल बढ़े... पर तुम्हारे दिमाग में पता नहीं क्या भूत सवार है।"- पापा ने गुस्से से कहा।
“पापा, सारे काम होंगे, पर समय से होंगे; इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं।"
"ठीक हैतुम जानो,तुम्हारा काम जान...म उन लोगों से मना कर देता हःपर एक बात जान लो, ये बेइज्जती है हमारी...अब हमसे बात करने की जरूरत नहीं है, तुम अपना देख लो हिसाब-किताब।"- पापा ने कहा और माँ को फोन दे दिया।
"राज, क्या है बेटा ये सब; अब तुमको अचानक जयपुर जाना है?"
"मम्मी नौकरी है, कभी भी जाना पड़ सकता है...कल ही पता चला कि जाना है, अब क्या कर मैं?"
“अब बेटा मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता है....इधर तेरे पापा टेंशन करते हैं, उधर तुम टेंशन दे देते हो।"
“मम्मी बेवजह की टेंशन है न ये... शादी-शादी-शादी; इतनी जल्दी क्या है शादी की? अभी मैं इस बारे में कोई फैसला लेने की हालत में नहीं हूँ।"
"राज, क्या बात है, मुझे तो बताओ; कोई लड़की पसंद है क्या तुम्हें? देखो, साफ साफ बता दोगे तो कुछ हल निकलेगा, वरना बात बढ़ती ही जाएगी।"
"मम्मी अभी मैं कुछ भी नहीं बता सकता हूँ; बहुत टेंशन में हूँ शादी के मामले में।"