Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन - Page 6 - SexBaba
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Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन

अजय भैया: मानु भैया मुझे माफ़ कर दो!
मैं: भैया ऐसा मत बोलो! मैं जानता हूँ आपने जो भी किया वो अपने मन से नहीं बलिक दबाव में आ के किया और मेरे मन में ना आपके प्रति और ना घर के किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई बुरा भाव है, सिवाय उस एक इंसान के और वो है चन्दर! अगर वो मेरे परिवार के आस-पास भी भटका ना तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा! उसने मेरे परिवार को बहुत क्षति पहुंचाई है और इस बार तो मैं सह गया पर अब आगे कुछ नहीं सहूँगा!
अजय भैया: मानु भैया आप शांत हो जाओ ...मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा की उन्हें शहर ना आने दूँ| आप चिंता मत करो!
रसिका भाभी: मानु भैया आप मुझसे नाराज हो?
मैं: नहीं तो!
रसिका भाभी: जो भी हुआ उसके लिए मैं बहुत शरमिन्दा हूँ!
मैं: भूल जाओ उस सब को भाभी....मैं भी भूल चूका हूँ| मुझे आप दोनों को एक साथ देख के बहुत ख़ुशी हो रही है| मैं भी यही चाहता था|
रसिका भाभी: भैया दीदी कैसी हैं?
मैं: ठीक हैं....आजकल बहुत चिंतित हैं| उस दिन जो हुआ उससे उनका मन बहुत दुखा है!
रसिका भाभी: आप उनका अच्छे ख्याल रख ही रहे होगे| उनसे कहना की जो हुआ उसे भूलने की कोशिश करें| धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा!
मैं: मैं भी यही उम्मीद करता हूँ! और अजय भैया मैं अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश कर रहा हूँ पर आप भी कोशिश करो की हम सब फिर से एक हो जाएं! रही बात पंचायत की तो? मैं उसे भी देख लूँगा! आप बस कोशिश करो की बड़के दादा का मन बदले!
अजय भइया: मैं भी पूरी कोशिश कर रहा हूँ भैया! पर थोड़ा समय लगेगा! अम्मा आप को बहुत याद करती हैं!
मैं: मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ! अच्छा एक बात तो मैं आप लोगों को बताना ही भूल गया! संगीता माँ बनने वाली है!
रसिक भाभी: क्या? सच? (उनके मुख पे ख़ुशी झलक आई थी और ठीक वैसी ही ख़ुशी अजय भैया के मुख पे भी थी|)
मैं: हाँ! दो महीने से प्रेग्नेंट हैं वो!
रसिका भाभी: भैया अब तो आपको उनका और भी ज्यादा ख्याल रखना होगा|
मैं: हाँ
अजय भैया: भैया ये तो आपने बहुत ही ख़ुशी की खबर सुनाई...मैं अम्मा से जर्रूर बताऊँगा|
मैं: भैया अगर हो सके तो मेरी एक बार उनसे बात करा देना| छुप के..अकेले में ये कैसे भी...उनकी आवाज सुनने को कान तरस गए हैं!
अजय भैया: जर्रूर भैया अब तो फ़ोन करना बनता है| मैं जर्रूर बात कराऊँगा|
मैं: ओरे छोट साहब आप.....स्कूल जाते हो ना?
वरुण: हम्म्म.... आपकी कहानियाँ बहुत याद आती हैं!
मैं: Awwwwwww ...... मेरा बच्चा! बेटा आप अपने मम्मी पापा के साथ मेरे घर आना मैं आपको रोज कहानी सुनाऊँगा ठीक है?
वरुण: हम्म्म! (और हाँ में सर हिलाया)
अजय भैया: मानु भैया चाचा?
मैं: वो आपसे या किसी से नाराज नहीं हैं! देखो अगर आप कभी भी शहर आये तो हम से मिलना, हमारे पास ही ठहरना और अगर अछा लगे तो हमारे साथ काम भी करना|
अजय भैया: सच भैया?
मैं: मैं झूठ क्यों बोलूँगा! अच्छा मैं अब चलता हूँ फ्लाइट मिस हो जाएगी!
रसिका भाभी: भैया दीदी को मेरा प्यार देना!
अजय भैया: और चाचा-चाची को हमारा प्रणाम!
मैं: जी जर्रूर!
मैं वहाँ से निकला पर समय पे एयरपोर्ट नहीं पहुँच पाया और फ्लाइट छूट गई| इधर उसी समय संगीता का फोन आया;
मैं: Hello !
संगीता:Muuuuuuaaaaaaaahhhhhhhh !
मैं: Oh GOD! इतना बड़ा muah?
संगीता: कितने बजे पहुँच रहे हो?
मैं: Sorry यार एक दिन और लगेगा!
संगीता: क्या? पर आपने कहा था की आप आज रात को आ जाओगे? मैं आपसे बात नहीं करुँगी!
मैं: Awwwwwww .... बाबू कल पक्का आ जाऊँगा!
पर वो नहीं मानी! मैं खुश था की आज उन्होंने इतना खुल के मुझसे बात की पर flight मिस हो चुकी थी| तो मेरे पास अगला ऑप्शन था रेल या बस? तो मैंने रेल का ऑप्शन लिया! तत्काल में टिकट कटाई और सारे रास्ते हिलते-हिलते सुबह lucknow mail से दिल्ली पहुँचा! घर आके मैं नार्मल रहा और किसी को भी पंचायत वाली बात नहीं बताई और किसी को शक भी नहीं हुआ! पर मेरा दिल कह रहा था की संगीता को अब भी चैन नहीं मिला और ना ही कभी मिलेगा| उसे अंदर ही अंदर आयुष को लेके डर है और मुझे कैसे भी ये डर उसके दिल से मिटाना था| मैं court में case फाइल नहीं कर सकता था वरना उनके divorce के चक्कर में फंस जाता| क्योंकि Divorce मिलने में कम से कम डेढ़ साल लगता है और इस दौरान applicant शादी नहीं कर सकते| तो अगर मैंने case file किया होता तो मैं और पचड़े में पड़ जाता| पुलिस में इसलिए नहीं जा सकता था क्योंकि वहाँ भी कभी न कभी divorce की बात निकल ही जाती और मामला उल्टा पड़ जाता| ये तो खुशकिस्मती है की उस इंस्पेक्टर ने papers पढ़ने के बाद ज्यादा detail नहीं माँगी और सतीश जी ने बात संभाल ली| मुझे कुछ ऐसा सोचना था की मैं संगीता को इस डर के जंगल में से निकाल लूँ| इसका हल जो मुझे नजर आया वो ये था..................................................................
 
7 जनवरी को मैं मुंबई निकल आया ये बहाना करा के की मुझे कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए बुलाया गया है| संगीता ने आपको बताया होगा की मैं मुंबई गया हूँ ...तो ये तब की बात है! असल में मेरा एक दोस्त मुंबई में एक MNC में JOB करता था और वहाँ उसकी अच्छी जान पहचान थी| मैंने उससे कहा की वो मुझे India से बाहर जॉब दिलवा दे ताकि मैं संगीता और बच्चे बाहर चले जाएं| जानता हूँ अपने माता-पिता से दूर होने में दर्द बहुत होता पर कम से कम कुछ साल बाद जब आयुष कुछ बड़ा हो जाता तो मैं India वापस आ जाता| मेरे पास एक और रास्ता था की मैं पिताजी से कहूँ की वो अपना सारा business बंद कर दें और हम बाहर settle हो जाएं| पर माँ और पिताजी इसके लिए कभी राजी नहीं होते| उनके लिए नए देश में जाके adjust करना मुश्किल था| इसलिए मैंने ये Job वाला आईडिया choose किया| मेरे दोस्त ने मुझे यकीन दिलाया की वो मुझे Dubai में पोस्टिंग दिल देगा| पर कुछ कागजी करवाई के लिए उसे मेरा और संगीता का पासपोर्ट चाहिए और साथ ही साथ बच्चों का भी| मेरा पासपोर्ट तो तैयार था पर ना तो संगीता का पासपोर्ट था और न ही बच्चों का! तो मैंने उससे passport बनाने के लिए समय माँगा और उसने मुझे समय दे भी दिया| मैं दिल्ली वापस आ गया| अब समय था बात खोलने का...........................................
मैं अपना लैपटॉप ले के हॉल में बैठा था और online Passport aaplication का page खोल रखा था| मैंने माँ और पिताजी को और साथ-साथ संगीता को भी बिठाया| बच्चे स्कूल गए हुए थे और मैं उनके स्कूल जाके Principal, Class Teacher, Watchman सब से बात कह के आया था की मेरे या मेरी wife के आलावा वो किसी के साथ भी बच्चों को ना जाने दें| अगर मेरी जगह मेरे पिताजी या माँ आते हैं तो पहले मुझे call करें और अगर मैं हाँ कहूँ तब ही बच्चे को उनके साथ जाने दें| मैंने सारी बात घरवालों को बता दी....पंचायत से ले के दुबई जाने तक की सारी बात! सबने बात बड़े इत्मीनान से सुनी और मैं अबसे पहले पिताजी के मन की बात जानना चाहता था तो मेरी नजर उनपे थी;
पिताजी: बेटा...तू ने मुझे बताया क्यों नहीं की गाँव में पंचायत रखी गई है? मुझे जाना चाहिए था!
मैं: पिताजी मेरी वजह से आपको पहले ही बहुत तकलीफें उठानी पड़ रही हैं और वैसे भी कारन तो मैं था ना तो मुझे ही जाना चाहिए था|
पिताजी: तू सच में बड़ा हो गया है...अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगा है| खेर बेटा बहु को खुश रखना जर्रुरी है, उसके दिल से डर खत्म करना बहुत जर्रुरी है और मैं या तेरी माँ तुझे नहीं रोकते बल्कि अच्छा है की तू settle हो जाये|
माँ: हाँ बेटा! तुझे इस परिवार को सम्भलना होगा! ख़ास कर बहु को और बच्चों को!
मैं: जी!
संगीता: मैं कुछ बोलूँ?
माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!
संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी? और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के!
मैं: क्योंकि मैं आपको इस तरह डरा हुआ नहीं देख सकता| 24 घंटे आपको एक ही डर सता रहा है की आयुष चला जायेगा? इन कुछ दिनों में मैंने आपको जितना तड़पते हुए देखा है उसे मैं बयान नहीं कर सकता| इस डर ने आके मुँह से हंसी तक छीन ली, घर से सारी खुशियाँ छीन ली| अरे आपके मुँह से चंद प्यार के मीठे बोल सुनने को तरस गया था मैं! जिस संगीता से मैं प्यार करता था वो तो कहीं चली गई और जो बच गई वो मेरे लिए अपने प्यार को बाहर आने ही नहीं देती| ठण्ड में कंपकंपाते हुए देखते हो पर आगे बढ़ के मुझे गले नहीं लगा सकते और पिछले कुछ दिनों में मुझे बस प्यार की कुछ बूंदें ही नसीब हुई हैं! अब आप ही बताओ आपके डर को भागने के लिए ये उल-जुलूल हरकतें ना करूँ तो क्या करूँ!
संगीता रोने लगी और उन्हें रोता हुआ देख मेरा दिल भी पसीज गया और मेरी आँखें भी छल-छाला उठीं पर फिर उन्होंने खुद को संभाला और बोली;
संगीता: आप....आप सही कह रहे हो....मैं घबराई हुई हूँ पर ......मैं इतनी स्वार्थी नहीं की सिर्फ अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ| पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको बहुत दुःख पहुँचाया है| आपको बहुत तड़पाया है........ पर I PROMISE मैं अब बिलकुल नहीं डरूँगी और ख़ास कर अब जब आपने पंचायत में सारी बात साफ़ कर दी है| Please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो!
वो अब भी रो रही थीं और माँ उन्हें अपने सीनेसे लगा के चुप करने लगीं|
माँ: बहु तुझे नहीं जाना तो मत जा कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा तेरे साथ! ये तो बस तुझे इस तरह नहीं देख सकता इसलिए ये इतना सब कुछ कर रहा है| तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो ये तड़प उठता है तो तुझे इस तरह डरा हुआ कैसे देख सकता है| ये सब मानु सिर्फ तेरे और तेरे होने वाले बच्चे के लिए कर रहा है|
मैं: Okay ! हम कहीं नहीं जा रहे|
 
नमस्ते दोस्तों
आज बहुत समय बाद मैं आप सब से जुड़ रही हूँ| बहुत कुछ है जो मैं आप सब से साँझा करना चाहती हूँ| इन कुछ दिनों में बहुत कुछ हुआ...मेरे पिताजी की मृत्यु से ले के मेरे बड़े भाई साहब के अचानक प्रकट होने तक!
पिताजी की मृत्यु की खबर इन्हें (मेरे पति) को सबसे पहले मिली| माँ ने उन्हें फोन करके हिदायत दी की वे मुझे लेके गाँव ना आएं| उसका कारन भी उन्होंने स्पष्ट बताया की गर्भवती स्त्रियाँ और वो जिनकी नई-नई शादी होती हैं उन्हें ऐसे दुयखद प्रयोजनों से दूर रखा जाता है| इस "वाहियात" कारण को ना तो मैं ओर ना ही ये मानते हैं| हालाँकि मेरे सास-ससुर ने भी इन्हें रोक पर सब के खिलाफ जाते हुए इन्होने मुझे सारी बात बताई| एक पुत्री का पिता के प्रति जो लगाव जो प्यार होता है उसे आंकने नामुमकिन है| जब मुझे ये खबर इन्होने सुनाई तो मेरा रो-रो कर बुरा हाल था| मेरे कुछ कहने से पहले ही इन्होने मुझे कहा की; "सामान तैयार है, tickets बुक हैं हम अभी निकल रहे हैं|" एक पल के लिए मैं हैरान थी की इन्होने ये सब कैसे? हम घर से सीधा हवाईअड्डे पहुँचे और खचा-खच भरे हवाई जहाज से लखनऊ पहुँचे| सासु माँ और ससुर जी की टिकट नहीं हो पाई थी इसलिए वो और बच्चे रात की गाडी से आनेवाले थे| हवाई अड्डे से टैक्सी बुक की जिसने दो घंटे में हमें घर पहुँचाया| मुझे वहां देख माँ हैरान थी और दौड़ी-दौड़ी आई और मुझे अपने गले लगाया| हम बहुत रोये...बहुत ज्यादा... इतने में अनिल आया और वो आके इनके गले लगा और रोने लगा| इन्होने उसे ढांढस बंधाया और हमने अंदर प्रवेश किया और हमें वहाँ देख के एक भी व्यक्ति खुश नहीं हुआ... मेरी अपनी बहनें ..उन्हें तो मुझे देख के जैसे सांप ही सूँघ गया था! किसी ने हमसे बात नहीं की...यहाँ तक की चरण काका जो मेरे पिताजी के अच्छे दोस्त थे, उन्होंने तक हमसे कोई बात नहीं की| अनिल ने आगे बढ़ के पिताजी के मुख के अंतिम दर्शन कराये| पिताजी को देख मुझसे रुका नहीं गया और मैं जैसे तैसे उनके मृत शरीर के पास बैठ गई और बिलख-बिलख के रोने लगी| मुझे बचपन की वो सभी यादें अपनी आँखों के सामने दिखाई देने लगी...मेरा बचपन... वो पिताजी का हँसता हुआ चेहरा.... उनके चेहरे की ख़ुशी जो मेरी शादी पे थी...ये सब.... इन्होने मुझे किसी तरह संभाला| कुछ दिनों से उनकी तबियत नासाज़ थी.... मैं नसे मिलने आना चाहती थी अरन्तु पिताजी ने मुझे अपनी कसम से बाँध अखा था की आने वाले बच्चे को किसी प्रकार का कष्ट ना हो इसलिए तू ज्यादा भाग दौड़ी ना कर| शाम ढले उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और डॉक्टर को बुलवाया गया| उसने "ड्रिप" चढ़ाया परन्तु आधी रात के समय पिताजी का दिल बेचैन होने लगा...शायद उन्हें आभास हो गया था| उन्होंने माँ से बात की....और अपनी अधूरी इच्छा प्रकट की…माँ उन्हें ढांढस बन्धात् रही...किसी तरह पिताजी सो गए| जो व्यक्ति रोज सुबह चार बजे उठ जाता था वो जब छः बजे तक नहीं उठा तो माँ को चिंता हुई और वो हाल खबर पूछने आईं तो उन्हें पिताजी का शरीर ठंडा मिला| माँ पर उस समय क्या बीती होगी ये मैं सोच भी नहीं सकती| सबसे पहला फोन उन्होंने इन्हें (मेरे पति) को किया और उसके बाद अनिल को|
हमें लगा की शायद कोई और भी आनेवाला है पर वहाँ तो केवल इनका (मेरे पति) का इन्तेजार किया जा रहा था| माँ ने इनका हाथ अपने हाथों मैं लिया और कहा; "बेटा इनकी (पिताजी) की आखरी इच्छा यही थी की उनकी चिता को अग्नि तुम दो|" इन्होने कोई सवाल नहीं किया बस हाँ में सर हिलाया और जब मैंने इनकी आँखों में झाँका तो मुझे इनकी आँखों में बस अश्रु ही दिखे| जब शव को कन्धा देने की बारी आई तो मुझे उस भीड़ में एक जाना-पहचाना चेहरा दिखाई दिया| ये मेरे बड़े भाई साहब थे जिन्हें मैंने कई सालों से नहीं देखा था| उनकी याद ेरे मन में बस उसी दिन की थी जिस दिन उन्होंने घर छोड़ा था| हाँ नींद में कई बार माँ उनका नाम बड़बड़ाया करती थी... बस सिर्फ उनका नाम ही मेरे मन में था और उनके प्रति मेरा स्नेह ख़त्म हो चूका था| जब उन्हें मैंने आज देखा तो एक बार को मन किया की जाके उन्हें अर्थी से दूर खीच लूँ और वापस जाने को कहूँ पर अब मुझ में जरा भी शक्ति नहीं थी| इसलिए उनके जाने के कुछ क्षण बाद ही मैं बेहोश हो गई उसके बाद जब मुझे होश आया तो मेरे सिरहाने मेरे पति बैठे थे और मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे| जब मैं उठ के बैठी तो इनके मुंह से निकला; "Sorry"| किस लिए सॉरी बोला ये पूछने की मुझे जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि इन्होने खुद ही सच बोल दिया| दरअसल काफी साल पहले जब मन किशोरावस्था में थी तब एक दुखद घटना के कारन मेरे बड़े भाईसाहब ने घर-बार छोड़ दिया था| उस दिन के बाद पिताजी ने कभी उनका नाम तक अपनी जुबान पर नहीं आने दिया| मैं भी उन्हें लघभग भूल ही चुकी थी| और आज जब माँ ने कहा के मुखाग्नि ये (मेरे पति) देंगे तो इन्होने उस समय तो कुछ नहीं कहा परन्तु शमशान पहुँच कर इन्होने मुख अग्नि देते समय सबसे पहला हाथ बड़े भाईसाहब और उसके बाद अनिल का हाथ लगवाया और अंत में अपने हाथ से स्वयं मुखाग्नि दी| ये सुनने के बाद मैं कुछ नहीं बोली... मेरे पास शब्द ही नहीं थे की क्या कहूँ? इन्होने जो किया वो सही किया पर मन में एक सवाल था की सब कुछ जानते हुए भी क्या इन्हें बड़े भाई साहब से मेरी तरह घृणा नहीं? मेरे इस सवाल का जवाब इन्होने कुछ इस तर दिया; "उस दिन जो ही हुआ उसमें सारसर गलती बड़े भाई साहब की थी| घर छोड़ने के बाद उनपर क्या बीती ये किसी ने जानने की कोशिश तक नहीं की? आज जब अनिल ने मुझे उनसे मिलवाया तो शमशान जाने के रास्ते भर मैं उनसे ये सब पूछ बैठा| उन्हें अपनी गलती का पछतावा है और आजीवन रहेगा| पिता की मृत्यु के बाद अदा भाई बाप सामान होता है, और उसी का हक़ होता है की वो पिता को मुखाग्नि दे परन्तु जब माँ ने मुझे बताया की उनकी आखरी इच्छा ये थी की मैं उन्हें मुखाग्नि दूँ तो मैं उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता था| परन्तु सब के सामने यदि मैं आगे बढ़ के मुखाग्नि देता तो ये गात होता..इसलिए मैंने पंडित जी के हाथों से अग्नि को स्वीकार नहीं किया और बड़े भाईसाहब को बुलाके उनके हाथों में पवित्र अग्नि को थमाया उसके पश्चात अनिल को हाथ लगाने को कहा और अंत में मैंने अनिल से पवित्र अग्नि को ले पिताजी को मुखाग्नि दी| मुझे नहीं पता की मैंने किसी रीति-रिवाज को तोडा है परन्तु जो मेरे मन को ठीक लगा मैंने वो किया| यदि आज पिताजी जिन्दा ओते तो भाईसाहब की सारी बात सुनके उन्हें माफ़ कर देते ..... खेर... मैंने पिताजी की अधूरी इच्छा पूरी की और उनके "तीनों पुत्रों" के हाथों उन्हें अग्नि भी नसीब हुई| अगर मैं गलत हूँ तो ईश्वर मुझे अवश्य दण्डित करेगा, पर कम से कम मेरी अंतर-आत्मा मुझे कभी झिंझोड़ेगी नहीं की मैंने पिताजी के बड़े बेटे के होते हुए उन्हें मुखाग्नि दी|"
आप ने कुछ भी गलत नहीं किया...हाँ अगर मैं आपकी जगह होती तो मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी...शायद मेरी बुद्धि इतनी विकसित नहीं हुई| पर आपने जो किया उसपर मुझे गर्व है| पिताजी को इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती थी|
हमारी बातें माँ ने सुन ली थी और वो बस आके इनके गले लग गईं और बोलीं; "जानती है बेटी, इन्ही खूबियों के कारन तेरे पिताजी ने मानु को कभी दामाद नहीं बल्कि अपना बेटा ही समझा था| इसने कई बार बिना कहे ही हमारे परिवार की मुश्किलों के समय में हमेशा आगे बढ़ के साथ दिया है| पर मुझे अफ़सोस इस बात जा है की मैं मानु को वो मान-सम्मान नहीं दिल सकती जो उसके लायक है|"
"माँ...मेरे लिए इतना ही काफी है की पिताजी ने मुझे इस काबिल समझा...इतना यार दिया..अनिल मेरे भाई जैसा ही है और आप एरी माँ जैसी..कभी लगा ही नहीं की आप लोग अलग हो| रही मान-सम्मान की बात तो यहाँ के लोगों की सोच ही इतनी घटिया है| हाँ मैं आसे क्षमा चाहता हूँ की मैंने आज जो किया वो........"
"बेटा तूने कुछ गलत नहीं किया.... बिलकुल सही किया| अब तुम दोनों बाहर चलो समधी जी, समधन जी और बच्चे आये हैं|"
जब हम बहार आये तो मेरा मन बच्चों को देख के प्रफुलित हो गया और मैंने उन्हें गले लगाने को बुलाया तो वो दौड़े-दौड़े आये और........ इनके गले लग गए| मैं हैरान देखने लगी और वहां खड़े अनिल, माँ, ससुर जी और सासु जी समेत सब हँसने लगे| चलो भगवन की यही लीला थी की सभी लोग थोड़ा मुस्कुराये तो सही| माँ बोली; "देख ले...तेरे बच्चे तुझसे ज्यादा मानु बेटे को प्यार करते हैं|" मैं बस मुस्कुरा के रह गई, क्योंकि जानती थी की बच्चे सच में मुझसे ज्यादा इनसे प्यार करते हैं और मुझे इस बात का फक्र है! नेहा जो की इनका खून नहीं, उसे ये आयुष से कहीं ज्यादा प्यार करते हैं और वो भी इन्हें इस कदर प्यार करती है की बिना इनके उसे रात को नींद नहीं आती| जब कभी इन्हें काम के कारन रात को बाहर रूकना पड़ता है मुझे नेहा की बात इनसे फोन पे करवानी पड़ती है, तब ये उनसे कहानी सुनेगी और तभी सोयेगी| केवल इनके हॉस्पिटल में रहने के दौरान ही ससुर जी इसे संभाला करते थे| आज चार दिन होने आये थे पर मेरी दोनों बहनें जानकी और शगुन, मुझसे बात नहीं कर रही थी और मैं अपने बड़े भाई साहब से बात नहीं कर रही थी| मेरा मन अब भी उन्हें माफ़ नहीं कर पाया था हाँ बस उनके प्रति मेरी घृणा मेरे इनके कारण खत्म हो चुकी थी|
शेष कल लिखूंगी...
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अब तक आपने पढ़ा:
मुझे कुछ ऐसा सोचना था की मैं संगीता को इस डर के जंगल में से निकाल लूँ| इसका हल जो मुझे नजर आया वो ये था......................................................................
7 जनवरी को मैं मुंबई निकल आया ये बहाना करा के की मुझे कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए बुलाया गया है| संगीता ने आपको बताया होगा की मैं मुंबई गया हूँ ...तो ये तब की बात है! असल में मेरा एक दोस्त मुंबई में एक MNC में JOB करता था और वहाँ उसकी अच्छी जान पहचान थी| मैंने उससे कहा की वो मुझे India से बाहर जॉब दिलवा दे ताकि मैं संगीता और बच्चे बाहर चले जाएं| जानता हूँ अपने माता-पिता से दूर होने में दर्द बहुत होता पर कम से कम कुछ साल बाद जब आयुष कुछ बड़ा हो जाता तो मैं India वापस आ जाता| मेरे पास एक और रास्ता था की मैं पिताजी से कहूँ की वो अपना सारा business बंद कर दें और हम बाहर settle हो जाएं| पर माँ और पिताजी इसके लिए कभी राजी नहीं होते| उनके लिए नए देश में जाके adjust करना मुश्किल था| इसलिए मैंने ये Job वाला आईडिया choose किया| मेरे दोस्त ने मुझे यकीन दिलाया की वो मुझे Dubai में पोस्टिंग दिल देगा| पर कुछ कागजी करवाई के लिए उसे मेरा और संगीता का पासपोर्ट चाहिए और साथ ही साथ बच्चों का भी| मेरा पासपोर्ट तो तैयार था पर ना तो संगीता का पासपोर्ट था और न ही बच्चों का! तो मैंने उससे passport बनाने के लिए समय माँगा और उसने मुझे समय दे भी दिया| मैं दिल्ली वापस आ गया| अब समय था बात खोलने का...........................................
मैं अपना लैपटॉप ले के हॉल में बैठा था और online Passport aaplication का page खोल रखा था| मैंने माँ और पिताजी को और साथ-साथ संगीता को भी बिठाया| बच्चे स्कूल गए हुए थे और मैं उनके स्कूल जाके Principal, Class Teacher, Watchman सब से बात कह के आया था की मेरे या मेरी wife के आलावा वो किसी के साथ भी बच्चों को ना जाने दें| अगर मेरी जगह मेरे पिताजी या माँ आते हैं तो पहले मुझे call करें और अगर मैं हाँ कहूँ तब ही बच्चे को उनके साथ जाने दें| मैंने सारी बात घरवालों को बता दी....पंचायत से ले के दुबई जाने तक की सारी बात! सबने बात बड़े इत्मीनान से सुनी और मैं अबसे पहले पिताजी के मन की बात जानना चाहता था तो मेरी नजर उनपे थी;
पिताजी: बेटा...तू ने मुझे बताया क्यों नहीं की गाँव में पंचायत रखी गई है? मुझे जाना चाहिए था!
मैं: पिताजी मेरी वजह से आपको पहले ही बहुत तकलीफें उठानी पड़ रही हैं और वैसे भी कारन तो मैं था ना तो मुझे ही जाना चाहिए था|
पिताजी: तू सच में बड़ा हो गया है...अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगा है| खेर बेटा बहु को खुश रखना जर्रुरी है, उसके दिल से डर खत्म करना बहुत जर्रुरी है और मैं या तेरी माँ तुझे नहीं रोकते बल्कि अच्छा है की तू settle हो जाये|
माँ: हाँ बेटा! तुझे इस परिवार को सम्भलना होगा! ख़ास कर बहु को और बच्चों को!
मैं: जी!
संगीता: मैं कुछ बोलूँ?
माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!
संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी? और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के!
मैं: क्योंकि मैं आपको इस तरह डरा हुआ नहीं देख सकता| 24 घंटे आपको एक ही डर सता रहा है की आयुष चला जायेगा? इन कुछ दिनों में मैंने आपको जितना तड़पते हुए देखा है उसे मैं बयान नहीं कर सकता| इस डर ने आके मुँह से हंसी तक छीन ली, घर से सारी खुशियाँ छीन ली| अरे आपके मुँह से चंद प्यार के मीठे बोल सुनने को तरस गया था मैं! जिस संगीता से मैं प्यार करता था वो तो कहीं चली गई और जो बच गई वो मेरे लिए अपने प्यार को बाहर आने ही नहीं देती| ठण्ड में कंपकंपाते हुए देखते हो पर आगे बढ़ के मुझे गले नहीं लगा सकते और पिछले कुछ दिनों में मुझे बस प्यार की कुछ बूंदें ही नसीब हुई हैं! अब आप ही बताओ आपके डर को भागने के लिए ये उल-जुलूल हरकतें ना करूँ तो क्या करूँ!
संगीता रोने लगी और उन्हें रोता हुआ देख मेरा दिल भी पसीज गया और मेरी आँखें भी छल-छाला उठीं पर फिर उन्होंने खुद को संभाला और बोली;
संगीता: आप....आप सही कह रहे हो....मैं घबराई हुई हूँ पर ......मैं इतनी स्वार्थी नहीं की सिर्फ अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ| पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको बहुत दुःख पहुँचाया है| आपको बहुत तड़पाया है........ पर I PROMISE मैं अब बिलकुल नहीं डरूँगी और ख़ास कर अब जब आपने पंचायत में सारी बात साफ़ कर दी है| Please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो!
वो अब भी रो रही थीं और माँ उन्हें अपने सीनेसे लगा के चुप करने लगीं|
माँ: बहु तुझे नहीं जाना तो मत जा कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा तेरे साथ! ये तो बस तुझे इस तरह नहीं देख सकता इसलिए ये इतना सब कुछ कर रहा है| तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो ये तड़प उठता है तो तुझे इस तरह डरा हुआ कैसे देख सकता है| ये सब मानु सिर्फ तेरे और तेरे होने वाले बच्चे के लिए कर रहा है|
मैं: Okay ! हम कहीं नहीं जा रहे|
बस इतना कह के मैं अपने कमरे में लौट आया और टेबल पे लैपटॉप रखा और कुर्सी का सहारा ले के खड़ा हो गया| दो मिनट तक सोचता रहा और फिर संगीता कमरे में आ गई और बोली;
संगीता: मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो पर आपने ये सोच भी कैसे लिया की मैं अपने परिवार से अलग रहके खुश रहूँगी? मैं ये कतई नहीं चाहती की मेरे करा आप माँ-पिताजी से दूर हों और बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हों!
आज उनकी बातों में थोड़ी से बेरुखी नजर आई और मैं भी खुद को रोक न सका और उनपर ही बरस पड़ा;
मैं: जानना चाहती हो न की क्यों मैं तुम्हें सब से दूर ले जाना चाहता था? तो सुनो .... मैं बहुत खुदगर्ज़ इंसान हूँ! इतना खुदगर्ज़ की मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हे ख़ुशी चाहिए और कुछ नहीं| इसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा मैं करूँगा, अब मैं और तुम्हें इस क़दर घुटता हुआ नहीं देख सकता! तुम्हें समझा-समझा की थक गया की कम से कम हमारे आनेवाले बच्चे के लिए ही इस बात को भूलना शुरू करो पर नहीं..तुम कोशिश ही नहीं करना चाहती! तुम्हें हर पल डर रहता है की वो फिर से आएगा...! तो अगर हम इस देश में ही नहीं रहेंगे तो वो कैसे हमारे बच्चों को हम से छीन सकता है? मैंने ऐसे ही इतनी बड़ी बात नहीं सोच ली थी... माँ-पिताजी से इस बात पे चर्चा की और तब ये फैसला लिया| मैं तो चाहता था की वो भी हमारे साथ चलें..मैं यहाँ सब कुछ बेच दूँगा ..घर..गाडी..बिज़नेस..फ्लैट..सब कुछ और हम बाहर ही settle हो जाएंगी पर अब उनमें वो शक्ति नहीं की वो गैर मुल्क में जेक उसके तौर-तरीके अपना सकें| इसके लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया.... ताकि हमारे आने वाली संतान को अच्छा भविष्य मिले| संगीता: मुझे थोड़ा समय लगेगा....
मैं: और कितना समय? कम से कम मेरे लिए ना सही तो बच्चों के लिए ही मुस्कुराओ..झूठ-मुठ का ही सही! अगर आपके पास मुस्कुराने की वजह नहीं है तो मैं आपको ऐसी 4 वजह दे सकता हूँ;
1. पहली वजह पिताजी: जिन्होंने तुम्हारा कन्यादान किया! क्या वो नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी सामान बहु खुश रहे?
2. दूसरी वजह माँ: तुम बहु हो उनकी और पेट से हो...तुम्हारा इस कदर लटका हुआ मुंह देख के क्या गुजरती होगी उन पर?
3. आयुष: उस बच्चे ने इस उम्र में वो सब देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था| पिछले कई दिनों से मैं उसका और नेहा का मन बहलाने में लगा हूँ पर अपनी माँ के चेहरे पे उदासी देख के कौन सा बच्चा खुश होता है?
4. नेहा: हमारे घर की जान..जिसने इस कठिन समय में आयुष को किस तरह संभाला है उसे कहने को मेरे पास लव्ज कम पड़ते हैं|
अब इससे ज्यादा और तुम्हें क्या चाहिए?
संगीता ने कुछ जवाब नहीं दिया और चुप-चाप वहाँ से चली गई|
 
आज जिंदगी में पहली बार उनहोने मेरे साथ ऐसा किया और मेरे अंदर गुस्सा फूटने लगा| गुस्सा तो इस कदर आया की जाके उनसे कठोरता पूर्वक जवाब माँगू पर कदम आगे ही नहीं बढे! पर गुस्सा कहीं तो निकलना था..तो मैं जल्दी से नहाया और साइट पे काम देखने के बहाने से बिना कुछ खाय-पीये निकल गया| माँ-पिताजी ने बहुत रोक पर मैं नहीं माना और बहाना मार के निकल भागा, अब उस घर में उनका मायूस चेहरा नहीं देखा जा रहा था! काम में मन नहीं लग रहा था..बार-बार नजरें मोबाइल को देख रही थी की शायद उनका फोन आ जाए| पर कोई फोन नहीं आया आखिर कर मैंने फोन पे गाना लगा दिया; "भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएं..मोहब्बत हो गई जिनको वो दीवाने कहाँ जाएँ!" गाना सुनते-सुनते कुछ महसूस हुआ.. फिर मैंने सोचा की क्यों न संगीता से अपना दर्द लिखने को कहूँ| इससे वो दर्द जो उनके अंदर है वो शब्दों के रूप इन बाहर आएगा और उन्हें हल्का महसूस होगा| रात को घर पहुँचा तो सब खाना खा चुके थे...आयुष अपने दादा-दादी के पास सो चूका था| माँ की जोर जबरदस्ती के कारन संगीता ने खाना खा लिया था और नेहा...वो अब भी जाग रही थी और पढ़ रही थी और उसी ने दरवाजा खोला|
मैं: बेटा आप सोये नहीं?
नेहा: पापा कल टेस्ट है तो मैं पढ़ रही थी|
मैं: आपने खाना खाया?
नेहा: जी
मैं: और मम्मी ने?
नेहा: दादी ने जबरदस्ती खिलाया ही..ही..ही...ही...
मैंने उसके सर पे हाथ फेरा और उसे गोद में उठा के कमरे में आ गया| संगीता बेड पर बैठी आयुष की स्कूल ड्रेस में बटन टाँक रही थी| मुझे देख वो खड़ी हुई और बिना कुछ कहे किचन में चली गई| उनका व्यवहार अब भी बड़ा रुखा था और मुझसे ये बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल था! मैं उन्हें कुछ कहना नहीं चाहता था इसलिए किसी तरह अपना गुस्सा पी गया और खाना खाने टेबल पे बैठ गया|
आम तौर पे जब मैं देर से आता था तो संगीता मेरे पास बैठ के खाना परोसती थी और जब तक मैं खा नहीं लेता था वो वहीँ बैठ के मुझसे बातें किया करती थी पर पिछले कछ दिनों से आईएस नहीं हो रहा था और मेरे मन में चन्दर के लिए गुस्सा बढ़ता जा रहा था! जब संगीता मुझे खाना परोस के जाने लगी तो मैंने उसे बस एक मिनट रुकने को कहा;
मैं: सुनो...
वो बिना कुछ कहे रूक गई;
मैं: I need to talk to you.
वो अब भी कुछ नहीं बोली बस चुप-चाप बैठ गई|
मैं: I need you to write how you felt that day.
वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी!
मैं: I’m sure इससे आपका दर्द कम होगा ...
उन्होंने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उठ के चली गई| मुझे पता था की वो नहीं लिखने वाली और खाना खाने को दिल नहीं कर रहा था इलिये मैंने खाना ढक के फ्रिज में रख दिया और हाथ धो के कमरे में आ गया और देखा तो वो सो चुकी थी| नेहा कमरे में टेबल लैप जल के पढ़ रही थी|
मैं: बेटा रात के बारह बज रहे हैं ...ये कोई बोर्ड का exam नहीं की आप इतना लेट पढ़ो| चलो सो जाओ...
नेहा: जी पापा
नेहा ने बुक बंद की और दोनों बाप-बेटी लेट गए|
मैं: बेटा आप मेरा वेट कर रहे थे ना?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया! मैं जानता था की वो मेरे बिना नहीं सोयेगी... रात भर नेहा के सर पे हाथ फेरते हुए निकली..एक सेकंड के लिए भी आँखें बंद नहीं हुई थी.... सुबह पाँच बजे मैं उठा और नेहा को सोता हुआ छोड़ के नहाने चला गया| बाहर आया तब तक संगीता उठ चुकी थी और अब भी उसके चेहरे पर वही गम के बादल छाय हुए थे|मुझे लगने लगा की मेरे कुछ कहने से बात और न बिगड़ जाए इसलिए मैं भी चुप रहा| सोचा की शायद कुछ समय बाद वो नार्मल हो जाए| अब किसी इंसान के पीछे आप लाठी ले के पड़ जाओ की तू हँस..तू हँस तो कुछ समय बाद वो भी बिदक जाता है! इसलिए मैं भी चुप रहने वाला खेल उनके साथ-साथ खेलने लगा|
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बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग डाइनिंग टेबल पे बैठे छाय पी रहे थे| कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था | माँ और पिताजी हम दोनों के चेहरे अच्छे से पढ़ रहे थे और इसीलिए वो परेशान थे|माँ ने बात शुरू की;
माँ: तू रात को कब आया?
मैं: जी..करीब साढ़े ग्यारह बजे|
पिताजी: यार तू इतनी रात तक बाहर ना रहा कर, सब परेशान हो जाते हैं|
मैं: पिताजी काम ज्यादा है आजकल...deadline से अहले निपट जाए तो अच्छा है|
मेरी नजर अखबार में घुसी थी तो पिताजी ने मुझसे अखबार छीन लिया;
पिताजी: अब इसमें क्या तू नौकरी का इश्तेहार पढ़ रहा है?
दरअसल मैं उस समय jobs वाला page खोल के बैठा था और जैसे ही पिताजी न नौकरी की बात बोली तो संगीता को लगा की मैं फिर से इंडिया से बाहर की कोई job ढूंढ रहा हूँ|
मैं: नहीं पिताजी.....ये देखिये अखबार मैं टेंडर निकला है उसी की details पढ़ रहा था|
ये सुन के संगीता के दिल को राहत मिली|
पिताजी: क्या जर्रूरत है बेकार का पंगा लेने की?
मैं: Profitable Opportunity है|
माँ बीच में बोल पड़ी;
माँ: अब बस भी करो ये बिज़नेस की बातें| बहु तू ऐसा कर आज नाश्ते में पोहा बना इसे (मझे) बहुत पसंद है|
संगीता: जी माँ|
सच कहूँ तो जिस तरह का घर में माहोल था मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं ठहरूँ| इसलिए मैं उठा और तैयार हो के बाहर आगया| पोहा लघभग बन ही चूका था और माँ ने जिद्द की कि मैं नाश्ता कर के जाऊं पर मेरा मन वहाँ रुकने को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने अपने दूसरे नंबर से अपने पहले नंबर पे फ़ोन मिलाया ओ झूठ ही बात करते हुए घर से निकल गया| नजानेक्यों मुझे लगने लगा था की संगीता को मेरे वहाँ होने से कुछ अजीब लगता है..दुःख होता है...क्योंकि उन्होंने मुझसे आत करना बंद सा कर रखा था| करीब एक घंटे बाद पिताजी साइट पे पहुंचे और मुझे एक तरफ ले जाके मुझे समझाने लगे;
पिताजी: ये सब क्या चल रहा है? बहु ना हंसती है..न कुछ बोलती है| तुम दोनों में तो बात भी नहीं होती? तूने ऐसा क्या कह दिया बहु को?
मैं: जी कुछ नहीं|
पिताजी: तो? तू तो उसे बहुत प्यार करता था ना?
मैं: वो तो अब भी करता हूँ!
पिताजी: फिर? वो मायूस क्यों है? तू जानता है ना वो पेट से है?
मैं: जी... इसीलिए उसे बहुत समझाया...पर शायद वो समझना नहीं चाहती| अब भी उन बातों को दिल से लगा के बैठी है|
पिताजी: तू उससे आराम से बात कर...चाहे तो कुछ दिन के लिए तुम दोनों कहीं बाहर चले जाओ..बच्चों को हम संभाल लेंगे|
मैं: वो नहीं मानेगी|
पिताजी: वो सब मैं नहीं जानता अगर तू उसे कहीं बाहर नहीं ले के गया तो मैं और तेरी माँ तुझसे बात नहीं करेंगे!
मैं: पिताजी... आप लोग उसे भी तो समझाओ| वो एक कदम बढ़ाएगी तो मैं दस बढ़ाऊँगा| कम से कम मुझसे ढंग से बात तो करे?
पिताजी: हम्म्म...हम उसे भी समझा रहे हैं ...पर तू अपनी अकड़ उसे मत दिखाइओ वरना.....
मैं: हम्म...
कमाल है यार.... माँ-बाप मेरे और मुझे ही "हूल" दी जा रही थी! Seriously यार... पर खेर शायद मैं ही गलत था!
पिताजी तो मुझे "हल" दे के चले गए और उनके जाने के करीब दो घंटे बाद मुझे एक मेल आया| ये मेल संगीता का था मैंने अटैचमेंट डाउनलोड किया तो पाया की उन्होंने अपने दर्द को शब्दों में बयान किया था...उन्होंने मेरी बात मानी !!! Like Seriously!!! मैं shocked था... एक पल के लिए तो मैं डर गया था की इन्होने कहीं मुझे "Divorce" का "Notice" तो नहीं भेज दिया! But Thank God वो तलाक का नोटिस नहीं था! मैंने उनके लिखे हर एक शब्द को पढ़ना शुरू किया...एक घंटा लगा और मैंने उसे सारा पढ़ डाला और उसे पढ़ने के बाद मेरा हाल बुरा था| मैंने उसे थोड़ा बहुत edit किया और फिर लैपटॉप बंद कर के मैं संतोष भैया को सब समझा के मैं साइट से निकल आया| गाडी भागा के मैं घर पहुँचा और रास्ते भर ये सोचता आया की आज मैं उन्हें इस दुःख और दर्द से बाहर निकाल के रहूँगा! दोपहर को मैं दनदनाता हुआ मैं घर पहुँचा ....पर इससे पहले मैं कुछ कह पाता मेरी नजर संगीता पे पड़ी और उसका उदास और मायूस चेहरा देख के सारी हिम्मत जवाब दे गई| सामने से आयुष बभागता हुआ आया और आके मेरे पाँव में लिपट गया र मैं उसे गोद में उठा के कमरे के अंदर आ गया| मैं उससे बात कर ही रहा था की संगीता गिलास में पानी ले के आ गई| मने पानी का गिलास उठाया और थोड़ी बहुत हिम्मत जुटा के बोला;
मैं: (एक गहरी सांस ली) मैंने पढ़ा... आप.... क्यों इतना दर्द समेटे हुए हो? क्या आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी जगह नहीं?
संगीता के होंट काँप रहे थे और मुझे लगा की वो कुछ कहना चाहती है पर खुद को रोक रही है... उसे डर था की अगर वो कुछ कहेगी तो शायद टूट जाये| इसलिए मैंने उन्हें और जोर नहीं दिया और बाहर बैठक में आके बैठ गया| पिछले कुछ दिनों से मैंने अन्न के नाम पे सिर्फ चाय पी-पी के गुजारा कर रहा था| मेरे पिताजी को High Blood Pressure और माँ को Low Blood Pressure की प्रॉब्लम है और ये अनुवांशिक बिमारी मुझे भी मिली| मुझे High Blood Pressure की प्रॉब्लम रहती थी और इसका पता मुझे तब चला जब मैं संगीता से पहली बार दूर हुआ था! बचपन से मुझे दवाइयाँ खाने की आदत नहीं थी| सर्दी खांसी में तो मैंने कभी दवाई खाई ही नहीं...माँ कहती थी की तूने सात साल माँ का दूध पिया है, इसीलिए तेरा शरीर में बिमारियों के प्रति इतनी प्रतिरोधकता है| पर B.P. जैसी बिमारी बिना दवाइयों के कहाँ ठीक होती है| हमारी फैमिली डॉक्टर, सरिता जी ने मुझे सुबह शाम सेर करने और भी काफी हिदायतें दे राखी थी और ऊपर से डरा रखा था की अगर दवाइयाँ नहीं लोगे तो ये बीमारी out of control हो जाएगी और तुम मर भी सकते हो! सिर्फ अपनी माँ के लिए जिन्दा रहने की ख्वाइश थी जिसके कारन मैंने उनकी बात मानी...फिर धीरे-धीरे संगीता मेरी जिंदगी में पुनः वापस आ गई और मेरे पास जिन्दा रहने के कई कारन हो गए|शुरू-शुरू में तो मैं दवाइयाँ समय से ले लिया करता था..पर फिर धीरे-धीरे मैंने दवाई खाना छोड़ दिया और व्यायाम शुरू कर दिया| माँ-पिताजी ने बहुत डाँटा की तू समय पे दवाई लिया कर पर मैंने उन्हें साफ़ कह दिया की जब मुझे Stress होगा, tension होगी मैं दवाई ले लूंगा अन्यथा मुझे दवाई की जर्रूरत नहीं| तो ऐसा ही चलता रहता था| exams के समय मैं दवाई समय पे लेता था पर exams ना हों तो मुझे दवाई लेने की जर्रूरत नहीं पड़ती थी| (सुनने में मनमानी लगती ही पर क्या करें..थोड़ी बहुत मनमानी तो सब करते हैं|)
अब चूँकि पिछले काफी दिनों से गुस्से में खाना बंद था इसलिए मैंने दवाइयाँ भी लेना बंद कर रखा था|
मैं सोफे पे बैठा था और आँखें बंद किये हुए उन शब्दों में छुपे दर्द को महसूस कर रहा था| अनदर ही अंदर ये चुभन मेरी जान ले रही थी और उस दिन का हर एक दृश्य मेरे सामने आने लगा| खून उबलने लगा... इस कदर गुस्सा बढ़ गया की मैं बड़े जोश से उठ खड़ा हुआ पर अगले ही पल मुझे एक जोरदार चक्कर आया और मैं जमीन पे गिर गया और उसके आगे मुझे होश नहीं की क्या हुआ|
 
मैं सोफे पे बैठा था और आँखें बंद किये हुए उन शब्दों में छुपे दर्द को महसूस कर रहा था| अनदर ही अंदर ये चुभन मेरी जान ले रही थी और उस दिन का हर एक दृश्य मेरे सामने आने लगा| खून उबलने लगा... इस कदर गुस्सा बढ़ गया की मैं बड़े जोश से उठ खड़ा हुआ पर अगले ही पल मुझे एक जोरदार चक्कर आया और मैं जमीन पे गिर गया और उसके आगे मुझे होश नहीं की क्या हुआ|
जैसे ही ये गिरे मैं भागती हुई आई और इन्हें उठाया और माँ को पुकारा; "माँ..माँ..जल्दी आइए!!!" माँ उस समय अंदर के कमरे में थी| पिताजी बाहर किसी काम से गए थे| माँ ने जब इन्हें जमीन पे गिरा हुआ पाया तो वो भी घबरा गईं और मुझसे पूछने लगीं; "बहु...मानु को क्या हुआ बहु?" मैं खुद नहीं जानती थी की इन्हें क्या हुआ है? मैं बहुत ज्यादा घबरा रही थी और इनका गाल थप-थापा रही थी और माँ इनके हाथ घिसने लगी थी| इतने में नेहा भी आ गई; "नेहा जल्दी डॉक्टर सरिता को फ़ोन मिला और जल्दी यहाँ बुला, बोल पापा बेहोश हो गए हैं|" नेहा ने तुरंत फ़ोन मिलाया पर उसके चेहरे को देख के आगा की बात कुछ और है और ये देख मेरे दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं!
"माँ...डॉक्टर सरिता ने कहा की वो इस वक़्त क्लिनिक में नहीं हैं| उन्होंने कहा की हम पापा को हॉस्पिटल ले जाएं|"
मेरे कुछ कहने से पहले ही माँ बोल पड़ीं; " बेटा जल्दी से अपने दादा जी को फ़ोन मिला वो एम्बुलेंस ले के आ जायेंगे|"
नेहा ने ठीक वैसा ही किया और करीब पंद्रह मिनट में एम्बुलेंस आ गई, पिताजी नॉएडा में थे इसलिए अगर हम उनके आने का इन्तेजार करते तो काफी देर हो जाती, इसलिए उन्होंने फ़ोन कर के बताया की हम हॉस्पिटल पहुंचें और साथ ही साथ उन्होंने कुछ पड़ोसियों को भी फ़ोन मिलाया ताकि वो हमारी मदद करें| ..(दरअसल ये एक प्राइवेट एम्बुलेंस थी) सब ने मिलके इन्हें (मेरे पति) स्ट्रेचर पे लिटाया और चूँकि हमारा घर गली में पड़ता है तो हमें एम्बुलेंस तक इन्हें ले जाना पड़ा| मैं, माँ, आयुष और नेहा एम्बुलेंस में बैठ गए| सारे रास्ते मैं रोये जा रही थी और माँ मुझे ढांढस बंधा रही थी यह कह की; "बेटी कुछ नहीं होगा मानु को| तू चिंता मत कर ...सब ठीक हो जायेगा|" अगले बीस मिनट में हम हॉस्पिटल पहुँच गए| डॉक्टर सरिता ने हॉस्पिटल में अपने जानने वाले को पहले ही फ़ोन कर दिया और वो हमें गेट पर ही मिल गईं|सरिता जी ने इनकी केस हिस्ट्री डॉक्टर रूचि को पहले ही बता दी थी इसलिए तुरंत इन्हें admit कर के उपचार शुरू हो गया| करीब-करीब बीस मिनट बाद डॉक्टर सरिता भी आ गईं और वो सीधा प्राइवेट वार्ड में चली गईं जहाँ हम बैठे थे| अगले आधे घंटे में पिताजी भी आ गए और फिर सरिता जी ने माँ- और पिताजी को अपने साथ केबिन में बुलाया और मुझे वहीँ बैठे रहने को कहा| मैं स्टूल ले के इनके पास बैठ गई इस उम्मीद में की ये अब आँखें खोलेंगे ...अब आँखें खोलेंगे! दस मिनट बाद माँ अंदर आईं और मुझसे पूछने लगी; "बेटा...मानु ने दवाई खाई थी?" मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैं अवाक सी उन्हें देख रही थी और फिर मेरे मुँह से निकला; "पता नहीं माँ..." मेरा जवाब सुन के माँ को ये एहसास तो हो गया होगा की हमारे बीच में कुछ सही नहीं चल रहा था...पर उन्हें ये नहीं पता होगा की ये सब मेरी गलती थी! माँ पलट की जाने लगी तो अचानक से नेहा बोल पड़ी; दादीजी... पापा ने दवाई नहीं ली| मैंने कल रात को उन्हें याद दिलाया था पर उन्होंने कहा की मैं ठीक हूँ|" माँ ने उसके सर पे हाथ फेरा और वापस सरिता जी के केबिन में चली गईं| हैरानी की बात थी की नेहा को मुझसे ज्यादा उनकी फ़िक्र थी...शायद इलिये की ये उसे ज्यादा प्यार करते थे...मुझसे भी ज्यादा!
कुछ देर बाद माँ, पिताजी और सरिता जी कमरे में आये पर अभी तक मुझे इनकी तबियत के बारे में कुछ नहीं बताया गया| सब मुझसे छुपा रहे थे ... आखिर मैंने ही डॉक्टर सरिता से पूछा; "सरिता जी आखिर इन्हें हुआ क्या है?" पर उनके कुछ कहने से पहले ही पिताजी बोल पड़े; "बेटा मानु को थोड़ी देर में होश आ जायेगा, तू चिंता मत कर|" वो मेरे पिता सामान थे इसलिए मैं कुछ नहीं बोली और ये सोच के खुद को संतुष्ट कर लिया की ये पूरी तरह ठीक हो जाएं ...बस यही काफी है मेरे लिए|
चूँकि हमें एक प्राइवेट रूम allot किया गया था तो पिताजी को बाकी formalities पूरी करने के लिए जाना पड़ा| पंद्रह मिनट बाद पिताजी वापस आये और बोले; "बेटा ...मेरा डेबिट कार्ड का बैलेंस खत्म हो गया है और पैसे अब भी कम पड़ रहे हैं| तेरे पास तेरा डेबिट कार्ड है?" जल्दी-जल्दी में मैं अपना पर्स नहीं लाइ थी; "पिताजी वो मेरे पर्स में है.." पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले; "ऐसा करते हैं की हम सब वापस चलते हैं और पैसे ले के मैं वापस आ जाऊँगा| तुम दोनों शाम को आ जाना?" पर मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने कहा; "पिताजी मैं यहीं रूकती हूँ आप बच्चों को और माँ को ले जाइए|" पिताजी कुछ सोचने लगे और आखिर में उन्होंने बच्चों ओ साथ चलने को कहा पर बहोन ने भी जाने से मन कर दिए और हार कर पिताजी को और माँ को जाना पड़ा| माँ भी जाना नहीं चाहती थी पर चूँकि ज्यादा देर बैठने से उनके पाँव में सूजन बढ़ने लगती है तो मेरे कहने पे माँ चली गईं| उन दिनों घर में पैसों को लेके कुछ परेशानी चल रही थी| पिताजी ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए थे पर उन्हें आगे के बारे में भी सोचना था| पैसे जमा कर के पिताजी वापस आये और मुझे बोले; "बेटा...मैंने पैसे जमा करा दिए हैं| तुम्हें तो पता ही है की हमारी पेमेंट अभी फंसीहुई है| मैं अभी कुछ लोगों से मिल के आता हूँ शायद कोई पेमेंट कर दे! तो तुम और बच्चे यहीं रहो..और अगर डॉक्टर कुछ कहे तो मुझे फोन कर देना| मैं शाम तक तुम्हारी माँ के साथ आ जाऊँगा और तब तक मानु को भी होश आ जायेगा|" मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बच्चों को कह गए की अपने मम्मी-पापा का ध्यान रखना|
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पिताजी के जाने के बाद हम तीनों बेसब्री से इन्तेजार करने लगे की अब इन्हें (मेरे पति को) होश आएगा..अब होश आएगा.. और इन्तेजार इन्तेजार करते-करते रात के नौ बज गए थे| घर के किसी भी सदस्य ने कुछ नहीं खाया था| मुझे अपनी चिंता नहीं थी..चिंता थी तो बच्चों की इसलिए मैंने नेहा को आवाज दे के अपने पास बुलाया; "नेहा..बेटा इधर आओ...आप और आयुष जा के कैंटीन से कुछ खा लो| आप दोनों ने दोपहर से कुछ नहीं खाया है|"
"माँ...आपने भी तो कुछ नहीं खाया..और पापा कहते थे की आपको सबसे ज्यादा जर्रूरत है| तो आप भी चलो हमारे साथ" नेहा बोली|
"बेटा ...मेरा मन नहीं है...आप दोनों खा लोगे तो मेरा पेट भी भर जायेगा|"
"फिर मैं भी नहीं खाऊँगा..." आयुष ने नाराज होते हुए कहा|
ये सुन के तो मुझे गुस्सा आ गया और मैंने आयुष को गुस्से से देखा तो वो सहम गया और जाके नेहा के पीछे छुप गया| नेहा ने मुझसे पैसे लिए जो पिताजी जाते समय मुझे दे गए थे और फिर आयुष का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी ...मझे एहसास हुआ की नेहा अपने पापा पे गई है| वो खुद कुछ नहीं खायेगी पर आयुष को जर्रूर खिला देगी| इसलिए मैंने उसे आवाज दे के रोक; "नेहा....रुक..मैं भी चलती हूँ तुम दोनों का भरोसा नहीं...कुछ खाओगे नहीं और झूठ बोल दोगे|" मैं उन्हें कैंटीन ले आई और दो सैंडविच और फ्रूटी ले के उन्हें दी| दोनों एक दूसरे की शकल देखने लगे पर कुछ खा नहीं रहे थे; "एक दूसरे की शकल क्या देख रहे हो? जल्दी खाओ...पापा अकेले हैं वहाँ|" आयुष ने तो डर के मारे खाना शुरू किया पर नेहा अब भी वैसे ही खड़ी थी| वो कुनमुनाते हुए बोली; "मैं नहीं खाऊँगी..मुझे भूख नहीं|" और उसने प्लेट मेरी तरफ खिसका दी....मैं जानती थी की वो मेरी वजह से नहीं खा रही...अगर मैं खाती तो वो जर्रूर खा लेती पर मेरा तो दिमाग ख़राब था... मैं उसपे जोर से चिल्ला पड़ी; "नेहा...बहुत हो गया..चुप-चाप ये सैंडविच खा ले|" मेरे गुस्सा करने से उस बेचारी की आँखें भर आईं और आयुष..वो तो दर के मारे रोने लगा| आजक दोनों मेरे गुस्से से बहुत डरते हैं और अगर मैं गुस्सा कर दूँ तो दोनों बहुत घबरा जाते हैं| वो तो ये हैं जो उन्हें संभाल लेते हैं....
खेर मेरे गुस्से के कारन दोनों ने दर के मारे खा लिया...अपर नेहा मुझसे उखड चुकी थी और प्राइवेट वार्ड पहुँचने तक उसने मुझसे कोई बात नहीं की| जब हम कमरे में कहुंचे तो वहाँ डॉक्टरों का जमावड़ा लगा हुआ था! ये देख के तो मेरा दिल दहल गया.... इतने में माँ-पिताजी भी आगये| “ये ....ये सब की हो रहा है?” पिताजी ने मुझसे सवाल पूछा...पर मेरे पास उसका जवाब नहीं था| डर के मारे मेरा बुरा हाल था....मन में गंदे-गंदे ख़याल आ रहे थे| दिमाग कहने लगा था की हमारा साथ छूट गया....पर दिल इसकी गवाही नहीं दे रहा था| तभी डॉक्टर सरिता आईं और माँ-पिताजी को एक तरफ बुला के कुछ कहने लगीं...पर इस बार उत्सुकता वश मैं भी वहाँ जा के उनकी बात सुन्ना चाहती थी पर मुझे अपने पास देख के सब चुपो हो गए| माँ-पिताजी के चेहरे पे गम के बादल साफ़ झलक रहे थे| मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं बोल पड़ी; "सरिता जी..प्लीज...प्लीज बताइये की मेरे पति को क्या हुआ है? आखिर ऐसी कौन सी बात है जो आप सब मुझसे छुपा रहे हैं?" डॉक्टर सरिता पिताजी की तरफ देखने लगीं और जब उन्होंने हाँ में सर हिला के अपनी अनुमति दी तब जा के उन्होंने सारी बात बताई जिसे सुन के मेरे जोश उड़ गए|
उन्होंने बताया; “हमसे यहाँ बहुत बड़ी गलती हो गई! जब आप मानु को यहाँ लाये थे उस समय मैं यहाँ नहीं थी डॉक्टर रूचि ने मानु को एडमिट किया और बेसिक ट्रीटमेंट शुरू कर दिया| शुरू के डायग्नोसिस में हमें यही पता चला की मानु का blood pressure shoot up हुआ था.... हम में से किसी ने उसकी Head Injury पर ध्यान नहीं दिया! अभी कुछ देर पहले sister Blood Pressure check करने गई तब उसे swelling नजर आई| अभी हम मानु को MRI करने के लिए ले जा रहे हैं|We’re hoping for the best! I’m really sorry!”
उनकी बात सुन के मुझे बहुत गुस्सा आया .... मन तो किया की इन सब पर केस कर दूँ पर.....मेरे लिए जर्रुरी ये था की ये पूरी तरह ठीक हो जाएं! इस लिए चुप रही…. सरिता जी के जाने के बाद मैंने माँ से पूछा; "माँ ...आप सब ये मुझसे क्यों छुपा रहे थे?" तो माँ ने मेरे सर पे हाथ फिराते हुए कहा; "बेटी...तू माँ बनने वाली है और मानु ने हमें कसम दी थी की हमलोग तुझसे ऐसी कोई भी बात ना करें जिससे तेरे दिल को चोट पहुंचे... इसलिए हम तुझसे ये बात छुपा रहे थे|" माँ की बात सुन के मेरी आँखें भर आईं और मैं माँ के गले लग क रो पड़ी| माँ ने मुझे बहुत पुचकारा और चुप कराया| माँ-पिताजी मुझे हिम्मत बंधाने लगे और हम लोग इन्तेजार करने लगे की MRI रिपोर्ट आये| एक घंटे बाद डॉक्टर सरिता हमारे पास आईं और हमें रिपोर्ट दी; "अंकल जी...रिपोर्ट अच्छी नहीं है| आप ये बताइये की क्या मानु ने खाना-पीना बंद कर रखा था?"
"नहीं तो बेटा...काम की वजह से वो बहुत बिजी था इसलिए वो रात को घर लेट आता था| फिर बहु उसे खाना परोसती थी ....इन में हो सकता है की खाना खाने का उसे टाइम ना मिलता हो पर रात को तो अवश्य खाता था..है ना बहु?" पिताजी ने मुझसे सवाल पूछा ...जिसका जवाब देने के लिए मेरे हलक़ से शब्द नहीं निकल रहे थे|"
"बहु...मानु रात को खाना खाता था ना?" माँ ने भी वही सवाल पूछा और सब की नजरें मेरे जवाब पर टिकी थीं| आखों से आँसूं बह निकले और रोते-रोते मैंने सच बोला; " जब से उन्होंने दुबई जाने के आत कही थी तब से मैं उनसे नाराज थी..बात नहीं कर रही थी...इसलिए गुस्से में आके उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था| कल रात भी जब वो आये तो मैं उन्हें खाना परोस के चली गई पर उन्होंने खाना नहीं खाया और वैसा का वैसा ही फ्रिज में रख दिया| सुबह जब मैंने रोटी का टिफ़िन देखा तो पता चला की इन्होने कुछ नहीं खाया है.... इ सब मेरी गलती है पिताजी....माँ ...मुझे माफ़ कर दीजिये....!" माँ मेरे सर पे हाथ फिरते हुए मुझे चुप कराने लगीं|
"अंकल जी.... आप तो जानते ही हैं की मानु का मेटाबोलिज्म कितना weak है! मैंने आपको शुरू में ही advice किया था की आप मानु को fasting वगैरह ना करने दें! अब हुआ ये है की मानु के खाना-पीना छोड़ने की वजह से और कुछ tensions के कारन उसका Blood Pressure बढ़ गया और उसे आज चक्कर आया, जब वो गिरा तो उसका सर फर्श से टकराया जिससे उसे ब्रेन इंजरी हुई, जिसे हम Anoxic Brain Injury कहते हैं| हमारी गलती से Brain में Swelling बढ़ गई...." बस इतना कहने के बाद वो रूक गईं...और एक लम्बी सांस लेते हुए बोली; "He’s in COMA!” ये सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं...साँस जैसे थमने को हो गई.... और माँ-पिताजी मेरी तरफ देखने लगे..क्योंकि उन्हें समझ नहीं आया था की सरिता जी ने क्या कहा| उनकी मनोदशा देख सरिता जी ने हिंदी में अपनी बात दोहराई; "मानु कोमा में है!"
 
ये खबर ऐसी थी जिसे सुन के हम सब सदमें में थे!!! पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था..और हम में से कोई नहीं जानता था की पीछे खड़ी नेहा ने सारी बात सुन ली थी और उसकी सिसकियों को सुन हम सब का ध्यान पीछे गया| वो भागी-भागी आई और माँ से लिपट के फुट-फुट के रोने लगी और रोते-रोते पूछने लगी; "दादी जी...पापा कब ठीक होंगे?" पर माँ के पास कोई जवाब नहीं था... बस सरिता जी ने उसे ढांढस बंधने के लिए कहा; "बेटा..आपके पापा जल्दी ठीक हो जायेंगे.... पर इस समय आपको Brave Girl बनना है| पता है आपके पापा ने मुझे आपके आरे में क्या बताया था? उन्होंने कहा था की मेरी बेटी सबसे बहादुर है...कैसी भी situation हो वो सब को संभाल लेती है| I'm Proud of my daughter! और आप ही इस तरह हार मान जाओगे तो कैसे चलेगा? आपको पता है न मम्मी प्रेग्नेंट हैं..तो ऐसे में उन का ध्यान कौन रखेगा? आपके दादा-दादी का ख्याल कौन रखेगा? आयुष तो अभी बहुत छोटा है तो सिर्फ एक आप हो जिससे मुझे उम्मीद है|"
ये बातें सुन के उसने खुद अपने आसूँ पोछे और फिर अपने दादा जी के पास आई और उनके आँसूं पोछे और बोली; " Don't worry दादा जी...पापा जल्दी ठीक हो जायेंगे...!" ये मेरी बेटी की हिम्मत थी जिस पे मुझे बहुत नाज़ है| माँ ने नेहा को किसी बहाने से कमरे से बाहर भेजा और सरिता जी से सवाल पूछा; "बेटी...मानु को कब तक होश आएगा?"
"आंटी जी...हम कुछ नहीं कह सकते...Brain को Heal होने में थोड़ा समय लगता है.. और हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं... सही दवाइयाँ..आप लोगों की Care ... प्यार और भगवान की कृपा से मानु कभी भी कोमा से बाहर आ सकता है| बस उम्मीद मत छोड़िये|"
अब बस एक उम्मीद ही थी जिसके सहारे ये नाव चलनी थी... खेर हम सब बाहर आ गए| पिताजी ने मेरी तरफ देखा और मेरा मन हल्का करने के लिए कहा; "बेटी..जो हो गया सो हो गया... मैं ये नहीं कहूँगा की सारी गलती तुम्हारी है| कुछ गलती उस पागल की भी है| बचपन से वो ऐसा ही है...जरा सी बात उसके दिल को लग जाती है और फिर वो खाना नहीं खाता| वो तो उसस्की माँ थी जो उसे समझा-बुझा के खाना खिला दिया करती थी| तब वो हर बात अपनी माँ से कहा करता था ...पर अब वो बड़ा हो चूका है हमसे बातें छुपाने लगा है... एक सिर्फ तुम हो जिससे वो बातें साँझा करता है| अब अगर तुम भी उससे बात नहीं करोगी तो वो इसी तरह अंदर ही अंदर कुढ़ता रहेगा| मैं समझ सकता हूँ की तुम्हें दुबई जाने की बात सुन के गुस्सा आया पर ये भी तो सोचो की वो ये सब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए कर रहा था| वो तुम्हारी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझता है और कुछ नहीं... उस ने हमसे एक दिन कहा था की पिताजी संगीता ने अपने जीवन में बहुत दुःख देखे हैं और अब मैं उसे और दुखी नहीं देखना चाहता फिर चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े!
बेटा...अब भी समय नहीं गया है... मुझे भगवान पे पूरा विश्वास है वो हमारे साथ कोई अन्याय नहीं करेगा| बस तुम्हें थोड़ा सब्र रखना होगा...धीरज रखना होगा..तुम्हारा प्यार उसे वापस ला सकता है| एक बार वो पूरी तरह ठीक हो जाए तो बस उसे खुश रखना...फिर हम लोग चैन से अपनी आखरी साँस ले सकेंगे|"
मैंने उनके पाँव छू के आशीर्वाद लिया और माँ ने और पिताजी ने अपने हाथ मेरे सर पे रख के "सदा सुहागन" रहने का आशीर्वाद भी दिया| पिताजी बोले; "बेटी तुम, बच्चे और मानु की माँ...आप सब घर जाओ, कुछ खाना खाओ, मैं यहीं रुकता हूँ| कल सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ के यहाँ आ जाना|"
"पर मानु के पिताजी आप भी तो कुछ खा लो...|"
"तुम मेरी चिंता मत करो मानु की माँ ...मैं यहाँ से कुछ खा लूँगा| पहले बच्चों को खिलाओ उन बेचारों ने भी कुछ नहीं खाया है|"
"पिताजी...मैंने दोनों को डाँट-डपट के खिला दिया था...उसी दौरान तो ये सब कुछ हुआ|"
"बेटी...अपने गुस्से पे थोड़ा काबू रख अभी तो मानु भी ठीक नहीं है...ये बच्चे उसी पे गए हैं और तुझ से नाराज होके तुझी से बात-चीत करना बंद कर देंगे! समझी?"
"जी पिताजी...वो नेहा जिद्द करने लगी तो...मैंने थोड़ा डाँट दिया| आगे से ध्यान रखूँगी|" नेहा और आयुष पास ही खड़े थे तो मैंने कान पकड़ के उन्हें सॉरी बोला....आयुष ने तो मुस्कुरा के मुझे माफ़ी दे दी पर नेहा के मुख पे अब भी कोई ख़ुशी नहीं आई थी| वो बोली; "दादा जी... मैं भी आपके साथ रुकूँगी|" पर पिताजी ने उसे समझते हुए कहा; "बेटे..आपको कल स्कूल जाना है और मैं यहाँ हूँ ना? आप सब अब घर जाओ|" कम से कम उस समय तो उसने पिताजी की बात मान ली थी|
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दोपहर दो बजे पिताजी, माँ और बच्चे आये...माँ मेरे लिए खाना पैक कर के लाईन थी पर मेरी खाने की जा भी इच्छा नहीं थी| फिर भी माँ के जोर देने पर मैंने खाना खाया.... खाना खाने के बाद पिताजी ने मुझे थोड़ी चिंता जनक बात बताई; "बेटी आज नेहा के स्कूल से फ़ोन आया था| उसकी क्लास टीचर ने बताया की नेहा आज सारा दिन रो रही थी| जब तेअच्छेर ने उससे कारन पूछा तो उसने टीचर को सब बताया| नेहा टीचर से जिद्द करने लगी की उसे एक महीने की छुट्टी चाहिए| जब तक उसके पापा की तबियत ठीक नहीं होती...वो स्कूल नहीं आएगी| टीचर ने बहुत समझाया पर इसने जिद्द पकड़ ली की मैं कल से स्कूल नहीं आऊँगी| हार कर टीचर ने मुझे फ़ोन किया| हमने तो इसे खूब समझाया ...अब तू ही समझा इसे कुछ!"
"मैंने जब नेहा को देखा तो वो नजरें झुकाये सा सुन रही थी| वो वैसे भी मुझसे बात नहीं कर रही थी...तो ऐसे में जल्दबाजी दिखाना जर्रुरी नहीं था| मैंने बस इतना कहा; "पिताजी ठीक ही तो है... कल से मैं और नेहा दोनों मिल के यहाँ इनका (मेरे पति और नेहा के पापा) का ख्याल रखेंगे|" पिताजी ये सुन के चौंक गए पर अगले ही पल जब उन्हें मेरी बात समझ आई तो वो कुछ नहीं बोले| मुझे नेहा को अपने अनुसार समझाना था..पर ये समय उसके लिए सही नहीं था|
अब आगे .....
रात के आठ बजे तो पिताजी ने क बार फिर मुझे समझाना चाहा की मैं माँ के साथ घर चली जाऊं पर मैंने इनसे फिर से रेक़ूस्त की तो उन्होंने मेरी बात मान ली| जब पिताजी ने नेहा को साथ जाने को कहा तो उसने जाने से साफ़ मना कर दिया| मैंने माँ को इशारे से कहा की आज की रात इसे यहीं रहने दो तो माँ ने कहा; "कोई बात नहीं जी ..आज इसे यहीं अपनी माँ के पास रहने दो| पर नेहा बेटी तेरे बिना मुझे नींद नहीं आती ...मैं कैसे सोऊँगी?" माँ ने एक बार कोशिश की कि शायद नेहा मान जाए और उनके साथ घर चले पर नेहा ने तपाक से जवाब दिया; "दादी जी..आयुष है ना| जब पापा ठीक हो जायेंगे तब मैं रोज आपके पास सोऊँगी… Promise" माँ ने और कुछ नहीं कहा और उसके सर पे हाथ रख के आशीर्वाद दिया और आयुष को साथ ले के चली गईं| माँ के जाने के बाद मैंने कमरे का दरवाजा लॉक किया और नेहा के सोने के लिए सोफे को ठीक करने लगी| पर सोफे इतना छोटा था की उसपे सिर्फ एक इंसान ही सो सकता था, तो मैंने सोचा की मैं जमीन पर लेट जाऊँगी पर नेहा बोली; "मैं नीचे सोऊँगी आप ऊपर सो जाओ|" चलो इसी बहाने से वो मुझसे कुछ बोली तो सही| मैं करीब 2 घंटों से नहीं सोई थी और सारा दिन एक ही जगह बैठे रहने से थकावट मुझ पे असर दिखाने लगी थी| लेटने के कुछ देर बाद मेरी आँख लग गई.... रात के बारह बजे होंगे ..कि मुझे लगा कि कोई कुछ बोल रहा है मैं ख़ुशी से उठ बैठी कि इन्हें (मेरे पति को) होश आ गया! पर जब मैंने थोड़ा ध्यान से आवाज सुनी तो पता चला की ये तो नेहा है जो अपने पापा से बात कर रही है| मैं चुप-चाप लेट गई और उसकी बातें सुनने लगी; "पापा आप मुझसे नाराज हो??? आप मम्मी से बात नहीं कर रहे ..ठीक है... पर मैंने क्या किया? आप तो मुझसे सब से ज्यादा प्यार करते हो ना? फिर मुझसे बात क्यों नहीं करते? देखो अभी मम्मी सो रही हैं तो हम आराम से बात कर सकते हैं... I Promise मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी... it'll be our secret!!! ओके आप मेरे कान में बोलो..." नेहा के बचपने को देख मेरी आँखें भर आई..मैं जानती थी की वो अपने पापा को मुझसे ज्यादा प्यार करती है.... पर ये सब सुन मुझे लगा की कहीं उसके दिल को कोई सदमा ना लगे इसलिए मैं उठ बैठी और कमरे की लाइट ओन की| लाइट ओन होते ही नेहा की नजर मुझ पे पड़ी और वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी|
"नही...बेटी इधर आ.." नेहा सर झुकाये मेरे पास आ कर कड़ी हो गई|
"बेटी.... आप कल से मुझसे बात नहीं कर रहे हो! I'm really sorry कल मैंने आपको डाँटा... seriously sorry.... अब क्या जिंदगी भर आप मुझसे नाराज रहोगे?"
"मैं उस वजह से आप से नाराज नहीं हूँ|" नेहा ने सर झुकाये हुए कहा|
"तो?"
"आपकी वजह से पापा की तबियत ख़राब हुई...सब आपकी वजह से हुआ है... आपने कभी पापा को प्यार किया ही नहीं| वो आपसे इतना प्यार करते हैं... उस दिन वो उससे (चन्दर) से लड़ पड़े..सिर्फ आपके लिए और आपको उनकी कोई कदर ही नहीं| सात साल पहले भी आपे उन्हें खुद से ददोर कर दिया था!"
ये सुन के मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई थी| उस समय नेहा बहुत छोटी थी...तो उसे ये बात कैसे पता? मेरी परेशानी देख वो खुद बोली; "उस दिन जब आप और पापा बात कर रहे थे तब मैंने आप दोनों की सारी बात सुन ली थी|" "बेटी....." मैंने उसे समझाना चाहा पर उसने मेरी बात काट दी|
"आपने....आपने पापा को एक दम से isolate कर दिया! उन्होंने आपसे क्या माँगा था जो आप नहीं दे सकते थे? बस आपको खुश रहने को ही तो कह रहे थे.... आपकी वजह से दादा जी दादी जी सब परेशान थे और just आपका डर खत्म करने के लिए अगर पापा दुबई में सेटल होने की बात कह रहे थे तो कौन सी गलत बात कह दी उन्होंने? कम से कम आपका डर तो खत्म हो जाता पर नहीं ...आपको तो पापा को तकलीफ देने में मजा आता है ना?
आपको तो मेरी भी परवाह नही थी! क्या सच में आपको याद नही था की मेरी स्कूल जाने की उम्र हो गई है? जितने भी साल मैं गाँव में पढ़ पाई वो सिर्फ पापा की वजह से! मुझे ठीक से तो याद नहीं पर मेरे बचपन का सबसे सुखद समय वही था जब पापा गाँव आये हुए थे और अगर मैं गलत नही तोि आपका भी सबसे सुखद समय वही था| पूरे परिवार में सिवाय पापा के और कोई नही था जिसे पता हो की मुझे 'चिप्स' बहु पसंद हैं...यहाँ तक की आप को भी नहीं! गाँव में मुझे कोई प्यार नही करता था...सिर्फ पापा थे जो मुझे प्यार करते थे| ये सब जानते हुए भी आपने पापा को खुद से और मुझसे दूर कर दिया? अपनी नहीं तो कम से कम मेरी ख़ुशी का ख्याल किया होता? ओह्ह...याद आया...आपने उस दिन पापा को ये सफाई दी थी की आपकी वजह से उनका career ख़राब हो जाता! वाओ !! और अभी जो उनका ये हाल है उसका जिम्मेदार कौन है?
.................................. एक बात कहूँ You Don't DESERVE HIM! इतना Loving Husband आपके लिए नहीं हो सकता! जिस दिन पापा को होश आया उनकी नजर आप पड़ेगी और कहीं आपको देख उनका गुस्सा फूट पड़ा तो उनकी तबियत और ख़राब हो जाएगी, यही कारन है की मैंने अपनी क्लास टीचर से स्कूल न आने की बात की ताकि जब पापा को होश आये तो सबसे पहले मैं उन्हें दिखाई दूँ..आप नहीं! पापा आपसे नाराज हैं and I know वो आपसे कभी बात नही करेंगे| वो सिर्फ और सिर्फ मुझसे बात करेंगे ....सिर्फ और सिर्फ मुझसे! I Hate you mummy!"" इतना कह के वो लेट गई और मैंने उठ के कमरे की लाइट बंद की और सोफे पे बैठी सिसकने लगी| उसने एक भी बात गलत नही बोली थी... और सच में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया की मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई की अपने मम्मी-पापा की बातें छुप के सुनने लगी है और समझने भी लगी है| हालाँकि इन्होने (मेरे पति ने) कभी बच्चों से कोई बात नही छुपाई ...पर कुछ पर्सनल बातें हम अकेले में किया करते थे जो सब नेहा सुन चुकी थी|
आज मैं अपनी ही बेटी...अपने ही खून की नजरों में दोषी बन चुकी थी...दोषी! अब मुझे इस पाप का प्रायश्चित करना था....किसी भी हाल में! मैं अपने बच्चों के सर से उनके पापा का साया कभी नही उठने देना चाहती थी...और ऐसा कभी नही होगा, कम से कम मेरे जीते जी तो नही! वो सारी रात मैं ने जागते हुए काटी.... सुबह सात बजे माँ और पिताजी आये, आयुष को सीधा स्कूल छोड़ के.... कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था… नेहा अब भी सो रही थी| पिताजी ने मझसे पूछा की क्या मैंने नेहा को समझा दिया तो मैंने कहा; "यहीं पिताजी...कल बात करने का समय नही मिला| थक गई थी इसलिए सो गई...आज बात करुँगी और कल से वो स्कूल भी जाएगी|" मेरी बात से पिताजी को आश्वासन मिला और वो निश्चिन्त हो गए| हम चाय पी रहे थे की नेहा जाग गई..और आँखें मलती हुई अपने पापा के पास गई और उनके गाल पे Kiss किया और फिर बाथरूम चली गई| ये नेहा का रोज का नियम था .... उसे देख-देख के आयुष ने भी ये आदत सीख ली पर वो मुझे और इन्हें (मेरे पति) को kiss करता था| जैसे ही वो बाथरूम से निकली तभी अनिल (मेरा भाई) आ गया| उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए और अपने जीजू की तबियत के बारे में पूछने लगा|
"पिताजी...ये सब कैसे हुआ? जीजू तो एकदम भले-चंगे थे?"
पिताजी के जवाब देने से पहले ही नेहा बोल पड़ी; "मम्मी की वजह से...." सब की नजरें नेहा पर थीं और उसकी ऊँगली का इशारा मेरी तरफ था|
 
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