Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन - Page 4 - SexBaba
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Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन

मैं अंदर ही अंदर घुट्टी जा रही थी.....बस एक ही डर सता रहा था की वो फिर आएगा और मेरे बच्चे को मुझ से छीन के दूर ले जायेगा| मैं क्या करूँ....क्या करूँ....की इस दरिंदे से अपने बच्चों को बचा सकूँ.....क्या उन्हें अपने सीने से लगा के रखूँ....कहीं बाहर ना जाने दूँ..... जहाँ भी जाऊँ उन्हें अपने साथ रखूँ......... पर अगर मैंने ऐसा किया तो मेरे बच्चों का बचपन बर्बाद हो जायेगा? क्यों?....आखिर क्यों? ये मेरे साथ हो रहा है? मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा बस जो भी हुआ उसे सहती रही....क्या मुझे खुश होने का हक़ नहीं? इन सवालों ने मुझे कुछ भी बोलने लायक नहीं छोड़ा था....ऐसा लगता था की अगर मैं कुछ बोल पड़ी तो जो थोड़ी हिम्मत अंदर बची है वो टूट जाएगी और मैं फिर रो पडूँगी....टूट जाऊँगी..... और फिर मेरे परिवार का क्या होगा? मुझे इस तरह बिलखता हुआ देख मेरे पति का भी सब्र टूट जायेगा...माँ-पिताजी के दिल को भी ठेस पहुँचेगी| भला उनकी इस सब में क्या गलती है? गलती तो मेरी है......ना मैंने इनसे प्यार का इजहार किया होता ....ना ये मेरे लिए कभी गाँव आते ....न हम इन दो महीनों में इतना करीब आते.....ना मैं दुबारा दिल्ली आती....न इनसे मिलती..... न इनके दिल में अपने लिए उस दबे हुए प्यार को जगाती और ना ही हमारी शादी होती| तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता....मेरी एक गलती की वजह से बिचारे बच्चे भी मुसीबत में पड़ गए! पर मैं अब ऐसा क्या करूँ की सब ठीक हो जाये? अकेले बैठी बस यही सोच रही थी .....पर जब अपने पति की तरफ देखती थी तो महसूस कर सकती थी की वो मुझे और बच्चों को लेके कितना चिंतित हैं? पर मुझे दुःख है की मैं उनकी चिंता की कारन बानी...सिर्फ और सिर्फ मैं! हालाँकि जबसे ये दुखद घटना घाटी उसके बाद से ये ही लग रहा था की वो अंदर ही अंडा खुद को दोषी मान रहे हैं ...पर मैं छह कर भी उन्हें कुछ नहीं कह पा रही थी...उन्हें .....कुछ कहने के डर से ही मैं अंदर घुटती जा रही थी| मैं जानती थी की वो बिना कहे मेरी हर एक बात को महसूस कर रहे हैं और कई बार उन्होंने कोशिश की कि मैं कुछ कहूँ...बोलूं....पर मेरा अंतर मन जानता था कि अगर मैं कुछ बोली तो.....

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मैं शाम को तैयार हुआ और निकलने वाला था की सोचा एक बार उन से बात तो कर लूँ ...शायद वो कुछ बोल दें की Take Care ..... या Drive Safely .....या कुछ भी! मैं इसी उम्मीद में उनके पास जाके चुप-चाप खड़ा हो गया पर वो बोलीं कुछ नहीं बस आके मेरे सीने से लग गईं| मेरे मन ने उनके मन के विचारों को पढ़ा की वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं और शायद मैं जो चाहता हूँ वो अभी नहीं मिलेगा... !!! मैंने उनके सर को चूम और कहा;
मैं: बाबू.....
मैंने एक बार फिर आस की कि शायद मेरे बाबू कहने पे वो हमेशा खुश हो जाया करती थीं, उदास होती थीं तो मुस्कुराने लग जाया करती थीं.....गुस्सा होती थीं तो मुस्कुरा दिया करती थीं.....तो शायद कुछ बोल पढ़ें? पर नहीं...वो खामोश कड़ी रहीं|
मैं: बाबू..... अपना ख्याल रखना और कोई भी बात हो तो मुझे फोन कर लेना| ओके?
उन्होंने बस हाँ में सर हिला दिया| मैं कमरे से निकल आया और बाहर डाइनिंग टेबल पे पिताजी, माँ और बच्चे बैठे थे और चाय/दूध पी रहे थे| मैंने आयुष और नेहा के सर को चूमा और पिताजी के पाँव हाथ लगाने लगा, उन्हें भी मेरे मस्तक पे पड़ी चिंता कि शिकन दिख गई और बोले;
पिताजी: बेटा तू चिंता ना कर तेरी माँ आज रात बहु के पास होगी...औरबच्चे मेरे पास सोयेंगे| क्यों बच्चों?
बच्चों ने मुस्कुरा के हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने एक नजर फिर संगीता को देखा कि शायद वो कुछ बोल दें पर नहीं! मैं गाडी लेके साइट पे आ गया और काम संभालने लगा| फोन मैंने हाथ में ले रखा था ...और बार-बार फोन चेक करता था कि शायद कोई मैसेज आ जाए या कोई कॉल आ जाए...या what's app पे ही कोई मैसेज आ जाये पर नहीं...संगीता ने तो अपना फोन बंद कर रखा था| फोन आया भी तो अनिल का.... पिताजी ने ससुर जी को फोन कर के सब बता दिया था और वो भी काफी चिंतित थे| उनके जरिये बात अनिल तक पहुंची और भी काफी हड़बड़ाया हुआ था, और दिल्ली आना चाहता था| मैंने उसे कहा कि अगर उसे कोई प्रॉब्लम नहीं है तो वो आ जाये, शायद उसी को देख के संगीता कुछ बोल पड़े| मैंने उसे कहा कि मैं टिकट बुक कर के भेजता हूँ तो वो बोला कि नहीं मैं खुद आ जाऊँगा.... और ससुरजी भी दो दिन बाद आ रहे हैं| अपनों को देख के उनका मन हल्का होगा....यही सोच के मैंने सब को आने कि हाँ कर दी| अब मैं वापस अपने काम में लग गया....................और उम्मीद करता रहा कि शायद संगीता call करे!
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उनके काम पे जाने के बाद मैं आधा महसूस करने लगी..... जबतक वो घर पे थे मैंभले ही उनसे कुछ नहीं बोली पर जानती थी कि वो बिना मेरे कहे मेरी बात समझते हैं पर उनके जाने के बाद मेरी मूक भाषा को समझने वाला कोई नहीं था| माँ अवश्य थीं और वो मुझे आज बहुत लाड कर रहीं थीं..ऐसा नहीं है कि वो मुझे कभी प्यार नहीं करती थीं पर आज वो मेरा बहुत ज्यादा ही ख़याल रख रहीं थीं| बार-बार कुछ न कुछ कोशिश कर के मुझसे बातें करतीं..... कभी सीरियल के बहाने ...कभी किसी recipe के बहाने..... उन्होंने तो बच्चों से भी कहा कि वो मेरे साथ खेलें...हंसी-मजाक करें....पर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे सब का प्यार मेरे दिल को छूना चाहता है पर नजाने क्यों सब कुछ मेरे जिस्म को बिना छुए ही कहीं निकल जाता है....मैं उनका प्यार महसूस ही नहीं कर पा रही थी! मेरे दिमाग ने मुझे एक cocoon में बंद कर दिया था....जहाँ ना कोई ममता आ सकती थी...न ही किसी का प्यार! खुद को इस कदर अपनी नजरों से गिरा चुकी थी कि............. मुझे उनकी कमी खेलने लगी....लगने लगा कि मुझे उन्हें जाने को नहीं कहना चाहिए था? अगर वो यहाँ होते तो मैं अकेला महसूस नहीं करती......पर ये मैं क्या सोच रही हूँ? मैं स्वार्थी कैसे हो गई? उनका काम जिससे हमारी रोटी चलती है ...वो भी तो जर्रुरी है! मैं अपने प्यार कि बेड़ियां उनके काम पे कैसे डालने कि सोच सकती हूँ? ये मुझे क्या होने लगा था....??????????
माँ ने मुझे बहुत मन किया कि मैं खाना ना बनाउन और आराम करूँ पर मैंने सोचा कि शायद इसी बहाने मैं अपना ध्यान उन बातों से हटा सकूँ तो...मैं खाना बनाने जुट गई| पर एक पल के लिए भी मैं दिन कि घटनाओं को भूल ना पाई और इसी चक्कर में मैंने खाने में नमक ही नहीं डाला! जब सब खाना खाने बैठे तो ना पिताजी ने ना माँ ने खाने में नमक कि कमी कि बात कही और चुप-चाप खाना खाते रहे| बच्चों तक ने खाने में नमक नहीं होने कि बात नहीं की!!! वो भी जानते थे की मम्मी परेशान हैं....जब भी ये घर पे नहीं होते थे तो मैं हमेशा अंत में खाना खाती थी और मुझे खाना माँ ही परोस के देती थी...इतना प्यार करती थी माँ मुझे! आज जब उन्होंने खाना परोस के दिया तो वो नमक की बरनी में से नमक निकाल के डालने लगीं, हालाँकि वो बड़े ध्यान से ये कर रहीं थीं की मेरी नजर उनपे ना पड़े...पर मैंने फिर भी देख लिया| तब मुझे एहसास हुआ की मैंने आज अपने माता-पिता को और बच्चों को बिना नमक का खाना खिला दिया......मुझे खुद पे बहुत ग्लानि होने लगी की हे भगवान ये मुझसे कैसा अनर्थ हो गया? पर माँ ने ऐसा कुछ नहीं जताया...वो समझ सकती थीं की मेरी मनो-स्थिति कैसी है इसलिए आज पहलीबार उन्होंने अपने हाथों से मुझे खाना खिलाया| मैंने भी उन्हें मन नहीं किया क्योंकि मैं उस cocoon से बाहर निकलना चाहती थी| इस तरह मौन रह के मैं अपने ही परिवार को और दुःख नहीं देना चाहती थी| खाना खाने के बाद मैं और माँ अपने कमरे में आ गए और बिस्तर पे लेट गए| तभी माँ के फोन पे उनका फोन आया....वो जब भी साइट पे रुकते थे तो माँ को फोन कर के पूछते थे की सबने खाना खाया की नहीं और सब कुछ ठीक ठाक तो है ना?| मैं बिस्तर में लेट चुकी थी और रजाई ओढ़ चुकी थी....मैं सिर्फ माँ की ही बात सुनाई दे रही थी| माँ उन्हें बता रही थीं की; "बहु ने कहाँ खा लिया है...और मैंने अपने हाथों से उसे खाना खिलाया है....अभी लेटी है...तू कहे तो मैं उठाऊँ?" मैं जानती हूँ...उन्होंने ना ही कहा होगा फिर माँ ने उनसे पूछा की; "बेटा तूने खाना खाया? हम्म्म्म...ठीक है|" मैं ये नहीं समझ पाई की उन्होंने खाना खाया की नहीं...ना ही मेरी इतनी हिम्मत थी की मैं माँ से पूछ सकूँ इसलिए मैं सोने का नाटक करने लगी और फिर से सोच में डूब गई .....की मेरी वजह से मेरे पति ने खाना नहीं खाया...ये भी मरी ही गलती है! पर तभी माँ बोलीं; "बेटी....मैं जानती हूँ तू सोई नहीं है..... देख समझ सकती हूँ की उस दर्दनाक हादसे को भूलना आसान नहीं है...अपर बेटी अगर कोशिश नहीं करेगी तो कैसे चलेगा? मानु तुझे इतना प्यार करता है....बाहर से भले ही वो मजबूत दिखे पर अंदर से वो भी तेरे जितना ही दुखी है| वो अपनी पूरी कोशिश कर रहा है की चीजों को संभाल ले...और मैं के बात कहूँ.....तेरे कारण वो इतना जिम्मेदार हुआ है! तेरे प्यार ने उसे इतना लायक बना दिया...वरना पहले वो अपनी जिम्मेदारियाँ इतनी गंभीरता से नहीं लेता था? हमेशा मैं ही उसका बचाव करती थी.....पर याद है अपने जन्मदिन वाले दिन वो शराब पी के तेरे पास रुका था? और अगले दिन उसने तेरे साने कसम खाई की वो दुबारा ऐसी गलती नहीं करेगा....और होटल में जब हम दोनों ने उसे पीने को कहा वो भी इस लिए की उसकी खांसी-जुखाम ठीक हो जाए तो उसने कैसे मना कर दिया? ये सब तेरे कारन हुआ है..... मैं जानती थी की तेरे आने से पहले वो कभी-कभार शराब पी कर घर आया पर उसने कभी कोई ड्रामा नहीं किया...ना ही मैंने ये बात उसके पिताजी से कही पर मुझे गर्व है तुझ पे की तूने मेरे बेटे को सीधा कर दिया|" माँ ने कोशिश की कि मैं उनकी सीधा कर दूँ कि बात पे हंस दूँ ...पर नहीं ...मैं हँस नहीं पाई! उनकी बातों ने मेरे दिल को छू लिया और वो guilty वाली feeling कुछ हद्द तक काम हुई और पर खत्म नहीं हुई!
माँ मेरे सर पे हाथ फेरती रहीं कि शायद ,उझे नींद आ जाये पर नींद ने तो मुझसे कट्टी कर ली थी! मैं आँखें खोले अपने उसी cocoon में सड़ने लगी| उम्र का तगजा था कि माँ कि आँख लग गई ...और मैं माँ को देखने लगी मन ही मन उनसे माफ़ी मांगने लगी कि मेरे कारण आज वो भी उदास हैं| भले ही वो मेरे सामने अपने भाव आने ना देती हों पर मेरा दिल महसूस तो आर ही रहा था कि मैं अपने परिवार को अन्तः दुखों कि ओर धकेले जा रही हूँ| रात के कूप अँधेरे और सन्नाटे में मैं घडी कि टिक-टिक साग सुन रही थी....हर एक सेकंड...हर एक मिनट....हर एक घंटे को बीतते हुए महसूस कर रही थी| मैं इस कदर निराश हो चुकी थी कि मन कह रहा था कि "ऐ दिल...तो थम जा... कि अब इस धड़कन को सुनाके कोई फायदा नहीं| छोड़ दे ये मोह....शायद तेरी इस कुर्बानी से मेरे पति की चिंताएं कुछ काम हो जाएं?" पर अगले ही पल मैंने खुद को झिंझोड़ा और उठ के बैठ गई, "अपने मचलते मन को काबू करने लगी...की तू ये क्या कह रहा है? भूल गया की इस शरीर के साथ अभी एक और जिंदगी जुडी है? और मेरे पति का क्या होगा? वो मेरे बिना कैसे जिन्दा रहेंगे? मेरे बचचे....नहीं...नहीं....ये मुझे क्या हो रहा है| मैं उठी और जाके अपना मुंह धोया...ये सोच के की इसके साथ मेरे अंदर उठ रहे ये गंदे विचार भी बह जाएँ| मुंह धो के मैं वापस आके लेट गई पर आँखें अब भी खुली थीं और मन उनकी आवाज सुनने को बेताब होने लगा...सोचा की कॉल कर लूँ? फिर सोचा की कॉल करके कहूँगी क्या? अगर कुछ कहा और मैं रो पड़ी तो वो काम छोड़के अभी यहाँ पहुँच जायेंगे ...इसलिए मन मार के लेटी रही...और घडी की टिक-टिक सुनती रही| सुबह मेरी आँखों के सामने ही हुई और माँ जब उठीं तो मुझे जागता हुआ पाया; "बेटी तू सारी रात सोई नहीं?" मैं कुछ नहीं बोली और चुप-चाप उठ के बैठ गई| फिर माँ के पाँव छुए आशीर्वाद लिया और चाय बनाने चली गई| माँ ने बहुत कोशिश की मुझे रोकने की पर मैं नहीं मानी....उनकी आज्ञा की अवेहलना करने लगी| पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे अखबार पढ़ रहे थे...मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया और मुझसे हाल-चाल पूछा पर मैं अब भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी और हाथजोड़ के बिना कुछ कहे ही माफ़ी मांग ली| वो कुछ नहीं बोले......माँ को आवाज दी और उनसे मेरे हाल-चाल पूछा तो माँ ने कहा; "बहु अब तक कुछ नहीं बोली है....मुझे उसकी बहुत फ़िक्र है|" पिताजी बोले; "मैं अभी मानु को फोन करता हूँ|" पर इससे पहले की फोन उन्हें खनकता, ये खुद ही आ गए|
 
सारी रात संगीता के बारे में सोचता रहा और जैसे ही सुबह हुई मैं साइट से निकल पड़ा| सुबह छः बजे ही घर आ धमका| आमतौर पे मैं आठ बजे तक आया करता था पर उनसे मिलने की इतनी बेचैनी थी की मैं आज जल्दी घर अ गया| Doorbell बजे तो दरवाजा माँ ने खोला और दरवाजा खोलते ही बोलीं;
माँ: लो...ये तो आ गया?
पिताजी: बैठ बेटा.....
मैंने देखा तो संगीता किचन में चाय बना रही थी|
पिताजी: बेटा...कल से बहु ने एक शब्द भी नहीं बोला है.... तेरी माँ ने बताया की वो रात भर सोई नहीं है..... तू उससे बात कर..कैसे भी...उससे कुछ बुलवा... अगर वो इसी तरह सहमी रहेगी तो कहीं उसके दिल में डर न बैठ जाये|
मैं: पिताजी....मैं उनसे बात करूँगा| नहीं तो डॉक्टर सुनीता के पास जायेंगे|
माँ: बेटा अभी बच्चे उठेंगे तो मैं और तेरे पिताजी उन्हें लेके मंदिर जायेंगे....तब बहु से इत्मीनान से बात कर|
मैं: जी|
जब तक माँ-पिताजी और बच्चे मंदिर के लिए नहीं निकल गए मैंने संगीता से कुछ नहीं कहा और चुप-चाप टेबल पे बैठा रहा| जबकि असल में में पूरा शरीर थका हुआ, जैसे ही सब बाहर गए और दरवाजा लॉक हुआ मैंने संगीता से कहा;
मैं: Can we talk please!
मैंने बड़े प्यार से बोला और ये पहली बार था की मैं उन्हें सिर्फ बात करने के लिए "please" कह रहा हूँ| मैं कमरे में आ गया और मेरे पीछे-पीछे संगीता भी आ गई पर वो अब भी गुम-सुम थी, मैंने उन्हें पलंग पे बिठाया और मैं उनके सामने घुटनों पे आ गया और उनका हाथ पकड़ के बोला;
मैं: For the past 24 hours I’ve been dying every minute to hear your voice! I gave you 24 Hrs so you may recollect yourself…but now I can’t take it anymore. I can feel what’s going inside your head but if you don’t spill it out now, then I’m sorry but I might giveup! I can’t live without you, please say something? नहीं तो इस बार मैं टूट जाऊँगा|
पर मुझे लगा की वो खुद को कुछ भी कहने से रोक रही हैं| अब तो मैं हार मान चूका था!
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मुझे लगा की वो खुद को कुछ भी कहने से रोक रही हैं| अब तो मैं हार मान चूका था! मैं उठ के खड़ा हुआ और कमरे से बाहर निकलने को पलटा तभी उन्होंने आके मुझे पीछे से जकड लिया| वो बिलख पड़ीं और रोने लगीं:
मैं जानती थी की अब वो टूट जायेंगे और अगर वो टूट गए तो मेरे इस परिवार का क्या होगा| मैंने खुद को सँभालने की कोशिश की, की मैं ना रोऊँ पर नहीं....दिल को रोने से रोक नहीं पाई और जैसे ही वो मुड़े मैंने उन्हें पीछे से जाके जकड लिया और रोने लगी| मेरे रोने से उनके दिल में जो टीस उठी उसे मैं मेहस्सो कर रही थी...पर उन्होंने खुद को संभाला और मेरी तरफ घूमे और मेरे माथे को चूमा और मुझे कस के गले लगा लिया| कल रात से मैं तड़प रही थी और आज जब उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाया तो सारी तड़प जाती रही| उनके सीने में जल रही मेरी आवाज सुनने की आग मैं साफ़ महसूस कर रही थी और मन ही मन खुद को कोस रही थी की क्यों मैंने अपने पति को इतना तड़पाया? अपने माता-पिता की आज्ञा का बिना चाहे अवहेलना करती रही| पर अभी...अभी मुझे कुछ कहना था...ताकि मेरे पति की सहन शक्ति बानी रहे| मेरी अंतर आत्मा से आवाज आई जो मेरे मुँह से बाहर आई; "I LOVE YOU" मैंने अब भी अपना सर उनके सीने में छुपा रखा था और मैं ये नहीं देख पाई के उनके चेहरे पर कैसे भाव थे|
24 घंटे बाद जब मैंने उनकी आवाज सुनी तो मैं आपको बता नहीं सकता की मुझे कैसा महसूस हुआ| ऐसा लगा मानो "गर्मी से जल रही धरती पे पानी के कुछ कतरे गिरे हों! (Sorry Guys, मेरे पास तुलना करने के लिए कोई और संज्ञा नहीं थी|)
मैं: I LOVE YOU TOO! अब बस...रोना नहीं...मैं हूँ ना आपके पास? फिर? अब बताओ की आप इतना डरे हुए क्यों हो? क्यों आपने खुद को मुझसे काट लिया?
उनका रोना थम गया था और अब मैं बस बेसब्री से उनके जवाब का इन्तेजार करने लगा!
 
अब मुझे लग रहा था की मुझे उनसे सब सच कह देना चाहिए....मैं अब उनसे कुछ भी नहीं छुपाऊँगी और पिछले 24 घंटे में जो भी बातें मुझे खाय जा रही थीं मैं उन्हें सब बता दूँ| कल शाम से मैं जिस cocoon में बंद थी उसपे माँ की बातों से दररर तो पद चुकी थी और कुछ देर पहले इनके प्यार ने उस cocoon को तोड़ डाला था और अब मैं आजाद थी......मुझे इनके सामने अपनी बात रखनी ही थी|
कल...जो भी हुआ है उससे मैं बहुत डर गई हूँ! अपने लिए नहीं बल्कि आपके और बच्चों के लिए...अपने परिवार के लिए..... जब आपने उसकी गर्दन पकड़ी तो लगा की आप उसकी जान ही ले लोगे ..... और बच्चे वो भी बहुत सहम गए थे! पर खतरा अभी तक टला नहीं है!!! वो वापस आएगा....जर्रूर आएगा....आयुष के लिए! वो उसे अपने साथ ले जायेगा...हमसे दूर ...वो उसे हमसे छीन लेगा.... जर्रूर छीन लेगा ....और हम कुछ नहीं कर पाएंगे..... कुछ भी नहीं.....
मैं: Hey ...Hey…get a hold of yourself! वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगा...कुछ नहीं होगा आयुष को...मैं उसे अपने से दूर नहीं जाने दूँगा| सुना आपने? आयुष हमारे पास ही रहेगा!
नहीं....वो उसे ले जाएगा.....सब मेरी वजह से हुआ ...मैं ही कारन हूँ इसका...मेरी वजह से वो आपको...माँ-पिताजी को ...सबको नुक्सान पहुँचायेगा! आप सब की मुसीबत का कारन मैं हूँ! ना मैं आपको जिंदगी में दुबारा आती ना ये सब होता .....प्लीज मुझे माफ़ कर दो!
मैं: बाबू...सम्भालो खुद को! क्यों इस तरह खुद को Blame कर रहे हो...आपने कुछ भी नहीं किया...अगर कोई जिम्मेदार है तो वो मैं हूँ....शादी का प्रपोजल मेरा था...और मैं मानता हूँ की मैंने ये स्वार्थ में आके कहा था| मैं जानता था की चन्दर के किये घपले के कारन पिताजी और बड़के दादा का गुस्सा उसपे अवश्य निकलेगा...परिणाम स्वरुप आपको वापस गाँव जाना होगा| और अगर आप गाँव चले जाते तो मैं अकेला रह जाता..... मैंने स्वार्थ में आके आपके सामने शादी का प्रपोजल रखा| अपने माँ-पिताजी को भी मैंने ही मनाया...आपके पिताजी से भी मैंने ही बात की .... फिर divorce papers ले के मैं ही गया था गाँव...उसके sign डरा धमका के मैंने ही लिए थे| कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ...आप नहीं!
पर अगर मैं दुबारा आपकी जिंदगी में ही ना आती तो ये सब होता ही नहीं ना?
मैं: जानते हो अगर आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो मैं बस एक चलती-फिरती लाश बन के रह जाता ..... आपको चाह के भी नहीं भुला पा रहा था...भूलता भी कैसे? मेरी आत्मा का एक टुकड़ा आपके पास जो रह गया था.....अरे आपके प्यार ने तो मुझे उस लड़की का नाम तक भुला दिया जो मुझे आकर्षित करने लगी थी!
मैंने जान बुझ के उस लड़की वाली बात कही ताकि वो मुस्कुराएं और वो थोड़ा मुस्कुराईं भी.... ऐसी मुस्कराहट जैसे की "सूरज की पहली किरण पड़ने पे जैसे कोई काली मुस्कुराती हो"!
मैं: I’m glad की आपने कुछ negative बातें नहीं सोचीं!
I’m sorry …. पर कल रात मैं इतना depressed हो गई थी की मेरे मन में खुदखुशी करने की इच्छा जन्म लेने लगी थी!
ये सुन के तो मेरी जान ही सूख गई|
मैं: What?
I'm sorry ..... पर मैंने ऐसा वैसा कुछ भी करने की नहीं सोची| मैं जानती थी की मेरे बाद आप ...........इसलिए मैंने कुछ भी नहीं किया|
मैं: आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? आपको पता है कल जब उसकी गर्दन मेरे हाथ में थी तो आपकी और बच्चों की ये हालत देख के मेरे खून खौलने लगा था, मन तो किया उसकी गर्दन तोड़ दूँ ....पर फिर एहसास हुआ की ऐसा करने पे मैं आप लोगों से बहुत दूर चला जाऊँगा| र आप ......शायद मेरे ही प्यार में कमी रह गई होगी की आपको ऐसा सोचने पे मजबूर होना पड़ा|
नहीं...नहीं...ऐसा नहीं है..... मैं जानती हूँ मैं गलत थी...मुझे आप पर पूरा भरोसा है...पर मैं इतना डर चुकी थी की नहीं जानती थी की जो मैं सोच रही हूँ वो सही है या गलत|
मैं: अगर आपको कुछ हो जाता ना तो I Promise I’d have slit his throat!
नहीं...आपको मेरी कसम आप...ऐसा कुछ भी नहीं करोगे! मैं पहले ही बहुत टूट चुकी हूँ अब और नहीं टूट सकती| पिछले चौबीस घंटों में मैंने बहुत से पाप किये हैं जिनकी मुझे क्षमा मांगनी है| आपसे ...माँ से...पिताजी से....और बच्चों से भी!
 
मैं: I don’t know why but you still feel GUILTY! Why? आप इतना हारा हुआ क्यों महसूस कर रहे हो.....? आपने हमारे आने वाले बच्चे के बारे में जरा भी नहीं सोचा? आपकी ये मायूसी उसपे कितनी भारी पद सकती है? आपको इसका जरा भी अंदाजा है? और आप दूर क्यों जाते हो, नेहा को देखो? आपको पता है की मुझे उसपे कितना फक्र है? उस नन्ही सी जान ने अकेले आयुष को संभाला हुआ है? आप उस से सबक लो! क्या माँ-पिताजी आपसे प्यार नहीं करते? क्यों आपने खुद को इतना बाँध रखा है? क्या हमें कभी समाज की परवाह थी जो आप आज कर रहे हो? हमने सीना चौड़ा कर के प्यार किया है और शादी की है फिर आपको डर किस बात का है? रही आयुष की बात तो आप उसकी चिंता मत करो| मैं माँ-पिताजी से बात करता हूँ...सब ठीक हो जायेगा! बस मुझ पे भरोसा रखो!
एक आप ही का तो सहारा है...वरना मैं कब का बह चुकी होती|
मैं: यार फिर वही बात? अगर आप मुझे आज के बाद इस तरह हताश दिखे ना तो मैं .... मैं आपसे बात नहीं करूँगा?
हम्म्म...Sorry! This won't happen again!
मैंने उन्हें फिर से गले लगा लिया...पर मैं जानता था की वो अंदर से अब भी जख्मी हैं...भले ही वो अपने घाव मुझे न दिखाएँ पर मैं अपने प्यार से उन्हें जल्दी भर दूँगा|
उनसे दिल खोल के बात करने से मेरा मन तो हल्का हुआ था... पर अब भी डर सता रहा था| पर अभी तो मुझे सबसे पहले अपने माँ-पिताजी से माफ़ी मांगनी थी| कल मेरी वजह से उन्हें और बच्चों को बिना नमक का खाना खाना पड़ा था और तो और मैंने सारा दिन जो न बोलने का पाप किया था उसका भी तो प्रायश्चित करना था|
मैं: अच्छा अब आप आराम करो....कल रात से आप सोये नहीं हो|
संगीता: पर मुझे अभी खाना बनाना है?
इतने में फोन बज उठा| पिताजी का था;
मैं: जी पिताजी!
पिताजी: बेटा हम दोपहर तक आएंगे और खाना मैं यहीं से लेता हुआ आऊँगा| तुम लोग आराम करो!
मैं: जी बेहतर|
मैंने फोन रखा और संगीता से कहा;
मैं: पिताजी का फोन था वो दोपहर तक आएंगे और खाना लेते हुए आएंगे| तब तक हम दोनों को आराम करने को कहा है|
संगीता: कल मैंने सब को बिना नमक का खाना खिलाया था ना ...इसीलिए!
मैं: Hey .... ऐसा नहीं है| वो बस हम दोनों को थोड़ा समय एक साथ गुजरने के लिए देना चाहते हैं| वो भी जानते हैं की बच्चों के यहाँ रहते हुए तो हम-दोनों....you know what I mean ???
संगीता: हम्म्म....
मैं: तो चलो रजाई में...
मैंने उन्हें लिटाया और मैं भी कपडे चेंज का के उनके पास लेट गया| उन्होंने हमेशा की तरह मेरे हाथ को अपना तकिया बनाया और सर रख के मुझसे लिपट गईं| मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था ताकि वो आराम से सो जाएँ| पर मुझे महसूस हुआ की वो सो नहीं रही हैं और जाग रही हैं|
मैं: (मैंने तुतलाते हुए कहा) बाबू....छो जाओ| और आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे नहीं तो हमारे बच्चे पे इसका बुरा असर पड़ेगा| ठीक है?
संगीता: हम्म्म.... पूरी कोशिश करुँगी|
मैं: तो अब सो जाओ.... कल रात से आप जाग रहे हो|
Well ये कोई नै बात नहीं थी ...मैं उन्हें बस अपने बच्चे का वास्ता देता रहा था और वो बात मान जाया करती थीं| खेर पिताजी और माँ के आने तक हम दोनों सोते रहे|
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मैं उनके आगोश में समां चुकी थी और तभी मुझे उनके दिल की धड़कनें सुनाई देने लगी| उनके मन में मेरे लिए ...मेरी शीट के लिए....हमारे होने वाले बच्चे के लिए....नेहा के लिए...आयुष के लिए ....जो डर पनपने लगा था उसे मैं महसूस करने लगी थी| मैं जानती थी की उन्हें मेरी कितनी फ़िक्र है पर मैं ये मानती थी की वो ये सब सेह लेंगे और मुझे और पूरे परिवार को होंसला देंगे पर अभी जब मैंने उनकी धड़कनें सुनी तो मुझे एहसास हुआ की अंदर से ये मेरे और बच्चों के लिए कितना बेचैन हैं? और मैं ही इनकी बेचैनी का कारण हूँ| मेरी अंतर आत्मा ने मुझे झिंझोड़ा की जो इंसान तुझ से इतना प्यार करता है, तेरी एक ख़ुशी के लिए सब से लड़ पड़ता है...तू ही उसकी कमजोरी बन रही है? भले ही वो बाहर से ना जताएं की वो अंदर से कमजोर पड़ने लगे हैं पर तुझे तो समझना चाहिए ना? आखिर तू उनके शरीर का आधा अंग है! मुझे खुद पे काबू रखना था और जल्द से जल्द सम्भलना था| मेरे मन में एक जंग छिड़ गई..... एक तरफ मन का वो हिस्सा था जो इन्हें बहुत प्यार करता था और दूसरी तरफ वो हिस्सा जो डरा हुआ था| डरा हुआ हिस्सा अब भी हावी होने लगा था और लगने लगा था की कहीं मैं हार ना जॉन...पर कहते हैं ना ऊपर वाला हमेशा हमारे साथ होता है| अचानक से इन्होने मेरे सर को चूमा ...शायद ये जानते थे की मेरे मन में जंग छिड़ी है ....और इनकी एक Kiss ने साड़ी लड़ाई का रुख पलट दिया था| जो आत्मविश्वास मैं खो चुकी थी वो वापस आने लगा था .....इनका प्यार जीत गया था और डर हार गया था| पर जाते-जाते भी डर अपने साथ पुरानी संगीता को साथ ले गया था| यहाँ तो बस वो संगीता रह गई थी जो बस इस परिवार का ख्याल रखना चाहती थी! वो इनसे प्यार तो करती थी पर जाहिर नहीं करती!
जब हम दोनों उठे तो दोपहत के ढाई बज रहे थे और दो मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी| मैं उठने लगा तो संगीता ने रोक दिया और खुद दरवाजा खोलने गई| मैं भी उसके पीछे-पीछे चल दिया| दरवाजा खोलके उसने सबसे पहले माँ और पिताजी के पाँव छुए और फिर उनसे माफ़ी मांगने लगी;
संगीता: माँ....पिताजी...मुझे माफ़ कर दीजिये| कल मैने आप सब के साथ बदसलूकी की| आपकी बातों का जवाब नहीं दिया....बिना नमक का खाना खिलाया|
माँ: बेटी ये तू क्या कह रही है? हम समझ सकते हैं की तू किस दौर से गुजर रही है| खाने में नमक जैसी छोटी सी बात पे तुझे लगा हम तुझसे नराज हैं| माँ-बाप कभी अपने बच्चों से इन छोटी बातों पे नाराज होते हैं? तू भी तो माँ है, क्या तू कभी नेहा और आयुष से नाराज हो सकती है?
संगीता ने ना में सर हिलाया|
पिताजी: फिर? बेटी इन छोटी बातों को दिल से ना लगाया कर| जो कुछ हुआ उसे भूल जा और तू लाड साहब वहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है| चल खाना परोस?
मैं: जी
मैं हँसता हुआ प्लेट और डोंगे निकलने वजा रहा था की संगीता अचानक से आ गई और बोली;
संगीता: आप बैठो ...मैं निकाल देती हूँ|
normally इतना प्यार से बोलती थी की मुझे अच्छा लगता था पर आज उसकी आवाज में कुछ बदलाव था...मेरा मतलब उसकी टोन अलग थी| ऐसा लगा जैसे वो चाहती नहीं की मैं "डोंगे निकालने की तकलीफ करूँ!" I mean मैं कोई म्हणत वाला काम तो नहीं कर रहा था की वो मेरे साथ कुछ ऐसा सलूक करे| पर फिर भी मैंने बात को दर-गुजर किया और डाइनिंग टेबल पे बैठ गया| खाना संगीता ने ही सब को परोसा और फिर वो भी बैठ गई| खाना खाने के दौरान सब चुप थे, जबकि हम लोग कुछ न कुछ बात किया करते थे| फिर अचानक से पिताजी ने ही topic उठाया|
पिताजी: बीटा तुम दोनों कहीं घूमने चले जाओ? बहु का और बच्चों का मन बदल जायेगा|
मैं: जी ठीक है|
संगीता: पर पिताजी... अभी-अभी तो हम आये हैं? फिर चले जाएं? काम भी तो देखना है इनको|
माँ: बेटी तू काम की चिंता मत कर, वो तो होता रहेगा| अभी जर्रुरी ये है की तुम दोनों खुश रहो|
संगीता: पर माँ मैं बिना आप लोगों के कहीं नहीं जाऊँगी|
मैं: रहने दो माँ हम यहीं घूम आएंगे|
मैंने बात संभाल ली पर मैं समझ गया था की संगीता का इशारा किस तरफ था| उसे डर था की कहीं हमारी गैर-हाजरी में चन्दर दुबारा आ गया और उसने फिर से लड़ाई-झगड़ा किया तो? मैं चुप रहा ...खाना खाने के बाद;
मैं: नेहा...आयुष .. बेटा आप दोनों कमरे में जाओ और अपना holiday homework पूरा करो|
नेहा: जी पापा...चल आयुष तेरा Maths का homework रहता है ना|
दोनों अंदर चले गए और फिर मैंने अपनी बात यानी संगीता का डर माँ-पिताजी के सामने रखा|
 
मैं: पिताजी...एक बात करनी है आप दोनों से|
माँ: हाँ ..हाँ बोल?
मैं: माँ संगीता को डर है की चन्दर फिर वापस आएगा.....और आयुष को अपने साथ ले जायेगा|
माँ: ऐसा कुछ नहीं होगा बेटी!!! तू ऐसा मत सोच?
संगीता: माँ .... वो जर्रूर आएगा|
मैं: माँ...पिताजी ...इनके डर का निवारण करना जर्रुरी है| मैं इन्हें समझा चूका हूँ की वो ऐसा कुछ नहीं करेगा और सतीश जी ने अजय को भी सब डरा-समझा दिया है| पर इन्हें संतोष नहीं मिला| हमें बस सावधानी बरतनी है....... स्कूल से लाने और छोड़ने की जिम्मेदारी अब हम लोग ही उठाएंगे| स्कूल में भी मैं जा के बात कर लूँगा की हमारे आलावा school authorities हमारे अलावा किसी और को बच्चों को साथ नहीं जाने देंगे|
पिताजी: बिलकुल सही है| सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं|
संगीता: पर पिताजी आप ही बताइये की क्या बच्चों को बंदिशों में बाँधने से उनके बचपन पे असर नहीं पड़ेगा?
माँ: बिलकुल सही कहा बेटी| इस तरह तो वो डर में जीने लगेंगे|
बात वही की वहीँ आ गई थी| मुझे समझ नहीं आ रहा था की उनका डर खत्म कैसे करूँ? मैं झुंझला उठा;
मैं: You want me to kill him? Just say the word. I promise I'll do it!
संगीता: आप ये क्या कह रहे हो?
चूँकि मैंने अंग्रेजी में बोला था तो माँ-पिताजी के पल्ले नहीं पड़ा|
पिताजी: क्या कह रहा है ये बहु?
संगीता: ये....ये......(उन्हें कहने में भी डर लग रहा था|)
मैं: मैंने कहा की मैं उसका खून कर दूँगा?
पिताजी: क्या? तेरा दिमाग खराब हो गया है? (पिताजी ने गुस्से में कहा) जानते है आस-पड़ोस वाले क्या कहते हैं? कहते हैं की भाई साहब आपके लड़के को क्या हो गया है? जिसने आज तक किसी को गाली नहीं दी वो कल अपने ही चचेरे भाई को इतनी बुरी तरह पीट रहा था? क्या जवाब दूँ मैं उन्हें?
अब तो मेरे मन में भी गुस्सा उबलने लगा था और वो बाहर भी आ गया, मैंने टेबल पे जोर से हाथ पटका और गुस्से में बोला;
मैं: तो क्या करूँ मैं? कल ही जान ले लेता उसकी पर इनका ख्याल दिल में आ गया और उसे छोड़ दिया|
अब इनके दिल में डर बैठ गया है तो आप ही बताओ मैं क्या करूँ? जब किसी के घर में कोई जानवर घूस आता है तब इंसान अपने परिवार को पहले बचाता है ना की ये सोचता है की वो एक जीव हत्या कर रहा है|
पिताजी: बेटा मैं समझ सकता हूँ तेरा गुस्सा पर ये कोई उपाय तो नहीं? ठन्डे दिमाग से काम ले!
माँ: बेटा शांत हो जा....देख बहु कितना सहम गई है|
मैं चुप हो गया और सर पकड़ के बैठ गया| कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ? मैं उठा और बाहर निकल गया क्योंकि मैं जानता था की मैं चाहे जो भी कहूँ उन पर कोई असर नहीं होने वाला और वैसे भी वहां माँ और पिताजी थे और नके सामने मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं पनवाड़ी के पास आया और उससे एक cigarette ली पहले सोचा वहीँ पी लूँ पर फिर कुछ सोच के रूक गया| मैंने आज तक cigarette नहीं पि थी और जानता था की पहला कश लेते ही मुझे खांसी आ जाएगी और आस-पास खड़े लोग हंसने लगते की जब झिलती नहीं है तो पीता क्यों है? तो मैं वापस घर आ गया और सीधा छत पे पहुँच गया और cigarette सुलगाई और इससे पहले की मैं पहला कश खींचता संगीता आ गई और मेरे मुंह से cigarette खींच ली और दूर फेंक दी!
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"ये आप क्या कर रहे हो?"
सवाल तो मैंने पूछ लिया ........पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया| बस चुप-चाप टकटकी बांधे मुझे देखने लगे| उनकी नजरें मुझे चुभ रही थीं...... कारन क्या था मैं जानती थी! मैं ही उनके हताश होने का कारन थी! मैं चाह के भी उन्हें वो प्यार नहीं दे पा रही थी .....जिस पे उनका हक़ था! आमतौर पर अगर ऐसा कुछ होता था तो मैं उनके गले लग जाया करती थी और बस इतना करने से ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाया करता था और वो बड़े प्यार से बोलते; "Sorry जान...आगे से ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा!" पर आज हालात कुछ और थे! मेरे अंदर वो पहले वाली संगीता नहीं थी जो अपना प्यार जाहिर किया करती थी! उस समय मैं ज्यादा देर उनके सामने खड़ी नहीं रह सकी और वापस मूड के नीचे आ गई| मैं कमरे में बच्चों का homework करने में मदद कर थी की तभी ये भी नीचे आ गये| मैं जानती थी की मेरी वजह से ये इतने तड़प उठे की cigarette को छुआ| मैं जानती हूँ की आज तक इन्होने cigarette कभी नहीं पी और ना ही आगे कभी पिएंगे! मुझे लगा था की ये अपनी नाराजगी जाहिर करेंगे पर नहीं......इन्होने ऐसा कुछ भी नहीं किया! बल्कि इन्होने आके मुझसे प्यार से पूछा; "जान पिक्चर चलना है?" पर मैंने ना में सर हिलाया और डाइनिंग टेबल पे आ के बैठ गई और सब्जी काटने लगी रात के लिए|
उनकी ना सुनके मैं सोच में पड़ गया की मेरी संगीता को क्या हुआ? उस संगीता को जिसे मैं प्यार करता हूँ......जो मेरी पत्नी है..... मेरे बच्चों की माँ.....मेरे होने वाले बच्चे की माँ ..... आखिर उसे हुआ क्या है? वो कहाँ चली गई? क्या मेरा प्यार कम पड़ गया है उसके लिए? या शायद अब मेरे प्यार में वो ताकत नहीं जो उसे फिर से हँसा दे! उसका हर गम भुला दे! मेरी हर बात मैंने वाली मेरी पत्नी कहाँ चली गई? मैं क्या करूँ की वो फिर से हँस पड़े? इस घर में जो गम का सन्नाटा फैला है उसे सिर्फ और सिर्फ उसकी हँसी ही दूर कर सकती थी| उनकी किलकारियां सुनने को तरस गया था....मुझे लगा था की शायद पिक्चर जाने के बहाने वो थोड़ा रोमांटिक हो जाएं या फिर मैं थोड़ा रोमांटिक हो जाऊँ...पर यहाँ भी बदनसीबी ने दरवाजा मेरे मुँह पे दे मारा| ठीक है..."ऐ किस्मत कभी तू भी मुझ पे हँस ले.....बहुत दिन हुए मैं रोया नहीं!!!"
अब बारी थी बच्चों की, जिन्हें कल से मैं समय नहीं दे पाया था और मेरा मानना था की उन्हें अभी से सब पता होना चाहिए वरना आगे चल के वो मुझे और संगीता को गलत समझेंगे| नेहा तो सब जानती थी, समझती थी पर आयुष ज्यादा डिटेल नहीं जानता था| और मैं इतना निराश महसूस कर रहा था की मैंने सोचा की आयुष को भी ये सब पता होना चाहिए!
मैं: आयुष....नेहा...बेटा इधर आओ| पापा को आप से कुछ बात करनी है|
मैं बिस्तर में बैठ गया और रजाई ले ली| मेरी पीठ bed post से लगी थी और दोनों बच्चे मेरी अगल-बगल आके बैठ गए| नेहा मेरे दाहिने तरफ थी और आयुष मेरी बायीं तरफ|
मैं: बेटा आप दोनों को कुछ बातें बतानी है| ये बातें आपको पता होनी चाहिए| कल जो कुछ भी हुआ वो सब इन्हीं बातों के कारन हुआ| दरअसल मैं आपकी माँ से बहुत प्यार करता हूँ और वो भी मुझे बहुत प्यार करती हैं| पर आपकी मम्मी की शादी उस इंसान से हुई है जो कल आया था|
नेहा: वो...पुराने पापा?
मैं: हाँ..... पर आपकी मम्मी उसे नहीं बल्कि मुझे प्यार करती थीं| वो बहुत गन्दा इंसान है....आप (नेहा) तो जानते हो? वो शराब पीता है.... आपकी माँ को मारता-पीटता था| जब आप (नेहा) पैदा भी नहीं हुए थे तभी से आपकी मम्मी मुझे प्यार करती थीं पर उन्होंने कभी मुझे नहीं बताया| आपको याद है जब आप पहली बार इस घर में आये थे, उस दिन आपकी मम्मी ने मुझे बताया की वो मुझसे कितना प्यार करती हैं| पर तब मैं एक Teenager था...शादी नहीं कर सकता था! फिर जब मैं गाँव आया तब …… बेटा उन दिनों आपकी मम्मी और मैं बहुत नजदीक आ गए| इतना नजदीक की हम एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते थे| मैं उन्हें बहुत चाहने लगा था .... तभी आयुष भी उनकी कोख में आया था| आयुष....बेटा आप मेरे ही बेटे हो ...मेरा खून!
नेहा: और मैं?
मैं: बेटा आप .....मेरा खून नहीं हो पर मैं आपसे भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना मैं आयुष को करता हूँ और शायद उससे ज्यादा ही| क्या आपको कभी ऐसा लगा की मैं आपसे प्यार नहीं करता?
नेहा: नहीं....पापा मैं जानती हूँ की आप सबसे ज्यादा मुझसे प्यार करते हो!
मैं: बेटा (आयुष) …….उसे (चन्दर) लगता है की आप उसके बेटे हो पर आप तो मेरे बेटे हो! इसलिए वो आपको जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहता था|
आयुष: मैं नहीं जाऊँगा उसके साथ!
मैं: बिलकुल नहीं जाओगे| आप मेरे बेटे हो ....और पापा हैं ना आपके पास तो कोई आपको मुझसे अलग नहीं कर सकता| और कल आपने देखा की आप की दीदी ने अपने बड़े होने का कैसे फ़र्ज़ निभाया? आप बहुत तंग करते हो ना दीदी को और कल देखो उन्होंने ना केवल आपको बल्कि आपकी मम्मी को भी संभाला! I’m proud of you beta (Neha)!!!
मैंने नेहा को गले लगा लिया|
आयुष: I LOVE YOU दीदी!
नेहा: I LOVE YOU TOO आयुष!
दोनों मेरे सीने से लग गए और मैंने उनको खूब प्यार किया और फिर हम pillow fight करने लगे| दोनों एक team में और मैं अकेला! आयुष तो मेरी छाती पे बैठ के मुझे मारने लगा और नेहा भी बगल में बैठ गई और मुझे तकिये से मारनी लगी| पूरे घर में बच्चों की हँसी गूंजने लगी| मेरा आत्मविश्वास जो टूटने लगा था वो फिर से वापस आ गया और मैं सोच लिया की मैं संगीता को फिरसे हँसा के रहूँगा, पर जर्रूरत थी एक मौके की!
 
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