hotaks444
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माँ ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी पर मेरा दिल आज बहुत बेचैन था! माँ के सामने तो मैंने जैसे-तैसे खुद को रोक लिया पर माँ के जाने के बाद मेरे आँसूं फिर बहने लगी... मैं इनके सामने बैठ गई और इनका हाथ अपने हाथों में ले कर इनसे बात करने लगी; "आप क्यों मुझ पर इतना गुस्सा निकाल रहे हो? इतना ही गुस्सा है तो मेरी जान ले लो! पर इस तरह मुझ पर जुल्म तो मत करो! इतना प्यार करते हो मुझसे ...फिर इतनी नाराजगी क्यों? एक बार बस एक बार अपनी आँखें खोल दो... प्लीज ....i beg of you ..... !!! प्लीज .....i promise .... i promise मैं आज के बाद आपसे कभी नाराज नहीं हूँगी! कभी आपसे बात करना बंद नहीं करुँगी! प्लीज.... मन जाओ.... अच्छा मेरे लिए ना सही तो अपनी बेटी नेहा के लिए....आयुष के लिए ....प्लीज..... जानते हो नेहा ने प्रण किया है की वो कभी शादी नहीं करेगी! मेरे कारन सात साल....उसे आपका प्यार नहीं मिल पाया! कम से कम उसके लिए ही ..............." पर मेरी कही किसी भी आत का उन पर (मेरे पति) कोई असर नहीं पड़ा| वो अब भी उसी तरह मूक लेटे हुए थे! सारी रात मैं बस रोती रही ... बिलखती रही.... और सच पूछो तो उस वक़्त मुझे एहसास हुआ की मेरी आँख से गिरे एक कतरे आँसूं को देख ये इतने परेशान हो जाय करते थे की घर-भर अपने सर पर उठा लिया करते थे... और आज मैं यहाँ बिलख-बिलख के रो रही हूँ ... इनसे मिन्नतें कर रही हूँ की आप वापस आ जाओ.... मेरे आँसुओं की क्या कीमत थी, उस दिन मुझे ज्ञात हुआ! उस रात शायद भगवान को मुझ पर तरस आ गया हो...या फिर ये कहें की उन्होंने नेहा की दुआ कबूल कर ली और....................
अब आगे..........
इनका (मेरे पति का) हाथ अपने हाथों में लिए, रोते-रोते इनसे मिन्नत करते-करते कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला| हाँ इतना याद है की मैं एक सपना देख रही थी जिसमें ये मेरे से दूर जा रहे थे और मैं इन्हें रोकने के लिए बस रोये जा रही थी और बोल रही थी; "प्लीज मत जाओ....मुझे अकेला छोड़ के मत जाओ!" सपना मेरे लिए बहत डरावना था| तभी मुझे महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरी हथेली को दबाया हो! ये महसूस होते ही मेरी आँखें तुरंत खुली और मैंने इनकी देखा तो इनके चेहरे पर शिकन के भाव दिखे और इनके कुछ बुदबुदाने का एहसास हुआ! आवाज इतनी हलकी थी की मैं सुन ना सकी तो मैं अपना कान इनके होठों के नजदीक ले गई और मुझे ये सुनाई दिया; "i'm ...........sorry ............" ये सुन कर तो मुझे कुछ समझ नहीं आया....मैंने बिना देर किये Nurse की Call Bell बजा दी और उसके आने तक इनसे रो-रो कर बात करने लगी; "जानू.... प्लीज ..... कुछ मत बोलो....मैं यहीं हूँ आपके पास! आप चिंता मत करो.... मैं यहीं हूँ!" मुझे याद ही नहीं था की मैंने नेहा से 'Promise' किया था और मुझे एक डर सताने लगा की कहीं इन्हें मेरी वजह से कुछ हो गया तो मैं मर ही जाऊँगी| मैं इनके माथे को सहलाने लगी ताकि इन्हें थोड़ा relief मुझे| इतने मैं नर्स 'राजी' आ गई और इनकी ये हालत देख उसने तुरंत डॉक्टर को intercom किया और उनके आने तक वो vitals वगेरह चेक करने लगी| डॉक्टर भी भागे-भागे आये और मुझे बाहर जाने को कहा| मैंने बाहर आते ही तुरंत पिताजी (ससुर जी) को फोन मिलाया और उन्हें सारी बात बताई| इधर नर्स 'राजी' ने बाहर आकर मुझे आवाज दी और अंदर बुलाया| मैं बहुत डरते-डरते अंदर गई की कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया.... और मैं कुछ भी negative सुनने की हालत में नहीं थी| अगर उस वक़्त मुझे कोई गलत खबर मिलती तो मैं खड़े-खड़े ही अपने प्राण त्याग देती! पर भगवान का लाख-लाख शुकर है की ऐसा कुछ नहीं हुआ| मेरे आदर आने पर डॉक्टर ने मुझे कहा की ये आपका नाम ले रहे थे| आप इन्हीं के पास रहिये| इनका B.P. बढ़ा हुआ है| मैं इनके पास गई और इनका हाथ अपने हाथों में ले लिया|
इन्होने तब तक मेरा नाम लेना बंद नहीं किया जबतक इन्होने मेरे हाथ का स्पर्श अपने हाथों में महसूस नहीं किया| मैं मन ही मन बस प्रार्थना कर रही थी की बस इन्हें पूरी तरह होश आ जाए और इधर ये मेरा हाथ दबाये जा रहे थे| मुझे वो पल याद आया जब मैं इनसे मिलने इनके घर पहलीबार आई थी| उस दिन मेरे जाने पर इन्होने इसी तरह मेरा हाथ दबाया था ऑटोरिक्शा में भी इन्होने मेरा हाथ इसी कदर पकड़ा था जैसे ये मुझे खुद से अलग नहीं होने देंगे| मुझे डर लगने लगा की कहीं मैं इन्हें खो ना दूँ इसलिए मैं भी इनका हाथ उसी तरह दबा रही थी और मन ही मन कह रही थी की मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी| शायद इन्होने मेरे मन की बात पढ़ ली और ये थोड़ा relax होने लगे! डॉक्टर को भी इनका B.P. नार्मल होता हुआ दिखाई दिया और उन्होंने मेरी तरफ देख के कहा; "he’s alright…. I’ve given him an injection. I’ll call dr. sarita right now and tell her bout the good news.” इतना कह के वो बाहर जाने लगे, मैं उनसे बात करने बाहर जाना चाहती थी पर इन्होने मेरा हाथ नहीं छोड़ा| तो मैं भी इन्ही के सिराहने बैठ गई और इनके सर पर हाथ फेरने लगी| मेरी नजर घडी पर गई तो रात के दो बजे थे.... हाथ फेरते-फेरते कब नींद आई पता नहीं चली| करीब पौना घंटे बाद आँख खुली जब माँ-पिताजी और बच्चे आ गए| सब ने आकर हम दोनों को घेर लिया था|
मैंने दबी हुई आवाज में उन्हें सब बताया| ये सुन कर सब के चेहरों पर जो ख़ुशी झलकी उसे बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं| बच्चे चहक उठे .... बड़े सब भगवन को शुक्रिया करने लगे| माँ (सासु माँ) ने मेरे पास आकर मेरे सर पर हाथ रखा और "सदा सुहागन रहो" का आशीर्वाद दिया| नेहा बेड के दूसरी तरफ आई और अपने पापा के गाल पर kiss किया और मुस्कुराने लगी| आज इतने दिनों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान देख के मेरा दिल भी भाव०विभोर हो था और मेरी आँख से भी आँसूं छलक आये|कमरे में सब मौजूद थे....पर अनिल कहीं दिख नहीं रहा था| मैंने माँ (सासु माँ) से पूछा की अनिल कहाँ है तो उन्होंने बताया की वो तो ट्रैन पकड़ के निकल गया! मैं हैरान थी की इतनी जल्दी उसे कौन सी ट्रैन मिल गई, माँ ने बताया की उसे "कर्नाटका एक्सप्रेस" वाली ट्रैन 09:30 बजे छूटने वाली थी| वो इतना उतावला था की बिना टिकट लिए ही चढ़ गया| मैंने माँ से कहा की वो अनिल को फोन कर दें और वो वापस आ जाए तो मेरे पिताजी मुझ पर बिगड़ गए; "बिलकुल नहीं! बहनजी जब तक मानु को पूरी तरह होश नहीं आता आप अनिल को फोन मत करें| वैसे भी वो बिना कुछ पता किये वापस नहीं आएगा|" मैं जानती थी की पिताजी को इनकी (मेरे पति की) बहुत चिंता है और वो कोई भी risk नहीं लेना चाहते| हाँ इनकी जगह अगर मैं बिस्तर पड़ी होती तो शायद वो ये risk ले भी लेते! पिताजी (ससुर जी) ने भी बहुत समझाया पर मेरे माँ-पिताजी इस बात पर अड़े रहे की वो अनिल को तब तक वापस नहीं बुलाएँगे जब तक इन्हें पूरी तरह होश नहीं आ जाता| वैसे भी एक बार जानकारी हासिल करने में कोई हर्ज नहीं... आखिर सासु माँ और ससुर जी मान गए|वो पूरी रात कोई नहीं सोया| सब जाग रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे! सिर्फ एक आयुष था जो सो गया था.....अब वो था तो एक बच्चा ही! नेहा बेड के दूसरी तरफ कुर्सी ले कर बैठ गई थी और इनका दूसरा हाथ पकड़ के सहला रही थी| वो मन ही अं कुछ बुदबुदा रही थी .... मैं बस उसके होठों की थिरकन देखने लगी और कुछ देर बबाद एहसास हुआ की वो 'महामृत्युंजय मन्त्र' बोल रही थी और उसकी नजरें टकटकी बांधें अपने पापा को ही देख रही थी| नर्स 'राजी' इन्हें दुबारा चेक करे आई और मेरी तरफ मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई| मतलब की इकि तबियत में सुधार है! पांच बजे पिताजी सब के लिए चाय ले आये और तब तक ना मैंने इनका हाथ छोड़ा था और ना ही नेहा ने! हम दोनों में तो जैसे होड़ लगी थी की कौन इनसे ज्यादा प्यार करता है....देखा जाए तो नेहा ही ज्यादा प्यार करती थी!
एक जिंदगी के लिए कितने लोग दुआयें माँग रहे थे....ऐसा देवता जैसे पति है मेरे!
सुबह के नौ बजे थे, डॉक्टर सरिता भी आ चुकी थीं और सारे लोग कमरे में ही बैठे थे| डॉक्टर सरिता सब को क्या-क्या एहतियात बरतनी है उसके बारे में सब बता रही थी| उनके अनुसार तो अब कोई घबराने की बात नहीं थी| पर सब के दिलों को चैन तब मिलता जब वे इन्हें होश में देखते! जब इन्हें होश आया तो सब के सब फिर से हमें घेर कर खड़े हो गए! सबको अपने पास देख के इनके (मेरे पति के) चेहरे पर मुस्कान आई....हाय! क्या कातिल उस्काण थी वो! ऐसा लगा मानो एक अरसे बाद उनकी मुस्कान देख रही हूँ! इन्हें मुस्कुराता हुआ देख सबके दिल को इत्मीनान हुआ और मेरी माँ और सासु माँ ने इनकी नजर उतारी और भगवान को शुक्रिया अदा किया| नेहा तो बेड पर चढ़ गई और आके अपने पापा के गले लग गई और रोने लगी| रोते-रोते बोली; "i love you पापा" उसकी ये बात सुन कर ये अपने हमेशा वाले अंदाज में बोले; "awwwwwwww मेरा बच्चा!" ये सुनने के बाद ही नेहा के चेहरे पर मस्कान आई! हॉस्पिटल का बेड थोड़ा ऊँचा था तो आयुष उस पर चढ़ नहीं पा अहा था| वो भरसक प्रयास कर रहा था पर फिर ही छाड़ नहीं पा रहा था| अंत में उसे अपनने दादा जी को ही इशारा किया और बोला; "दादा जी...मुझे पापा ...." बस इसके आगे कुछ बोलने से पहले ही पिताजी ने उसे गोद में उठाया और उसके पापा की पास छोड़ दिया| वो घुटनों के बल छलके आया और नेहा के साथ साथ उसने भी अपने पापा को झप्पी डाल दी, पर वो रोया नहीं! बच्चों के गले लगने से इनका ध्यान उनपर चला गया और मेरा हाथ छूट गया| मैं उठ के डॉक्टर सरिता के पास चली गई जो ये सब देख कर काफी emotional हो गईं, चूँकि सबका ध्यान इनपर था तो किसी को उनके आँसूं नहीं दिखे| मैंने उन्हें दिल से थैंक्स बोला तो वो बस मुस्कुरा दीं|
आखिरकार जब सब ने हम दोनों को आशीर्वाद दे दिया तब सबसे पहला सवाल आयुष ने पूछा; आंटी हम पापा को घर कब ले जा सकते हैं?" उसक सवाल सं सब हँस पड़े थे| इतने दिनों बाद सबको हँसता देख मेरे दिल को थोड़ा सुकून आया| डॉक्टर सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया; "बेटा...दो-तीनं दिन अभी आपके पापा को यहाँ observation के लिए रुकना होगा| उसके बाद आप उन्हें ले जा सकते हो|" ये सुन के आयुष खुश हो गया और इधर-उधर नाचने लगा| उसका dance देख सब खुश हो गए और हँस पड़े| ख़ुशी का मौहाल बन चूका था ..... ये (मेरे पति) यही ज्यादा बात नहीं कर रहे थे| शरीर काफी कमजोर हो चूका था| बहत धीरे-धीरे बात कर रहे थे..... तभी माँ उठ के मेरे पास आईं और बोलीं; "बेटी अब तो घर चल... थोड़ा आराम कर ले... जब से मानु हॉस्पिटल आया है तो तब से घर नहीं गई|" ये सु कर इनके चेहरे पर परेशानी की शिकन पड़ने लगी और मैं इन्हें कतई परेशान नहीं करना चाहती थी तो मैं ने माँ की बात ये कह कर ताल दी; "माँ अब तो मैं इन्ही की साथ गृह-प्रवेश करुँगी|" ये सुन कर माँ हँस पड़ी और इनके हेहरे पर भी मुसस्काण आ गई| आयुष जो हमारे पास बेड पर बैठा था उसने मेरी बात को थोड़ा और मजाक में बदल दिया ये कह के; "दादी तो इस्सका मतलब की इस बार पापा चावल वाले लोटे को लात मार कर घर के नदर आयेगे?" उसके इस अचकन मजाक को सुन सभी जोर से हँस पड़े और कमरे में हंसी गूंजने लगी| एक परिवार जो तकरीबन बीस दिन से, मेरे कारन दुःख भोग रहा था वो आज... finally हँस रहा था अब भला मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए था!
अब आगे..........
इनका (मेरे पति का) हाथ अपने हाथों में लिए, रोते-रोते इनसे मिन्नत करते-करते कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला| हाँ इतना याद है की मैं एक सपना देख रही थी जिसमें ये मेरे से दूर जा रहे थे और मैं इन्हें रोकने के लिए बस रोये जा रही थी और बोल रही थी; "प्लीज मत जाओ....मुझे अकेला छोड़ के मत जाओ!" सपना मेरे लिए बहत डरावना था| तभी मुझे महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरी हथेली को दबाया हो! ये महसूस होते ही मेरी आँखें तुरंत खुली और मैंने इनकी देखा तो इनके चेहरे पर शिकन के भाव दिखे और इनके कुछ बुदबुदाने का एहसास हुआ! आवाज इतनी हलकी थी की मैं सुन ना सकी तो मैं अपना कान इनके होठों के नजदीक ले गई और मुझे ये सुनाई दिया; "i'm ...........sorry ............" ये सुन कर तो मुझे कुछ समझ नहीं आया....मैंने बिना देर किये Nurse की Call Bell बजा दी और उसके आने तक इनसे रो-रो कर बात करने लगी; "जानू.... प्लीज ..... कुछ मत बोलो....मैं यहीं हूँ आपके पास! आप चिंता मत करो.... मैं यहीं हूँ!" मुझे याद ही नहीं था की मैंने नेहा से 'Promise' किया था और मुझे एक डर सताने लगा की कहीं इन्हें मेरी वजह से कुछ हो गया तो मैं मर ही जाऊँगी| मैं इनके माथे को सहलाने लगी ताकि इन्हें थोड़ा relief मुझे| इतने मैं नर्स 'राजी' आ गई और इनकी ये हालत देख उसने तुरंत डॉक्टर को intercom किया और उनके आने तक वो vitals वगेरह चेक करने लगी| डॉक्टर भी भागे-भागे आये और मुझे बाहर जाने को कहा| मैंने बाहर आते ही तुरंत पिताजी (ससुर जी) को फोन मिलाया और उन्हें सारी बात बताई| इधर नर्स 'राजी' ने बाहर आकर मुझे आवाज दी और अंदर बुलाया| मैं बहुत डरते-डरते अंदर गई की कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया.... और मैं कुछ भी negative सुनने की हालत में नहीं थी| अगर उस वक़्त मुझे कोई गलत खबर मिलती तो मैं खड़े-खड़े ही अपने प्राण त्याग देती! पर भगवान का लाख-लाख शुकर है की ऐसा कुछ नहीं हुआ| मेरे आदर आने पर डॉक्टर ने मुझे कहा की ये आपका नाम ले रहे थे| आप इन्हीं के पास रहिये| इनका B.P. बढ़ा हुआ है| मैं इनके पास गई और इनका हाथ अपने हाथों में ले लिया|
इन्होने तब तक मेरा नाम लेना बंद नहीं किया जबतक इन्होने मेरे हाथ का स्पर्श अपने हाथों में महसूस नहीं किया| मैं मन ही मन बस प्रार्थना कर रही थी की बस इन्हें पूरी तरह होश आ जाए और इधर ये मेरा हाथ दबाये जा रहे थे| मुझे वो पल याद आया जब मैं इनसे मिलने इनके घर पहलीबार आई थी| उस दिन मेरे जाने पर इन्होने इसी तरह मेरा हाथ दबाया था ऑटोरिक्शा में भी इन्होने मेरा हाथ इसी कदर पकड़ा था जैसे ये मुझे खुद से अलग नहीं होने देंगे| मुझे डर लगने लगा की कहीं मैं इन्हें खो ना दूँ इसलिए मैं भी इनका हाथ उसी तरह दबा रही थी और मन ही मन कह रही थी की मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी| शायद इन्होने मेरे मन की बात पढ़ ली और ये थोड़ा relax होने लगे! डॉक्टर को भी इनका B.P. नार्मल होता हुआ दिखाई दिया और उन्होंने मेरी तरफ देख के कहा; "he’s alright…. I’ve given him an injection. I’ll call dr. sarita right now and tell her bout the good news.” इतना कह के वो बाहर जाने लगे, मैं उनसे बात करने बाहर जाना चाहती थी पर इन्होने मेरा हाथ नहीं छोड़ा| तो मैं भी इन्ही के सिराहने बैठ गई और इनके सर पर हाथ फेरने लगी| मेरी नजर घडी पर गई तो रात के दो बजे थे.... हाथ फेरते-फेरते कब नींद आई पता नहीं चली| करीब पौना घंटे बाद आँख खुली जब माँ-पिताजी और बच्चे आ गए| सब ने आकर हम दोनों को घेर लिया था|
मैंने दबी हुई आवाज में उन्हें सब बताया| ये सुन कर सब के चेहरों पर जो ख़ुशी झलकी उसे बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं| बच्चे चहक उठे .... बड़े सब भगवन को शुक्रिया करने लगे| माँ (सासु माँ) ने मेरे पास आकर मेरे सर पर हाथ रखा और "सदा सुहागन रहो" का आशीर्वाद दिया| नेहा बेड के दूसरी तरफ आई और अपने पापा के गाल पर kiss किया और मुस्कुराने लगी| आज इतने दिनों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान देख के मेरा दिल भी भाव०विभोर हो था और मेरी आँख से भी आँसूं छलक आये|कमरे में सब मौजूद थे....पर अनिल कहीं दिख नहीं रहा था| मैंने माँ (सासु माँ) से पूछा की अनिल कहाँ है तो उन्होंने बताया की वो तो ट्रैन पकड़ के निकल गया! मैं हैरान थी की इतनी जल्दी उसे कौन सी ट्रैन मिल गई, माँ ने बताया की उसे "कर्नाटका एक्सप्रेस" वाली ट्रैन 09:30 बजे छूटने वाली थी| वो इतना उतावला था की बिना टिकट लिए ही चढ़ गया| मैंने माँ से कहा की वो अनिल को फोन कर दें और वो वापस आ जाए तो मेरे पिताजी मुझ पर बिगड़ गए; "बिलकुल नहीं! बहनजी जब तक मानु को पूरी तरह होश नहीं आता आप अनिल को फोन मत करें| वैसे भी वो बिना कुछ पता किये वापस नहीं आएगा|" मैं जानती थी की पिताजी को इनकी (मेरे पति की) बहुत चिंता है और वो कोई भी risk नहीं लेना चाहते| हाँ इनकी जगह अगर मैं बिस्तर पड़ी होती तो शायद वो ये risk ले भी लेते! पिताजी (ससुर जी) ने भी बहुत समझाया पर मेरे माँ-पिताजी इस बात पर अड़े रहे की वो अनिल को तब तक वापस नहीं बुलाएँगे जब तक इन्हें पूरी तरह होश नहीं आ जाता| वैसे भी एक बार जानकारी हासिल करने में कोई हर्ज नहीं... आखिर सासु माँ और ससुर जी मान गए|वो पूरी रात कोई नहीं सोया| सब जाग रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे! सिर्फ एक आयुष था जो सो गया था.....अब वो था तो एक बच्चा ही! नेहा बेड के दूसरी तरफ कुर्सी ले कर बैठ गई थी और इनका दूसरा हाथ पकड़ के सहला रही थी| वो मन ही अं कुछ बुदबुदा रही थी .... मैं बस उसके होठों की थिरकन देखने लगी और कुछ देर बबाद एहसास हुआ की वो 'महामृत्युंजय मन्त्र' बोल रही थी और उसकी नजरें टकटकी बांधें अपने पापा को ही देख रही थी| नर्स 'राजी' इन्हें दुबारा चेक करे आई और मेरी तरफ मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई| मतलब की इकि तबियत में सुधार है! पांच बजे पिताजी सब के लिए चाय ले आये और तब तक ना मैंने इनका हाथ छोड़ा था और ना ही नेहा ने! हम दोनों में तो जैसे होड़ लगी थी की कौन इनसे ज्यादा प्यार करता है....देखा जाए तो नेहा ही ज्यादा प्यार करती थी!
एक जिंदगी के लिए कितने लोग दुआयें माँग रहे थे....ऐसा देवता जैसे पति है मेरे!
सुबह के नौ बजे थे, डॉक्टर सरिता भी आ चुकी थीं और सारे लोग कमरे में ही बैठे थे| डॉक्टर सरिता सब को क्या-क्या एहतियात बरतनी है उसके बारे में सब बता रही थी| उनके अनुसार तो अब कोई घबराने की बात नहीं थी| पर सब के दिलों को चैन तब मिलता जब वे इन्हें होश में देखते! जब इन्हें होश आया तो सब के सब फिर से हमें घेर कर खड़े हो गए! सबको अपने पास देख के इनके (मेरे पति के) चेहरे पर मुस्कान आई....हाय! क्या कातिल उस्काण थी वो! ऐसा लगा मानो एक अरसे बाद उनकी मुस्कान देख रही हूँ! इन्हें मुस्कुराता हुआ देख सबके दिल को इत्मीनान हुआ और मेरी माँ और सासु माँ ने इनकी नजर उतारी और भगवान को शुक्रिया अदा किया| नेहा तो बेड पर चढ़ गई और आके अपने पापा के गले लग गई और रोने लगी| रोते-रोते बोली; "i love you पापा" उसकी ये बात सुन कर ये अपने हमेशा वाले अंदाज में बोले; "awwwwwwww मेरा बच्चा!" ये सुनने के बाद ही नेहा के चेहरे पर मस्कान आई! हॉस्पिटल का बेड थोड़ा ऊँचा था तो आयुष उस पर चढ़ नहीं पा अहा था| वो भरसक प्रयास कर रहा था पर फिर ही छाड़ नहीं पा रहा था| अंत में उसे अपनने दादा जी को ही इशारा किया और बोला; "दादा जी...मुझे पापा ...." बस इसके आगे कुछ बोलने से पहले ही पिताजी ने उसे गोद में उठाया और उसके पापा की पास छोड़ दिया| वो घुटनों के बल छलके आया और नेहा के साथ साथ उसने भी अपने पापा को झप्पी डाल दी, पर वो रोया नहीं! बच्चों के गले लगने से इनका ध्यान उनपर चला गया और मेरा हाथ छूट गया| मैं उठ के डॉक्टर सरिता के पास चली गई जो ये सब देख कर काफी emotional हो गईं, चूँकि सबका ध्यान इनपर था तो किसी को उनके आँसूं नहीं दिखे| मैंने उन्हें दिल से थैंक्स बोला तो वो बस मुस्कुरा दीं|
आखिरकार जब सब ने हम दोनों को आशीर्वाद दे दिया तब सबसे पहला सवाल आयुष ने पूछा; आंटी हम पापा को घर कब ले जा सकते हैं?" उसक सवाल सं सब हँस पड़े थे| इतने दिनों बाद सबको हँसता देख मेरे दिल को थोड़ा सुकून आया| डॉक्टर सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया; "बेटा...दो-तीनं दिन अभी आपके पापा को यहाँ observation के लिए रुकना होगा| उसके बाद आप उन्हें ले जा सकते हो|" ये सुन के आयुष खुश हो गया और इधर-उधर नाचने लगा| उसका dance देख सब खुश हो गए और हँस पड़े| ख़ुशी का मौहाल बन चूका था ..... ये (मेरे पति) यही ज्यादा बात नहीं कर रहे थे| शरीर काफी कमजोर हो चूका था| बहत धीरे-धीरे बात कर रहे थे..... तभी माँ उठ के मेरे पास आईं और बोलीं; "बेटी अब तो घर चल... थोड़ा आराम कर ले... जब से मानु हॉस्पिटल आया है तो तब से घर नहीं गई|" ये सु कर इनके चेहरे पर परेशानी की शिकन पड़ने लगी और मैं इन्हें कतई परेशान नहीं करना चाहती थी तो मैं ने माँ की बात ये कह कर ताल दी; "माँ अब तो मैं इन्ही की साथ गृह-प्रवेश करुँगी|" ये सुन कर माँ हँस पड़ी और इनके हेहरे पर भी मुसस्काण आ गई| आयुष जो हमारे पास बेड पर बैठा था उसने मेरी बात को थोड़ा और मजाक में बदल दिया ये कह के; "दादी तो इस्सका मतलब की इस बार पापा चावल वाले लोटे को लात मार कर घर के नदर आयेगे?" उसके इस अचकन मजाक को सुन सभी जोर से हँस पड़े और कमरे में हंसी गूंजने लगी| एक परिवार जो तकरीबन बीस दिन से, मेरे कारन दुःख भोग रहा था वो आज... finally हँस रहा था अब भला मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए था!