SexBaba Kahani लाल हवेली - Page 6 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

SexBaba Kahani लाल हवेली

"तेरा भेजा पहले ही उड़ जाएगा श्याने...जब मैं शिकार पर निकलता हूं तब इस बात का इंतजाम करके चलता हूं कि कहीं कोई मेरे काम में बाधा न डाल दे। अपने पीछे देख। तेरे भेजे से ज्यादा दूर नहीं है वो बन्दूक...देख-देख।" स्याहपोश निरंतर सामने की ओर देखता हुआ इस प्रकार बोला मानो उसे अपने पीछे भी सब-कुछ दिखाई दे रहा हो।

राज को उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन जब उसने तिरछी दृष्टि से गर्दन को थोडा-सा घुमाकर देखा तो उसे अपने पीछे किसी की मौजूदगी की झलक मिल गई। यकीनन कोई उसके पीछे मौजूद था। उसका माउजर स्वत: ही नीचे की ओर झुक गया। वह समर्पण की मुद्रा में आ चुका था। समर्पण की मुद्रा में आने के बाद उसने मुड़कर पीछे देखना चाहा तो तुरन्त ठंडी बैरल उसकी गर्दन से आ चिपकी।

"पिस्तौल फेंक दो!" कठोर स्वर में आदेश दिया गया।

वह ठिठक गया।

"पिस्तौल फेंको वरना...!" स्वर में धमकी भरी हुई थी।

उसने उंगलियों में फंसा माउजर उंगलियों की गिरफ्त से आजाद कर दिया।

तीखी आहट के साथ भारी माउजर फर्श से टकराकर एक बार थोड़ा-सा उछला फिर स्थिर हो गया। उसके बाद वह पीछे मुड़ा। तब उसने देखा। लम्बोतरे चेहरे वाला खरनाक-सा आदमी ढीले-ढाले कुर्ते-पायजामे में खतरनाक गन लिए खड़ा था।
इस बीच...!

स्याहपोश भी अपनी गन समेत उसकी ओर घूम गया। वह दो खतरनाक हत्यारों के घेरे में पहुंच चुका था, जो न सिर्फ पेशेवर थे बल्कि निर्मम भी थे। उसने बारी-बारी से दोनों की ओर देखा।

दोनों हत्यारों ने क्रूरतापूर्ण ढंग से अट्टहास लगाया।

"हम जिसकी सुपारी लेते हैं उसे इस फानी दुनिया से कूच करना ही पड़ता है।" स्याहपोश गुर्राता हुआ क्रूरतापूर्ण स्वर में बोला।
"अब तू देखेगा...तेरी आखों के सामने हम उसे शूट कर देंगे जिसे बचाने के लिए तू आधी-तूफान की तरह दौड़ता-भागता यहां तक पहुंचा है।" लम्बे चेहरे वाले ने शैतानी हंसी के साथ कहा।

तुम लोग किसे मारना चाहते हो?" राज ने सामान्य होते हुए पूछा।

"जिसे तू बचाना चाहता है।"

"मैं किसे बचाना चाहता हूं...?"

"ऐ श्याने, जास्ती बकवास करेंगा तो पहले तुझे ही निशाना बना डालूंगा...क्या!"

"अच्छा इतना तो बता दो-उसकी सुरपारी तुम्हें दी किसने?"

"ये हमारे बिजनेस का सीक्रेट है। हम सीक्रेट आउट नहीं करते। अब मुश्किल ये है कि हमें एक की जगह दो गोलियां बरबाद करनी पड़ेगी।"

राज ने अपने दाहिने हाथ को हल्का-सा दबाव दिया और कोट की आस्तीन के अंदर ही अंदर एक छोटी-सी गोली रेंगती हुई आगे बढ़ने लगी। गोली को व्यवस्थिति करने की गरज से उसने अपना जबड़ा खुजाने के लिए हाथ ऊपर उठाया तो आगे बढ़ती गोली बीच में ही रुक गई। सब-कुछ बेहद सामान्य था। उन दोनों को कुछ पता नहीं था कि उनके विरुद्ध कार्यवाही अमल में लायी जा चुकी है।

"एक ही जगह दो हत्याएं करनी पड़ेगी।" लम्बे चेहरे वाला बोला-"एक उरसकी जो नर्सिंग होम में है और दूसरी इसकी।" उसने राज की ओर संकेत किया।"

"मुझसे वाकिफ हो?" राज ने उसकी आखों में अपलक झांकते हुए पूछा। "वक्ती जुनून के तहत बना हुआ हीरो।" "मुम्बई की पूरी पुलिस मेरी तलाश में है...।"

स्याहपोश चौंका।

"तू निशाना लगा...टेम खोटी मत कर। तब तक मैं इस हीरो से निपटता हूं।" लम्बे चेहरे वाला कर्कश स्वर में बोला।

स्याहपोश टेलिस्कोपिक गन संभालकर नर्सिग होम की तरफ घूम गया लेकिन उसका समूचा ध्यान राज की तरफ ही लगा हुआ था।
"हां...तो तू क्या कह रहा था...अक्सी मुम्बई की पुलिस तेरी तलाश कर रही है?" लम्बोतरे चेहरे वाला गुर्राहट भरे स्वर में बोला।
 
"दिल्ली और गुजरात की पुलिस भी।" राज ने उसकी आखों में झांकते हुए कहा।

"इतना बड़ा सिंघड़ है तू।"

"दो लाख का इनाम है मेरे सिर पर।"

"इससे भी ज्यादा लम्बी हांकने का अवसर दूंगा तुझे...बोल-बोल?"

"नाम नहीं पूछोगे?"
"बता दे...अपने-आपको लायन बता दे।"

"राज शर्मा...उर्फ लायन।"

"वाह रे झुठे...जैसा मैं बोलता जा रहा हूं तू भी बेशर्म बनकर उसे ही रिपीट किए जा रहा है।"


"तुझे रंजीत सावन्त ने यहां भेजा है कामरेड करीम का मर्डर करने के लिए...।" रौद्र हो उठा।

लम्बे चेहरे कला पहले सावधान हुआ लेकिन राज को सहज भाव से स्थिर देख वह पुन: पहले जैसी स्थिति में आ गया।

"अच्छा तो सचमुच का हीरो बनना चाहता है।"


"पेशेवर हत्यारे का काम बेहद बुरा होता है। और एक बात तुझे बता दूं, गोली चलाने वाला गोली से ही मरता है मगर पेशेवर हत्यारा कुत्ते की मौत भी मरता है।"

"तू तो अपने आपको सचमुच लायन साबित करने पर तुला हुआ है।"

"और सुन...तेरा अंजाम भी बहुत बुरा होने वाला है।"

"अभी तो मुझे तू मरता दिखाई दे रहा है बड़बोले।"

__ “निशाने पर है शिकार...! इसी बीच स्याहपोश ऊंचे स्वर में बोला। टेलिस्कोपिक गन उसके कंधे से सटी हुई थी और आख टेलिस्कोप के लैंस पर। उसका शरीर तना हुआ था। उसमें रत्ती बराबर भी शिथिलता नहीं थी।

"ट्रेगर दबा दे!" लम्बोतरे चेहरे वाला चिल्लकर बोला।

उसी समय राज ने अपना दाहिना हाथ सीधा कर दिया। आस्सीन से गोली फिसलकर फर्श पर गिरी। गिरते ही हल्का-सा विस्फोट हुआ।
और!
पलक झपकते जैसे वहां एक समूचा बादल फैल गया हो। लम्बे चेहरे वाले ने फायर किया। लक्ष्यविहीन फायर।

उसकी आखें तीखी पीड़ा से बंद हो गई थीं । वही हालत स्याहपोश की थी। स्याहपोश ने भी ट्रेगर दबाने की की कोशिश की मगर ट्रेगर दबाने के पहले ही वह हवा में उछल चुका था।

किसी ने उसे दूसरे माले से नीचे फेंक दिया था। वह सिर के बल नीचे गिरा। गर्दन टूटी और खेल खत्म हो गया।

बचा लम्बे चेहरे वाला। आखें बंद किए ही गिरता-पड़ता वह सीढ़ियों तक जा पहुंचा। सीढ़ियों पर फिसल जाने के कारण वह संतुलन बनाए न रख सका।
__ सीढ़ियों पर फिसलते हुए नीचे आधे मोड़ पर पहुंचने में चोटें तो उसे कई आयीं लेकिन उस धुएं की पीड़ा कम से कम वह नहीं थी। उसने कराहते हुए अपनी आखों को दोनों हाथों से मसल डाला। धुएं की पीड़ा आखों में खुजली मचाए चली जा रही थी। अन्त में! किसी प्रकार उसने अपनी आंखों को खोला।

आखों को खोला तब राज उसके सामने था। उसने दहशत भरी निगाहों से राज की और देखा-"ट...लायन...?"
 
"मैं तुझे यर्फीन नहीं दिलाऊंगा...जानता हैं क्यों...?" राज सपाट स्वर में बोला-"इसलिए कि मरने के बाद तुझे यकीन हो जाएगा।"

"न...न...नहीं।" भय से उसकी आंखें फैल गईं।

"पेशेवर हत्यारा है न तू?"

"नहीं-नहीं...मुझे मत मारो। मैं मरना नहीं चाहता" लम्बोतरे चेहरे वाले की हालत उस बकरे जैसी थी जो कसाई के सामने पहुंच चुका था।

"मौत से डर लग रहा है...लग रहा है न?"

"म...मैं हाथ जोड़ता हूं"

"तू इतना क्रूर है कि न जाने कितने लोगों को तूने हाथ जोड़ने का अवसर भी नहीं दिया होगा। मैंने तुझे वो अवसर दे दिया...अब तू गोली का दर्द । सहकर देख...देख कितना दर्द होता है।" राज ने माउजर का ट्रेगर दबाया। गोली उसके पेट में लगी। वह आर्तनाद कर उठा। उसके दोनों हाथ अपने पेट के घाव पर जा पहुंचे।

"दर्द होता है?"
.
.
दूसरा फायर हुआ...गोली इस बार सीने के आसपास लगी।

इसी बीच पुलिस का कर्कश सायरन गूंज उठा। राज चौंक पड़ा।

उसने तेजी से नीचे छलांग लगाई और फिर वह दौड़ता हुआ निर्माणाधीन इमारत के पिछले भाग में होता हुआ दूसरी इमारत की ओर और अन्त में पहली इमारत की ओर निकल गया जिसमें कि निर्माण कार्य जारी था।

वह सुरक्षित भाग था, इस कारण उधर से निकलने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई।

__ पुलिस निर्माणधीन इमारत में होने वाले कांड की तफ्तीश में लगी रही। डाक्टर यही इंतजार करता रहा कि अब कोई पुलिस इंस्पेक्टर उसके नर्सिंग होम मैं दाखिल हो...तब दाखिल हो...लेकिन कुछ नहीं हुआ। कामरेड करीम को होश भी आ गया। मगर उसका स्टेटमेंट लेने कोई भाई पुलिसिया वहां नहीं पहुंचा।
अन्त में...।

राज ने करीम को जय के हवाले कर दिया। जय को उसने आदेश दिया था कि करीम को ऐसी जगह ले जाकर रख दे जिस जगह सावन्त के आदमी न पहुंच सकें। जय ने वैसा ही किया।

राज डॉली के साथ चैम्बूर सिंधी कॉलोनी वापस लौट आया।

डिनर से पहले उसने तीन-चार पैग लगा लिए थे। डॉली का मूड बदलने की गरज से उसने थस्मअप में व्हिस्की मिलाकर उसे पिला दी थी। डिनर के बाद नशा रफ्तार पकड़ने लगा। फ्लैट में मौजूद टी. वी. में केबल का कनैक्शन था। राज ने जो चैनल लगाया उस पर डांस का प्रोग्राम चल रहा था।

डॉली ने भी उठकर डांस करना आरंभ कर दिया। उस समय उसने नीले रंग की सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी। बाल खुले थे और खुले बालों में सफेद बेला के फूलों का गजरा बंधा हुआ था। उसकी आखों में कामिनी जैसे भाव थे। नशे में उसे संगीत बेहद प्यारा लग रहा था। नृत्य करती उसकी छवि राज की आंखें में वासना की चिंगारियों का समावेश करती जा रही थी।

___ पहले तो वह डॉली के अंग-प्रत्यंगों को थिरकता हुआ देखता रहा। मन ही मन उसने डॉली के नृत्य की सराहना की। सचमुच वह बहुत अच्छा डांस कर रही थी।
अंत में नशे ने उसे एक ही झटके में डॉली के पास पहुंचा दिया और अगले ही पल वह उसकी बांहों में थी।

"ऐ जी..." डॉली उसके गले में बांहों का हार पहनाती हुई आसक्त मुद्रा में मुस्कराई-"क्या इरादा है

"इरादा नेक है तूफाने हमदम।" राज उसके अधरों पर चुम्बन अंकित करता हुआ बोला, साथ ही उसने अपने कदम बैडरूम की ओर बढ़ा दिए।

"कुछ पिला दिया है तुमने मुझे...मेरा सर घूम रहा है।"

"अभी सब ठीक हो जाएगा।"

"कसे?"

"बताता हूं...।"

"ऐई।"

"क्या है?"
.
"मुझे त म्हारी नीयत ठीक यहीं लग रही है...यू नाटी।"

राज ने उसे ऊपर से ही बैड पर छोड़ दिया।

"उई मां...मरी! मेरी कमर...!" वह चिल्लाई। उसने प्रतिरोध स्वरूप टांगें चलायीं तो साड़ी ऊपर उठती चली गई। उसकी गोरी पिंडलियों को वस्त्रविहीन हो जाना पड़ा। ऐसा वह क्रोध में कर रही थी, इसलिए हो रहा था या जान-बूझकर अपने सुडौल अंगों का प्रदर्शन कर राज को अधिक रिझाना चाह रही थी मालूम न हो सका।
 
अलबत्ता राज इस प्रकार उसकी खुली कमर और आकर्षक टांगों को देख रहा था मानो कोई नारी जिस्म पहली बार देख रहा हो। वह एकाएक ही झपटा। डॉली ने फुर्ती से करवट बदली। वह बैड के दूसरे किनारे पर जा पहुंची। लेकिन साड़ी का छोर राज के हाथ में था। उसने साड़ी खींची तो डॉली पलटती हुई बैड के नीचे जा गिरी और साड़ी उसके जिस्म से अलग हो गई। उसकी पीठ में चोट लगी थी। वह वहीं की वहीं होंठ दबाकर आंखें बंद किए ढेर हो गई।

राज जल्दी से उसके निकट पहुंचा।
"डॉली...डॉली..!" उसन जल्दी से डॉली का सिर अपनी गोद में ले लिया-"क्या हुआ डॉली...कही चोट आयी? सॉरी...रियली आयम वैरी सॉरी...।"

"पीठ फर्श से टकरा गई...पीठ में चोट है।" डॉली पीड़ित स्वर में बोली।

__ "ओ. के-ओ. के! अभी सब ठीक हो जाएगा सब ठीक हो जाएगा।"

राज ने एक बार फिर उसे गोद में उठाया और संभालकर बैड पर लिटा दिया। अपने बैग से एक ट्यूब निकाल और आ पहुंचा डॉली के करीब।
"करवट बदल लो।"

"क्यों?' डॉली ने शकित स्वर में पूछा।

"ये ट्यूब लगाऊंगा...मिनटों में दर्द दूर हो जाएगा।"
डॉली पलट गई।

__साड़ी उसके जिस्म से अलग हो जाने के बाद सिर्फ साया और ब्लाउज शेष रह गए थे। ब्लाउज पीठ पर चार अंगुल की पट्टी जैसा था। चिकनी पीठ नितम्बों के उभार के आरंभ तक खाली थी और शीशे की तरह चमक रही थी। आंधी लेटने की वजह से नितम्बों के उभार साए के बावजूद एकदम साफ झलक रहे थे। उस घड़ी साया भी अस्त-व्यस्त था।

उसकी टांगें दूर तक खुली हुई थीं। राज किसी प्रकार अपने अंदर उमड़ते प्यार को वश में किए हुए था। अगर डॉली को चोट न लगी होती तो अब तक वह उसे अपने अंकपाश में जकड़ चुका होता। लेकिन! वक्ती तौर पर विवशता ने उसे घेरा हुआ था ट्यूब से पेस्ट निकालकर उसने डॉली की चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे डॉली को आराम मिलने लगा। थोड़ा वक्त गुजर जाने के बाद राज ने उसके कान के पास अपने होंठ लाते हुए धीमे स्वर में पूछा-"अब कैसा लग रहा है प्राणप्रिय?"

"अच्छा...बहुत अच्छा।" डॉली कामोत्तेजक स्वर में बोली-"दिल करता है तुम ऐसे ही सहलाते रहो और मैं आखें बंद किए यूं ही पड़ी रहूं।"

"अगर तुम्हारा दिल ऐसा करता है तो मैं तुम्हारी इच्छा की तृप्ति के लिए यूं ही तुम्हें आराम देता रहूंगा।" कहते हुए राज ने उसकी पीठ और कमर की मालिश का काम जारी रखा।

थोड़ा समय और बीता, उसके बाद डॉली एकदम आरामदायक स्थिति में आ गई।

राज ने समझ लिया कि उसकी पीड़ा दूर हो चुकी है, नतीजतन उसने दूसरी हरकत शुरू की। उसका हाथ कमर को सहलाता हुआ आगे को रेंगा और फिर उसकी उंगलियां डॉली की गुदाज पीठ पर फिसलती हुई ब्लाउज के हुक तक जा पहुंची।
 
ऐसा नहीं था कि डॉली को अनुमान नहीं था या वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है लेकिन राज के हाथों की रेंगती हुई उंगलियां उसे सुखद अनुभव की ओर ले जा रही थीं।

उस सुखद एहसास की अनुभूति से वह आनन्दित हो रही थी। ब्लाउज का पहला हुक खुला...फिर दूसर...फिर तीसरा। डॉली के नेत्र बंद हो गए। ब्लाउज के दोनों पट ढीले होकर अलग हो गए। काले रंग की चोली की बैलट नजर आने लगी।

राज के हाथ की उंगलियों ने चोली की बैल्ट के हुक भी निकाल दिए।

वक्ष के समूचे बंधन शिथिल पड़ गए। बंधन मुक्त होते ही डॉली के मुख से गहरी सांस निकली। उस गहरी सांस में कामुक कराह का भी संगम था। वह एकाएक ही पलटकर राज के अॅक से लिपट गई। अधरों से अधर टकराए। गर्म सांसें घुलने लगीं। धमनियों में रेंगने वाला खून ज्वार-भाटे की लहरों की तरह मचलने लगा। डॉली ने राज के जिस्म से एक-एक वस्त्र नोंचकर अलग कर दिया। फिर नग्न स्निग्ध बाहें आपस में गुंथ कर स्पर्शित हुई तो एकाएक ही वासना का ज्वर उमड़ पड़ा। और फिर! फिर कठोर अहसास ने डॉली के अंदर जो आग लगाई तो उसके मुख से रह-रहकर कामुक सीत्कार उभरने लगे। बदनतःोड़ ढंग से वह राज को सहयोग करने लगी। यहां तक कि दोनों की सांसें उफनने लगीं। बुरी तरह हांफने लगे। तत्पश्चात् अंत में सांसों का बांध टूट गया। दोनों थककर चूर एक-दूसरे की बांहों में गुंथे हुए देर तक अपनी सांसों को संयत करने का प्रयास करते रहे।

शीघ्र ही निद्रा ने उन्हें अपनी बांहों में दबोच लिया। वे उसी प्रकार गुंथे हुए गहरी नींद में सो गए।
\,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अगले रोज।
सुबह-सवेरे ही जय आ धमका।

"कामरेड की हालत कैसी है?" राज ने सिगरेट सुलगाते हुए उससे पूछा।

"पहले से तो बहुत ठीक है। अपुन कामरेड का वास्ते डाक्टर का इंतजाम किएला है बाप...क्या मस्त डाक्टर है। एकज इंजेकशन में कामरेड सीधा होएला है...।" जय उत्साहित स्वर में बोला।

"घाव वगैरह...।"

"बरोबर हैं...सब ठीक हो जाएंगा। फिकर नेई करने का...क्या!"

"हां...फिक्र तो नहीं करने का लेकिन उसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। गरीब को आज के वक्त में जो तकलीफ हासिल हुई है वो महज हम लोगों की...बल्कि मेरी वजह से। न मैं उसे जोश दिलाकर अखबार में सच्चाई छापने को बोलता...न वो छापता और न उसके सामने इतनी बड़ी मुसीबत पेश आती।"

"ऐसा काय कू सोचता बाप...?"

"सच्चाई से मुंह नहीं मेड़ना चाहिए...जो सच है वो सच है। उसका जो भी अहित हुआ है...मेरी वजह से हुआ है। बेचारे की जान पर बन आयी थी। रंजीत सावन्त के आदमियों ने उसे कष्ट ही दिया था अगर वक्त पर मैं पहुंच न गया होता।"

"बरोबर बोलता बाप।"

"मैं उससे मिलना चाहता हूं।"

"कभी भी मिलने को सकता...बस हुकुम करने का अपुन कू...अपुन फौरन ले चलेगा।"

इसी बीच...।
डॉली कॉफी बनाकर ले आयी। उसने कॉफी के मग टेबल पर रख दिए और ट्रे टेबल के बेस में। वह उन दोनों के बीच में बैठ गई। उसे मालूम था कि कोई भी ताजातरीन खबर जय से ही हासिल हो सकती थी। इसीलिए वह उनके करीब बैठकर उनका वार्तालाप सुनने लगी।

"कामरेड को बाहर निकलने मत देना।" राज ने सिगरेट की राख ऐश-ट्रे में झाड़ते हुए कहा

___ "पन काय कू?" जय ने आश्चर्यमिश्रित दृष्टि से उसकी ओर देखा।

"इसलिए कि उसके लिए बाहर खतरा होगा। वह कलम का सिपाही है...तलवार से नहीं लड़ सकता।"

"एक दो पे तो भारी पड़ जाएगा।"
 
"चल रहने दे....वो लोग हथियारबंद होते हैं। नंगे हाथों लड़ने नहीं आएंगे। एक नन्हा-सा चाकू भी उसके लिए काफी होगा।

"और खबरी लाल की कोई खबर...?" राज ने कॉफी का मग उठाते हुए पूछा।

"फिलहाल कोई खबर नेई...पन उसका पास जब भी खबर आएंगा वो रुकने वाला नेई...क्या। सीधा अपुन के पास में आएंगा रोकड़ा बनाने का वास्ते। भोत लालची बन्दा है...पैसे को दांत से पकड़ को रखेला है बाप।".

"तू समझ नहीं रहा।

"क्या?"

"सतीश के मामले में सावन्त ब्रदर कोई भी कदम उठा सकते हैं। इसीलिए खबर रखनी बहुत जरूरी है"

"फिकर नेई...सब ठीक हो जाएंगा।"

"भैया का पता लगा लो जय भैया...प्लीज... मालूम करो वो लाल हवेली किधर है?" डॉली बीच में दखल देती हुई द्रवित स्वर में बोली

मिल जाएगा अपुन का भाई...किधीरच नेई जाने वाला वो।"

"अभी तक भैया की कोई खबर नहीं मिल सकी है।"

"अपन लाल हवेली की तलाश में अपुन का आदमी लोग को दौड़ाएला है।"

तू सिर्फ इतना मालूम कर ले कि ये लाल हवेली ह कहा...बाकी मैं देख लूंगा।" राज ने जय की ओर देखते हुए विचारपूर्ण स्वर में कहा

"कभी भी खबर आ सकती है।"

"यानी तेरी फोर्स एक्शन में है?"

"बरोबर।"

"अच्छा जय ये रंजीत सावन्त चीज क्या है...मैं उससे मिलना चाहता हूं।"

"कभी-भी मिल लेने का।"

"आज...?"

"अपुन बंदोबस्त कर देगा।"

"एप्वाइटमेंट लेगा?"

"नेई।"

"तो फिर?"

"मालूम करेगा वो किधर कू जाएला ह...किधर कू आएला है। बस...उसका पिरोग्राम देखते हुए अपुन कधिरिच बीच में बम्बू डाल को तम्बू डालेगा और तुमेरी मीटिंग सैंट। क्या!"

"आज सैट...?"

"बरोबर...आजिच।"

"पाल से भी मिल।"

"अपुन मिले या तुमेरे को मिलवाए?"

"उसे बुलवा ही ले, वही ठीक है।"

"बुलवा लेगा...."

"और सुन...उस आदमी का पता लगाओ जो सावन्त बन्धुओं की मशीनरी में खास है? । जिसका रोल कुछ ज्यादा ही अहम है?"

"वो अपुन जानकारी करेला है बाप...धरम सावन्त की गुण्डा पावर का खास मोहरा जोगलेकर है। जोगलेकर का हिम्मत...उसका लोग सावन्त बन्धुओं का फुल मदद करेला है।"

"जोगलेकर..?"

"हां।"

"उसका ठिकाना किधर है?"

"अपुन कू मालूम...पन तुम करेगा क्या?"

"अभी चल।"

"अभी?" जय ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

"ही...।"

"और सुन, अपने दो चेलों को यहां तैनात कर। उन्हें मेरा मोबाइल नम्बर दे दे। उन्हें निर्देश देना कि उन्हें हर पल यहां रहना होगा। अगर कहीं कोई खतरा नजर आए तो तुरन्त मुझे फोन कर दें।"

"बरोबर..."

"उन आदमियों के इंतजाम के लिए तुझे कहीं जाना होगा?"

"नेई...अभी फोन करके बुला देगा।"

"तो बुला...फिर चल।"

जय ने तुरन्त फोन पर बात की और फिर वह राज के साथ चल पड़ा
 
डॉली कुछ कहना चाहती थी किन्तु बाद में वह खामोश हो गई। वह जान रही थी कि राज जो भी कर रहा है, उसके भाई की खोज की बाबत ही कर रहा है। ऐसे में उसे किसी बात पर टोकना उचित न होगा। उसे इसी बात की खुशी थी कि मुसीबत की उस घड़ी में एक मददगार उसके साथ था...ऐसी मददगार जो जान की बाजी लगाने से कतई हिचकिचाता नहीं था। उसकी जगह कोई भी दूसरा होता तो इतने बड़े खतरे को सामने देख कब का भाग खड़ा होता। बल्कि...सावन्त बन्धुओं का नाम ही उसके लिए काफी होता और वह डॉली का साथ छोड़कर एक किनारे हो जाता।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

गहरे नीले रंग की एस्टीम तेज रफ्तार से चौड़ी सड़क को रौंदती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी। एस्टीम स्वयं जय ड्राइव कर रहा था। उसके बराबर मैं बैठा राज सिगरेट फूंकने में व्यस्त था।

कार बोरीवली के घनी बस्ती वाले क्षेत्र की ओर बढ रही थी।

" ऐन उसके ठिकाने पर पहुंचने के बाद ये कहने की जरूरतें नहीं है कि ये जोगलेकर का घर है...क्या समझा।" राज उसे समझाता हुआ बोला।

"तो..."

"ठिकाना आने से पहले ही बोल देना।"

"बरोबर।"

घनी आबादी वाला क्षेत्र आ जाने की वजह से एस्टीम की गति अब काफी कम हो गई थी। जय को गति कम करने पर मजबूर हो जाना पड़ा था। थोड़ी देर बाद एक चौड़ी गली कै मोड़ से पहले ही जय ने एस्टीम को किनारे पार्क करके उसको इंजन बंद कर दिया।

राज न सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछालने के बाद उसकी ओर देखा।
"क्या हुआ...जोगलेकर का ठिकाना आ गया क्या...।"

"हां...।" जय ने कार से बाहर निकलते हुए कहा-"आ गया ठिकाना।"

"किधर है।"

"अभी दूर से दिखाना पड़ेगा। नेई तो तुम बोलेगा ऐन सिर पर पहुंच को बोला।"

"होशियारी की बात की।"

राज मुस्कराता हुआ एस्टीम से बाहर आ गया। जय पहले ही बाहर आ चुका था। वह पेंट की जेब में हाथ डालकर इस प्रकार इधर-उधर देख रहा था मानो बाहर से आया हुआ एकदम नया आदमी हो।

"आगे चले...।" राज के बाहर आने पर उसने सहज स्वर में पूछा।

"हां...चल।"


.
वह आगे-आगे चलने लगा। राज उससे एक कदम पीछे रहा। थोड़ी दूर निकलने के बाद मोड़ क्रॉस हुआ और मोड़ क्रॉस होने के बाद सामने ही एक बड़ी-सी चाल नजर आने लगी। उस चाल का क्षेत्रफल इतना बड़ा था कि उसमें कम से कम चार सौ आदमी आ सकते थे। जय ने केवल आ संखों से उस चाल की ओर संकेत करते हुए कहा
"बाप...वो चाल देखेला है...।"

___"वही है जोगलेकर का ठिकाना...।" राज ने उत्सुकतावश पूछा।

"नेई...वो जोगलेकर का ठिकाना नेई।"

"फिर...।"

"उस चाल का पीछ एक पुराना टाइप का मकान है। एकदम फटेला सा...उजड़ा रईस जैसा स्टाइल में।"

"वो है जोगलेकर का ठिकाना।" राज ने सामने देखते हुए जय से सवाल किया।

" हां..अपुन लोग जभी उधर से गुजरेगा तब तुम अच्छे से देख लेना उधर...बरोबर।"

दोनों धीमी गति से चलते हुए आगे बढ़ते रहे। चाल की सीमा समाप्त हो जाने के बाद राज ने पूर्व निर्देशित दिशा की ओर देखा। वर्णित मकान सचमुच जीर्ण अवस्था में था। मकान के आसपास किसी प्रकार अतिक्रमण नहीं था और न ही किसी ने आसपास किसी प्रकार का अपना कोई काम फैलाने की कोशिश की थी। मकान के दरवाजे बंद थे। गली के दूसरे छोर पर चाय का छोटा-सा होटल था।
Top
 
राज बरबस ही उस होटल की ओर बढ़ गया। जय को उसके साथ घिसटना पड़ा।
__ "सुबह से चाय नहीं मिली है प्यारे! एक कप चाय हो जाए फिर चलते है...।" राज चाय के होटल के बाहर पड़ी बैच पर बैठता हुआ बोला। उसकी आवाज कदरन तेज थी ताकि होटल वाला सुन ले और उन दोनों पर किसी प्रकार का शक न करे।

"दो चाय।" जय अनमने भाव से बोला।

"सादा या स्पेशल..." होटल मालिक ने उन दोनों को घूरते हुए पूछा।
.
___ "एकदम पेशल...फर्स्ट क्लास...कड़क। क्या!" जय झटके के साथ बोला।

होटल वाला चाय बनाने में व्यस्त हो गया।

राज चोर निगाहों से जोगलेकर के मकान का निरीक्षण करता हुआ जय से कभी गेहूं चावल के भाव और कभी सोने-चांदी के भाव पर डिसकस करता रहा। इसी बीच छोकरा दो गिलासों में चाय देकर चला गया।

बस्ती के दो आदमी वहां और आकर बैठ गए। उन्होंने भी चाय का आर्डर दिया। वे किसी गंभीर समस्या मैं एक दूसरे मैं खोए हुए थे। लोकेशन देख चुकने के बाद राज ने चाय वाले को पैसे दिए और फिर जय के साथ आगे बढ़ चला।

"उधर काय कू रुकेला था?" होटल से आगे निकल आने के पश्चात् जय ने राज से पूछा।

"आराम से उसका ठिकाना देखना चाहता था...और ये भी देखना चाहता था कि उसके ठिकाने में आवागमन किस प्रकार का था।" उसे समझाने की कोशिश करते हुए राज ने सिगरेट सुलगा ली।

"काय का वास्ते?"

"वो तेरे समझने का मैटर नहीं है। तू सिर्फ मेरे सवालों के जबाव देता चल।"

जय आश्चर्यचकित मिश्रित दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा।

"ये बता कि जोगलेकर इधर होगा अभी?"

"पता नेई...वैसे जास्ती टेम तो वो रंजीत सावन्त के आजू-बाजू गुजारेला है बाप।"

"तो अभी उस मकान के अंदर कौन होगा...?'

"जोगेलकर के सगे वाले।"

"कौन-कौन...?" बीवी बच्चे हैं उसके?"

"बीवी से तलाक हो गया...वो गांव कू चली गई। जोगलेकर का बाप है...मां है...दो भाई लोग हैं और एक सात-आठ वर्ष का लड़का है।"


"लड़का?"

"हां।"

"और कोई औलाद..?"

"नेई...और कोई नेई...फकत एक लड़का।"

"लड़के को भी मवाली बनाने का इरादा रखना है क्या?"

"नेई...भोत प्यार करता वो उसकू...एकज औलाद है...जान से जास्ती प्यार करता।"

"कहीं पढ़ाता लिखाता नहीं...सिर्फ प्यार करता है?"

"पढ़ाता है।"

"किस स्कूल में?"


"वो नेई मालूम।"

"मालूम करना पड़ेगा।" राज विचारपूर्ण स्वर में बोला।


"क्या मतलब?" जय ने चौंककर उसकी ओर देखा।
 
__ "मतलब तेरी समझ में आ जाएगा...पहले तू आगे बढ़कर किसी सन्नाटेवाले टेलीफोन बूथ से एक आदमी इधर लगा।"

"काय कू...?"

"जोगलेकर के छोकरे के वास्ते।"

"जोगलेकर के छोकरे के वास्ते? अपुन समझा नेई बाप...अपुन कू जोगलेकर से मतलब है के उसके छोकरे से?"

राज मुस्कराया...रहस्यपूर्ण मुस्कान।
बोला-"जय तू वही कर जो तुझसे कहा जा रहा है।"

"अपुन वहीच करेगा जो अपुन से कहा जारेला है...पन अपुन जान तो सकता है न के लफड़ा क्या है...या वो भी नेई जान सकता...।"

"पहले तू काम कर फिर तुझे लफड़े के बारे में भी पता चल जाएगा।"

"बरोबर..।"

उसके बाद राज के साथ चलता हुआ जय उस स्थान पर वापस पहुंचा जहां वो अपना एस्टीम छोड़ आया था। उसने एस्टीम का दरवाजा खोला और फिर अंदर बैठकर इंजन स्टार्ट कर दिया। उसे उम्मीद थी कि राज उसके साथ ही गाड़ी में बैठ जाएगा लेकिन राज अंदर न बैठा। वह अभी भी बाहर खड़ा था।

"इधर से चलने का या नेई चलने का...।"

"अभी चलता हूं।"

जय राज की निगाहों का पीछा करने लगा। राज गली के मोड की ओर देख रहा था। मोड़ पर एक आदमी खड़ा एस्टीम की ओर ही निहार रहा था। उसके देखने का अंदाज कुछ-कुछ संदिग्ध था। उस आदमी के दाहिने हाथ की तीसरी उंगली के खांचे में सिगरेट दबी हुई थी जिस वह बड़े ही पुराने स्टाइल से मुट्ठी बंद करके फूंक रहा था।

जय ने भी उस आदमी को देख लिया। "चलने का...या...रुकने का।" उसने राज की ओर देखते हुए पूछा।

__ "कुछ गड़बड़ लग रही है।" राज विचारपूर्ण स्वर में बोला।

"अभी बाहर कू खड़ा रहेंगा तो गड़बड़ तो होएंगी ही होएंगी। उसमें गड़बड़ न होने की कोई बात नेई।"

राज की समझ में उसकी बात आ गई। वह कार में दाखिल हो गया। उसके दाखिल होते ही जय ने कार आगे बढ़ा दी।

"कौन हो सकता था वह...?" राज ने गली पार हो जाने के बाद जय से पूछा।

"अपुन नेई जानता।"

"क्यो उसे हम पर किसी प्रकार का शक हो गया है।"

"हो सकता है।"

"क्या वह जोगलेकर का आदमी था?"

"हो सकता है।" थोड़ी देर के लिए कार में खामोशी छा गई।

सकन्दर मध्यम गति से कार ड्राइव करता रहा।"

"रोक...।" अचानक ही राज ने उसे रुकने का आदेश दिया।

उसने एस्टीम सड़क के किनारे से लगाकर रोक दी फिर सवालिया नजर से राज की ओर देखा।

"टेलीफोन बूथ...वो सामने...।" राज टेलीफोन बूथ की ओर संकेत करता ह आ बोला।

जय हंसा।

"क्यों हंसा तू।"

"बाप काय कू खाली पीली भंकस मापेला है...मोबाइल पॉकेट का अंदर रखेला है फिर भी टेलीफोन बूथ को तलाश करकःो बताएला है फोन के वास्ते।"

अपनी मूर्खता पर राज बरबस ही मुस्करा उठा। उसने धीरे-से अपने माथे पर हाथ मारा और फिर मोबाइल जेब से निकालकर जय के हवाले कर दिया।
 
"ले, फोन कर और जिस आदमी को भी इधर फिट करे वो होशियार होना चाहिए। मैंने एक ही नजर में समझ लिया है कि इस जगह चालाक आदमी की ही जरूरत है अगर आदमी चालाक नहीं होगा तो धोखा खा जाएगा...समझा।"

"समझ गया। अपुन इधर चालाक आदमी ही फिट करेंगा...एकदम श्याना। क्या।"


"उसने जोगलेकर के लड़के की सारे दिन की गतिविधियां नोट करनी हैं। वह कहां-कहां...किस-किस के साथ जाता है। स्कूल उसे कौन छोड़ने जाता है और उसका स्कूल कब से कब खुलता है।"

"इस काम के वास्ते एकदम फिट आदमी है अपुन का पास...।"

___"उसे फौरन काम पे लगा डाल...क्या।" राज ने एक बार फिर उसके स्वर की नकल उतारी।
जय उसकी ओर देखकर मुस्कराया।

फिर वह एक हाथ से मोबाइल पर नम्बर पुश करता हुआ कार आगे बढ़ाने का प्रयास करने लगा।

"गाड़ी खड़ी रहने दे। यहां आसपास कोई नहीं है। आराम से बात कर ले।"

जय ने एक साथ दो काम करने का प्रयास छोड़ दिया। कार जहां की तहां खड़ी रहने दी और मोबाइल पर सम्पर्क स्थापित होने के बाद वार्ता आरंभ कर दी।
शीघ्र ही उसकी बात समाप्त हो गई।

"आदेश दे दिया...।" राज ने अपनी ओर उसके द्वारा बढ़ाए गए मोबाइल फोन को ग्रहण करते हुए पूछा।"

"दे दिया बाप...दे दिया।" जय कार स्टार्ट करता हुआ बोला।

"कितनी देर में पहुंच जाएगा वो इधर...।"

"एक क्लाक का अंदर-अंदर में पहुंच जाएंगा। फिकर नेई करने का...क्या।"

"चल आगे बढ़ा।"

जय ने एस्टीम को धीरे-से आगे बढ़ा दिया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

लड़के की उम्र आठ या नौ साल की थी। उस कमरे में ले जाए जाने के बाद वह बुरी तरह सहम गया था।

राज ने पहले से जय द्वारा तैयार की गई औरत को उसे बहलाने के लिए उसके पास भेज दिया। टॉफी बिस्कट आदि की भी व्यवस्था बना दी गई।
 
Back
Top