Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 11 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

‘मेरा पहलवान चोदू बेटा।', अपने वक्राकार नितम्बों को प्रतिक्रिया में उसके तन पर मसलते हुए टीना जी ने सोचा। जय भी कंपकंपा उठा था, अपनी सुरूपा, कामाक्षी माता के संग पीछे से सम्भोग क्रिया के लिये तैयार होता हुआ, वो तीव्र दैहिक इच्छा के प्रभाव से सिहर रहा था। इस समय तक टीना जी आतुर ही नहीं बल्कि पुरुष लिंग की चाह के मारे तड़प रही थीं। एक पल की प्रतीक्षा भी अब असम्भव थी! अपनी टाँगों के बीच से हाथ पीछे बढ़ा कर, उन्होंने अपने पुत्र के लिंग को दबोचा और उस वासना-उदिक्त गौरवांग को अपनी भीगी योनि के प्रवेश द्वार का दिशा-दर्शन करवाया। माँ ही तपती उंगलियों को अपने लिंग पर लिपटते हुए पाकर, जय उतावला होकर कराहने लगा। । “वाह मम्मी! एकदम रन्डी स्टाइल है ये! अपने प्यारे हाथों से मेरे लन्ड को अपनी चूत में डालिये, फिर आपका लाडला बेटा आपको चोदेगा !” |

टीना जी की योनि से तीव्र प्रवाह हो रहा था, योनि से निकल कर द्रव उनकी जाँघों के भीतरी भाग पर बहता हुआ दोनों के गुप्तांगों को परस्पर सोख रहा था। जय के लिंग पर चुपड़ा हुआ द्रव एक प्राकृतिक चिकनाहट का काम कर रहा था जो माँ-बेटे के मध्य में होने वाली सम्भोग क्रिया के लिये अत्यन्त आवश्यक था। जय ने एक कदम आगे बढ़ कर अपने लिंग को प्रविष्टि की मुद्रा में तैयार कर लिया। टीना जी भी अधीर हो चली थीं।

हँ! पहलवान, आजा मैदान में ! डाल अपने मादरचोद लन्ड को मम्मी की चुतिया में और मुझे कस के चोद ! देखें मेरे दूध में कैसा असर है !” अपने पुत्र - लिंग के फूले हुए सुपाड़े का आभास अपनी काँपती योनि के भीगे हुए पटों पर पाकर टीना जी चीखीं। जय ने आज्ञाकारी पुत्र की तरह माँ की आज्ञा का पालन किया। |

माँ के चौड़े कूल्हों को जकड़ कर उनका सहारे लेते हुए, बलिष्ठ नौजवान जय ने एक आगे की ओर बलशाली झटका दिया, और अपने कामास्त्र लिंग को माता की टपकती, चूसती योनि के भीतर अपने अण्डकोष तक झोंक डाला।

“ऊँह हह ऊँह! ओह, मादरचोद! ऊह, चोद मुझे, जय! हे भगवान : ईंह, बेटा तेरा इतना मोटा है! • ईंह, टीना जी चिल्लायीं और अपने पुत्र के ठेलते लन्ड पर पीछे को दबाने लगीं। जय ने अपनी माँ की लिसलिसी योनि को कमलाबाई की अधेड़ योनि की भाँति कुशल शैली में लिंग पर जकड़ते हुए महसूस किया। उसने नोट किया कि माँ की योनि कमलाबाई से कहीं अधिक गहन थी, लाख प्रयत्न के बावजूद वो अपने लिंग से उसकी तह तक नहीं पहुँच पा रहा था। टीना जीन ने गर्दन घुमायी और पलट कर अपने पुत्र को वासना और ममता से सम्मिश्र भाव से देखा। । “ओह , शाबाश बेटा! दिखा अपनी माँ को तू कैसा मर्द है! आँह
“तेरे लन्ड को अपनी छाती के दूध से सींच कर मैने बड़ा किया है, 'इँह देखें कितना दम है मेरे मादरचोद बेटे! 'ईंह ऍह ईंह ऍह :)

| माता की वासना से बावली चीखों ने जय की कामोत्तेजना की अग्नि में घी का काम किया। पाठकों, आप ही बतायें, ऐसी स्त्री, जो साधरणतय कुलीनता की मूर्ती हो, यदि आपके साथ सम्भोग के समय, वही स्त्री, अपने मुख से ऐसी गन्दी और निर्लज्ज बातें करे, तो क्या आपका पौरुष चुनौती पाकर नहीं भड़केगा ? क्या आपको सैक्स के आनन्द में कोटि-कोटि वृद्धि नहीं होगी ? दोस्तों, अगर आप भी जय की तरह भाग्यवान होते और अपनी सगी माता के संग प्रणय क्रिया के समय उनके श्रीमुख से ऐसे गन्दे वचनों द्वारा अपने परुष को उकसाते हुए सुन लेते, तो आपका लिंग भी जय ही की तरह सूज कर दैत्यकारी आकर ले चुका होता।

“बिलकुल चोदूंगा, मम्मी! तेरे दूध का कर्ज मैं तेरी ही कोख को चोद कर उतारूंगा! मेरी रन्डी मम्मी, तू मेरे बाप की चुदाई भूल जायेगी !”, जय नथुने फुला कर मस्त साँड की तरह अपनी माँ की उठी हुई योनि के भीतर लिंग के क्रमवार प्रहार करता हुआ बोला।

टीना जी जय की कहानी में कमलाबाई की मुँहफट अश्लील बाषा से बड़ी उत्तेजित हुई थीं। साथ ही कुछ ईष्र्या भी थी कि भंगिन ने किस तरह उनके पुत्र को अपनी अश्लीलता से रिझा लिया था। अपनी कुलीन शिक्षा और सभ्य व्यव्हार को त्याग कर टीना जी भी आज वेश्या अवतार में उतर कर अपने सैक्स जीवन में एक नवीन अनुभव पाना चाहती थीं। साथ ही पुत्र के समक्ष अपनी पाश्विक वासना का प्रदर्शन कर अपने व्यक्तित्व के रूद्र पहलू को उजागर करने और खुद को सर्व-गुण सम्पन्न दिखलाने का ध्येय भी रखती थीं वे । वो स्त्री ही है जो पुरुष को रिझाने के वास्ते खुद को किसी भी रूप में ढाल सकती है। आज तो उनके त्रिया-चरित्र का पात्र पुरुष स्वयं उनका पुत्र था!

“आँह :: अबे तेरे बाप ने जिस चूत को चोदकर तुझे पैदा किया है, आज तू उसे ही चोद रहा है! : ‘आँह ‘ऐंह 'ई' 4 : ‘आँह ऊँह जिस लन्ड से जमादारिन की गाँड मारी, ''आइँह उसी से मम्मी को चोदता है!”

अबे उचक! मादरचोद जब लन्ड चूत में अन्दर घुसाता हैं तो एड़ी को उचका कर अन्दर झटका दे! 'आँह कमलाबाई ने तुझे नहीं सिखाया ?”

“ऊँह ‘आँह मादरचोद, तेरी मम्मी की चूत को छोड़ कर परायी जमादारिन को चोदता है? आँह फिर मम्मी को चुदवाने वास्ते क्या बाजार जाना होगा ? ''आँह ऊँह आँह ऊँह बोल साले, धंधा करवायेगा माँ से

“राँड, मैं तेरी चूत चोदूंगा, और तेरी गाँड को किराये पर उठा दूंगा!”, जय ने भी हिम्मत दिखायी।

“जा सूअर, तुझसे नहीं चुदने की!' 'आह' ‘भोंसड़ी चोद कर शेर बनता है ? ' 'ईयाँह 'टीना की कसैल चूत चोदते - चोदते बड़े-बड़े पहलवान झड़ गये ईयाँह ‘आँह मादरचोद, तेरे टट्टे सूख जायेंगे ‘ऐंह, जय तो गाली-गलौज का आदी था, पर टीना जी का रक्त अपने पुत्र के एक ही वाक्य को सुन कर खौलने लगा था।

लगी शर्त कुतिया! मैं झड़ा तो गाँड मरवा दूंगा!” । ६ : ‘आइंह 'ऐ ऐंह डैडी से मरवानी होगी !” “ओके! तू झड़ी तो मेरा वीर्य पियेगी !”

लगी शर्त, मादरचोद ! : ‘आँह ऐंह : ', टीना जी बड़ी अदा से मुँह फेर कर पलटीं, और मेज पर लेटे हुए ही प्रेमपूर्वक शरारत में अपने बेटे के मुंह पर थूक दिया, “थू! ले मादरचोद, तेरा ईनाम!: ‘आँह . ) ।

जय ने बड़ी बेतकल्लुफ़ी से माँ की थूक को चेहरे से पोंछा और लन्ड पर मल कर सैक्स क्रीड़ा को जारी रखा। टीना जी अपने पुत्र की ढीठता को देख कर एक पल स्तब्ध हो गयीं, और दूसरे ही पल शेरनी सी उत्तेजित हो गयीं। माता की पाश्विकता का जय ने ईंट से पत्थर वाला उत्तर दिया था। जय अब माँ पर अपने पौरुष का स्वामित्व स्थापित कर चुका था। प्रमाण के तौर पर उसने अपनी माँ को लम्बे काले बालों को दोनो हाथों से समेटा और एक मुट्ठी मे बाँध कर हल्के-हल्के खींचने लगा। टीना जी अब एक लाचार घोड़ी की तरह थीं, जिसकी लगाम जय के हाथों में थी। जय अपने लिंग पर भरपूर आत्म-नियंत्रण किये हुए था। पर टीना जी बेसुध होकर कामुकता के प्रवाह में बह रही थीं।

हरामजादी, बोल कितना किराया लेगी गाँड का ?” ८ : ‘आँह सौ रुपये में एक बार ।” बच्चों और बूढ़ों की फ्री एन्ट्री !”, जय गुर्राया, “यानी तेरे बाप और ससुर को फ्री है, समझी राँड ?”

* : ‘हा हा मादरचोद, मेरे बाप का लन्ड तो अब खड़ा भी नहीं होता है! : ‘आँह 'ऊँह बोल हरामी, करेगा चूस कर नाना जी का लन्ड खड़ा ?”, टीना जी कच्ची खिलाड़ी नहीं थीं। सुनकर जय ने अपने कूल्हों की गति को अधिक तीव्र कर दिया, मेज अब चूं-चू कर रही थी।

“सुअरनी, तूने होमो को नहीं जना है चूत से! रिश्ते में चोदता हूँ पर चोदता सिर्फ औरतों को ही हूँ !” जय ने कलाई का झटका देकर माँ के बालों को खींचा। टीना जी ने दाँत भींच लिये और भौहें उठा कर रणचण्डी सा आगबबूला निगाहों से पीछे देखा।

: ‘आँह लन्डचूस! आँह होमो नहीं तो झड़ता क्यों नहीं ?”, टीना जी त्रिया-चरित्र के हर दाँव को पहचानती थीं। टीना जी पसीने से तरबतर थीं, किसी भी समय सम्भोग के चरमानन्द को प्राप्त कर सकती थीं।

“थू!” इस बार थूकने वाला जय था। जय ने माँ के केश पकड़ कर उनका चेहरा पीछे फेर लिया था, और उसी चेहरे पर नटखटता से थूक दिया। “ले झड़ गया! राँड, फिर दो बार, “थू! थू!” । हर स्त्री पुरुष के स्वामित्व और संरक्षण की इच्छा रखती है। जय ने माँ की ललकारों से दबे बिना अपने पौरुष का लोहा मनवा लिया था। टीना जी के अन्तरमन ने जय के खुद पर स्वामित्व को अपने तन व मन दोनो से स्वीकर कर उसे जीवन में पुरुष का दर्जा दे दिया था। स्वीकृति की यही वो अलौकिक घड़ी होती है जब नारी सर्वोच्च आत्मिक और दैहिक सुख की प्राप्ति पाती है। सहसा इसी अनुबोध ने टीना जी को ऑरगैस्म दिला दिया। उनकी देह में एक बाँध टूटा
और जाँघों के बीच से उमंग की लहरें उठने लगीं, जो फैल कर उनके रोम-रोम को पुलकित करने लगीं। जय के पौरुष-पाश में जकड़ी हुई वे निर्बल नवयौवना की तरह कामतृप्ति के प्रभाव से चीत्कार करने लगीं।

“ऊँह 'आआह 'मेरे लालः ''आह अआआहहहः 'मेरा बेटा, मेरा मरदः ‘आँहः आँहः जय, अब मम्मी तेरी रखैल है !” जय माँ की आत्मसमर्पण भरी बातें सुनकर फूला नहीं समा रहा था। उसे अपने पौरुष बोध और माँ को ऐसा आनन्द दे पाने पर बहुत गर्व हो रहा था।
 
57 सवेरे वाली गाड़ी

* शर्त तो तुम हार गयी, मम्मी। कहो, कैसी रही ?”, जय ने अपनी आनन्द में घुलती माँ से पूछा।

मम्म मजा आ गया, मेरे लाल ::: लाइफ़ में ऐसी मस्ती शायद ही पहले कभी की होगी !”, उन्होंने उत्तर में कहा। टीना जी की देह अब भी उनके जबरदस्त ऑरगैस्म के झटकों के तले थरथरा रही ती। उनकी टाँगें दुर्बल होकर ढीली पड़ चुकी थीं, बस उनका धड़ केवल मेज के सहारे लेटा हुआ था।

जय ने अपने सदैव-उत्तिष्ठ लिंग को माँ की गुलाबी कोपलों वाली योनि की लिसलिसी तपन के अन्दर निरन्तर आगे-पीछे चलाना जारी रखा था। इस तरह वह अपनी माता के बदन में काम की धधकती ज्वाला को बरकरार किये हुआ था।

“मम्मी, तेरे बेटे में अब भी बहत दमखम बाकी है! बोल तो और चोदूं ?”, टीना जी के कन्धों को चूमता हुआ और उनकी गर्दन पर गरम साँसें छोड़ता हुआ जय पूछ बैठा।

“मादरचोद ::! बेटा तू आदमी है या साँड! इतनी जल्द फिर चोदने को तैयार ? तेरा बाप तो इतने में कब का पस्त हो गया होता! चल साले, तू साँड है तो मैं वो कुतिया हूँ जिसकी चूत की प्यास कभी नहीं मिटती !”, टीना जी अपनी संज्ञा के पात्र प्राणी की तरह ही बिलबिला रही थीं, “आजा मेरे पहलवान साँड, चोद दे फिर एक बार अपनी कुतिया मम्मी को !” टीना जी का मन जय के विशालकाय लिंग से अभी कहाँ भरा था! युवावस्था में ही सैक्स कला में कैसे कौशल का प्रदर्शन किया था उसने । सम्भोग में ऐसा दिव्य आनन्द उन्होंने बरसों बाद पाया था। अपनी सन्तान को जिस प्रेम और दुलार से उन्होंने पालपोस कर बड़ा किया था, उन्हें आज अपनी ममता का सचा फल मिल गया था। उनकी स्वयं की कोख से जना लाल अपने लिंग को उसी कोख में ठेलता हुआ, टीना जी को अविस्मर्णीय दैहिक सुख की अनुभुतियाँ फलस्वरूप दे रहा था! काश यदि उनके दो पुत्र होते, तो दोनो ही से सम्भोग कर पातीं। वो भी एक ही साथ! हाँ, हाँ जरूर, एक उनकी योनि में लिंग घुसाये होता, दूसरा उनकी गुदा में लिंग डालता। “ऊउहहह, हाँ! ऐसे बड़ा मजा आता!”, सहसा उनके मुख से मन की बात निकल पड़ी।

क्या, मम्मी ? कैसे आता मज़ा ? कह तो सही, मैं करूंगा!", जय ने पूछा।

“अरे, कुछ नहीं! मैं तो यूँ ही बड़बड़ा रही थी !”, टीना जी ने झूठ बोलकर मन की इच्छा को छिपाया।

तू बस चोदता रह, जय! और इस बार तुझे भी झड़ना है। बोल मेरे लाल, मम्मी की चूत में अपना गाढ़ा और गरम वीर्य डालेगा ना ?”
 
“क्यों नहीं मम्मी, तूने ही तो अपने मम्मों से दूध पिला-पिला कर मेरे टटटों में ये वीर्य बनाया है। अब जिस चूत से पैदा हुआ था, उसमें अपने टट्टों को खाली करना तो मेरा फ़र्ज है ना, मम्मी!”, गर्वयुक्त स्वर में नौजवान जय बोला, “आज तो मम्मी, मेरे टट्टों मे तेरे वास्ते उतना ही ज्यादा दूध उबल रहा है, जितना डैडी ने आपको पिछली गर्मियों में ट्रेन के सफ़र दे दौरान दिया था। याद है, पिछली गर्मियों की छुट्टियों में हम ट्रेन में ननिहाल से घर वापस आ रहे थे, और आप और डैडी ने रात को ट्रेन में ही चुदाई चालू कर दी थी। डैडी ने इतना वीर्य निकाला था, कि आपको जाँघों पर बहने लगा था, और आपको रात को उठकर बर्थ पोंछनी पड़ी थी ?” टीना जी को वो ट्रेन का रात का सफ़र अच्छी तरह से याद था। मिस्टर शर्मा का लिंग तो उस रात खुले नल की तरह बह रहा था, पूरे दस मिनट तक लिंग से वीर्य-स्त्राव होता ही रहा था।

“मम्मी, मैं ऊपर की बर्थ पर लेटा सब देख रहा था। आप तो बिलकुल सैक्सी लग रही थीं। डैडी का काला, मोटा लन्ड कैसे आपकी गोरी चूत को चीर कर घुसा हुआ था, मम्मी! ठीक वैसी ही फ़ोटो मैने एक मैगजीन में देखी थी, जिसमे एक गोरी-चिट्टी चमड़ी की फ़िरंगिन औरत की गुलाबी चूत में एक काले हब्शी ने अपना एक फ़त का मोटा लन्ड घुसाया हुआ था। वही मैगजीन, जो घर आने के बाद आपने मेरे बिस्तर के नीचे से खोज निकाली थी।” | टीना जी को वो पत्रिका ठीक तरह से याद थी। अपने पुत्र के बिस्तर के नीचे ऐसी अश्लील पत्रिका पाकर,
और यह जान कर, की जय बहशः उन चित्रों को देख कर हस्तमैथुन करता होगा, टीना जी के हृदय में एक पाप भरी चुलबुलाहट कौंधी थी। पत्रिका के पन्नों में गोरी औरतों के साथ अति-दीर्घ लिंग के स्वामी काले हब्जियों को,
और अधेड़ उम्र की महिलाओं के संग किशोर बालकों को सैक्स करते हुए चित्रित किया गया था। चित्रों को देख कर वे ऐसी विचलित हो गयी थीं, कि जय डाँट-फटकार कर उन्होंने पत्रिका जब्त कर ली और मिस्टर शर्मा के साथ एक रात उन चित्रों का सूक्ष्म अध्ययन भी किया। उस रात मिस्टर शर्मा ने ऐसे जोश के साथ बढ़-चढ़ कर सैक्स किया था, जो सुबह की पहली किरणों के बाद जाकर थमा था। वो घटना उन्हें बड़ी अच्छी तरह से स्मृत थी!

“मम्मी, मैने ट्रेन में मुठ मारी थी! नीचे डैडी आपको चोद रहे थे, ऊपर में लन्ड हाथ में लिये रगड़ रहा था! सोच रहा था, कि आपको चोदने वाला मैं ही हूँ, मम्मी!”

“मेरे बुद्भू बेटे !”, टीना जी ने मुँह पलट कर आँख मारी, “अगर तभी मुझे बता देता, तो अब तक तो हम मिलकर कितनी ऐश कर चुके होते ! बोल मादरचोद, मम्मी-डैडी की चुदाई का मन्जर देखकर क्या तू भी वहीं ट्रेन में झड़ गया था ?”

“मम्मी, एक बार नहीं, दो बार! एक बार तो डैडी और आपकी चुदाई के टाइम, फिर अगली बार जब डैडी चुदाई के बाद सो गये थे।” टीना जी ने अपनी योनि की माँसपेशियों को जय के लिंग पर कसा।

“मादरचोद, मम्मी को चुदते देख तेरा लन्ड कुलाचे भरने लगा होगा !”, गौरव-युक्त स्वर में टीना जी बोलीं।

“लो कर लो बात! मम्मी, तेरी लिसलिसाती चूत की तस्वीर तो मेरे दिमाग में बस गयी! वो सपने में भी याद आती है तो लन्ड लाल कर देती है !”, माँ से वार्तालाप करते हुए जय अपने चर्चित लिंग को उनकी योनि में निरन्तर आगे और पीछे चला रहा था। लिंग के घर्षण द्वारा टीना जी की धधकती योनि की ज्वाला में ईंधन डाल रहा था।

“जब चुदाई करके आप दोनो सो गये, तो मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैने चादर सर पर ओढ़ ली और टार्च जला कर मुठ मारने लगा। अब मम्मी मुझे अन्धेरे में मुठ मारना पसन्द नहीं। अपनी आँखों से लन्ड को देखना पसन्द करता हूँ ताकि उसे किसी भीगी चूत में ठेलते हुए कल्पना कर सकें।”

“ऊउह, मेरे पूत !”, टीना जी काँप उठीं, “एक सैकन्ड अपना लन्ड बाहर निकाल , बेटा। इस बार तू मुझे आगे से चोद। मैं अपने लाडले बेटे को गले लगा कर चोदूंगी, और झड़ते वक़्त कस के चूमूंगी !”

“ओके, मम्मी!”
 
58 छैयाँ छैयाँ

जय का लिंग मातृ योनि की चिपचिपी गिरफ़्त से ‘प्लॉप्प' की जोरदार आवाज के साथ मुक्त हुआ। टीना जी ने करवट ली और टाँगों को चौड़ा पसार कर जय के सम्मुख मेज के कोने पर बैठ गयीं। अब वे अपने पुत्र की आँखों में आँखें डाल कर सम्भोग का आनन्द उठा सकती थीं। उन्होंने जब अपनी पतली बाँहों में जय की गर्दन को लपेटा और अपनी योनि की दिशा में खींचा, तो जय ने ऐसी निरी कामुक दृष्टि से उन्हें देखा, कि वे पुत्र पर लट्टू हो गयीं। किशोर जय ने जैसे अपने श्याम वर्ण के लिंग को माँ की भाप उगलती योनि में दोबारा प्रविष्ट कराया, उनके हृष्ट-पुष्ट स्तन जय के सीने पर दब गये। कामावेग पीड़ित माता-पुत्र के भीगे होंठों का नम मिलन हुआ। सम्भोग की शुरुआत के उपरान्त पहली बार माता-पुत्र चुम्बन कर रहे थे। चुम्बन अत्यन्त आवेग-युक्त और कामुक था, दोनो पापी प्रेमियों की दैहिक तड़प से भरा हुआ। टीना जी ने हाँफ़ते हुए अपना मुख जय के चूसते होंठों से अलग किया।

“जय, तेरा लन्ड मम्मी को बहुत प्यारा है! देख कैसे मुआ मेरी चूत को फाड़ता हुआ चोंचले पर रगड़ रहा है!”, जय की माँ ने फुकारते हुए कहा, और उसके कान को अपने होंठों मे पकड़कर चबाने लगीं। टीना जी ने अपनी उचक कर जय के गहरे जुते हुए लिंग पर कसा, तो उनके उभरे हुए निप्पल उसके सीने पर चुभने लगे।

बोल जय बेटा, मैगजीन में फ़ोटो देखते हुए मुठ मारने से ज्यादा मस्ती तो मम्मी को चोदने में है ना ?”

“अँहह! बिलकुल मम्मी, तेरी चूत की कसम, मः ‘मादरचुदाई में तो अहह बहुत मस्ती है !”, जय बोला।

“क्या मुठ मारते हुए मैं अक्सर तेरे ख्यालों में आती हैं, जय !?”, मिसेज शर्मा ने एक आगे को एक जोरदार झटका देकर, अपने पेड़ को जय के लिंग के तने पर रगड़ा।

“अः ‘अक्सर मम्मी! पर कभी-कभी कमलाबाई, अऔर मूड बना तो सोनिया के नाम पर भी मुठ मार लेता

“ओहो ! जनाब का लन्ड बहन सोनिया को देख कर भी फुदकता है ?”, टीना जी की दिलचस्पी जाग उठी थी। मेरे लाडले, बोल कब से तेरे खुराफ़ाती दिमाग में बहनचोदी का भूत चढ़ा हुआ है ?” ।
 
अरे मम्मी, उसी ट्रेन के सफ़र की रात से।”, जय अपनी माँ का कस के आलिंगन करता हुआ बोला। “मैं मजबूर था मम्मी। तुझे बाप से चुदते देख कर मेरा लन्ड शांत होने का नाम नहीं लेता था। चादर के अन्दर टार्च जला कर मैं मुठ मारने लगा था। पहले तो तेरी चूत के नाम पर मार रहा था, पर फिर अचानक मेरे सामने वाली बर्थ पर सोनिया नींद में कराहने लगी। सुनकर मैं तो चौंक गया, पर फिर देखा तो वो गहरी नींद में थी। गौर से देखा तो मम्मी, सोनिया की सैक्सी बॉडी को देख कर मेरे मन में शैतान जाग गया। उसकी नारंगी जैसे चूचियाँ नाइटी के नीचे से उभरी हुई थीं। मेरी बहन तो एकदम टोट माल है, निप्पल ऐसे कड़क, मेरा मूड तो बहनचोदी का हो गया !”

बहनचोद पापी, फिर क्या किया तूने ? मेरी बेटी को चोद डाला ?”, आशा भरे स्वर में जय की माँ ने पूछा।

“नहीं, मम्मी। मेरी हिम्मत नहीं हुई। पर लन्ड की कसम, मन तो करता था, कि लगाऊं छलांग और घोंप दू साली की चूत में अपना लन्ड! ऐसी बेशर्मी से बिना चादर ओढ़े सो रही थी, नाइटी उठकर नंगी टांगें दिखा रही थी, हरामजादी की पैन्टी तक दिख रही थी। मेरे दिमाग में तो ये नजारा देख कर बुखार चढ़ रहा था, मम्मी!” टीना जी ने अपनी अनुभवी योनि को पुत्र-लिंग पर सिकोड़ा और अपनी हथेलियों में उसके बलिष्ठ युवा नितम्बों को जकड़ा।

“बहन के बड़वे! फिर क्या किया !”, भारी साँसों के बीच मिसेज़ शर्मा ने पूछा।

“अब तो सोनिया को छुये बगैर नहीं रहा जा रहा था, मम्मी! मेरा लन्ड तो गधे की तरह दुलत्ती मार रहा था। मैने बढ़ कर अपना हाथ उसकी टांगों के बीच घुसा दिया।” टीना जी ने जय के कस के पेड़ को अपने पेड़ पर भींच लिया, और अपने चोंचले को उसके फिसलते लिंगस्तम्भ पर रगड़ती हुई सुनने लगीं।

अहहह! माँ के लवड़े! वो गरम थी क्या?”, उसकी माँ कराही, “सोनिया की चूत का टेंपरेचर कैसा था ?”

हाँ मम्मी! सोनिया की चूत में तो कोयले जल रहे थे, हालांकि मैने उसकी पैन्टी के पार से छुआ था! सोनिया जरूर कोई सैक्सी सपना देख रही होगी! मैने जैसे ही छुआ, साली ने झट से अपनी टांगें खोल दीं, फिर मैं एक हाथ से उसकी चूत मसलने लगा, दूसरे हाथ में अपने लन्ड की मालिश करता रहा। क्या मजा आ रहा था, मेरा सारा डर हवा हो गया! रगड़ते - रगड़ते, मुझे महसूस हुआ कि उसकी चूत खुलती जा रही है। साली का चोंचला भी कड़ाने लगा, मम्मी। देखते ही देखते, उसकी पैन्टी भीग कर गीली हो गयी। हैं, हैं करके जोर-जोर से उसकी साँसें चलने लगीं। माँ कसम, मैं भी क्या ताव खा रहा था! फिर मेरे दिमाग में आयी कि क्यों ना सोनिया की चूत को उसकी पैन्टी उतार कर छुआ जाये। तो मैने एक सैकन्ड के लिये लन्ड से अपना हाथ हटा कर, हौले से उसकी गाँड को बर्थ से ऊपर उठाकर, उसकी नींद में खलल डाले बिना, बड़ी सावधानी से उसकी पैन्टी उतार दी।” ।

“उसकी पैन्टी बिलकुल गीली हो गयी थी, मम्मी! मैने उठा कर उसे सुंघा भी। क्या नशीली स्मैल थी मम्मी! माँ कसम, जैसे आपकी चूत की सोची थी, वैसी ही स्मैल थी, मम्मी!”, जय ने माँ के खुले होंठों का फिर चुम्बन लिया, और आगे की कहानी कहने से पहले उनके मुँह के अन्दर अपनी जिह्वा से टटोला।
 
59 दिन में भैया, रात में सैंया

* मैने अपना बाँया हाथ फिर उसकी चूत पर रखा और अपनी बीच की उंगली को उसकी चूत के तंग दरवाजे में डाला। बड़ी सावधानी से मैने उसे धीमे-धीमे अन्दर घुसाया। सोनिया ने अपनी जाँघे पूरी तरह चौड़ी फैला दी थीं, मम्मी , तो मैं भी बहन की चूत में उंगलचोदी करता हुआ साथ-साथ वीर्य करने का मजा लेने लगा! रगड़-रगड़ कर मेरा लन्ड अब दर्द करने लगा था, तो मैने सोनिया की चुतिया में अपनी उंगलिया डुबोयीं, और उससे बहते मवाद को लेकर अपने लन्ड पर चुपड़ दिया, जिससे आराम से मेरी मुट्ठी में लन्ड फिसल पाये।”

अबे बहनचोद! तू सोनिया की चूत में उंगल कर रहा था, और मुई ने आँखें ही नहीं खोलीं !”

“एकदम नहीं खोलीं! मम्मी, मैं तो दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोई सैक्स का सपना देख रही होगी। क्योंकि उसकी अगली हरकत ने तो मेरे होश ही उड़ा दिया !” ।

* कैसी हरकत? बता मम्मी को, हरामी !”, टीना जी मन्त्रमुग्ध थीं, उनके पुत्र का लिंग उनकी योनि में हलचल कर रहा था, और उसका वर्णन उनके कल्पनालोक में हलचल कर रहा था।

“बस, मैं जैसे ही अपनी उंगलियाँ उसकी चूत में और अन्दर घुसाने लगा, उसने लपक कर मेरी कलाई को अपनी हथेली में पकड़ लिया! हे भगवान, मेरी तो जान गले में अटक गयी! लगा कि साली जाग गयी, और सारा भांडा फूट गया! पर मम्मी, मजे की बात तो ये थी कि सोनिया ने मेरा हाथ पकड़ के अलग नहीं किया, बल्कि खुद पकड़ कर मेरी उंगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर मसलने लगी! तुम मानोगी नहीं मम्मी, अपनी भोली-भाली सोनिया मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत में मेरी उंगली से चुदवा रही थी !”

उसके हाथ को इस वाहियात हरकत करते देख मुझे एक नयी बात सूझी। तो मैने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और अपने लन्ड पर लिपटा लिया। उसकी छोटी से हथेली में मेरा मोटा लन्ड तो पूरा समा भी नहीं पा रहा था। मैने उसका हाथ छोड़ा, तो वो ज्यों का त्यों लन्ड को जकड़े रहा। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता था, मम्मी! सोनिया की नरम कोमल उंगलियों के बीच मेरे लन्ड कुलाचे भर रहा था। मैं बार-बार नीचली बर्थ को देख कर डर रहा था कहीं डैडी उठ कर मुझे अपनी बहन की बुर में उंगली गड़ाये और उसकी हथेली में अपना लन्ड फंसाये हुए ना पकड़ लें !

 
“अब सोनिया भी हौले-हौले कराहने लगी थी। अपनी बुर में टुंसी हुई मेरी उंगली का पूरा-पूरा मजा ले रही थी। पर मेरा लन्ड रगड़न के लिये बेकरार हो रहा था! मैने उसकी कलाई पकड़ कर उसकी हथेली को अपने लन्ड पर ऊपर-नीचे मला। पहले तो मेरे रुकते ही, सोनिया के हाथ की हलचल भी रुक जाती, पर कुछ देर बाद, मुझे पता चला कि अगर मैं उसकी चूत में उंगली करते-करते अगर अंगूठे से उसके चोंचले को दबा दबा कर रगड़ता, तो उसकी बन्द मुट्ठी भी खुदबखुद मेरे लन्ड को मसलने लगती !”

“क्या मस्त ऐश हो रही थी मेरी, मम्मी! और अब, मेरा एक हाथ भी खाली हो गया था, जिसे मैने सोनिया की नाइटी को उठा कर उसकी चूचियों पर फेरना शुरू कर दिया। दो मिनट में उसके निप्पल कड़क रबड़ की तरह तन गये, तो मैं आगे झुका और निप्पलों को प्यार से चूसने लगा। साली सोनिया के नारंगी जैसे मुम्में तकरीबन मेरे मुँह में फ़िट हो गये !”

कुछ टाइम बाद सोनिया जरा ज्यादा ही शोर मचाने लगी, तो उसकी आवाज बन्द करने के लिये मैने उसके होंठों को चूम कर उसे चुप कराना चाहा। पर कोई फ़रक नहीं पड़ा। मैने जैसे ही किस किया, सोनिया और जोर से कराहने लगी और मेरे मुँह के लिये अपना मुँह खोलने लगी, तो मैने अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी। अब तो वो बेतहाशा फुदकने लगी थी, तो मैने उसके चोंचले को पकड़ कर निचोड़ा, और उसके हाथ पर हाथ दबाकर अपने लन्ड पर रगड़ने लगा, पूरा दम लगाकर बहन के हाथ को लन्ड पर ऊपर-नीचे मलते हुए वीर्य लगाने लगा।”

“फिर क्या, मम्मी! हम दोनो इकट्ठे झड़ गये! सोनिया की चूत में एक उफ़ान आया और मेरी उंगली पर कसके सिकुड़ गयी। उसकी हथेली मेरे लन्ड पर हथकड़ी जैसे कस गयी, और मैने अपने गरम वीर्य की पिचकारी उसकी चूचियों पर मार दी। फिर सोनिया गश खाकर वहीं पड़ गयी, इसलिये मैने अपनी उंगली उसकी चूत से निकाली और उसपर चुपड़े हुए चूत के मवाद को उसके पेट और चूचियों पर पोंछ दिया। तब जाकर मेरी नज़र उसकी बुर पर पड़ी, मम्मी! बुर ढीली पड़कर पूरी तरह खुल चुकी थी, वैसे ही जैसे पन्द्रह मिनट पहले डैडी से चुदकर आपकी चूत खुली पड़ी थी। मुझसे रहा नहीं गया! मैं लपक कर सोनिया की टांगों के बीच में पहुंचा, मुँह नीचे झुकाकर अपनी हथेलियों के बल उसकी गाँड को ऊपर उठाया। फिर, मैने अपनी जीभ निकाल कर उसकी तंग चूत में घुसा दी और चूत से बहते हुए रसों को प्यार से चाटने लगा।”

क्या मजेदार स्वाद था, मम्मी! एकदम ताजा-ताजा, जवान लड़की की चूत का जूस मैंने तो उसकी चूत को पूरा चाट कर साफ़ कर दिया। कमाल की बात ये कि अगले दिन सोनिया ने इस बात का जरा भी जिक्र नहीं किया। सोचती होगी कि पूरी घटना उसके सपनों में घटी होगी। चलो बात खतम हुई, पर मम्मी, एक बात तो तुम भी मानोगी, अगले दिन सोनिया कुछ ज्यादा ही चहक रही थी, है ना ?”

टीना जी तो कब की यथार्थ के धरातल से प्रक्षेपित होकर कामुकता के स्वर्ग में पहुंच गयी थीं। भावावेश में अपने पुत्र के झूठ को भी नहीं पकड़ पायीं थी, जो उसने अपनी बहन की चूत कभी नहीं चाटी होने का दावा किया था।
 
60 प्रजनन

बहनचोद कुत्ते की औलाद !”, टीना जी ने ठहाका लगाया, “लगता है तेरे बाप से मैने चुद कर दो हरामी पिल्लों को जना है !”

* सही बात , मम्मी! मैं तो हराम का पिल्ला हूँ ही! अपनी सगी बहन और माँ को चोदने में जो मजा है, किसी परायी औरत को चोदने में कहाँ !”

टीना भी अपने मन में पूरी तरह पुत्र से सहमत थीं, विशेषकर अभी, क्योंकि उनकी कोख से जने लाल ने अपना काला, मोटा लिंग क्या मस्ती से उनकी योनि में ठूसा हुआ था। अपने कठोर पौरुषांग को लगातार टीना जी की देह में ठेलता हुआ और मातृ योनि के भीतर दिव्य सम्भोग क्रिया में संलग्न अपने लिंग को तगड़े अश्व की भांति पेलता हुआ जय इस भरसक परिश्रम के प्रभाव में कंठ से ‘हूँ-हुँ-हूँ' स्वर निकालता हुआ हूकारने लगा था।

“ओहहह! हाँ, जय! मुझे कस के चोद, बेटा! माँ की चूत को चोद चोद कर मादरचोद बन जा बेटा !”, टीना जी बिलबिला रही थीं। उन्होंने अपनी लम्बी गोरी माँसल टांगे उसकी जाँघों पर लिपटा रखी थीं और पश्विक निष्ठुरता से सैक्स - लीला में रत अपने पुत्र के ढकेलते नितम्बों पर नाखून गाड़े हुए थीं।

“बाप की कसम, मम्मी! तू तो सैक्स के लिये बनी है! क्या अदा, क्या जलवे ! मेरे लन्ड की तो लाटरी खुल गयी जो तेरी कोख से मैं जनमा!”

हराम की पिल्ले, बाप की कसम खाता है! जिस चूत को तेरा लन्ड आज चोद रहा है, उसी को उन्नीस साल पहले तेरे बाप ने चोद कर अपने टट्टों के वीर्य से तुझे बनाया था !” । | पुत्र की उत्पत्ति के इस तथ्य को कहते ही टीना जी को अपनी जाँघों के बीच अपने दूसरे ऑरगैस्म की उत्पत्ति का पूर्वाभास हुआ। जैसे ही इन्द्रियों का बाँध टूटा, टीना जी ने चीख कर अपनी तड़प की अभिव्यक्ति की, और पुत्र को अपनी विपाशाओं की तृप्ति करने का आह्वान किया।

“ऊह ऊँघ ऊँह ऊँह ऊहहह! चोद चोद चोद! मादरचोद जय! झड़ा दिया मम्मी को तूने मेरे लाल ! दम लगा कर मुझे चोद! मेरी गाँड ::: मम्मी की गाँड में उंगल दे सूअर! 'ऐंह ऍहः कमलाबाई की तरह ही! तेरी माँ भी हरामजादी भंगिन कमलाबाई की तरह तुझसे चोदना चाहती है !”

जय ने टीना जी की गुदा पर हाथों से टटोलते हुए अपनी एक उंगली गुदा के छिद्र में घुसेड़ दी। जैसे-जैसे उसका लिंग जंगली जानवर जैसे माता की उचकती, फुदकती मांद में प्रहार कर रहा था, वैसे-वैसे उसकी उंगली टीना जी की गुदा में उनके शीर्षानन्द को बढ़ा रही थी।

“ओह, भगवान! झड़ साली रन्डी! देख तेरी कोख से जना पूत आज अपने लन्ड से तुझे झड़ा रहा है !”
“शाबाश, ये बात, मेरी कुतिया ! पुच, पुच! मार अपनी कुतिया वाली चूत ! ये ले लन्ड'' 'दे मार चूत तेरी..
। “पुच, पुच! बोल कुतिया मम्मी ? जनेगी मेरे पिल्ले ?”, जय के दुष्ट मस्तिष्क में अपनी माँ की स्थिति अब एक ऐसी लावारिस कुतिया सी थी, जिससे वो अपनी वंशावृद्धि की चाह रखता है।

“मादरचोद, तू कुतिया माँ की चूत में जब अपने लन्ड से वीर्य निकालेगा, तब जनूंगी ना तेरे पिल्ले !” ।

 
माता अन्तर्यामी होती है। टीना जी झट से अपने पुत्र की इस नवीन फ़र्माइश का अर्थ जान गयीं थीं। पुरुष उसी स्त्री से वंशावृद्धि की आकांक्षा करता है जो कि मातृत्व के दायित्व को सही मायने में निभा सके, उसकी संतानों को निश्छल प्रेम व त्याग से पाल पोस कर बड़ा कर सके। जय ने अपने प्रस्ताव से अपनी माता के प्रति एक हृदय स्पर्शी विश्वास जताया था। जिस माँ ने उसे नौ महीने कोख में पाला, पीड़ा से जनम दिया, अपने स्तनों से दूध का पान करवाया, लाड़ प्यार से पोस कर बड़ा किया, उन्हीं पूज्य माता की कोख में जय अपनी संतान का बीज बोना चाहता था। पाठकों, पुत्र के माता के प्रति पवित्र प्रेम का और दूसरा क्या उदाहरण हो सकता है? टीना जी को इस अलौकिक सत्य का ज्ञान था। । रही बात जय की माता को ‘कुतिया' कहकर पुकारने की, वह भी दरसल जय के निश्पाप प्रेम का एक पहलू था। कुतिया प्रजनन क्रीड़ा के समय नर- कुत्ते के लिंग की गाँठ को घंटों तक जकड़े रखती है, तकि उसके प्रजननकारी बीज को अपनी योनि में लेती रहे, एक बूंद भी बाहर नहीं टपकने देती। इसी कारणवश चार से आठ पिल्लों को जन्म देती है। जय भी अपनी माता की कामकुशलता की दाद दे रहा था, और उनसे कईं सन्तानें उत्पन्न करना चाहता था।

चलिये पाठकों, ज्ञान-विज्ञान अपनी जगह है, माता-पुत्र के पास गहन अध्ययन का समय कहाँ था। वे तो अपनी इन्द्रियों के वश में थे। जैसे ही जय के अन्तरमन में यह बोध हुआ, उसका अण्डकोष हलचल में आ गया। तुरन्त उसने अपनी नाड़ियों में उबलते वीर्य को लिंग के रास्ते ऊपर की ओर दौड़ते हुए महसूस किया। वीर्य उसके दबे हुए रोश को मुक्त करता हुआ किसी ज्वालामुखी की तरह लिंग के छिद्र से स्फोटित हुआ।

पुत्र के वीर्य-भरे अण्डकोष जब धमाके के साथ खाली होने लगे, तो टीना जी बेसुधी के मारे चीत्कार कर रही थीं। जय उनकी पूज्य योनि को अपने खौलते वीर्य की पावन धाराओं से सराबोर करने लगा।

“ले कुतिया! मेरा वीर्य मांगती थी ना मम्मी, ले भर ले अपनी कोख मेरे वीर्य से !” । टीना जी ने अपने कूल्हों को उस पर डकेला, और जय के लम्बे, दमदार ठेलों का उत्तर अपने वहशियाना ठेलों से दिया। टीना जी अपने ऑरगैस्म की तीक्ष्णता के बावजूद जय के उबलते वीर्य की हर बौछार को अपनी योनि में फुटकर लबालब भर देने का आभास कर पा रही थीं। लैन्गिक क्रिया के उपरान्त मिलते हुए विलक्षण इन्द्रीय सुख के प्रभाव से वे बेसुध होकर जानवरों सी चीत्कार कर रही थीं, और उनका पुत्र अपने अण्डकोष को उनकी कसमसाती योनि में खाली करता जा रहा था।

गाँड उठा, मम्मी !”, जय गुर्राया, “एक सैकन्ड अपनी गाँड ऊपर कर ले !” जय ने अपनी हथेलियाँ माँ के बलखाते नितम्बों के नीचे रख कर उन्हें मेज से ऊपर उठा दिया, इस प्रकार उसका फड़कता लिंग उनकी योनि में जड़ तक घुप गया। टीना जी ने तुरन्त प्रत्युत्तर में अपनी बाहें उसकी गर्दन पर लपेटीं, और अपनी लम्बी, छरहरी टांगों को उसकी कमर पर बांध कर, स्वयं की योनि को मजबूती से पुत्र के लिंग पर प्रस्थापित कर दिया। तब कहीं जाकर जय को लगा कि आखिरकार उसकी मनचाही बात सच हुई। इस
मुद्रा में, जय का लिंग माँ की योनि में इतना गहरा प्रविष्ट हो चुका था, कि लिंग का शीर्ष भाग उनके गर्भाशय के द्वार को चूमने लगा था। टीना जी को भी इस अलौकिक तथ्य का आभास हुआ, तो वे अपने रक्त - रंजित चोंचले को जय के पेड़ मर रगड़ने लगीं। ।

“ओह ओहः ऊँह आँह ! जय मादरचोद, तेरा लन्ड है या तोप ! मेरे इतना अन्दर घुस गया है तेरा कुत्तीचोद लन्ड, कि पेट ही फाड़ देगा !”, टीना जी ने कराहते हुए पुत्र के मुँह से मुँह लगा कर एक ममता भरा चुम्बन दिया। | 4:हूँह ऍह कुतिया की जात, तेरी चूची से दूध चूस-चूस कर पिल्ले ने अपना लन्ड तगड़ा किया है। मैं हूँ अब तो पिल्ला चोद चोद कर, चोद चोद कर कुतिया से अपने पिल्ले जनेगा!'

'हहूँ: म्हैं कुत्ती मम्मी, तेरे पेट में मेरे पिल्ले पलें !”, जय ने प्रेमपूर्वक अपनी जिह्वा को माँ के कोमल मुख में घुसा कर उनके चुम्बन का प्रतिपादन किया। निःसंकोच उत्कटता के साथ चुम्बन लेते हुए माता और पुत्र अपने निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति कर रहे थे। मुख से मुख, और लिंग से योनि का आलिंगन था। प्रणय-लीला में लगे दो सर्पो जैसे दोनो परस्पर ऐंठते और फुदकते जा रहे थे, अपनी काँपती देहों से आनन्द बूंद-बूंद दुहने के यत्न में लगे थे।

जय ने अपने होंठों को माता के मुख से अलग किया, प्यार से उनकी गर्दन को चूमा, और कान में फुसफुसा कर पूछा, “मजा आया, मम्मी ?”
 
61 दो जोड़े

टीना जी ने हाँफ़ते हुए दम भरा, और अपने पैर फ़र्श पर उतारे। उनकी योनि में अब भी पुत्र के लिंग का वास था। हालांकी कुछ देर पहले उसने अपने पौरुष द्रव की गंगा-जमुना उनकी प्यासी योनि में बहा दी थी, विस्मय की बात थी कि जय के लिंग की दीर्घाकार और कठोरता में तनिक भी ढिलाव नहीं आया था। जय की माँ उसके पौरुष-बल से बहुत प्रभावित थीं! । “हाँ जय! मजा आ गया! मैं तो भूल ही गयी कितनी दफ़ा झड़ी, मेरे लाल! ... और तू : मादरचोद, अब भी तेरा लन्ड कड़क बम्बू है! मुस्टंडा ढीला भी होता है कभी ?”, वे खिलखिला कर हँस पड़ीं, और अपनी योनि की माँसपेशियों को जय के लिंग पर सिकोड़ने लगीं।

“मम्मी, तू अगर यों ही चूत से मालिश करती रहेगी, तो बेचारा लन्ड कैसे आराम करेगा!”,

टीना जी ने अपनी योनि के गहन भाग में पुत्र के लिंग की चपल लरजिश का अनुभव किया, जिससे उनके रोम-रोम में बिजली दौड़ गयी।

* जय बेटा : '', टीना जी ने मादकता से प्रस्ताव किया, ६ .:: मुझे बिस्तर ले चल और ठीक से चोद, मेरे लाल ! मम्मी को प्यार से आहिस्ता-आहिस्ता चोद बेटा!” ।

“ओहह , मादरचोद! हाँ, मम्मी! मैं भी एक बार तसल्ली से आपको चोदना चाहता हूँ !”, जय कराह कर बोला। | एक पल भी गंवाये बिना, जय ने अपनी बलिष्ठ भुजाओं में अपनी रूपमती माँ को उठाया और शीघ्रता से घर के मास्टर बेडरूम उठा कर ले आया।

जब वे मास्टर बेडरूम को पहुंचे, दो देखा कि सोनिया मम्मी-डैडी के बिस्तर पर पसर कर लेटी हुई है, और मिस्टर शर्मा उसकी मलाई सी चिकनी जाँघों के बीच सर गाड़े धीमे-धीमे चाट रहे थे। नग्न किशोरी की सुगठित माँसल टांगें बेटी पर सर झुकाये अपने पिता के कन्धों पर बड़ी बेपरवाही से लटकी हुई थीं। मिस्टर शर्मा भूखे बेड़िये की तरह अपनी जवान पुत्री के कोमल योनि-द्वार को चाट रहे थे। सोनिया हर पल का आनन्द लेती हुई कराहते हुए बिस्तर पर उछल रही थी।

जय कमरे में दाखिल हुआ और आत्मविश्वास भरे शक्तिशाली कदम लेकर माँ को बिस्तर पर लिटा कर स्वयं माँ और बहन के बीच लेट गया। उसका लिंग पेड़ से सावधान मुद्रा में खड़ा होकर लहरा रहा था। पूरा दस इंची कठोर और लम्बवत्त गगन को चूम रहा था। टीना जी ने जय की बाँहों में सिमटते हुए उसके लिंग के तने को अपने हाथ में दबोच लिया। जय के लिंग की पूरे छह इन्च की फड़कती माँसल लम्बाई उनकी भींची हुई मुट्ठी से ऊपर उभर रही थी। टीना जी धीमे-धीमे अपने हाथों से पुत्र के भीमकाय लिंग को रगड़ती हुई हस्तमैथुन करवाने लगीं। बिस्तर पर अचानक हलचल का अनुभव कर के सोनिया ने झट से नेत्र खोल दिये। उसकी प्रथम दृष्टि अपने भ्राता के रौद्र लिंगास्त्र पर पड़ी!

“तुम द दोनों लगता है अ अच्छी मौज मनाकर आ रहे हो?”, उखड़ती साँसों के बीच सोनिया ने प्रश्न किया और एकटक अपने भाई के तने हुए, चमचमाते लिंग को देखने लगी।
 
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