desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
लगता था जैसे आहट टॉयलेट से आयी है, सो डॉली शटर के समीप आ खड़ी हुई। दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था, बस इतना ही, कि झाँक कर अंदर देखा जा सकता था। अंदर का बल्ब भी जल रहा था, रहस्यमयी आहट के स्रोत को देखकर डॉली अत्यंत कुटिलतापूर्वक मुस्कुरायी। अंदर जय था, सम्पूर्णतय नग्नावस्था में टॉयलेट की सीट पर बैठा हुआ अपने विकराल लिंग को बायें हाथ से रगड़ा जा रहा था। उसने पलकें कस के मुंद रखी थीं, और मुंह खुला हुआ था। कर्कष और पाश्विक कराहें उसके खुले होठों से निकल रही थीं, और जय अपनी मुट्ठी को तीव्रता से लिंग के ऊपर और नीचे फटके जा रहा था, बाह्य जगत से पुरी तरह अनभिज्ञ होकर हस्तमैथुन कर रहा था। नवयुवक जय के विकट आकार व लम्बाई को देख डॉली की आँखें फटी की फटी रह गयीं।
अतिथी होने के नाते, डॉली के अंतःकरण ने उसे चुपचाप निकल जाने, और जय को एकांत में अपनी निजी गतिविधियों को निर्विघ्नता से करते रहने देने की राय दी। परन्तु जय के तने हुए स्थूलाकार लिंग की छवि ने उसके कदमों को रोक लिया, कैसा मोटा लम्बा और सम्मोहक था :: लगभग उसके भाई जितना ही बड़ा। जय सचमुच अब बच्चा नहीं रहा था! डॉली ने अपनी दृष्टि उसके विकराल लिंग से फेर ली, और उसके बदन के अन्य भागों पर फेरने लगी। उसने अपनी निगाह उसकी लम्बी पुट्ठेदार टाँगों पर, सरपट पेट और मजबूत कमर पर, चौड़े विशाल सीने, ताक़तवर भुजाओं पर फेरीं, और उसके हट्टे-कट्टे डील-डौल को सराहा। उसके देखते-देखते , जय के सीने और भुजाओं की माँसपेशियाँ उसके उग्रतापूर्वक हस्तमैथुन करते हाथों की गति के साथ-साथ फूलती सिकुड़ती जाती।
डॉली ने उसके युवा आकर्षक मुख को देखा, कितना हैंडसम है', डॉली ने सोचा। यौन तृप्ति के समय पुरुष के मुख भाव को देखना उसे बहुत भाता था। उसे एक बार फिर बाथरूम से निकलने की सूझी, पर उसकी योनि में रोमांच की एक टीस उठ रही थी और वो अपने आप को बाहर जाने के लिये नहीं मना पायी। किसी भी कीमत पर वो नौजवान जय को हस्तमैथुन करते हुए देखने का अवसर नहीं गंवाना चाहती थी। उसने अपना एक हाथ अपनी बिकीनी की जाँघिया के इलास्टिक को उठाकर अंदर को घुसाया और अपनी रोममम्डित योनि स्थल को सहलाने लगी। बड़ी सावधानी से हस्थमिथुनरत जय को देखते हुए, डॉली ने अपनी एक उंगली को अपनी संकरी योनि की मांद में घुसेड़ा और अपने चोंचले को उत्तेजित करते हुए कड़ा कर दिया।
जैसे जैसे वो उसे सहलाती गयी, उसकी योनि और नम होती गयी, उसकी उंगली हलके हलके छपाके करने लगी, जब वो उसे अपनी टपकती योनि में घुमा-घुमा कर फेरने लगी। डॉली अचानक ठिठक कर रुक गयी, जब उसे संदेह हुआ कि कहीं जय ने उसकी उपस्थिति भाँप तो नहीं ली, किंतु फिर उसके मुख के भाव को देखकर डॉली आश्वस्त हो गयी कि उस क्षण यदि हाथीयों का झुंड भी वहाँ आ धमकता, तो भी जय का सचेत होना बड़ा कठिन था।
अब वो सुरक्षित महसूस कर रही थी, इस कारण डॉली ने अपनी योनि से हतमैथुन फिर जारी किया, और यथासंभव स्वयं को उत्तेजित करती हुई जय से पहले यौन तृप्ति प्राप्त करने की चेष्टा करने लगी। और उसके पास चारा भी क्या था, जानती थी कि अन्यथा, उसे अपनी यौन तृप्ति से पहले ही नौ-दो-ग्यारह होना पड़ेगा। परंतु वो ऑरगैस्म के वास्ते ऐसे तरस रही थी, कि यह विकल्प उसे क़तई स्वीकर नहीं था! उसकी उंगलियों के दबाव के तले उसका चोंचला सूज कर फड़क रहा था, और उसका दूसरा हाथ स्तनों की प्रेमपूर्वक मालिश कर रहा था। डॉली की दृष्टि जय के फड़कते लिंग पर लगी हुई थी। सोचती थी कि अगर मिस्टर शर्मा का लिंग भी अपने पुत्र के जैसा ही दीर्घाकार है, तो अवश्य वो और उसकी मम्मी इस रात रतिक्रीड़ा से विलक्षण आनन्द का भोग करने वाली हैं।
अतिथी होने के नाते, डॉली के अंतःकरण ने उसे चुपचाप निकल जाने, और जय को एकांत में अपनी निजी गतिविधियों को निर्विघ्नता से करते रहने देने की राय दी। परन्तु जय के तने हुए स्थूलाकार लिंग की छवि ने उसके कदमों को रोक लिया, कैसा मोटा लम्बा और सम्मोहक था :: लगभग उसके भाई जितना ही बड़ा। जय सचमुच अब बच्चा नहीं रहा था! डॉली ने अपनी दृष्टि उसके विकराल लिंग से फेर ली, और उसके बदन के अन्य भागों पर फेरने लगी। उसने अपनी निगाह उसकी लम्बी पुट्ठेदार टाँगों पर, सरपट पेट और मजबूत कमर पर, चौड़े विशाल सीने, ताक़तवर भुजाओं पर फेरीं, और उसके हट्टे-कट्टे डील-डौल को सराहा। उसके देखते-देखते , जय के सीने और भुजाओं की माँसपेशियाँ उसके उग्रतापूर्वक हस्तमैथुन करते हाथों की गति के साथ-साथ फूलती सिकुड़ती जाती।
डॉली ने उसके युवा आकर्षक मुख को देखा, कितना हैंडसम है', डॉली ने सोचा। यौन तृप्ति के समय पुरुष के मुख भाव को देखना उसे बहुत भाता था। उसे एक बार फिर बाथरूम से निकलने की सूझी, पर उसकी योनि में रोमांच की एक टीस उठ रही थी और वो अपने आप को बाहर जाने के लिये नहीं मना पायी। किसी भी कीमत पर वो नौजवान जय को हस्तमैथुन करते हुए देखने का अवसर नहीं गंवाना चाहती थी। उसने अपना एक हाथ अपनी बिकीनी की जाँघिया के इलास्टिक को उठाकर अंदर को घुसाया और अपनी रोममम्डित योनि स्थल को सहलाने लगी। बड़ी सावधानी से हस्थमिथुनरत जय को देखते हुए, डॉली ने अपनी एक उंगली को अपनी संकरी योनि की मांद में घुसेड़ा और अपने चोंचले को उत्तेजित करते हुए कड़ा कर दिया।
जैसे जैसे वो उसे सहलाती गयी, उसकी योनि और नम होती गयी, उसकी उंगली हलके हलके छपाके करने लगी, जब वो उसे अपनी टपकती योनि में घुमा-घुमा कर फेरने लगी। डॉली अचानक ठिठक कर रुक गयी, जब उसे संदेह हुआ कि कहीं जय ने उसकी उपस्थिति भाँप तो नहीं ली, किंतु फिर उसके मुख के भाव को देखकर डॉली आश्वस्त हो गयी कि उस क्षण यदि हाथीयों का झुंड भी वहाँ आ धमकता, तो भी जय का सचेत होना बड़ा कठिन था।
अब वो सुरक्षित महसूस कर रही थी, इस कारण डॉली ने अपनी योनि से हतमैथुन फिर जारी किया, और यथासंभव स्वयं को उत्तेजित करती हुई जय से पहले यौन तृप्ति प्राप्त करने की चेष्टा करने लगी। और उसके पास चारा भी क्या था, जानती थी कि अन्यथा, उसे अपनी यौन तृप्ति से पहले ही नौ-दो-ग्यारह होना पड़ेगा। परंतु वो ऑरगैस्म के वास्ते ऐसे तरस रही थी, कि यह विकल्प उसे क़तई स्वीकर नहीं था! उसकी उंगलियों के दबाव के तले उसका चोंचला सूज कर फड़क रहा था, और उसका दूसरा हाथ स्तनों की प्रेमपूर्वक मालिश कर रहा था। डॉली की दृष्टि जय के फड़कते लिंग पर लगी हुई थी। सोचती थी कि अगर मिस्टर शर्मा का लिंग भी अपने पुत्र के जैसा ही दीर्घाकार है, तो अवश्य वो और उसकी मम्मी इस रात रतिक्रीड़ा से विलक्षण आनन्द का भोग करने वाली हैं।