Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 8 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

“बेटे ने तो सुबह अच्छी चुदाई की, देखें अब पतिदेव रात को क्या गुल खिलाते हैं !”, इस तरह सोचते हुए टीना जी ने अपने तेजी से गर्माते जननांगों को शीतल करने के वास्ते अपनी जाँघं जरा सी खोल दीं। जानती थीं कि कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थीं, पर उम्मिद कर रही थीं कि किसी को इसका अंदाजा नही हो। सोनिया ने माँ- बेटे का नैन -मटक्का देख कर अपनी माँ के चेहरे के भाव को ताड़ लिया था।

उधर मिस्टर शर्मा ने खाली गिलासों में दूसरा जाम भर दिया। सोनिया ने देखा कि जय ने एक ही भेंट में पूरा जाम पी लिया। टीना जी भी शौक़ से पी रही थीं। शराब के चढ़ते नशे में वे सोनिया को मैच के महत्वपूर्ण घड़ीयों का हाल बयान करते हुए खिलखिलाती जा रही थीं। मिस्टर शर्मा ने जब सोनिया का गिलास भरना चाहा, तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि आज रात उसे अपने अपने पूरे होश-ओ-हवास में रहना है। उसकी योजना के लिये थोड़ी सी शराब लाभदायक थी, पर अधिक मात्रा में पी गयी तो बना-बनाया प्लान समझो चौपट। जब सबका खाना हो गया, तो सोनिया ने कहा कि जय और वो बर्तन समेट कर टेबल साफ़ करेंगे। टीना जी ने सहर्श स्वीकृती दे दी और अपने पति का हाथ पकड़ कर खींचती हई बेडरूम की तरफ़ ले गयीं।

जय ने बेशर्म होकर खुल्लम-खुल्ला लालसा भरी नजरों से अपनी माँ को रूम से बाहर जाते हुए देखा। सोनिया मुस्कुरायी और अपने भैइ की तरफ़ झुकी। “हरामी, तू क्या उम्मीद लगाये था ? मम्मी तेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम ले जयेंगी ?” जय सटपटा कर अपनी कुर्सी से उठा और बोला, “फ़ल्तू समझ रखा है क्या मुझे। चल काम में हाथ बटा!”, झल्ला कर अपना गिलास उठाता हुआ बोला।।

सोनिया किचन में गयी और झुटे बर्तन अलग रखने लगी। उसके भाई ने भी खाने की मेज से झुठी प्लेटें ला कर सोनिया के पास रख दीं। सोनिया बर्तनों के ढेर को सिंक में रखने लगी, पर जय आराम से पास में कुर्सी पर आसन जमा कर हाथ में बीयर का गिलास थामे उसे पीने लगा।

“लाट साहब, मैं क्या अकेले ही सब काम करूंगी ?”, उसने शिकायत भरे स्वर में पूछा। जवाब में जय ने अपनी बहन के नितम्बों को पीछे से एक नजर देखा और फिर जैसे शरब का सुरूर उसके जवान दिमाग पर छाने लगा, अपने होंठों पर छलकी हुई शराब को जीभ फेर कर चाटा। सोनिया मिनी-स्कर्ट पहने हुए जब भी सिंक पर झुकती थी तो जय को उसकी जाँघों के बीच एक काले धब्बे की झलक दिख जाती थी।

वोह बेचारा क्या जानता था कि उसकी चालाक बहन ने बड़ी सावधानी से इस पोशाक का चयन किया था। दोपहर को राज और डॉली के वापस जाने के बाद, उसने नहा कर अपनी अलमारी में से सबसे छोटी मिनि - स्कर्ट ढूंढ निकाली थी, जिसे पहन कर उसके कमसिन चूतड़ों का खासा प्रदर्शन होता था, विशेष कर इसलिये क्योंकी उसने अन्दर कोई पैन्टी नहीं पहन रखी थी। | सोनिया ने ऊपर ब्रा पहनने की तकलीफ़ भी नहीं की थी। उसने जो पारदर्शी सा टॉप पहन रखा था, उसके पार उसके नारंगी जैसे स्तनों और उनके शीर्ष- बिन्दु पर दो उभरे हुए निप्पल साफ़ दृष्टीगोचर होते थे। कोई आश्चर्य नहीं कि उसके कामुक भाई के लिंग पर इसका सीधा असर हो रहा था। अपने भाई की गिद्ध-निगाहों का अपने बदन पर रेंगने का आभास पाते ही सोनिया ने पलट कर जय को देखा और मुस्कुरायी।

“अब रात भर कुर्सी पर ही डेरा लगाओगे, या मुझे भी ज़रा हाथ बँटाओगे ?” । जय ने एक नज़र अपनी बहन की मक्खन सी चिकनी और गोरी जाँघों को देख कर बीयर का एक घूट पिया। “गुरू, आज तो आर या पार !”, उसने सोचा, “आज तय हो ही जाये कि चोद्दी केवल फ़्लर्ट करती है कि ...शराब उसे और निडर करे दे रही थी ...
 
41 अधूरा काम

जय कुर्सी से उठा और अपनी बहन के समीप, उसके पीछे खड़ा हो गया। अपने हाथों को सोनिया के टॉप के भीतर सरका कर उसके पुख्ता और सुडौल स्तनों को हथेलियों में भर कर सहलाने लगा।

ओह! जय !”, विस्मय का अभिनय करते हुए वो चिल्लायी, “ये क्या बेहूदगी है ?”

बेहूदगी कैसी, अभी तो मुझे हाथ बँटाने को कह रही थी, सो हाथ ही तो बँटा रहा हूँ ?” ।

“अरे बेवकूफ़ ! टाईम और जगह देख कर हरकत किया कर। मम्मी और डैडी देख लेंगे ?”, अपने भाई के लिंग के अच्छे-खासे उभार का अपने नितम्बों पर दबाव अनुभर कर के वो कराही। उसकी जाँघों के बीच तत्काल ही नमी छाने लगी।

“अब समझो दो-चार घंटे तक वो अपने बेडरूम के बाहर फटकेंगे भी नहीं, जय के मसलते हाथों के बीच सोनिया के निप्पल अब रोमांच के मारे कुम्हला कर सख्त हो गये थे,

देखा नहीं मम्मी कैसी नशीली आँखों से डैडी की तरफ़ देख रही थीं ? अब तक तो ऊपर कामसूत्र के दो-छार अध्याय समाप्त हो गये होंगे !”

सोनिया जय की कही बात को कल्पित कर के सिहर गयी - जानती थी कि उसकी बात सोलह-आने सही थी। जय की उंगलियाँ उसके नारंगी आकार के अर्धविकसित स्तनों के नरम माँस को सहला कर गरम कर रही थीं। सोनिया अपने नितम्बों को कामुक निमन्त्रण के भाव में मटकाने लगी।

“अममम! अच्छा लग रहा है !”, सोनिया अपने सुडौल नितंबों को भाई के तनते हुए लिंग पर रगड़ती हुई कराही। जय के भरपूर मजबूत हाथ उसके नग्न स्तनों को मसल रहे थे।

“तुम्हें मम्मों की मालिश पसन्द है। है ना बहन ?”, अपने मुँह से गरम साँसों को बहन की गर्दन पर छोड़ता हुआ वो बोला। ।

“हाँ जय! बहन की पसन्द को खूब पहचानते हो !”, सोनिया ने आह भरकर कहा। अपने स्तनों पर उसकी उंगलियों का स्पर्ष उसे इतना भ रहा था कि वो भी अपनी छाती को उसकी हथेलियों मे मसलने लगी थी। सथ में अपने वक्राकार नितम्बों को उसके पेड़ पर और दबा कर रगड़ती जा रही थी। कितनी आनन्ददायक क्रीड़ा थी वो, पर उसका यौवन और अधिक आनन्द का प्यासा था! स्सस • उसकी योनि आनन्द की आशा में सुलग सी रही थी! । “मुझे जरा छुओ जय! मेरी चूत को छुओ !”, सोनिया ने बिनती करते हुए अपनी टंगें जय के लिये फैला दीं।

“बन्दा हाजिर है !”, जय ने अपना एक हाथ उसके पेट पर फेरते हुए नीचे की ओर सरका कर अपनी बहन की स्कर्ट में घुसाया और उसकी पैन्टी से ढकी योनि को टटोलने लगा। जैसे ही उसकी उंगलियों ने योनि के नरम मखमली उभार का अनुभव किया, उसने एक आह भरी। क्या चालू चीज है, पैन्टी नहीं पहने है !”, अपनी उसकी नम योनि की कोमल कोपलों के बीच अपनी उंगलियों को सरकाते हुए सोचा।

भाई की उंगलियों का अनुभव अपनी रसीली योनि के और भीतर पाने की चेष्टा में सोनिया ने भी अपने कूल्हों को आगे उसके हाथों पर दबाया।

* अममम! ओहह जय! तड़पाते क्यों हो ? उंगलियाँ अन्दर घुसाओ ना !” सोनिया ने जय की उंगलियों को अपनी योनि के लिसलिसे द्वार को सहलाते हुए अन्दर की ओर फिसल कर घुसते हुए अनुभव किया।

सोनिया, तेरी चूत तो टपक रही है !” उ ऊहह! तुम्हारे वास्ते ही तो गीली हो रही है!” जय ने मारे उत्तेजना के उसकी गर्दन पर चूमा और कान को होंटों के बीच दबाया।

मैं खूब जानता हूं तू कितनी पहुंची हुई चीज है !”, उसने सोनिया के कानों में कहा और अपनी उंगलियों को योनि के चोंचले पर फेरा। “सुबह बाथरूम में जो कुछ हुआ, उसे मैं भूला नहीं हूं! तभी समझ गया था कि तेरे मन में सैक्स की कैसी बेटाबी है।”
 
मैं खूब जानता हूं तू कितनी पहुंची हुई चीज है !”, उसने सोनिया के कानों में कहा और अपनी उंगलियों को योनि के चोंचले पर फेरा। “सुबह बाथरूम में जो कुछ हुआ, उसे मैं भूला नहीं हूं! तभी समझ गया था कि तेरे मन में सैक्स की कैसी बेटाबी है।”

जय ने जैसे ही अपनी बीच की उंगली को उसकी तंग योनी में और गहरे कुरेदना प्रारम्भ किया, सोनिया ने भी अपने कूल्हों को भाई के हाथ पर रौन्दना शुरू कर दिया।

“नहीं जय, मेरी बेटाबी का अनुमान तुम भी नहीं लगा सकते। बहुत सब्र किया है मैने। पर अब और नहीं! मुझे अभी, इसी वक़्त , यहीं पर चोद जय !”, उसने गुर्राते हुए कहा और अपना सर ऐसे झुकाया कि वो उसे चुम्बन दे।

जय ने अपने होंठों को बहन के पटे हुए, आतुर होंठों पर सटा दिया और तन्मयता से उनका चुम्बन लेने लगा। अपनी सुलगती जिह्वा को साँप की भाटि सोनिया के कोमल गरम मुँह की गहराइयों में सरसरा रहा था। ठीक वैसे ही जैसे उसकी उंगलियाँ सोनिया के टपकते योनि-माँस में टोह ले रही थीं। सोनिया ने भी उसी आवेग से चुम्बन दिया। भाई की जीब को चूसते हुए अपने मुँह के अन्दर निगल रही थी। इस तरह कामावेग में बहन-भाई फ्रेन्च शैली में चुम्बन कर रहे थे। सोनिया ने अपना दाँया हाथ, जिससे उसने किचन - सिंक का सहारा ले रखा था, पीछे से अपनी जाँघों के बीच डाला और भाई के लिंग को दबोच लिया। लिंग वज्र जैसा कठोर और बहुत , बहुत बड़ा था! तभी उसके भाई ने अपना मुँह उसके मुँह से अलग करते हुए उसके कान में फुस्फुसाया।

“सोनिया, अब आखिरी बार पूछ रहा हूं तुझसे। क्या तू अच्छी तरह से समझती है कि हम क्या करने जा रहे हैं ?”

“ऊऊह, हाँ जय! अछुही तरह से !”, वो अपने यौवन तन को उसके तन पर दबा कर बोली।

“ऐसा है तो अपनी जुबान से बोल तू क्या चाहती है !”, उसके भाई ने माँग की। जय चाहता था कि उसकी बहन खुद अपने मुँह से उससे कामानन्द की भिक्षा मांगे। वो सोनिया को अपने लिम्रा के लिये गिड़गिड़ाते हुए देखना चाहता था !

“मैं तुमसे चुदना चाहती हूं जय!”, सोनिया उसके मुँह में हाँफ़ती हुई बोलि , “इसी वक़्त साले अगर मर्द का बच्चा है तो अपना मोटा काला लन्ड मेरी टाईटम-टाईट चूत में डाल और मुझे चोद !”

“बस इतना ही ?”, अपने तनते हुए लन्ड पर बहन के सुगठित नितम्बों को भींचता हुआ वो बोला। प्रकट था कि जय अपनी बहन के बेहया से, और ललकार भरे निवेदन को सुन कर और उतावला हो गया था।

नहीं बहनचोद !”, सोनिया ने फूली हुई साँसों से जवाब दिया, “बस इतना ही नहीं! मुझे चोदने के बाद तू मेरी चूत चाटना, इतनी चाटना, कि दूसरी बार भी झड़ जाऊं, फिर मेरी गाँड मारनी होगी! बोल है दम तेरे लन्ड में ? कि मुठ मार-मार कर कमजोर कर दिया है। ? मेरे हरामी भैय्या, मेरी गाँड में आज तक कोई लन्ड नहीं घुसा है, बड़ी टाईट है ये !” ।

“तेरी टाईट गाँड की कसम बहन, मेरा लन्ड लम्बी रेस का घोड़ा है!”, जय ने जवाब दिया, “तेरी सैक्सी चूत को चोद - चोद कर भोंसड़ा बना दूंगा और गाँड तो ऐसी मारूंगा कि दो हफ्ते तक उसमें से मेरा वीर्य टपकेगा !” ।

“साले भोसड़चोद! डींगें तो बड़ी हाँकता है! मेरी फ़ेयर-एंड- लवली चूत को तो छूते ही बड़े-बड़ों के लन्ड बह जाते हैं, तेरी क्या औकात ? आज तक ऐसा लन्ड नहीं बना जो मेरी चूत की आग को शाँत कर सके !” । |

सोनिया इन अखेलियों का बड़ा आनन्द उठा रही थी। अपने उत्तेजक वार्तालाप के द्वारा भाई को उकसाने का भरसक यत्न कर रही थी। सोनिया की योजना के लिये जय का ध्यान पूरी तरह से उस पर एकत्र होना अति आवश्यक था। और जय का पौरुश सोनिया के इस वार्तालाप को सुनकर क्या उत्तेजित हो रहा था! सामान्यतः कम बोलने वाली सोनिया में इस सुखकर बदलाव को जय ने सहर्श स्वीकर लिया था।

जय ने लपक कर बहन की मिनी-स्कर्ट का हुक खोल कर उसे उसकी जाँघों पर से नीचे उतार दिया।

“क्या बॉम्ब गाँड है, मेरी बहन !” ।

सोनिया ने झुक कर अपनी एड़ियों पर से स्कर्ट को सरका कर उतारा और भाई की एक उंगली पकड़ कर सामने की तरफ़ से अपनी जाँघों के बीच से झाँकती हुई नटखट योनि में घुसाया। जय ने अपना दूसरा हाथ सोनिया के मटकों जैसे नितम्बों के गोरे-गोरे मक्खन से चिकने माँस पर बड़े प्यार से फेरा। सोनिया मस्ती के मारे कराही।
 
ओहह जय! मुझे चोद ना! देखता नहीं मेरा तन कैसा गरम हो रहा है! बहनचोद, अपना लौड़ा मेरी चूत के अन्दर डाल ना !”

सोनिया के भाई ने अपनी जीन्स को उतार दिया। अपने बायें हाथ में अपने फड़कते लन्ड को दबोच कर बहन के पीछे खड़ा हो गया।

“जानेमन, अभी डालता हूं। बस तू तू सिंक को पकड़ कर आगे झुक जा, और फिर देख भैय्या के लन्ड का जलवा !”, जय ने चेतावनी भरे स्वर में कहा, और अपने लिंग का सुपाड़ा उसकी गाँड के बीच टेक कर टटोलता हुआ अपनी बहन की चिकनी हो चुकी योनी के पवित्र द्वार को लन्ड से खोजने लगा।

सोनिया ने अपनी टांगे अच्छी तरह पाट कर फैला दी थीं, और आगे की ओर झुक कर अपनी योनि में होने वाले भाई के लन्ड के शक्तिशाली गोते की प्रतीक्षा करने लगी। सोनिया की गाँड का छेद तो चूतड़ों से ढका हुआ था पर जय अपनी बहन की रिसती हुई, गुलाबी कमल की पंखुड़ियों जैसी योनि को उसके योनि - रोमों के जंगल में से झाँकते हुए देख सकता था। योनि की लालिमा और प्रचुर नमी इस बात का संकेत दे रही थी कि वो जय के लन्ड के साथ संभोग के लिये एकदम तैयार है।

जय का लिंग भी रौद्राकार लिये हए था। सुपाड़े को रक्त-धमनियों ने लाल कर दिया था। सुपाड़े के ऊपर का माँस पीछे खिंच गया था। जैसे जय ने आगे दबा कर सूजे हुए सुपाड़े को योनि के होंठों के पाश में झोंक दिया, सोनिया ने एक गहरी आह भरी। । “ऊऊह, भैय्या! अममम, बहुत मोट है! जरा धीरे से जाना चुतियन में !”, कामुक यौवना ने विनती के स्वर में कहा।

जय ने सोनिया की कमर को हाथों से पकड़ कर आगे दो झटका दिया और अपने विशाल लन्ड को जड़ तक अपनी बहन की सुलगती योनि में घोंप दिया। सोनिया ने योनि में अचानक हुए इत श्रारती अतिकरमण के वेग से विचलित हो कर एक चीख मारी और पीठ को तान कर किसी तरह सिंक की दीवार के सहारे सम्भली। उसके भाई जय ने पाशविक मुद्रा में अपनी बहन के साथ काम-क्रीड़ा शुरू कर दी।

ऊँह उँह उँह ! ओह, मादरचोद, लन्ड है या त्यूबवेल !”, अपने भाई को दिये कामदेव के वरदान स्वरूप अंग के भरपूर वारों को झेलती हुई सोनिया बोली।

जय हुंकारा और अपने भीमकाय लिंग को पीछे खिंच कर, केवल सुपाड़े को को योनि के पाश में छोड़ दिया। बहन की योनी के चिपचिपे रसाव से सना हुआ काला लम्बा लिंग, उसे कोबरा नाग जैसा लिसलिसा रूप दे रहा था। सोनिया की खिंची हुई योनि - कोपलें बाहर को उभर आयी थीं और जय के मोटे पौरुषांग पर लिपट कर दृष्य को बड़ा ही कामुक कर रही थीं। इससे पहले कि सोनिया कुछ कह पाती, जय के कूल्हों ने फुर्ती से आगे को एक झटका दिया और अपना सारा बल लगाकर लिंग की पूरी लम्बाई को यौवना की योनी के पाश में घोंप दिया।

“आअह! बहन, इतनी टाईट चूत !”, अपने घुसपैठिये लिंग पर सोनिया की तन्ग योनी के दबाव का अनुभव करके जय कराहा।

“मम्मी से भी टाईट ?”, सोनिया हाँफ़ती हुई बोली। आशा कर रही थी कि माँ-बेटे के बीच मेज पर हुई आँख-मिचौली का तात्पर्य वो ठीक समझी थी।

हाँ सोनिया, मम्मी से कहीं टाइट ! ओहहह !” सोनिया मन ही मन मुस्कायी। उसका अनुमान बिलकुल सही था, और उसकी पुष्टी हो जाने से उसे अब आगे का काम बहुत आसान लगने लगा था। अपने जिस्म के आवेग में जय को अपनी स्वीक्रोक्ति का पूर्ण अर्थ समझ नहीं आया था। सोनिया की जाँघों के बीच उमड़ती हुई आनन्दकर अनुभूतियाँ भी इतनी उग्र थीं कि उसे अधिक विचार करने का अवसर नहीं मिला। इस समय तो उसकी केवल एक ही इच्छा थी कि उसक ताकतवर भाई उसे चोदता रहे!
 
जय का लिंग अपनी वासना लिप्त बहन की चिकनाहट युक्त योनि में रेल-इंजन के पिस्टन जैसे भीतर-बाहर, भीतर-बाहर हरकत कर रहा था। योनि के चोंचले पर सर्र- सर्र वार करता हुअ लिम्रा चाबुक जैसा लचीला और लाठी जैसा कठोर था। जय के हाथ बहन की कमर से हटे और उसके बदन से पसीने को पोंछते हुए हुए ऊपर को चले। ऊपर पहुंच कर हाथों ने सोनिया के झूमते हुए स्तनों को दबाया।

“अँह ! जय! चोद हरामी! अँह, खींच कर चोद! अँह, ये मम्मी की चूत नहीं, ऊँह ऊँह ! जो दो-दो इन्च ठेलेगा! ऊँह ऊँह टाइट चूत है! ऊँह 5-6 इन्च तो ठेल !”, सोनिया आवश्यक्ता से कुछ अधिक ऊंचे स्वर में चीखी।

* शशश! शोर मत मचा सोनिया! मम्मी-डैडी को पता चल जायेगा !”, जय ने बहन को डाँटा। पर वो बहन के द्वारा अपनी कामोत्तेजना की लज्जाहीन अभिव्यक्ति से और उत्तेजित होकर अपने लिंग के धक्कों की गति और पैठ, दोनो को बढ़ाने लगा।

ऊ ऊँह! बहनचोद, चुप कर और मुझे चोद! आँह आँह आँह !”, सोनिया ने उत्तर दिया। उसकी योनि में काम की अग्नि धधक रही थी, फड़कती योनि के ताप को जय अपने लिंग पर अनुभव कर रहा था। सोनिया अपनी योनि से फुटती लपटों को अपने स्तनों और नितम्बों पर एक बुखार की तरह फैलते हुए अनुभव कर रही थी। भाई के हाथों का स्पर्ष अपने स्तनों पर बहुत सुखद लग रहा था। अपने अंगूठे और उंगलियों के बीच जय उसके उदिक्त निप्पलों को दबाता, तो जैसे रोमांच के फौव्वरे फूट जाते।

सोनिया अपनी चीखों को रोक नही. पा रही थी। यदा-यदा जय का लिंग उसकी योनि में प्रविष्ट होता, तदा - तदा योनि के चोंचले पर घिस कर जात, और यह घर्षण उसके रोम-रोम में आह्लाद की लहरें उठा रहा था।

* ऊह, ऊह, ऊह! कसी टाइट चूत है! ऊह, आअह ! याह! सिकोड़, और सिकोड़, ऊह, रन्डी लन्ड पर चूत कसती है! ऐंह, निचोड़ लन्ड को चोदनी !”, जय हाँफ़ने लगा।

जय एक अलौकिक उन्माद से अपनी बहन के साथ संभोग कर रहा था। अपने लिंग को सोनिया की रिसाव से लथपथ योनि पर इतने वेग से मारता, कि उसके कूल्हे थपाक के स्वर से बहन के नितम्बों के झुलते लोथड़ों पर टकराते। सोनिया बड़ी कठिनायी से किचन-सिंक का सहारे लिये अपना संतुलन बनाये हुए थी, पर भाई के बलशाली कामावेग का भरपूर आनन्द ले रही थी। अपनी कामेन्द्रियों के रसास्वादन में इतनी लीन थी कि कुछ देर के लिये अपनी योजना को भूल गयी थी। सोनिया ने खुद को सम्भाला और विचार करने लगी। । जब उसके भाई ने गुर्राते और कराहते हुए अपने लिंग की गति को तीव्र कर दिया था, सोनिया को अनुमान हो गया था कि वो काम-क्रिया के अन्तिम पड़ाव में हुंचने ही वाला है। पर उसकी योजना के अन्तर्गत, जय को संभोग में इतना अधिक एकाग्र हो जाना चाहिये, कि वो अपने विर्य को उसकी योनि के भीतर निश्चित ही स्खलित करे। सोनिया ने अपनी टंगें और फैलायी और सिंक पर और नीचे झुक गयी। इस तरह वो अपनी योनि को भाई के ठेलते हुए लिंग के हर शक्तिशाली वार पर प्रतिउत्तर में पीछे दबा सकती थी।

“हे राम, इससे पहले कि मैं बेहोश हो जाऊं, इसे झड़ा दो !”, सोनिया सोचा, और अपनी चीख को दबाने के लिये निचले होंठ को दाँतों तले काटा।
 
“हे राम, इससे पहले कि मैं बेहोश हो जाऊं, इसे झड़ा दो !”, सोनिया सोचा, और अपनी चीख को दबाने के लिये निचले होंठ को दाँतों तले काटा।

जय को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी अपनी बहन इतनी कामुक निकली! जितना आनन्द सोनिया की योनि से प्राप्त हो रहा था, आज तक किसी योनि से नहीं मिला था। योनि में कैसा अद्भुत तनाव था! काम-कला में ऐसी प्रवीणता ? जिस निपुणता से वो अपनी योनि को उचका और जकड़ा रही थी, कामसूत्र में वर्णित ‘समदंशा' और 'भ्रमर' पद्धति का यथासंगत प्रदर्शन था। जय के वीर्यकोष में दर्द उठ रहा था, लगता था बस कुछ ही देर में सोनिया की योनि वीर्य से सरोबर होजायेगी।

जय बहन के स्तनों पर पंजों को गाड़ कर उसे अपने रौंदते लिंग पर भींच रहा था। अगर भाग्य ने सोनिया का साथ दिया, तो उसे अपने बदन की वासना की तृप्ति भी प्राप्त हो सकती थी और उसकी योजना भी सफल हो सकती थी। |

अचानक जय का पूरा बदन अकड़ने लगा,

सोनिया भाई के लिंग की सूजन और असाअमान्य फड़कन को अपने भीतर अनुभव कर रही थी। “शाबाश भैय्या!”, उसने अपने चरमानन्द की घड़ी को समीप आते अनुभव करते हुए सोचा। जैसे ही गाढ़े गरम वीर्य की पहली खौलती बौछार भाई के गहरे पैठे हुए लिंग से फूतीं, सोनिया ने हाथ बढ़ा कर झूठी प्लेतों के ढेर को धक्क मार कर सिंक से नीचे गिरा दिया।

वीर्य स्खलन के उन्माद में जय के कान बज रहे थे। अपने तन में होथी इस भयंकर अफ़रा-तफ़री के बीच उसका ध्यान काँच की प्लेटों का किचन के फ़र्श पर गिर गर चकनाचूर होना, और इससे उत्पन्न हुई भीषण आवाज पर नहीं गया। पर भाई और बहन ने अपनी काम- क्रिया को एक पल के लिये भी नहीं थामा था। जय का लिंग बेतहाशा फड़कता हुआ गरमा-गरम वीर्य की बौछारें बहन की कुम्हलाती योनी में उगल रहा था।

अपनी योनि की दीवारों पर भाई की उबलती हुई वीर्य-धारा का अनुभव करके सोनिया चीखी और प्रत्युत्तर में उसकी योनी के भीतर से भी कामसन्तुष्टि के गरम - मीठे कम्पन उत्पन्न होने लगे।

अपने अंडकोष को खाली कर देने के बाद भी जय ने अपने लिंग के सोनिया की योनि के भीतर ठेलों को के नहीं रोका। अपने धौंकते लिंग से अन्त तक बहन की तपती योनी की हर ऐंथन का अनुभव किया। अपने लिंग को बहन की योनि में घुसाये हुए ही उसने सोनिया को पकड़ कर सीधा खड़ा किया और उसकी गर्दन और कन्धों पर चुम्बन करने लगा।

“सोनिया, सच कहता हूं, चुदाई का मज़ा आ गया !”, वो हाँफ़ा,

“तुझे भी आया ना मजा ?” सोनिया को भाई के प्रश्न का उत्तर देने का अवसर ही नहिं मिला। क्योंकी तभी उसे पीछे एक जोरदार ध्वनि सुनायी दी।

ये क्या मुँह काला कर रहे हो नालायकों?”

जय इतनी फुर्ती से पलटा कि उसका लिंग सोनिया की योनी से एक अटपटे ढंग से निकला और मरोड़ गया।
आउच !”, वो चीखा और अपने नग्न लिंग को दोनों हाथों से छिपाने की चेष्टा करने लगा।

सोनिया भी पलटी तो थी पर अपनी नग्नता को छिपाने का उसने तनिक भी जतन नहीं किया।

दोनों माँ-बाप किचन के दरवाजे के पास खड़े हुए बड़ी हैरानी से उन्हें घूर रहे थे।

जय ने जैसे ही जाना कि उसके हाथ चिपचिपे लिंग के विराटाकार को ढाक नहीं पा रहे थे, उसने झटपट से अपनी जीन्स को ही उठा कर अपने तने हुए लिंग पर, जो अब थक शीथील नहीं पड़ा था, ढक दिया। अपने भाई को शरम के मारे सिकुड़ते हुए देख कर सोनिया ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को दबाया।
 
44 देर आये दुरुस्त आये



तुम दोनों के दिमाग ठिकाने हैं या नहीं ? आखिर यहाँ कर क्या रहे हो तुम ?”, मिस्टर शर्मा ने बौखला कर चिल्लाते हुए पूछा।

सोनिया ने बड़े शाँत लहजे में अपने मम्मी- डैडी को देखा और उत्तर दिया, “डैडी, जय भैय्या मुझे चोद रहे थे!”

जय ने अवाक् होकर अपनी बहन को देखा। जय ही नहीं, उनके माता-पिता के मुंह भी मारे विस्मय के खुले के खुले ही रह गये।

सोनिया का दिल तो करते था कि ठहाके लगा कर हँस दे, पर उसने संयम बरता।

“सोनिया, बेटा तुम्हें मालूम भी है तुम क्या बोल रही हो ?!!”, मिस्टर शर्मा ने पूछा।

उसके डैडी अब बड़े ही रुष्ट लग रहे थे, सोनिया ने तय किया कि हँसी-मजाक बहुत हुआ, अब उसे आगे की योजना का क्रियान्वन करना चाहिये।

“जय मुझे चोद रहा था डैडी!”, उसने दोहराया, “वैसे ही जैसे उसने मम्मी को चोदा था !”

मिस्टर शर्मा ने अपनी युवा पुत्री को ऐसे देखा जैसे कि उसकी बात का अर्थ ही नहीं समझे हों, और फिर अपनी पत्नी के चेहरे की दिशा में मुंह मोड़ा, जो कि अब तक लज्जा और झेप के मारे लाल - पीला हो रहा था। बेचारा जय ज्यों का त्यों धरती पर नजरें झुकाये खड़ा रहा और आशा करने लगा की धरती फट कर उसे निगल जाये।

“कोई मुझे बताये कि इस घर में आखिर हो क्या रहा है ? कहीं मैं पागल तो नहीं हो गया हूं ?”, मिस्टर शर्मा अब तक पूरी तरह से खीज कर निगाहें कभी अपनी पत्नी की ओर तो कभी अपने दो बच्चों की ओर डाल रहे थे। |

सोनिया अपनी स्कर्ट को फ़र्श से उठाती हूई मुस्कुरायी, “डैडी, बिफ़रते क्यों हैं, तसल्ली रखिये”, वो बोली, “लगता है हमें आपको पूरी बात सच-सच बता देनी चाहिये, है ना मम्मी ???

मिस्टर शर्मा ने टीना जी पर निगाह फेरी, जो अब भी ऐसे खड़ी थीं, जैसे साँप सूरह लिया हो, और क्रोध केर मारे भौंक कर बोले, “टीना! ये सोनिया क्या बात कर रही है ?”

ममम, मैं ::: आ, सोनिया ? जी मुझे तो लगता है कि सोनिया सैक्स के बारे में बात कर रही है।”, टीना जी ने उत्तर दिया, और किचन में रखी कुर्सी की ओर बढ़ीं। वे इस घटना की हड़बड़ाहट को शाँत करने के लिये कुर्सी पर बैठ गयीं।

“सैक्स ?”, मिस्टर शर्मा गुर्राये, “वो तो मैं देख ही रहा हूँ !” अपने हाथों को बच्चों की दिशा में हिलाते हुए वे बोले, “पर मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हारे और जय के बारे में सोनिया जो कह रही है, उसका भला क्या मतलब है ?”

“बेचारे डैडी!”, सोनिया ने विचार किया, “अब सच बात बता ही देनी चाहिये।
मम्मी, बतला दीजीये ना! इसमें क्या घबराना! बेटे और माँ के प्यार में कैसी बुराई ? सच कहूं तो मैं भी डैडी से चुदना चाहती हूं !” इस बात को सुनकर टीना जी ने खड़ा होकर अपनी बाहों को फैला कर सोनिया की दिशा में बढ़ीं।

“मेरी बच्ची! मुझसे बड़ी भूल हो गयी, अब क्या होगा ?”

सोनिया ने अपनी माँ को गले लगाया। अपनी छाती पर माँ के विशाल स्तनों का दबाव पा कर उसकी योनि में कामोद्वेग की हलचल सी हुई। । “होगा क्या ? कुछ भी नहीं। पर मुझे लगता है कि आपने डडी को सब कुछ सच-सच बता देना चाहिये।”

टीना जी ने सर हिला कर सहमती भरी और अपने पति की ओर मुड़ गयीं।

“सोनिया ठीक कहती है दीपक ! समझ नहीं आता तुम्हें कैसे कहूं :' पर आज सुबह मैने और जय ने एकसाथ सैक्स किया।”

पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। मिस्टर शर्मा ने अचम्भे से अपनी पत्नि की ओर देखा। टीना जी को लगा कि उसे कुछ और सफ़ाई देनी चाहिये।

“मम ::: हम ::: मैने किसी तरह का जोर नहीं डाला था, जय और मेरी, दोनो ही की मर्जी थी।”, अपने जवान बेटे पर एक निगाह फेर कर टीना जी बोली.म, और सैक्स में ...आँ: बड़ा मजा भी आया।” उन्होंने पति के चेहरे पर आहत भाव देखा तो झटपट से घाव पर मरहम लगाते हुए बोलीं, “ये मत समझना कि तुम्हारे लिये मेरा प्यार कुछ घट जायेगा !”
 
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। मिस्टर शर्मा ने अचम्भे से अपनी पत्नि की ओर देखा। टीना जी को लगा कि उसे कुछ और सफ़ाई देनी चाहिये।

“मम ::: हम ::: मैने किसी तरह का जोर नहीं डाला था, जय और मेरी, दोनो ही की मर्जी थी।”, अपने जवान बेटे पर एक निगाह फेर कर टीना जी बोली.म, और सैक्स में ...आँ: बड़ा मजा भी आया।” उन्होंने पति के चेहरे पर आहत भाव देखा तो झटपट से घाव पर मरहम लगाते हुए बोलीं, “ये मत समझना कि तुम्हारे लिये मेरा प्यार कुछ घट जायेगा !”

सोनिया ने भी अपना वक्तव्य दिया, “डैडी, मम्मी के कहने का बस इतना ही मतलब है कि हम सब को सैक्स में कभी न कभी किसी नए पार्टनर की जरूरत होती है। अगर वो पार्टनर एक ऐसा शख्स हो जिसे आप दिल से प्यार करते हों, जो कि आपके अपने परिवार का एक अटूट हिस्सा हो ::: तो इसमें क्या बुराई है ? अपने तन की शाँति के लिये किसी पराये को ढूंढने से तो बेहतर ही हैन ना ?”

मिस्टर शर्मा मौन पड़ गये थे, उन्हें कानों सुनी और आँखों देखी बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। आखिरकार उनके मुँह से बस इतना ही निकला, “पर ये तो घोर पाप है! हमारे समाज में इससे बड़ा कलंक और नहीं !”

“इसी का तो मजा है डैडी !”, सोनिया ने खिलखिलाते हुए कहा, “क्या आपने मेरी तरफ़ कभी भी पुत्री - प्रेम से बढ़कर किसी दूसरी से नहीं देखा ?”

“म ::: मैणे ? क ::: कभी न :: नहीं : अम” ।

“कभी नहीं, डैडी ?”, सोनिया ने अपना, “आज सुबह स्विमिंग पूल के पास वाली बात भूल गये ? आपका लन्ड तो पैन्ट के फाड़ कर बाहर निकला जाता था !”

टीना जी और जय दोनो इस पूछताछ का निश्कर्ष जानने की उत्सुकता में मिस्टर शर्मा को देख रहे। मिस्टर शर्मा ने इधर उधर देखा, फिर जैसे बेटी के तर्क के सामने हार कर घुटने टेक दिये और तीनों को देख कर मुस्कुराये।
 
45 अब और नहीं शर्माना



“अच्छा बिटिया! मैं हारा, तुम जीतीं! लगता है कि मैं ही अकेला बेवकूफ़ था जो इस मजे से वंचित रहा!” मिस्टर शर्मा झेपते हुए हँसे।

“अब से नहीं वंचित रहेंगे! इस बात की गारन्टी मैं देती हूँ !”, उनकी सुपुत्री ने अर्थ बरे स्वर में कहा।।

“वंचित कहाँ थे डार्लिंग !”, मिसेज़ शर्मा ने टोका, “खाने के बाद तो चुदाई में डबल जोश दिखा रहे थे !” ।

“तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैं चुदाई से वंचित होने की बात नहीं कर रहा था।” मिस्टर शर्मा अपनी पत्नी को देख कर मुस्कुराए।
देखो टीना, हमारी बेटी अब बड़ी हो चुकी है। तुम्हें कोई ऐतराज़ तो नहीं अगर में सोनिया को गले लगाऊं ?”

मिसेज शर्मा भी मुस्कुरायीं, “मेरे पतिदेव, मुझे कैसा ऐतराज ? वैसे हमारा बेटा भी अब जवाँ मर्द हो चला है, अगर तुम्हें ऐतराज न हो तो मैं जय को ममता भरा एक सैक्सी किस दे दें ?” टीना जी खिलखिला कर हँस पड़ी और खुल्लमहुल्ला जय के शीथील लिंग को ताड़ने लगीं। |

सोनिया अब भी कमर से नीचे पूरी तरह नंगी थी। वो भाग कर अपने डैडी की गोद में उनकी तरफ़ मुँह कर के बैठ गयी और बोली, “ओह! मेरे प्यारे डैडी !” लम्बी साँसें भरते हुए सोनिया अपनी योनि को बाप के लिंग कर कसमसाने लगी। |

टूटती प्लेतों का शोर सुन कर टीना जी और मिस्टर शर्मा बड़ी हड़बड़ी में किचन में पहुंचे थे। इतना भी समय नहीं मिला था कि ठीक से कपड़े पहन लें। मिसेज शर्मा ने सिर्फ एक पारदर्शी नाइटी पहन रखी थी, और मिस्टर शर्मा तो केवल ड्रेसिंग गाऊन पहने ही आये थे। सोनिया ने जब मिस्टर शर्मा को अपनी बाँहों के आलिंगन में भरा और अपने फूले हुए स्तनों को उनके सीने पर दबाया, मिस्टर शर्मा ने तुरन्त ही अपनी सुपुत्री की मासल योनि से कौण्धती हुई कामाग्नी के ताप को अनुभव किया। उन्होणे अपने एक हाथ को नीचे सरकाकर सोनिया की गाँड की दरार पर फेरते हुए ले गये और अपनी उंगलियों से उसकी योनी के काम- सागर में डुबकी लगायी।

अभी-अभी भाई की जोशीली सैक्स-क्रीड़ा ने सोनिया की योनि को उदिक्त कर दिया था। योनी लिसलिसी और सम्पूर्णतः कामोप्युक्त हो गयी थी। मिस्टर शर्मा का लिंग स्वतः ही तनने लगा और उनके ड्रेसिंग गाऊन के दोनों होंठो को अलग करके बीच में से उठा और पुत्री की चौड़ी फैलायी हुई योनि के द्वार पर ठकठकाने लगा।

जय भी अपनी माँ की दिशा में बढ़ा और टीना जी की खुली हुएए टांगों के बीच आ खड़ा हुआ। टीना जी कुर्सी पर अंगड़ाईयाँ लेती हुई अपने पति के करीब ही बैठीं थीं। उन्होंने अपनी नाईटी के आगे के हुक और कमरबन्द को खोल दिया। महीन कपड़े की बनी नाइटी के दोनों हिस्से खुल कर अलग हो गये और जय को अपनी माँ के अप्सरा जैसे गोरे बदन का दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ। माँ के सुगठित स्तनों मक्खन जैसे मुलायाम और मलाई जैसे गोरे थे, मानो अपने अन्दर दूध की बाल्टियाँ समाये हों। उनके ऊपर जलेबी जितने बड़े गुलाबी निप्पल, जिन्हें हमारे पाठक अगर देख लें तो चूसे बिना न रह पायें। अगर दृश्टी मिसेज़ शर्मा के सपाट पेट पर से और नीचे जाये तो भूरे-भूरे योनि - रोमों का त्रिकोणाकार जंगल सुहानी खुशबू बिखेरता हुआ पाठकों को बड़ा लुभावना लगता। जय का पौरुष अपनी माँ के अलौकिक सौन्दर्य के लज्जाहीन प्रदर्शन को देख कर जाग उठा था। माँ के प्रति उसकी कामोत्तेजना बढ़ रही थी और उसका लिंग रक्त प्रवाह के कारण धड़क रहा था। बस इसी विचार से, कि उसकी सगी माँ अपने बेटे को आकर्षित करने के लिये, अपने बिजली से मचलते बदन की नग्नता की इस ढीठता से नुमाइश कर रही थी ::: ताकि उसका लिंग उनके साथ संभोग-क्रिया के लिये पर्याप्त रूप से कठोर हो जाये, पर्याप्त रूप से उत्तेजित हो जाये :::, जय का लिंग आकार में दुगुना हो चला था। मिसेज शर्मा एक ऐसे दिव्य सौन्दर्य की स्वामिनी थीं जिसे देख कर तो स्वयं इन्द्रदेव स्वर्ग त्याग कर धरातल पर आ जायें। उन्के सुडौल बदन की काया और गठाव से तो उनसे आधी उम्र की बालायें भी ईष्र्या करती थीं।

उनके रूप का बखान इन पन्नों में पहले भी हो चुका है, और अब इस अद्वितीय मातृ - सौन्दर्य के देह-भोग का अवसर जय को प्राप्त होने जा रहा था! इस अवसर का मैं भरपूर लाभ उठाऊंगा, जय ने सोचा, और माँ कि योनि के सुर्ख, लिसलिसे बाह्य-द्वार को एकटक देखता रहा। पर जय योनि - प्रवेश से पहले अपने बदन को कुछ गर्माना चाहता था।

सुपुत्र की निहाहें अपनि खुली योनि पर गिरतीं देख कर परम दैहिक पतन की एक मीठी सिहरन ने टीना जी के रौंगटे खड़े कर दिये। उन्हें ज्ञात था कि जय उनकी देह को प्राप्त करना चाहता है, और उससे अधिक रोमांचकारी यह तथ्य था कि वो अपने सगे बेटे को अपने बदन के कामुक तेज पर रिझा सकती थीं। अपार ममता से उसके लिंग पर अपनी उंगलियों को लपेटते हुए टीना जी ने जय के कड़े होते हुए पुरुषांग की लम्बाई को मसला और दबाअया। जय का काला लिंग एक लम्बे बाँस जैसा आगे को तना हुआ था। जैसा बाप, वैसा बेटा!', मिसेज शर्मा ने लिंग के सुपाड़े के सिरे पर छोटे से छिद्र को खुलते और बन्द होते हुए देख कर सोचा। वे अपने हाथों को पुत्र-लिंग के लचीले माँस पर ऊपर-नीचे घुमा रही थीं। अपने पुत्र के युवा- पौरुष के तेज और आवेग को अपने हाथों में आतुरता से फड़कता हुआ अनुभव करके उनकी साँसों की गती शीघ्र ही तीव्र होती गयी।

जय कामुकता से कराहा और अपने हाथों को माता के स्तनों की ओर बढ़ा दिया। जय अपनी मम्मी के सुडौल स्तनों की सघमरमरी त्वचा हो दोनों हाथों से मसलने लगा, उसकी हथेलिया टीना जी के अकड़े हुए गुलाबी निप्पलों को रगड़ रही थीं। टीना जी अपने सुपुत्र के अंडकोष को अपनी गरम हथेलियों से हिंदोले देती हुई, उनकी मालिश करने लगीं, और हलके-हल्के लाड़ से दबाने लगीं। फिर टीना जी ने कुछ सकुचाते हुए अपनी कजरारी आँखों की पुतलियों को मटका कर जय की ओर ऊपर देखा और अपने होंठों पर जीभ फेरी। फिर उन्हीं थूक-रंजित होंठों से जय के लिंग के शीर्ष भाग पर प्रेम भरा चुंबन दिया। चुंबन दे कर अपने बेटे के लिंग से रिसते हुए द्रवों को, जो उसकी युवा इन्द्रीयों की आतुरता का द्योतक थे, चाटा। मिसेज शर्मा ने बड़ी आत्मीयता से अपने होंठो खोले और अपने लाडले जय के सूजे हुए बल्बनुमा सुपाड़े को चूस कर मुँह में निगल लिया। फिर टीना जी अपनी गरम जिह्वा को चाबुक की तरह सुपाड़े पर चलाते हुए अपनी थूक से सरोबर करने लगीं।

चूसो ना मम्मी! मैं सोनिया और डैडी की चुदाई देखते हुए अपना लन्ड आपसे चुसवाना चाहता हूँ !”, जय कराहा।

अपने सुपुत्र के मुँह से इन शब्दों को सुन कर रोमांच की एक लहर टीना जी बदन में दौड़ गयी। शर्मा परिवार समाज की हदों को पार कर के एक ऐसे पड़ाव पर आ चुका था जहाँ पर पीछे हटना संभव नहीं था! ‘खासकर सैक्स से तो बिलकुल नहीं!', टीना जी ऐसा सोचते हुए अपने बेटे के चूतड़ों को दबोच कर अपने मुंह में उसके विशाल लिंग को ठूसने लगीं। जैसे ही उनकि जिह्वा पर अपनी सगी पुत्री की योनि का सुहाना स्वाद आने लगा, तो वे ऊँचे स्वर में कराह पड़ीं।

 
46 बाबूजी, जरा धीरे चलो :::



सोनिया को अपनी जाँघों के बीच पिता के लिंग के आकार में वृइद्धी का अनुभव हुआ तो उसने अपनी टांगों के बीच एक हाथ को नीचे सरकाया और पितृ-लिंग को अपनि योनि का मार्ग दिखलाया। हथेलियों के बीच कितना बड़ा लग रहा था डैडी का लिंग! अपने भाई से कहीं बड़ा! लिंग के विशाल बैंगनी रंग के सुपाड़े को अपने छोटे से योनि-छिद्र पर दबकर उसकी योनि की कोपलों को खोलकर पाटता देख कर सोनिया ने एक लंबी साँस भरी।

मिस्टर शर्मा ने भी अपनी पुत्री को चौंकते हुए देखा। “बिटिया, सब ठीक तो है ना ?”, उन्होंने पूछा।

अहह! अममम! हाँ, डैडी, बिलकुल ठीक है। मुझे आपका पूरा लन्ड अन्दर चाहिये! अपना लन्ड मेरी चूत में घुसायिये ना! मुझे चोदिये ना! :: कसकर चोदिये ना डैडी !”, नन्हीं सोनिया ने बिलखते हुए कहा। अपनी यौवन रस से सरोबर योनि को मचलाते हुए डैडी के आसमान छूते लिंग पर और दबाया।

मिस्टर शर्मा ने कराह कर अपनी कमर को जरा सा उठाया और अपने दैत्याकार लिंग को अपनी नवयौवना पुत्री कि कसैल योनि में धीमे-धीमे सरकाने लगे।

अपनी कस कर खिंची हुई छोटी सी योनि में पिता के ढूंसे हुए लिंग के दबाव के कारणवश सोनिया बड़ि कठिनाई से श्वास ले पा रही थी। सोनिया की नवयुवा योनि में पितृ-लिंग लबालब भर कर उसके कामुक बदन में आनन्द के कंपन पैदा कर रहा था। आखिर वो घड़ी आ ही गयी थी जिसकि उसे उस क्षण से प्रतीक्षा थी जिस क्षण से उसे योनि के मूल प्रयोजन का ज्ञान हुआ था। और सोनिया जानती थी कि वो इस घड़ी का भरपूर आनन्द लेने वाली है! “ऊ : ऊवह ! लन्ड पूरा अन्दर घुस गया डैडी !”, वो चीखी।

उहगहह! माँ क़सम पूरा घुस गया! चोद्दी! बिटिया, जरा अपनी कमर डैडी के लन्ड पर ऊपर नीचे तो चला !”

सोनिया जैसे ही ऊपर को उठी, मिस्टर शर्मा ने अपने हाथ उसकी जाँघों के नीचे बढ़ाये और बेटी के बदन को अपनी गोद से उठा दिया। उनकी कमसिन पुत्री हाथों में फूल की गुड़िया जैसी हलकी लग रही थी। जैसे ही उनका लिंग सोनिया की संकरी और भिंची हुई योनि से बाहर निकला, मिस्टर शर्मा ने अपनी बेटी के मुँह से एक आह सुनी।

मिस्टर शर्मा ने सोनिया को अपने लिंग के उपार हवा में झुला कर पकड़ा, केवल के भीमकाय पुरुषांग का सूजा हुआ सुपाड़ा ही पुत्री के योनि-कोपलों के बीच घुसा रहा।

सोनिया कराही और बालों की सुंघराली लटों को वासना के आवेग में आजू-बाजू लहराती छटपटाने सी लगी। क्यों व्यर्थ इतना समय ले रहे थे डैडी ? वो तो उसी क्षण डैडी से चुदना चाहती थी ! चाहती थी कि डैडी अपने लम्बे, पूर्तयः विकसित लिंग को उसकी तड़पती योनि में ठेलें और अपने पूरे बल से उसे चोदें ::: तब तक जब तक वो चीख-चीख कर झड़े, और उनके काले, धौंकते पितृ - लन्ड पर अपनी योनि के द्रवों की गरम धारों को उडेल दे!
 
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