hotaks444
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नग़मा और शीबा भी अपने कमरे में से आ जाते हैं। जीशान को देखकर जहाँ शीबा की आँखें चमक जाती हैं। वहीं नग़मा लुबना का हाथ पकड़कर उसे अपने रूम में ले जाती है।
रज़िया-“जीशान बेटा, तुम थक गये होगे, जाओ जाकर फ्रेश हो जाओ…”
शीबा-“हाँ हाँ चलो जीशान मेरे रूम में बाथरूम में पानी गरम आ रहा है। तुम वहीं फ्रेश हो जाओ…”
रज़िया-“नहीं , उसे उसके रूम में आराम करने दो शीबा…”
शीबा बुरा सा मुँह बनाकर रज़िया को देखती रह जाती है। और अपने रूम में जाकर बेड पे लेट जाती है।
अमन-“पहले मुझे अपने बेटे से तो मिलने दो कितने दिन हो गये मैंने इसे तो जी भरकर देखा भी नहीं …”
जीशान वहीं अमन के पास सोफे पे बैठ जाता है-“अब्बू आपकी तबीयत तो ठीक है ना? कितने कमजोर दिखाई दे रहे हैं?”
अमन-“अरे भाई, ये काम के चक्कर में खाने पीने की कहाँ फ़ुर्सत होती है…”
जीशान-“चिंता मत करो अब्बू , बस कुछ महीनों की तो बात है, फिर तो मैं आपका सारा काम सीखकर उसे संभाल भी लूँगा…”
रज़िया जूस का ग्लास दोनों को देते हुये उनके पास ही बैठ जाती है-“हाँ जीशान बेटा, तुम्हारे अब्बू आजकल कुछ ज्यादा ही काम कर रहे हैं, जिससे इनकी सेहत पे बुरा असर पड़ रहा है…”
अमन को झटका लग जाता है।
जीशान-“अरे अब्बू , ये लीजिये पानी पीजिए…”
अमन-“उह ऊओ उह ऊओ… पता नहीं , लगता है कुछ चला गया था गले में…”
रज़िया-“देखकर बेटा, कहीं ऐसे से तकलीफ़ ना बढ़ जाए…”
जीशान-“अब्बू , मैं अभी आया…” और जीशान उठकर अनुम के पास चला जाता है।
अनुम उस वक्त बहुत गुस्से में थी। वो किचेन में फ्रूटस काट रही थी।
जीशान-“अम्मी…”
अनुम का दिल जोर से धड़कता है और वो बिना मुड़े जवाब देती है-बोलो?
जीशान-“अस्सलाम-ओ-आलेकुम अम्मी जान…”
अनुम की आँखें नम हो जाती हैं और वो पलटकर जीशान की तरफ देखने लगती है-“वालेकुम अस्सलाम जीशान मेरे बच्चे…”
जीशान अपनी अम्मी के गले लग जाता है-“अम्मी मुझे माफ कर दो, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है ना। मुझे माफ कर दो अम्मी…”
अनुम-“बस बस बेटा कुछ नहीं किया तूने चुप हो जा…”
जीशान अनुम को अपनी छाती से इतने कस के गले लगा देता है कि अनुम पूरी तरह जीशान के कब्ज़े में आ जाती है-“अम्मी, मैंने आपको वहाँ बहुत मिस किया…”
अनुम-“मुझे भी तेरी बहुत याद आ रही थी। तुझे काल करना चाहती थी मगर फिर रुक जाती, इस डर से कहीं तू मुझसे और नाराज ना हो जाये…”
जीशान-“नहीं अम्मी, मुझे वहाँ जाने के बाद एहसास हुआ की मैं आपको चोट पहुँचा करके कितना गलत कर रहा था…”
अनुम-“जीशान बेटा…”
जीशान को सच में एहसास हुआ था कि वो अनुम से इस तरह रहकर खुद को भी और अनुम को भी परेशान कर रहा है। जब से लुबना ने उससे अपनी मोहब्बत का इजहार किया था, उसी दिन से उसे ये एहसास भी हो गया था कि एक बहन के जज़्बात अपने भाई के लिए कितने आसानी से बदल जाते हैं।
अनुम और अमन की मोहब्बतू भी जीशान को उसी दिन महसूस हुई थी। मगर जीशान उस हद तक भी नहीं सुधरा था कि अपनी हरकतों से बाज आ जाए। आखिरकार खून अपना असर नहीं छोड़ता।
अनुम-“अब मुझे छोड़ेगा या ऐसे ही खड़ा रखेगा मेरी टाँगे हवा में लटके-लटके अकड़ने लगी हैं…”
जीशान ने अनुम को अपने सीने से लगाकर कुछ इंच हवा में उठा दिया था-“मुझे नहीं छोड़ना आपको, मुझे यहीं रहना है…”
अनुम-“अच्छा बाबा, पर मुझे काम भी करना है ना…”
जीशान-“अपने बेटे से ज्यादा ज़रूर है आपके लिए काम?”
अनुम-“तुझसे ज्यादा ज़रूर तो मैं भी नहीं हूँ बेटा…”
जीशान अचानक से अनुम के गाल पे एक छोटी से पप्पी ले लेता है। अनुम चौंक जाती है। क्योंकी अमन के बाद जीशान दूसरा वो मर्द था जिसने अनुम के गाल को चूमा था-ये क्या हरकत है जीशान?
जीशान-“लो जी इतने दिनों बाद आया हूँ , अपनी अम्मी की एक छोटी से पप्पी भी नहीं ले सकता मैं…”
अनुम जीशान को घुरने लगती है।
जीशान-“अच्छा बाबा सारी , लो अपने कान भी पकड़ लिए मैंने। आगे से पप्पी नहीं लूँगा…”
अनुम-“ठीक है, अब मुझे छोड़ भी…”
जीशान अनुम को अपने से अलग करते-करते फिर से उसे अपने से कस लेता है, जिससे उसकी चुची जीशान से चिपक जाती है और अनुम के मुँह से एक खौफनाक चीख निकल जाती है-“औउचह…”
रज़िया-क्या हुआ अनुम?
अनुम-“क…क …कुछ नहीं अम्मी, पैर फिसल गया था…”
रज़िया-“संभाल के बेटी …”
अनुम-“तुम यहाँ से जाते हो या नहीं ?”
जीशान-“पहले आँखें बंद करो…”
अनुम-क्यूँ ?
जीशान-“मैं आपके लिए एक गिफ्ट लाया हूँ समर कैम्प से…”
अनुम-“अच्छा लो बंद कर ली …”
जीशान अपने हाथ जिससे उसने अनुम की पीठ पकड़ रखा था उसे धीरे-धीरे नीचे ले जाता है और अचानक से दोनों चूतड़ों पे हाथों को रख कर हल्के से दबाकर फिर से अनुम के गाल को किस करके वहाँ से भाग जाता है।
अनुम-“तूने प्रोमिस किया था जीशान…”
जीशान दरवाजे में से-“प्रोमिस पप्पी ना लेने का हुआ था, मैंने जो लिया वो पप्पी नहीं पोपी थी…”
अनुम-“जीशान के बच्चे…” वो उसे मारने के अंदाज में आगे बढ़ती है।
और जीशान भागता हुआ अमन के पास आकर बैठ जाता है।
अनुम आज बहुत खुश थी। उसे जीशान आज उसे अंदाज में दिखाई दे रहा था जैसे वो राज जानने से पहले हुआ करता था। हमेशा वो अनुम को परेशान किया करता था और अनुम उसकी हर छोटी बड़ी गलती माफ कर दिया करती थी। मगर आज का जीशान का विहेब कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया था। इससे पहले उसने कभी अनुम को इस तरह अपनी बाहो में नहीं कसा था, ना ही गाल पे किस किया था।
मगर इतने दिनों से वो अनुम से बात नहीं कर रहा था, और आज फिर से वही हँसमुख जीशान उसे मिला तो अनुम उसकी ये गुस्ताख़ी भी माफ कर गई और दिल ही दिल में उसके पप्पी और पोपी पे मुश्कुराने लगती है।
रज़िया-“क्या बात है अनुम, बहुत खुश लग रही हो?”
अनुम-“जीशान आया था यहाँ, बिल्कुल वही जीशान आज देखा मैंने, जो वो पहले हुआ करता था। बदमाश कहीं का बिल्कुल अपने अब्बू पे गया है अम्मी ये लड़का…”
रज़िया-“चलो बहुत अच्छा है मेरी दुआ क़ुबूल हो गई। वैसे ऐसी कौन सी बदमाशी की उसने जो तेरे चेहरे पे हँसी नहीं रुक रही है?”
अनुम-“हेहेहेहे… कुछ नहीं आपको बाद में सुनाती हूँ …”
रज़िया अपनी बेटी को खुश देखकर बहुत सकून महसूस करती है।
जीशान-“अब्बू सोफी बाजी नहीं दिखाई दे रही ?”
अमन-“वो अपने रूम में होगी। अच्छा सुन कल सोफी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं। तुम घर पे रहना…”
जीशान-“सच में… कौन हैं वो? कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? नाम क्या है अब्बू बोलो ना?”
अमन-“हमारी फॅक्टरी में काम करता है। नाम खालिद है, अच्छे खानदान से है, और मुझे बहुत पसंद है सोफी के लिए। बस उन लोगों को पसंद आ जाए…”
जीशान-“क्या अब्बू ? बाजी तो वो हीरा हैं जिसे देखते ही कोई भी पसंद कर ले। मैं अभी उनसे मिलकर आता हूँ …” और जीशान भागता हुआ सोफिया के रूम में चला जाता है।
रज़िया-“जीशान बेटा, तुम थक गये होगे, जाओ जाकर फ्रेश हो जाओ…”
शीबा-“हाँ हाँ चलो जीशान मेरे रूम में बाथरूम में पानी गरम आ रहा है। तुम वहीं फ्रेश हो जाओ…”
रज़िया-“नहीं , उसे उसके रूम में आराम करने दो शीबा…”
शीबा बुरा सा मुँह बनाकर रज़िया को देखती रह जाती है। और अपने रूम में जाकर बेड पे लेट जाती है।
अमन-“पहले मुझे अपने बेटे से तो मिलने दो कितने दिन हो गये मैंने इसे तो जी भरकर देखा भी नहीं …”
जीशान वहीं अमन के पास सोफे पे बैठ जाता है-“अब्बू आपकी तबीयत तो ठीक है ना? कितने कमजोर दिखाई दे रहे हैं?”
अमन-“अरे भाई, ये काम के चक्कर में खाने पीने की कहाँ फ़ुर्सत होती है…”
जीशान-“चिंता मत करो अब्बू , बस कुछ महीनों की तो बात है, फिर तो मैं आपका सारा काम सीखकर उसे संभाल भी लूँगा…”
रज़िया जूस का ग्लास दोनों को देते हुये उनके पास ही बैठ जाती है-“हाँ जीशान बेटा, तुम्हारे अब्बू आजकल कुछ ज्यादा ही काम कर रहे हैं, जिससे इनकी सेहत पे बुरा असर पड़ रहा है…”
अमन को झटका लग जाता है।
जीशान-“अरे अब्बू , ये लीजिये पानी पीजिए…”
अमन-“उह ऊओ उह ऊओ… पता नहीं , लगता है कुछ चला गया था गले में…”
रज़िया-“देखकर बेटा, कहीं ऐसे से तकलीफ़ ना बढ़ जाए…”
जीशान-“अब्बू , मैं अभी आया…” और जीशान उठकर अनुम के पास चला जाता है।
अनुम उस वक्त बहुत गुस्से में थी। वो किचेन में फ्रूटस काट रही थी।
जीशान-“अम्मी…”
अनुम का दिल जोर से धड़कता है और वो बिना मुड़े जवाब देती है-बोलो?
जीशान-“अस्सलाम-ओ-आलेकुम अम्मी जान…”
अनुम की आँखें नम हो जाती हैं और वो पलटकर जीशान की तरफ देखने लगती है-“वालेकुम अस्सलाम जीशान मेरे बच्चे…”
जीशान अपनी अम्मी के गले लग जाता है-“अम्मी मुझे माफ कर दो, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है ना। मुझे माफ कर दो अम्मी…”
अनुम-“बस बस बेटा कुछ नहीं किया तूने चुप हो जा…”
जीशान अनुम को अपनी छाती से इतने कस के गले लगा देता है कि अनुम पूरी तरह जीशान के कब्ज़े में आ जाती है-“अम्मी, मैंने आपको वहाँ बहुत मिस किया…”
अनुम-“मुझे भी तेरी बहुत याद आ रही थी। तुझे काल करना चाहती थी मगर फिर रुक जाती, इस डर से कहीं तू मुझसे और नाराज ना हो जाये…”
जीशान-“नहीं अम्मी, मुझे वहाँ जाने के बाद एहसास हुआ की मैं आपको चोट पहुँचा करके कितना गलत कर रहा था…”
अनुम-“जीशान बेटा…”
जीशान को सच में एहसास हुआ था कि वो अनुम से इस तरह रहकर खुद को भी और अनुम को भी परेशान कर रहा है। जब से लुबना ने उससे अपनी मोहब्बत का इजहार किया था, उसी दिन से उसे ये एहसास भी हो गया था कि एक बहन के जज़्बात अपने भाई के लिए कितने आसानी से बदल जाते हैं।
अनुम और अमन की मोहब्बतू भी जीशान को उसी दिन महसूस हुई थी। मगर जीशान उस हद तक भी नहीं सुधरा था कि अपनी हरकतों से बाज आ जाए। आखिरकार खून अपना असर नहीं छोड़ता।
अनुम-“अब मुझे छोड़ेगा या ऐसे ही खड़ा रखेगा मेरी टाँगे हवा में लटके-लटके अकड़ने लगी हैं…”
जीशान ने अनुम को अपने सीने से लगाकर कुछ इंच हवा में उठा दिया था-“मुझे नहीं छोड़ना आपको, मुझे यहीं रहना है…”
अनुम-“अच्छा बाबा, पर मुझे काम भी करना है ना…”
जीशान-“अपने बेटे से ज्यादा ज़रूर है आपके लिए काम?”
अनुम-“तुझसे ज्यादा ज़रूर तो मैं भी नहीं हूँ बेटा…”
जीशान अचानक से अनुम के गाल पे एक छोटी से पप्पी ले लेता है। अनुम चौंक जाती है। क्योंकी अमन के बाद जीशान दूसरा वो मर्द था जिसने अनुम के गाल को चूमा था-ये क्या हरकत है जीशान?
जीशान-“लो जी इतने दिनों बाद आया हूँ , अपनी अम्मी की एक छोटी से पप्पी भी नहीं ले सकता मैं…”
अनुम जीशान को घुरने लगती है।
जीशान-“अच्छा बाबा सारी , लो अपने कान भी पकड़ लिए मैंने। आगे से पप्पी नहीं लूँगा…”
अनुम-“ठीक है, अब मुझे छोड़ भी…”
जीशान अनुम को अपने से अलग करते-करते फिर से उसे अपने से कस लेता है, जिससे उसकी चुची जीशान से चिपक जाती है और अनुम के मुँह से एक खौफनाक चीख निकल जाती है-“औउचह…”
रज़िया-क्या हुआ अनुम?
अनुम-“क…क …कुछ नहीं अम्मी, पैर फिसल गया था…”
रज़िया-“संभाल के बेटी …”
अनुम-“तुम यहाँ से जाते हो या नहीं ?”
जीशान-“पहले आँखें बंद करो…”
अनुम-क्यूँ ?
जीशान-“मैं आपके लिए एक गिफ्ट लाया हूँ समर कैम्प से…”
अनुम-“अच्छा लो बंद कर ली …”
जीशान अपने हाथ जिससे उसने अनुम की पीठ पकड़ रखा था उसे धीरे-धीरे नीचे ले जाता है और अचानक से दोनों चूतड़ों पे हाथों को रख कर हल्के से दबाकर फिर से अनुम के गाल को किस करके वहाँ से भाग जाता है।
अनुम-“तूने प्रोमिस किया था जीशान…”
जीशान दरवाजे में से-“प्रोमिस पप्पी ना लेने का हुआ था, मैंने जो लिया वो पप्पी नहीं पोपी थी…”
अनुम-“जीशान के बच्चे…” वो उसे मारने के अंदाज में आगे बढ़ती है।
और जीशान भागता हुआ अमन के पास आकर बैठ जाता है।
अनुम आज बहुत खुश थी। उसे जीशान आज उसे अंदाज में दिखाई दे रहा था जैसे वो राज जानने से पहले हुआ करता था। हमेशा वो अनुम को परेशान किया करता था और अनुम उसकी हर छोटी बड़ी गलती माफ कर दिया करती थी। मगर आज का जीशान का विहेब कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया था। इससे पहले उसने कभी अनुम को इस तरह अपनी बाहो में नहीं कसा था, ना ही गाल पे किस किया था।
मगर इतने दिनों से वो अनुम से बात नहीं कर रहा था, और आज फिर से वही हँसमुख जीशान उसे मिला तो अनुम उसकी ये गुस्ताख़ी भी माफ कर गई और दिल ही दिल में उसके पप्पी और पोपी पे मुश्कुराने लगती है।
रज़िया-“क्या बात है अनुम, बहुत खुश लग रही हो?”
अनुम-“जीशान आया था यहाँ, बिल्कुल वही जीशान आज देखा मैंने, जो वो पहले हुआ करता था। बदमाश कहीं का बिल्कुल अपने अब्बू पे गया है अम्मी ये लड़का…”
रज़िया-“चलो बहुत अच्छा है मेरी दुआ क़ुबूल हो गई। वैसे ऐसी कौन सी बदमाशी की उसने जो तेरे चेहरे पे हँसी नहीं रुक रही है?”
अनुम-“हेहेहेहे… कुछ नहीं आपको बाद में सुनाती हूँ …”
रज़िया अपनी बेटी को खुश देखकर बहुत सकून महसूस करती है।
जीशान-“अब्बू सोफी बाजी नहीं दिखाई दे रही ?”
अमन-“वो अपने रूम में होगी। अच्छा सुन कल सोफी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं। तुम घर पे रहना…”
जीशान-“सच में… कौन हैं वो? कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? नाम क्या है अब्बू बोलो ना?”
अमन-“हमारी फॅक्टरी में काम करता है। नाम खालिद है, अच्छे खानदान से है, और मुझे बहुत पसंद है सोफी के लिए। बस उन लोगों को पसंद आ जाए…”
जीशान-“क्या अब्बू ? बाजी तो वो हीरा हैं जिसे देखते ही कोई भी पसंद कर ले। मैं अभी उनसे मिलकर आता हूँ …” और जीशान भागता हुआ सोफिया के रूम में चला जाता है।