Antarvasna तूने मेरे जाना,कभी नही जाना - Page 2 - SexBaba
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Antarvasna तूने मेरे जाना,कभी नही जाना

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आरती का दिल आज बहुत खुस भी था और थोड़ा उदास भी..ख़ुसी इस बात की थी कि वो साहिल के साथ थी दुख इस बात का कि साहिल साथ होकर भी उसके साथ नही था ..वो खुस नही लग रहा था जब भी आरती उसके सामने होती जाने क्यू उसका चेहरा उदास सा हो जाता .

आरती इन्ही सोचो मे डूबी होती है और उसका ध्यान तब टूट ता है जब फ्लाइट मे अटेंडेंट सबको सीट बेल्ट बाँधने को बोलती है और फ्लाइट टेक ऑफ करने लगता है..

साहिल के हॉस्पिटल से वापस आने से लेकर अभी तक उसने आरती से ज़्यादा बाते नही की थी और ना ही आरती ने कोसिस की.एक अनचाही दीवार सी बन गयी थी दोनो के दरमियाँ..आरती को पता था ये दीवार उसी की वजह से बनी और उसे ही इसे गिराना होगा.

"सर, आप कुच्छ लेंगे , कुच्छ ठंडा _गरम ?" काफ़ी खूबसूरत एर होस्टेस्स की खूबसूरत सी आवाज़ पर साहिल उसकी ओर देखने लगता है, और कुच्छ देर उसपे नज़रे टिकाए रखता है,,जाने क्यू??
"जी नही, थॅंक यू "
"युवर वेलकम "

" मॅम आप कुच्छ लेंगी"

" नही " आम तौर पर सब से प्यार से पेश आने वाली आरती का लहज़ा काफ़ी चुभता सा और गुस्से वाला था . बेचारी एर होस्टेस्स चुप चाप आगे बढ़ जाती है.



अनायास ही साहिल की नज़रे आरती के चेहरे पर चली जाती हैं..गुस्से मे नाराज़ नाराज़ सी आरती उसे बेहद प्यारी लगती है .जलन के भाव साफ उसके चेहरे पर दिख रहे थे .

साहिल दूसरी ओर मूह करके बिना मुस्कुराए नही रह पाता इस बार.


सच्चा प्रेम ऐसा ही होता , दिल जिसे चाहता है फिर उसका किसी और की ओर देखना भी गवारा नही करता . हर आशिक़ का यही सपना होता है कि उसकी महबूबा उसे इसी तरह चाहे .
दोस्तो अगर आपको लेकर आपका प्यार बहुत पोज़ेसिव होता है तो इसका सिर्फ़ एक रीज़न होता है __ उसे आपको खोने का डर होता है कि आप उसकी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज़ होते हैं. प्रेमियो की जलन प्यार का ही दूसरा रूप होता है.



कुच्छ घंटो के सफ़र के बाद दोनो शिमला पहुच चुके थे . आरती चाहती तो किसी को भी फोन करके बुला सकती थी किंतु वो अब उन दोनो के साथ किसी को भी नही रखना चाहती थी ..वो चाहती थी यहाँ बस वो हो और उसका साहिल .


आरती 10 मिनट तक किसी से कुच्छ बात करती है जैसे उसे कुच्छ समझा रही हो..और फिर उसे थॅंक्स बोल कर फोन रख देती है.


साहिल इस बीच मूक दर्शक बना रहता है..और आरती उस से थोड़ी दूरी पर खड़ी बात कर रही थी .बात पूरी करके वो साहिल के पास आती है " चलिए "


एक टॅक्सी वाले को आवाज़ देकर बुलाती है वो ..ड्राइवर सारा समान गाड़ी मे रखता है .


" कहाँ चलना है मेडम जी.. मेरा नाम चंदर है .मैं यहा 10 साल से टॅक्सी चला रहा हूँ ,,एक से एक होटेल पता है , पर आप लोग न्यूली मॅरीड लगते हो..होटेल ठीक नही रहेगा ,आप कहें तो किसी अच्छे रिज़ॉर्ट पर ले चलूं ...यहाँ तो एक से एक हनिमून रिज़ॉर्ट हैं. आप दोनो अपने हनिमून को जिंदगी भर नही भूलेगे और ना ही ये चंदर ..बोलो ले चलो साहब..बस आप ऑर्डर करो जी"' टॅक्सी वाला काफ़ी बातूनी था .


"आए, अपने काम से काम रख और ज़ुबान बंद रख अपनी " साहिल डाँट देता है.
और आरती उसे अड्रेस्स बता देती है_" जीवन-वाटिका"


ड्राइवर बेचारा चुप चाप गाड़ी आगे बढ़ा देता है..आरती साहिल के साथ बैठी अंजानी सी ख़ुसी मे डूब जाती है..साहिल की आँखे भारी होने लगती हैं..थोड़ी देर बाद साहिल को अपने कंधे पर आरती का सर महसूस होता है .आरती साहिल के कंधे से सर टिकाए ,उसके एक बाजू मे अपना हाथ फसाए सारी दुनिया की परेशानियों से दूर सुकून से सो रही थी. साहिल अपना हाथ उसके सर पर रखना चाहता है फिर कुच्छ सोचकर वापस हटा लेता है .फिर वही चिर परिचित उदासी उसके होठों पर आ जाती है.



कोई 40 मिनट के सफ़र के बाद दोनो 'जीवन -वाटिका" पहुच चुके थे ..इस बीच आरती और साहिल मे कोई बात नही हो रही थी
" लो सहाब आ गये " ड्राइवर की आवाज़ पर आरती हॅड बड़ा कर साहिल से अलग हो जाती है..शरम की लाली उसके गालो के डिंपल को और खूबसूरत बना देती है.


जीवन वाटिका वास्तव मे ही जीवन से परिपूर्ण था ..हरे भरे फूल, लह लहाते पौधे और बेले...क्यारियो मे लगे रंग बिरंगे फूल और बीच बीच मे आम , अमरूद .लीची ,अनार के पोधे..साहिल को वास्तव मे बेहद अच्छा लगता है वहाँ आकर.


तब तक एक 18-19 साल का लड़का दौड़ता हुआ आता है..
'

"कैसे हो किशोर"


"अच्छा हूँ दीदी , आप कैसी है."

" हम भी ठीक है ,अच्छा जैसा कहा था सारी व्यवस्था हो गई ?"

"जी दीदी आप के लिए किनारे वाली वाटिका का पूरा गार्डेन और रूम साफ करवा दिया है ..लाइए मैं समान ले चलता हूँ"

ड्राइवर और किशोर समान लेकर अंदर जाने लगते है..आरती की नज़र साहिल पर जाती है जो वही थोड़ी दूर पर गुलाब के फूलो को बड़े प्यार से छु रहा था ...आरती उसे देखकर मुस्कुरा देती है ..


ड्राइवर समान रखकर वापस आ चुका था ..काफ़ी शर्मिंदा लग रहा था.उसे पता था जीवन वाटिका में कौन लोग आते हैं..आरती उसे किराया देती है ..


"थॅंक यू भैया "

"यू आर वलकम मेडम जी" ड्राइवर बड़े अदब से कहता है..


"मेडम जी हमें माफ़ कर दीजिएगा हमे नही मालूम था कि साहब की तबीयत ठीक नही है "
"

कोई बात नही " इतने मे साहिल भी उनके करीब आ चुका था .

" साहब, आइ म सॉरी "

साहिल भी उसकी बाते सुन चुका था और उस से थोड़ा प्रभावित भी लग रहा था .

"इट'स ओके"


"साहब, ये हमारा नंबर है ..आपको कही भी जाना हो तो हमको फोन कर दीजिएगा मैं इस एरिया मे गाड़ी चलाता हूँ"


"चलो ठीक है," साहिल उसके हाथ से पर्ची लेते हुआ बोलता है.


"थॅंक यू साहब भगवान करे आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओ और आप दोनो की जोड़ी सलामत रहे "


साहिल कुच्छ नही बोलता पर ..आरती मुस्कुराहट होठों पर लाते हुए " थॅंक यू भैया .


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जीवन वाटिका काफ़ी बड़ा बना हुआ था . थोड़ी थोड़ी दूर पर बंग्लॉ जैसे किंतु उनसे छोटे घर बने थे और हर 4_5 घरो के मध्य एक बगीचा. अगर कोई एक घर मे रहे तो दूसरे घर वाले से कोई मतल्लब बिल्कुल नही है.


यह इस बात का ध्यान रखकर बनाया गया था कि जो भी यहाँ रहे उसका किसी दूसरे से किसी तरह से डिस्टर्ब ना हो. जनरली लोग अपनी फॅमिली के किसी मेंबर के साथ ही आते थे और अगर आवश्यकता होती तो ऑर भी मिल सकते थे .


आरती अपने कॉलेज की सबसे अच्छि स्टूडेंट रही थी , और उसके कोलेज के द्वारा ही यह चलाया जाता था .. तो यहाँ पर आरती की बहुत अच्छि जान पहचान थी.


रूम तक पहुचते पहुचते शाम के 5 बज गये थे .सर्दियो का मौसम होने के कारण अंधेरा घिर आया था .


आरती ने जो "घर" लिया था वो काफ़ी किनारे बना हुआ था ..सेकेंड फ्लोर पर उनका सारा सेट अप था . जीवन वाटिका की लोकेशन इस तरह की थी कि आने वाला हर इंसान खुद को नेचर के बहुत करीब महसूस करता ...



साहिल ठीक तो हो गया था लेकिन अभी भी काफ़ी कमज़ोरी थी .आरती और साहिल के बीच अभी एक दीवार थी .दोनो एक दूसरे से वैसे बिल्कुल बात नही कर पा रहे थे जैसे बरसो पहले करते थे - जब वो दो जिस्म एक जान हुआ करते थे .


आरती जानती थी इस दीवार को उसे ही गिराना है ..आख़िर ये दीवार बनाई भी तो उसके ही बेरूख़ी ने थी.



साहिल वॉशरूम से फ्रेश होकर निकला था जब उसकी नज़र सोफे पर आधी लेटी सी आरती पर पड़ती है . आरती बहुत थक गयी थी और उसकी आँख लग गयी थी. आरती ने वूलेन सूट पहेना हुआ था जिसके उपर से स्वेटर और फिर ओवरकोट ..एक शॉल उसके कंधे से झूल रही थी . गुलाबी पतले होठ , घनी पलके ,काली ,लंबी घनी जुल्फे जिसका कुच्छ अंश उसकी चोटी से निकल कर गालो को चूम रहा था... सुरहिदार गर्दन और उनके नीचे वो एवरेस्ट की दो चोटियाँ ...उफ्फ किसी का भी ईमान डोल जाए इस परी को देखकर.


"हुह ..आज भी उतनी ही मासूमियत है इस चेहरे पर ..उफ्फ ये मासूम चेहरा" साहिल के दिल मे एक टीस सी उभरती है.


"दीदी चाइ लाया हूँ"


किशोर की आवाज़ पर आरती हड़बड़ा कर उठ जाती है और साहिल को खुद को देखते पाकर हल्का सा मुस्कुरा देती है...साहिल जैसे चोरी करते पकड़ा गया हो इस तरह से नज़रे झुका लेता है .
आरती दरवाज़ा खोलती है...

" किशोर कुच्छ खाने को नही लाए हो ,,बहुत भूख लगी है पर मैं बोलना भूल गयी "

"लाया हूँ दीदी, मुझे लगा ही था आप लोग भूखे होंगे "
और ये कहकर वो पूरी ट्रॉल्ली अंदर कर देता है जिस पर ढेर सारी चीज़े खाने की रखी थी .

"थॅंक यू किशोर "


किशोर बस मुस्कुरा कर रह जाता है और बाहर निकल जाता है .


आरती चाइ बना कर साहिल की ओर बढ़ा देती है और कुच्छ स्नेक्स भी .साहिल चुप चाप कप पकड़ लेता है .


थॅंक यू"" साहिल के मूह से निकल जाता है .


"अब इतनी पराई हो गई हूँ मैं"


" मैं झूठे सपने नही देखता ..सच्चाई का सामना करना सीख लिया है मैने "
साहिल इतना बोलकर वहाँ से उठकर जाने लगता है ..आरती उसका हाथ पकड़ लेती है .


"प्लीज़ जाओ मत मैं कुच्छ नही बोलूँगी अगर तुम नही चाहते तो "



साहिल तुमने सच का सामना अभी किया ही कहा है ..वो तो मैने किया है जान - आरती अपने मन मे सोचती है और आँसू की दो बूंदे उसके गालो को भिगो देती है जिन्हे वो बड़ी सफाई से छुपा लेती है .

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"एक बात पुच्छू " साहिल ने कहा

" तुम्हे मुझसे इजाज़त लेने की ज़रूरत है ????

" पुछो"

" तुम मेरे लिए ये सब क्यू कर रही हो"

"साहिल !!!!!!"


आँखे डब-डबा गयी आरती की..क्या साहिल मुझसे ये सवाल नही कर सकता है. .. क्या हमारे बीच इतनी दूरी हो गई है , क्या मैं अब इनकी कुच्छ भी नही.



आरती साहिल की आँखो मे एकटक देखती है..मानो उसकी नज़रो से सवाल कर रही हो कि क्या ये सवाल सच मे उसके साहिल ने पुछा था ..
साहिल नज़रे चुरा जाता है.


"बताओ ना "


"तुम्हारे लिए नही अपने लिए कर रही हूँ, इस से ज़्यादा मुझसे कुच्छ मत पुछ्ना ."


साहिल उठा और डाइनिंग रूम मे आ जाता है और वहाँ रखे बड़े से सोफे पर बैठकर चॅनेल बदल कर टी.वी देखने लगता है .


आरती साहिल के कपड़े निकालकर रखने लगती है...
और फिर कुच्छ गरम कपड़े लेकर साहिल की ओर चल देती है .


" ये कपड़े पहेन लीजिए ..पहाड़ो की सर्दी रात को बहुत बढ़ जाती है " वो कहते हुए उसके पास जाती है .

साहिल के चेहरे पर दर्द के भाव थे ...और वो अपने माथे को हल्का हल्का दबा रहा था .
"क्या हुआ सर दर्द हो रहा है "


साहिल चुप रहता है.



"चलिए अंदर यहाँ हवा लग रही है..मैं सर दबा देती हूँ "

"नही मैं ठीक हूँ"


"साहिल अगर आपने यही मान लिया है कि मैं आपकी कुच्छ नही लगती तो ठीक है ..एक डॉक्टर के नाते मेरा फ़र्ज़ है अपने पेशेंट की देख भाल करना ..सो प्लीज़ मेरा कहा मानिए ..और अंदर चलिए "


साहिल एक नज़र आरती पर डालता है जो बड़े गुस्से मे लग रही थी...वो चुप चाप कंबल लपेटे अंदर की ओर चल देता है.


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साहिल बेडरूम मे रज़ाई के अंदर लेटा हुआ है ....वैसे तो बेडरूम मे एक ही बेड होता है पर आरती ने कहलवा कर एक छोटी चारपाई और रखवा दी थी.


आरती हाथ मे आयिल की बॉटले लेकर आती है और साहिल के सिरहाने बैठ जाती है ... साहिल के गले से लिपटा हुआ शॉल निकालकर अलग रख देती है...


"आरती रहने दो मैं ठीक हूँ"

कितनो दीनो बाद साहिल के मूह से अपना नाम सुना था ..आरती का दिल जैसे सिहर सा जाता है .
वो साहिल की बात उनसुनी करके उसके बालो मे तेल लगाने लगती है ...


साहिल की आँखे एक सुनहरे सपने की आस मे बंद होने लगती है..लेकिन बस कुच्छ सेकेंड्स के लिए ..अचानक वो आँखे खोल देता है ..कहीं फिर से कोई ऐसा सपना ना देख ले ये आँखे जो टूटे तो दिल के हर हिस्से को तोड़ जाए ..साहिल जैसे सपने देखने से डरने लगा था .

आरती जैसे बिना कहे ही सब कुछ समझ जाती है ..वो साहिल के सर को हल्का हल्का सा दबाने लगती है...और साथ ही उसके बालो मे हाथ फेरने लगती है...

साहिल के जेहन मे अतीत की बहुत सी यादे आ रही थी ...आरती का भी वही हाल था ..लेकिन वो एक दूसरे कुच्छ कह नही रहे थे ...अचानक कुच्छ सोचते सोचते आरती की उंगलियाँ साहिल के बालो मे रुक जाती है.

"रुक क्यूँ गयी, करो ना " साहिल जैस अंजाने मे बोल गया .

आरती फिर से हाथ चलाने लगती है..

"तुम थक गई होगी अब रहने दो "...साहिल उठने की कोसिस करते हुए बोलता है..

आरती उसका कंधा पकड़कर वापस उसे लिटा देती है..



थोड़ी ही देर मे साहिल की आँख लग जाती ह....आरती उठने लगती है कि खाने का ऑर्डर कर दे फिर साहिल को जगाए ...अचानक साहिल के हाथो मे आरती की कलाई आ जाती है.

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आरती प्यार से साहिल के तरफ देखती है ....वो अभी भी गहरी नीद मे है ...... एक पल को आरती को लगा था कि साहिल ने ये जान बुझ कर किया है .....पर शायद जब वो बैठी थी उसके पास तभी उसका एक हाथ तो साहिल के सर की मालिश कर रहा था और दूसरा जाने कब साहिल के हाथो मे आ गया था ....


आरती को थोड़ी मायूसी होती है ....और साहिल पर बहुत प्यार भी आता है ...वो आहिस्ता से अपना हाथ छुड़ा कर साहिल का हाथ उसके सीने पर रख देती है .

रत के 8.30 बज चुके थे ...आरती खाने का ऑर्डर दे रही थी ...

कुच्छ देर बाद किशोर खाना लेकर आता है " दीदी खाना हाज़िर है "

किशोर की आवाज़ पर दरवाज़ा खोलती है आरती .


किशोर आरती को बहुत मानता था बिल्कुल बड़ी बेहन के जैसे ....वो कॉलेज मे रहने वाली लड़कियो का छोटा मोटा समान भी लाया करता था ..सब उसे एक नौकर का दर्ज़ा देते लेकिन आरती उसे से बहुत प्यार से पेश आती ....



किशोर अपने छोटे मोटे खर्च के लिए कभी कभी आरती से कुछ उधार पैसे भी ले लेता था ...
आरती ही थी जिस से वो थोड़ी बहुत बाते किया करता था ....

" दीदी ? "

" हाँ बोलो "

"ये हमारे होने वाले जीजा जी है क्या ??? "


किशोर खाने की सारी प्लेट टेबल पर लगाते हुए पूछता है ...क्यूकी वो जानता था आरती बहुत सीधी साधी लड़की है और किसी गैर मर्द के साथ एक कमरे मे रहना ......


"बहुत बोलने लगा ह...भाग जा नही तो पिट जाएगा आज "


आरती उसे प्यार भरी घुड़की देती है ..किशोर की बात वैसे बहुत अच्छि लगी थी उसे ...


किशोर मुस्कुरा देता है ..और वापस जाने को मुड़ता है .

" सुन "

"जी दीदी ""


" हाँ वही है ""

आरती शरमा कर बोलती है .


" बहुत अच्छि जोड़ी रहेगी आप दोनो की "


आरती फिर से बुरी तरह से लजा जाती है ....

अच्छा अब जा तू "

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आरती साहिल को जगाने के लिए जाती है


"साहिल,साहिल " दो बार बुलाने के बाद भी साहिल की नीद नही खुलती. आरती हल्के से उसके कंधे को छुकर उठाने की कोसिस करती है....पर साहिल नही उठ ता


लगता है साहिल बहुत गहरी नीड मे है" -आरती मन मे सोचती है ...फिर वो उसके उपर कंबल डाल देती है और खुद पास मे पड़ी हुई चारपाई पर लेट जाती है.


आरती की आँखो से नीद कोसो दूर थी जबकि आज यात्रा और उसके बाद सब समान सेट करने मे वो काफ़ी थक गयी थी...


""साहिल कितना बदल गये है ...पहले कितने शोख और हस्मुख हुआ करते थे ...मुझे आपने पुराने साहिल को वापस लाना है चाहे इसके लिए मुझे कुच्छ भी करना "'पड़े..


क्या ये सब मेरी वजह से हुआ ...क्या मैं सच मे इन सबके लिए ज़िम्मेदार हूँ ????


"काश साहिल मैं तुम्हे बता पाती उस समय , तो आज हम एक दूसरे से इतने दूर न होते..इतने साल एक दूसरे के बिना ना गुजरते.....या फिर ....शायद हम कभी नही मिल पाते...शायद आज मैं जिंदा ही ना होती..... मुझे शायद तुम्हे बता देना चाहिए था....लेकिन मैं नही बता सकी जान ...क्योकि...... नही साहिल मैं अब वो सब सोचना भी नही चाहती ..बहुत भयानक दिन थे वो ...अब मैं कभी वो दिन याद नही करना चाहती."


और आरती की आँखो मे आँसू आ जाते हैं..

"लेकिन मैने अपनी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत दिन भी तुम्हारे साथ गुज़ारे है ..तुम्हारी वजह से गुज़ारे हैं.....तुमने मुझे जिंदगी की हर ख़ुसी दी और मैने ????..."



"काश एक बार तुम मुझे फिर उस रूप में मिल जाओ...काश वो दिन फिर वापस आ जाए...काश मेरा वो प्यारा दोस्त वापस आ जाए......साहिल वो नदी का किनारा , वो गाओं का बगीचा , वो झरने की कल कल , वो बचपन की लड़ाई ...वो रूठना वो मनाना...... तुम्हारे साथ बिताया एक एक पल ...सब बहुत याद आता है जान....."


आरती की आँखो से झर झर आँसू बहने लगते है और वो अपने ननिहाल मे बिताए खूबसूरत दिनो की यादो मे खो जाती है



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स्टेशन से घर पहुचने के बाद सब लोगो का मिलना मिलना होता है.....
रोहन की नज़रे अपनी मौसी रेणु पर चिपक जाती हैं...



'गाओं की गोरी' ये शब्द उसके मूह से निकलते निकलते रह जाता है...जवानी केए दहलीज़ पर खड़ी अपनी मौसी को वो देख कर दंग था ..गाओं की लड़कियो मे एक खास बात होती है ..उनमे एक अल्हाड़पन होता है ,,अदाए मासूमियत से भरी होती है और चेहरे पर ताज़गी की चमक होती है..



रोहन रेणु के उभारों और उसकी सख्ती का अनुमान उसके सूट और उसपर पड़े दुपट्टे के उपर से भी लगा लेता है...


" मौसी की जवानी तो जान लेवा है ...चलो अच्छा ही है ..गाओं मे दिन अच्छे बीतने वाले है " वो मन मे सोचता है.


"मम्मी मुझे घूमने जाना है... खेत देखने हैं ..."


"बेटा अब माँ तो जाने से रही और तेरी नानी के घुटनो मे भी दर्द है..नाना जी मार्केट गये है ..अगर कोई जाए तो चली जा "


"रोहन चल ना "


"खेतो मे क्या रखा है , मैं नही जा रहा"


रोहन तो अभी भी मौसी के हुस्न मे ही बिज़ी था . रेणु ने उसे अपने बूब्स को घुरते महसूस किया ..पर अपना भ्रम समझकर इग्नोर कर दिया था.


आरीए तू अपने मामा को लिवा ले ना..बचपन से तो उसकी लाडली रही है...वो थोड़े ना मना करेगा तुंझे " नानी ने कहा.


तभी साहिल कमरे मे आता है ...


"मामा मुझे खेत देखने है ..प्ल्ज़्ज़ चलो ना मेरे साथ"



"मुझे पढ़ना है "


अरे चला जा ना ..वो कौन सा यहाँ पर ज़िंदगी भर रहेगी ..फिर पढ़ते रहना " नानी ने घुड़की लगाई ..जबकि आरती रोने जैसी शकल बना चुकी थी.


"ठीक है चलो "


"रेणु तू भी चली जा ना "


"नही दीदी अभी बहुत काम करने है"
"

"ठीक है जाओ तुम दोनो "


चलो मौसी मैं आपके साथ किचिन का काम करवाता हूँ ...रेणु मुस्कुरा कर रसोई मे चली जाती है और साहिल आरती के साथ खेतो की ओर .
 
रोहन रेणु के पिछे रसोई मे चला जाता है ...और वहाँ रखे पटरे पर बैठकर अपने जुगाड़ मे लग जाता है ...

"मौसी आप कितना काम करती हो जब भी गाओं आता हूँ आप को बस काम करते ही देखता हूँ "


" अरे गाओं मे तो सभी लड़किया ऐसे ही काम करती हैं और फिर अपने घर का काम है "


"वैसे ये आपका अपना घर तो नही है "


" क्यू??... क्यू नही है मेरा घर ? "रेणु थोड़ी तुनक कर पुछति है..



"अरे आपका घर तो वो होगा जब आपकी शादी होगा और हमारे मौसा जी आपको ले
जाएँगे डॉली में "


'धत्त्त ,,तू कैसी बाते करने लगा है...दीदी को बताउन्गी सब "


" अरे ..लो...इसमे क्या ग़लत बोल दया ...आप तो शादी के लायक अभी से लगने लगी हो "


इस बार रेणु शरमा जाती है ..



"हाई दैया ...तुम शहर के लड़के कितने गंदे होते हो ...और कोई बात नही आती तुम लोगो को "



अब रोहन चुप हो जाता है इस डर से कहीं बात बिगड़ ना जाए ...



रेणु इस समय आटा गूँथ रही है और उसके कुच्छ बाल जुड़े से निकल कर आगे की ओर आ रहे थे ..वो हाथ मे आटा लगे होने की वजह से उन्हे कंधे से पिछे करने के असफल कोसिस कर रही थी..

तभी रोहन आगे बढ़ कर उसके बालो को पकड़कर पिछे कर देता है...उसके होठ रेणु के गले के बिल्कुल पास थे ..और अचानक से उसके होठ रेणु के गले से छु जाते है...रेणु का पूरा बदन सिहर जाता है ...पहली बार किसी मर्द के होंठो का स्पर्श हुआ था उसके कोमल जिस्म पर.



"सॉरी मौसी वो मेरा पैर फिसल गया और बॅलेन्स बिगड़ गया था ..."


रेणु नागवारी से उसकी ओर देखते हुए ..."इट'स ओके''प्लीज़ तुम जाओ यहाँ से "


"पर मैं तो वो ...."


"प्लीज़ जाओ अभी "


"ठीक है जाता हूँ "


"ह्म्म्मज इतनी आसानी से हाथ नही आएगी ये कमसिन जवानी की हसीन मूरत ..कोई बात नही बेबी...एक दिन खुद मेरी बाहों मे आकर अपने हुष्ण को मुझसे लुटवाओगी " रोहन बाहर सोचता हुआ बाहर चला जाता है..



"क्या रोहन ने वो जान बूझकर किया था ...लेकिन उसकी बात सच भी हो सकती है ..हां वो सच ही बोल रहा होगा ..इतना बुरा तो नही हो सकता ....ह्म्म्म ...क्या मुझे उसका छुना अच्छा लगा ....इससस्स.."


इस सवाल पर खुद ही रेणु कन्फ्यूज़ सी हो जाती है.
 
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इधर साहिल और आरती खेतो की ओर चल देते है ..ना जाने क्यू साहिल को आरती के साथ चलना बहुत अच्छा लग रहा था ...लाडली तो वो उसकी बहुत पहले से थी लेकिन अब वो बड़ी हो गयी थी तो शायद साहिल के मन मे छुपे प्यार ने शर्म का रूप ले लिया था


" मामा, आप इतने चुप क्यू हो"

"नही तो "...दोनो खेतो के बीच बनी पग डन्डियो पर चलते जा रहे थे .

" अच्छा तो मैं पागल हूँ जो ऐसा बोल रही हूँ? "


पागल हूँ मतलब..कोई आज की पागल है ..तू तो बचपन से ही पागल है " साहिल भी अब थोड़ा मूड मे आने लगा था ..उसे लगने लगा था कि ये तो वही मेरी पुरानी आरती है.साहिल उसे छेड़ रहा था.


अच्छा .......ठीक है फिर आप मुझसे बात मत करना ...कोई पागलो से बात करता है क्या"


आरती भी तुनक कर बोली...साहिल से नाज़ उठवाना उसकी पुरानी आदत थी और साहिल बड़े प्यार से उसके सारे नखरे उठा ता था.


'हाँ ये भी बात भी सही है..तो कितने दिनो तक बात नही करेंगे ?" साहिल ने उसे और छेड़ा .


आरती इस बार ताप गयी पूरी -" हमेशा के लिए" और तुनक के तेज़ी से आगे बढ़ी..


साहिल ने उसका नाज़ुक कलाई को थाम लिया " पागल तू मुझसे बात नही करेगी तो मैं जी कैसे पाउन्गा"



आरती ने मुड़कर साहिल की आँखो मे देखा...शर्म, हया और ढेर सारा प्यार था उन आँखो मे ...लेकिन ये प्यार लाड़ प्यार वाला प्यार था ..एक लड़की और एक लड़के के बीच के प्यार का रंग कुच्छ और ही होता है .



साहिल खुद नही जानता था उसके मूह से ये शब्द कैसे निकल गये..वो शर्मिंदा सा खड़ा था जैसे कोई गुनाह कर दिया..पर आरती का हाथ नही छोड़ा था अभी ...आरती को उस पर बहुत प्यार आया


"तो फिर मुझे इतना तंग क्यो करते हो ..हुउऊ बोलो"

"अब नही करूँगा ...लेकिन मुझसे ऐसे कभी मत रूठना कि कभी बात ना करो"

"और अगर अब आप को मैं तंग करने लगूँ तो ???" साहिल को सीरीयस होते देख आरती ने थोड़ा सा छेड़ दिया उसे ..


"'चुड़ैल.... मुझे पता था तू इसीलिए मुझे खेत लाई है ,,,,हमेशा खुद मुझे तंग करती है और फिर सारा दोष मुझपर ही डाल देती है "


आरती खिलखिला कर हंस देती है उसकी बात पर ..और फिर दोनो हाथो मे हाथ डाले आगे की ओर चल देते हैं.

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"मामा चलो उधर चलते हैं " दोनो हाथो मे हाथ डाले खेतो के बीच घूम रहे थे जब आरती ने दूर दिखाई दे रही एक पहाड़ी की तरफ इशारा किया.


लेकिन फिर हमे देर हो जाएगी "


"अभी तो बहुत टाइम है .प्ल्ज़्ज़ चलो ना"

और साहिल मुस्कुरा कर हाँ मे सर हिलाता है ..." ठीक है चल."



साहिल बचपन से ही आरती की हर ज़िद पूरी करता है ...किसी भी बात पर दोनो की बहेस हो भी जाती तो मान ना साहिल को ही पड़ता ...आरती के हाथो हारना मानो उसकी सबसे बड़ी जीत होती थी ...क्योकि उस जीत से आरती के चेहरे पर जो खिलखिलाहट आती थी उसके लिए साहिल हज़ारो हार बर्दाश्त कर सकता था .


दोनो वैसे ही एक दूसरे का हाथ पकड़े दो आज़ाद पन्छियो की तरह पहाड़ी की दूसरी तरफ पहुच जाते हैं ...पहाड़ी की गोद मे एक छोटी सी नदी पत्थरों के बीच कल कल करती बहती थी ...पानी बहुत ही साफ था जैसा की पहाड़ी नदियो का होता है ...



आरती नदी को देखकर बहुत खुश होती है और दौड़ती हुई जाकर एक टीले पर बैठकर पैरो को पानी मे डाल देती है ...


"आओ ना ..देखो पानी कितना ठंडा है "


साहिल मुस्कुराता हुआ उसके पास जाकर खड़ा हो जाता है ..


"बैठ भी जाओ मैं कोई काट नही लूँगी आपको"



सुनसान जगह , पहाड़ियो के बीच बहती एक प्यारी सी नदी और एक मासूम सी अकेली लड़की के साथ ...साहिल को थोड़ा अजीब लग रहा था ..


लेकिन फिर भी वो आरती की बात मानकर उसके पास बैठ जाता है ..अपने पैर पानी मे डालकर ...



आरती अपने पैरो से उसके पैरो को धक्का देती है ...साहिल भी जवाबी करवाई करके उसे थोड़ा सा धक्का दे देता है ..इस बार आरती उसे ज़ोर का धक्का देती है ...साहिल भी उसके पैरो को पानी मे ही दूसरी ओर धकेलने लगता है ...आरती का बॅलेन्स बिगड़ जाता है और वा गिरने लगती है ...



साहिल जल्दी से लपकर उसकी कमर मे बाहें डालकर अपनी ओर खिचता है और आरती उसके सीने से लग जाती है...साहिल को अपने सीने मे उसके नरम उभारों को अहसास होता है और साथ ही एक ग़लती का भी ...वो जल्दी से उठकर खड़ा हो जाता है



" सॉरी " साहिल बोलता है


'किस लिए " आरती उसकी उलझन समझ जाती है ..और मुस्कुराते हुए पूछती है.


"वो ...वो....कुच्छ नही ..चलो चलते है .".
 
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