Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र - Page 15 - SexBaba
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Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र

अगली बारी मेरे पाजामे की थी. उसने नीचे बैठते हुए मेरा पाजाम नीचे से पूरा निकाल दिया. वो तो मेरी पैंटी भी निकालने वाला था, पर मैंने उसको पकड़े रख कर नहीं निकालने दिया. वह अब फिर खड़ा हो गया और मेरे कंधे और गर्दन को चूमने लगा.

मेरी पीठ पर हाथ फेरते फेरते उसने मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया और नंगी पीठ पर चूमने लगा. मैं सिसकिया भरते हुए आँखें बंद रख मजे लेने लगी. उसने मेरी ब्रा के दोनों स्ट्रैप को कंधे से नीचे लुढ़का दिया, मेरी मुड़ी हुई कोहनियो पर ब्रा अटक गया.

मैंने अपने हाथ सीधे किये और ब्रा को नीचे गिरने दिया. ब्रा के नीचे गिरते ही उसने अपने दोनों हाथ आगे लाते हुए मेरे दोनों फूल कर तन चुके मम्मो को दबोच लिया.

अगले कुछ मिनट वो मेरी चूंचियो को ऐसे ही मसलता रहा.

उसने मुझे पीछे से झकड़ कर रखा था और अब तक उसका लंड कड़क हो चूका था और मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरे नितम्बो को छू रहा था.

अब उसने अपना एक हाथ मेरे मम्मो से हटाया और मेरे कमर और पेट पर फेराने लगा, जब कि दूसरा अभी भी मेरे मम्मो को मसल रहा था.

पेट पर हाथ फेरते फेरते मेरी पैंटी में आगे से हाथ घुसा दिया और मेरी चूत पर रगड़ने लगा. उसका एक हाथ मम्मो पर, दुसरा मेरी चूत पर तो उसका लंड मेरी गांड पर मल रहा था.

उसने मेरी गरदन के पीछे अपने होंठ रख कर मुझे चूमा और अपने होंठ चूमते चूमते रगड़ते हुए रीढ़ की हड्डी के सहारे पीठ पर फिराते हुए नीचे आता गया और साथ ही मम्मो पर रखा हाथ भी नीचे कमर पर आ गया और पैंटी में घुसाया हाथ भी निकाल कमर के दूसरी तरफ रख दिया.

अब वो चूमते चूमते अपने होंठ कमर के नीचे जहा पैंटी बंधी थी वहा तक ले आया. एक दो पल वो वही चूमता हुआ रुका. अब उसने अपने दोनों हाथ जो कमर पर रखे थे उनसे मेरी पैंटी नीचे खिसकाते हुए अपना चूमना जारी रखते हुए पैंटी के साथ ही साथ नीचे उतरता रहा.

मेरी पैंटी अब मेरी गांड को उघाड़ते हुए नीचे आ गयी और उसका चूमना मेरी गांड की दरारों पर आकर रुक गया. उसने मेरी पैंटी पूरी पाँव से निकाल दी और मेरी चूत से निकला मेरा चिकना पानी शॉवर के पानी से मिल कर धुल गया.

मैं अब बुरी तरह से थरथराते हुए तड़प रही थी. उसकी जादुई छुअन ने मुझको पूरा झकझोर दिया था. वो एक बार फिर उठ कर मेरे पीछे से चिपक कर खड़ा हो गया.

उसने शावर बंद किया. उसने साबुन उठाया और मेरे मम्मो पर प्यार से रगड़ कर झाग बना के अपने हाथ से मलने लगा. उसके हाथ मेरे मम्मो पर फिसलते हुए मालिश कर रहे थे. उसने फिर साबुन मेरे पेट और कमर और पीठ पर भी लगा कर आगे पीछे सब तरफ बारी बारी से मलने लगा. खास तौर से वो मेरे मम्मो को सहला रहा था.

अब उसने मेरी गांड जांघो और फिर मेरी चूत पर साबुन लगा दिया और रगड़ने लगा. मैं मदहोश हो कर सिसकियाँ मार रही थी.
 
फिर मेरी बारी आयी साबुन लगाने की. मैंने भी उसके सीने पेट और पीठ पर साबुन लगाया. उसके गांड पर साबुन लगाते वक्त मुझे बड़ी शर्म आयी. लगते लगाते ही वो घूम गया और अपना लंड आगे कर दिया. वो तो पहले से ही कड़क था तो मैंने थोड़ा साबुन अपने हाथों पर लगा कर उसका लंड अपने हाथों में लिया और प्यार से रगड़ने लगी. वो मजे के मारे अब सिसकियाँ लेने लगा.

मैंने थोड़ा साबुन उसके लंड के नीचे लटकी थैलियों पर भी मला. सारा साबुन लगा कर मै अब खड़ी हो गयी. उसने मुझे गले लगा लिया और मेरा बदन आगे से उसके बदन से चिपक कर थोड़ा फिसलने लगा. उसने अपने होंठो में मेरे गीले होंठ एक पल के लिए भरे और छोड़ दिए.

दो पलो के बाद उसने फिर मेरे होंठ अपने होंठ से पकड़ छोड़ दिए. सात आठ बार उसने ऐसे ही मेरे होंठ पकड़ कर छोड़े और मैं उसके होंठो को पकड़ने के लिए तड़पती रही. वो मुझे तरसा रहा था.

अगली बार जैसे ही वो अपने होंठ मेरे होंठो पर लाया, मैंने उसके होंठो अपने होंठो से पकड़ ही लिया और छोड़ने नहीं दिया. हम दोनों एक लम्बी चुम्बन में खो गए और एक दूसरे की जबान को मुँह में रगड़ते चुम्बन का आनंद लेने लगे.

उसका लंड धड़कता हुए आगे से मेरी चूत के ऊपर हलके धक्के मार रहा था. जब मैंने उसको चूमना छोड़ा तो उसने मुझे दीवार के सहारे पीठ कर खड़ा कर दिया और एक फ़ीट दूर खड़ा हो गया. मैंने हसंते हुए उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा और अपनी तरफ खिंचा. वो मेरे करीब आ गया और मेरी एक टांग घुटनो के नीचे हाथ डाल ऊपर कर दी.

मैं उसका लंड अभी भी पकड़े थी, तो अपनी चूत के छेद के पास ले आयी और अंदर डालने लगी. उसने भी हल्का सा जोर लगाया और साबुन लगा लंड फिसलता हुआ मेरी चूत में उतर गया. एक बार अंदर जाने के बाद जैसे हम दोनों को करार आया.

रंजन अब ऊपर नीचे होते हुए खड़े खड़े ही मेरी चूत चोदने लगा. इतनी देर की कामुक मसाज से वैसे ही हमारा पानी निकलना शुरू हो गया था, तो उसके लंड के अंदर घुसते ही हमारा काम शुरू हो गया था और दोनों का पानी मेरी चूत के अंदर संगम करने लगा.

हम दोनों जोर जोर की आहें भरते हुए थोड़ी थोड़ी देर से अपना बून्द बून्द पानी छोड़ते हुए मजे ले रहे थे. मैंने एक हाथ से शॉवर फिर शुरू कर दिया और हम दोनों भीगते हुए चुदाई का मजा लेने लगे. इतना पानी हो गया था कि समझ ही नहीं आया कौन सा पानी शॉवर का था और कौनसा मेरी चूत से निकला हुआ था.

उसने अब अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मुझे दीवार की तरफ मुँह कर खडी कर दिया. मैं आगे सर झुका कर दोनों हाथ दीवार पर टिकाये खड़ी हो गयी और उसने मेरी गांड के दोनों हिस्सों को चौड़ा करते हुए अपने लंड के लिए जगह ढुंडी और अपना लंड एक बार फिर मेरी चूत में घुसा कर चोदने लगा.

इस स्तिथि में वो अब और भी जोर से झटके मार पा रहा था और गिरते पानी और चूत के अंदर छूटे पानी की वजह से अंदर बाहर दोनों तरफ शरीर टकराने से जोर जोर थप्प्प्पप थप्प्पप्प्प थप्प्पप्प्प की आवाजे होने लगी. बाहर से थपाक आवाज और उसके बाद अंदर से फच्चाक की आवाज एक के बाद एक आ रही थी.
 
थोड़ी देर इसी तरह जोर जोर से चोदते हुए उसने अपना सारा पानी मेरी चूत में खाली करते हुए झड़ गया और मैं भी इस बीच आहें भरते और अंत में झड़ते हुए चीखने लगी. झड़ने के बाद हमने शॉवर में नहा कर अपने शरीर को साफ़ किया.

नहाने के बाद उसने मुझे कपड़े भी नहीं पहनने दिए. हम दोनों नंगे ही बाहर आये और इसी हालत में हमने नाश्ता किया. उसने मुझे सिर्फ बाल बनाने दिए और मेकअप करने दिया.

हम दोनों की शादी ख़त्म होने में कुछ घंटे ही बचे थे. हनीमून पर तो जा नहीं सकते वो मुझे मूवी दिखाने ले जाना चाहता था. घर पर रहकर उसके हाथों चुदती इससे अच्छा था कि बाहर मूवी ही देख ली जाये.

उसकी फरमाइश पर एक नई नवेली दुल्हन की तरह मुझे साड़ी पहननी पड़ी. वो मुझे एक मल्टीप्लेक्स में ले जाने की बजाय एक सिंगल स्क्रीन थिएटर में ले गया वो भी एक फ्लॉप मूवी दिखाने के लिए. वो मुझे सबसे पीछे वाली कतार में कोने वाली सीट पर ले गया.

मंगलवार की सुबह थी तो पूरा हॉल लगभग खाली था. हमारी तरह कुछ प्रेमी जोड़े जरूर थे जो एक एक कोना पकड़ कर बैठे थे. वो भी एकांत की जगह की तलाश में आये थे, ताकि अपने साथी को चुम सके और यहाँ वहा हाथ लगा कर छू सके.

शायद रंजन का भी यही प्लान था, पर वो ये काम घर पर भी कर सकता था. शायद ज्यादा रोमांच के लिए वो पब्लिक में लाकर ये सब करना चाहता था.

उसने मेरी पीठ पर हाथ ले जाकर मेरा ब्लाउज पीछे से खोल दिया और फिर आगे से ब्लाउज के नीचे हाथ घुसा कर मेरे मम्मे दबाने लगा. मैं बस हल्का सा विरोध ही कर पा रही थी. मैं थिएटर में अकेली लड़की नहीं थी, वहा बाकी लड़कियों का भी यही हाल था.

रंजन ने मुझे उसकी गोद में बैठने को कहा, मैंने मना कर दिया पर उसने जबरदस्ती मुझे खिंच कर अपनी गोद में बैठा ही दिया. एक बार बैठने के बाद तो उसने अपने दोनों हाथ आगे लाकर मेरे ब्लाउज में घुसा दिए और आराम से दबाने के मजे लेने लगा.

फिर उसने मेरी ब्रा का हुक खोल कर मेरे कंधे से स्ट्रेप निकाल दिए. फिर ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर ब्रा पूरा निकाल दिया और मेरी खाली सीट पर रख दिया.

मैं अपनी साड़ी से अपना सीना ढकने का प्रयास करती रही. थोड़ी देर बाद उसने मुझे अपनी गोदी से उठा कर आगे की खाली सीट के हेड रेस्ट पर झुका दिया. उसने मौका देख मेरे विरोध के बावजूद मेरी साड़ी को पेटीकोट सहित नीचे से ऊपर उठा दिया और मेरी पैंटी पकड़ कर नीचे खींच उसे भी मेरे सैंडल से होते बाहर निकाल कर पास वाली सीट पर ब्रा के पास रख दिया.
 
मैं घबरा कर एक बार फिर उसकी गोद में बैठ गयी. पास वाली सीट पर मेरे अंदर के कपडे पड़े हुए थे और मुझे डर लगने लगा कि ये अब क्या पूरा नंगा करेगा.

हालांकि हॉल में अँधेरा था पर स्क्रीन पर चलती मूवी से रह रह कर थोड़ा उजाला हो रहा था, आगे की कुछ सीटों पर बैठे कपल्स को आपस में चूमते हुए की झलक दिख रही थी.

रंजन ने फरमाइश रखी कि वो मुझे अभी इसी वक़्त चोदना चाहता हैं. मैंने उसको कहा कि यहाँ बहुत खतरा हैं, उसे जो भी करना हैं घर जाकर करे मैं उसको मना नहीं करुँगी. पर वो अपनी जिद पर अड़ गया.

कौनसा पति अपनी पत्नी को खुले में चोदना चाहेगा, पर वो कौनसा मेरा परमानेंट पति था जो इतना सोचता.

सिनेमा हॉल के अँधेरे में मेरा ब्रा और पैंटी रंजन पहले ही खोल कर बाहर निकाल चूका था और मेरा ब्लाउज भी पीछे से खुला था. मैं उसकी गोद में बैठे सोच रही थी कि अब वो क्या करने वाला हैं.

तभी उसने मुझे एक बार फिर आगे की सीट पर झुक कर खड़ी कर दिया और रंजन ने अपने कपडे खोल नीचे कर दिए. उसने मेरी साड़ी को पेटीकोट सहित एक बार फिर ऊपर उठाया और मुझे वो कपडे ऊपर ही पकडे रखने को कहा.

मैंने अपने कपड़े उठाये और पीछे से अपनी गांड खोल कर खड़ी हो गयी. हॉल में इतने लोगो के होते हुए चुदवाना वाकई किसी रोमांच से कम नहीं था. रंजन ने अपना लंड मेरी चुत में घुसा दिया और धक्के मारना शुरू कर दिया.

मैंने अपने एक हाथ को आगे की सीट पर रख सहारा लिए खड़ी थी और दूसरे हाथ से अपने कपड़े उठाये हुए थी. आगे बैठी एक लड़की की नजर हम पर पड़ी और वो समझ गयी कि पीछे क्या खिचड़ी पक रही हैं. उसने हँसते हुए अपने बॉय फ्रेंड को भी बताया और वो लोग अपना काम छोड़ हमें देखने लगे.

मुझे बहुत शर्म आयी और रंजन को भी बताया, पर उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ. वो दोनों खिलखिलाते हुए लाइव चुदाई का मजा देख रहे थे.

वो तो अच्छा था कि हॉल में अँधेरा था और मूवी के अधिकतर सीन भी अँधेरे के थे तो वो लोग ज्यादा कुछ देख नहीं पाए. पर मैं वो चार अजनबी आँखें कभी नहीं भूल पाऊँगी.

बाहर निकलते वक़्त भी मुझे सचेत रहना था और मुँह ढक कर ही निकलना था, ताकि वो लोग मुझे भविष्य में कभी पहचान ना पाए. पर फिलहाल रंजन अपने रोमांच का मजा ले रहा था.

मेरा इस मुसीबत से बचने का एक ही तरीका था कि उसका जल्दी से हो जाए. इसलिए मैंने भी अपनी गांड को पीछे धक्के मारना शुरू कर दिया.

उस पर से मूवी ने भी मेरी मदद कर दी. उसमे एक गरमा गरम सीन आ गया. खूबसूरत हीरोइन के कपडे थोड़े खुल कर अंग दिखने लगे और सेक्स सीन शुरू हो गया.

इससे रंजन और गरम हो गया. वो जोर जोर से झटके मारने लगा और गरम सीन के ख़त्म होते होते तो वो मेरी चूत में ही झड़ गया.

मैंने भी चैन की सांस ली. कपडे नीचे कर मैंने अपनी पैंटी पहन ली और ब्लाउज को भी बंद कर दिया. ब्रा को तो मैंने अपने पर्स में डाल दिया, उसको अभी पहनना संभव नहीं लगा.

मूवी अभी भी चल रही थी पर रंजन का काम हो चूका था, तो हम वहा से निकलने लगे. मैंने अपनी साड़ी अपने सर पर ओढ़ ली ताकि हॉल में जिस किसी ने भी हमे चुदते देखा मेरी शकल ना देख पाए.

बाहर आकर रंजन ने मुझे वही लंच करवाया और थोड़ा बहुत घूम कर शाम होने के पहले हम घर आये.

घर आकर हमने कपड़े बदले, इस बार उसने मुझे नंगी रहने को बाध्य नहीं किया. मैं थोड़ा सोकर रेस्ट करना चाहती थी पर ये भी पता था कि वो मुझे सोने नहीं देगा उल्टा एक बार फिर चोद देगा. इसलिए मैं घर के इधर उधर के कामो में व्यस्त होने का प्रयास करती रही.

वो लगातार मेरे आगे पीछे घूम रहा था और ताड़ रहा था. टी वी पर उसने जानबूझकर रोमांटिक द्विअर्थी गाने चला दिए और साथ में गाते हुए मुझे छेड़ने लगा. गाने देखते देखते उसका तो जैसे फिर से मूड बन गया और मुझे चोदने की फरमाइश करने लगा.

मैं काम का बहाना बना उसको टालती रही ताकि तब तक पति घर आ जाये. थोड़ी देर तक उसने इंतज़ार किया और फिर जब मैं रात के खाने की तैयारी में रसोई में काम कर रही थी, तो उसने रसोई में आकर अपने सारे कपड़े खोल दिए और मेरे सामने आकर खड़ा हो मुझे उत्तेजित करने की कोशिश करने लगा.

उसका लंड ऊपर नीचे हो नाचते हुए मुझे बुला रहा था और मैं शर्म के मारे सिर्फ मुस्करा भर रही थी और अपना काम कर रही थी. उसने आकर एक एक कर जबरदस्ती मेरे सारे कपड़े खोल कर मुझे रसोई में ही नंगी कर दिया. मेरे और उसके सारे कपडे रसोई में जमीन पर बिखरे हुए थे.

उसने मुझे किचन के प्लेटफार्म पर बैठाया और पाँव ऊपर उठा कर चौड़े कर अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया और खड़े खड़े ही अंदर बाहर झटके मारने लगा. हर झटके के साथ वो आहह्ह्ह आहह्ह्ह की आवाज निकाल कर माहौल बनाने लगा.
 
मुझे लग गया कि वो मुझे फंसाना चाहता है, तो मैंने मना कर दिया पर उसने मुझे झकड़ कर पकडे रहा और नीचे से झटके मारता रहा. उसने मुझे कमर से इतना कस कर पकडे रखा था कि मेरी कमर दर्द होने लगी थी.

एक दिन बस में सफ़र करते हुए इलियास को एक देसी आंटी की चुदाई करना का मोका कैसे मिला, उसकी सची देसी सेक्सी स्टोरी में जानिए.

तभी दरवाजा बंद होने की आवाज आयी.

मैं: “चलो छोडो, अशोक आ गया हैं”

रंजन: “अरे वो बाथरूम के दरवाजे के बंद होने की आवाज हैं, मैंने कहा वैसा तुम दस बार करो, अशोक नहीं आ पाएगा तब तक.”

मैंने कुछ सेकंड अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की पर उसकी पकड़ से नहीं निकल पायी और आस पास देखा अशोक नहीं था तो मुझे उसकी बात माननी पड़ी.

रंजन: “इतनी देर से मानी, अब दस की जगह बीस बार करना हैं. शुरू करो!”

वो मेरी कमर पकड़े रहा और मैंने बीस झटके मार चोदना शुरू किया और उसके कहे अनुसार उसको बोलती रही “रंजन आज तुझे चोदूंगी. आहह्ह, रंजन आज तुझे चोदूंगी. आह्हह्ह्ह रंजन आज तुझे चोदूंगी. आह्हह्ह रंजन आज तुझे चोदूंगी.” झटको के बीच मुझे मजे भी आ रहे थे तो मेरी आहें भी निकल रही थी और रंजन की भी सिसकियाँ निकलने लगी.

बीस झटके शायद हो चुके थे और मैं झड़ने के एकदम करीब थी तो जोश जोश में मैंने आठ दस झटके ज्यादा ही मार दिए और हलकी चीख के साथ मैं झड़ते हुए बोली “उह्हह्ह्ह रंजन, आज तो तुझे चोदूंगी.”

रंजन ने मेरी कमर छोड़ दी, शायद उसका भी पुरा हो गया था इस बीच.

फिर रंजन एक बार फिर अचानक चिल्लाया “अरे अब तो छोड़ दो, सुबह से आठ बार मुझे जबरदस्ती चोद चुकी हो.”

मैं उसके ऊपर से हटी अपने कपडे उठाने के लिए और पीछे अशोक खड़ा था.

पता नहीं वो कब से खड़ा था, अगर वो मेरे बीस-पच्चीस झटको के दौरान आया तो उसके हिसाब से मैं ही आगे बढ़ कर रंजन को चोद रही थी.
मैं तो हक्की बक्की होकर मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी. मैं उसके जाल में फिर फंस चुकी थी और अपने पति की नजरो में गिर गयी.

रंजन: “अशोक, ये प्रतिमा तुम्हारे साथ भी छुट्टी के दिन यही करती हैं क्या? सुबह से आठवीं बार चोदा हैं मुझको. मैं तो मना कर कर के थक गया हूँ.”

मैंने उसको खा जाने वाली नजरो से देखा. अशोक रसोई से चला गया और मैंने अपने कपड़े उठा कर पहनना शुरू कर दिया. रंजन भी कपड़े पहनने लगा.

मैं सीधा बाथरूम में गयी और अपनी साफ़ सफाई की. वापिस आयी तब रंजन अशोक से कुछ बात कर रहा था और मेरे आते ही चुप हो गया.

पता नहीं मेरे बारे में अशोक को और कितना भड़काया होगा उसने.

मैं उस पर बरस पड़ी और खूब खरी खोटी सुनाई और वो सब सब सुनता रहा. जब मैं रुकी तब उसने बोलना शुरू किया.
 
रंजन: “हो गया तुम्हारा बचाव पक्ष, अगर मुझसे चुदने में मजा आता हैं तो स्वीकार कर लो, अशोक के सामने शर्माने से क्या होगा.”

मैंने सौफे पर पड़ा एक कुशन उठा कर उस पर फेंक मारा. और दूसरी कोई चीज ढूढ़ने लगी उस पर फेंकने के लिए.

अशोक ने मुझको रोका और रंजन को खाना खाकर तैयार होने को बोला ताकि वो अपनी ट्रैन के लिए लेट ना हो. अशोक का चेहरा बहुत गंभीर था. मैंने उसको समझाने की कोशिश की कि पूरा माजरा क्या हैं और रंजन की चाल हैं पर अशोक ने मुझे सफाई नहीं देने दी.

मैं परेशान हो गयी, रंजन ने मुझे एक अलग मुसीबत में डाल दिया था. जब ऐसे काण्ड किये थे तब भी नहीं पकड़ी गयी और अभी मेरी गलती नहीं थी फिर भी इल्जाम मुझ पर था. इसी तनाव में मैंने उसके लिए खाना बनाया और रंजन ने खा लिया.

वो दोनों तैयार हो गए और रंजन का सारा सामान हॉल में इकठ्ठा करने लगे. अशोक जब बेडरूम में बचा हुआ सामान लेने गया, तब रंजन ने मुझे दबोच लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ लगा जबरदस्ती किस करने लगा.

उसने मुझे कमर से इतना कस कर पकड़ा था कि मैं ना तो बोल पा रही थी ना छुड़ा पा रही थी. किस करते हुए ही वो दीवार के पास ले गया और खुद को पीठ के सहारे खड़ा कर दिया और चूमता रहा.

मैं तो अपने आप को छुड़ा नहीं पायी पर उसने खुद ही मुझे धक्का देते हुए अलग किया और बोला “अब तो जाते जाते छोड़ दो, अब किस भी मेरे से ही लोगी, कुछ तो अशोक से भी करवा लो.”

कोई आश्चर्य नहीं था कि पीछे अशोक के आते ही उसने मुझे धक्का देते हुए अलग किया था, ताकि अशोक को लगे कि मैं ही रंजन को जबरदस्ती चुम रही थी. मैंने रंजन को मारने के लिए आगे बढ़ते हुए अपने हाथ उठाये पर अशोक ने जाने का फरमान सुना दिया.

रंजन ने भविष्य में कभी हमें ब्लैकमेल कर परेशान नहीं करने का वादा किया और हमें उसकी सगाई और शादी में जरूर आने का निवेदन किया.

अशोक उसे स्टेशन तक छोड़ आये और मैंने चैन की सांस ली कि चुदाई का एक तूफ़ान थम गया, पर उसने जाते जाते अशोक के मन में मेरे प्रति शक के बीज बो दिए थे.

अशोक के आने तक मैं इसी तनाव में बैठी रही. सोचा अशोक के आते ही उसको सब कुछ सच सच बता दूंगी की मैं खुद शिकार हूँ.

पर अशोक ने आते ही मुझे शांत कराया और बोला कि उसको सब पता हैं ये सब रंजन की चाल हैं. रंजन मेरे सिर्फ मजे ले रहा हैं तो मैं ज्यादा चिंता ना करू. रंजन ने रास्ते में अशोक को सब सच बता दिया था. ये सुन कर मुझे इतनी राहत मिली कि मेरे आंसू छलक गए.
 
थोड़े दिन बाद जैसा मुझ शक था मैं दूसरी बार गर्भवती हो चुकी थी. घर पर सब खुश थे. भाभी को अशोक की सारी सच्चाई पता थी तो वो मुझे शक की निगाहो से देख रही थी कि मैंने कहा मुँह काला कराया और पता नहीं किसके बच्चे की माँ बनी हूँ.

एक बार फिर मुझे नहीं पता था कि मेरे होने वाले बच्चे का असली पिता कौन था. डीपू जिसने मुझे महीने के पहले ही हफ्ते दो दिन के अंदर छह बार चोदा था, या फिर महीने के बीच के उन सबसे खतरनाक दिंनो में संजीव के फटे हुए कंडोम की एक चुदाई या फिर रंजन के द्वारा आखिरी हफ्ते में मेरी पांच बार चुदाई.

मैं रंजन की सगाई-शादी में नहीं गयी, पता नहीं और क्या जिद कर बैठे. अशोक अकेले ही गए. डर भी था कि कही एक दिन वो फिर से हमारी ज़िन्दगी में ना आ जाये, इस बार तो उसकी बीवी भी प्रभावित होगी.

पिछले एक महीने में मैंने स्वार्थवश जो भी एक के बाद एक किया था उससे मैं अंदर कही ना कही हिल चुकी थी. अपने आप पर गिन्न आ रही थी. कुछ ठीक नहीं लग रहा था. मैं तनाव में रहने लगी, जब कि मैं खुद शायद दूसरा बच्चा चाह रही थी. पर जिस तरह से ये बच्चा मेरी कोख में आया था मुझे ठीक नहीं लगा.

इसी तनाव के कारण तीन महीनो के अंदर ही मेरा गर्भपात हो गया और मैं डिप्रेशन (अवसाद) में चली गयी. शायद पाप का घड़ा भर गया था और फूटने की ही बारी थी.

अशोक ने मेरी हालत देख मुझे मशवरा दिया कि हम लोग फिर से किसी की मदद लेकर बच्चा पैदा कर सकते हैं. रंजन तो विदेश जा चूका था पर डीपू, संजू या मेरी पसंद के किसी भी मर्द से मैं मदद लेकर माँ बन सकती हूँ इसकी छूट अशोक ने दी दी थी. पर अब मैं इन सब चीजों में नहीं पड़ना चाहती थी.
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घडी में सुबह के 10:30 बज गए थे और मेरे पति अशोक बेसब्री से पियूष का इंतज़ार कर रहे थे, जिसे 10 बजे आना था अपने रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम का डेमो देने के लिए. हमको ये सिस्टम नए घर के लिए लगवाना था जिसमें कुछ समय पहले ही रहने आये थे.

जब से मेरा गर्भपात हुआ था, मैं अवसाद में चली गयी और अशोक मुझे फिर अपने होम टाउन ले आये मेरी सास के पास. पर वहा महीने भर रहने के बाद भी मेरी स्तिथि में सुधार नहीं हुआ.

तब अशोक ने इसी शहर के बाहरी भाग में एक नया घर खरीद लिया. नए घर में आने के बाद मेरी मानसिक स्तिथि में थोड़ा सुधार होना शुरु हुआ.

पियूष पुराने वाले घर का पडोसी और अशोक का मित्र भी था. अशोक ने पियूष को फ़ोन किया और पता चला की वो रास्ते में ही हैं और पहुंचने वाला हैं.

पौने ग्यारह के बाद पियूष पंहुचा, अशोक ने आते ही शिकायत शुरू कर दी कि उसका ऑफिस का कॉल हैं 11 बजे इसलिए उसे 10 बजे बुलाया था.

मेरी हालत की वजह से अशोक ने ऑफिस का काम घर से ही करना शुरू कर दिया था और कभी कभार ही ऑफिस जाता था. हमारा बच्चा अधिकतर दादी के पास ही रहता था.

मुझे इस स्तिथि से निकालने के लिए अशोक ने मुझे ये विकल्प भी दिया की हम बच्चा पैदा करने के लिए फिर से किसी की मदद ले सकते हैं. पर मैं अब इन सब झमेलों में नहीं पड़ना चाहती थी.

पियूष ने अपने सारे कागजात जल्दी से बेग से बाहर निकाले. अशोक और मैं उसके दोनों तरफ बैठ कर सुनने लगे. थोड़ी ही देर में अशोक उठे और बोले मुझे कॉल के लिए जाना हैं. मेरे से कहा तुम सब अच्छे से समझ लेना और बाद में मुझे समझा देना, मैं बाहर गार्डन के पास वाले कमरे में बैठ कर कॉल अटेंड करूँगा और मुझे डिस्टर्ब मत करना एक घंटा लगेगा.

अब पियूष ने मुझको समझाना जारी रखा कि प्लांट कैसे काम करता हैं. अब वो अपने प्लान बताने लगा तो मैंने कहा थोड़ा ब्रेक लेते हैं, मैं चाय बना देती हूँ, चाय पीते पीते समझते हैं. जैसे ही मैं उठी एक चीख के साथ अपना घुटना पकड़ कर फिर सोफे पर बैठ गयी.
 
पियूष घबरा गया. मैंने कहा कि मेरी नस पर नस चढ़ गयी हैं. मुझे कभी कभी ऐसा होता हैं.

पियूष ने कहा, अब ठीक कैसे होगा, अशोक को बुलाऊ.

मैंने कहा, उन्होंने डिस्टर्ब करने से मना किया था, आप थोड़ी सहायता करके मुझे अंदर बिस्तर तक छोड़ दे.

मैं एक टांग पर खड़ी हो गयी दूसरी टांग घुटने के बल मोड़ रखी थी. पियूष ने मुझ को सहारा देते हुए अंदर बिस्तर पर लेटा दिया, मैंने एक टांग लंबी लेटा दी पर दर्द वाली टांग घुटनो से मोड़ कर खड़ी रखी थी. पूरा चेहरा बेचैनी से पसीने से भीगा था. मैंने अपना साड़ी का पल्लू कंधे से निकाला और हवा करने लगी.

पियूष ने पंखा तेज गति पर चला दिया. मैंने पियूष को दराज़ में रखे बाम को लाने के लिए कहा. पियूष ने बाम लाकर मेरे हाथों में रखा और कहा कि तुम आराम करो मैं किसी और दिन आ जाऊंगा डेमो के लिए.

मैं बाम लगाने के लिए उठने लगी कि दर्द के मारे फिर लेट गयी. पियूष रुक गया.

मैंने कहाँ – आपको तकलीफ ना हो तो आप यह बाम मेरे घुटनो पर लगा देंगे.

पियूष थोड़ा हिचकिचाया पर मेरी तकलीफ देख आगे बढ़ा और बाम ले लिया. एक हाथ से मेरा पेटीकोट साड़ी सहित मुड़े हुए घुटनो पर से हटा दिया. मेरी गोरी चिकनी टांग और जांघो का कुछ हिस्सा दिखने लगा था.

अब जैसे ही उसने वो बाम लगाया, मैं दर्द से चीखी और दर्द के मारे पियूष के दूसरे हाथ की कलाई जोर से पकड़ अपनी तरफ खिंच ली, पियूष तुरंत रुक गया.

मैंने पकड़ थोड़ी ढीली की तो पियूष का हाथ मेरे पेट पर आ गया. अब वो बहुत हलके हाथ से मेरे घुटने पर बाम लगाने लगा. रह रह कर मैं दर्द से पियूष की कलाई दबा लेती और छोड़ देती जिससे पियूष का हाथ मेरे पेट पर ऊपर नीचे होता रहा.

बाम लग चूका था, मैंने अभी भी पियूष की कलाई पकड़ रखी थी.

मैंने कहा कि अब थोड़ी राहत हैं, और पियूष से कहा कि अब वो धीरे धीरे मेरे मुड़े घुटने को सीधा कर देगा.

जैसे ही पियूष ने ऐसा करना चाहा, मैंने जोर से दर्द के मारे उसकी कलाई को खींचा जिससे पियूष का हाथ अब मेरे गले पर आ गया.

पियूष ने अब बहुत ही धीरे धीरे घुटना सीधा करना शुरू किया. हर एक हलके प्रयास के बाद दर्द के मारे मैं एक करवट लेती जिससे पियूष का हाथ गले से हट कर मेरे वक्षो पर आ लगता और मेरे सीधे होते ही फिर गले पर आ जाता. मुझे दर्द के मारे इन सब चीज़ो का अहसास भी नहीं था. अब घुटना सीधा हो गया था और दर्द कम हो चूका था.

मैं बोली आज ही नयी साड़ी पहनी थी, उसको कही बाम के दाग ना लग जाये, पति नाराज़ होंगे नई साड़ी खराब हुई तो.

पियूष फिर इजाजत लेकर जाने लगा और मैं साड़ी बदलने को उठने लगी, मैं दर्द के मारे एक आहहह के साथ फिर लेट गयी.

मैंने पियूष को जाने से पहले एक आखरी मदद के लिए कहा कि वो मेरी साड़ी निकालने में मदद कर दे. पियूष फिर से सकपकाया पर एक निसहाय औरत की मदद के लिए उसने वैसा ही किया.

पियूष बोला – शायद तुम इतने कस के कपडे पहनती हो इस वजह से ही तुम्हारे नस की समस्या होती हैं, तुम्हे हमेशा ढीले कपडे पहनने चाहिए और अभी जो पहने हैं वो भी ढीले कर देने चाहिए. ऐसा कह कर वो फिर से थोड़ा बाम घुटनो पर लगाने लगा.

जब से मैं अवसाद में गयी मेरा योगा और कसरत सब छूट गया था. मैं अपने फिगर का ध्यान नहीं रख पायी इस चक्कर में थोड़ा वजन बढ़ चूका था.

अशोक भी मेरे थोड़ा ठीक होने के बाद मुझे कह चुके थे कि मैं फिर से अपना पहले वाला रूटीन शुरू कर फिट हो जाऊ. पर मुझे कोई प्रेरणा ही नहीं मिल रही थी. मेरे पहले के कपड़े थोड़े टाइट हो चुके थे.

मैंने तुरंत पियूष का कहना माना और अपने ब्लाउज के हुक खोलते हुए कहने लगी, मेरे पति कहते हैं कि मैं मोटी हो गयी हूँ, इसलिए मैं कसे हुए कपडे पहनती हूँ.

सब हुक खोलने के बाद साइड में पड़ी साड़ी से सीना फिर ढक दिया. मैंने थोड़ी करवट ली और पियूष को पीछे ब्रा का हुक खोलने को कहा, पियूष ने थोड़ी सकपकाहट से ब्रा का हुक खोलते हुए कहा कि तुम कहाँ मोटी हो, तुम दुबली ही हो.

मैं अब फिर सीधा लेट गयी और बोली, तुम मुझे सांत्वना देने के लिए ऐसे ही कह रहे हो, और पियूष का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर फेरते हुए बोली मैं मोटी नहीं हूँ क्या?

पियूष ने ना में गर्दन हिलाई और कहा यह एकदम फिट हैं.
 
मैंने कहा शायद मेरे अंदर के कसे वस्त्रो की वजह से तुम्हे महसूस नहीं हो रहा होगा, रुको मैं तुम्हे बताती हूँ कह कर मैं उठने लगी. पर पियूष ने मुझे फिर लेटा दिया और बोला जो भी काम हैं मुझे बताओ.

मैं बोली, मैं अपने अंदर के कसे हुए वस्त्र निकाल कर तुमसे पूछना चाहती हूँ कि क्या में सच में मोटी हूँ.

पियूष ने कहा, इसकी कोई जरुरत नहीं तुम मोटी नहीं हो.

मुझको यह झूठ लगा, मुझे दूध का दूध और पानी का पानी करना था. मैंने आग्रह किया कि मैंने पेटीकोट पहना हुआ हैं और पियूष मेरे अंदर के कसे वस्त्रो को उतार सकता हैं जिससे मेरी शंका का समाधान हो सके.

मेरी मनोस्तिथि पहले काफी बिगड़ गयी थी और अब सुधार था, पर फिर भी कभी कभार बेवकूफी भरी गलतियां भी कर बैठती थी. शायद उस वक्त मुझे ऐसा ही दौरा पड़ा था, एक गैर मर्द मुझे सहानुभूति दिखा रहा था और मैं उसको अपना शुभचिंतक मान उस पर हद से ज्यादा भरोसा दिखा बेवकूफी करे जा रही थी.

पियूष ने मन मार कर मेरे पेटीकोट के नीचे से अंदर हाथ डाल कर मेरी पैंटी निकाल दी. फिर मेरे पेट पर हाथ फिराते हुए कहने लगा यहाँ मोटापा नहीं हैं तुम एकदम फिट हैं.

मैं उसकी बात पर चाहते हुए भी यकीन नहीं कर पा रही थी.

मैंने कहा, शायद लेटे होने की वजह से मेरा पेट अंदर दबा हुआ हैं. मैं तुरंत उल्टी लेट गयी और गाय की तरह घुटने और हथेली के बल बैठ गयी, और बोली अब चेक करो.

मैंने बताया कि मेरा घुटना अब इस स्थिति में अच्छा महसूस कर रहा हैं. पियूष ने मेरे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा अब भी कोई ज्यादा फ़र्क़ नहीं हैं और मेरा पेट एकदम फिट हैं.

मैं बोली अब आखरी शंका, शायद पेटीकोट का नाड़ा कस के बंधा हैं इस वजह से फ़र्क़ महसूस नहीं हो रहा होगा, तुम नाड़ा ढीला करो और फिर चेक करो.

पियूष ने बिना हिचकिचाहट के मेरा नाड़ा खोल दिया और पेट पर हाथ फेरते हुए बताने लगा सबकुछ ठीक हैं, कोई मोटापा महसूस नहीं हो रहा अभी भी. मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. पियूष ने मेरी दो समस्याओ का हल करने में उसकी बहुत मदद की थी.

मैं ये भूल गयी थी कि मेरा ब्लाउज और ब्रा के हुक खुले पड़े हैं और अब मेरा पेटीकोट का नाड़ा भी खुल चूका था.

पियूष अपना एक हाथ मेरे पेट और दुसरा कमर पर फेरते हुए कहने लगा, यह एकदम सपाट हैं और किसी मोटापे की चिन्ता की जरुरत नहीं हैं.

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हाथ फिराते हुए थोड़ी ही देर में उसका पेट वाला हाथ अनायास ही मेरे मम्मो तक जा पंहुचा जहा ब्रा और ब्लाउज के हुक खुला होने की वजह से उसके हाथ सीधे मेरे मम्मो को छू गए और वह उन्हें दबाने लगा.

मुझे अब अहसास हुआ कि मैं किस स्थिति में हूँ. पर मैं पियूष को रोक न पायी, उसने बड़े प्यार से मेरी मदद जो की थी. जब से मैंने गर्भधारण किया और फिर गर्भपात हुआ था, अशोक मुझसे थोड़े दूर दूर ही रहते थे और हमारे बीच शारीरिक संबंध लगभग ना के बराबर थे.

अब पियूष का कमर वाला हाथ आगे बढ़कर मेरे नितंबो की तरफ बढ़ा और मेरे नाड़ा खुल चुके पेटीकोट को नितंबो से नीचे उतार दिया और उंगलिया मेरे नितंबो के बीच फेरने लगा.

हम दोनों को पता था कि अशोक को आने में काफी समय हैं, हम दोनों उस छुअन का आनंद लेने लगे. धीरे धीरे वो आनंद अनियंत्रित होने लगा.
काफी महीनो बाद मैं एक बार फिर वो महसूस कर पा रही थी जिन्हे अब तक शायद मिस कर रही थी.

पियूष ने अपने नीचे के कपड़े निकाल दिए और मेरे कूल्हों को पकड़ कर अपने लंड से मेरे नितंबो पर बाहर से ही हलके हलके धक्के मारने लगा.

उसके गरम गरम कड़क लंड की छुअन से मेरी गांड और चूत के छेद जैसे लम्बी नींद के बाद जाग से गए और पुरे खुल गए.

रह रह कर दोनों छेद बंद होते फिर खुलते और पियूष के लंड के इंतजार में बेताब हुए जा रहे थे.

पियूष ने अपना लंड पकड़ा और मेरे दोनों छेदो के ऊपर रगड़ने लगा. रगड़ते रगड़ते वो अपने लंड की टोपी को थोड़ा दोनों छेदो में से होकर भी गुजार रहा था.

वो जान बुझ कर मेरी हालत देख मुझे तड़पा रहा था और मैं तड़प के मारे अपने शरीर को हल्का सा पीछे की तरफ धक्का दे रही थी, ताकि उसके लंड की टोपी मेरे छेद में घुस मुझे थोड़ा सुकून दे सके.

मेरा पूरा शरीर कपकपा रहा था और उसने अचानक अपना लंड मेरी चूत के छेद में घुसा ही दिया. एक गहरी आहहह के साथ जैसे लहरों को साहिल मिल गया.

पर पियूष लंड अंदर डाल वही रुक गया, शायद मेरी चूत की गरमाहट महसूस करना चाह रहा था पर मेरी तड़प को ये मंजूर नहीं था.

मैं खुद ही आगे पीछे धक्का मारने लगी. महीनो बाद मिले इस सुकून को जैसे में एक झटके में पा लेना चाहती थी.
 
मेरे धक्को की गति एकदम से बढ़ गयी और मैं पागलो की तरह सब भुला कर लगातार तेज धक्के मारते हुए सिसकिया निकालने लगी. आह्ह आह्ह ओह्ह ओह्ह उह्ह उह्ह उम्म उम्म.

बढे हुए वजन के कारण या लम्बे समय से कसरत नहीं करने से मैं जल्द ही थकने लगी और धक्को की गति कम होने लगी और थोड़ी देर में रुक गयी.

लेकिन तब तक पियूष को आग लग चुकी थी. उसने एक जोर का धक्का मारा और मेरी चूत के बहुत अंदर तक अपने होने का अहसास कराया.

उसके बाद वो नहीं रुका, उसने एक के बाद झटके मारते हुए मुझे चोदना शुरू कर दिया.

थोड़ी देर चोदने के बाद उसकी सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी थी. मेरी भी सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी थी. उसके झटको से मेरे खुले पड़े ब्लाउज से मेरे मम्मे लटकते हुए आगे पीछे तेजी से हिल रहे थे.

थोड़ी देर में मुझे सच्चाई का भी आभास हुआ, कही मैं फिर से पहले वाली गलती तो नहीं कर रही.

मैं: “आह्हह पियूष रुको, कुछ हो जायेगा.”

पियूष: “अब मत रोको भाभी, अब तो पुरे मजे लेने ही दो. देखो, आपको भी मजा आ रहा हैं न? ये लो और जोर से मारता हूँ.”

मैं: “आह्हहह, रुक जाओ, उम्ममम्म मैं प्रेगनेंट हो जाउंगी, तुम समझ नहीं रहे.”

पियूष: “चिंता मत करो, दो बच्चो के बाद मैंने अपनी नसबंदी करा ली थी. अब कोई चिंता नहीं, जम के चुदवाने के मजे लो.”

मैं: “सच में?”

पियूष: “अरे हां, मैं झूठ क्यों बोलूंगा.”

मैं: “तो फिर धीरे धीरे क्यों मार रहे हो, जल्दी जल्दी से कर लो. अशोक के आने से पहले काम ख़त्म कर लो, उसने देख लिया तो मेरी शामत आ जाएगी.”

पियूष ने आव देखा ना ताव जोर से जोर से मुझे चोदने लगा. उसका और मेरा पानी बनने लगा तो उसका लंड फिसलता हुआ चप चप की आवाज करता हुआ मेरी चूत के अंदर तेजी से अंदर बाहर होता रहा.

पियूष: “भाभी, मेरा तो अब पानी निकलने वाला हैं, आपका कितना बाकि हैं?”

मैं: “तुम अपना कर लो, मेरी चिंता मत करो.”

पियूष: “रुको आपका भी करता हूँ.”

उसने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मुझे सीधा लेटा दिया. फिर उसने अपनी दो उंगलिया मेरी चूत में घुसा दी और तेज तेज अंदर बाहर खोदने लगा. उसकी उंगलियों की रगड़ से मेरा नशा फिर चढ़ने लगा.

अगले पांच मिनट में ऐसे ही उंगलियों से चोदते चोदते उसने मेरा पानी निकालना शुरू कर दिया था.

मैं अपने हाथ दोनों तरफ फैलाये बिस्तर के चद्दर को पकड़ खिंच कर तड़पते हुए आहें भरे जा रही थी. मुझे लगने लगा अब मैं झड़ने वाली हूँ तो मैंने पियूष को रोका.

मैं: “पियूष मेरा अब होने वाला हैं, तुम अब मेरे ऊपर आ जाओ और पूरा कर लो.”

पियूष अब मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझसे चिपक कर लेट गया. लेटते लेटते उसने मेरा ब्लाउज और ब्रा को मेरे मम्मो से पूरा हटा दिया और अपना टीशर्ट भी निकाल दिया. उसका सीना अब मेरे मम्मो को दबा रहा था.

उसने एक बार फिर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया. इतनी देर से उसकी पतली उंगलियों से चुदाने के बाद उसके मोटे लंड के अंदर जाते ही मुझे ज्यादा सुखद अहसास हुआ और मेरी चूत में होती रगड़ भी बढ़ गयी थी.

दो तीन मिनट बाद ही हम दोनों बड़ी गहरी और तेज सिसकियाँ भरते हुए एक दूसरे से चुदने के मजे लेने लगे. उसने मेरे दोनों हाथों की उंगलियों में अपनी उंगलिया फंसा ली और झटके मारने की गति एक दम बढ़ा ली.

महीनो बाद झड़ने का लुत्फ़ उठाने के लिए मैंने भी अपनी दोनों टाँगे उठा कर पहले तो उसकी टैंगो पर लपेट दी.

थोड़ी देर बाद मैंने अपनी टाँगे और भी ऊपर उठा पियूष के कमर पर अजगर की तरह लपेट दी. मेरी चूत का छेद और भी खुल गया और पियूष मेरी चुत की और भी गहराइयों में उतारते हुए चोदने लगा.

आहह्ह्ह्ह आहह्ह्ह ओहह्ह्ह मम्मी ओ मम्मी आअहह्ह्ह आअह आअ जोर जोर से चीखते हुए हम दोनों एक साथ झड़ गए.

काफी समय बाद मैंने अपना काम पूरा किया था तो एक संतुष्टि हुई. हम दोनों उठ कर फिर कपडे पहनने लगे. पियूष ने जल्दी से कपडे पहने और वो बाहर हॉल में चला गया. मैं भी अपनी साड़ी फिर से पहन कर बाहर आ गयी.

सारे पछतावे गुनाह करने के बाद ही याद आते हैं. मेरे साथ भी यही हुआ. मैंने अपनी बेवकूफी में या महीनो की जरुरत पूर्ति नहीं होने से पियूष के साथ गलत काम कर लिया था. मेरी बात कही खुल ना जाये इसलिए मैंने बाहर आकर पियूष को समझाना चाहा.

मैं: “पियूष, किसी को इस बारे में बताना मत.”

पियूष: “क्या बात कर रही हो. मेरे भी बीवी बच्चे हैं, मैं क्यों बताने लगा.”

मैं: “सब कुछ कैसे हुआ पता ही नहीं चला.”

पियूष: “कोई बात नहीं, कभी कभी ऐसा हो जाता हैं. जो भी हुआ अच्छा ही हुआ.”

पियूष ने मुझे रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्लान के बारे में ब्रोचर दिया, ताकि मैं अशोक को बता सकू और जाने लगा.

मैं: “पियूष, प्लीज इसे भूल जाना कि हमारे बीच कभी कुछ हुआ था. जो भी था एक गलती थी.”

पियूष ने आँखों से हां का इशारा कर मुझे सांत्वना दी और वहा से चला गया.

अशोक को मैंने वो ब्रोचर पढ़ा दिया और हमने रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम को कुछ और समय तक नहीं लगवाने का विचार किया. मैंने ही ज्यादा फ़ोर्स किया क्यों कि मैं पियूष का सामना फिर से नहीं करना चाहती थी.
 
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