desiaks
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अशोक: “क्या! अभी फ़ोन लगता हूँ उस हरामी को.”
मैं: “नहीं, कोई जरुरत नहीं झगड़ा करने की.”
अशोक: “तुम झूठ तो नहीं नहीं बोल रही, बताओ फटे कपड़े.”
मैं: “कपड़े नहीं फाड़े, छीना झपटी में ब्लाउज का हुक टूट गया था. उसने मेरे साथ कुछ कर लिया होता तो?”
अशोक: “ऐसे कैसे कर लेता, बाप का माल हैं क्या. तुम बताओ क्या किया उसने, मैं उसको देख लूंगा.”
मैं: “मैं उसको कुछ करने थोड़े ही देती, उस दिन हिल स्टेशन पर डीपू को भी नहीं करने दिया था याद हैं?”
अशोक: “मैं फिर भी उससे बात करूँगा. अगली बार से वो यहाँ नहीं आएगा.”
उस वक्त तो बात आयी गयी हो गयी. कभी कभी मौन ही सबसे अच्छा उपाय होता हैं. मैंने इस होली के दिन को भुला आगे बढ़ने में ही भलाई समझी, हो सकता हैं ऐसा कुछ ना हो जो मैं समझ रही थी.
मगर अब अशोक पर भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा था. मैं इस दुनिया से बाहर आना चाहती थी और अपने जीवन की एक नयी शुरुआत चाहती थी. मैंने शपथ ले ली कि अब मै किसी गैर मर्द के चक्कर में बिलकुल नहीं फँसूँगी.
जब एक पत्नी का भरोसा अपने पति से उठ जाता है तो एक बहुत बड़े बदलाव की जरुरत महसूस होती हैं। मैंने भी फैसला कर लिया कि मुझे अपनी ज़िन्दगी खुद जीना सीखना होगा इसके बजाय कि पति पर निर्भर रहु।
कल का क्या भरोसा, मुझे मेरा पति छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ले या मेरा इस्तेमाल कर अपना मतलब निकाले। मुझे अपनी ज़िन्दगी की एक नयी पारी शुरू करनी थी और मैंने अपने लिए नौकरी ढूढ़ना शुरू कर दिया।
मेरे पति अशोक ने मेरी नौकरी ढूंढने में मदद देने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया, मुझे अपनी योग्यता से बिना सिफारिश की नौकरी चाहिए थी।
मुझे ऐसी जगह नौकरी चाहिए थी जहा मुझे मेरी खूबसूरती को देख कर काम नहीं दिया जाये, कोई भी ठरकी बॉस मेरे सेक्सी फिगर को देख कर मुझे काम दे सकता था पर मुझे अब किसी का शिकार नहीं बनना था।
सेक्रेटरी के जॉब के लिए मेरी शैक्षिक योग्यता देखे बिना सिर्फ मेरे शरीर को देखते ही दो तीन जगह नौकरी मिल भी गयी, पर उन ठरकी बॉस और मैनेजर की नीयत उनकी आँखों में ही दिख गयी और मैंने वहा काम ना करना ही ठीक समझा।
छोटे शहर में महिला बॉस मिलना बहुत मुश्किल था। मैंने कुछ बड़े ऑफिस में काम ढूंढना भी जारी रखा, थोड़ा समय और लग गया और मुझे वो जगह शायद मिल गयी जो मेरे मुताबिक थी।
मेरे साथ कुछ और उम्मीदवारो को भी लिखित परीक्षा से होकर गुजरना था, जिसके बाद साक्षात्कार का राउंड होने वाला था। जगह सिर्फ एक खाली थी और उम्मीदवारी थे कई।
मैंने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी और दो लोग़ जिनको साक्षात्कार राउंड के लिए चुन लिया गया उनमे मैं भी थी। साक्षात्कार कंपनी का बॉस राहुल खुद लेने वाला था जिसके लिए सेक्रेटरी चाहिए थी।
मेरे साथ जो लड़की चुनी गयी थी वो एक कुंवारी लड़की थी जो दिखने में अच्छी खासी थी और छोटे कपड़े पहन कर आयी थी। मुझे लग गया कि अगर ये भी दूसरे ठरकी बॉस जैसा होगा तो मेरा चुना जाना मुश्किल हैं।
हम दोनों को एक साथ इंटरव्यू के लिए अंदर बुलाया गया।
राहुल एक पच्चीस तीस की उम्र का नौजवान था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी कम उम्र का बॉस भी हो सकता हैं। बॉस शब्द सुनते ही मुझे एक अधेड़ उम्र का ठरकी मर्द ही दिमाग में आता हैं।
राहुल की पिछली सेक्रटरी अचानक काम छोड़ कर चली गयी थी और उसको तुरंत किसी की जरुरत थी। पुरे साक्षात्कार के दौरान उसने एक नजर भी हम दोनों नारियो पर नहीं डाली बस हमारे दस्तावेज़ देखता रहा और सवाल पूछता रहा।
मेरे लिए ये बहुत अलग अनुभव था जब कोई मर्द खूबसूरत औरत को नहीं देख रहा था। मुझे भी ऐसी ही जगह पर काम की तलाश थी पर बीच का रौड़ा वो लड़की थी जो मेरी प्रतियोगी थी।
राहुल को हम दोनों की शैक्षिक योग्यता पर कोई शक नहीं था उसने हमसे सिर्फ हमारी महत्वकांक्षा पूछी और हम ये जॉब क्यों करना चाहते हैं। मेरा लक्ष्य साफ़ था कि मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना हैं और बहुत आगे जाना हैं क्यों कि ज़िंदगी में बाकी सब तो वैसे भी पा लिया हैं।
मेरे साथ वाली उम्मीदवार के साथ ये समस्या था कि वो एक दो साल से ज्यादा प्रतिबद्धता नहीं दे सकती थी क्यों कि उसकी शादी होने वाली थी और फिर अपने होने वाले पति के साथ उसे काम छोड़ कर दूसरे शहर जाना था।
मैं: “नहीं, कोई जरुरत नहीं झगड़ा करने की.”
अशोक: “तुम झूठ तो नहीं नहीं बोल रही, बताओ फटे कपड़े.”
मैं: “कपड़े नहीं फाड़े, छीना झपटी में ब्लाउज का हुक टूट गया था. उसने मेरे साथ कुछ कर लिया होता तो?”
अशोक: “ऐसे कैसे कर लेता, बाप का माल हैं क्या. तुम बताओ क्या किया उसने, मैं उसको देख लूंगा.”
मैं: “मैं उसको कुछ करने थोड़े ही देती, उस दिन हिल स्टेशन पर डीपू को भी नहीं करने दिया था याद हैं?”
अशोक: “मैं फिर भी उससे बात करूँगा. अगली बार से वो यहाँ नहीं आएगा.”
उस वक्त तो बात आयी गयी हो गयी. कभी कभी मौन ही सबसे अच्छा उपाय होता हैं. मैंने इस होली के दिन को भुला आगे बढ़ने में ही भलाई समझी, हो सकता हैं ऐसा कुछ ना हो जो मैं समझ रही थी.
मगर अब अशोक पर भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा था. मैं इस दुनिया से बाहर आना चाहती थी और अपने जीवन की एक नयी शुरुआत चाहती थी. मैंने शपथ ले ली कि अब मै किसी गैर मर्द के चक्कर में बिलकुल नहीं फँसूँगी.
जब एक पत्नी का भरोसा अपने पति से उठ जाता है तो एक बहुत बड़े बदलाव की जरुरत महसूस होती हैं। मैंने भी फैसला कर लिया कि मुझे अपनी ज़िन्दगी खुद जीना सीखना होगा इसके बजाय कि पति पर निर्भर रहु।
कल का क्या भरोसा, मुझे मेरा पति छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ले या मेरा इस्तेमाल कर अपना मतलब निकाले। मुझे अपनी ज़िन्दगी की एक नयी पारी शुरू करनी थी और मैंने अपने लिए नौकरी ढूढ़ना शुरू कर दिया।
मेरे पति अशोक ने मेरी नौकरी ढूंढने में मदद देने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया, मुझे अपनी योग्यता से बिना सिफारिश की नौकरी चाहिए थी।
मुझे ऐसी जगह नौकरी चाहिए थी जहा मुझे मेरी खूबसूरती को देख कर काम नहीं दिया जाये, कोई भी ठरकी बॉस मेरे सेक्सी फिगर को देख कर मुझे काम दे सकता था पर मुझे अब किसी का शिकार नहीं बनना था।
सेक्रेटरी के जॉब के लिए मेरी शैक्षिक योग्यता देखे बिना सिर्फ मेरे शरीर को देखते ही दो तीन जगह नौकरी मिल भी गयी, पर उन ठरकी बॉस और मैनेजर की नीयत उनकी आँखों में ही दिख गयी और मैंने वहा काम ना करना ही ठीक समझा।
छोटे शहर में महिला बॉस मिलना बहुत मुश्किल था। मैंने कुछ बड़े ऑफिस में काम ढूंढना भी जारी रखा, थोड़ा समय और लग गया और मुझे वो जगह शायद मिल गयी जो मेरे मुताबिक थी।
मेरे साथ कुछ और उम्मीदवारो को भी लिखित परीक्षा से होकर गुजरना था, जिसके बाद साक्षात्कार का राउंड होने वाला था। जगह सिर्फ एक खाली थी और उम्मीदवारी थे कई।
मैंने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी और दो लोग़ जिनको साक्षात्कार राउंड के लिए चुन लिया गया उनमे मैं भी थी। साक्षात्कार कंपनी का बॉस राहुल खुद लेने वाला था जिसके लिए सेक्रेटरी चाहिए थी।
मेरे साथ जो लड़की चुनी गयी थी वो एक कुंवारी लड़की थी जो दिखने में अच्छी खासी थी और छोटे कपड़े पहन कर आयी थी। मुझे लग गया कि अगर ये भी दूसरे ठरकी बॉस जैसा होगा तो मेरा चुना जाना मुश्किल हैं।
हम दोनों को एक साथ इंटरव्यू के लिए अंदर बुलाया गया।
राहुल एक पच्चीस तीस की उम्र का नौजवान था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी कम उम्र का बॉस भी हो सकता हैं। बॉस शब्द सुनते ही मुझे एक अधेड़ उम्र का ठरकी मर्द ही दिमाग में आता हैं।
राहुल की पिछली सेक्रटरी अचानक काम छोड़ कर चली गयी थी और उसको तुरंत किसी की जरुरत थी। पुरे साक्षात्कार के दौरान उसने एक नजर भी हम दोनों नारियो पर नहीं डाली बस हमारे दस्तावेज़ देखता रहा और सवाल पूछता रहा।
मेरे लिए ये बहुत अलग अनुभव था जब कोई मर्द खूबसूरत औरत को नहीं देख रहा था। मुझे भी ऐसी ही जगह पर काम की तलाश थी पर बीच का रौड़ा वो लड़की थी जो मेरी प्रतियोगी थी।
राहुल को हम दोनों की शैक्षिक योग्यता पर कोई शक नहीं था उसने हमसे सिर्फ हमारी महत्वकांक्षा पूछी और हम ये जॉब क्यों करना चाहते हैं। मेरा लक्ष्य साफ़ था कि मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना हैं और बहुत आगे जाना हैं क्यों कि ज़िंदगी में बाकी सब तो वैसे भी पा लिया हैं।
मेरे साथ वाली उम्मीदवार के साथ ये समस्या था कि वो एक दो साल से ज्यादा प्रतिबद्धता नहीं दे सकती थी क्यों कि उसकी शादी होने वाली थी और फिर अपने होने वाले पति के साथ उसे काम छोड़ कर दूसरे शहर जाना था।