desiaks
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तभी अमित ने मेरी तरफ देखा और मैंने अमित को आँख मारी, अमित मेरे इशारे को समझ चुका था, वो मुझे कुछ कह नहीं सकता था।
मैं रितेश को लेते हुए नमिता के पास गई और नमिता के जिस्म पर पड़े हुए चादर को एक झटके से हटाते
हुए बोली- तीन नंगे हैं और तुम चादर ओढ़े हुई हो? वैसे भी कल से दो तीन दिन तक किसी को कुछ मिलने वाला नहीं है। तो आज पूरी रात एन्जॉय करें।
जैसे ही नमिता के ऊपर से चादर हटी उसने अपने दोनों पैरो को सिकोड़ लिया और दोनों हाथों से अपनी चूचियों को ढक लिया। आखिर रितेश था एक मर्द ही, सामने नंगी लड़की देखी तो उसकी भी शर्म चली गई, अमित की तरफ देखते हुए बोला- अमित, तुमने आज तक नमिता को ठीक से देखा नहीं, नहीं तो आकांक्षा की तारीफ नहीं करते।
कहते हुए रितेश नमिता के पास बैठ गया और उसके चेहरे से बालों को हटाते हुए बोला- इसका भी पूरा जिस्म किसी काम देवी से कम नहीं है। अच्छा सा अच्छा मर्द इसके सामने नहीं टिक सकता।
जब रितेश नमिता की तारीफ कर रहा था तो मेरी नजर अमित पर पड़ी, जो थोड़ा बहुत असहज सा लग रहा था।
मैं अमित की तरफ गई और उसके जिस्म से चिपकते हुए बोली- कैसा लगा मेरा सरप्राईज?
अमित बोला- भाभी मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था।
मैं - 'अब बताओ कि मैं कैसी लग रही हूँ?'
अमित थोड़ा सहज होने की कोशिश में उसने अपनी बांहों को मेरी कमर में डाल दिया,
और बोला- हो तो भाभी तुम मादरचोद, लेकिन तुम्हारे जैसा कोई दूसरा नहीं। तुम इस खेल को बहुत खुल कर खेलती हो। तुम्हारी यही अदा मुझे पसंद है। कहते हुए उसने मेरी गर्दन पर अपने चुम्बन की झड़ी लगा दी, जबकि उसका लंड मेरे गांड में रह रह कर चुभ रहा था।
उधर रितेश अभी भी बड़े ही प्यार से नमिता के गालों को सहला रहा था और नमिता से खुलने का प्रयास कर रहा था। गालों को सहलाते हुए रितेश ने धीरे से नमिता के दोनों कैद चूचियों को उसके बेदर्द हाथों से आजाद कराया और फिर उसकी चूचियों को सहलाने लगा।
अमित की तरफ देखते हुए बोला- तुम सही कह रहे थे, इसकी जैसी चूची तो मेरी आकांक्षा की भी नहीं है।
यह रितेश का स्टाइल था कि कैसे किसी लड़की या औरत की तारीफ की जाती है।
इधर अमित के दोनों हाथों की दो-दो उंगलियाँ मेरे चूचुकों को मसल रही थी।
उधर रितेश नमिता की चूचियों को सहलाते सहलाते उसके टांगों को सीधा कर चुका था और नीचे जमीन पर बैठते हुए रितेश का अंगूठा नमिता की चूत की सैर करने लगा। रितेश अपने अंगूठे से नमिता की चूत से खेल रहा था, वो बार-बार अपने अंगूठे को नमिता की चूत के अन्दर डालता और फिर बाहर निकालता और फिर उसको सहलाता।
इधर अपनी बीवी के साथ ये सब होता देखकर अमित को भी जोश चढ़ गया तो वह भी मेरी चूत की सेवा करने लगा। कमरे में शान्ति थी, लेकिन खेल मस्त चल रहा था। मेरा हाथ अमित के लंड के सुपारे के साथ खेल रहा था।
उधर रितेश कभी नमिता की चूत में अपनी जीभ चलाता तो कभी अंगूठे से उसकी चूत का निरीक्षण करता। नमिता को भी सरूर चढ़ने लगा था, वो अपने हाथ से अपनी चूची मसल रही थी, अपने गले को ऐसे सहला रही थी कि वो बहुत प्यासी हो और पानी पीने की बहुत इच्छा हो.. उसकी कमर अपने आप उठ रही थी, ऐसा लग रहा था कि जब रितेश की उंगली उसकी चूत के मुहाने पर जाती तो वो कमर उचका कर उसकी पूरे अंगूठे को अपनी चूत में लेने की कोशिश करती।
मैं ये सब देख कर मस्त हो रही थी कि मुझे लगा कि मेरे हाथ से लंड छिटक गया है, लगा कि अमित को हाथ मेरी गांड की फांकों को फैला कर उसको चाट रहा था। मैं भी हल्की झुक गई ताकि अमित को मेरी गांड और चूत दोनों छेद का मजा आसानी से और भरपूर मिल सके।
मैं रितेश को लेते हुए नमिता के पास गई और नमिता के जिस्म पर पड़े हुए चादर को एक झटके से हटाते
हुए बोली- तीन नंगे हैं और तुम चादर ओढ़े हुई हो? वैसे भी कल से दो तीन दिन तक किसी को कुछ मिलने वाला नहीं है। तो आज पूरी रात एन्जॉय करें।
जैसे ही नमिता के ऊपर से चादर हटी उसने अपने दोनों पैरो को सिकोड़ लिया और दोनों हाथों से अपनी चूचियों को ढक लिया। आखिर रितेश था एक मर्द ही, सामने नंगी लड़की देखी तो उसकी भी शर्म चली गई, अमित की तरफ देखते हुए बोला- अमित, तुमने आज तक नमिता को ठीक से देखा नहीं, नहीं तो आकांक्षा की तारीफ नहीं करते।
कहते हुए रितेश नमिता के पास बैठ गया और उसके चेहरे से बालों को हटाते हुए बोला- इसका भी पूरा जिस्म किसी काम देवी से कम नहीं है। अच्छा सा अच्छा मर्द इसके सामने नहीं टिक सकता।
जब रितेश नमिता की तारीफ कर रहा था तो मेरी नजर अमित पर पड़ी, जो थोड़ा बहुत असहज सा लग रहा था।
मैं अमित की तरफ गई और उसके जिस्म से चिपकते हुए बोली- कैसा लगा मेरा सरप्राईज?
अमित बोला- भाभी मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था।
मैं - 'अब बताओ कि मैं कैसी लग रही हूँ?'
अमित थोड़ा सहज होने की कोशिश में उसने अपनी बांहों को मेरी कमर में डाल दिया,
और बोला- हो तो भाभी तुम मादरचोद, लेकिन तुम्हारे जैसा कोई दूसरा नहीं। तुम इस खेल को बहुत खुल कर खेलती हो। तुम्हारी यही अदा मुझे पसंद है। कहते हुए उसने मेरी गर्दन पर अपने चुम्बन की झड़ी लगा दी, जबकि उसका लंड मेरे गांड में रह रह कर चुभ रहा था।
उधर रितेश अभी भी बड़े ही प्यार से नमिता के गालों को सहला रहा था और नमिता से खुलने का प्रयास कर रहा था। गालों को सहलाते हुए रितेश ने धीरे से नमिता के दोनों कैद चूचियों को उसके बेदर्द हाथों से आजाद कराया और फिर उसकी चूचियों को सहलाने लगा।
अमित की तरफ देखते हुए बोला- तुम सही कह रहे थे, इसकी जैसी चूची तो मेरी आकांक्षा की भी नहीं है।
यह रितेश का स्टाइल था कि कैसे किसी लड़की या औरत की तारीफ की जाती है।
इधर अमित के दोनों हाथों की दो-दो उंगलियाँ मेरे चूचुकों को मसल रही थी।
उधर रितेश नमिता की चूचियों को सहलाते सहलाते उसके टांगों को सीधा कर चुका था और नीचे जमीन पर बैठते हुए रितेश का अंगूठा नमिता की चूत की सैर करने लगा। रितेश अपने अंगूठे से नमिता की चूत से खेल रहा था, वो बार-बार अपने अंगूठे को नमिता की चूत के अन्दर डालता और फिर बाहर निकालता और फिर उसको सहलाता।
इधर अपनी बीवी के साथ ये सब होता देखकर अमित को भी जोश चढ़ गया तो वह भी मेरी चूत की सेवा करने लगा। कमरे में शान्ति थी, लेकिन खेल मस्त चल रहा था। मेरा हाथ अमित के लंड के सुपारे के साथ खेल रहा था।
उधर रितेश कभी नमिता की चूत में अपनी जीभ चलाता तो कभी अंगूठे से उसकी चूत का निरीक्षण करता। नमिता को भी सरूर चढ़ने लगा था, वो अपने हाथ से अपनी चूची मसल रही थी, अपने गले को ऐसे सहला रही थी कि वो बहुत प्यासी हो और पानी पीने की बहुत इच्छा हो.. उसकी कमर अपने आप उठ रही थी, ऐसा लग रहा था कि जब रितेश की उंगली उसकी चूत के मुहाने पर जाती तो वो कमर उचका कर उसकी पूरे अंगूठे को अपनी चूत में लेने की कोशिश करती।
मैं ये सब देख कर मस्त हो रही थी कि मुझे लगा कि मेरे हाथ से लंड छिटक गया है, लगा कि अमित को हाथ मेरी गांड की फांकों को फैला कर उसको चाट रहा था। मैं भी हल्की झुक गई ताकि अमित को मेरी गांड और चूत दोनों छेद का मजा आसानी से और भरपूर मिल सके।