hotaks444
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मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे पर बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना शुरू किया.....
मैं इस सब को देख कर, इतना ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, मुझे मेरे और तेरे बीच जो कुछ हुआ था, वो सब कुछ याद आने लगा था, मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी, इतनी शरम कि मैं ना तो कुछ बोल ही पाई, और ना ही उन दोनो को रोक ही पाई. सब कुछ देखते हुए, मेरा हाथ अभी भी पैंटी के अंदर घुसा हुआ था, और मेरी चूत को सहला रहा था.....
धीरज अब भी अपनी बेहन की जांघों को किस किए जा रहा था, और आगे बढ़ते हुए, वो संध्या की शेव्ड चिकनी चूत तक पहुँच गया. धीरज ने धीरे से उस चूत की दरार पर एक छोटा सा किस किया, और अपने मूँह की गर्माहट से उसकी नंगी चूत को पिघलाने की कोशिश करने लगा. धीरज अपनी सग़ी छोटी बेहन की चूत की दरार पर धीरे धीरे, प्यार से हर किस के साथ, उसकी चूत के होंठों को चूम रहा था. धीरज धीरे से उसकी दोनो टाँगो के बीच झुक गया, और फिर संध्या की चूत को नीचे से उपर तक चाटने लगा, और फिर अपनी मुलायम, गीली जीभ को, अपनी सग़ी बेहन की चूत में घुसाने लगा, और फिर बाहर निकाल कर संध्या की चूत के दाने को अपनी जीभ को पायंटेड कर बार बार छेड़ देता. ये सब देखते हुए, मेरा ध्यान धीरज के फूँकार मारते हुए लंड की तरफ गया, मैं पहले की तरह उतनी ही ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी और मेरी चूत उतनी ही गीली हो गयी, जितनी जब संध्या को कपड़े उतारकर नंगा होता हुआ देख कर हुई थी.
धीरज ने धीरे से संध्या की चूत पर से अपना मूँह दूर किया, अपने हाथ की बीच वाली उंगली को मूँह में डाल के थोड़ा सा चूसा, और फिर अपनी बेहन की चूत में उसको हल्के हल्के घुसाने लगा. संध्या अभी भी अपनी आँखें बंद कर के ऐसा नाटक कर रही थी मानो सो रही हो. मैं धीरज के हाथ को आगे पीछे होते हुए देख रही थी, ये जानते हुए कि वो अपनी उंगली संध्या की चूत में अंदर बाहर कर रहा है.संध्या अब ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी, और उसकी भारी छाती नाइट लेम्प की रोशनी में उपर नीचे होने लगी. तभी मेरे कानों में एक हल्की सी फॅक की आवाज़ सुनाई दी. ये संध्या की गीली हो चुकी चूत की थी, जो अपने सगे भाई की उंगली का अपनी चूत में स्वागत कर रही थी. मुझे विश्वास ही नही हुआ, कि उसकी चूत भी इतनी जल्दी इतनी ज़्यादा चिकनी हो चुकी है.
धीरज, बिना रुके अपनी सुंदर सी सग़ी छोटी बेहन की चूत को उंगली से चोदे जा रहा था, और फिर वो जल्दी से बेड की साइड पर हो गया. और दान्यें हाथ से, संध्या की चूंचियों की गोलाईयों को अपने हाथ की उंगलियों से गोल गोल सहलाने लगा, और उसके कड़े होते हुए निपल्स को देखने लगा, जिसके सब तरफ से रोंगटे खड़े हुए थे. फिर धीरज ने संध्या के गालों को एक हाथ से सहलाया, और फिर अपनी बेहन के होंठों पर एक प्यार भरी किस ले ली. ये किस शुरू में तो थोड़ी छोटी और सादा ही शुरू हुई थी, लेकिन ये आगे बढ़ती गयी, और गहरी होती चली गयी. मैं संध्या की छाती और उभारों को अचरज से हर सेकेंड और ज़ोर से उपर नीचे होते देख रही थी, जैसे जैसे धीरज, संध्या को चूमते हुए, अपनी उंगली की उसकी चूत में अंदर बाहर करने की रफ़्तार को बढ़ाता जा रहा था.
संध्या ने ऐसे नाटक करते हुए जैसे कि कोई सपना देख रही हो, अपना हाथ बढ़ा कर, धीरज के सिर पर रख दिया, और मूँह खोलकर उसके किस का जवाब देने लगी. मुझे अच्छी तरह से पता था कि वो जाग रही है. और फिर वो थोड़ा आधा सा बैठते हुए, अपने बड़े भाई की गर्दन को चूमने लगी. वो किसी भूखी शेरनी की तरह, धीरज की छाति और फिर कमर को चूमते हुए, उसके फूँकार मार रहे लंड तक पहुँच गयी. धीरज समझ गया, और उसकी बाजू में लेट गया, उसके लेटते ही संध्या ने धीरज के लंड को पकड़ लिया, और फिर नीचे से उपर तक लंड को किस किया, हर किस के साथ धीरज का लंड थोड़ा फडक जाता. संध्या ने फिर से लंड को नीचे से शुरू करते हुए उपर तक चाटना शुरू कर दिया. वो लंड को नीचे की तरफ से चाट रही थी, धीरज के टट्टों की गोलियों से लेकर उपर सुपाडे तक, और हर बार उपर पहुँचने पर सुपाडे के छेद को अपनी जीभ से छेड़ देती. संध्या ने एक पल, सिर उपर उठा कर अपने भैया की तरफ देखा, और फिर उसके लंड को पूरा अपने मूँह में भर लिया, जितना अंदर ले जा सकती थी, वो लंड को उतना अपने मूँह के अंदर ले गयी. फिर वो लंड के सुपाडे को चूसने लगी, शुरुआत में धीरे धीरे, और फिर रफ़्तार पकड़ते हुए. संध्या ने एक हाथ से धीरज के लंड को नीचे से पकड़ रखा था, जिस से लंड को अपने गरम गरम मूँह में घुसने में आसानी हो, और अपना दूसरा हाथ चूत के दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, ऐसा करते हुए वो घुटनों के बल, अपने पैर चौड़ा कर उसके बगल में घोड़ी बन गयी. और फिर एक लंबी आआहह भरते हुए अपने भैया के लंड को ज़्यादा से ज़्यादा अपने मूँह में अंदर ले गयी. मुझे लगा, ऐसा करने से धीरज को भी अच्छा लगा था, क्योंकि उसने अपनी गान्ड उँचका दी, और अपना लंड अपनी छोटी बेहन के और ज़्यादा अंदर, गले तक पेल दिया.
मुझे लगा कि मैं भी अब झड्ने के करीब पहुँच चुकी हूँ, इसलिए मैने ना चाहते हुए भी अपनी उंगली की चूत पर घिसने की रफ़्तार को थोड़ा धीमा कर दिया. मैं भी धीरज और संध्या के साथ ही झड्ना चाहती थी, एक पल भी उन्दोनो से पहले नही. मेरा एक हाथ मेरी चूंचियों को दबा रहा था, और उन भाई बेहन के चूत लंड के खेल को देख कर मैं गरम हुए जा रही थी. मैं सब कुछ देख रही थी, संध्या ने अपने भाई के पास बैठते हुए, अपनी दोनो टाँगें चौड़ी कर ली, और मुझे उसकी गीली हो चुकी चूत सॉफ दिखाई दे रही थी, जिस को संध्या अपनी उंगली से घिस रही थी. साध्या के कराहने की आवाज़ अब तेज होने लगी थी, लगता था वो अब एक दूसरे के साथ के फोरप्ले से आगे बढ़ना चाहती है. संध्या ने अपने भैया की छाति पर झुकते हुए, धीरज को बेड पर सीधा लिटा दिया, और अपनी चूत की तरफ एक हाथ ले जाकर, अपने भैया के फुन्फनाते हुए गीले लंड को पकड़ के अपनी चुदने के लिए बेकरार चूत के मूँह पर लगा लिया.
"मुझे अब प्लीज़...छोड़ दो भैया" वो फुसफुसाई.
मैं चुप चाप रूम के बाहर खड़ी, दरार में से सब कुछ देख और सुन रही थी, इतना सुनकर धीरज के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी. और धीरज ने अपनी छोटी बेहन की गान्ड को कस के पकड़ लिया, और उसको वैसे ही पकड़ कर, अपने लंड के उपर नीचे आने से रोक लिया.
"प्लीज़, भैया , मुझे इसे अंदर डाल लेने दो ना! मैं अच्छे से करूँगी." संध्या फिर से रीरियाते हुए फुसफुसाई.
धीरज उसको वैसे ही पकड़े रहा, और अपने लंड के सुपाडे को उसकी फुदक रही चूत को छूते हुए उसे चिढ़ाने लगा.
"प्लीज़... चोद दो भैया..." संध्या और कुछ नही बोल पाई, तभी उसके बड़े भाई ने अपना पूरा लंड उसकी चूत में घुसा दिया. ये इतना जल्दी हुआ, कि संध्या के मूँह से एक ज़ोर से दर्द भरी आहह निकल गयी.
"ष्ह, तुम्हारी भाभी सुन लेगी" धीरज फुसफुसाया, और उसकी छोटी बेहन का मूँह चुदाई का आनंद लेते हुए अपने आप खुल गया, और उसमे से परम सुख की आहें निकलने लगी.
कुछ देर ऐसी ही घुटि घुटि आहें निकालने के बाद , वो फिर से फुसफुसाई, “भैया, अब मुझसे बर्दाश्त नही होता, तुम्हारा लंड मेरी चूत में घुसता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. प्लीज़, अब भाभी जो सुने, वो सुनती रहे और जो सोचे, वो सोचती रहे.
"नही, उसको इस बारे में कुछ पता नही चलना चाहिए, वो उठ गयी तो सब गड़बड़ हो जाएगा." धीरज फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ में इस बार आदेश था.
संध्या ने अपनी आँखें बंद किए हुए ही, बस अपनी गर्दन हिला दी, और अपने होंठों को दाँतों से काटते लगी, उसको अपने भैया का लंड अपनी चूत में गहराई तक लेकर अपार आनंद में खोई हुई थी. धीरज धीरे धीरे लंड को अपनी छोटी बेहन की तड़प रही चूत में पेलने की गति को बढ़ाए जा रहा था. वो अभी भी उसकी गान्ड को हाथ में उठाए हुए था, और बीच बीच में नीचे उसको अपने लंड के उपर खींच लेता. संध्या अब अपने भैया के उपर थोड़ा सा झुक गयी, जिस से उसकी चूंचियाँ, धीरज की छाती से घिसने लगी. हर झटके के साथ, संध्या के कराहने की आवाज़ तेज होती जा रही थी, ये देखते हुए, धीरज ने उसको शांत करने के लिए उसके होंठों को किस करना शुरू कर दिया, और नीचे धीरे धीरे झटके मार के उसकी चुदाई करने लगा.
कुछ देर बाद, झटके मारने की स्पीड बढ़ने लगी, और उस दरार में से मुझे सॉफ दिखाई दे रहा था, कि हर झटके के साथ, उन दोनो के शरीर भी आपस में रगड़ रहे थे. तभी बड़ी सफाई के साथ, धीरज ने अपनी छोटी बेहन को नीचे चित्त बेड पर लिटा दिया, और उसके पास अपने घुटनों पर बैठ गया. फिर संध्या की गान्ड को घुमा कर अपनी तरफ किया, जिस से संध्या घुटनों और हथेलियों के बल, घोड़ी बन गयी. उनके इस पोज़ में दोनो का चेहरा मेरी तरफ था, लेकिन अंदर ज़्यादा रोशनी और गॅलरी में अंधेरा होने के कारण वो दोनो मुझे देख नही पा रहे थे. संध्या के काले काले बाल उसके चेहरे को ढक कर नीचे लटक रहे थे, बालों के पीछे संध्या की नीचे झूलती हुई चूंचियाँ नज़र आ रही थी, और उसके पीछे मैने देखा धीरज ने, संध्या की दोनो टाँगों के बीच, अपने लंड को हाथ में पकड़ रखा था, और संध्या की गीली चूत की दरार के उपर लंड के सुपाडे को घिस रहा था, और फिर उसने पूरा लंड संध्या की चूत में पेल दिया. धीरज ने संध्या को हिप्स की साइड से पकड़ा हुआ था, और पीछे से उसकी मस्त चुदाई कर रहा था. हर झटके के साथ उसकी स्पीड बढ़ती जा रही थी, और वो ज़्यादा से ज़्यादा अंदर पेल रहा था. उसको बिल्कुल याद नही था, की उसकी बीवी अपने बेडरूम में अकेली सो रही है. वो तो बस अपनी छोटी बेहन को घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत मारने में खोया हुआ था, और अब उसके हर झटके के साथ, पलंग के चरमराने की आवाज़ भी सुनाई देने लगी थी.
उन दोनो को इस तरह से चुदाई देख कर, मैं भी गरम हो गयी थी, और अपनी चूत में उंगली डाल के ये कल्पना कर रही थी, मानो धीरज मुझे चोद रहा हो. जैसे ही धीरज ज़ोर का झटका मारता, उसकी गोलियों की गीली चूत के नीचे टकराने की आवाज़ सुनाई दे जाती. उन दोनो को इस बात का बिल्कुल होश नही था, कि वो कितनी ज़्यादा आवाज़ कर रहे हैं, वो तो बस चुदाई की मस्ती में खोए हुए थे. जैसे ही धीरज ने हाथ नीचे लेजाकर, संध्या की लटक रही चूंचियों के निपल्स को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच लेकर, थोड़ा सा घुमाया, संध्या की घोड़ी बनाकर पीछे से चुदाई करवाते हुए, मूँह से एक गहरी आहह निकल गयी. धीरज भी अब ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रहा था, और लंड को संध्या की चूत में पेलते हुए, उसने उसकी गान्ड को इस कदर ज़ोर से पकड़ रखा था, कि उसके नाख़ून भी संध्या की गान्ड की गोलाईयों में गढ़ रहे थे.
दीदी ने आगे बताना शुरू किया.....
मैं इस सब को देख कर, इतना ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, मुझे मेरे और तेरे बीच जो कुछ हुआ था, वो सब कुछ याद आने लगा था, मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी, इतनी शरम कि मैं ना तो कुछ बोल ही पाई, और ना ही उन दोनो को रोक ही पाई. सब कुछ देखते हुए, मेरा हाथ अभी भी पैंटी के अंदर घुसा हुआ था, और मेरी चूत को सहला रहा था.....
धीरज अब भी अपनी बेहन की जांघों को किस किए जा रहा था, और आगे बढ़ते हुए, वो संध्या की शेव्ड चिकनी चूत तक पहुँच गया. धीरज ने धीरे से उस चूत की दरार पर एक छोटा सा किस किया, और अपने मूँह की गर्माहट से उसकी नंगी चूत को पिघलाने की कोशिश करने लगा. धीरज अपनी सग़ी छोटी बेहन की चूत की दरार पर धीरे धीरे, प्यार से हर किस के साथ, उसकी चूत के होंठों को चूम रहा था. धीरज धीरे से उसकी दोनो टाँगो के बीच झुक गया, और फिर संध्या की चूत को नीचे से उपर तक चाटने लगा, और फिर अपनी मुलायम, गीली जीभ को, अपनी सग़ी बेहन की चूत में घुसाने लगा, और फिर बाहर निकाल कर संध्या की चूत के दाने को अपनी जीभ को पायंटेड कर बार बार छेड़ देता. ये सब देखते हुए, मेरा ध्यान धीरज के फूँकार मारते हुए लंड की तरफ गया, मैं पहले की तरह उतनी ही ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी और मेरी चूत उतनी ही गीली हो गयी, जितनी जब संध्या को कपड़े उतारकर नंगा होता हुआ देख कर हुई थी.
धीरज ने धीरे से संध्या की चूत पर से अपना मूँह दूर किया, अपने हाथ की बीच वाली उंगली को मूँह में डाल के थोड़ा सा चूसा, और फिर अपनी बेहन की चूत में उसको हल्के हल्के घुसाने लगा. संध्या अभी भी अपनी आँखें बंद कर के ऐसा नाटक कर रही थी मानो सो रही हो. मैं धीरज के हाथ को आगे पीछे होते हुए देख रही थी, ये जानते हुए कि वो अपनी उंगली संध्या की चूत में अंदर बाहर कर रहा है.संध्या अब ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी, और उसकी भारी छाती नाइट लेम्प की रोशनी में उपर नीचे होने लगी. तभी मेरे कानों में एक हल्की सी फॅक की आवाज़ सुनाई दी. ये संध्या की गीली हो चुकी चूत की थी, जो अपने सगे भाई की उंगली का अपनी चूत में स्वागत कर रही थी. मुझे विश्वास ही नही हुआ, कि उसकी चूत भी इतनी जल्दी इतनी ज़्यादा चिकनी हो चुकी है.
धीरज, बिना रुके अपनी सुंदर सी सग़ी छोटी बेहन की चूत को उंगली से चोदे जा रहा था, और फिर वो जल्दी से बेड की साइड पर हो गया. और दान्यें हाथ से, संध्या की चूंचियों की गोलाईयों को अपने हाथ की उंगलियों से गोल गोल सहलाने लगा, और उसके कड़े होते हुए निपल्स को देखने लगा, जिसके सब तरफ से रोंगटे खड़े हुए थे. फिर धीरज ने संध्या के गालों को एक हाथ से सहलाया, और फिर अपनी बेहन के होंठों पर एक प्यार भरी किस ले ली. ये किस शुरू में तो थोड़ी छोटी और सादा ही शुरू हुई थी, लेकिन ये आगे बढ़ती गयी, और गहरी होती चली गयी. मैं संध्या की छाती और उभारों को अचरज से हर सेकेंड और ज़ोर से उपर नीचे होते देख रही थी, जैसे जैसे धीरज, संध्या को चूमते हुए, अपनी उंगली की उसकी चूत में अंदर बाहर करने की रफ़्तार को बढ़ाता जा रहा था.
संध्या ने ऐसे नाटक करते हुए जैसे कि कोई सपना देख रही हो, अपना हाथ बढ़ा कर, धीरज के सिर पर रख दिया, और मूँह खोलकर उसके किस का जवाब देने लगी. मुझे अच्छी तरह से पता था कि वो जाग रही है. और फिर वो थोड़ा आधा सा बैठते हुए, अपने बड़े भाई की गर्दन को चूमने लगी. वो किसी भूखी शेरनी की तरह, धीरज की छाति और फिर कमर को चूमते हुए, उसके फूँकार मार रहे लंड तक पहुँच गयी. धीरज समझ गया, और उसकी बाजू में लेट गया, उसके लेटते ही संध्या ने धीरज के लंड को पकड़ लिया, और फिर नीचे से उपर तक लंड को किस किया, हर किस के साथ धीरज का लंड थोड़ा फडक जाता. संध्या ने फिर से लंड को नीचे से शुरू करते हुए उपर तक चाटना शुरू कर दिया. वो लंड को नीचे की तरफ से चाट रही थी, धीरज के टट्टों की गोलियों से लेकर उपर सुपाडे तक, और हर बार उपर पहुँचने पर सुपाडे के छेद को अपनी जीभ से छेड़ देती. संध्या ने एक पल, सिर उपर उठा कर अपने भैया की तरफ देखा, और फिर उसके लंड को पूरा अपने मूँह में भर लिया, जितना अंदर ले जा सकती थी, वो लंड को उतना अपने मूँह के अंदर ले गयी. फिर वो लंड के सुपाडे को चूसने लगी, शुरुआत में धीरे धीरे, और फिर रफ़्तार पकड़ते हुए. संध्या ने एक हाथ से धीरज के लंड को नीचे से पकड़ रखा था, जिस से लंड को अपने गरम गरम मूँह में घुसने में आसानी हो, और अपना दूसरा हाथ चूत के दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, ऐसा करते हुए वो घुटनों के बल, अपने पैर चौड़ा कर उसके बगल में घोड़ी बन गयी. और फिर एक लंबी आआहह भरते हुए अपने भैया के लंड को ज़्यादा से ज़्यादा अपने मूँह में अंदर ले गयी. मुझे लगा, ऐसा करने से धीरज को भी अच्छा लगा था, क्योंकि उसने अपनी गान्ड उँचका दी, और अपना लंड अपनी छोटी बेहन के और ज़्यादा अंदर, गले तक पेल दिया.
मुझे लगा कि मैं भी अब झड्ने के करीब पहुँच चुकी हूँ, इसलिए मैने ना चाहते हुए भी अपनी उंगली की चूत पर घिसने की रफ़्तार को थोड़ा धीमा कर दिया. मैं भी धीरज और संध्या के साथ ही झड्ना चाहती थी, एक पल भी उन्दोनो से पहले नही. मेरा एक हाथ मेरी चूंचियों को दबा रहा था, और उन भाई बेहन के चूत लंड के खेल को देख कर मैं गरम हुए जा रही थी. मैं सब कुछ देख रही थी, संध्या ने अपने भाई के पास बैठते हुए, अपनी दोनो टाँगें चौड़ी कर ली, और मुझे उसकी गीली हो चुकी चूत सॉफ दिखाई दे रही थी, जिस को संध्या अपनी उंगली से घिस रही थी. साध्या के कराहने की आवाज़ अब तेज होने लगी थी, लगता था वो अब एक दूसरे के साथ के फोरप्ले से आगे बढ़ना चाहती है. संध्या ने अपने भैया की छाति पर झुकते हुए, धीरज को बेड पर सीधा लिटा दिया, और अपनी चूत की तरफ एक हाथ ले जाकर, अपने भैया के फुन्फनाते हुए गीले लंड को पकड़ के अपनी चुदने के लिए बेकरार चूत के मूँह पर लगा लिया.
"मुझे अब प्लीज़...छोड़ दो भैया" वो फुसफुसाई.
मैं चुप चाप रूम के बाहर खड़ी, दरार में से सब कुछ देख और सुन रही थी, इतना सुनकर धीरज के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी. और धीरज ने अपनी छोटी बेहन की गान्ड को कस के पकड़ लिया, और उसको वैसे ही पकड़ कर, अपने लंड के उपर नीचे आने से रोक लिया.
"प्लीज़, भैया , मुझे इसे अंदर डाल लेने दो ना! मैं अच्छे से करूँगी." संध्या फिर से रीरियाते हुए फुसफुसाई.
धीरज उसको वैसे ही पकड़े रहा, और अपने लंड के सुपाडे को उसकी फुदक रही चूत को छूते हुए उसे चिढ़ाने लगा.
"प्लीज़... चोद दो भैया..." संध्या और कुछ नही बोल पाई, तभी उसके बड़े भाई ने अपना पूरा लंड उसकी चूत में घुसा दिया. ये इतना जल्दी हुआ, कि संध्या के मूँह से एक ज़ोर से दर्द भरी आहह निकल गयी.
"ष्ह, तुम्हारी भाभी सुन लेगी" धीरज फुसफुसाया, और उसकी छोटी बेहन का मूँह चुदाई का आनंद लेते हुए अपने आप खुल गया, और उसमे से परम सुख की आहें निकलने लगी.
कुछ देर ऐसी ही घुटि घुटि आहें निकालने के बाद , वो फिर से फुसफुसाई, “भैया, अब मुझसे बर्दाश्त नही होता, तुम्हारा लंड मेरी चूत में घुसता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. प्लीज़, अब भाभी जो सुने, वो सुनती रहे और जो सोचे, वो सोचती रहे.
"नही, उसको इस बारे में कुछ पता नही चलना चाहिए, वो उठ गयी तो सब गड़बड़ हो जाएगा." धीरज फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ में इस बार आदेश था.
संध्या ने अपनी आँखें बंद किए हुए ही, बस अपनी गर्दन हिला दी, और अपने होंठों को दाँतों से काटते लगी, उसको अपने भैया का लंड अपनी चूत में गहराई तक लेकर अपार आनंद में खोई हुई थी. धीरज धीरे धीरे लंड को अपनी छोटी बेहन की तड़प रही चूत में पेलने की गति को बढ़ाए जा रहा था. वो अभी भी उसकी गान्ड को हाथ में उठाए हुए था, और बीच बीच में नीचे उसको अपने लंड के उपर खींच लेता. संध्या अब अपने भैया के उपर थोड़ा सा झुक गयी, जिस से उसकी चूंचियाँ, धीरज की छाती से घिसने लगी. हर झटके के साथ, संध्या के कराहने की आवाज़ तेज होती जा रही थी, ये देखते हुए, धीरज ने उसको शांत करने के लिए उसके होंठों को किस करना शुरू कर दिया, और नीचे धीरे धीरे झटके मार के उसकी चुदाई करने लगा.
कुछ देर बाद, झटके मारने की स्पीड बढ़ने लगी, और उस दरार में से मुझे सॉफ दिखाई दे रहा था, कि हर झटके के साथ, उन दोनो के शरीर भी आपस में रगड़ रहे थे. तभी बड़ी सफाई के साथ, धीरज ने अपनी छोटी बेहन को नीचे चित्त बेड पर लिटा दिया, और उसके पास अपने घुटनों पर बैठ गया. फिर संध्या की गान्ड को घुमा कर अपनी तरफ किया, जिस से संध्या घुटनों और हथेलियों के बल, घोड़ी बन गयी. उनके इस पोज़ में दोनो का चेहरा मेरी तरफ था, लेकिन अंदर ज़्यादा रोशनी और गॅलरी में अंधेरा होने के कारण वो दोनो मुझे देख नही पा रहे थे. संध्या के काले काले बाल उसके चेहरे को ढक कर नीचे लटक रहे थे, बालों के पीछे संध्या की नीचे झूलती हुई चूंचियाँ नज़र आ रही थी, और उसके पीछे मैने देखा धीरज ने, संध्या की दोनो टाँगों के बीच, अपने लंड को हाथ में पकड़ रखा था, और संध्या की गीली चूत की दरार के उपर लंड के सुपाडे को घिस रहा था, और फिर उसने पूरा लंड संध्या की चूत में पेल दिया. धीरज ने संध्या को हिप्स की साइड से पकड़ा हुआ था, और पीछे से उसकी मस्त चुदाई कर रहा था. हर झटके के साथ उसकी स्पीड बढ़ती जा रही थी, और वो ज़्यादा से ज़्यादा अंदर पेल रहा था. उसको बिल्कुल याद नही था, की उसकी बीवी अपने बेडरूम में अकेली सो रही है. वो तो बस अपनी छोटी बेहन को घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत मारने में खोया हुआ था, और अब उसके हर झटके के साथ, पलंग के चरमराने की आवाज़ भी सुनाई देने लगी थी.
उन दोनो को इस तरह से चुदाई देख कर, मैं भी गरम हो गयी थी, और अपनी चूत में उंगली डाल के ये कल्पना कर रही थी, मानो धीरज मुझे चोद रहा हो. जैसे ही धीरज ज़ोर का झटका मारता, उसकी गोलियों की गीली चूत के नीचे टकराने की आवाज़ सुनाई दे जाती. उन दोनो को इस बात का बिल्कुल होश नही था, कि वो कितनी ज़्यादा आवाज़ कर रहे हैं, वो तो बस चुदाई की मस्ती में खोए हुए थे. जैसे ही धीरज ने हाथ नीचे लेजाकर, संध्या की लटक रही चूंचियों के निपल्स को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच लेकर, थोड़ा सा घुमाया, संध्या की घोड़ी बनाकर पीछे से चुदाई करवाते हुए, मूँह से एक गहरी आहह निकल गयी. धीरज भी अब ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रहा था, और लंड को संध्या की चूत में पेलते हुए, उसने उसकी गान्ड को इस कदर ज़ोर से पकड़ रखा था, कि उसके नाख़ून भी संध्या की गान्ड की गोलाईयों में गढ़ रहे थे.