Chodan Kahani छोटी सी भूल - Page 5 - SexBaba
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Chodan Kahani छोटी सी भूल

तभी अचानक वो मेरा नाडा खोलने लगा पर मैने उसे रोक दिया.

मैने कहा, बस रुक जाओ.

पर वो नही माना और बोला, मेडम जी क्या आप अपनी नही दीखाओगि, मैने भी तो आपको अपना दीखया है.

और एक झटके में उसहने मेरा नाडा खोल दिया और मेरी सलवार नीचे सरका दी.

वो नीचे बैठ गया और मेरी पॅंटी नीचे सरकाने लगा.

मैं आँखे बंद कर के खड़ी हो गयी.

वो बोला, सबसे सुंदर, मैने एक से एक, चूत देखी है पर आपकी तो बस पूछो मत, जो भी आपसे शादी करेगा उसे तो जन्नत मिल जाएगी.

मैने अपने चेहरे पर हाथ रख लिए.

फिर मुझे महसूस हुवा की वो मुझे वाहा चूम रहा है.

मैने आँखे खोल कर देखा तो पाया कि वो बड़े प्यार से मेरी योनि को चूम रहा था.

फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरी योनि को चाटने लगा.

मुझे बिल्कुल नही पता था कि ओरल सेक्स ऐसा होगा. मुझे बहुत अछा लग रहा था. मैं जानती थी कि जो भी हो रहा है ग़लत है पर मैं सब कुछ भुला कर अपने पहले सेक्स के अनुभव का मज़ा ले रही थी.

मेरी योनि कब अंदर तक गीली हो गयी पता ही नही चला.

अचानक अशोक उपर उठा और अपने पेनिस को मेरी योनि के पास ले आया.

मैने कहा, प्लीज़ अब रुक जाओ, मैं वर्जिन हू

वो बोला, मेडम जी, इसे भी आपकी चूत की एक किस ले लेने दो, ये इननी सुंदर चूत चूम कर धन्य हो जाएगा.

और उसने अपने पेनिस का मूह मेरी योनि के होल पर रख दिया.

वो बोला, देखो मेडम कितने प्यार से दोनो किस कर रहे है.

मैने नीचे झाँक कर देखा तो पाया कि उसका पेनिस मेरी योनि पर बिल्कुल सटा हुवा था.

मैने कहा, बस अब हटा लो, कोई देख लेगा.

वो बोला, यहा कोई नही है, बारिश बहुत तेज है, कोई भी हमे यहा नही देख पाएगा.

मैने कुछ नही कहा और उशके पेनिस को अपने वाहा फील करने लगी.

वो बोला, मेडम जी थोड़ा अंदर लेकर देखोगी.

मैने कहा, नही मैं अपनी वर्जिनिटी नही खोना चाहती.

वो बोला, बस एक इंच से कुछ नही बिगड़ेगा थोडा सा

अंदर ले लो ना.

मैने कहा, नही ये नही हो सकता, मेरी वर्जिनिटी चली जाएगी.

वो बोला, मेडम जी मेरा विश्वास करो ऐसा कुछ नही होगा, बस थोडा से अंदर ले कर तो देखो.

और ये कह कर उसने एक हल्का सा धक्का मारा और उसका अचानक मेरे अंदर घुस्स गया, मैं चिल्ला उठी आआआआआआयययययययययययययीी

ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई

मुझे यकीन हो गया कि उष्का वाकाई में बड़ा है, क्योंकि इतना दर्द छोटे से नही हो सकता था.”

ये सब सुन कर दीप्ति और मैं हैरान रह गये.
 
दीप्ति बोली, बड़ी चालाकी से उसने तेरे अंदर डाल दिया और तू खामोशी से खड़ी रही.

नेहा बोली, यार मुझे कुछ नही पता था कि ऐसा हो जाएगा, मैं तो बस एक अजीब से नशे में थी.

दीप्ति ने पूछा फिर क्या उसने निकाल लिया या फिर……..

नेहा ने कहा,

“ थोड़ा सा डाल कर वो रुक गया और बोला, बस मेडम जी थोड़ी देर में दर्द ख़तम हो जाएगा.

मैने कहा प्लीज़ निकाल लो इसे मैं मर जाउन्गि.

वो बोला, आज तक कोई नही मरा मेडम जी और धीरे से थोड़ा सा और अंदर सरका दिया.

मैं फिर से चीख उठी आआआहह

बस रुक जाओ, और नही

वो बोला, मेडम जी कुछ नही होगा बस थोड़ा सा और जाने दो.

ये कहते हुवे इस बार उसने पूरा मेरे अंदर घुस्सा दिया.

मैं ज़ोर से चिल्ला उठी आबीयेयायीयियीयैआइयैयियैयीयीयीयियी… नही रुक जाओ,

वो बोला, बस थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा.

मैने कहा, तुमने पूरा क्यो डाला.

वो बोला, मेडम आपकी बहुत चिकनी हो रखी है, उसी ने मेरे लंड को खींच लिया.

मैं शरमा गयी और बोली तुम एक नंबर के झुटे हो.

वो बोला, मेडम जी कुछ पाने के लिए कयि बार झूठ भी बोलना पड़ता है.

अब मुझे अपने वाहा दर्द महसूस नही हो रहा था.

वो बोला, मेडम जी आप कहे तो मैं अब आपकी मार लू.

मैने कहा तुमने सिर्फ़ किस की बात की थी और अब ये पूरा मेरे अंदर घुस्सा दिया, जल्दी निकालो.

वो बोला, ठीक है मेडम और अपने पेनिस को बाहर निकाल लिया.

पर फिर एक झटके में फिर से पूरा घुस्सा दिया.

मैं फिर से चीन्ख पड़ी.

वो बोला, अब में आपकी मारे बिना नही रह सकता, आप जैसी सुंदर लड़की रोज कहा मिलेगी.

वो अब पूरे जोश में आगे पीछे होने लगा.

मैं पहले सेक्स के खुमार में खोती चली गयी.

मैने उसे फिर रोकने की कोशिस नही की.
 
मैने उस से पूछा अगर में प्रेग्नेंट हो गयी तो.

वो बोला, एक बार से कुछ नही होता मेडम और धक्के मारता रहा

वो बहुत देर तक लगा रहा और आख़िर में तेज, तेज धक्के मार कर रुक गया. उसने मुझे अंदर से और ज़्यादा गीला कर दिया.”

दीप्ति गुस्से में बोली, तो तू उस कामीने अशोक को अपना सब कुछ दे बैठी.

नेहा ने धीरे से कहा मैं क्या करती मैं बहक गयी थी, सेक्स का ये मेरा पहला अनुभव था.

दीप्ति ने पूछा, तो क्या उसके बाद भी उसने कभी तेरे साथ कुछ किया.

नेहा बोली, एक बार सेक्स का मज़ा पा कर मेरी बार बार इच्छा होने लगी, और वो तो हर वक्त तैयार रहता है. वो अक्सर मुझे अपने घर ले जाता है.

दीप्ति बोली, और ती चुपचाप उसके साथ चली जाती है.

नेहा ने कोई जवाब नही दिया.

थोड़ी देर बाद नेहा बोली, एक दिन अशोक जब मुझे रात के 11 बजे कॉलेज छोड़ने आया तो, हॉस्टिल के वॉचमेन ने हमे देख लिया, शायद उसी ने हमारे बारे में अफवाह फैलाई है. मैं अब परेशान हू कि क्या करू.

दीप्ति ने कहा, करना क्या है फॉरन उस कामीने से पीछा छुड़ा और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे”

उस रात ये घटना इस लिए याद आ गयी थी क्योंकि नेहा की तरह मैं भी अशोक के हाथो लूट चुकी थी.

पर मैं नेहा की तरह मजबूर नही बन-ना चाहती थी इश्लीए मैने फ़ैसला किया कि अब अशोक की कोई चाल कामयाब नही होने दूँगी.

ये सब सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गयी पता ही नही चला.

अगले दिन मैं दिल में एक नयी उमीद ले कर उठी.

मैं संजय और चिंटू के जाने के बाद मौसी के यहा चली गयी ताकि मेरा ध्यान पीछले दिन की घटना से हट जाए.

सारा दिन शांति से बीत गया, कोई भी ऐसी वैसी घटना नही हुई.

मुझे ख़याल आया मुझे संजय की बताई कंपनी में जा कर देखना चाहिए, और मैने फ़ैसला किया कि मैं कल सुबह वाहा जा कर देख कर आती हू.

अगले दिन में सुबह संजय की बताई कंपनी में जाने को तैयार हो गयी.

संजय ने कहा, मैं तुम्हे बाहर बस स्टॉप तक छोड़ दूँगा.

मैने कहा ठीक है.

संजय ने मुझे बस स्टॉप पर छोड़ दिया.

मैं बस का इंतेज़ार करने लगी. मुझे ये अछा लग रहा था कि आज बहुत दीनो बाद कुछ अछा होने जा रहा है.

अपने पैरो पर खड़े होने का मेरा बहुत दीनो से सपना था. मैं प्रे कर रही थी कि सब कुछ ठीक निकले.

मैं पीछले दीनो के दुख भुला देना चाहती थी.

पर अभी बस 2 मिनूट ही हुवे थे कि सब कुछ फिर से बिगड़ता हुवा दीखाई दिया.

सामने से वही साइकल वाला आदमी आ रहा था, उसकी नज़र मुझ पर पहले पड़ गयी और उसने मुझे पहचान लिया, वरना मैं पहले ही वाहा से हट जाती.

मैं सोचने लगी की इस कम्बख़त को भी अभी आना था, किस मनहूस की शकल देख ली, जाने मेरी नौकरी का क्या होगा ?

उसने अपनी साइकल एक तरफ खड़ी कर दी और बस स्टॉप पर मुझ से थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया.

मैने मन ही मन सूकर मनाया की अछा है यहा और लोग भी है वरना ये मुझे परेशान करता.

अचानक वो मेरी तरफ बढ़ा, और मेरे सामने से शीटी बजता हुवा निकल गया.

मैने मन ही मन कहा, कमीना कही का, आ गया अपनी औकात पर.
 
वो अब दूसरी तरफ खड़ा हो गया.

मैने उसकी और तिरछी नज़र से देखा, तो पाया कि वो एक तक मेरी तरफ ही देख रहा है.

उसने मुझे उसे देखते हुवे देख लिया और झट से अपना लिंग मसल्ने लगा.

मैने फॉरन अपनी नज़रे घुमा ली.

तभी मुझे दूर से एक बस आती हुई दीखाई दी.

मैने पास में खड़ी एक लेडी से पूछा, ये बस क्या एमजी रोड तक जाएगी ?

उसने कहा हा जाएगी पर थोड़ा वक्त लेगी.

मैने सोचा यहा रुकना ठीक नही है इसी बस में चल देती हू.

जैसे ही बस रुकी, लोगो ने बस के गेट को घेर लिया, मैं सब से पीछे रह गयी. मैने पीछे मूड कर देखा तो वो आदमी मुस्कुरा रहा था.

मैं हर हाल में बस में चढ़ना चाहती थी. मुझे लग रहा था कि यहा बस स्टॉप पर रुकना ठीक नही है, ये आदमी बे-वजह परेशान करेगा.

जैसे तैसे में भी बस में चढ़ ही गयी, और चैन की साँस ली.

पर परेशानी ये थी कि मैं सबसे आख़िर में गेट के बिल्कुल पास खड़ी थी, और बस खचखुच भरी हुई थी.

बस चली ही थी कि वो आदमी भी बस में चढ़ गया और मेरे बिल्कुल पीछे सॅट गया. मुझे यकीन ही नही हुवा.

वो अपनी साइकल छोड़ कर बस में चढ़ जाएगा मैने सोचा भी नही था, वरना में इस भीड़ भरी बस में कभी ना चढ़ती

मेरे आगे काफ़ी लोग थे. में बस के बिल्कुल गेट पर थी और मेरे पीछे वो घिनोना आदमी. बहुत ही बेकार सिचुयेशन थी वो मेरे लिए. एक पल को तो मन हुवा की बस से कूद जा-ऊँ, पर फिर सोचा कि शायद थोड़ी देर में कुछ लोग उतर जाएँ तो कोई शीट खाली हो.

वो धीरे से बोला, क्या बात है मेरी जान आज अकेली कहा जा रही हो, वो तेरा यार कहा है.

मैने कोई रिक्षन नही किया.

वो बोला, आज मेरे साथ चल, तुझे खुस कर दूँगा.

मैने पीछे मूड कर गुस्से से उसे देखा.

पर उस पर कोई असर नही हुवा.

वो बोला, तू गुस्से में बहुत प्यारी लगती है पर कभी मेरी तरफ प्यार से भी देख लिया कर, मैं भी तेरा एक दीवाना हू.

मैने कहा, तुम यहा से दफ़ा होते हो कि नही.

वो बड़ी बेशर्मी से बोला, “नही मेरी जान आज तू नही बचेगी” और ये कहते हुवे मेरे नितंबो को दबोच लिया.

मैने उसका हाथ वाहा से झटक दिया.

मैं किसी और मुसीबत में नही फँसना चाहती थी. मुझे ख्याल आया कि मुझे किसी तरह से वाहा से आगे चलना चाहिए, पर आगे जाना आसान नही था.

मैं ये सब सोच ही रही थी कि मुझे अपने नितंबो पर उसका लिंग महसूस हुवा. मैं हड़बड़ा गयी.
 
मैं बहुत कोशिस करके लोगो को पीछे हटाते हुवे वाहा से आगे चली गयी, और जिस लेडी से मैने बस के बारे में पूछा था, उसके पास आ कर खड़ी हो गयी.

मुझे यकीन था कि उस लेडी के साथ में सुरक्षित हू.

तभी वो भी भीड़ को चीरते हुवे मेरे पास आ गया.

मेरे बाई तरफ वो लेडी खड़ी थी और मेरे पीछे कोई मोटा सा आदमी खड़ा था जो की देखने में भले घर का लग रहा था, क्योंकि वो बिल्कुल मुझ से थोड़ी दूरी बनाए खड़ा था.

वो साइकल वाला, मेरे पास खड़ी लेडी के पीछे खड़ा हो गया.

मैं पहली बार बस में ऐसा माहॉल देख रही थी.

अचानक मेरे पास खड़ी लेडी थोडा आगे बढ़ गयी.

ये सॉफ था कि वो उस साइकल वाले से परेशान होकर ही आगे बढ़ी थी.

पर वो साइकल वाला भी उसके पीछे पीछे आगे बढ़ गया. अब वो दोनो बिल्कुल मेरी आँखो के सामने थे.

मेरे पीछे वही मोटा आदमी खड़ा था.

मुझे कोई तकलीफ़ नही थी बजाए इशके कि वो साइकल वाला, उस लेडी से छेड़छाड़ कर रहा था. पर मेरी तरह और लोग भी ये नज़ारा देख रहे थे, कोई कुछ नही बोल रहा था.

मुझे अफ़सोश हो रहा था कि मेरी नजाह से वो लेडी मुसीबत में फँस गयी थी.

मैं अपना ध्यान वाहा से हटा कर अपनी जॉब के बारे में सोचने लगी कि कैसी होगी ये नौकरी, मुझे अछी लगेगी कि नही.

अचानक मैने पाया कि वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को बड़ी बेशर्मी से सरेआम मसल रहा है, और वो लेडी चुपचाप सब कुछ सह रही है.

मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, पर उस भीड़ में जब सब चुपचाप तमाशा देख रहे थे तो में भी ऐसे में क्या कर सकती थी.

वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को मसल्ते मसल्ते मेरी और सर घुमा कर बोला, तू कहे तो तेरे पीछे आ कर तेरी सेवा भी कर दू.

मैने अपनी नज़रे फिरा ली.

वो अपने काम में लगा रहा.

मैं सोच रही थी की आख़िर ये सब औरत के साथ क्यो होता है ?

मैं इन सब विचारो में खोई थी कि मुझे मेरे नितंबो पर कुछ महसूस हुवा.

मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि वो मोटा आदमी मेरे बिल्कुल करीब आ गया है. मुझे पूरा यकीन था कि अभी जो मुझे महसूस हुवा वो उसका वो था.

मैं अब और ज़्यादा परेशान हो गयी. जिशे अछा आदमी समझा था वो भी एक नंबर का कमीना निकला.

मैने गुस्से में उसकी और देखा तो वो थोडा पीछे हो गया.

मैने दुबारा अपने सामने नज़रे उठा कर देखा तो पाया कि वो साइकल वाला अपनी ज़िप खोल रहा है.

मैं हैरान रह गयी कि आख़िर सारे आम वो ऐसा कैसे कर सकता है ?

उसने अपना लिंग निकाल कर उस लेडी के नितंबो में फँसा दिया.

मैं सब कुछ देख कर हैरान हो रही थी.

वो फिर मेरी और मुड़ा और बोला, देख ये कितना मज़ा ले रही है और एक तू है जो मुझ से दूर भागती है.

उसका लिंग अब मेरी आँखो के सामने था.

जैसा उसका चेहरा भयानक था, वैसे ही उसका लिंग भी बहुत भयनक था, वो बिल्कुल अशोक के साइज़ का लग रहा था.

उसने फिर से उस लेडी के नितंबो के बीच अपना लिंग फँसा दिया और हल्के हल्के धक्के मारने लगा.
 
मैने उस लेडी को देखा तो पाया कि वो आँखे बंद किए चुपचाप खड़ी थी. मुझे नही पता कि वो सब कुछ एंजाय कर रही थी या नही. ये बात उसके अलावा कोई नही बता सकता था.

तभी अचानक मुझे अपने नितंबो पर फिर से कुछ अहसास हुवा.

मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि उस मोटे आदमी ने अपना हाथ मेरे नितंबो पर रख रखा था.

मैने उसका हाथ दूर झटक दिया और वो मेरी और देख कर मुस्कुरा दिया.

उस मोटे आदमी की हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

मैं सोच रही थी कि क्या करू अब.

मुझे ख्याल आया कि मुझे बस से उतार जाना चाहिए.

अचानक वो साइकल वाला मुड़ा और उसने उस लेडी का हाथ पकड़ा और अपने लिंग पर रख दिया.

मैं हैरान रह गयी कि उस लेडी ने चुपचाप उशके लिंग को हाथ में थाम लिया. मुझे समझ नही आ रहा था कि आख़िर उसकी मजबूरी क्या है, ये सब करने की.

फिर मुझे ख्याल आया कि शायद वो बहक गयी है. जैसे मैं बहक गयी थी बिल्लू के साथ.

वो मुझ से बोला, मेरी जान चुपचाप क्या देख रही है तू भी पकड़ ले.

मैने अपनी नज़रे झुका ली.

मैं बस हैरानी से सब देख रही थी मुझे वाहा कुछ अछा नही लग रहा था.

अचानक बस रुक गयी, वो लेडी झट से आगे बढ़ गयी और बस से उतर गयी. साइकल वाले ने झट से अपना लिंग अंदर कर लिया. सब कुछ एक मज़ाक सा लग रहा था.

बस तुरंत चल पड़ी.

मैने अपने पीछे खड़े एक दूसरे आदमी से पूछा, एमजी रोड कब आएगा. वो बोला, जी वो तो अभी देर में आएगा. ये बस बहुत घूम कर वाहा जाएगी, आपको कोई दूसरी बस लेनी चाहिए थी.

मैं वाहा से हटना चाहती थी पर समझ नही आ रहा था कि कहा जा-ऊँ. कोई शीट भी खाली नही हो पाई थी.

मैं इशी कसंकस में थी कि वो साइकल वाला मेरे पीछे आ गया और मुझ से सॅट कर खड़ा हो गया.

वो मोटा आदमी मेरे दाई ओर आ गया.

मुझे अहसास हो गया कि अब वाहा रुकना ठीक नही है.

साइकल वाले ने मेरे कान में कहा, जैसे उसने मज़ा लिया, तू भी ले, ले.

मैं सोच रही थी कि अब क्या करू. मेरे आगे पीछे हर तरफ आदमी थे. मैं ना पीछे जा सकती थी ना आगे.

फिर भी मैने एक कोशिस की. मैं थोड़ा आगे बढ़ गयी.

पर सब बेकार रहा वो साइकल वाला भी बिल्कुल मेरे कदमो से कदम मिलाता हुवा मेरे साथ साथ आ गया और मेरे पीछे सॅट कर खड़ा हो गया.

वो मेरे कान में बोला, कब तक तड़पावगी मेरी जान. थोड़ा रुक जाओ, यहा शरम आती है तो मेरे घर चलते है, कसम से तेरी जवानी की पूरी तस्सल्ली कर दूँगा.

मैने गुस्से में कहा तुम्हे कोई ग़लत फ़हमी हुई है, मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नही हू.

वो बोला, तू जैसी भी है मस्त है, मेरे साथ चल तुझे खुस कर दूँगा, अगर पैसे की बात है तो वो बता, मैं 1000 देने को तैयार हू.

मेरे दिल पर ये सब सुन कर क्या बीत रही थी मैं ही जानती हू.

बिल्लू के कारण और मेरी खुद की भूल के कारण मुझे ये सब सुनना पड़ रहा था.

चारो और लोग पहले की तरह तमाशा देख रहे थे.

बल्कि अब तो सभी लोगो की आँखो में हवश उतर आई थी

उसने मेरा हाथ ज़ोर से पकड़ा और बोला, अब तेरी बारी है ये लंड पकड़ने की, और झट से मेरा हाथ अपने लिंग पर रख दिया.

मेरे शरीर में बीजली की ल़हेर दौड़ गयी.

मैने बड़ी मुस्किल से वाहा से हाथ हटाया.
 
मैं भीड़ को जैसे तैसे हटा कर गेट के पास पहुँच गयी और ड्राइवर से बस रोकने को कहा.

ड्राइवर ने बस रोक दी और मैं फॉरन बस से उतर गयी.

पर जैसा की पहले हुवा था, अचानक वो साइकल वाला बस से कूद गया.

मैने चारो और नज़र दौड़ाई तो पाया की मैं बिल्कुल सुनसान सड़क पर उतर गयी हू. आस पास कुछ नही दीख रहा था.

तभी मैने अपने पीछे देखा तो पाया की मेरे पीछे एक गार्डेन है. गार्डेन में कुछ लोग भी नज़र आ रहे थे.

मैं झट से गार्डेन में घुस गयी.

वो मेरे पीछे पीछे आ गया.

मैं बहुत घबरा रही थी. गार्डेन में लोग तो थे पर बहुत कम थे.

मैं जल्दी से गार्डेन के दूसरे गेट पर पहुँच गयी.

दूसरी तरफ अछा ख़ासा ट्रॅफिक चल रहा था.

एक ऑटो खाली खड़ा हुवा दीखाई दिया. मैने उसे मेरे घर चलने को कहा, और उस में बैठ गयी.

मुझ में अब एमजी रोड जाने की हिम्मत नही थी.

घर पहुँच कर मैने चैन की साँस ली, और मैने फ़ैसला किया कि आज के बाद बस में कभी नही चढ़ूंगी.

शाम को संजय ने पूछा कि क्या बना वाहा.

मैने कहा कुछ ऩही मैं ग़लत बस में चढ़ गयी थी. उसने मुझे बिल्कुल ऑपोसिट डाइरेक्षन में उतार दिया.

संजय ने पूछा फिर तुम घर कैसे आई.

मैने कहा, मैने एक ऑटो कर लिया था.

मैं संजय को कोई भी बात बता कर परेशान नही करना चाहती थी, आख़िर सब कुछ मेरी अपनी भूल के कारण ही तो हुवा था.

मैने संजय को कहा मेरा मन इतनी दूर जॉब करने का नही है, मैं बस में नही जाना चाहती.

संजय ने कहा ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.

संजय बेडरूम में चले गये और में किचन में आकर काम करने लगी.

अचानक फोन की घंटी बजी. मैने दौड़ कर फोन उठा लिया, मुझे डर था की कही संजय ना उठा ले.

ये बिल्लू का फोन था.

वो बोला, आज कहा थी दिन भर तूने मेरा फोन नही उठाया ?

मैने कहा, तुम्हे किसने यहा फोन करने को कहा है ?

वो बोला, देख अब ज़्यादा नखरे मत कर, और मेरी बात ध्यान से सुन. मैं तुझे कल सुबह लेने आउन्गा, 11 बजे तक तैयार रहना.

मैने कहा, तुम भाड़ में जाओ और ये कह कर फोन पटक दिया.

अभी में बस के गम से उभरी भी नही थी की अब ये नयी मुसीबत आन पड़ी
 
मैने बेडरूम में झाँका तो पाया कि संजय बाथरूम में नहा रहे है.

मैने फ़ैसला किया कि मैं अब संजय को सब कुछ बता दूँगी.

मैने एक पेपर लिया और जल्दी जल्दी अब तक की सारी बात उसमे लिख दी और पेपर को संजय के तकिये के नीचे रख दिया, और चुपचाप अपने तकिये पर लेट गयी.

मेरा दिल धक धक कर रहा था, कि संजय सब पढ़ कर क्या कहेंगे.

पर वो बाथरूम से निकल कर बेडरूम में आए ही थे कि मैने फॉरन वो पेपर उठा कर फाड़ दिया और उसे डस्टबिन में डाल दिया.

संजय ने पूछा, वो क्या था ?

मैने कहा, क…क..कुछ नही यू ही बेकार का पेपर था, किचन के सामान की लिस्ट लिखी थी उस पर.

संजय ने मेरे पास आ कर मुझे बाहो में भर लिया और मुझे बेड पर लिटा दिया.

मैने कहा छोड़ो, चिंटू अभी जाग रहा है.

चिंटू बाहर टीवी देख रहा था.

संजय ने कमरा बंद कर लिया और वापस आ कर मेरा नाडा खोलने लगे.

मैं चुपचाप लेटी रही.

उन्होने नाडा खोल कर मेरी पॅंटी नीचे सरका दी और मेरी योनि को हाथ से मसालने लगे.

मैं मदहोश होने लगी.

मेरे मूह से अचानक निकल गया इसे चूम लो ना.

संजय ने हैरान हो कर पूछा, क्या कहा.

मुझे होश आया कि मैं क्या बोल गयी थी.

मैने कहा, कुछ नही.

मैं समझ नही पा रही थी की मैने ऐसा क्यो कहा,

मैं वाहा पड़े, पड़े खुद को कोसने लगी.

मुझे ये भी पता नही चला कि कब संजय ने मेरे अंदर लिंग डाल दिया.

जब मुझे होश आया तो संजय ज़ोर ज़ोर से कर रहे थे.

मैं उनके नीचे पड़ी पड़ी मदहोश होती चली गयी.

मुझे अचानक ये ख्याल आया कि कास उनका लिंग और ज़्यादा गहराई तक पहुँच पाता.

और फिर से मुझे खुद, अपने आप पर शर्मिंदा होना पड़ा, आख़िर मैं ऐसी बात कैसे सोच सकती थी.

मैं फिर सब कुछ भुला कर संजय की बाहो में खो गयी और उस पल का आनंद लेने लगी.

पर मुझे रह रह कर ये ख्याल सता रहा था कि मैं कल बिल्लू से कैसे निपतुँगी.

क्रमशः ...................................
 
गतांक से आगे ............. अगले दिन संजय और चिंटू के जाने के बाद, मैं इस कसम्कश में खो गयी कि अब क्या करना है.

अपने पति को बताने की हिम्मत मुझमे हो नही पा रही थी और मैं दुबारा ग़लत रास्ते पर चलना नही चाहती थी.

एक पल को ख्याल आया कि मैं घर को लॉक करके कही चली जाती हू, पर कहाँ इस बारे में फ़ैसला नही कर पा रही थी.

तभी मुझे ख़याल आया कि मुझे मौसी के घर चले जाना चाहिए.

पर मैं ये सोच कर रुक गयी कि, मुझे हालात का सामना करना चाहिए, ऐसे भागने से बात नही बनेगी.

बिल्लू की बात से लगता था कि वो अब मुझे ब्लॅकमेल करने की कोशिस करेगे. इस लिए मैं तैयार थी कि वो संजय को बताने की धमकी देता है तो देने दो मैं उनके झाँसे में नही आउन्गि. फिर मुझे ये भी ख्याल आया कि अगर वो ब्लॅकमेल करने की कोशिस करता भी है तो भी उसके पास सबूत क्या है. और अगर बात ज़्यादा बढ़ भी गयी तो मैं संजय को बुला कर सब कुछ बता दूँगी.

इस लिए मैने घर पर ही रहने का फ़ैसला किया.

मैं अपने रोजाना के कामो में लग गयी.

11 बजने को थे और मैं बेचन हो रही थी.

मैं खुद को विस्वास दिला रही थी कि मई सब कुछ संभाल सकती हूँ, बस मुझे शांति से काम लेना है.

मैं इशी कसंकश में थी और कब 11:30 बज गये पता ही नही चला.

मेरे मन को शांति मिली कि अछा हुवा वो कमीना नही आया. मुझे लग रहा था कि शायद वो समझ गया है कि मैं अब उसके झाँसे में नही आउन्गि.

मैं चैन से बेडरूम में लेट गयी.

मेरी आँख लगी ही थी कि फोन की घंटी बज उठी,

ये बिल्लू का फोन था, इस से पहले कि मैं फोन रख पाती,

उसहने कहा, सॉरी मैं कल गुस्से में तुझे यू ही कुछ कुछ बोल गया, तू अब चिंता मत कर मैं तेरे घर नही आ रहा, मैं तेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नही करना चाहता. अगर तू मेरे साथ एंजाय करना चाहती है तो मैं तुझे लेने आ जाता हू, सब कुछ तेरी मर्ज़ी पर निर्भर है.

मैने कहा तुम ये सोच भी कैसे सकते हो कि मैं फिर से तुम्हारे साथ चलूंगी. तुम्हारा कोई ब्लॅकमेल नही चलेगा.

वो बोला ब्लॅकमेल मैं करना भी नही चाहता, क्या अब तक मैने तुझे ब्लॅकमेल किया ?

मैने कहा, ब्लॅकमेल तो नही था पर………

वो बोला, पर क्या ?

मैने कहा कुछ नही तुम खुद सब जानते हो, इतने भोले मत बनो.

वो बोला, मैं कुछ नही जानता, मैं तो बस तुझे चाहता हू

मैने गुस्से में पूछा चाहते हो तभी मुझे धोके से उस कामीने अशोक के पास ले गये थे.

वो बोला क्या तुझे नही लगता कि तुझे तेरे किए की सज़ा मिली है.

मैने पूछा ये क्या बकवास कर रहे हो.

वो बोला क्या तुझे नही पता, तूने और तेरे बाप ने मिलकर उसका क्या हाल किया था ?

मैने पूछा मेरे दादी ने क्या किया था ? उसे बस उसके किए की सज़ा ही तो दिलवाई थी. उसे तो पोलीस के हवाले करना चाहिए था, यही हमसे चूक हो गयी.

वो बोला, तो करवा देते, पोलीस के हवाले वैसे भी क़ानून सिर्फ़ ग़रीब के लिए होता है. तुम अमीरो के लिए तो सब माफ़ है

मैने कहा ऐसी बाते कर के तुम लोगो का गुनाह कम नही हो जाता, वैसे भी अब इन बातो का क्या मतलब तुम अब मुझे चैन से जीने दो, मेरा पीछा छोड़ दो.

वो बोला, चल बीती बाते भुला दे. अशोक अब हमारें बीच नही आएगा. जो हो गया सो हो गया, अब बस हम दोनो मज़ा करेंगे

मैने गुस्से में पूछा क्या मतलब, तुम मुझे समझते क्या हो ?

वो बोला, मेरे लिए तो तू सब कुछ है. मैं तुझे जी भर कर पाना चाहता हू. तेरी गांद बस एक बार ली है. सच में रोज तेरे लिए तड़प्ता हू. अगर अशोक का मुझ पर कर्ज़ ना होता तो मैं अशोक की बजाए उस दिन खुद तेरी लेता.

मैने कहा, बंद करो ये बकवास
 
वो बोला, ये बकवास नही सच है. जिस दिन अशोक तेरी ले रहा था क्या में भी नही ले सकता था? पर मुझे तुझे टाइम से घर पहुचना था ताकि तेरे घर पर कोई समश्या ना हो. वरना तो मैं उस दिन तेरे साथ कुछ भी कर सकता था.

मैने कहा अछा होता तुम मुझे वही जहर दे कर मार देते. मुझे इतनी ज़िल्लत तो ना झेलनी पड़ती.

वो बोला तुझे मार कर मुझे क्या मिल जाएगा. अगर तुझे ये सब इतना बुरा लग रहा है तो मैं अब तुझे परेशान नही करूँगा.

मैने पूछा क्या उस साइकल वाले को तुमने मेरे पीछे नही लगाया ?

वो बोला अरे मैने तुझे बताया तो था मैं उसे नही जानता, क्यो अब क्या हुवा ?

मैने कहा, कल उसने मुझे बस में परेशान किया. मैं बड़ी मुस्किल से जान बचा कर बस से उतर पाई.

मैने उसे सारी बात बता दी.

वो बोला, अछा तूने उसे थप्पड़ नही मारा

मैने कहा मैं डर गयी थी कि कही वो सब लोगो के सामने बकवास ना करने लगे,

वो बोला, पर तूने मुझे तो बड़े आराम से थप्पड़ मार दिया था. तू अगर उसे थप्पड़ मारती तो बस के लोग उसे खूब मारते

मैने कहा पर बस मे सभी लोग आराम से तमाशा देख रहे थे. मुझे किशी पर विस्वास नही था.

वो बोला, तू डर मत मैं उसे सीधा करता हू, उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी.

मैने कहा उसकी कोई ज़रूरत नही है. तुम बस मुझे अकेला छोड़ दो. मैं बस इतना चाहती थी कि अगर वो तुम्हारे साथ है तो उसे समझा दो. वरना ?

बिल्लू ने पूछा वरना क्या ?

मैने कहा, वरना मैं तुम सब को पोलीस के हवाले कर दूँगी. तुम्हे पता नही मेरे पाती की पहुँच उपर तक है. अगर तुम लोग सोचते हो कि मुझे ब्लॅकमेल कर सकते हो तो तुम लोग ग़लत हो.

वो बोला, तुझे ब्लॅकमेल ना अब तक किया है ना करूँगा, आख़िर तू समझती क्यो नही ?

मैने पूछा, अछा वो अशोक यहा क्या करने आया था उस दिन ?

वो बोला, अभी तू कुछ नही समझेगी वक्त आने दे तुझे सब पता चल जाएगा.

मैने पूछा किस वक्त का इंतेज़ार कर रहे हो तुम ?

वो बोला, जाने दे वैसे ही बोले दिया.

मैने पूछा, तो बताओ वो अशोक यहा क्यो आया था ?

वो बोला, तुझे अजीब लगेगा, पर वो तेरे पति को सब कुछ बताने ही आया था. पर तूने उस से अपने शरीर का शोदा कर लिया और उसे वाहा से भेज दिया.
 
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