hotaks444
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जाल पार्ट--60
गतान्क से आगे......
“ये किसका घर है रंभा?”
“यहा के वाइड का.”
“यहा क्या मिला है तुम्हे?”
“ये.”,रंभा ने चौखट पे बैठे शख्स के चेहरे पे टॉर्च की रोशनी मारी.उस शख्स ने बहुत धीरे से हाथ उठाके रोशनी को रोका & फिर आँखे मीचे हाथ नीचे कर रोशनी मारने वाले को देखने लगा लेकिन वो कुच्छ बोला नही.देवेन आगे बढ़ा & उस शख्स के चेहरे को गौर से देखा & उसके मुँह से हैरत भरी चीख निकल गयी.
“हैं!ये तो..ये तो..विजयंत मेहरा है.!”
"ये मुझे नदी के किनारे पड़ा मिला था..",वाइड देवेन को विजयंत मेहरा के मिलने की कहानी सुना रहा था,"..यहा से बहुत आयेज.मैं उधर जड़ी-बूटियाँ चुनने जाता हू."
"आपने पोलीस को इत्तिला नही की?"
"की थी लेकिन यहा कोई पक्की चौकी नही है बस 1 हवलदार आता है हफ्ते मे 1 बार.उसने इसे देखा & बोला कि नदी मे गिर गया होगा.उसने कहा कि वो जाके थानेदार को बता देगा & फिर वोही ये पता करेगा कि इसके जैसे हुलिए वाले किसी आदमी के गुम होने की रपट लिखाई गयी है या नही."
"फिर?"
"फिर वो आअज तक यहा नही आया है."
"हूँ..वैसे इसे हुआ क्या है?..ये बोलता क्यू नही?"
"ये देखो..",वाइड काफ़ी उम्रदराज़ था & काफ़ी देर बैठने के बाद उठने मे उसे काफ़ी तकलीफ़ होती थी.वो धीरे से उठा & कमरे मे बैठे उन्हे देखते विजयंत की ओर गया.विजयंत सब सुन रहा था,उन्हे देख रहा था लेकिन उसकी आँखो मे कही भी वो भाव नही था जिसे देख ये लगे कि उसे उनकी बातें समझ आ रही थी या नही,"..इस जगह..",उसने उसके माथे पे बाई तरफ बॉल हटा के दिखाया,"..पे गहरी चोट लगी थी इसे.मैने खून रोक के टाँके लगाए.ये बोलता क्यू नही इसका कारण मुझे नही पता.पर इतना ज़रूर है कि इसके दिमाग़ पे ज़ोर की चोट लगी है & उसी वजह से या तो इसकी याददाश्त गयी है या फिर सोचने & बोलने की ताक़त.",वो वापस अपनी जगह पे बैठ गया.
"वैसे इसे बातें समझ मे तो आती है.इसे भूख लगती है,प्यास लगती है.कहो तो खड़ा हो जाएगा,बोलो तो बैठ जाएगा मगर खुद कुच्छ कहेगा नही ना ही इशारा करेगा."
"हूँ..हम इसे अपने साथ ले जाते हैं.वाहा शहर मे सरकारी लोगो के हवाले कर देंगे तो फिर ज़रा आपका हवलदार भी चौकस होगा.ढीला लगता है मुझे वो."
"बहुत अच्छे.ज़रा यहा की बिजली के बारे मे भी बात करना."
"ज़रूर.",दोनो विजयंत को वाहा से ले निकल आए.रंभा ने वाइड को कुच्छ पैसे दे दिए थे.उसे अजीब सी खुशी हो रही थी लेकिन उसकी निगाह गाड़ी चलाते देवेन पे भी थी जो बहुत संजीदा लग रहा था.अब देवी फार्म पे हुई किसी बात की वजह से या फिर विजयंत के मिलने की वजह से,ये उसकी समझ मे नही आ रहा था.देवेन उसे चाहने लगा था & वो ये भी जानता था कि रंभा के ताल्लुक़ात विजयंत के साथ भी हैं.उसने उसे सवेरे ही कहा था कि इस बात से उसे कोई ऐतराज़ नही कि वो उसके अलावा किसी & को भी चाहे लेकिन था तो वो 1 मर्द ही.
"क्या हुआ था वाहा?बताए क्यू नही?",रंभा ने अपना सर उसके कंधे पे रख दिया & उसकी बाई बाँह सहलाने लगा.
"बताता हू.",देवेन ने उसके सर को थपथपाया & कार चलते हुए उसे सारी बात बतानी शुरू की.
"गाड़ी रोकिए!",सारी बात सुनने के बाद वो बोली.
"क्या हुआ रंभा?"
"गाड़ी रोकिए!",वो रुवन्सि हो गयी थी.देवेन ने ब्रेक लगाया तो वो उसके गले लग गयी & रोने लगी.देवेन उसके जज़्बातो को समझ रहा था.1 कामीने के स्वार्थ ने तीन जिंदगियो को इतने दिनो तक खुशी से महरूम रखा था & उनमे से 1 तो अब इस दुनिया मे थी भी नही.
"इतना ख़तरा मोल लिया आपने..आप कितना चाहते थे मा को आज सही मयनो मे समझ आ रहा है मुझे..उसके धोखे की ग़लतफहमी से ही इतनी नफ़रत पैदा हुई थी आपके दिल में.",रंभा की रुलाई थम गयी थी & वो उसके गाल के निशान को सहला रही थी.
"हां,मगर आज सारी ग़लतफहमी दूर हो गयी बस 1 बात का गीला रह गया की सुमित्रा मेरी सच्चाई जाने बगैर चली गयी.",रंभा की रुलाई दोबारा छूट गयी.देर तक देवेन उसे बाहो मे भर समझाता रहा.उसने मूड के पिच्छली सीट पे बैठे विजयंत को देखा.उसने 1 बार आवाज़ होने पे आँखे खोली थी & फिर सो गया था.
"चलो,अब चुप हो जाओ.हमे यहा से जल्द से जल्द निकलना है.बालम सिंग ड्रग डीलर था & उसके मरने के बाद अब उसके लोग & पोलीस कुत्तो की तरह पूरे इलाक़े को सूंघ-2 के छनेन्गे.",उसने फिर कार स्टार्ट की तो सीधा क्लेवर्त जाके ही रोकी.रंभा होटेल वाय्लेट पहुँच समीर को विजयंत के मिलने के बारे मे बताना चाहती थी लेकिन देवेन ने उसे रोका.उसे कुच्छ खटक रहा था.
"रंभा,तुम मुझे ये बताओ कि समीर जब कंधार पे पोलीस को मिला था तो उसने क्या बताया था?",वो रात अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा थी बाद मे उसने & अख़बारो मे भी पढ़ा था & खबरों मे भी सुना था कि कैसे ब्रिज & सोनिया उस साज़िश मे शामिल थे & यही बात उसे खटक रही थी.रंभा ने उसे सारी बात बता दी.
"लेकिन आप ये क्यू पुच्छ रहे हैं?"
"अब मेरी समझ मे आया कि मुझे क्या खटक रहा था.",उसने खुशी से स्टियरिंग पे हाथ मारा,"..समीर झूठ क्यू बोल रहा है,रंभा?"
"क्या?समीर..झूठ..मेरी समझ मे नही आई आपकी बात.",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी थी.
"उसने ये क्यू कहा कि झरने पे उसके हाथ पाँव बँधे होने के कारण वो अपने बाप की मदद नही कर सका जबकि हक़ीक़त ये थी कि उसके पाँव खुले थे."
"क्या?!"
"हां & उसे तो ये दिखना ही नही चाहिए था कि ब्रिज & सोनिया 1 साथ आए कि उसका बाप अकेला आया."
"क्यू?"
"क्यूकी उसकी आँखो पे पट्टी बँधी थी."
"क्या?!..",रंभा के चेहरे पे काई भाव आके चले गये..समीर झूठ बोल रहा था लेकिन क्यू?..विजयंत की मौत क्या 1 हादसा नही साज़िश थी?..समीर क्या नाराज़ था उसे रंभा से शादी करने पे ग्रूप से अलग करने से?..तो इसका मतलब था कि वो उस से बेइंतहा मोहब्बत करता था लेकिन उसके नमूने तो वो उस पार्टी मे देख ही चुकी थी जब वो कामया से प्यार के वादे कर रहा था..आख़िर सच क्या था?..समीर का मक़सद क्या था?
वो पलटी & पिच्छली सीट पे बेख़बर सोए विजयंत को देखा,"अब क्या करें?",उसने देवेन की ओर देखा.पहली बार उसे इस सारे मामले मे डर का एहसास हुआ था.
"पहले तो तुम समीर को इस बारे मे ज़रा भी भनक नही लगने दोगि..समीर क्या किसी को भी नही!ये राज़ सिर्फ़ मेरे तुम्हारे बीच रहेगा."
"ठीक है मगर इनका क्या करें?..इन्हे इलाज की ज़रूरत है वो भी बहुत उम्दा इलाज."
"हूँ..वो तो मैं करवा दूँगा."
"मगर कैसे?"
"वो मुझपे छ्चोड़ो."
"ओफ्फो..",तनाव की वजह से रंभा झल्ला गयी,"..मुझे भी तो बताइए कुच्छ..दिन मे भी मुझे अकेला भेज दिया & अब अभी भी नही बता रहे हैं!",खीजती रंभा देवेन को किसी बच्ची की तरह लगी..थी तो वो 1 बच्ची ही..वो तो हालात की दरकार थी की वो जल्दी बड़ी हो गयी.
"मैं इसका इलाज कारवंगा.इसे अपने साथ ले जाके..",उसने उसे अपनी ओर खींचा & उसके चेहरे को चूमने लगा.रंभा की खिज भी गायब होने लगी,"..गोआ मे."
"गोआ?"
"हां,गोआ."
देवेन विजयंत मेहरा को गोआ कैसे ले गया ये वही जानता था.कुच्छ रास्ता उसने ट्रेन से कुच्छ बस से & कुच्छ टॅक्सी से तय किया.किसी के माशूर इंडस्ट्रियलिस्ट विजयंत मेहरा को पहचान लेने का ख़तरा था & इसीलिए उसे इतनी सावधानी बरतनी पड़ी.रंभा ने विजयंत की बेतरटीबी से बढ़ी दाढ़ी & बालो को बस थोड़ा सा काटा-च्चंता & बालो की पोनीटेल बनाके उसे ढीली टी-शर्ट & जेनस पहना दी थी ताकि वो कोई हिपी जैसा लगे & वो खुद डेवाले वापस लौट गयी थी.
समीर उस वक़्त बॉमबे मे था & उसने उस बात का फयडा उठाके उसकी चीज़ो की तलाशी ली लेकिन उसे कुच्छ भी ऐसा नही मिला जोकि गुत्थी सुलझाने मे उसकी मदद करता & तब उसे अपनी सहेली सोनम की याद आई & उसने उसे मिलने के लिए 1 5-स्तर होटेल के कॉफी शॉप मे बुलाया.
"सोनम,आजकल ऑफीस मे सब कैसा चल रहा है?"
"ठीक-ठाक लेकिन तू क्यू पुच्छ रही है?"
"& आज से पहले कैसा चल रहा था?",रंभा ने उसके सवाल को नज़रअंदाज़ कर दिया.
"मैं तेरी बात समझ नही पा रही,रंभा.",सोनम के माथे पे बल पड़ गये.
"रंभा,जब समीर लापता हुआ था & दाद उसकी खोज मे गये थे तो सब ठीक चल रहा था यहा?",अब सोनम सोच मे पड़ गयी.उसका दिल धड़कने लगा कि वो उसे प्रणव के बारे मे बताए या नही.उसे ये भी डर था की कही रंभा को उसके ब्रिज से जुड़े होने की बात तो पता नही चल गयी.
"क्या हू सोनम?तू चुप क्यू है?",रंभा ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखा तो सोनम ने नज़रे उपर की.रंभा की नज़रो मे उसे कोई शक़ नही दिख रहा था बल्कि चिंता दिख रही थी.
"रंभा..वो.."
"हां,बोल ना!"
"देख,मुझे ये बात शायद विजयंत सर को या तुम्हे या फिर समीर को बता देनी चाहिए थी पर मैं बहुत घबरा गयी थी."
"मगर क्यू,सोनम?",उस वक़्त सोनम ने फ़ैसला किया कि अब अपने दिल का बोझ हल्का करने के लिए अपनी सहेली को सब बता देना ही सही होगा.
"यहा नही.मेरे घर चल.",दोनो वाहा से निकले & उसके घर पहुँचे.
"अब तो बता."
"रंभा,मुझे नही पता कि तुम मेरे बारे मे क्या सोचोगी लेकिन आज मैं तुम्हे सब बता देना चाहती हू..",सोनम ने ब्रिज से मिलने से लेके प्रणव के शाह से कोई डील करने तक की सारी बातें बता दी.रंभा उसे खामोशी से देख रही थी..सोनम ब्रिज की जासूस थी..& उसे भनक भी नही लगी..उस से दोस्ती भी क्या इसीलिए गाँठि उसने?..",तू मुझे धोखेबाज़ समझ रही है ना?..लेकिन रंभा,मैने तेरी दोस्ती से कभी फयडा उठाने की कोशिश नही की.हां,शुरू मे मैने सोचा था कि समीर से तेरी नज़दीकी का फयडा उठाऊं & उस वक़्त तुझे खोदती भी रहती थी ताकि कुच्छ इन्फर्मेशन मेरे हाथ लगे लेकिन बाद मे मुझे खुद पे बड़ी शर्म आई..",सोनम की आँखे छलक आई थी..क्या ग़लती थी उसकी?..& उस से भी बड़ा सवाल क्या वो इस बात का फ़ैसला करने वाली कौन होती है?..वो भी तो उसी के जैसी थी..बस अपना फयडा देखने वाली.
वो अपनी सुबक्ती हुई सहेली के करीब गयी & उसकी पीठ पे हाथ रखा,"कुच्छ ग़लत नही किया तूने.तेरी जगह मैं भी होती तो शायद ऐसा ही करती.",सोनम के दिल का गुबार उसकी आँखो से अब फूट-2 के बहने लगा & वो रंभा के गले से लग गयी,"..बस हो गया,अब चुप हो जा..कहा ना तेरी कोई ग़लती नही..हम जैसी लड़कियो को ऐसे फ़ैसले तो लेने ही पड़ते है ना!बस चुप हो जा!",1 बच्चे की तरह उसने उसे समझाया.
सोनम को अब बहुत हल्का महसूस हो रहा था,"अब मेरी बात गौर से सुन,सोनम.डॅड की मौत की जो कहानी हमने सुनी है उसमे कुच्छ झूठ है."
"क्या?!मगर तुझे कैसे पता?"
"वो मैं तुझे बाद मे बताउन्गि क्यूकी अभी तक मुझे भी नही पता सही बात का.देख,उनकी मौत मे ब्रिज कोठारी का हाथ तो नही था."
"क्या?!"
"हां.",उसे देवेन ने बता दिया था कि सोनिया उस रात उसके ससुर के साथ होटेल से निकली थी & कंधार पहुँची थी ना कि अपने पति के साथ,"..& ये काम परिवार के ही किसी सदस्य का है."
"मतलब प्रणव?"
"तेरी बातो से मुझे उसपे भी शक़ होने लगा है."
"उसपे भी?"
"हां,पहले तो मुझे समीर पे शक़ था."
"वॉट?!"
"हां.अब हम दोनो को ये पता लगाना है कि आख़िर है कौन & उसे क्या फयडा हुआ डॅड की मौत से?"
"फयडा..हूँ..लेकिन समीर को क्या फयडा होगा..ग्रूप तो उसेही मिलना था अपने पिता के बाद."
"हां मगर मेरे लिए झगड़ा किया था उनसे उसने लेकिन..लेकिन फिर सब होने के बाद वो मुझसे ही बेरूख़् हो गया है."
"अच्छा?"
"हां,यार वो मेरे साथ सोता है,मेरे जिस्म को प्यार करता है लेकिन अब उसका प्यार मेरे दिल तक जैसे पहुँच ही नही पाता..मैं तो उसके साथ पहले जैसे ही बर्ताव करती हू मगर वो जैसे मुझे..मुझे.."
"भूल गया है?",सोनम ने सहेली की बात पूरी करनी चाही.
"नही.भूला नही जैसे अब मैं उसके लिए कोई मायने नही रखती."
"हूँ..तो तुझसे शादी भी कही उसकी किसी चाल का हिस्सा तो नही था?",रंभा ने चौंक के सहेली को देखा..इस तरह तो सोचा भी नही था उसने..मगर चल क्या हो सकती थी & क्यू?..फिर वही क्यू?..यानी मक़सद..समीर का मक़सद क्या था?..अगर शादी भी चाल थी तो उस चल का मक़सद था क्या?..रंभा का सर घूमने लगा था!
"तू थी तो है,रंभा?..ये ले पानी पी.",.सोनम ने उसे पनिका ग्लास थमाया & उसके साथ बैठ गयी.रंभा गतगत सारा पानी पी गयी.
"यार,हम कहा फँस गयी हैं!",उसने अपनी सहेली को देखा,"..बचपन से लेके जवानी ऐसे कमिनो मे गुज़ारे की दौलत & ऊँचा तबका हमारी ख्वाहिश ही नही जुनून भी हो गया लेकिन क्या ये सब उतनी ज़रूरी चीज़ें हैं जितना ये हमे लगती थी?",रंभा ने बहुत गहरी बात कह दी थी.सोनम ने आँखे झुका ली थी,"चल यार.अब ऐसे मुँह मत लटका.चल कही बाहर चल के बढ़िया खाना खाते हैं.इस मुसीबत से तो मैं निपट ही लूँगी.कोई मेरा इस्तेमाल करे & मैं उसे सबक ना सिखाऊँ,ऐसा तो होगा नही!",दोनो हंसते हुए उठे & बाहर जाने की तैय्यरी करने लगे.
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क्रमशः.......
गतान्क से आगे......
“ये किसका घर है रंभा?”
“यहा के वाइड का.”
“यहा क्या मिला है तुम्हे?”
“ये.”,रंभा ने चौखट पे बैठे शख्स के चेहरे पे टॉर्च की रोशनी मारी.उस शख्स ने बहुत धीरे से हाथ उठाके रोशनी को रोका & फिर आँखे मीचे हाथ नीचे कर रोशनी मारने वाले को देखने लगा लेकिन वो कुच्छ बोला नही.देवेन आगे बढ़ा & उस शख्स के चेहरे को गौर से देखा & उसके मुँह से हैरत भरी चीख निकल गयी.
“हैं!ये तो..ये तो..विजयंत मेहरा है.!”
"ये मुझे नदी के किनारे पड़ा मिला था..",वाइड देवेन को विजयंत मेहरा के मिलने की कहानी सुना रहा था,"..यहा से बहुत आयेज.मैं उधर जड़ी-बूटियाँ चुनने जाता हू."
"आपने पोलीस को इत्तिला नही की?"
"की थी लेकिन यहा कोई पक्की चौकी नही है बस 1 हवलदार आता है हफ्ते मे 1 बार.उसने इसे देखा & बोला कि नदी मे गिर गया होगा.उसने कहा कि वो जाके थानेदार को बता देगा & फिर वोही ये पता करेगा कि इसके जैसे हुलिए वाले किसी आदमी के गुम होने की रपट लिखाई गयी है या नही."
"फिर?"
"फिर वो आअज तक यहा नही आया है."
"हूँ..वैसे इसे हुआ क्या है?..ये बोलता क्यू नही?"
"ये देखो..",वाइड काफ़ी उम्रदराज़ था & काफ़ी देर बैठने के बाद उठने मे उसे काफ़ी तकलीफ़ होती थी.वो धीरे से उठा & कमरे मे बैठे उन्हे देखते विजयंत की ओर गया.विजयंत सब सुन रहा था,उन्हे देख रहा था लेकिन उसकी आँखो मे कही भी वो भाव नही था जिसे देख ये लगे कि उसे उनकी बातें समझ आ रही थी या नही,"..इस जगह..",उसने उसके माथे पे बाई तरफ बॉल हटा के दिखाया,"..पे गहरी चोट लगी थी इसे.मैने खून रोक के टाँके लगाए.ये बोलता क्यू नही इसका कारण मुझे नही पता.पर इतना ज़रूर है कि इसके दिमाग़ पे ज़ोर की चोट लगी है & उसी वजह से या तो इसकी याददाश्त गयी है या फिर सोचने & बोलने की ताक़त.",वो वापस अपनी जगह पे बैठ गया.
"वैसे इसे बातें समझ मे तो आती है.इसे भूख लगती है,प्यास लगती है.कहो तो खड़ा हो जाएगा,बोलो तो बैठ जाएगा मगर खुद कुच्छ कहेगा नही ना ही इशारा करेगा."
"हूँ..हम इसे अपने साथ ले जाते हैं.वाहा शहर मे सरकारी लोगो के हवाले कर देंगे तो फिर ज़रा आपका हवलदार भी चौकस होगा.ढीला लगता है मुझे वो."
"बहुत अच्छे.ज़रा यहा की बिजली के बारे मे भी बात करना."
"ज़रूर.",दोनो विजयंत को वाहा से ले निकल आए.रंभा ने वाइड को कुच्छ पैसे दे दिए थे.उसे अजीब सी खुशी हो रही थी लेकिन उसकी निगाह गाड़ी चलाते देवेन पे भी थी जो बहुत संजीदा लग रहा था.अब देवी फार्म पे हुई किसी बात की वजह से या फिर विजयंत के मिलने की वजह से,ये उसकी समझ मे नही आ रहा था.देवेन उसे चाहने लगा था & वो ये भी जानता था कि रंभा के ताल्लुक़ात विजयंत के साथ भी हैं.उसने उसे सवेरे ही कहा था कि इस बात से उसे कोई ऐतराज़ नही कि वो उसके अलावा किसी & को भी चाहे लेकिन था तो वो 1 मर्द ही.
"क्या हुआ था वाहा?बताए क्यू नही?",रंभा ने अपना सर उसके कंधे पे रख दिया & उसकी बाई बाँह सहलाने लगा.
"बताता हू.",देवेन ने उसके सर को थपथपाया & कार चलते हुए उसे सारी बात बतानी शुरू की.
"गाड़ी रोकिए!",सारी बात सुनने के बाद वो बोली.
"क्या हुआ रंभा?"
"गाड़ी रोकिए!",वो रुवन्सि हो गयी थी.देवेन ने ब्रेक लगाया तो वो उसके गले लग गयी & रोने लगी.देवेन उसके जज़्बातो को समझ रहा था.1 कामीने के स्वार्थ ने तीन जिंदगियो को इतने दिनो तक खुशी से महरूम रखा था & उनमे से 1 तो अब इस दुनिया मे थी भी नही.
"इतना ख़तरा मोल लिया आपने..आप कितना चाहते थे मा को आज सही मयनो मे समझ आ रहा है मुझे..उसके धोखे की ग़लतफहमी से ही इतनी नफ़रत पैदा हुई थी आपके दिल में.",रंभा की रुलाई थम गयी थी & वो उसके गाल के निशान को सहला रही थी.
"हां,मगर आज सारी ग़लतफहमी दूर हो गयी बस 1 बात का गीला रह गया की सुमित्रा मेरी सच्चाई जाने बगैर चली गयी.",रंभा की रुलाई दोबारा छूट गयी.देर तक देवेन उसे बाहो मे भर समझाता रहा.उसने मूड के पिच्छली सीट पे बैठे विजयंत को देखा.उसने 1 बार आवाज़ होने पे आँखे खोली थी & फिर सो गया था.
"चलो,अब चुप हो जाओ.हमे यहा से जल्द से जल्द निकलना है.बालम सिंग ड्रग डीलर था & उसके मरने के बाद अब उसके लोग & पोलीस कुत्तो की तरह पूरे इलाक़े को सूंघ-2 के छनेन्गे.",उसने फिर कार स्टार्ट की तो सीधा क्लेवर्त जाके ही रोकी.रंभा होटेल वाय्लेट पहुँच समीर को विजयंत के मिलने के बारे मे बताना चाहती थी लेकिन देवेन ने उसे रोका.उसे कुच्छ खटक रहा था.
"रंभा,तुम मुझे ये बताओ कि समीर जब कंधार पे पोलीस को मिला था तो उसने क्या बताया था?",वो रात अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा थी बाद मे उसने & अख़बारो मे भी पढ़ा था & खबरों मे भी सुना था कि कैसे ब्रिज & सोनिया उस साज़िश मे शामिल थे & यही बात उसे खटक रही थी.रंभा ने उसे सारी बात बता दी.
"लेकिन आप ये क्यू पुच्छ रहे हैं?"
"अब मेरी समझ मे आया कि मुझे क्या खटक रहा था.",उसने खुशी से स्टियरिंग पे हाथ मारा,"..समीर झूठ क्यू बोल रहा है,रंभा?"
"क्या?समीर..झूठ..मेरी समझ मे नही आई आपकी बात.",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी थी.
"उसने ये क्यू कहा कि झरने पे उसके हाथ पाँव बँधे होने के कारण वो अपने बाप की मदद नही कर सका जबकि हक़ीक़त ये थी कि उसके पाँव खुले थे."
"क्या?!"
"हां & उसे तो ये दिखना ही नही चाहिए था कि ब्रिज & सोनिया 1 साथ आए कि उसका बाप अकेला आया."
"क्यू?"
"क्यूकी उसकी आँखो पे पट्टी बँधी थी."
"क्या?!..",रंभा के चेहरे पे काई भाव आके चले गये..समीर झूठ बोल रहा था लेकिन क्यू?..विजयंत की मौत क्या 1 हादसा नही साज़िश थी?..समीर क्या नाराज़ था उसे रंभा से शादी करने पे ग्रूप से अलग करने से?..तो इसका मतलब था कि वो उस से बेइंतहा मोहब्बत करता था लेकिन उसके नमूने तो वो उस पार्टी मे देख ही चुकी थी जब वो कामया से प्यार के वादे कर रहा था..आख़िर सच क्या था?..समीर का मक़सद क्या था?
वो पलटी & पिच्छली सीट पे बेख़बर सोए विजयंत को देखा,"अब क्या करें?",उसने देवेन की ओर देखा.पहली बार उसे इस सारे मामले मे डर का एहसास हुआ था.
"पहले तो तुम समीर को इस बारे मे ज़रा भी भनक नही लगने दोगि..समीर क्या किसी को भी नही!ये राज़ सिर्फ़ मेरे तुम्हारे बीच रहेगा."
"ठीक है मगर इनका क्या करें?..इन्हे इलाज की ज़रूरत है वो भी बहुत उम्दा इलाज."
"हूँ..वो तो मैं करवा दूँगा."
"मगर कैसे?"
"वो मुझपे छ्चोड़ो."
"ओफ्फो..",तनाव की वजह से रंभा झल्ला गयी,"..मुझे भी तो बताइए कुच्छ..दिन मे भी मुझे अकेला भेज दिया & अब अभी भी नही बता रहे हैं!",खीजती रंभा देवेन को किसी बच्ची की तरह लगी..थी तो वो 1 बच्ची ही..वो तो हालात की दरकार थी की वो जल्दी बड़ी हो गयी.
"मैं इसका इलाज कारवंगा.इसे अपने साथ ले जाके..",उसने उसे अपनी ओर खींचा & उसके चेहरे को चूमने लगा.रंभा की खिज भी गायब होने लगी,"..गोआ मे."
"गोआ?"
"हां,गोआ."
देवेन विजयंत मेहरा को गोआ कैसे ले गया ये वही जानता था.कुच्छ रास्ता उसने ट्रेन से कुच्छ बस से & कुच्छ टॅक्सी से तय किया.किसी के माशूर इंडस्ट्रियलिस्ट विजयंत मेहरा को पहचान लेने का ख़तरा था & इसीलिए उसे इतनी सावधानी बरतनी पड़ी.रंभा ने विजयंत की बेतरटीबी से बढ़ी दाढ़ी & बालो को बस थोड़ा सा काटा-च्चंता & बालो की पोनीटेल बनाके उसे ढीली टी-शर्ट & जेनस पहना दी थी ताकि वो कोई हिपी जैसा लगे & वो खुद डेवाले वापस लौट गयी थी.
समीर उस वक़्त बॉमबे मे था & उसने उस बात का फयडा उठाके उसकी चीज़ो की तलाशी ली लेकिन उसे कुच्छ भी ऐसा नही मिला जोकि गुत्थी सुलझाने मे उसकी मदद करता & तब उसे अपनी सहेली सोनम की याद आई & उसने उसे मिलने के लिए 1 5-स्तर होटेल के कॉफी शॉप मे बुलाया.
"सोनम,आजकल ऑफीस मे सब कैसा चल रहा है?"
"ठीक-ठाक लेकिन तू क्यू पुच्छ रही है?"
"& आज से पहले कैसा चल रहा था?",रंभा ने उसके सवाल को नज़रअंदाज़ कर दिया.
"मैं तेरी बात समझ नही पा रही,रंभा.",सोनम के माथे पे बल पड़ गये.
"रंभा,जब समीर लापता हुआ था & दाद उसकी खोज मे गये थे तो सब ठीक चल रहा था यहा?",अब सोनम सोच मे पड़ गयी.उसका दिल धड़कने लगा कि वो उसे प्रणव के बारे मे बताए या नही.उसे ये भी डर था की कही रंभा को उसके ब्रिज से जुड़े होने की बात तो पता नही चल गयी.
"क्या हू सोनम?तू चुप क्यू है?",रंभा ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखा तो सोनम ने नज़रे उपर की.रंभा की नज़रो मे उसे कोई शक़ नही दिख रहा था बल्कि चिंता दिख रही थी.
"रंभा..वो.."
"हां,बोल ना!"
"देख,मुझे ये बात शायद विजयंत सर को या तुम्हे या फिर समीर को बता देनी चाहिए थी पर मैं बहुत घबरा गयी थी."
"मगर क्यू,सोनम?",उस वक़्त सोनम ने फ़ैसला किया कि अब अपने दिल का बोझ हल्का करने के लिए अपनी सहेली को सब बता देना ही सही होगा.
"यहा नही.मेरे घर चल.",दोनो वाहा से निकले & उसके घर पहुँचे.
"अब तो बता."
"रंभा,मुझे नही पता कि तुम मेरे बारे मे क्या सोचोगी लेकिन आज मैं तुम्हे सब बता देना चाहती हू..",सोनम ने ब्रिज से मिलने से लेके प्रणव के शाह से कोई डील करने तक की सारी बातें बता दी.रंभा उसे खामोशी से देख रही थी..सोनम ब्रिज की जासूस थी..& उसे भनक भी नही लगी..उस से दोस्ती भी क्या इसीलिए गाँठि उसने?..",तू मुझे धोखेबाज़ समझ रही है ना?..लेकिन रंभा,मैने तेरी दोस्ती से कभी फयडा उठाने की कोशिश नही की.हां,शुरू मे मैने सोचा था कि समीर से तेरी नज़दीकी का फयडा उठाऊं & उस वक़्त तुझे खोदती भी रहती थी ताकि कुच्छ इन्फर्मेशन मेरे हाथ लगे लेकिन बाद मे मुझे खुद पे बड़ी शर्म आई..",सोनम की आँखे छलक आई थी..क्या ग़लती थी उसकी?..& उस से भी बड़ा सवाल क्या वो इस बात का फ़ैसला करने वाली कौन होती है?..वो भी तो उसी के जैसी थी..बस अपना फयडा देखने वाली.
वो अपनी सुबक्ती हुई सहेली के करीब गयी & उसकी पीठ पे हाथ रखा,"कुच्छ ग़लत नही किया तूने.तेरी जगह मैं भी होती तो शायद ऐसा ही करती.",सोनम के दिल का गुबार उसकी आँखो से अब फूट-2 के बहने लगा & वो रंभा के गले से लग गयी,"..बस हो गया,अब चुप हो जा..कहा ना तेरी कोई ग़लती नही..हम जैसी लड़कियो को ऐसे फ़ैसले तो लेने ही पड़ते है ना!बस चुप हो जा!",1 बच्चे की तरह उसने उसे समझाया.
सोनम को अब बहुत हल्का महसूस हो रहा था,"अब मेरी बात गौर से सुन,सोनम.डॅड की मौत की जो कहानी हमने सुनी है उसमे कुच्छ झूठ है."
"क्या?!मगर तुझे कैसे पता?"
"वो मैं तुझे बाद मे बताउन्गि क्यूकी अभी तक मुझे भी नही पता सही बात का.देख,उनकी मौत मे ब्रिज कोठारी का हाथ तो नही था."
"क्या?!"
"हां.",उसे देवेन ने बता दिया था कि सोनिया उस रात उसके ससुर के साथ होटेल से निकली थी & कंधार पहुँची थी ना कि अपने पति के साथ,"..& ये काम परिवार के ही किसी सदस्य का है."
"मतलब प्रणव?"
"तेरी बातो से मुझे उसपे भी शक़ होने लगा है."
"उसपे भी?"
"हां,पहले तो मुझे समीर पे शक़ था."
"वॉट?!"
"हां.अब हम दोनो को ये पता लगाना है कि आख़िर है कौन & उसे क्या फयडा हुआ डॅड की मौत से?"
"फयडा..हूँ..लेकिन समीर को क्या फयडा होगा..ग्रूप तो उसेही मिलना था अपने पिता के बाद."
"हां मगर मेरे लिए झगड़ा किया था उनसे उसने लेकिन..लेकिन फिर सब होने के बाद वो मुझसे ही बेरूख़् हो गया है."
"अच्छा?"
"हां,यार वो मेरे साथ सोता है,मेरे जिस्म को प्यार करता है लेकिन अब उसका प्यार मेरे दिल तक जैसे पहुँच ही नही पाता..मैं तो उसके साथ पहले जैसे ही बर्ताव करती हू मगर वो जैसे मुझे..मुझे.."
"भूल गया है?",सोनम ने सहेली की बात पूरी करनी चाही.
"नही.भूला नही जैसे अब मैं उसके लिए कोई मायने नही रखती."
"हूँ..तो तुझसे शादी भी कही उसकी किसी चाल का हिस्सा तो नही था?",रंभा ने चौंक के सहेली को देखा..इस तरह तो सोचा भी नही था उसने..मगर चल क्या हो सकती थी & क्यू?..फिर वही क्यू?..यानी मक़सद..समीर का मक़सद क्या था?..अगर शादी भी चाल थी तो उस चल का मक़सद था क्या?..रंभा का सर घूमने लगा था!
"तू थी तो है,रंभा?..ये ले पानी पी.",.सोनम ने उसे पनिका ग्लास थमाया & उसके साथ बैठ गयी.रंभा गतगत सारा पानी पी गयी.
"यार,हम कहा फँस गयी हैं!",उसने अपनी सहेली को देखा,"..बचपन से लेके जवानी ऐसे कमिनो मे गुज़ारे की दौलत & ऊँचा तबका हमारी ख्वाहिश ही नही जुनून भी हो गया लेकिन क्या ये सब उतनी ज़रूरी चीज़ें हैं जितना ये हमे लगती थी?",रंभा ने बहुत गहरी बात कह दी थी.सोनम ने आँखे झुका ली थी,"चल यार.अब ऐसे मुँह मत लटका.चल कही बाहर चल के बढ़िया खाना खाते हैं.इस मुसीबत से तो मैं निपट ही लूँगी.कोई मेरा इस्तेमाल करे & मैं उसे सबक ना सिखाऊँ,ऐसा तो होगा नही!",दोनो हंसते हुए उठे & बाहर जाने की तैय्यरी करने लगे.
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क्रमशः.......