hotaks444
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जाल पार्ट--80
गतान्क से आगे......
"तुम फोन क्यू नही उठा रही थी?!",देवेन बहुत जल्दी-2 अपना समान पॅक कर रहा था.
"मैं नहा रही थी & फोन साइलेंट मोड पे था.",रंभा भी बॅग्स बंद कर रही थी.देवेन ने रॉकी की कार छान मारी थी & उसकी ड्राइविंग सीट के फ्लोर मॅट के नीचे उसे 1 छ्होटी पिस्टल & 1 मोबाइल फोन मिला था.देवेन ने फोने ऑन किया तो पाया था कि उसमे बस 1 नंबर से फोन आया था.
"कुच्छ छूटा तो नही?",देवेन ने अपना बॅग बंद किया.
"नही.",विजयंत मेहरा वही खड़ा दोनो को देख रहा था.
"ओके,अब तुम दोनो मेरी बात ध्यान से सुनो.",देवेन कमर पे हाथ रखे खड़ा था,"..ये शख्स यहा या तो मुझे या रंभा को मारने आया था..",बात सुनते ही रंभा का दिल धड़क उठा..समीर इस हद्द तक जा सकता है..मगर क्यू?,"..पर अब वो शख्स मर चुका है & जिसने भी उसे भेजा था वो आगे हमे नुकसान पहुचाने से पहले झिझकेगा ज़रूर.हमे अब यहा से निकल जाना है.",वो अपनी प्रेमिका से मुखातिब हुआ,"रंभा,तुम अगली फ्लाइट पकड़ के डेवाले जाओ & तुम्हे वाहा 1 खफा बीवी का खेल खेलते हुए मेहरा खानदान के 1-1 आदमी पे नज़र रखनी है."
"मगर..",रंभा के चेहरे पे ख़ौफ़ सॉफ दिख रहा था.
"घबराने की ज़रूरत नही है.मैं हमेशा तुम्हारे आस-पास ही रहूँगा & जैसा मैने कहा मुझे नही लगता कि अब तुम्हे कोई नुकसान पहुचाना चाहेगा.अगर फिर भी तुम्हे डर लगता है तो समीर को इस बारे मे बताओ & फिर 1 वकील के साथ पोलीस मे जाके ये कह दो कि तुम्हे अपने पति से जान का ख़तरा है.वैसे तुम्हे पोलीस तक जाने की ज़रूरत नही पड़ेगी.तुम्हारी बात सुनते ही समीर तुम्हारी हिफ़ाज़त का इंतेज़ाम कर देगा.मुझे नही लगता वो किसी भी तरह की नेगेटिव पब्लिसिटी चाहेगा."
"यानी की समीर का हाथ नही है इस सब के पीछे?",सवाल विजयंत ने किया & दोनो को चौंका दिया.
"पहले मुझे भी ऐसा लगा था मगर अब नही लगता.रंभा समीर से अलग होने को तैय्यार है वो भी उसके बताए वक़्त पे फिर उसे क्या तकलीफ़ हो सकती है?..ये किसी और का ही काम है."
"मगर किसका?"
"मेरा शक़ प्रणव पे है.वो मुझे बहुत शातिर खिलाड़ी लगता है & वो क्या नाम है उसके साथी का..",वो माथे पे हाथ फिराने लगा.
"महादेव शाह.",रंभा बोली.
"हां,बहुत मुमकिन है कि ये सब उसी का किया-धरा हो."
"पर वो मुझे मारना क्यू चाहेगा?..मैं मरी तो समीर कामया से शादी कर लेगा & उसका सारा खेल तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा."
"हूँ."
"मैं जानती हू ये कमिनि हरकत किसकी है?",रंभा के दिमाग़ मे अचानक बिजली कौंधी थी.
"किसकी?"
"कामया की.मेरी मौत से सबसे बड़ा फायडा उसी को होगा.डेवाले पहुचते ही उसे ठीक करती हू.",रंभा गुस्से से बोली.
"गुस्से मे होश नही खोना."
"ठीक है.तो मैं एरपोर्ट निकलु?"
"हां..और रंभा..तुम्हे डेवाले मे हम दोनो के लिए 1 घर का इंतेज़ाम करना होगा."
"ठीक है मगर आप दोनो वाहा कैसे & कब पहुचेंगे?"
"बस पहुँच जाएँगे.",देवेन हंसा & रंभा को चूमा.5 घंटे बाद रंभा डेवाले मे थी & मेहरा परिवार के सभी सदस्य जैसे उसके जाने से हैरान थे वैसे ही उसके अचानक वापस आने पे भी हैरान ही थे.
"कब आई?",समीर दफ़्तर से लौटने के बाद अपनी हैरानी च्छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.
"थोड़ी देर पहले.",रंभा ने जवाब दिया & अलमारी मे अपने कपड़े ठीक करती रही.कुच्छ देर तक समीर कुच्छ नही बोला पर फिर उस से ये खामोशी बर्दाश्त नही हुई.
"वो..मैं घबरा गया था और बलबीर को.."
"प्लीज़ समीर,मेरा मूड मत खराब करो.मैने तुम्हे बोला था कि मुझे परेशान मत करना & मैं वापस आ जाऊंगी मगर फिर भी तुमने ये ओछि हरकत की."
"आइ'म सॉरी पर तुम्हे पता कैसे चला?"
"जैसे भी चला हो मगर तुम मेरी नज़रो मे और गिर गये हो.",रंभा दिल ही दिल मे हंस रही थी.
"ओके.अब ज़्यादा दिन मेरे साथ तुम्हे नही रहना पड़ेगा,बस 1 बार मानपुर वाला टेंडर खुल जाए फिर तुम्हे यहा रहने की ज़हमत नही उठानी पड़ेगी.",रंभा ने कोई जवाब नही दिया & अलमारी बंद कर कमरे से बाहर चली गयी.
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देवेन & विजयंत ने गोआ से बोम्बे तक की ट्रेन पकड़ी.दोनो ने मिलके विजयंत का हुलिया काफ़ी हद्द तक बदला.देवेन ने एसी फर्स्ट क्लास की टिकेट्स ली ताकि दोनो का सामना कम से कम लोगो से हो.बोम्बे से उसने दूसरी ट्रेन पकड़ी & डेवाले पहुँचा.डेवाले पहुचते ही उसने रंभा को फोन किया तो उसने उसे 1 पता दिया & वाहा जाने को कहा.40 मिनिट बाद देवेन और विजयंत उसके बताए पते पे टॅक्सी से उतर रहे थे.
टॅक्सी के जाते ही देवेन ने रंभा को फोन किया,"हम तुम्हारे बताए पते पे पहुँच गये हैं."
"गुड.गेट खुला है.आप अंदर जाइए & मेन डोर के बाहर जो 2 गमले रखे हैं.."
"हान..",देवेन अंदर गया तो उसके पीछे-2 विजयंत मेहरा भी समान उठाए घर के अहाते मे आ गया,"..जो गुलाब के पौधो वाले गमले हैं?"
"हां,वही.आपके बाए हाथ की तरफ वाले गमले को उठाइए,वाहा की टाइल ढीली है.उसी के नीचे घर की चाभी रखी है.",रंभा ने सोनम की मदद से ये घर किराए पे लिया था.वो नही चाहती थी कि सोनम को विजयंत के बारे मे पता चले & उसके पास चाभी देने आने का वक़्त नही था इसीलिए उसने इस तरह का इंतेज़ाम किया था.
"हां,मिल गयी.",देवेन ने दरवाज़ा खोला & दोनो मर्द घर के अंदर चले गये.
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"इस तरह से क्यू गायब हो गयी थी?",समीर के दफ़्तर जाते ही प्रणव आ धमका & उसे बाहो मे भर इस तरह चूमने लगा मानो इतने दिनो की जुदाई ने उसे पागल कर दिया हो.
"ओह्ह्ह्ह..आराम से करो..",वो रंभा की गर्दन चूम रहा था & रंभा गुदगुदी महसूस होने से खिलखिला उठी थी,"..सब्र करो,प्रणव.अभी कोई भी आ सकता है.",प्रणव ने अपने होंठ तो उसकी गर्दन से हटा दिए मगर हाथ जस के तस उसकी कमर पे बने रहे.
"क्यू चली गयी थी इस तरह?",रंभा ने घुटनो तक की कसी,सफेद स्कर्ट & कोट पहना था.स्कर्ट मे उसकी गंद बड़े क़ातिल अंदाज़ मे & उभर आई थी & प्रणव के हाथ उसकी फांको की गोलाईयो पे घूम रहे थे.
"बात ही कुच्छ ऐसी हो गयी थी.",रंभा ने नज़रे झुका ली & उसके चेहरे का रंग भी उतर गया.
"क्या बात हुई?..मुझे भी तो बताओ.",प्रणव का दाया हाथ उसकी गंद से उसके चेहरे पे आ गया & उसकी ठुड्डी पकड़ के उसे उपर कर उसकी निगाहो को खुद की नज़रो से मिलने पे मजबूर किया.
"छ्चोड़ो ना..क्या करोगे जान के?",रंभा ने उसका हाथ थाम लिया & फिर नज़रे झुका ली.
"रंभा,जब तक मुझे पूरी बता नही बतओगि मैं यहा से हिलने वाला नही.",रंभा तो बस यू ही नाटक कर रही थी.उसे प्रणव को सही बात तो बतानी ही थी.अभी तक खुल के उसने समीर की बुराई ये उसके खिलाफ होने के लिए उस से नही कहा था.वो देखना चाहती थी कि समीर की बेवफ़ाई के बारे मे बताने पे वो किस तरह से रिक्ट करता है.वो कुच्छ देर खामोश रही & प्रणव इसरार करता रहा.थोड़ी देर बाद उसने उसे समीर & कामया को रंगे हाथ पकड़ने की बात बता दी.
"कितना गिरा इंसान है ये समीर!",प्रणव गुस्से मे बोला,"..अगर यही सब करना था तो तुमसे शादी क्यू की उसने?!..रंभा,तुम्हे उसी वक़्त मुझे ये बात बतानी थी."
"क्या कर लेते तुम?..ज़्यादा से ज़्यादा समीर को डाँटते & वो जब तुम्हे कोई टका सा जवाब दे देता तो फिर बेइज़्ज़त होना क्या तुम्हे अच्छा लगता..",उसने नज़रे नीची कर ली और अपनी अंगूठी से खेलने लगी,"..तुम्हारा मुझे पता नही पर मुझे बहुत बुरा लगता अगर वो तुमसे कुच्छ ऐसी-वैसी बात कह देता तो.",प्रणव का दिल खुशी से भर गया..यानी चिड़िया पूरी तरह से उसके झूठे इश्क़ के जाल मे फँसी हुई थी!..उस बेचारे को क्या पता था कि जिसे वो मासूम चिड़िया समझ रहा था वो दरअसल सय्याद थी & बड़ी सफाई से उसे जाल मे फँसा रही थी.
"तो क्या होता?",उसने रंभा को बाहो मे भर उसके माथे को चूमा,"..कम से कम तुम यू मुझसे दूर तो ना जाती."
"ओह प्रणव!",रंभा ने भी उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे मुँह च्छूपा लिया.काफ़ी देर तक दोनो वैसे ही खड़े रहे.
"रंभा.."
"हूँ.."
"तुम्हे गुस्सा तो बहुत आया होगा ना?"
"हूँ.",रंभा वैसे ही मुँह च्छुपाए खड़ी थी.उसका दिल धड़क रहा था,प्रणव अपने मंसूबो को कुच्छ तो उजागर करने वाला था.
"तो समीर को सबक सिखाने का ख़याल नही आया तुम्हारे मन मे?"
"आया.",रंभा ने सर उपर उठाके प्रणव को देखा.
"तो कैसे करोगी ये काम?"
"यही समझ नही आया तो बेबसी और गुस्से से निजात पाने के लिए गोआ चली गयी थी."
"अच्छा & अगर मैं तुम्हे इस बाबत रास्ता दिखाऊ तो?",प्रणव ने बहुत सोच-समझ के ये बात कही थी.उसे इतना रिस्क तो उठाना ही था..आख़िर फायडा भी तो काफ़ी बड़ा होने वाला था.
"सच!..तो बताओ ना..क्या रास्ता है?",रंभा मच्लि.
"समीर को ट्रस्ट ग्रूप का मालिक होने का बहुत गुमान है ना..तो क्यू ना उसके गुमान की इस वजह को ख़त्म कर दिया जाए & तुम्हे इस साम्राज्य की मल्लिका बना दिया जाए?"
"क्या?!",रंभा के चेहरे पे हैरत & थोड़ी सी घबराहट के भाव थे,"..मगर कैसे प्रणव?"
"उसे रास्ते से हटा के."
"क्या कह रहे हो?..उसकी जान लोगे..पर..-"
"-..ना!",प्रणव ने उसके गुलाबी होंठो पे 1 उंगली रख खामोश रहने का इशारा किया,"..नही जान नही लेंगे बस उसे काम करने लायक नही छ्चोड़ेंगे.",रंभा कुच्छ देर तक वैसे ही उसे देखती रही.प्रणव को लगा कि उसने ग़लती कर दी है.रंभा घबरा के पीछे हटेगी & सारे किए-कराए पे पानी फेर देगी..उपर से उसके इरादो की जानकारी होने पे अब उसे उसका भी इलाज करना होगा..मगर तभी रंभा मुस्कुराइ & उसकी गर्दन मे बाहे डाल उसके होंठो को चूमा.
"प्रणव जी,आपको तो मैं बड़ा शरीफ इंसान समझती थी मगर आप तो काफ़ी बदमाश हैं!",वो शरारत से बोली तो दोनो खिलखिला उठे.प्रणव उसे चूमने लगा & उसकी दाई जाँघ उठा उसकी स्कर्ट मे हाथ घुसाने लगा तो रंभा उस से अलग हो गयी,"नही,अभी नही.अभी काम है मुझे & तुम्हे भी दफ़्तर जाना चाहिए.किसी को हमारे रिश्ते की ज़रा भी भनक नही लगनी चाहिए."
"ओके.",प्रणव ने मुस्कुराते हुए उसे चूमा & वाहा से चला गया.उसके जाने के कुच्छ देर बाद रंभा ट्रस्ट फिल्म्स के दफ़्तर के लिए रवाना हो गयी.
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क्रमशः.......
गतान्क से आगे......
"तुम फोन क्यू नही उठा रही थी?!",देवेन बहुत जल्दी-2 अपना समान पॅक कर रहा था.
"मैं नहा रही थी & फोन साइलेंट मोड पे था.",रंभा भी बॅग्स बंद कर रही थी.देवेन ने रॉकी की कार छान मारी थी & उसकी ड्राइविंग सीट के फ्लोर मॅट के नीचे उसे 1 छ्होटी पिस्टल & 1 मोबाइल फोन मिला था.देवेन ने फोने ऑन किया तो पाया था कि उसमे बस 1 नंबर से फोन आया था.
"कुच्छ छूटा तो नही?",देवेन ने अपना बॅग बंद किया.
"नही.",विजयंत मेहरा वही खड़ा दोनो को देख रहा था.
"ओके,अब तुम दोनो मेरी बात ध्यान से सुनो.",देवेन कमर पे हाथ रखे खड़ा था,"..ये शख्स यहा या तो मुझे या रंभा को मारने आया था..",बात सुनते ही रंभा का दिल धड़क उठा..समीर इस हद्द तक जा सकता है..मगर क्यू?,"..पर अब वो शख्स मर चुका है & जिसने भी उसे भेजा था वो आगे हमे नुकसान पहुचाने से पहले झिझकेगा ज़रूर.हमे अब यहा से निकल जाना है.",वो अपनी प्रेमिका से मुखातिब हुआ,"रंभा,तुम अगली फ्लाइट पकड़ के डेवाले जाओ & तुम्हे वाहा 1 खफा बीवी का खेल खेलते हुए मेहरा खानदान के 1-1 आदमी पे नज़र रखनी है."
"मगर..",रंभा के चेहरे पे ख़ौफ़ सॉफ दिख रहा था.
"घबराने की ज़रूरत नही है.मैं हमेशा तुम्हारे आस-पास ही रहूँगा & जैसा मैने कहा मुझे नही लगता कि अब तुम्हे कोई नुकसान पहुचाना चाहेगा.अगर फिर भी तुम्हे डर लगता है तो समीर को इस बारे मे बताओ & फिर 1 वकील के साथ पोलीस मे जाके ये कह दो कि तुम्हे अपने पति से जान का ख़तरा है.वैसे तुम्हे पोलीस तक जाने की ज़रूरत नही पड़ेगी.तुम्हारी बात सुनते ही समीर तुम्हारी हिफ़ाज़त का इंतेज़ाम कर देगा.मुझे नही लगता वो किसी भी तरह की नेगेटिव पब्लिसिटी चाहेगा."
"यानी की समीर का हाथ नही है इस सब के पीछे?",सवाल विजयंत ने किया & दोनो को चौंका दिया.
"पहले मुझे भी ऐसा लगा था मगर अब नही लगता.रंभा समीर से अलग होने को तैय्यार है वो भी उसके बताए वक़्त पे फिर उसे क्या तकलीफ़ हो सकती है?..ये किसी और का ही काम है."
"मगर किसका?"
"मेरा शक़ प्रणव पे है.वो मुझे बहुत शातिर खिलाड़ी लगता है & वो क्या नाम है उसके साथी का..",वो माथे पे हाथ फिराने लगा.
"महादेव शाह.",रंभा बोली.
"हां,बहुत मुमकिन है कि ये सब उसी का किया-धरा हो."
"पर वो मुझे मारना क्यू चाहेगा?..मैं मरी तो समीर कामया से शादी कर लेगा & उसका सारा खेल तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा."
"हूँ."
"मैं जानती हू ये कमिनि हरकत किसकी है?",रंभा के दिमाग़ मे अचानक बिजली कौंधी थी.
"किसकी?"
"कामया की.मेरी मौत से सबसे बड़ा फायडा उसी को होगा.डेवाले पहुचते ही उसे ठीक करती हू.",रंभा गुस्से से बोली.
"गुस्से मे होश नही खोना."
"ठीक है.तो मैं एरपोर्ट निकलु?"
"हां..और रंभा..तुम्हे डेवाले मे हम दोनो के लिए 1 घर का इंतेज़ाम करना होगा."
"ठीक है मगर आप दोनो वाहा कैसे & कब पहुचेंगे?"
"बस पहुँच जाएँगे.",देवेन हंसा & रंभा को चूमा.5 घंटे बाद रंभा डेवाले मे थी & मेहरा परिवार के सभी सदस्य जैसे उसके जाने से हैरान थे वैसे ही उसके अचानक वापस आने पे भी हैरान ही थे.
"कब आई?",समीर दफ़्तर से लौटने के बाद अपनी हैरानी च्छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.
"थोड़ी देर पहले.",रंभा ने जवाब दिया & अलमारी मे अपने कपड़े ठीक करती रही.कुच्छ देर तक समीर कुच्छ नही बोला पर फिर उस से ये खामोशी बर्दाश्त नही हुई.
"वो..मैं घबरा गया था और बलबीर को.."
"प्लीज़ समीर,मेरा मूड मत खराब करो.मैने तुम्हे बोला था कि मुझे परेशान मत करना & मैं वापस आ जाऊंगी मगर फिर भी तुमने ये ओछि हरकत की."
"आइ'म सॉरी पर तुम्हे पता कैसे चला?"
"जैसे भी चला हो मगर तुम मेरी नज़रो मे और गिर गये हो.",रंभा दिल ही दिल मे हंस रही थी.
"ओके.अब ज़्यादा दिन मेरे साथ तुम्हे नही रहना पड़ेगा,बस 1 बार मानपुर वाला टेंडर खुल जाए फिर तुम्हे यहा रहने की ज़हमत नही उठानी पड़ेगी.",रंभा ने कोई जवाब नही दिया & अलमारी बंद कर कमरे से बाहर चली गयी.
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देवेन & विजयंत ने गोआ से बोम्बे तक की ट्रेन पकड़ी.दोनो ने मिलके विजयंत का हुलिया काफ़ी हद्द तक बदला.देवेन ने एसी फर्स्ट क्लास की टिकेट्स ली ताकि दोनो का सामना कम से कम लोगो से हो.बोम्बे से उसने दूसरी ट्रेन पकड़ी & डेवाले पहुँचा.डेवाले पहुचते ही उसने रंभा को फोन किया तो उसने उसे 1 पता दिया & वाहा जाने को कहा.40 मिनिट बाद देवेन और विजयंत उसके बताए पते पे टॅक्सी से उतर रहे थे.
टॅक्सी के जाते ही देवेन ने रंभा को फोन किया,"हम तुम्हारे बताए पते पे पहुँच गये हैं."
"गुड.गेट खुला है.आप अंदर जाइए & मेन डोर के बाहर जो 2 गमले रखे हैं.."
"हान..",देवेन अंदर गया तो उसके पीछे-2 विजयंत मेहरा भी समान उठाए घर के अहाते मे आ गया,"..जो गुलाब के पौधो वाले गमले हैं?"
"हां,वही.आपके बाए हाथ की तरफ वाले गमले को उठाइए,वाहा की टाइल ढीली है.उसी के नीचे घर की चाभी रखी है.",रंभा ने सोनम की मदद से ये घर किराए पे लिया था.वो नही चाहती थी कि सोनम को विजयंत के बारे मे पता चले & उसके पास चाभी देने आने का वक़्त नही था इसीलिए उसने इस तरह का इंतेज़ाम किया था.
"हां,मिल गयी.",देवेन ने दरवाज़ा खोला & दोनो मर्द घर के अंदर चले गये.
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"इस तरह से क्यू गायब हो गयी थी?",समीर के दफ़्तर जाते ही प्रणव आ धमका & उसे बाहो मे भर इस तरह चूमने लगा मानो इतने दिनो की जुदाई ने उसे पागल कर दिया हो.
"ओह्ह्ह्ह..आराम से करो..",वो रंभा की गर्दन चूम रहा था & रंभा गुदगुदी महसूस होने से खिलखिला उठी थी,"..सब्र करो,प्रणव.अभी कोई भी आ सकता है.",प्रणव ने अपने होंठ तो उसकी गर्दन से हटा दिए मगर हाथ जस के तस उसकी कमर पे बने रहे.
"क्यू चली गयी थी इस तरह?",रंभा ने घुटनो तक की कसी,सफेद स्कर्ट & कोट पहना था.स्कर्ट मे उसकी गंद बड़े क़ातिल अंदाज़ मे & उभर आई थी & प्रणव के हाथ उसकी फांको की गोलाईयो पे घूम रहे थे.
"बात ही कुच्छ ऐसी हो गयी थी.",रंभा ने नज़रे झुका ली & उसके चेहरे का रंग भी उतर गया.
"क्या बात हुई?..मुझे भी तो बताओ.",प्रणव का दाया हाथ उसकी गंद से उसके चेहरे पे आ गया & उसकी ठुड्डी पकड़ के उसे उपर कर उसकी निगाहो को खुद की नज़रो से मिलने पे मजबूर किया.
"छ्चोड़ो ना..क्या करोगे जान के?",रंभा ने उसका हाथ थाम लिया & फिर नज़रे झुका ली.
"रंभा,जब तक मुझे पूरी बता नही बतओगि मैं यहा से हिलने वाला नही.",रंभा तो बस यू ही नाटक कर रही थी.उसे प्रणव को सही बात तो बतानी ही थी.अभी तक खुल के उसने समीर की बुराई ये उसके खिलाफ होने के लिए उस से नही कहा था.वो देखना चाहती थी कि समीर की बेवफ़ाई के बारे मे बताने पे वो किस तरह से रिक्ट करता है.वो कुच्छ देर खामोश रही & प्रणव इसरार करता रहा.थोड़ी देर बाद उसने उसे समीर & कामया को रंगे हाथ पकड़ने की बात बता दी.
"कितना गिरा इंसान है ये समीर!",प्रणव गुस्से मे बोला,"..अगर यही सब करना था तो तुमसे शादी क्यू की उसने?!..रंभा,तुम्हे उसी वक़्त मुझे ये बात बतानी थी."
"क्या कर लेते तुम?..ज़्यादा से ज़्यादा समीर को डाँटते & वो जब तुम्हे कोई टका सा जवाब दे देता तो फिर बेइज़्ज़त होना क्या तुम्हे अच्छा लगता..",उसने नज़रे नीची कर ली और अपनी अंगूठी से खेलने लगी,"..तुम्हारा मुझे पता नही पर मुझे बहुत बुरा लगता अगर वो तुमसे कुच्छ ऐसी-वैसी बात कह देता तो.",प्रणव का दिल खुशी से भर गया..यानी चिड़िया पूरी तरह से उसके झूठे इश्क़ के जाल मे फँसी हुई थी!..उस बेचारे को क्या पता था कि जिसे वो मासूम चिड़िया समझ रहा था वो दरअसल सय्याद थी & बड़ी सफाई से उसे जाल मे फँसा रही थी.
"तो क्या होता?",उसने रंभा को बाहो मे भर उसके माथे को चूमा,"..कम से कम तुम यू मुझसे दूर तो ना जाती."
"ओह प्रणव!",रंभा ने भी उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे मुँह च्छूपा लिया.काफ़ी देर तक दोनो वैसे ही खड़े रहे.
"रंभा.."
"हूँ.."
"तुम्हे गुस्सा तो बहुत आया होगा ना?"
"हूँ.",रंभा वैसे ही मुँह च्छुपाए खड़ी थी.उसका दिल धड़क रहा था,प्रणव अपने मंसूबो को कुच्छ तो उजागर करने वाला था.
"तो समीर को सबक सिखाने का ख़याल नही आया तुम्हारे मन मे?"
"आया.",रंभा ने सर उपर उठाके प्रणव को देखा.
"तो कैसे करोगी ये काम?"
"यही समझ नही आया तो बेबसी और गुस्से से निजात पाने के लिए गोआ चली गयी थी."
"अच्छा & अगर मैं तुम्हे इस बाबत रास्ता दिखाऊ तो?",प्रणव ने बहुत सोच-समझ के ये बात कही थी.उसे इतना रिस्क तो उठाना ही था..आख़िर फायडा भी तो काफ़ी बड़ा होने वाला था.
"सच!..तो बताओ ना..क्या रास्ता है?",रंभा मच्लि.
"समीर को ट्रस्ट ग्रूप का मालिक होने का बहुत गुमान है ना..तो क्यू ना उसके गुमान की इस वजह को ख़त्म कर दिया जाए & तुम्हे इस साम्राज्य की मल्लिका बना दिया जाए?"
"क्या?!",रंभा के चेहरे पे हैरत & थोड़ी सी घबराहट के भाव थे,"..मगर कैसे प्रणव?"
"उसे रास्ते से हटा के."
"क्या कह रहे हो?..उसकी जान लोगे..पर..-"
"-..ना!",प्रणव ने उसके गुलाबी होंठो पे 1 उंगली रख खामोश रहने का इशारा किया,"..नही जान नही लेंगे बस उसे काम करने लायक नही छ्चोड़ेंगे.",रंभा कुच्छ देर तक वैसे ही उसे देखती रही.प्रणव को लगा कि उसने ग़लती कर दी है.रंभा घबरा के पीछे हटेगी & सारे किए-कराए पे पानी फेर देगी..उपर से उसके इरादो की जानकारी होने पे अब उसे उसका भी इलाज करना होगा..मगर तभी रंभा मुस्कुराइ & उसकी गर्दन मे बाहे डाल उसके होंठो को चूमा.
"प्रणव जी,आपको तो मैं बड़ा शरीफ इंसान समझती थी मगर आप तो काफ़ी बदमाश हैं!",वो शरारत से बोली तो दोनो खिलखिला उठे.प्रणव उसे चूमने लगा & उसकी दाई जाँघ उठा उसकी स्कर्ट मे हाथ घुसाने लगा तो रंभा उस से अलग हो गयी,"नही,अभी नही.अभी काम है मुझे & तुम्हे भी दफ़्तर जाना चाहिए.किसी को हमारे रिश्ते की ज़रा भी भनक नही लगनी चाहिए."
"ओके.",प्रणव ने मुस्कुराते हुए उसे चूमा & वाहा से चला गया.उसके जाने के कुच्छ देर बाद रंभा ट्रस्ट फिल्म्स के दफ़्तर के लिए रवाना हो गयी.
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क्रमशः.......